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चीन कम आय वाले देशों को 'कर्ज़ के दलदल' में फंसा रहा है?
15-Jan-2023 1:08 PM
चीन कम आय वाले देशों को 'कर्ज़ के दलदल' में फंसा रहा है?

-कीर्ति दुबे

नई दिल्ली, 15 जनवरी ।  गुरुवार को दो दिवसीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस 'वॉयस ऑफ़ ग्लोबल साउथ' के पहले दिन भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि दक्षिणी देशों के लिए दुनिया में अनिश्चितता का ख़तरा बना हुआ है. कोविड-19 ने अति-केंद्रीय वैश्विकरण (सेंट्रलाइज़ ग्लोबलाइज़ेशन) के ख़तरे और कमज़ोर सप्लाई-चेन की परेशानी को उजागर किया है.

जयशंकर ने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि विकासशील देशों को भी वैश्विकरण का विकेंद्रीकरण (डिसेंट्रलाइज़ेशन ऑफ़ ग्लोबलाइज़ेशन) करना चाहिए ताकि दूसरे विकासशील देशों को बेहतर मौके मिल सकें. इसके लिए लोकलाइज़ेशन की ज़रूरत होगी, बेहतर कनेक्टिविटी की ज़रूरत होगी और सप्लाई चेन के नेटवर्क को फिर से तैयार करने की ज़रूरत है.

चीन पर ये आरोप पश्चिमी देश लगाते रहे हैं कि वह अपनी 'कर्ज़ देने की नीति' से विकासशील देशों को कर्ज़ के दलदल में इतना ढकेल देता है कि वह देश चीन के दबाव में आ जाता है.

हालांकि चीन इस तरह के आरोपों को ख़ारिज करता रहा है.

चीन कम आय वाले देशों को कितना कर्ज़ देता है?

चीन दुनिया का सबसे ज़्यादा कर्ज़ देने वाला देश है. मध्यम आय और कम आय वाले देशों को कर्ज़ देने के मामले में बीते 10 साल में चीन तीन गुनी रफ़्तार से आगे बढ़ा है. और साल 2020 तक चीन ने दुनिया के तमाम देशों को 170 बिलियन डॉलर कर्ज़ दिया है. माना जाता है कि चीन की ओर से तमाम देशों को दिए गए कर्ज़ का आंकड़ा इससे कहीं ज़्यादा है.

अमेरिका के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी स्थित रिसर्च लैब एडडेटा के अनुसार विकासशील देशों को चीन की ओर से दिया गया आधे से अधिक कर्ज़ आधिकारिक रूप से दर्ज ही नहीं किया जाता. इसे सरकारी बैलेंस शीट में नहीं लिखा जाता. कई बार चीन सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी या बैंक के ज़रिए कर्ज़ देता है ना कि सीधे सरकारों को देता है.

एडडेटा के मुताबिक़ 40 से अधिक कम और मध्यम आय वाले देश हैं जिन पर 'हिडेन डेट' को मिलाकर चीन का इतना कर्ज़ है जो वह उनकी कुल जीडीपी का 10 फ़ीसदी हिस्से के बराबर है.

किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, "ये देश गरीब होते हैं, उन्हें रिसोर्स चाहिए होता है और बेहद आसानी से वो चीन के दबाव में आ जाते हैं. कई बार ऐसा होता है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज़ लेना बेहद मुश्किल हो जाता है और चीन आसानी से कर्ज़ देता है. लेकिन जब चीन कर्ज़ देता है तो उसकी शर्तें न केवल मनमानी होती हैं बल्कि उनमें ना ही कोई पार्दशिता होती है."

"साथ ही चीन कर्ज़ महंगाी दरों पर देता है. गरीब देश कई बार ऐसे समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं और चीन उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में मदद भी करता है लेकिन जब कर्ज़ लौटाने की बारी आती है तो देशों को पता चलता है कि कई 'हिडेन चार्ज' इस कर्ज़ में था और वे इसे भरने में मुश्किलों का सामना करते हैं. कई बार इसके बदले या तो चीन राजनीतिक समर्थन मांगता है या फिर संपत्ति को लीज़ पर ले लेता है."

