राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : फेसबुक-वाट्सएप पर क्रांति
04-Apr-2025 3:03 PM
राजपथ-जनपथ : फेसबुक-वाट्सएप पर क्रांति

फेसबुक-वाट्सएप पर क्रांति

निगम मंडलों में नियुक्तियों को लेकर सफल लोगों के समर्थक होर्डिंग, फ्लेक्स और विज्ञापन, बुके, गजमाला, हार, मिठाई से खुशी मना रहे हैं इनमें भी ठेकेदार, सप्लायर अधिक हैं। और जो असफल हुए हैं उनके समर्थक फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सएप पर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं-

सैक्स सीडी कांड में भूपेश बघेल से पंगा लेने वाले एक कार्यकर्ता ने लिखा ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ, इन बड़े लोगों से मिलकर बड़ा नुकसान हुआ।
एक अन्य ने असफल कार्यकर्ताओं को सांत्वना में समझाइश दी -

मुद्दतों इंतजार के बाद सरकार बहादुर ने निगम मंडल नाम की सूची जारी कर दी। कार्यकर्ता नाम के कुछ बेचारे सूक्ष्मदर्शी से दिखाई देने वाले प्राणी अपनी याददाश्त पर खूब जोर देकर पता कर रहे हैं कि इस सूची में जो एक सुंदर सा नाम है उसको उन्होंने कब पार्टी दफ्तर में देखा था। कब पार्टी के जंगी प्रदर्शनों में देखा था या फिर कब पार्टी की अंदरूनी रणनीतिक टीम में काम करते देखा था। या फिर कांग्रेस शासनकाल में इस हस्ती ने कौन सा प्रचंड प्रतिरोध खड़ा कर दिया था।

ज्यादातर को ये भी पता नहीं कि ये महान हस्ती है कौन? पता नहीं किस महान नेता की दिव्य दृष्टि पडऩे की वजह से उसका ये राजयोग प्रबल हुआ है? और तुम जैसे दिन-रात पार्टी के लिए मरने खपने वाले तुच्छ कार्यकर्ताओं का उत्थान किस महान नेता के चरण पकडऩे से होगा?

अरे-अरे, लेकिन तुम तो कार्यकर्ता हो यार! तुम इस  फैसले को लेकर सोच-विचार भी कर पा रहे हो इतने भर से अनुशासन नाम की इमारत हिलने लगी है। और ये तो किसी से छिपा नहीं है कि तुम कितने निष्ठावान कार्यकर्ता हो। हिंदू राष्ट्र के लिए, राष्ट्रवाद के लिए, स्वधर्म के लिए कोई भी कीमत दे सकते हो। है न? इसलिए दुखी मत हो, सवाल मत उठाओ, तुम सरकार के लिए हो, सरकार तुम्हारे लिए नहीं है। अब तुम्हारे पास ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं।

पार्टी- सरकार की कुंडली के दशम भाव में बैठे राहु को खूब रिझाओ, मक्खन लगा लगा के बम बम कर दो। अगर कभी आपके लाभ के भाव पर इस राहु का गोचर होगा तो तुम्हारी भी निकल पड़ेगी। और हाँ, जिनको अपेक्षा से कम मिला है, वो इसे अपमान नहीं, इज़्ज़त-अफजाई समझें। जिनको कुछ नहीं मिला वो तो खाम-खयाली पालें ही नहीं। असल में वो किसी लायक है ही नहीं।

समझे कार्यकर्ता कहीं के।
पार्टीबाजी से इतर एक अन्य ने पोस्ट किया - मेरा अनुभव कहता है कि राजनीति में वक्त पल पल बदलते रहता है। कभी परिक्रमा करने वालों के पाले में गेंद रहती है। तो कभी पराक्रम करने वालों के। अगर परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है तो कुछ वक्त के लिए आप तटस्थ हे जाइए। पर अपनी राजनीति को जिंदा रखिए। आपका राजनीति में जिंदा रहना ही आपके साथियों के लिए हौसला बनेगा। और आपकी सफलता का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। शुभ रात्रि।
इन सबके बीच गौरीशंकर श्रीवास की सनसनीख़ेज़ फेसबुक पोस्ट ग़ायब हो गई है।  

नए जुर्माने के लिए तैयार रहिये

हर साल 1 अप्रैल से सरकारी नियमों में बदलाव किए जाते हैं, जिनमें कुछ नए प्रावधान लागू होते हैं। इसी कड़ी में हाई-सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट लगाने की अनिवार्यता भी शामिल है। इस नियम की डेडलाइन 31 मार्च को समाप्त हो चुकी है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में लागू किया गया है। एक अप्रैल 2019 से पहले खरीदी गई गाडिय़ों में हाई-सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए परिवहन विभाग ने दो एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी है, जिन्होंने प्रदेशभर में 350 से अधिक सेंटर स्थापित किए हैं। नए नंबर प्लेट के लिए वाहन मालिकों को परिवहन विभाग की वेबसाइट पर जाकर मोबाइल नंबर और गाड़ी का चेसिस नंबर दर्ज करना होगा। इसके बाद 365 से 705 रुपये तक का शुल्क ऑनलाइन जमा करना होगा। जब नंबर प्लेट तैयार हो जाएगी, तो वाहन मालिक को एसएमएस के जरिए सूचना मिलेगी। इसके बाद निर्धारित सेंटर पर जाकर इसे लगवाया जा सकता है। यदि गाड़ी के घर पर बुलाकर नंबर प्लेट लगवानी हो, तो 100 अतिरिक्त शुल्क देना होगा।

