भारत की कारोबारी दुनिया में गजब का भूचाल आया हुआ है। जब देश में कोई भी एक कारोबारी इतना बड़ा हो जाता है कि उसके अकेले के धंधों से देश की अर्थव्यवस्था तय होने लगती है, जो इतने अलग-अलग किस्म के धंधों में इतना बड़ा बन चुका रहता है कि उसका कोई मुकाबला नहीं रहता, और जिसे बचाने के लिए कारोबार से जुड़ी संवैधानिक और नियामक संस्थाएं एक पैर पर खड़ी रहती हैं, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए अमरीका में वारंट निकल जाना इस देश में भूचाल तो ला ही देता है। फिर अडानी की साख हिन्दुस्तान में कुछ इस किस्म की है कि वह मोदी सरकार की सबसे पसंदीदा, और सबसे चहेती कंपनी है, इसलिए अगर वह अमरीका में धोखाधड़ी और जालसाजी, और दूसरे देश में सरकार को रिश्वत देने वाली अमरीका में रजिस्टर्ड कंपनी है, तो यह भी भारत सरकार की साख पर आंच आने की बात है क्योंकि विपक्ष तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, और अडानी के संबंधों को लेकर बरसों से हमलावर चले ही आ रहा है। देश में ऐसा भी माहौल है कि केन्द्र सरकार इस कंपनी पर बेतहाशा मेहरबान है, और यह कंपनी सरकार में जो चाहे करवा सकती है।
अब अगर हम अमरीकी अदालत में पेश इस ताजा मामले को देखें जिसमें वहां के न्याय विभाग ने गौतम अडानी, उनके भतीजे, और आधा दर्जन दीगर लोगों के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी, और रिश्वत देने का मुकदमा चलाना शुरू किया है, और इन तमाम लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी निकल गए हैं, तो यह हिन्दुस्तान के लिए बहुत फिक्र की बात है। जब किसी एक कारोबारी का आकार इतना दानवाकार हो चुका है, तो फिर उसके जेल जाने के खतरे से देश के बैंक, बाकी वित्तीय संस्थान, शेयर बाजार, और बहुत सी सरकारें हिलने की नौबत आ गई है। केन्द्र की मोदी सरकार से परे देश के दर्जन भर राज्यों में अडानी का राज्य सरकारों से भी कारोबार है, और भारत में सरकारी लोगों को 22 सौ करोड़ रूपए की रिश्वत देने की जो चार्जशीट अमरीकी अदालत में पेश की गई है, उसमें भारत के आन्ध्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, और तमिलनाडु की सरकारों, और सरकारी लोगों पर भी आंच आ रही है। कहने के लिए अब कुछ प्रदेशों के नेता यह कह रहे हैं कि उन्होंने केन्द्र सरकार की एक कंपनी से समझौते किए थे, और सीधे अडानी से समझौता नहीं किया था। लेकिन यह कुछ उसी तरह का मामला है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव में कोयला खदान की लीज तो राजस्थान सरकार को अपने बिजलीघर के मिली है, लेकिन उसे खोदने, और कोयला पहुंचाने का काम राजस्थान की तरफ से अडानी को दिया गया है। और अब अडानी हसदेव में जो कुछ कर रहा है, वह यह तकनीकी आड़़ ले सकता है कि खदान की लीज तो राजस्थान सरकार की है, वह तो वहां सिर्फ मजदूरी कर रहा है, सिर्फ पेड़ों पर कुल्हाड़ी चला रहा है, राजस्थान सरकार के लिए।
पहली नजर में अडानी पर जो तोहमतें लगी हैं वे यह हैं कि चार साल से अडानी भारत में रिश्वत देकर सोलर प्रोजेक्ट के लिए समझौते कर रहा था, और अमरीकी पूंजी बाजार में उसने इन सोलर प्रोजेक्ट का हवाला देकर, मोटी कमाई का भरोसा दिलाकर 24 हजार करोड़ रूपए जुटाए थे, जो पूरी तरह धोखाधड़ी, और जालसाजी से किया गया काम बताया जा रहा है। अमरीकी न्याय विभाग ने अदालत में कहा है कि पूंजी बाजार में अडानी ने अपने खिलाफ चल रही जांच और कानूनी कार्रवाई को पूरी तरह से छुपा लिया था, और एक झूठी तस्वीर पेश करके इतना पैसा इकट्ठा किया। अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई ने गौतम अडानी के भतीजे सागर अडानी की जांच में यह पाया कि अमरीकी निवेशकों और वित्तीय संस्थानों को झूठी जानकारी दी गई। इस जांच में अडानी के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी जब्त किए जा चुके थे। 2020 से 2023 के बीच इन सभी आरोपियों के बीच घूसखोरी की चर्चा वाले ई-मेल आए-गए, और इन लोगों ने मिलकर भी इस पर चर्चा की। जांच एजेंसी ने अदालत को बताया है कि गौतम अडानी और उनके बड़े अधिकारियों ने 2022 में दिल्ली में घूस की साजिश रचने के लिए बैठक भी की थी।
