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डॉयचे वैले पर रजत शर्मा की रिपोर्ट
चाहे मध्य-पूर्व में इस्राएल-हमास युद्धविराम की बात हो या यूक्रेन में जंग रुकवाने की, ट्रंप के नेतृत्व वाला अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ कोई खास ताल-मेल बिठाता नजर नहीं आता. आखिर क्या हैं इसकी वजहें?
मिस्र में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस्राएल और हमास के बीच अमेरिका की मध्यस्थता वाले युद्धविराम समझौते की घोषणा के लिए मंच संभाला, तब दुनिया के कई नेता उनके पीछे खड़े थे, मानो किसी राजनैतिक ड्रामे के किरदार हों. यह मौका अपने आप में बहुत कुछ कह गया. गाजा युद्ध से जुड़े कूटनीतिक प्रयासों में यूरोपीय देशों को बड़ी भूमिका निभाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. वहीं "अमेरिका फर्स्ट” नीति के पुरोधा ट्रंप ने सेंटर स्टेज में रहकर पुराने यूरोपीय सहयोगियों को लगभग किनारों पर पहुंचा दिया है.
लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप की प्रतिक्रिया को प्रभावित करने के प्रयासों में यूरोपीय नेतृत्व को मिले-जुले नतीजे मिले हैं. यह संघर्ष, यूरोप के भविष्य के लिए बहुत संवेदनशील माना जा रहा है. भू-राजनीतिक विशेषज्ञ लिंजी न्यूमैन का मानना है, "क्या यूरोप राष्ट्रपति ट्रंप को प्रभावित कर सकता है? मेरा छोटा-सा जवाब होगा- नहीं.” न्यूमैन के मुताबिक, ट्रंप का वैश्विक एजेंडा इस धारणा को गलत साबित करता है कि "अमेरिका फर्स्ट” का मतलब अलग-थलग रहना है. उन्होंने कहा, "वह दुनिया को अपने तरीके से ढाल रहे हैं.”
यूक्रेन पर मतभेद और कुछ प्रगति
यूक्रेन को लेकर यूरोपीय देशों की एकजुटता, ट्रंप की उस इच्छा से पूरी तरह मेल नहीं खाती जिसमें वे संघर्ष को खत्म करना चाहते हैं. और भले ही इसके लिए यूक्रेन को कुछ इलाका रूस के लिए क्यों ना छोड़ना पड़े. इस हफ्ते ट्रंप ने वॉशिंगटन में दोनों दलों (रिपब्लिकन और डेमोक्रैटिक) के दबाव और यूरोपीय सहयोगियों समेत कीव की महीनों की पैरवी के बाद रूसी तेल और गैस उद्योग पर प्रतिबंध लगाए हैं. वे इस बात से नाराज दिखे कि पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से सीधे बातचीत करने से इनकार किया है. ट्रंप ने 22 अक्टूबर को कहा, "हर बार जब मैं व्लादिमीर से बात करता हूं, तो बातचीत अच्छी होती है, मगर आगे बढ़ती नहीं. अब मुझे लगा कि यह समय है कार्रवाई करने का. हमने काफी इंतजार कर लिया.”
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यरोपीय नेताओं ने इन प्रतिबंधों का स्वागत किया और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने इसे "एक निर्णायक मोड़” बताया. फिर भी, यूरोप के भीतर मतभेद बने हुए हैं. 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ अभी यूक्रेन को एक बड़े कर्ज के लिए, रूस की जब्त संपत्तियों को गारंटी के रूप में इस्तेमाल करने की योजना को आखिरी रूप देने में जुटा है. बेल्जियम, जहां के यूरोक्लियर समूह में ज्यादातर फंड रखे हैं, यह आश्वासन चाहता है कि रूस की तरफ से होने वाली किसी भी संभावित जवाबी कार्रवाई का नुकसान बाकी सभी सदस्य देश भी मिलकर उठाएं. वहीं हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान अभी भी यूरोपीय संघ की ओर से यूक्रेन को दी जा रही मदद का विरोध कर रहे हैं.
पुतिन से अलास्का में मुलाकात के कुछ दिन बाद ट्रंप ने व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और शीर्ष यूरोपीय नेताओं की मेजबानी की. उन्होंने कहा कि अमेरिका, भविष्य में यूक्रेन में होने वाले किसी भी शांति समझौते में यूरोपीय प्रयासों का समर्थन करेगा. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इस युद्ध को खत्म करने की प्राथमिक जिम्मेदारी यूरोप की ही है.
फलस्तीन को राष्ट्र की मान्यता
ब्रिटेन, फ्रांस और कुछ अन्य देशों द्वारा फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद तनाव और बढ़ गया है. अमेरिका ने यूरोपीय देशों के इस कदम पर नाराजगी जताई है. ट्रंप प्रशासन ने इसे वॉशिंगटन की मध्यस्थता वाले युद्धविराम प्रयासों को कमजोर करने वाला बताया है. 13 अक्टूबर को मिस्र के शर्म-अल-शेख सम्मेलन में ट्रंप ने मध्यस्थ के रूप में मिस्र, कतर, तुर्की और सऊदी अरब की भूमिका की खूब प्रशंसा की, लेकिन यूरोपीय भागीदारी का जिक्र करने से बचते रहे.
यूरोप के लिए कुछ अच्छे संकेत भी
यूक्रेन पर रूसी हमले और नाटो देशों के प्रति उसके रवैये ने यूरोप को अपना रक्षा खर्च बढ़ाने पर मजबूर किया है. ट्रंप यह चेतावनी देते रहे हैं कि अमेरिका तभी यूरोपीय सहयोगियों की रक्षा करेगा जब वे रक्षा पर ज्यादा खर्च करेंगे. नाटो के यूरोपीय सदस्यों के रक्षा बजट बढ़ाने के हालिया फैसले बताते हैं कि ट्रंप अपने मकसद में सफल साबित हुए हैं. अब तक ट्रंप ने ना तो यूरोप से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया है और ना ही नाटो से बाहर निकले हैं. उनका वैश्विक टैरिफ अभियान भी यूरोपीय वस्तुओं पर 100 प्रतिशत कर की आशंकाओं तक नहीं पहुंचा है.
यूरोपीय संघ से अलग होने के बावजूद ब्रिटेन, राजनीतिक और सैन्य दृष्टि से महाद्वीप के और करीब आया है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर वॉशिंगटन और यूरोप के बीच एक अहम पुल के रूप में उभरे हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की इतिहासकार कैथलीन बर्क के अनुसार ट्रंप एकता को महत्व देते हैं और "अगर यूरोपीय देश साथ रहें, तो उनका प्रभाव बना रह सकता है.” बर्क ने कहा, "शायद ट्रंप अब यह समझ गए हैं कि दुश्मनों से बेहतर हमेशा सहयोगी होते हैं.”


