-केविन किम और रेबेका हेंश
नेपाल में धर्म परिवर्तन ग़ैरक़ानूनी है लेकिन ईसाई धर्म के प्रसार के लिए मिशनरी क़ानूनी कार्यवाही का रिस्क भी ले रहे हैं.
हिमालय की तलहटी में बसे झारलांग गांव में एक नई चर्च की स्थापना करते हुए जब कोरियाई पास्टर पैंग चांग-इन ने कहा, 'यीशू की जय', तो उनकी आंखों में आंसू थे.
धर्म परिवर्तन करने वाले नए श्रद्धालु इस धार्मिक समागम में दुआ के लिए अपने हाथ उठाते हैं. इनमें से अधिकांश लोग तमांग समुदाय से थे और पुरातन अध्यात्मिक संप्रदाय लामा पंथ को मानने वाले थे.
पैंग की नज़रों में तमांग लोग 'आर्थिक और अथ्यात्मिक रूप से ग़रीब' हैं.
वो कहते हैं, "चमत्कार होता है और पूरा का पूरा गांव अपना धर्म बदल लेता है."
इस इलाक़े में पैंग की तरह अधिकांश मिशनरीज़ दक्षिण कोरिया से हैं और उन्होंने नेपाल में तेज़ी से ईसाई धर्म को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है.
नेपाल पहले हिंदू राज्य हुआ करता था और यह भगवान बुद्ध की जन्मस्थली भी है.
नेपाल में ईसाई बनने वालों में अधिकांश दलित समुदाय से आते हैं या जनजातियों से.
पैंग की तरह ही वे भी चमत्कारों में विश्वास करते हैं लेकिन उनके लिए धर्म परिवर्तन भयंकर ग़रीबी और भेदभाव से निकलने का मौका भी देता है.
नेपाल में 7,758 चर्च
नेपाल में पिछले दो दशकों में पैंग ने क़रीब 70 चर्चों को बनते देखा है, इनमें अधिकांश ढडिंग ज़िले में हैं, जोकि राजधानी काठमांडू से दो घंटे की दूरी पर है.
पैंग बताते हैं कि चर्च के लिए स्थानीय लोग ही ज़मीन और निर्माण के लिए पैसे देते हैं.
पैंग का दावा है, "पहाड़ की लगभग हर घाटी में चर्च बनाए जा रहे हैं."
हो सकता है कि ये दावा बढ़ा चढ़ा कर किया गया हो लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि हाल के सालों में पूरे नेपाल में चर्चों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है.
नेशनल क्रिश्चियन कम्युनिटी सर्वे के ताज़ा आंकड़े के मुताबिक हिंदु बहुल देश में इस समय कुल 7,758 चर्च हैं.
और इनसब के पीछे दक्षिण कोरिया के मिशनरियों का बड़ा हाथ है. वहां से दुनिया भर में मिशनरी ईसाई मत का प्रसार करने जाते हैं.
कोरियन वर्ल्ड मिशन एसोसिएशन के मुताबिक़, फिलहाल दक्षिण कोरिया के विदेशों में 22,000 मिशनरी हैं.
नेपाल अब सेक्युलर राष्ट्र है और 2015 का संविधान धर्म मानने की आज़ादी देता है. हालांकि 2018 में धर्म परिवर्तन को लेकर कड़ा क़ानून अस्तित्व में आया जिसके अनुसार, धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने पर पांच साल की जेल हो सकती है.
पैंग की पत्नी ली जियोंग-ही कहती हैं "धर्म परिवर्तन विरोधी क़ानून के कारण हम सभी हमेशा डरे रहते हैं. लेकिन डर कर ईसाई धर्म के प्रसार को रोक नहीं सकते."
ये दंपत्ति बैंकर हुआ करता था. ली जियोंग कहती हैं कि उनके पति को "पहली बार ईश्वर से संदेश प्राप्त हुआ और उन्होंने नेपाल जाने का संकेत दिया."
जब वे 2003 में नेपाल पहुंचे तो उस समय देश पर हिंदू राजा का शासन था.
पैंग कहते हैं, "मैं देख कर दंग रह गया कि यहां कितनी ही मूर्तियों की पूजा होती है. मैंने महसूस किया कि नेपाल को ईसाई धर्म की बहुत ज़रूरत है."
इसके पांच साल बाद ही 240 साल पुरानी राजशाही को एक दशक तक चले गृह युद्ध के बाद ख़त्म कर दिया गया और 2008 में जो राष्ट्रीय सरकार बनी उसने नेपाल को सेक्युलर राष्ट्र घोषित कर दिया.
