महासमुन्द

हरेली: नांगर-कोप्पर-दतारी-टंगिया-बसुला-रापा और पशुधन की पूजा
24-Jul-2025 3:22 PM
हरेली: नांगर-कोप्पर-दतारी-टंगिया-बसुला-रापा और पशुधन की पूजा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 24 जुलाई। आज हरेली का त्यौहार महासमुंद जिले में सामाजिक समरसता के साथ मनाया जा रहा है। हालांकि जिले के कुछ स्थानों पर बुधवार को ही हरियाली का पर्व मनाया गया।

गौरतलब है कि यह त्यौहार किसी जाति, वर्ग या धर्म की सीमा में बंधा नहीं है, बल्कि गांव का हर व्यक्ति इसमें बराबर का भागीदार होता है। खासकर किसानों के लिए यह पर्व बहुत महत्व का है और किसान सुबह से ही खेती किसानी के औजार मसलन नांगर मतलब हल, गैंती, रापा मतलब फावड़ा, कुदारी मतलब कुदाल आदि को धोकर पूजा कर रहे हैं। इन औजारों को गुड़ और गेहूं आटा से बने चीला तथा गुलगुुला आदि पकवान का भोग बगाने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ी बोली में इस पकवान का नाम बोबरा चीला है। इससे पहले गांवों के पशु पालकों ने अपने अपने पशु्ओं को बारिश से होने वाली तमाम तरह की बीमारियों से बचाने गेहूं आटा के साथ बन प्याज आदि जड़ी से निर्मित औषधि खिलाई है। गांवों के अलावा शहरों में भी घरों के दरवाजों पर नीम की टहनी लगाई गई है। ताकि बीमारियां दूर रहें।

आधुनिकता की इस दौड़ में भी हरेली बनाम हरियाली की अपनी खास परंपरा जारी है। आज के दिन गेड़ी की पूजा भी की जाती है। बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। बताया जाता है कि पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता था। अब गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। फिर भी गेड़ी की परंपरा जारी है।

आज के दिन गांवों और शहरों में गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला आदि की भी पूजा करते हैं और गुड़हा या बबरा चीला चीला का भोग लगाते हैं। बुजुर्ग मानते हैं कि हरेली त्योहार खेती-किसानी के नए मौसम की शुरुआत को दर्शाता है। यह त्योहार बरसात और हरियाली के स्वागत का प्रतीक भी है। गांवों में आज के दिन गेंड़ी चढऩा, रस्साकशी,भौंरा खेलना, नुक्कड़ नाटक, लोकगीत आदि परंपरागत गतिविधियां होती हैं। बच्चे और युवा गेंड़ी बांस से बने खंभों पर चढक़र चलना में भाग लेते हैं। हर साल सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली तिहार मनाया जाता है।

महासमुंद के बसना अंचल में कल को ही हरेली त्यौहार धूम धाम से मनाया गया। त्यौहार के कारण अन्य दिनों की अपेक्षा कम चहल पहल रही। अधिकांश दुकानें मजदूर, सेल्समेन के नहीं आने के कारण नहीं खुली। जबकि त्यौहार के एक दिन पहले किराना, कपड़ा दुकान, पूजा समान की दुकानों में भीड़ देखने मिला। हालांकि दोपहर बाद नगर की दुकानें खुल गई लेकिन ग्राहक कम दिखाई दिए। फ ाल्गुन त्यौहार को साल का आखिरी और हरेली को छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार माना जाता है।

अत: क्षेत्र के किसानों ने खेती.किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की तालाब नदी नाले में ले जा कर सफाई की। फिर घर लाकर मुरूम के ऊपर लकड़ी का बना पीढ़ा लकड़ी के पाटा पर रख कर उसकी पूजा की। हरेली त्यौहार पर बनाई जाने वाली गुड़ आटे की चीला रोटी नारियल चढ़ाई गई। पूजन पश्चात चीला रोटी, नारियल प्रसाद को बांटा गया। घरों में माटी पूजन भी हुआ। ग्राम संकरी में खाट लड़ाई खेल का अनोखा आयोजन देखने को मिला।


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