राजपथ - जनपथ
पान मसाले का हमला आदिवासियों पर
अब एक नया पान मसाला, जय जोहार, बाजार में आया है जिसका नारा है, हर जुबां पे जय जोहार! आमतौर पर आदिवासियों के बीच अभिवादन के लिए जय जोहार का इस्तेमाल होता है। और आदिवासियों से जुड़े एक ट्विटर पेज पर उनके अभिवादन के ऐसे बाजारू इस्तेमाल का विरोध किया गया है और लिखा गया है कि इसके मालिक का मकसद पैसा कमाना है, या इस शब्द को प्रदूषित करने के लिए इसे ब्रांड बनाया गया है? बहुत से लोगों ने इस पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। एक ने लिखा है कि जीवन देने वाली प्रकृति की जय बोलने वाले शब्द के नाम से जीवन लेने वाला पान मसाला बेच रहे हैं दुष्ट लोग।
भारत क्या है? कंपनी, सरकार, या देश?
अडानी को लेकर दुनिया के सबसे बड़े पूंजीनिवेशक जॉर्ज सोरोस ने मोदी सरकार की आलोचना की, तो सरकार की तरफ से केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे भारत पर गोरों का हमला करार दे दिया। अडानी पहले ही अपने पर लगे आरोपों को भारत पर हमला करार दे चुके हैं। भारत इन सबसे बहुत बड़ा है। वह एक देश है, एक पूरी संस्कृति है, एक पूरी सभ्यता है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी है। इसकी खामियों पर अगर कोई विदेशी कुछ कहते हैं, तो वह इस देश पर हमला नहीं होता, वह आत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन का एक मौका होता है। जॉर्ज सोरोस अकेले नहीं हैं जिन्होंने अडानी के मामले में भारत सरकार के रूख को लेकर फिक्र जाहिर की है। कल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी केन्द्र सरकार की यह अपील खारिज कर दी कि अडानी की जांच किनसे करवाई जाए, वे नाम सीलबंद लिफाफे में केन्द्र सरकार दे रही है। सुप्रीम कोर्ट ने यह लिफाफा छूने से ही इंकार कर दिया, और कहा कि वह इस मामले में खुली कार्रवाई करना चाहती है, सरकार के सुझाए नाम देखना भी नहीं चाहती। जॉर्ज सोरोस के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की बारी है कि कोई उसके खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ले?
अफसरों की तुन तुन तुनक मिजाजी
इन दिनों जगह-जगह मेलों का माहौल है, सरकारी महोत्सव भी चल रहे हैं। उत्सव शानदार तरीके से बिना व्यवधान निपटे इसके लिए अफसरों को बेहद मेहनत करनी पड़ती है। मैनपाट में महोत्सव के आखिरी दिन मशहूर पंजाबी गायक दलेर मेंहदी का प्रोग्राम रखा गया। कलेक्टर कुंदन कुमार, एसपी भावना गुप्ता, फिर उनकी देखा देखी जिले के तमाम बड़े अफसर मंच पर चढ़ गए और तुनक..तुनक..तुन ता ना ना ना पर जमकर थिरके। ठीक है, आखिरी दिन थकान मिटाने के लिए यह जरूरी लगा हो, पर अफसर ऐसी आजादी अपने मातहतों को भी क्यों नहीं देते? सडक़, चौक-चौराहों पर धूप-बारिश में घंटो खड़े रहकर कड़ी ड्यूटी करने वाले सिपाही, इंजीनियर या नीचे लेवल के दूसरे कर्मचारी जब ऐसा करते हैं तो उन्हें ड्यूटी मे लापरवाही के रूप में दर्ज किया जाता है। कलेक्टर एसपी के डांस में तो दर्जनों कैमरे लगे थे। पर यदि कोई छोटा कर्मचारी या जवाव सोशल मीडिया पर आधा-एक मिनट का रील भी बनाकर डाल दे तो उसे तुरंत सस्पेंड लेटर थमाकर अनुशासन का पाठ पढ़ा दिया जाता है।
दशकों बाद सीधी बस सर्विस
नारायणपुर और बैलाडीला के बीच हाल में सीधी बस सेवा शुरू हो गई है। पहले इस सफर में निकलने से पहले लोगों को दस बार सोचना पड़ता था। दूरी 250 किलोमीटर और कोई सीधी बस भी नहीं। दंतेवाड़ा से जगदलपुर, फिर कोंडागांव उसके बाद कोंडागांव से नारायणपुर। अब दशकों के बाद बारसुर-पल्ली की सडक़ बन गई है। दो चार किलोमीटर का ही काम बाकी है, पर इसी महीने से बसें दौडऩे लगी है। इससे दूरी 100 किमी घटकर 150 किलोमीटर रह गई है। बैलाडीला से नारायणपुर के लिए सुबह की बस दोपहर में और दोपहर की बस शाम तक पांच से छह घंटे में तय हो रही है। इस सडक़ को पूरा करने में सुरक्षा बलों को भी लगातार पहरेदारी करनी पड़ी। स्थानीय आदिवासियों का प्रशासन के प्रति भरोसा बढ़ाने में यह नई सडक़ मददगार हो सकती है।
जेल जैसे बालक छात्रावास
दंतेवाड़ा जिले के हितावर के बालक आश्रम में 13 साल के बच्चे ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। किस वजह से उसने यह कदम उठाया, प्रशासन इसकी जांच करा रहा है। सरकारी छात्रावास में छात्रों को कैसा घटिया भोजन दिया जाता है, इसकी तस्वीर बस्तर के ही विश्रामपुरी से सामने आई थी, थोड़ा सा चावल और पतली दाल के अलावा कुछ नहीं। बीते सप्ताह कटघोरा के एकलव्य आश्रम में सीनियर छात्रों के हाथों छोटे बच्चों को टीचर ने पिटवाया था। दोनों घटनाएं इसी माह की हैं और इस कॉलम में उनका जिक्र हुआ था। तीनों घटनाएं आदिवासी समुदाय के छात्रों से जुड़ी हैं। प्राय: आश्रम में उन छात्रों को पढऩे के लिए पालक भेजते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति प्राय: बेहद कमजोर होती है। इन बच्चों के साथ एक दबाव होता है कि वे घर न जाएं, परिस्थिति विषम हो तब भी छात्रावास में रहकर ही पढ़े। भोजन घटिया हो, शिक्षक पीटें तब भी। आदिवासी विकास विभाग को इन छात्रावासों के लिए करोड़ों का बजट आवंटित किया जाता है। अफसरों की खूब कमाई वाला विभाग माना जाता है। इनको और इस विभाग के मंत्री थोड़ा समय निकालकर इन छात्रावासों की हालत का जायजा लें और बच्चों के बजट पर नजर न गड़ाएं तो हो सकता है ऐसी घटनाएं कम हों।
देखना है अब छत्तीसगढ़ से कौन...
कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव होगा या नहीं, इस पर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। इसका फैसला पार्टी की स्टीयरिंग कमेटी की बैठक में होगा। चुनाव होने की स्थिति में एआईसीसी सदस्य वोट डालते हैं। समिति के दर्जनभर सदस्यों का निर्वाचन होता है। बाकी 11 सदस्य अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाते हैं।
आखिरी बार चुनाव वर्ष-1997 में हुए थे तब सीताराम केसरी अध्यक्ष थे। उस समय ऑस्कर फर्नाडीज चुनाव समिति के प्रमुख थे। तब अविभाजित मध्यप्रदेश से तीन प्रमुख नेता अर्जुन सिंह, कमलनाथ, और विद्याचरण शुक्ल ने एआईसीसी सदस्य का चुनाव लड़ा था।
मध्यप्रदेश कांग्रेस का संगठन और तत्कालीन सीएम दिग्विजय़ सिंह ने अर्जुन सिंह व कमलनाथ के लिए जोर लगाया था। इसमें दूसरे राज्यों के सदस्यों का समर्थन जरूरी होता है। इसके लिए अपने समर्थकों के वोट ट्रांसफर करने होते हैं। ऐसे में विद्याचरण शुक्ल उस वक्त कांग्रेस की राजनीति के अंकगणित के लिहाज से फिट नहीं बैठ पा रहे थे। गांधी परिवार से तो अनबन थी ही। हवाला कांड के बाद से नरसिम्ह राव से भी संबंध बिगड़ गए थे।
कुल मिलाकर विद्याचरण शुक्ल की हैसियत निर्दलीय प्रत्याशी की थी। चुनाव तो नहीं जीत पाए, लेकिन उन्होंने अपने दमखम पर सौ से अधिक वोट हासिल किए। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अकेले मोतीलाल वोरा ही कांगे्रस कार्यसमिति के स्थाई सदस्य रहे। अजीत जोगी को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में जगह मिली थी। अब देखना है कि कांग्रेस की सबसे पॉवरफुल समिति में छत्तीसगढ़ किस नेता को जगह मिलती है।
रायपुर अधिवेशन का असर जयपुर में?
