-प्रियंका झा
हर साल हज़ारों कैंडिडेट्स यूजीसी नेट परीक्षा के ज़रिए असिस्टेंट प्रोफ़ेसर बनने और जेआरएफ़ के लिए क्वालिफ़ाई करते हैं.
इनमें से ही एक हैं उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के एक गांव में किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले योगेंद्र.
वह इन दिनों दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं. साल 2023 के जून में उन्होंने दूसरी बार यूजीसी-नेट की परीक्षा दी और वे जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिए क्वालिफ़ाई हुए.
वे अपनी भविष्य की योजनाओं पर कहते हैं, "फिलहाल पूरा ध्यान पीएचडी पर है. आगे भी एकेडमिक्स से जुड़े रहने का इरादा है लेकिन इसके इतर भी अगर किसी प्राइवेट या मल्टीनेशनल कंपनी में कोई बेहतर मौक़ा मिलता है तो मैं उसे भी ऐसे ही नहीं जाने दूंगा."
यूजीसी-नेट पास कर के भी जो पीएचडी में दाखिला नहीं ले पाते या असिस्टेंट प्रोफ़ेसर नहीं नियुक्त होते, उन्हें या तो किसी कॉलेज में वैकेंसी निकलने का इंतज़ार करना पड़ता है या फिर कई तो बेहतर स्कोर की उम्मीद के साथ इस परीक्षा को दोबारा भी देने का फ़ैसला लेते हैं.
क्या होता है यूजीसी नेट?
यूजीसी-नेट यानी यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की ओर से करवाया जाने वाला एक नेशनल लेवल का एलिजिबिलिटी टेस्ट. इसे क्लियर करने वाले देशभर में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद यानी लेक्चररशिप के लिए एलिजिबल बन जाते हैं. मगर ये परीक्षा पास करना नौकरी की गारंटी नहीं है.
इसे ऐसे समझिए कि बस ये एक ऐसी पात्रता है, जो किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के लिए निकली भर्तियों के लिए आवेदन करते समय आपके पास होनी ज़रूरी है.
इसकी तीन कैटेगरी होती है. इनमें से पहले वो जो जेआरएफ़ के लिए चुने जाते हैं. दूसरे वो जो नेट क्लियर करते हैं और अब एक नई कैटेगरी शुरू की गई है, जिसमें वे स्टूडेंट्स हैं जो पीएचडी करने के लिए क्वॉलिफ़ाई होते हैं.
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी साल में दो बार इस परीक्षा का आयोजन करती है और एग्ज़ाम सीबीटी मोड यानी कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट पर आधारित है.
इस परीक्षा को देने के लिए वही योग्य हैं जिन्होंने न्यूनतम 55 फ़ीसदी अंकों के साथ मास्टर्स की हो. हालांकि, इस नियम में आरक्षित वर्गों और महिलाओं को पांच फ़ीसदी की रियायत दी जाती है.
जो नेट क्लियर करते हैं, उनमें से कटऑफ़ में ऊपर के कुछ फ़ीसदी कैंडिडेट्स को ही जेआरएफ़ यानी जूनियर रिसर्च फेलोशिप मिलती है.
कंपीटिटिव परीक्षा की किताबों की प्रकाशक मैकग्रॉ हिल के साथ ऑथर के तौर पर जुड़े संजय जून कहते हैं, "ये फेलोशिप दो साल के लिए मिलती है. जिन कैंडिडेट्स का परफॉर्मेंस ठीक रहता है, उनमें से ही कुछ को एसआरएफ़ के लिए रिकमेंड किया जाता है."
जेआरएफ़ के लिए सरकार की ओर से कैंडिडेट को 37 हज़ार प्रति महीने बतौर स्टाइपेंड मिलते हैं. इसके अलावा हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) भी होता है. साथ में हर साल किताबों या रिसर्च के लिए जुड़ी अन्य ज़रूरतों के लिए 10 हज़ार रुपये की ग्रांट भी मिलती है.
एसआरएफ़ में ये राशि बढ़कर 42 हज़ार रुपये हो जाती है, जिसके ऊपर से एचआरए भी मिलता है और हर साल मिलने वाली ग्रांट भी बढ़कर 20 हज़ार हो जाती है.
परीक्षा के लिए कोई अधिकतम उम्र की सीमा नहीं है.
मगर जेआरएफ़ के लिए अप्लाई करने वाले कैंडिडेट्स की उम्र, जिस महीने वो परीक्षा दे रहे हैं, उसकी पहली तारीख तक 30 साल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए.
यानी अगर कोई दिसंबर 2025 में एग्ज़ाम देगा, तो एक दिसंबर को उसकी उम्र 30 साल से ज़्यादा न हो.
