10 मिनट में डिलीवरी- कमाल या घाटे का जाल?
तेजी से बदलते उपभोक्ता बाजार के बीच, छत्तीसगढ़ में बीते कुछ महीनों से ऑनलाइन खरीदारी का एक नया रेवोल्यूशन आया है—10 मिनट में डिलीवरी। रायपुर में इसकी शुरुआत हुई और अब इसका विस्तार बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई जैसे प्रमुख शहरों तक हो रहा है। जेमको, ब्लिंकईट, बिग बास्केट, इंस्टामार्ट जैसी सेवाएं दिन-रात फल-सब्ज़ी, ग्रॉसरी, स्नैक्स, सौंदर्य प्रसाधन, यहां तक स्टेशनरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान तक की डिलीवरी का वादा कर रही हैं- सिर्फ 10 मिनट में!
पहली नजऱ में यह सुविधा बेहद लुभावनी लगती है। ऐप खोलिए, ऑर्डर करिए और कुछ ही पलों में सामान आपके दरवाजे पर। साथ में भारी छूट, फ्री डिलीवरी जैसे ऑफर भी मिलते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या यह सब कुछ सच में फ्री और सस्ता है, या सिर्फ एक मार्केटिंग का जाल?
वास्तविकता कुछ और ही कहानी कहती है। अंग्रेजी अखबार, द इकॉनामिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ग्राहकों को ऐसी अतिरिक्त राशि चुकानी पड़ रही, जिसका उल्लेख मुख्य बिल में नहीं होता। बिलिंग के वक्त एमआरपी पर छूट दिखाई जाती है, लेकिन जब ग्राहक पूरा रसीद डाउनलोड कर जांच करते हैं तो पता चलता है कि हैंडलिंग, पैकेजिंग, प्रोसेसिंग, और कन्विनियंस चार्ज जैसी अतिरिक्त रकम जोड़ी जा रही है। यहां तक कि बारिश के दौरान या व्यस्त समय पर ऑर्डर करते हैं, तो उसका भी शुल्क अलग से लिया जा रहा है। यानी एक तरफ छूट दिखाकर ग्राहकों को लुभाया जाता है, दूसरी तरफ छुपे शुल्क के ज़रिये अतिरिक्त वसूली की जाती है।
यह उपभोक्ताओं के साथ एक प्रकार की डिजिटल ठगी है। कानून की भाषा में ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’। ऐसे मामलों में ग्राहक जब शिकायत करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें कॉल सेंटर की लंबी लाइन और बॉट चैट की भूलभुलैया में उलझा दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि आम उपभोक्ता ना सही जवाब पाता है, ना संतोष।
दूसरी ओर बाजार में इनके बढ़ते वर्चस्व के चलते स्थानीय किराना दुकानदारों की हालत खस्ता हो रही है। ये वही दुकानदार हैं जिनसे आप सीधे बात कर सकते हैं, खराब सामान की शिकायत कर सकते हैं, उधारी भी मांग सकते हैं। लेकिन 10 मिनट की यह नई सुविधा इनकी कमाई को खा रही है।
नई तकनीक और सुविधा को हम ठुकरा नहीं सकते, न ही बच सकते, पर लुभावने ऑफरों के नाम पर जेब कटवाना भी समझदारी नहीं। इसीलिए—सोचें, समझें और फिर ऑनलाइन ऑर्डर करें।
एक और, नया रायपुर की ओर
डिप्टी सीएम अरुण साव भी बिना किसी तामझाम के नवा रायपुर में शिफ्ट हो गए हैं। नवा रायपुर में उनका सरकारी निवास न्यू सर्किट हाउस के नजदीक है। अगले दो महीने के भीतर बाकी तीन मंत्री भी वहां शिफ्ट हो जाएंगे।
सीएम विष्णु देव साय पहले ही नवा रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं। उनके अलावा पंचायत मंत्री रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, टंकराम वर्मा, श्याम बिहारी जायसवाल, केदार कश्यप, और लक्ष्मी राजवाड़े भी नवा रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं।