रायपुर में होने जा रहे अखिल भारतीय अधिवेशन के बाद क्या कुछ बदलाव दिखाई देगा। छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के सीएम की बात अब पुरानी बात हो गई। मगर, राजस्थान के सचिन पायलट समर्थक एक बार फिर दावा करने लगे हैं। अधिवेशन में आ रहे एक विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा ने मीडिया के सामने दावा किया है। उनके मुताबिक हाईकमान ने तय कर लिया है कि रायपुर सम्मेलन के बाद सीएम बदल दिया जाएगा। बैरवा कह रहे हैं कि मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिक्स डिपॉजिट हैं तो सचिन पायलट वर्किंग कैपिटल। अधिवेशन के पहले सचिन पायलट ने भी हाईकमान पर सवाल उठाते हुए कहा है कि विधायक दल की बैठक में, जिसमें नए मुख्यमंत्री पर विचार किया जाना था- नहीं पहुंचने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में साथ-साथ चुनाव होने वाले हैं। चुनावी साल में मुख्यमंत्री बदलने का नतीजा हाल ही में कांग्रेस ने पंजाब में देख लिया है।
अब राजकीय गंध की बारी!
दुनिया के देशों में आमतौर पर राष्ट्रीय झंडा, राष्ट्रगीत, राष्ट्रपशु, राष्ट्रीयपक्षी जैसी चीजें तय होती हैं। हिन्दुस्तान में भी इनमें से सबकुछ है। अब मैक्सिको ऐसा पहला देश है जिसने अपनी विख्यात हरी मिर्च की गंध को राष्ट्रीय गंध घोषित किया है। इसके पहले किसी देश ने कोई गंध इस तरह से तय नहीं की थी। अब इसे लेकर हिन्दुस्तान जितने बड़े और विविधता वाले देश में कोई एक गंध तय करना तो मुमकिन नहीं है, लेकिन यहां के अलग-अलग राज्य अलग-अलग गंध को अपनी राजकीय गंध बना सकते हैं। दक्षिण के कुछ राज्यों में सांबर के मसालों की गंध के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है, और कई राज्य इसे राजकीय गंध बनाने के लिए भिड़ सकते हैं। बंगाल के लिए मछली की गंध सुझाना पता नहीं बंगालियों को पसंद आएगा या नहीं। दिल्ली के लिए डीजल के धुएं से बेहतर किसी गंध का राजकीय होने का दावा नहीं हो सकता। पंजाब में ताजे मक्खन की गंध, कश्मीर में केसर की, कर्नाटक में चंदन की, और लखनऊ में मुगलई खाने की गंध को मुकाबला देना मुश्किल होगा। इस चर्चा में छत्तीसगढ़ जैसे राज्य को देखें, तो यहां सडक़ों पर तम्बाकू-गुटखा खाकर लोटाभर थूकने वाले लोगों की पीक की गंध चारों तरफ छाई रहती है, और यहां का चावल तो अब बिना खुशबू के होने लगा है, इसलिए शायद तम्बाकू और लार की मिलीजुली गंध ही राजकीय गंध हो सकती है। लोग आपस में यह पहेली खेल सकते हैं कि किस राज्य में कौन सी गंध राजकीय बनाई जाए।
ऑनलाईन में बर्बादी
लोगों को लगता है कि ऑनलाईन खरीददारी से दुकानों की बिजली बचती है, और लोगों का दुकान तक जाने-आने का पेट्रोल भी। लेकिन सच तो यह है कि ऑनलाईन खरीदी से घर आने वाला सामान कई बार पैकिंग का इतना कचरा लेकर आता है कि वह धरती पर बहुत बड़ा बोझ बनता है। ट्विटर पर अभी कार्तिक नाम के एक व्यक्ति ने अपने घर पहुंची एक पार्सल की फोटो पोस्ट की है कि लिपिस्टिक के साईज की होठों पर लगाने की वेसलीन के लिए अमेजान ने कितना बड़ा बक्सा भेजा है। उन्होंने लिखा कि इससे छोटी पैकिंग नहीं हो सकती थी?
...की खरीददारी में ही समझदारी है?
एक अडानी की इन दिनों शेयर बाजार में चल रही बर्बादी का नतीजा यह हुआ है कि लोगों की दिलचस्पी पूरे शेयर बाजार से ही हट गई दिखती है। और शेयर बाजार से सोने के बाजार का सीधा लेना-देना रहता है। जब शेयर बाजार नीचे गिरता है, शेयर की साख गिरती है, लोग सोने की तरफ जाते हैं। सोना एक बड़ा सुरक्षित पूंजीनिवेश माना जाता है जिसमें रातोंरात सपने तो पूरे नहीं होते, लेकिन जो लंबे समय के पूंजीनिवेश पर कभी धोखा नहीं देता। इन दिनों छत्तीसगढ़ में ईडी और आईटी की जांच के चलते नेताओं और अफसरों में, और उनके परिवारों में जमीनों में पूंजीनिवेश भी खतरनाक माना जा रहा है। कुछ जमीनें बेचने वाले भी अफसरों से परहेज कर रहे हैं कि नगद हिस्से के लेन-देन में एक खतरा बने रहेगा, किसी दिन अफसर पर छापा पड़ेगा तो बेचने वाला भी गिरफ्त में आएगा। इसलिए भी आज बाजार में सोना ही अकेला सुरक्षित रह गया है, और आयकर नियमों के तहत जितना सोना परिवार के एक-एक व्यक्ति के नाम पर रखा जा सकता है, उस सीमा तक पहुंचा जा रहा है। सोने का बाजार शेयर बाजार की तरह कभी धड़ाम नहीं होता, और न ही उसकी खरीदी को जमीन की रजिस्ट्री की तरह रजिस्ट्री ऑफिस में दर्ज करवाना होता है। कम जगह में अधिक रकम का सोना आ सकता है, और यह कब खरीदा गया है, इसका भी कोई इतिहास दर्ज नहीं होता है।
इन शिक्षकों से कैसे बचें बालक?
छोटे बच्चों के साथ शिक्षकों के क्रूर बर्ताव की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इस महीने की शुरुआत में तीन अलग-अलग घटनाएं सामने आई थीं। गरियाबंद जिले के एक स्कूल में पांचवी कक्षा के बच्चे की गर्दन पर शिक्षिका ने माचिस की तीली दाग दी थी। कटघोरा के एकलव्य आदर्श विद्यालय के छात्रावास में एक छात्र को शिक्षक ने सीनियर छात्रों से चप्पल से पिटवाया था। जांजगीर-चांपा जिले के आत्मानंद स्कूल के दो बच्चे लंच टाइम में देर से पहुंचे तो उन्हें भी शिक्षक ने जमकर पीटा। उनके हाथ, पीठ में सूजन आ गई थी। अब चौथी घटना महासमुंद जिले के पझरापाली प्राथमिक स्कूल की सामने आई है। तीसरी की छात्रा प्रार्थना के समय नहीं पहुंच पाई। देर हुई तो शिक्षक ने उसे 60 बार उठक-बैठक लगाने का फरमान दे दिया। नन्हीं सी जान ने डर के चलते सजा तो पूरी भुगत ली लेकिन उसके पैरों में सूजन आ गई। वह खड़ी नहीं हो पा रही थी। ये तो कुछ मामले हैं, जो सामने आ गए और जिनमें निलंबन या जांच का आदेश हुआ है। ऐसी बहुत सी घटनाएं बच्चे या तो घर में नहीं बता पाते होंगे, या फिर पालक तक पहुंचने के बाद भी शिकायत नहीं होती होगी। शिक्षा को नवाचार से जोडक़र हल्के-फुल्के माहौल में पढ़ाई कराने का दावा विभाग के अधिकारी करते हैं, पर ऐसा हो नहीं रहा है। स्कूली शिक्षा की छत्तीसगढ़ में कितनी बदतर स्थिति है यह असर की रिपोर्ट में सामने आ चुका है। सर्वेक्षण में अपना प्रदेश 26वें नंबर पर रखा गया।
शिक्षक नागमणि के चक्कर में
नागमणि को लेकर देश के अलग-अलग हिस्से में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। छत्तीसगढ़ में भी एक से अधिक लोक कथाएं हैं। मनुज नाम का एक राजकुमार नागमणि की मदद से जल में उतरता है और नाग को परास्त कर नागकन्या को प्राप्त करता है। इस पर चिकित्सकीय शोध तो यही है कि सर्पदंश से बचाने के काम आता है। पर इसके मिलने का सही सही दावा कोई नहीं कर पाया। प्रचलित दंत कथाओं ने इसे अलादीन के चिराग का दर्जा दे दिया है। इनमें दावा किया जाता है कि इसमें अलौकिक शक्तियां होती है। जिसके पास है वह अमीर हो जाएगा। उन पर कोई विष काम नहीं करेगा और लंबी आयु मिलेगी।
अब आज के दौर में ही सांपों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं, दुर्लभ नागमणि के होने और मिलने का दावा करना भी अजीब है। पर दावा भी किया जा रहा है और उस पर यकीन भी। जीपीएम जिले के एक रिटायर्ड शिक्षक, जिसने निश्चित रूप से अपने सेवाकाल में विज्ञान और जंतुविज्ञान पढ़ा होगा, बच्चों को पढ़ाया होगा, उसे आसानी से नागमणि बेचने के नाम पर ठग लिया गया। नागमणि पाने के लालच में वह 15 लाख रुपये गंवा बैठा। उनके पास सेवानिवृत्ति की पेंशन थी, 15 लाख जैसी बड़ी रकम उनके खाते में थी, फिर पता नहीं क्या इच्छा बची रह गई थी कि नागमणि के पीछे भाग गए। इन दिनों ऑफलाइन और ऑनलाइन ठगी के चकित करने वाले इतने तरह के मामले सामने आ रहे हैं कि इन पर भी शोध किया जा सकता है। ([email protected])
चावला ने सुबूत माँगे !
एआईसीसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, और प्रदेश के प्रभारी महामंत्री अमरजीत चावला को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने का आरोप लगाकर नोटिस तो जारी कर दिया है, लेकिन कार्रवाई आसान नहीं है। नेताम ने तो एक तरह से पार्टी छोड़ दिया था, और उन्होंने भानुप्रतापपुर चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी का समर्थन किया था। ऐसे में उन्हें नोटिस की परवाह नहीं है, और वो जवाब देंगे, इसकी संभावना भी कम है। लेकिन चावला का मामला एकदम अलग है।
चावला को तीन बिंदुओं पर जवाब देने के लिए कहा गया। सुनते हैं कि चावला ने अनुशासन कमेटी के अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपने खिलाफ आरोपों के प्रमाण उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। ताकि जवाब देने में सहुलियत हो सके। कुल मिलाकर मामला उलझ गया है। अनुशासन कमेटी के अध्यक्ष तारिक अनवर ने कहा कि जवाब मिलने के बाद कमेटी की बैठक होगी, इसमें जवाब का परीक्षण किया जाएगा। संतोष जनक जवाब न मिलने पर कार्रवाई होगी। चर्चा है कि पार्टी के कई सीनियर नेता चावला के समर्थन में आगे आ गए हैं। यही नहीं, चावला को तीन कमेटियों का संयोजक बनाया गया है। ऐसे में अधिवेशन निपटने तक कुछ होने की संभावना क्षीण नजर रही है।
मामला डीएमएफ तक पहुँच ही गया
ईडी ने बुधवार को कोरबा जिला दफ्तर में दबिश देकर दस्तावेज खंगाले हैं। बताते हैं कि ईडी की टीम वेंडरों की सूची लेकर पहुंची थी, और डीएमएफ से भुगतान की बारीक पड़ताल की। पिछले तीन साल में डीएमएफ से भुगतान से जुड़े दस्तावेज खंगाले गए हैं। ईडी सूत्रों का दावा है कि ये वेंडर सूर्यकांत तिवारी के नजदीक रहे हैं, और उनके इशारे में ऑर्डर और भुगतान किया गया है। कुछ चुनिंदा वेंडरों को कई जिलों में काम दिया गया। कमिशन की राशि भी सूर्यकांत और उनसे जुड़े लोगों तक पहुंची है। ईडी की टीम कुछ और जिलों में दबिश दे सकती है। अब इसमें सच्चाई कितनी है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
मोहब्बत फैलाती दारू
सोशल मीडिया पर अभी उत्तरप्रदेश की बनी हुई देशी शराब की एक बोतल सामने आई। बाजार के तौर-तरीकों के मुताबिक अब सामानों के दाम बढ़ाने के पहले उनके वजन और आकार को कम करने का काम किया जाता है ताकि लोगों पर एकदम से चोट पहुंची हुई न लगे। इसी के मुताबिक देशी दारू का यह पौव्वा ढाई सौ एमएल के बजाय दो सौ एमएल का है। सहारनपुर की बनी हुई यह शराब लगता है कि उत्तरप्रदेश का ब्रांड है जिसका नाम बड़ा दिलचस्प है। डार्लिंग नाम की यह देशी दारू अपने नाम के मुताबिक मसालेदार है। अब जब दारू बनाने, बेचने, और पीने की बात हो, तो फिर भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्व आंखें बंद कर लेते हैं। डार्लिंग नाम से उन लोगों की भावनाएं भी आहत नहीं हो रहीं, जो अभी परसों ही प्रेमी-प्रेमिकाओं को पीटकर हटे हैं। फिर भी एक हिसाब से यह नाम अच्छा है कि इससे मोहब्बत निकलती है, नफरत नहीं।
इन दोनों की सोच एक!
भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अपनी पार्टी के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार से असहमत चलते रहते हैं, और वे एक किस्म से घरेलू ऑडिटर सरीखे हैं जो कि पार्टी की और सरकार की गलतियों को गिनाते रहते हैं। वे घोर हिन्दुत्ववादी, मंदिरमार्गी, और कम्युनिस्टों से नफरत करने वाले हैं। वे चीन के साथ भारत के संबंधों के सख्त खिलाफ भी हैं, और चीनी सरहद पर मोदी सरकार की चुप्पी के खिलाफ लगातार हमले भी करते हैं। लेकिन एक मामले में वे भारत के माओवादी नक्सलियों के साथ एक तरह की सोच रखते हैं।
सुब्रमण्यम स्वामी लगातार अडानी के खिलाफ हमला बोल रहे हैं, और उन्होंने यह खुली मांग की है कि अडानी के तमाम कारोबार का राष्ट्रीयकरण किया जाए। दूसरी तरफ कल बस्तर में दंडकारण्य माओवादी कमेटी ने एक बयान जारी करके अडानी की सारी सम्पत्ति के राष्ट्रीयकरण की मांग की है। नक्सलियों ने अडानी के खिलाफ जितने तरह के आरोप लगाए हैं, वे ही सारे आरोप सुब्रमण्यम स्वामी भी लगाते हैं। अब अडानी के मामले में देश के नक्सली और देश के सबसे कट्टर हिन्दुत्ववादी सुब्रमण्यम स्वामी बिल्कुल एक तरह की सोच रख रहे हैं।
नेताओं के कान खड़े
दुर्ग के पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव जनता के बीच के कई मुद्दों को लेकर अभियान चलाते रहते हैं, लेकिन कल तो कमाल ही हो गया, वे साइकिल पर दौरा करने निकले, तो वर्दी में ही उनके गले में लोग ढेर सी फूलमालाएं डालकर सेल्फी लेने लगे। अब ऐसे में नेताओं के कान खड़े होना स्वाभाविक रहता है क्योंकि इस प्रदेश में कई भूतपूर्व अफसर चुनावी मैदान में हाथ आजमाते आए हैं।
युवाओं का हाथी बचाओ दल
पहली बार हाथियों को कोरबा और बिलासपुर जिले के नए इलाकों में देखा गया है। ये हाथी धरमजयगढ़ से सक्ती जांजगीर होते हुए सीपत तक आए और कटघोरा वनमंडल होते हुए कोरबा शहर के नजदीक पहुंच गए। अब ये फिर दोबारा धरमजयगढ़ की ओर बढ़ गए हैं। बीते कुछ सालों में झारखंड की ओर हाथियों की आमद बढ़ी है। बीते एक दो सालों से हाथियों की मौत की घटनाएं बढ़ रही है। फसल को बचाने ग्रामीण करंट लगा रहे या जहर दे रहे हैं। इस चिंताजनक स्थिति के बीच धरमजयगढ़ में एक नई पहल हुई है। यहां के एक दर्जन गांव हाथियों से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। वन विभाग का मैदानी अमला पहुंचा तो ठीक वरना ग्रामीण इन हाथियों को एक इलाके से दूसरे इलाकों में खदेड़ते हैं। इससे ग्रामीण भी हताहत होते हैं और हाथियों को भी चोट पहुंचती है। अब यहां के करीब एक दर्जन युवकों ने एक समूह बनाया है। वे खेतों में घूम-घूमकर पता लगाते हैं कि कहीं करंट प्रवाहित बाड़ तो नहीं लगाई गई है। ग्रामीणों को इसे निकालने के लिए कहते हैं। इनका कहना है कि हाथी हर बार फसल को जानबूझकर नुकसान नहीं पहुंचाते, इधर-उधर खदेडऩे के कारण ऐसी नौबत आती है। वे पेड़ों में लगे फल और पत्तियों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं। इन युवकों ने यह जिम्मेदारी उठाई है कि हाथियों का दल यदि आगे बढऩा चाहते हैं तो उन्हें सुरक्षित रास्ता दिया जाए। यदि कहीं ठहरना चाहता है तो भी उन्हें छेड़ा न जाए। इससे फसल और घरों को नुकसान कम होगा। ये युवक रात में भी गश्त लगा रहे हैं।
आकर्षक कठपुतलियां