यूजीसी नेट क्वॉलिफ़ाई करने के लिए कैंडिडेट्स को दो पेपर की परीक्षा देनी होती है और दोनों में कम से कम 40 फ़ीसदी अंक हासिल करने अनिवार्य हैं.
ये स्कोर हासिल करने वाले छात्रों की मेरिट लिस्ट निकलती है. मेरिट लिस्ट के स्कोर को हासिल करने वाले टॉप छह पर्सेंट कैंडिडेट्स नेट क्वालिफ़ाई करते हैं. नेट क्वालिफाई करने वाले कैंडिडेट्स में से शीर्ष छह फ़ीसदी को जेआरएफ़ मिलता है.
हालांकि, आरक्षित वर्गों से आने वालों को उम्र सीमा और न्यूनतम अंकों में रियायत मिलती है.
जेआरएफ़ और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के लिए कटऑफ़ एनटीए की ओर से तय की जाती है और ये विषय के हिसाब से बदलती है. यूजीसी नेट की परीक्षा 83 अलग-अलग विषयों में कराई जाती है.
ऐसे पास कर सकते हैं परीक्षा
यूजीसी नेट के दो पेपर होते हैं. पहला जनरल टेस्ट, जो सबके लिए कॉमन होता है. वहीं दूसरा है सबजेक्ट पेपर.
ज़्यादातर छात्र उसी सबजेक्ट को चुनते हैं, जिसमें उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन की है. हालांकि, ये कोई अनिवार्यता नहीं है और आप सबजेक्ट चेंज भी कर सकते हैं.
संजय जून से हमने जाना कि कैंडिडेट्स किन बातों का ध्यान रखें कि उनकी सफलता की संभावना मज़बूत हो?
उन्होंने कहा:
पेपर वन को हल्के में न लें और उसे भी अपने सबजेक्ट पेपर जितना ही समय दें. पेपर 1 में 50 सवाल होते हैं और टू में 100. सही होने पर दो नंबर मिलते हैं और मेरिट 300 नंबर में से बनती है.
सबजेक्ट पेपर में तीन कैटेगरी में सवाल होते हैं. पहली कैटेगरी में 50 फ़ीसदी सवाल थोड़े आसान होते हैं. दूसरी कैटेगरी में उससे थोड़े मुश्किल सवाल होते हैं और आख़िर के 20 फ़ीसदी सवाल सबसे मुश्किल होते हैं. कोशिश यह करनी चाहिए कि आसान सवाल पहले अटेम्प्ट करें.
पिछले कुछ साल के पेपर से प्रैक्टिस ज़रूर करें. यूजीसी-नेट में तो कई बार सवाल रिपीट भी होते हैं.
नेगेटिव मार्किंग नहीं होती. इसलिए कोई सवाल छोड़े नहीं. भले ही ग़लत जवाब हो. ताकि यूजीसी बाद में किसी सवाल को ग़लत मानकर इसका जवाब देने वालों को अंक दे दे, तो फ़ायदा मिले.
नेट की परीक्षा पास करने के बाद क्या?
संजीव जून कहते हैं कि पहला करियर ऑप्शन तो यही है कि किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर बनें और जेआरएफ़ क्वॉलिफ़ाई करने वालों के पास मौक़ा होता है कि अपने चुने हुए विषय में वो इन-डेप्थ रिसर्च करें.
जेआरएफ़ वाले कैंडिडेट्स को बड़े रिसर्च प्रोजेक्ट, एकेडमिक जर्नल्स में सहयोग देने और कई बार अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के साथ काम करने का भी मौक़ा मिलता है.
करियर अवेयरनेस रिसोर्सेज़ इन नीड ऑफ़ गाइडेंस (केयरिंग) की फ़ाउंडर और क़रीब तीस साल से करियर काउंसलर के तौर पर काम कर रहीं परवीन मल्होत्रा कुछ अन्य सलाह भी देती हैं.
उनका कहना है कि जेआरएफ ना मिले तो ऐसी स्थिति में किसी रिसर्च ऑर्गनाइजेशन जैसे; सीएसआईआर, आईसीएसएसआर के फंडेड रिसर्च प्रोजेक्ट्स, जिनके लिए रिसर्च एसोसिएट्स की तलाश होती है, उससे जुड़ सकते हैं.
उनके मुताबिक़, बीएचईएल, एनटीपीसी, आईओसी जैसे पीएसयू में नेट क्लियर करने वालों को तरजीह मिलती है.
परवीन मल्होत्रा के अनुसार, इन पदों पर नौकरी मिलना इसपर निर्भर है कि विभाग कौन सा है. अगर लीगल सेल में कोई जगह खाली हो, तो निश्चित तौर पर लॉ करने वालों को प्राथमिकता मिलेगी. पर ये पद अच्छे होते हैं जिसमें लाख रुपये तक की सैलरी भी होती है.