पैंग कहते हैं, "मिशनरी काम के लिए यह स्वर्ण युग की शुरुआत थी."
नेपाल में इस समय क़रीब 300 कोरियन मिशनरी परिवार हैं. काठमांडू के बाहर, दक्षिणी इलाक़े में इनकी संख्या अधिक है.
इनमें कोई भी आधिकारिक मिशनरी नहीं हैं. वे बिज़नेस या स्टडी वीज़ा पर आए हैं. कुछ रेस्तरां चलाते हैं और अन्य लोगों ने समाजसेवी संस्थाएं पंजीकृत करवा रखी हैं.
कोरियन मिशनरी कम्युनिटी में हफ़्तों बिताने के बाद सिर्फ पैंग और उनकी पत्नी ही बोलने को तैयार हुए.
उन्होंने कहा, "नेपाल में ईश्वर क्या कर रहे हैं, मैं बताने के लिए तैयार हूं."
हालांकि उन्हें नहीं लगता कि उनका काम क़ानून तोड़ने वाला है क्योंकि वो सार्वजनिक रूप से लोगों का धर्म-परिवर्तन नहीं करते.
नेपाल में ईसाई मत का प्रसार
1951 मेंकोई ईसाई नहीं
1961 मेंकेवल 458 ईसाई
2011 मेंईसाइयों की संख्या 3,76,000 हो गई
ताज़ा आंकड़ोंके मुताबिक नेपाल में 5,45,000 ईसाई
वो कहते हैं, "हमारा मिशनरी का काम केवल हमारे बारे में नहीं है. ईश्वर अपना काम कर रहे हैं. हम ये दिखाते हैं कि किस तरह ईश्वर हमारे द्वारा नेपाल में चमत्कार को अंजाम देते हैं."
नेपाल में ईसाई समुदाय की आबादी महज 2% प्रतिशत है, हिंदू 80%, बौद्ध 9% हैं. लेकिन जनगणना ईसाई धर्म के विस्तार को दिखाता है.
1951 में नेपाल में कोई भी ईसाई नहीं था और 1961 में केवल 458 ईसाई थे. लेकिन 2011 में ईसाई समुदाय की संख्या 3,76,000 हो गई और जनगणना के ताज़ा आंकड़े 5,45,000 संख्या बताते हैं.
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कमल थापा
इमेज कैप्शन,
कमल थापा का मानना है कि धर्म परिवर्तन विरोधी क़ानून को कड़ाई से लागू किया जाए और देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाया जाए.
'सख़्ती से लागू हो क़ानून'
नेपाल पूर्व उप प्रधानमंत्री कमल थापा कहते हैं, "ये जंगल की आग की तरह फैल रहा है. सांस्कृतिक पहचान पर संकट गहरा गया है. राष्ट्रीय एकता का ताना बाना ख़तरे में है."
वो कोरियाई मिशनरियों के काम को 'देश की सांस्कृतिक पहचान पर संगठित हमला' मानते हैं.
वो कहते हैं, "मिशनरी पर्दे के पीछे काम कर रहे हैं और ग़रीबों और हाशिए के लोगों का शोषण कर रहे हैं और ईसाई धर्म अपनाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. ये धार्मिक आज़ादी का नहीं बल्कि धर्म के नाम पर शोषण का ममला है."
वो चाहते हैं कि नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बने. धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ बने क़ानून को उन्होंने समर्थन दिया था.
धर्म परिवर्तन के मामले में सिर्फ ईसाइयों पर ही मुकदमे दर्ज हुए लेकिन किसी को भी सज़ा नहीं हुई. या तो सबूत के अभाव में या अपील के बाद मामले ख़त्म हो गए.
नेपाल क्रिश्चियन सोसायटी के अनुसार, इस समय देश में ऐसे पांच मुकदमे चल रहे हैं. बीते दिसम्बर में ही दो नन समेत चार कोरियन के ख़िलाफ़ आरोप हटा लिए गए.
कोरिया से मिली प्रेरणा
नेपाल क्रिश्चियन सोसाइटी के प्रमुख फ़ादर दिल्ली राम पाउडेल वो पहले व्यक्ति हैं जिनपर इस क़ानून के तहत मुकदमा हुआ.
अप्रैल 2018 में उनपर लोगों को रिश्वत देकर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगे. हालांकि वो इससे इनकार करते हैं. ये आरोप भी बाद में हटा लिए गए.