कठपुतली कला अब विलुप्त होती जा रही है। पहले कलाकार, जो प्राय: राजस्थान और मध्यप्रदेश से आते थे स्कूलों और चौक-चौराहों में कठपुतलियों के नृत्य, नाटक आदि दिखाते थे, जिनमें अच्छी भीड़ भी उमड़ती थी। मनोरंजन के साथ-साथ इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा के संदेश भी दिए जाते थे। यह तस्वीर मैनपाट में हुए महोत्सव की है जहां 14 फीट ऊंची कठपुतलियों ने सबका ध्यान खींचा। बिलासपुर की किरण मोइत्रा इस कला को बचाए रखने के काम में लगी रहती हैं।
ब्लू टिक मिलने की बधाई
ट्वीटर अकाउंट पर ब्लू टिक मिल जाना अब स्टेटस सिंबल के तौर पर गिना जा रहा है। इन दिनों इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई जानी-मानी हस्तियां ही नहीं आम लोग भी बधाई ले-दे रहे हैं। खुशी जता रहे हैं कि उन्हें ब्लू टिक मिल गया। वैसे यह सिर्फ 900 रुपये का कमाल है। हां, ट्विटर के पास अपना पहचान-पत्र और फोन नंबर जरूर शेयर करना होगा।
खुश रखने हर संभव उपाय
भय बिन होत प्रीत, यह कहावत एक संस्थान के प्रमुख पर फिट बैठ रही है। सरकार ने कुछ समय पहले संस्थान में कुछ और राजनीतिक नियुक्तियां की। नए नवेले संचालकों ने साधन-सुविधा के लिए प्रमुख से गुहार लगाई, तो उन्होंने प्रावधान न होने की बात कहकर टरका दिया।
संचालकों में एक तेज तर्रार युवा किसान नेता भी हैं। उन्हें संस्थान में करोड़ों के घोटाले का पता चला। किसान नेता ने खामोशी से दस्तावेज भी जुटा लिए। उसे यह भी जानकारी मिल गई कि संस्थान के प्रमुख ने अपने लिए काफ़ी कुछ बनाए हैं। फिर क्या था, किसान नेता के एक-दो अफसरों के मार्फत संस्थान प्रमुख तक भ्रष्टाचार की जानकारी भेजी।
और यह भी कहलवा दिया कि देर सवेर वो दाऊजी तक जानकारी भिजवाएंगे। पोल खुलने से हड़बड़ाए संस्थान प्रमुख ने तुरंत अफसरों को संचालकों के लिए साधन-सुविधाएं देने के निर्देश दिए। नई नवेली इनोवा खरीदी जा रही है। संचालकों को खुश रखने के लिए संस्थान के अफसर हर संभव उपाय कर रहे हैं। फिलहाल तो संचालक संतुष्ट दिख रहे हैं, लेकिन कब तक ऐसा रहेंगे यह देखने वाली बात होगी।
गिले-शिकवे दूर
चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी में छत्तीस का आंकड़ा है। सुंदरानी, पारवानी को बुरा भला कहने से नहीं चुकते रहे हैं। पारवानी को रायपुर उत्तर से भाजपा की टिकट का दावेदार माना जाता है। अब नई खबर यह है कि दोनों के बीच सुलह हो गई है।
पिछले दिनों गोवा में एक शादी समारोह में श्रीचंद सुंदरानी, और पारवानी ने आपस में बैठकर गिले शिकवे दूर किए। सुनते हैं कि दोनों के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों में से जिसे भी टिकट मिलेगी, उसके पक्ष में काम करेंगे। पारवानी, और सुंदरानी के इस सुलह -समझौते की पार्टी हल्कों में खूब चर्चा हो रही है।
अधिवेशन से पहले गुटबाजी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को अनदेखा कर बाकी बड़े नेताओं का पोस्टर-बैनर लगवाना मेयर एजाज ढेबर को भारी पड़ गया। मरकाम समर्थकों ने एयरपोर्ट मार्ग पर जगह-जगह कटआउट, और पोस्टर की तरफ प्रदेश प्रभारी शैलजा का ध्यान आकृष्ट कराया, और यह बताया कि एआईसीसी अधिवेशन की स्वागत समिति का चेयरमैन होने के बावजूद मरकाम की तस्वीर जानबूझकर गायब कर दी गई है।
प्रदेश प्रभारी शैलजा इससे काफी खफा हुई, उन्होंने ऐसे सभी बैनर-पोस्टर को हटाने के निर्देश दिए। साथ ही इसके लिए जिम्मेदार नेता को नोटिस देने के लिए कहा। नोटिस जारी करने की जिम्मेदारी महामंत्री प्रशासन रवि घोष पर थी। चर्चा है कि नोटिस की खबर मिलते ही मेयर एजाज ढेबर राजीव भवन पहुंचे, और उन्होंने बड़े नेताओं को सफाई देकर नोटिस जारी न करने का आग्रह किया। बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद नोटिस तो रूक गया, लेकिन अधिवेशन से पहले गुटबाजी की गूंज दूर तक सुनाई दी। देखना है आगे क्या होता है।
पीएससी के ऐसे अनोखे सवाल!
छत्तीसगढ़ पीएससी के इम्तिहान में अभी दो दिन पहले जो सवाल पूछे गए वे लोगों को हक्का-बक्का कर गए। राज्य के कुछ सरकारी कार्यक्रमों से जुड़े हुए इतने छोटे-छोटे और महत्वहीन सवाल थे कि जिन्हें पहले से उनके जवाब मालूम हों, महज वे ही लोग इनके जवाब दे सकते थे। इनका किसी सामान्य ज्ञान से भी कोई लेना-देना नहीं था, और न ही किसी और किस्म के ज्ञान से। ऐसे सवाल किसी संस्था की साख को कम करते हैं क्योंकि उम्मीद से परे के ऐसे महत्वहीन सवालों की तैयारी तो कोई कर नहीं सकते थे। अब इनके पीछे मकसद क्या था, यह तो पता नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे ही सवालों के जवाब देकर बाजी मार ले जाते हैं।
एक सवाल यह भी था कि गिल्ली-डंडा के खेल में गिल्ली की लंबाई कितनी होती है, और यह भी था कि गिल्ली-डंडा मुकाबले के निर्णायक को क्या कहा जाता है। एक सवाल यह था कि मुख्यमंत्री ने राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में किस तारीख को भेंट-मुलाकात कार्यक्रम किया, इसके चार जवाब में से सही को छांटना था। अब मुख्यमंत्री सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में दौरा कर रहे हैं, ऐसे में किसी एक विधानसभा क्षेत्र के दौरे की तारीख को याद रखना कितना महत्वपूर्ण होना चाहिए था? पीएससी के मुकाबले बहुत महत्वपूर्ण।
कहीं खुशी, कहीं गम
छत्तीसगढ़ की गवर्नर अनुसुईया उईके को यहां से मणिपुर भेजा गया, तो लोगों को हैरानी हुई क्योंकि वे तो राज्य की कांग्रेस सरकार से ठीक-ठाक टकराव चला रही थीं। और जाहिर है कि कोई भी राजभवन ऐसे टकराव केन्द्र सरकार के तय किए हुए ही चला सकते हैं, खुद होकर नहीं। और बंगाल में वहां के राज्यपाल ने जिस तरह ममता बैनर्जी से टकराव जारी रखा था, उसी ने उन्हें उपराष्ट्रपति तक बना दिया। ऐसे में कोई जाहिर वजह नहीं थी कि अनुसुईया उईके को छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्य से हटाकर मणिपुर जैसे महत्वहीन राज्य में भेजा जाए। खैर, जो भी वजह हो, उन्हें बिदा करने अभी छत्तीसगढ़ महिला आयोग का एक प्रतिनिधि मंडल पहुंचा, तो इनमें से हर किसी के चेहरे खिले हुए थे, और तस्वीर में सिर्फ राज्यपाल का चेहरा मुरझाया हुआ था। फोटो देखकर यह समझ पड़ रहा था कि इस तबादले से खुश कौन हैं, और ऐसी बिदाई से उदास कौन है।
ऑनलाइन ठगों का काम भी अब आसान
फोन वालेट के जरिये रुपये ट्रांसफर करना बहुत आसान है। बस कुछ बटन दबाएं और बैंक खाते में दर्ज फोन नंबर के आधार पर सामने वाले को रकम मिल जाती है। पर इसी सहूलियत ने ठगी का काम भी आसान कर दिया है। छत्तीसगढ़ के एक शख्स को किसी इन्फोएज डॉट काम की ओर से नौकरी दिलाने का झांसा दिया गया। 6 नवंबर से एक दिसंबर के बीच उसने लेटर जारी करने के नाम पर जब 65 हजार रुपये वसूल लिए तब ठगी का अंदाजा लगा। यह पोस्ट इसलिए है ताकि आप सजग रहें और इस तरह के झांसे में आने से बचें।
लोकल में मेल का किराया