डिप्टी सीएम विजय शर्मा, वित्त मंत्री ओपी चौधरी व उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन ही अभी पुराने रायपुर के सरकारी बंगले में निवासरत हैं। इन सभी के सरकारी बंगले में काम चल रहा है। जिसके पूरा होते ही ये भी नवा रायपुर चले जाएंगे।
वैसे तो विधानसभा का शीतकालीन सत्र नए विधानसभा में प्रस्तावित है। नए विधानसभा भवन का उद्घाटन संभवत: राज्य स्थापना दिवस के दिन 1 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी कर सकते हैं। नए विधानसभा भवन की आंतरिक साज सज्जा का काम चल रहा है। यानी आने वाले दिनों में पूरी तरह से सरकार नवा रायपुर से चलेगी।
ट्रांसफर मौसम खतम
सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग अब बंद हो चुकी है। इसकी अंतिम तिथि 30 जून निर्धारित की गई थी। हालांकि बैक डेट में कुछ सूची जारी हो सकती है।
बताते हैं कि ट्रांसफर-पोस्टिंग में भाजपा कार्यकर्ताओं की सिफारिश को महत्व देने के लिए व्यवस्था भी बनाई थी। जिसमें कार्यकर्ताओं को जिला अध्यक्ष को आवेदन देना था। आवेदनों पर जिले की कोर कमेटी में विचार के बाद संबंधित विभाग को भेजा जाना था। रायपुर में तो तबादलों के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल की मौजूदगी में पिछले दिनों एक बैठक हुई थी। इस बैठक में जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर के अलावा मेयर मीनल चौबे, और विधायक राजेश मूणत व मोतीलाल साहू थे। इसमें भी ट्रांसफर आवेदनों पर विस्तार से चर्चा हुई। सूची संबंधित विभाग के मंत्रियों को भेजने पर सहमति बनी थी।
जिलों से अनुशंसा भेजी गई थी, और अनुशंसाओं को महत्व भी दिया गया। हालांकि स्कूल शिक्षा, जैसे आधा दर्जन से अधिक विभागों में तबादलों पर रोक यथावत जारी थी। यही वजह है कि तबादलों के लिए जिलों से कम संख्या में आवेदन आए, और ज्यादा किसी विवाद के ट्रांसफर हो गए।
बिना ट्रेन, सिर्फ स्टेशन !
कांकेर के सांसद भोजराज नाग रेलवे की कार्यप्रणाली से नाखुश हैं। सोमवार को रेलवे की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में उन्होंने खुलकर अपनी बातें रखीं।
नाग ने कहा कि उनके इलाके में रेलवे स्टेशन तो बना दिए गए हैं, और तामझाम से उद्घाटन भी हो गया है। मगर एक भी ट्रेन उनके संसदीय क्षेत्र के स्टेशनों में नहीं रूकती है। ऐसे में स्टेशन बनाने का क्या औचित्य है।
नाग बस्तर की रेल परियोजनाओं पर कहा कि रेलवे के लोग निर्माण कार्य को लेकर काफी बातें करते हैं, लेकिन परियोजना कब तक पूरी होगी। इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन ने भी नाग की बातों का समर्थन किया, और कहा कि रेल परियोजनाओं के पूरा करने की समय-सीमा भी बताई जानी चाहिए।
साधनहीनता के बीच सृजनशीलता
स्कूल प्रांगण में दो छात्र पूरी ताकत लगाकर अपना-अपना गिलास थाली में रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दोनों की कमर एक ही कपड़े से बंधी हुई है—एक की जीत, दूसरे की हार बन सकती है।
खेल का नियम सीधा है। सामने थाली रखी है, बगल में स्टील के गिलास। जो छात्र पहले सारे गिलास थाली में सजा देगा, वही जीतेगा। मगर मज़ा इस बात में है कि एक की कोशिश, दूसरे को पीछे खींच देती है। यह खेल दिमाग, ताकत और संतुलन का मिश्रण है। सोशल मीडिया पर मिली एक वीडियो क्लिप की यह तस्वीर है। प्रांगण से स्पष्ट है कि यह कोई सरकारी स्कूल है, जहां अक्सर ऐसी गतिविधियों के लिए संसाधनों की कमी होती है। मगर यहां मिड डे मील के बर्तनों को खेल का हिस्सा बना लिया गया है।