वो कहते हैं, "लोगों का धर्म परिवर्तन कराने के हम पर आरोप लगे, लेकिन सत्ता तो हमारे हाथ में है नहीं. अगर ये सही था, तो मैं अपनी मां का भी धर्म परिवर्तन करा सकता था. वो 92 साल की हैं, मैं उन्हें पैसे दे सकता था, मैं उनके लिए प्रार्थना कर सकता हूं, लेकिन धर्म नहीं बदल सकता क्योंकि परिवर्तन तो यीशू की ओर से आता है."
वो हिंदू परिवार से आते हैं और हिंदू पुजारी थे, "21 पीढ़ियों ये परंपरा चली आ रही थी."
लेकिन वो कोरिया पढ़ने गए और वहीं ईसाई धर्म से उनका परिचय हुआ.
वो कहते हैं, "मैं अकेला था, कोई दोस्त नहीं था और तभी कुछ लोगों ने मुझे नेपाली भाषा में कोरियन बाइबिल दी."
उन्होंने एक ही रात में ये किताब पढ़ डाली और "अपने जन्मदाता से परिचित हुआ."
मुस्कान के साथ वो कहते हैं, "क्या ये मज़ाकिया और अविश्वसनीय लग रहा है? ख़ैर यही मेरे साथ यही हुआ था."
'नेपाली छात्र कोरिया में चर्च से साधते हैं संपर्क'
जब अपने देश वापस लौटे तो परिवार वालों ने उन्हें निकाल दिया. वो कहते हैं, "उन्होंने कहा कि ईसाईयत विदेशी धर्म है और कुछ लोगों ने कहा कि मैं पागल हो गया हूं, कि मैं अपनी याददाश्त खो चुका हूं."
परिवार और समुदाय द्वारा उनको स्वीकार किए जाने में काफ़ी वक़्त लगा.
हर साल नेपाल से 2000 स्टूडेंट कोरिया पढ़ाई के लिए जाते हैं. एक कोरियन मिशनरी ने नाम न ज़ाहिर करते हुए बताया कि ये स्टूडेंट कोरिया में स्थानीय चर्चों से संपर्क करते हैं.
उन्होंने बताया, "नेपाल में ईसाई धर्म को लेकर काम करना चुनौती है. इसलिए हमने दूसरे रास्ते अख़्तियार किए हैं. पादरी दिल्ली राम पाउडेल अपनी जवानी में हिंदू पुजारी थे, हमारा मिशन है धर्म परिवर्तन कराना इसलिए हमें अंडर कवर रहना पड़ता है."
पैंग और उनकी पत्नी काठमांडू में एक सेमिनरी स्कूल चलाते हैं, जिसमें 50 छात्र हैं. कोरियन चर्च के दानदाता इनकी शिक्षा के खर्च उठाते हैं.
इनमें 22 साल की सपना सुदूर इलाके सिंगांग के तमांग गांव से आती हैं, "मेरे पिता चर्च जाने वालों के घोर विरोधी थे, क्योंकि उनका मानना था कि हमें अपनी परम्पराओं से दूर नहीं जाना चाहिए."
सपना का 'सपना'
एक बार सपना बहुत बीमार पड़ीं तब उनके चाचा ने उन्हें ईसाई धर्म से परिचय कराया.
वो दावा करती हैं कि ईसाई बनने के बाद वो ठीक हो गईं, "मैं अब जीसस के लिए जीना चाहती हूं. आख़िरकार किसी ने मुझे अपनाया."
सपना के गांव की तरह ही दूर दराज़ के गांव अब पैंग जैसे कोरियन मिशनरीज़ के लिए नए मोर्चे हैं.
पैंग कहते हैं, "शहरों में, धर्म परिवर्तन विरोधी क़ानून कड़ाई से लागू होता है. लेकिन गांव देहात में उन पर कम नज़र रहती है."
पिछले साल ही सपना ने सेमिनरी से ग्रेजुएट किया है. अब वो अपने पहाड़ी गांव लौटने की योजना बना रही हैं, "ताकि नौजवानों को चर्च का धीरे धीरे हिस्सा बनाया जा सके."
वो कहती हैं, "मैं नई जगह जाउंगी और उन लोगों के बीच जीसस के संदेश का प्रसार करूंगी जो इस बारे में कुछ नहीं जानते हैं."
पैंग चांग-इन स्वीकार करते हैं कि "ईसाई धर्म के प्रसार के कारण मौजूदा धर्म और संस्कृति से टकराव भी पैदा कर सकता है."
लेकिन उनका ये भी मानना है कि "सांस्कृतिक शॉक से बचा नहीं जा सकता." (bbc.com/hindi)