सालभर पूर्व विधायक बने भोलाराम, हर्षिता और दलेश्वर के विस में कांग्रेस का किला ढहा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 18 फरवरी। राजनांदगांव जिले के सभी निकायों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ होने से राजनीतिक तौर पर पार्टी विधायकों को भी गहरा धक्का लगा है। निकायों में सत्ता हथियाने के लिए कांग्रेस को क्षेत्रीय विधायकों के प्रभाव से फायदा होने की उम्मीद थी, लेकिन नतीजों ने विधायकों की साख को भी प्रभावित किया। जिले की 4 सीटों में से 3 पर कांग्रेस का कब्जा है। डोंगरगढ़, डोंगरगांव और खुज्जी विधानसभा में भाजपा की सुनामी के सामने विधायक भी पार्टी को हार से बचा नहीं पाए।
तकरीबन सवा साल पहले अच्छे अंतरों से जीत हासिल कर विधायक बने दलेश्वर साहू, हर्षिता बघेल और भोलाराम साहू शहरी सरकार बनाने में नाकाम रहे। चुनावी परिणाम से तीनों विधायकों का जनाधार खिसकता नजर आया।
डोंगरगढ़ नगर पालिका में कांग्रेस प्रत्याशी नलिनी मेश्राम को 7 हजार से ज्यादा मतों से बुरी हार का सामना करना पड़ा। बताया जाता है कि हर्षिता की पसंद पर ही अध्यक्ष और पार्षदों को टिकट दी गई थी। डोंगरगढ़ में टिकट को लेकर विधायक ने भले ही मनमर्जी चलाई, लेकिन पार्टी के पक्ष में नतीजा दिलाने में वह नाकाम रही। उनके सवा साल के विधायकी कार्यकाल को लेकर कांग्रेस का एक धड़ा सवाल खड़े कर रहा है।
इसी तरह डोंगरगांव नगर पंचायत में भाजपा की वाणी त्रिपाठी ने कांग्रेस उम्मीदवार पुष्पलता यदु को परास्त कर दिया। इस हार से विधायक दलेश्वर साहू की साख पर प्रतिकूल असर पड़ा है। डोंगरगांव में 15 साल बाद भाजपा ने शहरी सत्ता में जीत हासिल की है। दलेश्वर के लिए यह परिणाम आईना दिखाने वाला रहा है। खुज्जी विधानसभा के दो निकायों अंबागढ़ चौकी और छुरिया में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। अं. चौकी नगर पंचायत में मनीष साहू को विधायक भोलाराम साहू ने टिकट दिलाई, लेकिन यहां कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े निर्दलीय प्रत्याशी अनिल मानिकपुरी ने बाजी मार ली। विधायक साहू ने अनिल को उम्मीदवार बनाए जाने का खुलकर विरोध किया था। विधायक के दबाव के चलते प्रदेश संगठन ने मनीष साहू को अध्यक्ष के लिए अधिकृत कर दिया, लेकिन चुनावी मुकाबले में मानिकपुरी ने अपने दमखम से कांग्रेस को तीसरे नंबर पर ढकेल दिया।
इसी तरह खुज्जी विधानसभा के ब्लॉक मुख्यालय छुरिया में रितेश जैन को भी भाजपा प्रत्याशी अजय पटेल ने मात दी। तीनों विधायक को चुनाव परिणाम ने बगले झांकने के लिए मजबूर कर दिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस विधायकों की जमीनी पकड़ कमजोर हुई है।