संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आरएसएस ने ठीक कहा है, औरंगजेब अप्रासंगिक है...
20-Mar-2025 6:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : आरएसएस ने ठीक कहा है, औरंगजेब अप्रासंगिक है...

एक किसी औरंगजेब के नाम को लेकर 21वीं सदी के 25वें बरस में हिन्दुस्तान के सबसे कारोबारी प्रदेश महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में लपटें उठ रही हैं, कफ्र्यू लग चुका है, और उस बारे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर देश के कई हिंसाप्रेमी तक तरह-तरह के बयान दे रहे हैं। लेकिन इस बारे में सबसे वजनदार बयान आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर का है जिन्होंने कहा है कि आज औरंगजेब की कोई प्रासंगिकता नहीं है, और उसे लेकर कोई भी हिंसा गलत है। उनसे पूछा गया था कि क्या आज औरंगजेब प्रासंगिक है, और क्या उनकी कब्र किसी दूसरी जगह स्थापित करनी चाहिए? जो लोग महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को तोडऩे और हटाने पर आमादा हैं, उन हिन्दू संगठनों को पता नहीं देश के सबसे प्रमुख हिन्दू संगठन आरएसएस की यह बात कैसी लगेगी। लेकिन हम आरएसएस प्रचार प्रमुख के रूख और उनकी भाषा से पूरी तरह सहमत हैं कि औरंगजेब की आज कोई प्रासंगिकता नहीं है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की अपनी व्याख्या अलग हो सकती है कि एक कोई फिल्म आई है जिसे देखकर लोग औरंगजेब के खिलाफ भडक़े हुए हैं, और मुख्यमंत्री रहते हुए देवेन्द्र फडनवीस ने यह बात कही है कि उन्हें शर्मिंदगी है कि उन्हें औरंगजेब की कब्र को हिफाजत मुहैया करानी पड़ रही है। जब भाजपा के मुख्यमंत्री यह भाषा बोलते हैं, तो यह जाहिर है कि बवाल खड़ा कर रहे हिंसक आंदोलनकारियों को उनका संदेश क्या है। लेकिन देश-विदेश में बिखरे हुए बहुत से हिन्दुस्तानियों ने सोशल मीडिया पर यह सवाल उठाया है कि इतिहास के किसी एक तथाकथित, काल्पनिक, गढ़े हुए, या खालिस झूठे पन्ने को लेकर हर कुछ महीनों में एक नया बवाल खड़ा किया जाता है, हर साल अपने को इतिहास साबित करती हुई कोई फिल्म आ जाती है, जो कहने के लिए यह वैधानिक चेतावनी दे देती है कि वह काल्पनिक है, और फिर उसे पूरे देश में एक विचारधारा के लोग बढ़ावा देने लगते हैं, सरकारें टैक्स में छूट देने लगती हैं, और कमसमझ, इतिहास से अनपढ़ लोग उसे ही इतिहास मान लेते हैं। आज हिन्दुस्तान की आबादी के अधिकतर लोगों का इतिहास का ज्ञान पिछले दस बरस की फिल्मों पर टिका हुआ है, और इस इतिहास से उनकी बांहें फडक़ती रहती हैं, आंखें सुर्ख लाल रहती हैं, और जो हवा में एक दुश्मन को तलाश कर उसे लाठियों से पीटना चाहते हैं। जब तक ऐसी एक फिल्म के बवाल की पहली सालगिरह आती है, तब तक ऐसी कोई नई फिल्म पेश हो जाती है, और वह इतिहास का एक नया चैप्टर लोगों को पढ़ाने लगती है। दिक्कत यह है कि कानूनी खतरे से बचने के लिए फिल्म में कुछ सेकेंड तक उसके काल्पनिक होने का जो नोटिस दिखाया जाता है, उसे पूरी तरह अनदेखा करते हुए उसे इतिहास का सच मानकर लाठियां उठा ली जाती हैं।

सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने लिखा है कि जिस सुनीता विलियम्स पर फख्र करने का कोई मौका यह हिन्दुस्तान नहीं छोड़ता, वह अंतरिक्ष में नौ महीने रहकर लौट भी आई है, लेकिन हिन्दुस्तानी किसी मस्जिद की नींव में उलझे हुए हैं, और अब औरंगजेब की कब्र में। यह सिलसिला एकदम भयानक इसलिए है कि इतिहास में हुए किसी जुल्म की कहानी सुनाकर लोग आज उस इतिहास को मिटाने को ही अपना भविष्य मान बैठे हैं। लोगों को आज न अपने वर्तमान की फिक्र रह गई है, और न ही अपनी अगली पीढ़ी के लिए उन्हें कोई भविष्य चाहिए। इतिहास में नामौजूद कुछ बातों के लिए गर्व करते हुए वे बाकी दुनिया की कामयाबी को खारिज करते चलते हैं, यह मानकर चलते हैं कि दुनिया में जो कुछ तरक्की हुई है, जितने भी आविष्कार हुए हैं, उन सबके पीछे हिन्दुस्तान से चुराया हुआ ज्ञान रहा है। ऐसे मनगढ़ंत दावों के बाद आज किसी नई कामयाबी, और किसी नए आविष्कार की जरूरत भी नहीं रह जाती है क्योंकि गौरवशाली इतिहास का दंभ किसी नई सफलता की जरूरत ही नहीं सुझाता। इतिहास की काल्पनिक सफलता, और इतिहास के सच्चे या झूठे जुल्म, इन्हीं में डूबा हुआ यह देश न्यौता तो दे रहा है सुनीता विलियम्स को, लेकिन अंतरिक्ष की सफलता को बुलाते हुए भी वह इतिहास के पाताल में घुसने में लगा हुआ है। पता नहीं सुनीता विलियम्स जब हिन्दुस्तान आएगी, उनके स्वागत के लिए लोग दरगाह, मस्जिद, और कब्र के नीचे से निकलकर आ पाएंगे या नहीं।

आरएसएस ने जो रूख सामने रखा है, उसे शब्दों से परे ले जाने की जरूरत है। जब संघ अपने आपको दुनिया का सबसे प्रमुख हिन्दू संगठन मानता है, तब उसे महज एक सवाल के जवाब में इतना कहने से अधिक कुछ करना चाहिए। आरएसएस को मानने वाले दसियों लाख लोग हैं, और उनमें से भी कई लोग कब्र की नींव खोदने का इरादा रखते होंगे। संघ को अधिक शब्दों में, अधिक खुलासे से अपने ऐसे हिन्दू स्वयंसेवकों, समर्थकों, और बाकी हिन्दुओं को राह दिखानी चाहिए, अगर वह सचमुच ही औरंगजेब के विवाद को अप्रासंगिक मान रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री जैसे लोग तो अपने सार्वजनिक बयानों से आज इस देश को निराश ही कर रहे हैं। संवैधानिक शपथ लेने के बाद सत्ता पर बैठे लोगों के बयान अधिक जिम्मेदारी के होने चाहिए। लेकिन आरएसएस मुख्यालय और देवेन्द्र फडनवीस का घर दोनों नागपुर में आसपास ही हैं, और आज देश को अप्रासंगिक मुद्दों से उबरकर जिंदगी के असल और अहम मुद्दों से रूबरू होने की जरूरत है। हम पहले भी कई बार इस बात को लिख चुके हैं कि कब्रों में घुसकर दफन लाशों को खाने वाले एक प्राणी, कबरबिज्जू पर सवारी नहीं की जाती, उस पर चढक़र कोई आगे नहीं बढ़ सकते। आजादी की स्वर्ण जयंती, 2047 तक देश को जहां पहुंचाने की मंजिल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तय की है, वह लंबा सफर कबरबिज्जू की पीठ पर सवार होकर तय नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री को भी इस देश में इतिहास का बवाल बनाने वाले लोगों को कुछ नसीहत देनी चाहिए।

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