और क्या हैं विकल्प?
सीनियर करियर काउंसलर डॉक्टर संजीब आचार्य का कहना है कि भारत में ऐसे कई इंस्टीट्यूट्स और थिंक टैंक हैं जो अलग-अलग रिसर्च से जुड़ी पोस्ट के लिए यूजीसी-नेट क्वॉलिफ़ाइड कैंडिडेट्स की भर्ती करती है.
ये नौकरियां अक्सर डेटा कलेक्शन, एनालिसिस और रिसर्च फ़ाइंडिंग्स के पब्लिशिंग से जुड़ी होती हैं.
काउंसिल ऑफ़ साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर), इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और डिफ़ेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (डीआरडीओ) जैसे रिसर्च से जुड़े बड़े संस्थानों में ऐसे कई रिसर्च पोज़िशन आते हैं, जो ख़ासतौर पर नेट क्वालिफ़ाइड कैंडिडेट्स के लिए ही होते हैं.
यूजीसी नेट क्वॉलिफ़ाई कर चुके कैंडिडेट्स उच्च शिक्षा देने वाले संस्थानों में प्रशासकीय यानी एडमिनिस्ट्रेटिव रोल्स के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं.
इसमें एकेडमिक कोऑर्डिनेटर्स से लेकर किसी डिपार्टमेंट के प्रमुख के साथ ही एकेडमिक प्रोग्राम को डिज़ाइन करने में मदद देने जैसी भूमिकाएं शामिल हैं.
डॉक्टर संजीब आचार्य कहते हैं, "इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन, एनटीपीसी, एचटीसीएल जैसी कई पीएसयू में नेट क्वालिफाइड लोगों को तरजीह दी जाती है."
"साथ ही कंटेंट डिवेलपमेंट में भी इनकी मांग होती है. बहुत सारे इंटरनेशनल पब्लिशिंग हाउस हैं, जो नेट क्वालिफाइड स्टूडेंट्स को जॉब देने के लिए प्राथमिकता देते हैं. जिस विषय में उन्होंने नेट दिया होता है, उस स्पेशलाइज्ड विषय में कंटेंट डेवलपमेंट के लिए योग्य लोगों की ज़रूरत होती है."
ऑनलाइन एजुकेशन की बढ़ती मांग के साथ आजकल कई एड्यूटेक यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी कंपनियां खड़ी हो रही हैं.
इन कंपनियों में स्कूल हो या कॉलेज दोनों ही लेवल पर अलग-अलग विषयों में पढ़ाने के लिए स्टडी मैटेरियल तैयार किए जाते हैं.
ये एड्यूटेक कंपनियां भी अब कंटेंट डिवेलप करने के लिए यूजीसी-नेट क्वॉलिफ़ाइड लोगों की भर्ती करती हैं.
कंटेंट डेवलपर या सब्जेक्ट एक्सपर्ट के तौर पर ऑनलाइन लर्निंग मैटेरियल क्रिएट किए जाते हैं, कोर्स डिज़ाइन किया जाता है और स्टूडेंट्स के गाइड के तौर पर भी काम किया जा सकता है. या फिर कहीं गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर भी काम किया जा सकता है.
डॉक्टर संजीब आचार्य का कहना है कि 'स्वयं', 'दीक्षा' जैसे सरकारी एजुकेशन पोर्टल हों या फिर निजी पोर्टल, ये सारे प्लेटफॉर्म भर्ती के दौरान नेट क्वॉलिफ़ाइड कैंडिडेट को वरीयता देते हैं. पॉलिसी, रिसर्च या एनालिटिकल जॉब्स, एनजीओ में भी इन्हें तरजीह मिलती है.
इनके अलावा शिक्षा मंत्रालय या सरकार के दूसरे एजुकेशनल विंग्स में भी संभावना बन सकती है. क्योंकि अक्सर ये वैकेंसी उन पदों के लिए होती हैं जिनमें किसी ख़ास विषय की एक्सपर्टीज़ की ज़रूरत हो.
परवीन मल्होत्रा कहती हैं, "राज्यो में भी शिक्षा विभाग होते हैं, जो लगातार सिलेबस बनाने, उसमे सुधार से जुड़े काम करते हैं. शिक्षा नीति को लागू करवाते हैं. ऐसी जगहों पर भी रिसर्चर की ज़रूरत होती है, एनसीईआरटी में, इंडियन काउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च, जैसे कई शोध संस्थान हैं, जिन्हें नेट क्वॉलिफ़ाइड लोगों की ज़रूरत होती है." (bbc.com/hindi)