"ऐसा करके चीन ने कई देशों के लिए ताइवान को मान्यता ना देने के लिए तैयार किया है."

जिबूती, किर्गिस्तान, ज़ांबिया और लाओस पर चीन का इतना बड़ा कर्ज़ है कि वह उनके कुल जीडीपी का 20 फ़ीसदी है.

चीन इन देशों को इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए कर्ज़ देता है, जैसे- रोड, रेलवे, पोर्ट, खनन और ऊर्जा के क्षेत्र में भी वह इन देशों की मदद करता है, ये कर्ज़ चीन के बेल्ट और रोड इनिशिएटिव का हिस्सा होते हैं. जो बीते एक दशक से चीन का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है.

चीनी मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ैसल अहमद कहते हैं, "चीन को ये पता है कि बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के तहत कई देशों को दिए जा रहे कर्ज़ उसे कभी वापस नहीं मिलेंगे. चीन दुनिया में अमेरिका की जगह लेना चाहता है. इसमें अब किसी को कोई शक नहीं है कि चीन ये सब अब 'बिग पावर' बनने के लिए कर रहा है. इंडो-पैसेफिक में चीन से बड़ा कोई है भी नहीं और ये सच है, लेकिन अब वह दुनिया में भी ये जगह हासिल करना चाहता है."

"साल 2021 में जी7 की बैठक में अमेरिका ने बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड नाम के इनिशिएटिव की शुरुआत की और आज एक साल बाद भी इसमें क्या हो रहा है इसकी किसी को जानकारी नहीं है. अमेरिका और पश्चिमी देशों के कम आय वाले देशों को लेकर बनाई गई नीतियां कई बार बस पेपर पर ही रह जाती हैं. "

चीन के 'डेट ट्रैप' के क्या सबूत हैं?

ब्रिटेन की खुफ़िया एजेंसी एमआई6 के चीफ़ रिचर्ड मरी ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि चीन अन्य देशों को कर्ज़ के जाल में फ़ंसा देता है और फिर उनसे फ़ायदा उठाता है. मरी ने इसके लिए 'डेट ट्रैप' शब्द का इस्तेमाल किया था.

उन्होंने दावा किया कि चीन अन्य देशों को पैसा उधार देता है, और जब ये देश कर्ज़ चुका नहीं पाते तो उन्हें प्रमुख संपत्ति का नियंत्रण छोड़ना पड़ता है हालांकि इस आरोप को बीजिंग लंबे समय से नकाराता रहा है.

चीन के आलोचक इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को बताते हैं.

चीन की मदद से यो पोर्ट तैयार किया गया, लेकिन बिगड़ते आर्थिक हालात और महंगे कर्ज़ के कारण श्रीलंका ये कर्ज़ नहीं लौटा पाया और बदले में चीन ने पोर्ट की 99 साल तक की लीज़ ले ली है और साथ ही भविष्य में और भी निवेश का वादा किया गया.

ब्रिटेन का थिंक टैंक चैटहम हाउस की रिपोर्ट हालांकि इस तरह के दावों पर सवाल उठाती है कि चीन कर्ज़ देकर देशों को मज़बूर करता है.

थिंकटैंक कहता है कि श्रीलंका पर जिनका कर्ज़ सबसे ज़्यादा है वो चीन नहीं है. साथ ही इस तरह का कोई सबूत नहीं है कि पोर्ट की लीज़ लेने के बाद चीन ने इसे अपनी मिलिट्री स्ट्रैटजी के लिए इस्तेमाल किया हो.