कोविड काल में लोकल पैसेंजर ट्रेनों को बंद कर दिया गया था। एक्सप्रेस ट्रेनों में भी बिना रिजर्वेशन सफर करने की सुविधा नहीं दी जा रही थी। बाद में मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल डिब्बे लगाए गए। इसका किराया लोकल पैसेंजर ट्रेनों से लगभग दो गुना होता है। अब दो साल बीत गए पैसेंजर ट्रेनों को चालू किया जा चुका है पर किराया मेल या एक्सप्रेस ट्रेन का ही लिया जा रहा है। चाहे अब काउंटर से टिकट लें या ऑनलाइन खरीदें, पैसेंजर ट्रेनों का विकल्प मिलता ही नहीं। बिना किसी औपचारिक घोषणा के रेलवे बढ़ा हुआ किराया वसूल कर रही है। यह ऐसी ही एक टिकट है, जिसमें रायगढ़ से बिलासपुर सफर करने वाले यात्री को पैसेंजर ट्रेन के लिए भी मेल-एक्सप्रेस का टिकट बनाकर दिया गया। इसका किराया 60 रुपये है, जबकि पैसेंजर ट्रेनों में इसका सिर्फ 30 रुपये लिया जाता था।
न सिर्फ मेरी जीवनसाथी
वेलेंटाइन डे पर मोदी सरकार का फरमान वापिस हो जाने की वजह से गायों के गलों को तो लिपटाने वाले नसीब नहीं हो पाए, लेकिन लोगों ने अपनी पसंद के वेलेंटाइन के साथ तस्वीरें जरूर पोस्ट कीं। छत्तीसगढ़ के एक सबसे बड़े कारखाने, बालको के मालिक अनिल अग्रवाल ने इस मौके पर अपनी पत्नी किरण के साथ अपनी एक रोमांटिक फोटो पोस्ट करते हुए लिखा है कि न सिर्फ मेरी जीवनसाथी, बल्कि मेरी बेस्ट फ्रेंड भी।
सालाना शिकवा-शिकायत का दिन
जो लोग एक से अधिक लोगों की बालिग मोहब्बत में गिरफ्त रहते हैं, उनके सामने वेलेंटाइन डे जैसा मोहब्बत के इजहार का दिन बड़ी जटिल चुनौतियां लेकर आता है, किससे, कब, कहां मिलें, और सोशल मीडिया पर कैसी तस्वीर पोस्ट करें कि जिसके साथ तस्वीर नहीं है, उसे भी बुरा न लगे। जटिल संबंध खास मौकों पर और भी जटिल हो जाते हैं।
अभी तीन दिन पहले जब राज्यसभा में समाजवादी पार्टी की ओर से पहुंचीं जया बच्चन की सभापति से बहस हो गई, और गरमागर्मी के बीच वे तैश में सभापति को उंगली दिखाते हुए चेतावनी देते निकल गईं, तो लोगों ने वेलेंटाइन सप्ताह का इस्तेमाल किया, और रेखा के साथ अमिताभ और जया दोनों की तस्वीर के तरह-तरह के मीम बनाए, और ट्विटर पर उनका सैलाब आ गया। वेलेंटाइन डे जैसा दिन पुराने और भूतपूर्व किए जा चुके प्रेम को लेकर भी ताने मारने का दिन रहता है, और एक से अधिक लोगों से मोहब्बत करने वाले इस दिन सालाना हमलों के लिए तैयार भी रहते हैं। कुछ लोगों को मजबूरी में सोशल मीडिया पर अपनी कई वेलेंटाइन में से एक के साथ तस्वीरें पोस्ट करनी पड़ती हैं, और दूसरे से मिलने पर धधकती आंखों का सामना करना पड़ता है।
जुगाड़ टेक्नालॉजी
हर शहर में स्थानीय जुगाड़ टेक्नालॉजी के मुताबिक कई तरह की गाडिय़ां बन जाती हैं, और वे आरटीओ के नियमों से परे बनती हैं, और ट्रैफिक के नियमों से परे चलती हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी मोटरसाइकिल के पीछे के हिस्से को ठेला बनाकर उनमें लंबे लोहे या पाईप लादकर तेज रफ्तार से दौड़ाना चल रहा है, जो कि बहुत खतरनाक है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसी जुगाड़-गाडिय़ों में उन्हीं मोटरसाइकिलों की नंबर प्लेट भी लगा दी गई है और आरटीओ से लेकर ट्रैफिक पुलिस तक सबकी अनदेखी देखने लायक है। अब इसी बीच ऐसी ही यह चलती-फिरती गन्ना रस दुकान चल रही है।
शराब की जगह ली रेत ने
रायपुर और बिलासपुर में रेत ठेकों के लिए जिस तरह से मारामारी देखी गई है उसने शराब ठेकों की याद दिला दी। तीन साल पहले नियम बना दिया गया था कि इन ठेकों में छत्तीसगढ़ के निवासी ही शामिल हो सकते हैं, पर इसका रास्ता निकाल लिया गया है। सत्ता, शराब और ठेकेदारी से जुड़े लोगों ने सैकड़ों फॉर्म भरवाए। इतने फॉर्म आए कि खनिज विभाग को इंट्री करने में ही पसीने छूट गए। हालांकि इस होड़ में लाखों रुपये सिर्फ टेंडर बेचने की कमाई आ गई। रेत घाट को वही चला पाएगा, जिसके पास भारी मशीनें और बड़ी संख्या में पहलवान होंगे। कम हैसियत वाले किसी के नाम रेत ठेका आवंटित हो भी गया तो उसका सौदा कर रसूखदार कर लेंगे और उसे घर बिठा देंगे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदियों की किस बेरहमी से छलनी होगी। यह सवाल भी है कि इस ऊंचे खेल के बाद आम लोगों को रेत किस भाव मिलेगा।
रिटायर्ड अफसरों ने की पढ़ाई
कल हमने इसी कॉलम पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें आईपीएस रतन लाल डांगी एक पेड़ पर चढक़र अपने बचपन की याद कर रहे थे। अब जो घटना सामने है, उस पर ज्यादा दिलचस्पी हो सकती है। रिटायर्ड आईएएस राजेंद्र प्रसाद मंडल ने बिलासपुर के गवर्नमेंट स्कूल में उन छात्रों की क्लास लगाने की पहल की, जो फिजिक्स के टीचर राव से पढक़र निकले थे। गवर्नमेंट स्कूल की उसी कक्षा में जहां मंडल ने पढ़ाई की थी, उनके बैच के हाई स्कूल में पढऩे वाले छात्र जिनमें कुछ डॉक्टर और कुछ बिजनेसमैन भी शामिल हैं, स्टूडेंट की तरह बैठे और राव सर ने अटेंडेंस लगाया। अपनी पुरानी जगह पर बैठने के लिए 1976 बैच के इन अफसरों ने झगड़ा भी किया। राव सर ने एक-एक विद्यार्थी का नाम पुकारा। बुजुर्ग हो चुके बच्चों ने यस सर, यस सर, प्रजेंट सर कह कर जवाब दिया। काबिल और अपने क्षेत्र में कामयाब हो चुके राव सर के विद्यार्थियों ने इस बहाने शिक्षा के महत्व को समझाया।
पहले आपसी सहमति बना लो
आर एस एस के सरसंघचालक मोहन भागवत के इस बयान पर कि मुस्लिम भारत में रह सकते हैं पर उन्हें हिंदू संस्कार और पद्धतियों का पालन करना पड़ेगा, कम्युनिस्ट पार्टी की पूर्व राज्यसभा सदस्य वृंदा करात ने बड़ी आलोचना की है। करात का कहना है कि वे अकेले हिंदुओं के ठेकेदार कैसे हो सकते हैं? चलिए छोड़ भी देते हैं, वृंदा करात ने क्या बोला। अभी तो शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बीच घमासान मचा हुआ है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर और दूसरी जगहों पर स्वामी निश्चलानंद ने अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य होने पर ही सवाल उठा दिया। इसका जवाब भी अविमुक्तेश्वरानंद ने दिया है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पिछले साल निधन के बाद उन्होंने गद्दी संभाली है। शंकराचार्य सनातन धर्म को प्रतिष्ठित करने का श्रेय रखते हैं। हिंदू और हिंदुत्व पर राजनीतिक और धार्मिक विवाद होने का आम लोगों के मन में संदेश क्या जा रहा है? किस शंकराचार्य को असली माने, उसकी पूजा करें और किसकी नहीं करें? आखिर, किसकी माने, किसकी सुनें या फिर आसान रास्ता हो कि तमाम विवादों से पल्ला छुड़ाते हुए अपने घर पर ही पूजा, आराधना और भजन करते रहें।
आगे-आगे देखें, होता है क्या...
