राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चुनावी मदद का चुकारा
06-Apr-2025 4:07 PM
 राजपथ-जनपथ :  चुनावी मदद का चुकारा

चुनावी मदद का चुकारा 

अंबिकापुर जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के घोटाले की जांच शुरू होते ही शाखा प्रबंधकों, और कर्मचारियों में हडक़ंप मचा है। यह घोटाला करीब सौ करोड़ तक पहुंच सकता है। इतना बड़ा घोटाला हो और नेताओं का संरक्षण न हो, यह कैसे हो सकता है। चर्चा है कि सरगुजा की एक महिला विधायक ने अपने करीबी शाखा प्रबंधक पर कार्रवाई न हो, इसके लिए दबाव बनाया  है।

बताते हैं कि शाखा प्रबंधकों ने स्थानीय कई नेताओं को चुनाव में सहयोग भी किया था, इस वजह से कई नेता बैंक कर्मियों की पैरवी करते दिख रहे हैं। अब तक आधा दर्जन से अधिक बैंक कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जा चुका है। शासन स्तर पर उच्च स्तरीय जांच चल रही है। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारियों को बचा पाना मुश्किल दिख रहा है। जांच पूरी होते ही प्रकरण ईओडब्ल्यू-एसीबी को सौंपा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।

संविदा नियुक्ति क्यों, रिटायरमेंट 70 हो

पिछले दिनों मंत्रालय कैडर के एक रिटायर्ड अधिकारी को तीन महीने बाद संविदा नियुक्ति दे दी गई । और अब कुछ और लाइन में है। मंत्रियों की उंगली पकड़ कर तीन-चार वर्ष और वारे-न्यारे करना चाहते हैं। भाजपा पिछली सरकार में इन नियुक्तियों का विरोध करती रही है, इतना ही नहीं सरकारी घोटालों के लिए इन संविदा पदधारियों को ही जिम्मेदार बताती रही। और अब इनके लिए ही कवायद में जुटी है।

इसकी भनक लगते ही कर्मचारी संगठनों के नेता सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए हैं। सबसे बड़े संगठन फेडरेशन के ग्रुप में ऐसे ही कुछ पोस्ट देखें-
राज्य के कुछ अधिकारी कर्मचारी, जो अपने संरक्षकों को खुश रखते है,वे लगातार 70 सालों तक संविदा नियुक्ति पाने में कामयाब रहते है। पदोन्नति के पदों में संविदा नियुक्ति का नियम नहीं है,लेकिन ऐसे लोग बहुतायत में पदोन्नति के पदों पर नियुक्त हो रहे है। ऐसा माहौल बनाया जाता है, मानो ये लोग न रहे तो विभाग में ताला लग जाएगा। बाद में ये नियमित पदोन्नति में बाधा खड़ा करने लग जाते हैं, ताकि येन केन प्रकारेण इनकी संविदा अवधि बढ़ती रहे।

कुछ लोगों का कहना है कि यह उन लोगों के साथ घोर अन्याय है,जो ईमानदारी और स्वाभिमान से सेवा करते हुए 62 साल में सेवा से मुक्त हो जाते हैं। अब समय आ गया है, कि इस घोर असमानता के खिलाफ आवाज उठाया जाना चाहिए। या तो सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 70 साल कर दे। या फिर संविदा नियुक्ति के लिए खुले विज्ञापन से  सभी सेवानिवृत्तों को  समान अवसर देकर किया जाना चाहिए।

दूसरा कथन - संविदा नियुक्ति की कुप्रथा स्वस्थ कार्य परिवेश के लिए एक अभिशाप बनती जा रही है। फेडरेशन को इसके उन्मूलन के लिए एक निर्णायक लड़ाई की शुरुआत करनी चाहिए।
तीसरा कथन - प्रदेश में 200 से अधिक अधिकारी कर्मचारी संगठन हैं,सभी को अपने अपने संगठन से भी इस व्यवस्था का विरोध में शासन को पत्र भेजना चाहिए।

उल्लू बुद्धिमान पक्षी 

नजर पैनी हो तभी दिखाई दे। पेड़ों की छाल से मिलती-जुलती बनावट, वही भूरा-सलेटी रंग और वैसे ही पंख। इस चित्र में छिपा है एक विलक्षण उल्लू। प्रकृति ने जैसे इस पक्षी को छुपने की कला में पारंगत बनाया हो। आम दृष्टि इसे शायद एक टहनी ही समझे, लेकिन एक अनुभवी दृष्टि ने इस क्षण को कैमरे में बांध दिया। पक्षियों में छुपने की कला केवल जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि खुद को प्रकृति का हिस्सा दिखाने का तरीका भी है। अनेक शोध बता चुके हैं कि उल्लू एक बुद्धिमान पक्षी है, बात अलग है कि इंसानों को उसके नाम से पुकारने का मतलब मूर्ख बताना होता है। उसकी आंखें, जो सीधे कैमरे में झांक रही हैं, मानो कह रही हों कि तुमने मुझे देख लिया? तो तुम भी मेरी तरह साधक हो। यह फोटो शिरीष दामरे ने कोटा (करगीरोड) के रास्ते पर खींची है।

 

संरक्षण के साए में काला कारोबार

राजनांदगांव के डोंगरगढ़ में पांच महीने से अवैध रूप से चल रहा शराब बॉटलिंग प्लांट न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि आबकारी और पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर भी गहरा संदेह पैदा करता है। यह हैरान करने वाला तथ्य है कि थाने से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर यह काला कारोबार धड़ल्ले से चलता रहा और किसी जिम्मेदार अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लगी।

पूछताछ में सामने आया कि मध्यप्रदेश से पांच बार कंटेनर में शराब लाकर छत्तीसगढ़ के नकली होलोग्राम और लेबल लगाकर उसकी खुलेआम बिक्री की जाती रही। जाहिर है कि यह कोई एक रात की योजना नहीं, बल्कि सुनियोजित नेटवर्क का हिस्सा रहा होगा। मास्टर माइंड रोहित उर्फ सोनू, उसके तीन सहयोगियों सहित 11 लोगों  की गिरफ्तारी की गई है। अभी तक हुई जांच में राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिलीभगत का संकेत भी मिला है। जब खुद पुलिस स्वीकार रही है कि कंटेनर पांच बार आए और शराब डंप हुई, तो फिर यह चूक केवल लापरवाही थी या जानबूझकर आंखें मूंद ली गई?  सवाल बना हुआ है कि जिनकी नाक के नीचे यह सब होता रहा, आबकारी व पुलिस विभाग के वे अधिकारी कब कटघरे में खड़े होंगे?

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