महासमुन्द

आर्ष ज्योति गुरूकुल आश्रम में शिक्षक प्रशिक्षण सप्ताह का समापन
संस्कृत कई भाषाओं की जननी-रामसुंदर दास
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 31 अक्टूबर। प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम कल महासमुंद विकासखण्ड के ग्राम कोसरंगी में स्थित आर्ष ज्योति गुरूकुल आश्रम में वैदिक संस्कृत विषय के शिक्षक प्रशिक्षण सप्ताह के समापन कार्यक्रम पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए।
इस अवसर पर श्री टेकाम ने कहा कि संस्कृत विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है। प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में संस्कृत विषय पर अध्ययन कराया जाता है। उन्होंने कहा कि जिन विद्यालयों में संस्कृत की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं है, वहां शिक्षकों की व्यवस्था कर संस्कृत की पढ़ाई करायी जा रही है।
उन्होंने रायपुर स्थित दूधाधारी मठ का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक ऐसी संस्था है, जिन्होंने प्रदेश में संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय खोलने के लिए काफी प्रयास किया। संस्कृत से ही वैदिक कर्मकांड, ज्योतिष सहित अन्य विशेष कार्य कराए जाते हैं। राज्य शासन द्वारा संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के विभिन्न स्कूलों एवं महाविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई नियमित रूप से करायी जा रही है। संस्कृत विषय लेकर कई लोग रोजगार एवं स्वरोजगार प्राप्त किए हैं। उन्होंने आगे कहा कि आगामी समय में प्रदेश में विद्यार्थियों के लिए कर्मकांड, योगदर्शन और ज्योतिष के लिए डिप्लोमा कोर्स की व्यवस्था करायी जाएगी।
उन्होंने आगे कहा कि यहां से संस्कृत में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षार्थी संस्कृत के महत्व के बारे में लोगों को जरूर बताएं। इस अवसर पर मंत्री श्री टेकाम ने प्रशिक्षणार्थियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। मंत्री श्री टेकाम ने कोसरंगी स्थित गौशाला में गायों को गुड़ खिलाया। इसके अलावा उन्होंने प्रदेश के जनता की खुशहाली के लिए पूजा-अर्चना कर हवन किया।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष महन्त रामसुंदर दास ने की। विशेष अतिथि के रूप में गुरुकुल विद्यालय कोसरंगी के संस्थापक धर्मानंद सरस्वती उपस्थित थे। छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष महन्त रामसुंदर दास ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत एवं संस्कृति सबसे प्राचीन है। संस्कृत भाषा कई भाषाओं की जननी है। इसीलिए इसे देव भाषा कहा जाता है। आज कई लोगों में यह भ्रांतियां है कि संस्कृत रोजगार उपलब्ध कराने वाली भाषा नहीं है। लेकिन वास्तविक में ऐसा नहीं है। वर्तमान समय में संस्कृत विषय लेकर पढऩे वाले विद्यार्थी रोजगार हासिल करते है।
उन्होंने कहा कि भारत के आजाद होने के पूर्व ही सर्वप्रथम 1936 में रायपुर के दूधाधारी मठ में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को पठन.पाठन का कार्य कराया जाता था। उन्होंने संस्कृत विषय को लेकर पढ़ाई करने में विद्यार्थियों को संकोच नहीं करना चाहिए।
इस दौरान आर्ष गुरुकुल विद्यालय कोसरंगी के संस्थापक धर्मानंद सरस्वती, डा.रश्मि चंद्राकर, आचार्य कोमल कुमार, राकेश सहित अन्य वक्ताओं ने भी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित किया।
इस अवसर पर जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक सहित संस्कृत विद्या मंडल के सचिव राजेश सिन्हा, डिप्टी कलेक्टर शशिकांत कुर्रे, आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त एलआर कुर्रे, प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी हिमांशु भारतीय, दूधाधारी मठ के प्राचार्य कृष्ण वल्लभ सहित अन्य अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।