छत्तीसगढ़ में चल रहे कोयले की रंगदारी-उगाही की गिरोहबंदी की जांच से भानुमति का पिटारा खुल गया दिखता है। अब हिन्दी में यह कहावत कितने समय से चली आ रही है कि हम यह भी भूल गए हैं कि भानुमति थी कौन। खैर, वह जो भी रही हो, अभी आईटी और ईडी के हाथ जितने तरह के दस्तावेज लगे हैं, और उनसे भी बढक़र जितने तरह की चैट लोगों के मोबाइल फोन से बरामद हुई है, वह आंखें खोल देने वाली है। लोगों को इससे यह भी पता लग रहा है कि जिन लोगों की इतनी इज्जत होती आई है, वे दरअसल किस किस्म के लोग हैं। और इससे परे यह भी पता लग रहा है कि जिन लोगों की दौ कौड़ी की इज्जत नहीं थी, वे कैसे-कैसे लोगों से कितनी-कितनी इज्जत पाते आए हैं। अदालत का फैसला तो जब भी हो, जनता के बीच जनधारणा का फैसला तो ऐसे पुख्ता सुबूतों से हो ही सकता है। लेकिन ऐसे दस्तावेज एक दूसरे से लेन-देन करने में लोग इतने चौकन्ने होकर काम कर रहे हैं कि किसी मैसेंजर सर्विस पर भी दस्तावेज नहीं भेज रहे, और आईफोन की एयरड्रॉप सेवा को भरोसेमंद मान रहे हैं। जांच एजेंसियों के भेजे गए कुछ ऐसे कागज अफसरों ने कुछ दलालों के साथ साझा किए थे जो कि जांच एजेंसियों की पूरी कार्रवाई को ही तबाह करने वाले थे, और अब यह सफाई किसी के गले नहीं उतर रही है, नहीं उतर सकती कि यह गलती से हो गया था। ऐसा गलती से नहीं होता भैया। फिलहाल ऐसे तमाम दस्तावेजों से छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपने आपको जिस तरह दूर रखा हुआ है, तो उसे देखकर कुछ लोगों का यह मानना है कि महासमुंद के बहीखातों में भाजपा के कई बड़े नेताओं के भी नाम दर्ज हैं। अब यह बात सच है या नहीं, यह आईटी और ईडी ही बता सकते हैं, लेकिन जनधारणा सुबूतों की मोहताज नहीं होती, और छत्तीसगढ़ में जनभावनाएं उबाल पर हैं। आगे-आगे देखें, होता है क्या...
अच्छी बात नहीं है
इन दिनों हिन्दी टाइपिंग करने वाले बहुत से लोग कम्प्यूटर-इंटरनेट पर अलग-अलग तकनीक से टाईप करते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी के हिज्जे टाईप करके देवनागरी में नतीजा पाते हैं, तो कुछ लोग बोलकर टाईप करते हैं। काम आसान तो होते चल रहा है, लेकिन कई बार कई तरह की चूक भी हो जाती है। अब जितनी बार ऑनलाईन सट्टा टाईप किया गया, उतनी बार ऑनलाईन सत्ता टाईप हो गया। अब सत्ता और सट्टा का यह रिश्ता टेक्नालॉजी की फ्रॉडियन चूक है तो भी इसकी मरम्मत करने की जरूरत है, सट्टा की चर्चा में सत्ता की बदनामी तो अच्छी बात नहीं है।
चुनाव प्रचार के दौर में बस्तर में हत्याएं
नारायणपुर, बीजापुर के बाद अब दंतेवाड़ा में नक्सल हत्या। तीनों ही जनप्रतिनिधि भाजपा से जुड़े हैं या जुड़े थे। इसके पहले विधायक भीमा मंडावी की भी हत्या बीते सालों में हो चुकी है, जो बीजेपी से ही थे। पर कांग्रेस तथा दूसरे दलों के नेता भी मारे गए हैं।
झीरम घाटी में तो कांग्रेस नेताओं की एक पूरी पीढ़ी ही खत्म कर दी गई। प्राय: ऐसी वारदातों की वजह नक्सली सुरक्षा बलों के लिए मुखबिरी करने का आरोप लगाते हैं। दंतेवाड़ा के पूर्व सरपंच रामधर आलमी की हत्या चाकू मारकर की गई और एक पर्चा फेंका गया। इसमें मुखबिरी के अलावा, पुलिस की आत्मसमर्पण नीति में सहयोग करने तथा बोधघाट परियोजना में पैसा खाने का आरोप लगाया गया है। आम तौर पर ऐसे ही आरोप लगाकर हत्याएं की जाती हैं। नक्सली स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस के मौके पर काला झंडा फहराते हैं। मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के वे खिलाफ हैं।
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी प्रमुख दल प्रदेश के दूसरे स्थानों की तरह बस्तर में भी जनसंपर्क शुरू कर चुके हैं, जो आने वाले दिनों में और तेज होने वाला है। यह प्रचार इसी तरह के जमीनी नेताओं की बदौलत ही होता है, जिन पर नक्सली हमले का खतरा मंडरा रहा है। नक्सली चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करते हैं। हत्या की ताजा घटनाओं के पीछे वजह यह हो सकती है कि प्रचार के लिए निकलने वाले जनप्रतिनिधियों में दहशत फैले, क्योंकि बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव हो जाना उनकी विफलता और असर कम होने के रूप में लिया जाएगा।
उइके और बैस की सहूलियत
छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन, राजनीतिक उम्र और अनुभव दोनों में निवृतमान हो रही राज्यपाल अनुसुईया उइके से बड़े हैं। बीच में एक बार जनता दल में जाने की बात छोड़ दें तो वे सन् 1971 से लेकर लगातार जनसंघ या भाजपा में रहे हैं। वे पांच बार विधायक, केबिनेट मंत्री व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी ओडिशा में रहे। उइके कांग्रेस से भाजपा में आई थीं। आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर के लिए कांग्रेस सडक़ पर प्रदर्शन कर चुकी, हल नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट से भी कोई फौरी राहत नहीं मिल पाई, जबकि यह आसन्न चुनावों को देखते हुए यह कांग्रेस सरकार के लिए अहम मुद्दा है। हरिचंदन की नियुक्ति के बाद लोगों के बीच सबसे पहला सवाल यही उठ रहा है कि लंबित आरक्षण संशोधन विधेयक पर उनका क्या रुख होगा। एक संभावना यह है कि उइके की तरह अध्ययन के लिए वे भी समय लेने की बात करें।
यह एक संयोग है कि 13 राज्यपालों की अदला-बदली और नियुक्ति में आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण सत्तारूढ़ दल की आलोचना छत्तीसगढ़ की राज्यपाल उइके की तरह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस भी झेल रहे थे। अब दोनों ही सुविधाजनक राज्यों में स्थानांतरित किए गए हैं। महाराष्ट्र में भाजपा व शिवसेना शिंदे गुट की साझा सरकार है तो मणिपुर में भाजपा की पूर्ण बहुमत की।
स्वच्छता का एक और कदम...
स्वच्छता अभियान के लिए कई बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत अंबिकापुर में एक और पहल हुई है। एक पूरा उद्यान कबाड़ का इस्तेमाल करके बनाया गया है। इनमें रबर, प्लास्टिक, फाइबर आदि के खराब और फेंके जाने वाले सामानों का इस्तेमाल हुआ है।
जब बचपन की याद हिलोरे ले...