प्रदेश में 1 अप्रैल 2019 से पहले खरीदी गई करीब 40 लाख गाडिय़ां अब भी सडक़ों पर दौड़ रही हैं। लेकिन डेडलाइन खत्म होने तक केवल 50,000 गाडिय़ों में ही नए नंबर प्लेट लगाए जा सके, जो कि सिर्फ 1.25 प्रतिशत है। बाकी सभी लोग जिन्होंने नए नंबर प्लेट के लिए आवेदन नहीं किया है, क्या यह माना जाए कि वे बेफिक्र हैं, नजरअंदाज कर रहे हैं? कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं पर जो एचएसआरपी लगाने के इच्छुक होने के बाद भी पीछे रह गए उनकी भी परेशानी है। कई वाहन मालिकों के पुराने मोबाइल नंबर बदल चुके हैं, जिससे उनका पंजीयन ही नहीं हो पा रहा है। इसे अपडेट कराने की प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल है। दूसरा सभी लोगों को डिजिटल पेमेंट की प्रक्रिया समझ नहीं आती। कई के बैंक खाते ऑनलाइन भुगतान के लिए अपडेट नहीं हैं। परिवहन विभाग ने कोई ऑफलाइन विकल्प उपलब्ध नहीं कराया, जिससे लोगों को और कठिनाई हो रही है। परिवहन विभाग ने कहा है कि अगले 15 दिनों तक लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके बाद भी यदि नंबर प्लेट नहीं बदली गई, तो 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यह वसूल करना आसान है, ज्यादातर शहरों में चौक चौराहों पर सिग्नल के साथ कैमरे लगे हुए हैं।

दूसरी ओर, महाराष्ट्र में वहां की सरकार ने नया नंबर प्लेट लगाने की डेडलाइन 30 जून तक बढ़ा दी है। वहां के परिवहन मंत्री ने कहा है कि लोगों को अनावश्यक जुर्माने से बचाने के लिए यह फैसला लिया गया। हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार ने अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। क्या छत्तीसगढ़ सरकार को भी महाराष्ट्र की तरह डेडलाइन बढ़ाने पर विचार करना चाहिए? यह सवाल वाहन मालिकों के मन में बना हुआ है।

आवारा कुत्तों से कैसे निपटेंगे?

यदि इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबार में आवारा कुत्तों की समस्या पर सार्वजनिक अपील प्रकाशित हो रही है, तो यह संकेत है कि मामला अब केवल स्थानीय प्रशासन की चिंता का विषय नहीं रहा—बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक संकट का रूप ले चुका है।

दिल्ली में पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल हैरिटेज इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से एक लोक अभियान चला रहे हैं, जिसमें आमजन से अपील की जा रही है कि वे आवारा कुत्तों से उत्पन्न हो रही समस्याओं के समाधान के लिए आगे आएं।  

रायपुर की एक दर्दनाक घटना अभी भी ताजा है, जब इसी वर्ष फरवरी में दलदल सिवनी के आर्मी चौक पर एक छह वर्षीय मासूम बालक साइकिल से गिरने के बाद कुत्तों के झुंड का शिकार बन गया। उसके शरीर पर सौ से अधिक जख्म पाए गए। वर्ष 2024 के भीतर ही राजधानी के अस्पतालों में 2800 से अधिक डॉग बाइट के मामले दर्ज हो चुके हैं।

विधायक सुनील सोनी के सवाल पर कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में प्रदेशभर में 51,730 लोगों को कुत्तों ने काटा है। इस जानकारी में यह भी बताया गया कि कुत्तों द्वारा 2800 अन्य जानवरों को काटे जाने के मामले भी दर्ज हैं। यह आंकड़े स्वयं में एक चेतावनी हैं। यह न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा है, बल्कि मानवीय सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच एक संतुलन की मांग भी करता है।

हालांकि नगर निगम द्वारा कुत्तों के लिए आश्रय गृह निर्माण और नियमित नसबंदी-टीकाकरण जैसे प्रयासों की बात कही गई है, लेकिन ये प्रयास अभी भी आधे-अधूरे और कई बार कागज़ों तक सीमित हैं। उदाहरण के लिए, बिलासपुर में 12,000 आवारा कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया, परंतु दो वर्षों में केवल 2,000 कुत्तों की ही नसबंदी हो सकी।
बिलासपुर की एक पॉश कॉलोनी रामा वैली में कुत्तों को लाठियों से पीटकर गाडिय़ों में लाद कर दूर छोड़ दिया गया। इस घटना से मर्माहत कॉलोनी निवासी एक आईपीएस अफसर के किशोरवय बेटे ने पुलिस में गवाही दी, मगर निर्मम बर्ताव करने वाले भी रसूखदार थे, उनका कुछ नहीं हुआ । सितंबर 2024 में  भिलाई के आईआईटी परिसर में नसबंदी के बाद 4 कुत्तों की मृत्यु हुई, जिसकी शिकायत पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी तक पहुंची। इसके बाद वहां अभियान धीमा पड़ गया।

जटिलता यह है कि आवारा कुत्ते केवल पशु नहीं हैं। वे शहरी जीवन के एक हिस्से बन चुके हैं। कुछ के लिए बेहद हेय हैं पर कई लोग इन्हें भोजन कराते हैं, गर्मियों में पानी और सर्दियों में गर्म कपड़े या कंबल भी देते हैं। आवारा कुत्तों के जबरन विस्थापन के खिलाफ एनिमल लवर्स द्वारा अदालतों का दरवाजा खटखटाया गया और सफलता भी मिली। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि कुत्तों को जबरन हटाया नहीं जा सकता, केवल नसबंदी की जा सकती है।

मानवीय व्यवहार और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाए रखना अब सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, जिससे छत्तीसगढ़ के कई शहर-गांव जूझ रहे हैं।

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