महासमुन्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 10 नवंबर। महासमुंद जिले के सभी धान खरीदी समितियों के संचालक विभिन्न मांगों को लेकर धरने पर हैं। इनकी मुख्य मांग है कि समर्थन मूल्य धान की खरीदी में आए सूखत की राशि को शासन द्वारा भरे जाएं। समितियों के संचालकों का कहना है कि जो सूखत आता है वह समितियों की गलतियों की वजह से नहीं आता है। अधिकारियों की मॉनीटरिंग सही नहीं होने के कारण ऩुकसान झेलना पड़ता है।
सहकारी समितियों के जिलाध्यक्ष जयप्रकाश साहू का कहना है कि धान का उठाव समय पर नहीं होने के कारण ही समितियों को नुकसान होता है। इस साल जनवरी में खरीदी गए धान को उठाव के लिए चार से पांच महीने लग गए। अगर उठाव में देरी होगी तो करोड़ों को नुकसान तो होगा ही। उन्होंने बताया कि 17 प्रतिशत नमी में धान की खरीदी होती है। चार महीने में धान सूख जाता है। सीधे 7 से 8 प्रतिशत हो जाता है।
समितियों के संचालक समितियों को ब्याज अनुदान की भी मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि उपार्जन केंद्रों में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के बाद 72 घंटे में उठाव का नियम है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। धान का उठाव समय पर नहीं होने के कारण ही सूखत की समस्या आती है। हर साल की तरह इस साल भी जिले में 2 लाख क्विंटल धान सूख गया। इसके चलते समितियों को 50 लाख तो शासन को 50 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। खरीफ सीजन 2020-21 में 138 समितियों के माध्यम से 75.75 लाख क्विंटल धान की खरीदी हुई है। समय पर उठाव नहीं होने से जिले में कुल 2 लाख क्विंटल धान का सूखत समितियों में आया है। समितियों को सूखत धान का प्रति क्विंटल के हिसाब से रकम काटकर उनके खाते में कमीशन जमा कराया गया है।
जिला विपणन अधिकारी सीआर जोशी कहते हैं कि अभी मिलान चल रहा है, 135 समितियों का मिलान हो गया है। लगभग 2 लाख क्विंटल का सूखत आया है। तीन समितियों का मिलान होने के बाद ही एक्जाई डाटा तैयार कर शासन को सौंपा जाएगा। इस साल सबसे ज्यादा सूखत पिरदा, शेरगांव, भूकेल, खल्लारी, बिछिया समिति में आया है। जानकारी के अनुसार पिरदा सोसायटी में करीब 5 हजार क्विंटल का सूखत आया है। वहीं शेरगांव समिति में 2 हजार, भूकेल में 900, खल्लारी में 800 एवं बिछिया में लगभग 700 क्विंटल का सूखत आया है। इसके अलावा अन्य समितियों में 300 से 500 क्विंटल के बीच सूखत दर्ज की गई है।
सहकारी समितियों से मिली जानकारी के अनुसार शासन सूखत की राशि समितियों से प्रति क्विंटल 25 रुपए के हिसाब से वसूली करती है, जबकि यह सूखत प्रशासन के अधिकारियों की वजह से आती है। समय पर धान नहीं उठाया जाता। समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि उठाव के दिशा निर्देशों का पालन ट्रांसपोर्टरों से नहीं कराती है। समय पर उठाव ट्रांसपोर्टर करेंगे तो एक भी समितियों को नुकसान नहीं होगा।