महासमुन्द

यही हुनर उनके जीने का साधन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,1 नवम्बर। महासमुंद जिले के विकासखंड बागबाहरा ग्राम पंचायत ढोढ़ की महालक्ष्मी आदिवासी महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं बांस से विभिन्न प्रकार की घरेलू सजावटी सामग्री मसलन गुलदस्ता, पेन स्टेंड, की रिंग, लेम्प आदि के साथ घरेलू उपयोगी सामग्री जैसे बांस का सूपा, टोकरी, चटाई बना रही हैं। यही हुनर उनके जीने का साधन बना हुआ है। इसी की बदौलत वे बच्चों की शिक्षा की दिशा निर्धारित कर रही हैं और परिवार को आर्थिक संबल दे रही हैं।
गौरतलब है कि बांस कला और कलाकृति देश-प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में लोकप्रिय शिल्पों में से एक है। बांस शिल्प की कलाकृतियां शहर, गांव के साथ ही अधिकांश घरों में किसी न किसी रूप में देखने के लिए मिल जाती है। यह सुलभ, सरल एवं लोकप्रिय है। स्थानीय ग्रामीण और यहां की आदिवासी महिलाएं बांस शिल्प का उपयोग और महत्व को जानती और पहचानती हैं। वे बांस का काम प्रमुखता से करती हंै और बांस से अनेक उपयोगी एवं मनमोहक सामग्रियां तैयार करते है। बांस के प्रति यहां के लोगों की रूचि और उसका बेहतर उपयोग ही इन महिलाओं को प्रोत्साहित कर रहा है।
इन महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्राम उद्योग हस्तशिल्प से बांस शिल्प के अलावा काष्ठ कला का भी प्रशिक्षण दिया गया है। कमार जाति की महिलायें बांस का उपयोग कर विभिन्न प्रकार की बांस की सामग्री गुलदस्ते, सूपा, टोकरी आदि बनाकर अपनी आमदनी में इजाफ़ा कर रही हैं।
समूह की अध्यक्ष जयमोतिन कमार और सचिव ऊषा बाई कमार बताती हैं-महालक्ष्मी आदिवासी कमार महिला स्वसहायता समूह में 10 महिलाएं जुड़ी हंै। 15 हज़ार रुपए का अनुदान मिला। कच्चे माल एवं अन्य सामग्रियों के लिए कम्यूनिटी इन्वेस्ट फं ड सीईएफ से 60 हज़ार रुपए और बैंक से 2 लाख रुपए का ऋण लिया। जिसकी किश्त अदायगी समय पर की जा रही है। इसके अलावा दोना-पत्तल, अगरबत्ती, मोमबत्ती सहित अन्य सामग्रियां बनाती हंै जिन्हें स्थानीय बाज़ार, हाटबाज़ार के साथ आसपास के मेला मड़ई आदि में बेचती हैं।