राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : हरपाल के पास है राज
22-Apr-2025 4:01 PM
 राजपथ-जनपथ : हरपाल के पास है राज

हरपाल के पास है राज

पीएससी भर्ती घोटाले की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। सीबीआई की जांच में यह बात भी सामने आई, कि बार नवापारा अभ्यारण्य के पर्यटक गांव में 35 अभ्यर्थियों को ठहराया गया था, और उन्हें मुख्य परीक्षा के पेपर भी उपलब्ध कराए गए थे। सीबीआई इस मामले में बिचौलिया राहुल हरपाल से पूछताछ कर रही है। 

चर्चा है कि सीबीआई की टीम अब सरगुजा इलाके में धमक सकती है। बताते हैं कि सरगुजा के मैनपाट हिल स्टेशन में घोटाले के मुख्य आरोपी पीएससी के पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी का फार्म हाउस है। यह भी कहा जा रहा है कि परीक्षा के बीच में वो अपने फार्म हाउस आए थे और कई लोगों से मिले थे। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सोनवानी सरगुजा कमिश्नर रह चुके हैं, और उनके मातहत कुछ अफसरों के बच्चे भी पीएससी में सिलेक्ट हुए । इन सभी की नियुक्ति को शक की नजर से देखा जा रहा है। कुल मिलाकर सीबीआई की कार्रवाई पर अब सबकी नजरें हैं।

कितना करेगी सीबीआई 

वैसे तो सीबीआई पीएससी राज्य सेवा भर्ती परीक्षा घोटाले की जांच कर रही है, लेकिन वर्ष 2019 से 2023 के बीच पीएससी के माध्यम से हुई कई परीक्षाओं में गड़बड़ी की बात सामने आई है। इसके साक्ष्य भी मिले हैं लेकिन सीबीआई ने अपनी जांच का दायरा राज्य सेवा परीक्षा तक ही सीमित रखा है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने तो पीएससी से संस्कृति विभाग में भर्ती परीक्षा में अनियमितता मामले की जांच के लिए सीबीआई को चि_ी लिखी है। मगर सीबीआई ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। आने वाले दिनों में सीबीआई जांच का दायरा बढ़ा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

 

एक विभाग में रिकॉर्ड 

मंत्रालय में पिछले चार साल में आईएएस अफसरों के तबादले की कई सूची निकली है, और  सारे अफसरों के विभाग बदले गए हैं। मगर सचिव अम्बलगन के संस्कृति-पुरातत्व विभाग  को बदला नहीं गया है।

हालांकि अम्बलगन खनिज, पीडब्ल्यूडी, खाद्य सहित आधा दर्जन विभाग संभाल चुके हैं। मगर सरकार बदलने के बाद बाकी अफसरों की तरह अम्बलगन के बाकी विभाग बदले गए हैं, लेकिन संस्कृति-पुरातत्व विभाग को यथावत उनके पास रहने दिया गया। वो  इस विभाग का सबसे ज्यादा समय तक प्रभार संभालने वाले अफसर हो गए हैं।

महुआ केवल पेय नहीं पर्व है..

जशपुर अंचल इस समय पीले रंग की एक अनुपम बहार से सराबोर है। यह रंग है महुआ का। जंगलों में महुआ बिखर रहा है, खिल रहा है, महक रहा है। उसकी यह सुवास वातावरण को सम्मोहित कर रही है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने स्वयं एक अद्भुत चित्र रच डाला हो, जिसमें हर रंग, हर रूप, हर गंध अपने आप में संपूर्ण है।

महुआ केवल एक फूल नहीं, एक संस्कृति है। यह यहां के आदिवासी जीवन का अभिन्न हिस्सा है। भोर होते ही आदिवासी महुआ चुनने निकल पड़ते हैं। वे झुकते हैं, केवल महुआ बीनने के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति को प्रणाम करने के लिए, उस जीवनदायिनी परंपरा का सम्मान करने के लिए, जिससे उनका जीवन जुड़ा है।

महुआ उनके लिए केवल नशा नहीं, पोषण है। केवल पेय नहीं, पर्व है। यह उनके जीवन का उल्लास है, उनकी स्मृति और उनकी आजीविका का आधार है। लेकिन अब इस उल्लास और स्वामित्व के बीच सरकार की हिस्सेदारी आ खड़ी हुई है। सवाल यह नहीं है कि सरकार शामिल है, बल्कि यह है कि इस साझेदारी में असली हिस्सेदार यानी आदिवासी कहां हैं, कितने हैं?
फिर भी, आशा की किरण दिखाई देती है। जशपुर के वन विभाग ने महुआ की पहचान को शराब के नशे से निकालकर पोषण और नवाचार से जोड़ा है। अब महुआ की कुकीज़, लड्डू, चाय जैसे उत्पाद बाजार तक पहुंच रहे हैं।

यह केवल उत्पादों की बात नहीं, बल्कि संवेदनाओं की भी है। जब कोई व्यक्ति इन उत्पादों को अपने मित्रों-परिजनों तक पहुंचाता है, तो वह वस्तु से अधिक एक भाव, एक जुड़ाव साझा करता है। यह जुड़ाव केवल आदिवासियों और उनके उत्पादों से नहीं, बल्कि उनके जीवन, उनकी संस्कृति, उनकी धडक़नों से है।

(rajpathjanpath@gmail.com)

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