120 जगहों पर प्रयास,13 जगहों पर क्लीनिकल ट्रॉयल ..
जेम्स गैलहर
हेल्थ और विज्ञान संवाददाता
पिछले साल चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना वायरस कोविड-19 अब तक दुनिया के 188 देशों में फैल चुका है.
इस बीमारी के चपेट में अब तक क़रीब एक करोड़ लोग आ चुके हैं जबकि क़रीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है.
लेकिन अब तक इस महामारी की रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन नहीं बन पाया है.
हालांकि कोविड-19 पर क़ाबू पाने के लिए वैक्सीन बनाने के लिए मौजूदा समय में 120 मेडिकल टीम दुनिया भर के अलग अलग हिस्सों में रिसर्च में जुटी है. लेकिन अभी तक इस दिशा में उल्लेखनीय कामयाबी नहीं मिली है.
मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर जल्दी से वैक्सीन मिला भी तो भी इस साल के अंत तक ही मिल पाएगा. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख कई बार वैक्सीन बनाए जाने को लेकर नाउम्मीदी भी ज़ाहिर कर चुके हैं.
कोरोना वायरस की वैक्सीन इतनी अहम क्यों है?
आशंका यह है कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना वायरस की चपेट में आ सकता है. ऐसे में वैक्सीन इन लोगों को कोरोना वायरस की चपेट में आने से बचा सकता है.
कोरोना वायरस की वैक्सीन बन जाने से महामारी एक झटके में ख़त्म तो नहीं होगी लेकिन तब लॉकडाउन का हटाया जाना ख़तरनाक नहीं होगा और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रावधानों में ढिलाई मिलेगी.
वैक्सीन बनाने को लेकर अब तक कितनी प्रगति हुई है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि 31 दिसंबर 2019 को हुई थी. जिस तेज़ी से वायरस फैला उसे देखते हुए 30 जनवरी 2020 को इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया गया.
लेकिन शुरुआती वक्त में इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी और इस कारण इसका इलाज भी जल्द नहीं मिल पाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों में डॉक्टर इससे निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हैं लेकिन सवाल यही है कि आख़िर इसके तैयार होने में कितना वक़्त लगेगा?
फ़िलहाल दुनिया भर में 120 जगहों पर कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. इनमें 13 जगहों पर मामला क्लीनिकल ट्रॉयल तक पहुंचा है.
इन तेरह जगहों में पांच चीन, तीन अमरीका और दो ब्रिटेन में हैं. जबकि ऑस्ट्रेलिया, रूस और जर्मनी में एक-एक जगहों पर ट्रॉयल चल रहा है.
ब्रिटेन में कोरोना वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण करने की तैयारी शुरू हो गई है. लंदन के इंपीरियल कॉलेज में 300 लोगों पर यह ट्रॉयल किया जाएगा. इंपीरियल कॉलेज लंदन में होने वाले इस ट्रायल का नेतृत्व प्रोफेसर रॉबिन शटोक कर रहे हैं.
कहा गया है कि इस वैक्सीन का जानवरों पर किया ट्रॉयल सफल रहा है और यह इससे इम्यूनिटी को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
कोविड-19 को लेकर पहले ह्यूमन ट्रायल में आठ मरीज़ों के शरीर में एंटीबॉडीज का इस्तेमाल किया गया. ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी में भी 800 लोगों पर ट्रायल शुरु किया जा रहा है. इसके अलावा अस्ट्राज़ेनेका कंपनी से भी 10 करोड़ वैक्सीन डोज़ की डील भी की गई है.
इसका अलावा शीर्ष दवा कंपनियां सनफई और जीएसके ने भी वैक्सीन विकसित करने के लिए आपस में तालमेल किया है. ऑस्ट्रेलिया में भी दो संभावित वैक्सीन का नेवलों पर प्रयोग शुरू हुआ है. माना जा रहा है कि इसका इंसानों पर ट्रायल अगले साल तक शुरू हो पाएगा.
लेकिन कोई यह नहीं जानता है कि इनमें से कोई सी कोशिश कारगर होगी.
किसी भी बीमारी का वैक्सीन विकसित होने में सालों का वक्त लगता है. कई बार दशकों का समय लगता है. लेकिन दुनिया भर के रिसर्चरों को उम्मीद है कि वे कुछ ही महीनों में उतना काम कर लेंगे जिससे कोविड-19 का वैक्सीन विकसित हो जाएगा.
कोरोना वायरस कोविड 19 को लेकर बेहद तेज़ गति से काम चल रहा है और टीका बनाने के लिए भी अलग-अलग रास्ते अपनाए जा रहे हैं.
ज़्यादातर एक्सपर्ट की राय में 2021 के मध्य तक कोविड-19 का वैक्सीन बन जाएगा यानी कोविड-19 वायरस का पता चलने के बाद वैक्सीन विकसित होने में लगने वाला समय 18 महीने माना जा रहा है.
अगर ऐसा हुआ तो यह एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि होगी, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वैक्सीन पूरी तरह कामयाब ही होगी.
अब तक चार तरह के कोरोना वायरस पाए गए हैं जो इंसानों में संक्रमण कर सकते हैं. इन वायरस के कारण सर्दी-खांसी जैसे लक्षण दिखते हैं और इनके लिए अब तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.
अभी कितना कुछ करना बाक़ी है?
कोविड-19 की वैक्सीन को तैयार करने की तमाम कोशिशें चल रही हैं. लेकिन अभी भी इस दिशा में काफ़ी कुछ किए जाने की ज़रूरत है.
वैक्सीन तैयार होने के बाद पहला काम इसका पता लगाना होगा कि यह कितनी सुरक्षित है. अगर यह बीमारी से कहीं ज़्यादा मुश्किलें पैदा करने वाली हुईं तो वैक्सीन का कोई फ़ायदा नहीं होगा.