लेकिन अमरीका में जांच एजेंसियों ने, और वहां के पूंजी बाजार के नियामक आयोग ने अडानी को जिस धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोपी ठहराया है, वह बड़ा गंभीर मामला है। अमरीका का कानून वहां की सरकार को यह अधिकार और जिम्मेदारी देता है कि वहां कारोबार करने वाली कंपनी अगर दुनिया के किसी भी देश में रिश्वत देती है, तो उस पर अमरीका में मुकदमा चलाया जा सकता है। यह बड़ा अजीब नौबत है कि भारत में केन्द्र सरकार और आधा दर्जन राज्य सरकारों के लोगों को रिश्वत देने की तोहमत लगी है, उसके सुबूत अदालत में पेश कर दिए गए हैं, अमरीका में मुकदमा चल रहा है, वहां गिरफ्तारी वारंट निकला है, लेकिन भारत में देश या किसी प्रदेश की सरकारों के माथों पर कोई बल नहीं पड़ा है। अमरीका का यह मामला अडानी के लिए इसलिए खतरनाक है कि जिन धाराओं में खुलासे से सुबूत पेश किए गए हैं, उनमें अडानी चाचा-भतीजे के अलावा उनकी कंपनी के आधा दर्जन और लोगों को पांच साल तक की सजा मुमकिन है। इसके साथ-साथ यह भी है कि भारत और अमरीका के बीच प्रत्यर्पण संधि की नौबत और जरूरत उस वक्त आ सकती है जब इन लोगों को भारत में रहते हुए ही अमरीका में सजा हो जाए। कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि भारत सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगाकर अमरीकी राष्ट्रपति के एक विशेषाधिकार का अनुरोध किया है जिसके तहत वे किसी भी मुजरिम की सजा माफ कर सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जाते हुए अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन से उनके बचे हुए हफ्तों में ऐसी कोई अपील कर सकते हैं, और क्या अमरीकी कानून में किसी मुकदमे में मुजरिम साबित होने के पहले भी राष्ट्रपति माफी दे सकते हैं? और क्या अगले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में भारत सरकार की ऐसी किसी संभावित अपील पर भारत से बहुत बड़ा मोलभाव किए बिना ऐसी कोई माफी दे सकते हैं? लेकिन ये तमाम बातें आगे की हैं, फिलहाल तो ऐसा लगता है कि अडानी भारत में रहकर अमरीका में दिग्गज वकीलों के मार्फत अदालती मुकदमा लड़ेंगे।
भारत में राहुल गांधी पिछले कई बरस से अडानी और मोदी के रिश्तों को लेकर असाधारण स्तर के हमलावर बने हुए हैं। अब कांग्रेस पार्टी ने इस पर अडानी की गिरफ्तारी भी मांगी है, और संयुक्त संसदीय समिति की जांच भी। यह केन्द्र सरकार से इतने करीबी रिश्तों वाली, देश के इतने अधिक राज्यों में कारोबार करने वाली, और ऐसी दानवाकार कंपनी है, कि इसकी और कोई मिसाल नहीं हो सकती थी। यह तो अच्छा है कि यह मामला अमरीकी जांच एजेंसियां जांच रही हैं, और अमरीकी अदालत में यह चल रहा है। क्योंकि भारत में ऐसा कुछ भी मुमकिन नहीं था। देखना यह है कि अमरीका में पहली नजर में इस कंपनी के किए हुए जो जुर्म सरीखे काम दिख रहे हैं, वे अगर वहां जुर्म साबित होते हैं, तो फिर अमरीकी एजेंसियों के जुटाए गए सुबूतों पर भारत सरकार, और इसकी प्रदेश सरकारें क्या करेंगी? हमारा तो यह मानना है कि भारत सरकार को तुरंत ही अमरीका सरकार को लिखकर इस मामले के अधिक से अधिक सुबूत मांगने चाहिए क्योंकि भारत सरकार ने संविधान की शपथ ली है, और अगर उसकी जानकारी में यह बात आ रही है कि भारत की किसी कंपनी ने भारत की सरकारों को 22 सौ करोड़ रूपए रिश्वत दी है, तो मोदी सरकार को तुरंत ही इस पर जांच करनी ही चाहिए, संविधान की शपथ सरकार पर यह जिम्मेदारी डालती है कि वह इसे अनदेखा न करे। अडानी का अमरीकी अदालत में जो होना है सो हो, लेकिन भारत ने अगर अमरीका से तुरंत सुबूत नहीं मांगे, और उन सुबूतों पर इस देश में अगर कोई कानूनी कार्रवाई बनती है, उसे शुरू नहीं किया, तो भारत सरकार खुद शक के बादलों तले रहेगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)