कोण्डागांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव, 5 जनवरी। प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी बाबासाहेब सेवा संस्था कार्यालय में संध्या 7 बजे बहुजन समाज में जन्मे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतवर्ष की प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले एवं जयपाल सिंह मुंडा की छाया चित्र पर दीप प्रज्वलित कर माल्यार्पण किया गया। उनकी जीवनी पर तिलक पांडे पंचू सागर हितेंद्र श्रीवास ने प्रकाश डाला।
देशभर में सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई गई। कई लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थीं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा में एक अहम भूमिका निभाई थी। 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव सातारा में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने जाति और लिंग पर आधारित भेदभाव के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी। साथ ही उन्होंने अपने पति समाज सुधारक ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर पुणे मैं पहला कन्या विद्यालय भी खोला था। महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में अहम योगदान देने वाली सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती है। इस खास मौके पर जानते हैं उनके कुछ अनमोल विचारों के बारे में।
एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया। ओपनिवेशिक भारत में जयपाल सिंह मुंडा सर्वोच्च सरकारी पद पर थे ।
जयपाल सिंह छोटा नागपुर (अब झारखंड) राज्य की मुंडा जनजाति के थे। मिशनरीज की मदद से वह ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढऩे के लिए गए। वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। उन्होंने पढ़ाई के अलावा खेलकूद, जिनमें हॉकी प्रमुख था, के अलावा वाद-विवाद में खूब नाम कमाया।
उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया था। आईसीएस का उनका प्रशिक्षण प्रभावित हुआ क्योंकि वह 1928 में एम्सटरडम में ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान के रूप में नीदरलैंड चले गए थे।
वापसी पर उनसे आईसीएस का एक वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने को कहा गया, उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया।
उन्होंने बिहार के शिक्षा जगत में योगदान देने के लिए तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को इस संबंध में पत्र लिखा, परंतु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. 1938 की आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया। इसी दौरे के दौरान आदिवासियों की खराब हालत देखकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया।
1938 जनवरी में उन्होंने आदिवासी महासभा की अध्यक्षता ग्रहण की जिसने बिहार से इतर एक अलग झारखंड राज्य की स्थापना की मांग की। इसके बाद जयपाल सिंह देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए। उनके जीवन का सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने संविधान सभा में बेहद वाकपटुता से देश की आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी। संविधान सभा में अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासियों को मूलवासी आदिवासी करने की बात कही।
इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे संस्था के संरक्षक तिलक पांडे संरक्षक हस्तशिल्प के क्षेत्र में राष्ट्रपति अवार्डेड पंचू सागर, प्रमोद भारती, अध्यक्ष मुकेश मारकंडेय, सचिव रमेश पोयाम, कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश नाग,उपाध्यछ पुष्कर सिंह मंडावी, देवानंद चौरे, हितेंद्र श्रीवास, संदीप कोर्राम, हेमंत तूरकर, लखेश बेर, नरसिंहदेव मंडावी, सिद्धार्थ महाजन, तथ्यसील चौरे, इसया ताई चौरे, वह पदाधिकारी उपस्थित रहे।