डॉ. अहमद कहते हैं, "चीन कम आय वाले देशों को कर्ज़ के जाल (डेट ट्रैप) में फंसा रहा है ये एक पश्चिमी देशों की ओर से फैलाया जा रहा नरेटिव है. उदाहरण के तौर पर श्रीलंका को लें, श्रीलंका पर चढ़े कुल कर्ज़ का 10 फ़ीसदी कर्ज़ चीन का है जो बेल्ट और रोड मुहिम के तहत किया गया है. 2007-08 में श्रीलंका ने हंबनटोटा पोर्ट के लिए अमेरिका से आर्थिक सहायता मांगी थी, अमेरिका ने मना कर दिया, भारत से मांगा था. लेकिन जब नहीं मिला तो चीन से लिया."

"ये जो नरेटिव है कि गरीब देशों को चीन फंसा रहा है तो आख़िर कम आय वाले देशों को भी तो इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए. सवाल तो उठना चाहिए कि विश्व बैंक आखिर क्यों श्रीलंका की मदद के लिए सामने नहीं आया वो भी तब जब वह सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था. इसके नियम इतने कड़े हैं कि कम आय वाले देश इससे कर्ज़ लेने के लिए सोच भी नहीं पाते. वैसे भी श्रीलंका पर सबसे बड़ा कर्ज़ जापान और एशिया डेवेलपमेंट बैंक का है ना कि चीन का."

बाकी देशों से कैसे अलग है चीन का कर्ज़

चीन अपने विदेशी कर्ज़ के रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं करता है, और इसके ज़्यादातर कॉन्ट्रैक्ट ऐसे होते हैं जिसमें कर्ज़ लेने वाले देशों पर डील से जुड़ी जानकारी ज़ाहिर ना करते की शर्त होती है. चीन तर्क देता है कि इस तरह की प्रैक्टिस अंतरराष्ट्रीय कर्ज़ में सामान्य होती है.

हर्ष पंत कहते हैं, "चीन के कर्ज़ के नियमों में कई दांवपेंच होते हैं, वह चाहता है कि देश के अधिकारियों के स्तर पर ही ये बात हो जाए और आम जनता के बीच इसकी चर्चा ना हो. अगर श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट को लेकर किए गए समझौते के बारे में लोगों को पता होता तो लोग इस बात का विरोध करते कि देश की संपत्ति को 99 साल की लीज़ पर दूसरे देश को दिया जाए."

"किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए चीन अपनी डील की शर्तों को गुप्त रखता है."

अधिकांश प्रमुख औद्योगिक देश पेरिस क्लब के नाम से जानी जाने वाले समूह के सदस्त होते हैं और कर्ज़ की गतिविधियों के बारे में जानकारी साझा करते हैं. लेकिन चीन पेरिस क्लब का हिस्सा नहीं है. लेकिन विश्व बैंक के डेटा और चीन की तेज़ी से हो रही वृद्धि को देखते हुए चीन कितना कर्ज़ दे रहा है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है.

क्या चीन को कर्ज़ चुका पाना मुश्किल है?

चीन पश्चिमी देशों की तुलना में मंहगी दर पर कर्ज़ देता है. चीन की कर्ज़ देने की दर 4 फ़ीसदी है जो कमर्शियल बाजार की दर के आस-पास है. ये दर विश्व बैंक की दर से चार गुना ज्यादा है.

चीन कर्ज़ चुकाने की अवधि भी कम देता है जैसे-10 साल से कम का समय. वहीं पश्चिमी देश विकासशील देशों को कर्ज़ चुकाने के लिए 28 साल तक का समय देते हैं.

डॉ. फ़ैसल कहते हैं कि कई बार कम आय वाले देशों के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते है और चूंकि चीन से उन्हें आसानी से कर्ज़ मिल जाता है इसलिए वह चीन के पास जाते हैं. साथ ही चीन ना सिर्फ़ कर्ज़ देता है बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करता है जो पश्चिमी देश नहीं करते. कई बार तो कम आय वाले देश कॉन्ट्रैक्ट की बेहतर समझ ना होने के कारण भी कर्ज़ के जाल में फंस जाते हैं और चीन को कर्ज़ चुका नहीं पाते. (bbc.com/hindi)


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