राजपथ - जनपथ
पुनिया के यहाँ रहते हुए
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भीतर पिछले तीन-चार दिन जो बवाल चला उसमें कांग्रेस पार्टी की तरफ से इस राज्य के वर्षों से प्रभारी चले आ रहे पीएल पुनिया को लेकर लोग हैरान हैं। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेता भी इस पूरे मामले की जानकारी मिलने पर यह सोच रहे हैं कि पुनिया को इस बार कांग्रेस के एक विवाद को निपटाने के लिए छत्तीसगढ़ भेजा गया था। उस विवाद को निपटाना तो दूर रहा पुनिया ने अपने मौजूद रहते हुए इतना बड़ा दूसरा बवाल हो जाने दिया, और उसे सुलझाने के लिए कुछ भी नहीं किया। जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के घर में आग लगी हुई थी, पुनिया वापिस दिल्ली रवाना हो चुके थे। एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद दिल्ली से उन्हें 10 जनपथ के एक करीबी और बड़े जिम्मेदार नेता का फोन आया जिन्होंने लौटना रद्द करके बृहस्पति सिंह और टी एस सिंह देव के बीच में चल रहे विवाद को खत्म करवाने के लिए कहा। लेकिन इसके बाद भी रायपुर में हुए घटनाक्रम में जो लोग शामिल थे, उन लोगों का मानना है कि पुनिया ने झगड़े को निपटाने की कोई कोशिश नहीं की। बातचीत जितनी सुलझी है वह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव की रूबरू बातचीत से हुई है, पुनिया की किसी कोशिश से नहीं। किसी भी नेता की असली पहचान किसी मुसीबत को निपटाने के वक्त ही होती है, और ढाई बरस में पुनिया के सामने छत्तीसगढ़ कांग्रेस की यह पहली मुसीबत आई थी, जिसमें कुछ न करके वे चुपचाप दिल्ली लौट गए।
कोरोना के आंकड़े छिपाने का दबाव
प्रदेशभर में कोरोना संक्रमण कम होने के बाद उन अस्थायी स्वास्थ्य कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया है जो कोविड टेस्ट सैम्पल लेने और रिपोर्ट बनाने का काम करते थे। तीन माह तक जोखिम के बीच काम करने वाले ये कर्मचारी अब काम पर रखे जाने के लिये आंदोलन कर रहे हैं। जांजगीर के निकाले गये कर्मचारियों के आरोप ने सनसनी पैदा कर दी है। हड़ताल पर बैठे इन कर्मचारियों का कहना है कि उन पर दबाव डाला जाता था कि सैम्पल चाहे जैसा हो, निगेटिव रिपोर्ट ज्यादा से ज्यादा तैयार करो। आंकड़ा कम दिखेगा तो हालत सुधरने का दावा किया जा सकेगा। ये कर्मचारी यह भी चुनौती देते हैं कि आरटीआई से निकलवाकर देख लें कि कितने आरटीपीआर टेस्ट हुए और कितने एंटिजन। इनमें कितने टेस्ट इनवैलिड हुए यह भी पता चल जायेगा। फर्जी डेटा भी दर्ज करने कहा जाता रहा। किसी का नाम गलत तो किसी का मोबाइल नंबर भी गलत मिलेगा। इसे भी रेंडम चेक किया जाये।
कोविड के काबू में रखने का जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के ऊपर दबाव तो था। इसलिये इसे सिरे से यह कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि नौकरी से निकाले जाने के कारण भूतपूर्व कर्मचारी झूठे आरोप लगा रहे हैं। सच्चाई पता करने का तरीका उन्होंने बताया ही है। यदि किसी को ठीक लगता है तो उसे आरटीआई जरूर लगाना चाहिये। दूसरी बात है कि यदि कर्मचारी निगेटिव को पॉजिटिव बताते या कम से कम गलत रिपोर्ट बनाने के दबाव में नहीं आते तो क्या होता? शायद नौकरी कुछ दिन और खिंच जाती।
गरीब भी बढ़े, अमीर भी...
आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में एपीएल और बीपीएल राशन कार्ड बनवाने वालों की संख्या बढ़ी। खाद्य विभाग के अधिकारी इसकी वजह यह बताते हैं कि इस दौरान बहुत से लोगों की आमदनी घट गई। एपीएल-बीपीएल राशन कार्ड रखने की पात्रता होते हुए भी बहुत लोगों ने इसलिये नहीं बनवाया था क्योंकि वे कंट्रोल का चावल खाना और खरीदकर लाना पसंद नहीं करते थे। आमदनी घटने के कारण सरकारी राशन दुकानों का रुख करने के लिये उन्हें मजबूर होना पड़ा। दूसरी तरफ एक खबर है कि बीते चार सालों में छत्तीसगढ़ में करीब 70 फीसदी आयकर दाता बढ़ गये। इनमें से आधे कोरोना काल के दो वर्षों के भीतर बढ़े। अब इनकी संख्या प्रदेश में 11 लाख से अधिक हो गई है। पैन कार्ड बनवा लेना तो एक सामान्य प्रक्रिया है पर टैक्स देने वालों की संख्या बढऩे का मतलब है कि लोगों की आमदनी बढ़ी। कुछ की गरीबी बढ़ी क्योंकि उन्होंने राशन दुकानों का रुख किया, कुछ की आमदनी ज्यादा होने लगी, इनकम टैक्स देने लगे।
बिना टिकट यात्रा का आंदोलन
कोरोना के बहाने से रेलवे ने टिकटों पर हर तरह की रियायती सेवा बंद कर दी है। उल्टे पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनों को भी स्पेशल के नाम से चलाकर अतिरिक्त राशि वसूल रही है। रेलवे के तर्क से लोग असहमत हैं कि कोरोना काल में यात्रियों की भीड़ कम रहे इसलिये ऐसा किया गया है।
रायगढ़ से लेकर गोंदिया तक हजारों यात्री हैं जो रोजाना अपनी आजीविका के लिये ट्रेनों में सफर करते हैं। मासिक सीजन टिकट पर रोक इनकी जेब पर भारी पड़ रहा है। लोगों में गुस्सा है पर व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। सोचिये, मुम्बई में क्या हाल होगा। लोकल ट्रेनों को तो वहां लाइफ लाइन कहते हैं। लाखों की संख्या में लोग सफर करते हैं। इसके बिना वे शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जा नहीं सकते। वहां भी काम-धंधे, नौकरी पर निकलने वालों पर मासिक टिकट बंद होने का असर पड़ा है। इस पर रेलवे का ध्यान खींचने आंदोलन शुरू कर दिया गया है। बिना टिकट सफर करने का आंदोलन। मासिक टिकट पर फैसला नहीं होगा तो बिना टिकट यात्रा करेंगे, इन यात्रियों ने तय किया है। इससे जुड़ी खास बात यह है कि वहां वकीलों ने तय किया है कि वे बिना टिकट पकड़े जाने वाले यात्रियों का मुकदमा मुफ्त लड़ेंगे, कोई फीस नहीं लेंगे। अपने यहां वकीलों ने इतना ही किया है कि इससे जुड़े मुद्दों को हाईकोर्ट ले गये हैं। यात्री सुविधाओं को लेकर लोकल ट्रेन चलाने का आदेश हुआ। पर, मासिक सीजन टिकट पर बात नहीं बनी है। ([email protected])