बचपन का पेड़ों पर चढऩा, डालियों पर लटकना, फलों-फूलों को तोडक़र कूद जाना हमें याद तो रहता है पर उसे दोहराने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि एक उम्र के बाद सेहत और शरीर इसकी मंजूरी नहीं देता। बॉडी फिटनेस पर हर रोज काफी वक्त बिताने वाले आईपीएस रतनलाल डांगी ऐसा कर पाए। अपने बचपन के दिनों को याद कर वे खेजड़ी (शमी) के पेड़ पर चढ़ गए और यह पोज दिया।
सजायाफ्ता बाबा का स्टाल मेले में
सजायाफ्ता बाबाओं को सरकार चाहे तो कितनी सहूलियत मिल सकती है, इसका हाल के दिनों में हरियाणा के राम-रहीम से बड़ा उदाहरण तो हो नहीं सकता। उन्हें किसी न किसी बहाने पैरोल पर जेल से बाहर निकलने की छूट मिलती जा रही है। बाहर प्रवचन दे रहे हैं, नेता उनके दरवाजे पर जाकर माथा टेक रहे हैं। एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो में वे गाने की धुन भी तैयार करा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी सजायाफ्ता आसाराम और रामपाल के अनुयायी उनके अपराधों के उजागर होने के बावजूद कम नहीं हुए हैं। रामपाल के अनुयायी तो इतने समर्पित हैं कि वे उनकी एक किताब 10-20 रुपये में या फिर कहीं-कहीं मुफ्त, घर-घर जाकर बांटते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके भक्त तो सक्रिय हैं। इधर धार्मिक नगरी रतनपुर में एक पंडाल स्थानीय निकाय ने आवंटित किया है, जिसमें रामपाल का प्रचार हो रहा है और उसकी किताबें बेची जा रही है। ये रामपाल वहीं हैं जिसने सतनाम आश्रम में पुलिस ने जब प्रवेश करने की कोशिश की थी तो उनके समर्थकों ने भयंकर उत्पात मचाया था। पुलिस को उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए गोलियां, हथगोले दागने पड़े थे। पिछले आठ साल से रामपाल जेल में है। अब किसी अफसर की मेहरबानी से इनका महिमा मंडन मेले में भी हो रहा है।
कभी-कभी बहुत छोटे दर्जे के कर्मचारी भी बहुत ऊंचे दर्जे के मुखिया को डुबा देते हैं। एक संवैधानिक कुर्सी को उसी के निजी सहायक ने किस तरह अपनी करतूतों से पलटा दिया, इसका खुलासा हो सकता है आने वाले दिनों में एक स्टिंग ऑपरेशन के उजागर होने से हो जाए। फिलहाल तो बड़े-बड़े लोगों को इससे यह सबक लेना चाहिए कि उनके आसपास के छोटे-छोटे लोग उनका भविष्य किस तरह खत्म कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की मिसाल देश में संवैधानिक कुर्सियों पर बैठे बहुत से लोगों के काम आएंगी कि अपने सहायक किस तरह छांटना चाहिए।
नेताम और कांग्रेस के बीच फिर दूरी
भानूप्रतापपुर उपचुनाव हुए 2 माह से अधिक बीत चुके हैं। कांग्रेस नेता अरविंद नेताम ने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी का न केवल खुलकर समर्थन किया था बल्कि प्रचार भी किया था। यह किसी से छुपी हुई बात नहीं थी। पर चुनाव के दौरान उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कुछ ही दिन पहले कांग्रेस के रायपुर में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन की एक समिति में भी उनको लिया गया है। अब जाकर उन्हें कांग्रेस के खिलाफ काम करने के लिए कारण बताओ नोटिस दी गई है। अतीत में जाएं तो केंद्र में कृषि राज्य मंत्री रह चुके नेताम ने अपनी स्वतंत्र छवि के आगे पार्टी की परवाह नहीं की है। पार्टी लाइन से बाहर जाकर उनके बयान देखने को मिलते रहे हैं। सन् 1995 में कांग्रेस से उन्हें पहली बार तब बाहर किया गया था, जब बस्तर में मालिक मकबूजा प्रकरण सामने आया था। इसके 6 साल बाद उन्हें पार्टी में वापस लिया गया। फिर कुछ दिन रहने के बाद छोड़ कर चले गए। सन 2012 में अगले साल होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए फिर समझा-बुझाकर कांग्रेस प्रवेश कराया गया। इसके बाद वे अलग-अलग मंचों से लगातार कहते रहे हैं उनकी पार्टी के ढांचे में बदलाव होना चाहिए। वे बस्तर को अलग राज्य बनाने की मांग पर पैरवी भी करते रहे हैं।
बाद में उन्होंने फिर पार्टी छोड़ी। राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने तब के आदिवासी नेता पीए संगमा का समर्थन कर दिया था। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए, कुछ दिन के लिए भाजपा में भी रहे। फिर भाजपा से निष्कासित पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ उन्होंने जनवरी 2017 में जय छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया था। पर इसके कुछ समय बाद कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया की पहल से वे फिर पार्टी में वापस आ गए थे। 81 वर्षीय नेताम अपनी पहचान के लिए किसी दल पर निर्भर नहीं हैं। जब उन्होंने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी का समर्थन किया तब बहुत से लोगों को पूछताछ करनी पड़ी कि वे कांग्रेस में अभी भी हैं भी या नहीं। हाईकमान की उन्हें दी गई ताजा नोटिस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव ? को देखते हुए मायने रखता है। नेताम नोटिस का कैसा जवाब देते हैं, यह भी जिज्ञासा बनी हुई है।
कांग्रेस के बाली और सुग्रीव
रामायण के बाली और सुग्रीव के बारे में तो आपने सुना ही होगा। कथा के अनुसार बाली काफी शक्तिशाली था और लड़ाई में विरोधी की आधी शक्ति उसको प्राप्त होने का वरदान भी मिला था, लिहाजा अच्छे-अच्छे बाहुबली भी बाली के सामने टिक नहीं पाते थे। यही वजह थी कि बाली का सगा भाई सुग्रीव उससे भागा-भागा फिरता था। वनवास के समय सीताजी की खोज में मदद के बदले प्रभु राम ने सुग्रीव को राजपाठ लौटाने का वादा किया था। जिसमें यह तय हुआ था कि सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारेगा और भगवान बाली का वध कर देंगे, लेकिन दोनों के बीच जब युद्ध शुरू हुआ तो राम असमंजस में पड़ गए कि कौन बाली और कौन सुग्रीव ? चूंकि दोनों सगे भाई थे, इसलिए एक जैसे ही दिखते थे। इस असमंजस में राम तीर नहीं चला पाए, तब सुग्रीव ने जैसे-तैसे भागकर जान बचाई। इसके बाद राम ने सुग्रीव के गले में माला डालकर लड़ाई के लिए भेजा, ताकि उन्हें पहचाने में दिक्कत न हो। सुग्रीव इसके पहले बड़ी मुश्किल से जान बचाकर लौटे थे, तो घबरा रहे थे कि कहीं ताकतवर बाली उनका वध न कर दे। लेकिन राम के भरोसे वे साहस जुटाकर बाली को फिर ललकारने पहुंचे। सुग्रीव की ललकार सुनकर बाली की पत्नी ने कहा भी कि ध्यान मत दीजिए, वो ऐसे ही ललकारता है और भाग जाता है। बाली नहीं माने और सुग्रीव से लडऩे चले गए, इस बार राम ने बाण चलाया और बाली का वध कर दिया। ये पूरी कथा तो आप जानते ही हैं, फिर भी इसे दोहराने का मतलब यह था कि इन दिनों कांग्रेस संगठन में भी बाली-सुग्रीव जैसा खेल चल रहा है। एक कांग्रेसी ने रामायण के इस प्रसंग के साथ बताया कि संगठन के एक पदाधिकारी जो सुग्रीव जैसे खुद ताकतवर तो नहीं है, फिर भी बाली जैसे बड़े और शक्तिशाली नेता को ललकार रहे हैं। कांग्रेस के इस सुग्रीव को भी भरोसा था कि उसके संरक्षक उसे बचा लेंगे, लेकिन यहां भी राम की तरह संरक्षक धोखा खा गए और बाली ने कांग्रेस के सुग्रीव को पटकनी दे दी। जिससे उनके राजपाठ पर खतरा मंडरा लगा है। रामायण के सुग्रीव को तो दूसरा मौका मिल गया था, लेकिन कांग्रेस के इस सुग्रीव को मौका मिलता है या नहीं, यह देखने वाली बात है, क्योंकि बाली के हमले से वे फिलहाल तो चित्त हो गए हैं।
कांग्रेसियों के सुखद खबर के मायने
कांग्रेस में राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले आपसी मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। साल-डेढ़ साल पहले तक संगठन का काम देख रहे एक पदाधिकारी के सोशल मीडिया पोस्ट मतभेद की पुष्टि भी कर दी। उन्होंने लिखा कि सुखद खबर... बड़े दिनों बाद दिल को सुकून देने वाला मिला। सोशल मीडिया पर अचानक उनकी इस टिप्पणी से लोगों को लगा कि शायद उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल गई होगी, लेकिन बाद में पता चला कि वे अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ कार्रवाई से खुश होकर ऐसा लिख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में कांग्रेसी एक दूसरे को निपटाने के खेल में खुश होते रहेंगे, तो पार्टी की मुश्किलें बढऩा स्वाभाविक है।
आईएएस का प्रभाव
