राजपथ - जनपथ
परीक्षा नहीं दिला पाना भी एक बड़ी परीक्षा
सेंट्रल बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन ने 10वीं बोर्ड परीक्षा रद्द कर दी है और 12वीं की परीक्षा टाल दी है। बच्चे स्कूल से ज्यादा कठिन पाठ से इस वक्त गुजर रहे हैं। बचपन इस तरह से घर में दुबके हुए तो नहीं बिताया जा सकता, जिसमें दोस्तों से मुलाकात न हो, मेल-मिलाप और झगड़े न हो। टीचर्स से फटकार और प्यार न मिले। ध्यान सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं पर है पर बाकी परीक्षाओं को तो पहले से ही बच्चे बिना दिलाये पास कर चुके हैं।
अपने अनुभवों से पालक इस आपदा का सामना करने के लिये तैयार हैं पर बच्चों के लिये तो यह बहुत बुरा दौर है। हाल के कुछ शोध बता रहे हें कि एक कमरे में कैद बच्चे इंटरनेट, लैपटॉप, ऑनलाइन पढ़ाई से भी ऊबने लगे हैं। वे घर के काम में हाथ बंटाने और किताबें पढऩे के लिये उत्सुक हैं।
सरकार और समाज का पूरा ध्यान स्वास्थ्य सेवा ठीक करने, लोगों को राशन पहुंचाने तक सीमित है। बच्चों के मन में क्या गुजर रहा है इसका आकलन करना और समाधान निकालना भी एक बड़ा काम है।
इतना आसान भी नहीं कोरोना से लडऩा
हमें कोरोना से लडऩा तो है, पर उसके पहले भी बहुत सी और लड़ाई लडऩी है। पहली लड़ाई कोरोना जांच की है। फिर समय पर उसकी रिपोर्ट मिल जाने के लिये लडऩा है। पॉजिटिव आ गये हैं तो अस्पताल में बिस्तर के लिये लडऩा है। बेड मिल भी गई तो ऑक्सीजन की लड़ाई लडऩी है, रेमडिसिविर इंजेक्शन के लिये लडऩा है। बच गये तो ठीक। नहीं बचे तो श्मशान में शव जलाने के लिये लड़ाई लडऩी है।
डुबकी लगाकर लौटे लोगों का हाल
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है, 3 दिन में हरिद्वार कुंभ पहुंचे 13 सौ लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। जाहिर है भीड़ है और भीड़ के दौरान कई लोगों से मेल मुलाकात होती रही। न भी हुई हो तो सोशल डिस्टेंस का तो उल्लंघन हुआ ही। संतों ने किस तरह घाटों पर स्नान किया तस्वीरों में हमने देखा ही है। मेले में स्नान के दौरान कितने और लोगों को इन्होंने संक्रमित कर दिया, कोई हिसाब नहीं। सुनने में आया है कि छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग कुंभ गये हैं। ट्रेन चल रही है इसलिये आने-जाने में खास दिक्कत नहीं है। पर ये जब अपने शहर लौटेंगे तो कितने लोग टेस्ट करायेंगे और क्वारांटीन पर रहेंगे? अपनी सेहत का ख्याल रखिये।
न्यूज चैनल न देखें, अख़बार तो पढ़ लें
कोरोना संक्रमण से जूझ रहे आईपीएस रतनलाल डांगी ने अपनी दिनचर्या शेयर की है। सुबह 5.30 बजे उठकर गरम पानी पीते हैं। बीबीसी न्यूज़ सुनते हैं, मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं। हल्दी मिलाकर दूध पीते हैं। नींद न आये तब तक किताबें पढ़ते रहते हैं। पूरी दिनचर्या में न्यूज चैनल देखने का जिक्र नहीं हैं। यह तो ठीक है, न्यूज़ चैनल बड़ी नकारात्मकता फैला रहे हैं, पर पता नहीं, अखबार क्यों नहीं पढ़ रहे। अख़बारों की रिपोर्टिंग इतनी बुरी भी नहीं होती। बहुत से आलेख तो मोटिवेट भी करते हैं।
गवर्नर की बैठक में हाजिरी
विपक्ष का यह सवाल जायज है कि राज्यपाल की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव क्यों शामिल नहीं हुए। कोविड संक्रमण को रोकने और मरीजों के लिये बेहतर व्यवस्था करने की यह बैठक थी। स्वास्थ्य विभाग से ही जुड़ा मसला है। उनको तो होना ही चाहिये था। इसके जवाब में कांग्रेस ने सवाल उठा दिया है कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष क्यों नहीं आये?
वैसे बैठक में नेता प्रतिपक्ष सहित भाजपा के अनेक नेता थे। क्या लगता है, स्वास्थ्य मंत्री और विपक्ष के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी को एक तराजू पर तौला जा सकता है?