क्लीनिकल ट्रायल में यह देखा जाना होता है कि वैक्सीन कोविड-19 को लेकर प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर पा रही है ताकि वैक्सीन लेने के बाद लोग इसकी चपेट में ना आएं.
वैक्सीन तैयार होने के बाद भी इसके अरबों डोज़ तैयार करने की ज़रूरत होगी.
वैक्सीन को दवा नियामक एजेंसियों से भी मंजूरी लेनी होगी.
ये सब हो जाए तो भी बड़ी चुनौती बची रहेगी, दुनिया भर के अरबों लोगों तक इसकी खुराक पुहंचाने के लिए लॉजिस्टिक व्यवस्थाएं करने का इंतज़ाम भी करना होगा.
ज़ाहिर है इन सब प्रक्रियाओं को लॉकडाउन थोड़ा धीमा करेगा. एक दूसरी मुश्किल भी है अगर कोरोना से कम लोग संक्रमित होंगे तो भी इसका पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन सी वैक्सीन कारगर है.
वैक्सीन की जांच में तेज़ी लाने का एक रास्ता है कि पहले लोगों को वैक्सीन दिया जाए और उसके बाद इंजेक्शन के ज़रिए कोविड-19 उनके शरीर में पहुंचाया जाए. लेकिन यह तरीका मौजूदा समय में बेहद ख़तरनाक है क्योंकि कोविड-19 का कोई इलाज़ मौजूद नहीं है.
कितने लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत होगी?
वैक्सीन कितना कारगर है, यह जाने बिना इसका पता नहीं चल पाएगा. हालांकि कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए यह माना जा रहा है कि 60 से 70 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत होगी.
हालांकि अगर वैक्सीन कारगर हुआ तो इसे दुनिया भर की आबादी को देने की ज़रूरत होगी.
कैसे बनती है वैक्सीन?
इंसानी शरीर में ख़ून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं.
बिना शरीर को नुक़सान पहुंचाए वैक्सीन के ज़रिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं. जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है.
इसके बाद अगर इंसान असल में उस वायरस या बैक्टीरिया का सामना करता है तो उसे जानकारी होती है कि वो संक्रमण से कैसे निपटे.
दशकों से वायरस से निपटने के लिए जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है.
मीज़ल्स, मम्प्स और रूबेला (एमएमआर यानी खसरा, कण्ठमाला और रुबेला) टीका बनाने के लिए ऐसे कमज़ोर वायरस का इस्तेमाल होता है जो संक्रमण नहीं कर सकते. साथ ही फ्लू की वैक्सीन में भी इसके वायरस का ही इस्तेमाल होता है.
लेकिन कोरोना वायरस के मामले में फिलहाल जो नया वैक्सीन बनाया जा रहा है उसके लिए नए तरीक़ों का इस्तेमाल हो रहा है और जिनका अभी कम ही परीक्षण हो सका है. नए कोरोना वायरस Sars-CoV-2 का जेनेटिक कोड अब वैज्ञानिकों को पता है और अब हमारे पास वैक्सीन बनाने के लिए एक पूरा ब्लूप्रिंट तैयार है.
वैक्सीन बनाने वाले कुछ डॉक्टर कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के कुछ हिस्से लेकर उससे नया वैक्सीन तैयार करने की कोशिश में हैं.
कई डॉक्टर इस वायरस के मूल जेनेटिक कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं जो एक बार शरीर में जाने के बाद वायरल प्रोटीन बनाते हैं ताकि शरीर इस वायरस से लड़ना सीख सके.
क्या सभी उम्र के लोग बच पाएंगे?
माना जा रहा है कि वैक्सीन का ज़्यादा उम्र के लोगों पर कम असर होगा. लेकिन इसका कारण वैक्सीन नहीं बल्कि लोगों की रोग प्रतरोधक क्षमता से है क्योंकि उम्र अधिक होने के साथ-साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती जाती है.
हर साल फ्लू के संक्रमण के साथ ये देखने को मिलता है.
सभी दवाओं के दुष्प्रभाव भी होते हैं. बुख़ार के लिए आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पैरासेटामॉल जैसी दवा के भी दुष्प्रभाव होते हैं.
लेकिन जब तक किसी वैक्सीन का क्लिनिकल परीक्षण नहीं होता, ये जानना मुश्किल है कि उसका किस तरह से असर पड़ सकता है.
किनको मिलेगी सबसे पहले वैक्सीन?
अगर वैक्सीन विकसित हो जाए तो भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि सबसे पहले वैक्सीन किनको मिलेगी? क्योंकि शुरुआती तौर पर वैक्सीन की लिमिटेड सप्लाई ही होगी. ऐसे वैक्सीन किसको पहले मिलेगी, इसको भी प्रायरटाइज किया जा रहा है.
कोविड-19 मरीज़ों का इलाज करने वाले स्वास्थ्यकर्मी इस सूची में टॉप पर हैं. कोविड-19 से सबसे ज़्यादा ख़तरा बुज़ुर्गों को होता है, ऐसे में अगर यह बुज़ुर्गों के लिए कारगर होता है तो उन्हें मिलना चाहिए.
जब तक वैक्सीन नहीं बनती तब तक...
ये बात सच है कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है, लेकिन कोरोना वायरस से बचने का सबसे असरदार उपाय है अच्छी तरह साफ़-सफ़ाई रखना. सोशल डिस्टेंसिग के प्रावधानों को पालना करना.
आपको यह भी ध्यान रखना है कि अगर आपको कोरोना वायरस संक्रमण हो भी जाता है तो 75 से 80 प्रतिशत मामलों में यह मामूली संक्रमण की तरह ही होता है (www.bbc.com)