सागौन के पत्ते, टेराकोटा, बांस की चटाई और टोकरी झूमर कर रहे आकर्षित
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 22 सितंबर। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दुर्गोत्सव पर्व हमें सिखाता है कि रास्ता चाहे कितना भी मुश्किल क्यों न हो, सही मार्ग पर चलने से ही जीत मिलती है। यह विश्वास पैदा होता है कि सत्य और न्याय की जीत हमेशा होती है। हमें सदैव सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए। इसी उद्देश्य के तहत पिछले 5 दशकों से पावर हाऊस भिलाई के लाल मैदान में दुर्गोत्सव का सफल और भव्य आयोजन करती आ रही सुभाष नवयुवक जागृति समिति 54वें वर्ष 22 सितंबर सोमवार को प्रात: 9 बजे विशाल कलश यात्रा के साथ मां दुर्गा की स्थापना करने जा रही है।
सामाजिक संस्कार और देशभक्ति जज्बे सहित नशे के कुप्रभावों से दूर रहने जैसी थीम के लिए पूरे छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में अपने सशक्त आयोजनों के लिए मशहूर नेताजी सुभाष जागृति समिति 54वें वर्ष कौन से ऐसे सरप्राइज थीम पर भव्य पंडाल निर्माण में महीनों से लगी है, यह सस्पेंस लगातार भिलाई वासियों में बरकरार रहा है।
समिति के अध्यक्ष अरविंद गुप्ता, महामंत्री विजय सिंह और उपाध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत ने इस वर्ष की थीम को आज सार्वजनिक करते हुए पत्रकार वार्ता में बताया कि हमर छत्तीसगढ़ के कला और आदिवासियों के ढोकरा आर्ट को 54वें वर्ष की थीम समर्पित की गई है।
महामंत्री विजय सिंह ने बताया कि बस्तर छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में रहने वाले आदिवासियों के ढोकरा आर्ट ने देश-विदेश में अपनी पहचान बनाई है। यह कला हमें और समाज को संदेश देती है कि प्रकृति और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ही हमें अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखना है।
ढोकरा थीम से हम न केवल आने वाली पीढ़ी से इसका परिचय करवा रहे हैं बल्कि विलुप्त होती आदिवासी पारंपरिक कला संस्कृति को इस्पात नगरी भिलाई वासियों के समक्ष साकार स्वरूप भी दे रहे हैं।
उपाध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत ने जानकारी दी कि लाल मैदान का भव्य पंडाल ढोकरा कला को समर्पित है। सैकड़ों बांस की चटाई, टोकरी, लाख की चुडिय़ों, पकी हुई मिट्टी (टेराकोटा) और सागौन के बड़े पत्तों से माता का विशाल दरबार सजाया जा रहा है। सैकड़ों कारीगरों के महीनों की मेहनत यहां दुर्गोत्सव के प्रथम दिवस से सभी कलाकृतियों में मानों प्राण फूंकने जा रही है, भिलाई सहित छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों से पधारे भक्त इस आकर्षक और भव्य पूजा पंडाल में प्रवेश करते ही ऐसी अनुभूति अवश्य करेंगे।
दरअसल ऐसे भव्य पंडाल में प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को समाज में रेखांकित करते हुए समिति ने ऐसी वस्तुओं का प्रयोग पूजा पंडाल के निर्माण में किया है जो प्रकृति प्रदत्त और पर्यावरण के अनुकूल है।