आईएएस अफसर किसी बात के लिए अड़ जाए, तो अच्छे-अच्छों को झुकना पड़ जाता है। ऐसा ही एक वाकया कुछ दिनों पहले राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड में हुआ, जब प्रदेश के एक प्रभावशाली रिटायर्ड अफसर ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान होकर अपनी कार सडक़ पर अड़ा कर बैठ गए। बताते हैं कि साहब एसी चालू करके एक घंटे कार में बैठे रहे, लोगों ने कार हटाने के लिए कई बार मिन्नतें की, लेकिन वे भी ठान कर बैठे थे कि कुछ भी हो जाए, वे टस के मस नहीं होंगे। दरअसल, साहब का घर एक बड़े विवाह भवन के पास ही है। शादी-ब्याह के सीजन में उनके घर जाने के रास्ते पर अक्सर जाम की स्थिति रहती है। बताया जा रहा है कि ट्रैफिक जाम की समस्या के बारे में उन्होंने भवन संचालकों से भी बात की थी, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। इसी दौरान पिछले दिनों जब वे एक शादी कार्यक्रम में गाडिय़ों का काफिला देखकर बौरा गए और अपनी सरकारी गाड़ी सडक़ पर अड़ा दी। उस दिन जैसे-तैसे शादी का कार्यक्रम निपटा। इसके बाद से भवन आने के लिए अलग और जाने के लिए अलग रूट तय किया गया है। भवन संचालक ने बकायदा सुरक्षा कर्मियों की तैनाती कर दी है। अब वीआईपी रोड की तरफ से जाने वालों को डेढ़-दो किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ रहा है, लेकिन इससे साहब की तकलीफ तो दूर हो गई है।
हाथियों को अपने शावकों की चिंता
बीते कुछ दिनों से खरसिया के रास्ते से निकला 13 हाथियों का दल सक्ती,, चांपा, जांजगीर, बिलासपुर होते हुए अब कोरबा के नजदीक पहुंच गया है। इनमें से ज्यादातर गांवों में पहली बार हाथियों की आमद हुई है। कोरबा में सर्वमंगला मंदिर से सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर हाथियों ने डेरा डाल रखा है। पिछले 1 सप्ताह से हाथी घनी आबादी वाले गांवों के आसपास से गुजर रहे हैं लेकिन कुछ चकित कर देने वाली बात यह है कि वे बस्तियों में धावा नहीं बोल रहे हैं। सेल्फी लेने के लिए बहुत नजदीक जाने वाले दो-तीन लोगों पर हमला जरूर हाथियों ने किया लेकिन बड़ी आबादी उसने संकट में नहीं डाला है। हाथियों के व्यवहार पर अध्ययन करने वाले कुछ जानकार बताते हैं ऐसे हाथियों का दल जिनमें शावक भी होते हैं, वे मनुष्यों के बीच जाने से बचते हैं। हाथियों को यह भरोसा होता है कि अगर वे मनुष्य से दूरी बनाकर रखेंगे तो उन पर हमला नहीं होगा। यह अलग बात है कि वन विभाग और पुलिस की मनाही के बावजूद लोग उन्हें देखने के लिए काफी नजदीक जा रहे हैं, और इन्हीं में से कुछ लोग हमले के शिकार भी हो रहे हैं। ये हमले हाथी अपने बचाव में कर रहे हैं। ([email protected])
जालसाजी के रोज नए तरीके
ऑनलाईन जालसाजी की खबरें थमने का नाम नहीं लेती हैं। अब ताजा जालसाजी पुलिस की वर्दी वाली एक प्रोफाइल फोटो का एक वॉट्सऐप नंबर है जो कि किसी को यह धमकी दे रहा है कि वह दिल्ली एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन का अफसर है, और वह उसके नाम से आई हुई एक पार्सल पर सरकारी टैक्स देने से इंकार कर रही है इसलिए उसे 12 घंटे बाद गिरफ्तार कर लिया जाएगा। कई लोग ऐसे झांसे में आ जाते हैं, और ऑनलाईन भुगतान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे ही एक वॉट्सऐप जालसाज के नंबर को जब ट्रूकॉलर पर डालकर देखा गया तो कई लोगों ने उसका नाम फ्रॉड लिखकर रखा था। ट्रूकॉलर एप्लीकेशन लोगों के फोनबुक में किसी नंबर के साथ दर्ज नाम देखकर उसे बताता है। ऐसा झांसे वाला कोई भी संदेश आने पर सबसे पहले तो ठंडे दिमाग से ट्रूकॉलर जैसे किसी एप्लीकेशन पर उस नंबर का नाम देख लेना चाहिए, उसके बाद भी हड़बड़ाना शुरू नहीं करना चाहिए। लोगों को ऐसी जालसाजी के बारे में आसपास के लोगों को बताना भी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के अफसरों का बढ़ता प्रभाव
छत्तीसगढ़ के अफसरों को लगातार महत्व मिल रहा है। राज्य के पूर्व मुख्य सचिव रहे एक आईएएस, और रमन सरकार में प्रभावशाली अफसर को एक टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है। इसी तरह छत्तीसगढ़ कैडर के साल 2008 बैच के आईएएस नीरज कुमार बंसोड़ को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का पीएस बनाया गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ के कई और आईएएस अफसर केन्द्रीय मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन अमित शाह जैसे ताकतवर गृहमंत्री के पीएस के रूप में छत्तीसगढ़ के अधिकारी की नियुक्ति के मायने निकाले जा रहे हैं। राज्य के आईएएस अफसरों के बीच चर्चा का विषय है कि छत्तीसगढ़ के अधिकारी को गृहमंत्री का पीएस नियुक्त करना केवल संयोग नहीं है, बल्कि यह रणनीति का हिस्सा हो सकता है। नीरज छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिला पंचायत के सीईओ, सुकमा और जांजगीर-चांपा जिले के कलेक्टर सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा के चुनाव हैं। ऐसे में दिल्ली में उन अफसरों को महत्व दिया जा रहा है, जो छत्तीसगढ़ में काम कर चुके हैं और उन्हें राज्य की सियासी भूमि की अच्छी समझ है। खैर, कारण जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि छत्तीसगढ़ में माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ का राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव बढ़ रहा है।
नीरज बंसोड़ के कलेक्टर रहे, और अब भाजपा नेता ओ पी चौधरी ने लिखा- नीरज बंसोड़ को अमित शाह जी का पीएस बनने की हार्दिक बधाईज्नीरज को उनके पिताजी ने बड़े मेहनत से आगे बढ़ाया था,चंद महीनों पहले उनके पिता जी का निधन हो गया था,काश इस जंप को वे देख पाते....
मेरे कलेक्टर रहते हुये मेरे साथ नीरज स्ष्ठरू और ष्टश्वह्र के रूप में काम किये और उन्हें थोड़ा नजदीक से जाना..साइलेंट एंड हार्ड वर्किंग उनकी शैली रही आगे और ऊँचाईयों को छुयें...
बचपन से भेदभाव
बच्चों को बचपन से ही जिस तरह का भेदभाव सिखाया जाता है, उसी का नतीजा रहता है कि बड़े होने तक लडक़ों को लगने लगता है कि वे घर पर अपनी बहनों के मुकाबले अधिक अधिकार संपन्न हैं। यह हाल उन देशों की बच्चों की किताबों का भी है जहां पर लैंगिक समानता अधिक मानी जाती है। अब तस्वीरों वाली एक किताब जो कि पश्चिम के एक बड़े प्रकाशक से आई है, खासी महंगी है, वह भी छोटे बच्चों को एक कहानी में कुत्ते के बच्चों के सारे जिक्र में बस नर-पिल्लों का जिक्र करते हुए उनके लिए ‘ही’ का ही इस्तेमाल करती है। दस पिल्लों में भी एक भी मादा पिल्ले का जिक्र नहीं होता, हर जगह बस मर्द पिल्लों का ही जिक्र होता है।
श्रेय लेने की चिंता
छत्तीसगढ़ में इस महीने कांग्रेस का बड़ा कार्यक्रम होने वाला है। इसमें पार्टी के तमाम नीति निर्धारक नेताओं के साथ आम कार्यकर्ताओं का जमावड़ा रहने वाला है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के इस कार्यक्रम से साल 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के आम चुनाव का रोड मैप निकलेगा। इस आयोजन की मेजबानी मिलने को लेकर राज्य कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी उत्साहित हैं। उनको इस बात की खुशी है कि देश का निर्णय छत्तीसगढ़ की जमीन पर होगा, लेकिन इतने बड़े कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन भी कम चुनौती नहीं है। हालांकि राज्य में कांग्रेस की सरकार है, तो आयोजन की व्यवस्था में दिक्कत आने की आशंका नहीं है, लेकिन सत्ता और संगठन को व्यवस्था से ज्यादा श्रेय लेने की चिंता सता रही है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि कौन किसमें बाजी मारता है।
कहीं आतिशबाजी, कहीं अंधेरा
सरकार में कई किस्म के संस्थान होते हैं, और उनमें उन संस्थानों पर सरकार मेहरबान होती है जहां की चकाचौंध में सत्ता को भी शोहरत मिल सके। इसलिए कार्यक्रम करवाने वाले सरकारी संस्थानों को खूब बढ़ावा मिलता है, और पीछे के कमरे में चुपचाप बैठकर काम करने वाले संस्थान दम तोड़ते रहते हैं। छत्तीसगढ़ में ग्रंथ अकादमी बनाई गई, तो उससे सत्तारूढ़ लोगों को शोहरत मिलने की अधिक गुंजाइश नहीं थी, इसलिए उसकी कुर्सियां खाली पड़ी हैं, बिजली कटते रहती है, कम्प्यूटर रहता नहीं, बजट है नहीं, और छपी हुई पुरानी किताबों दीमकों का इंतजार करती रहती हैं। किताबों से जुड़ा हुआ यह संस्थान खत्म होने से भी बुरे हाल में है, और राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के अहाते में एक कोने में पड़ा हुआ है। दूसरी तरफ संस्कृति, साहित्य, और पर्यटन से जुड़े संस्थानों के लिए दसियों लाख रूपये के बजट वाले कार्यक्रम होते रहते हैं। अगर सरकार को ग्रंथ अकादमी बंद ही करनी है, तो दिल कड़ा करके यह काम भी कर देना चाहिए। मध्यप्रदेश की तर्ज पर एक-एक करके संस्थान तो बना दिए गए, लेकिन उनमें से जिन्हें दुहा जा सकता था, उन्हें ही जिंदा रखा गया है, और सींचा जा रहा है। और कुछ न सही, साहित्य अकादमी के किसी कार्यक्रम में एक सत्र छत्तीसगढ़ ग्रंथ अकादमी की चर्चा पर भी रखना चाहिए ताकि बाहर से आए हुए लोगों को साहित्य और पुस्तकों से जुड़े हुए इस संगठन का हाल भी पता लग सके।
पॉलिटिक्स में जायज!
छत्तीसगढ़ में चुनावी साल में आरोप-प्रत्यारोप का दौर काफी तेज हो गया है। खासकर मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच रोजाना जुबानी जंग होती है। ट्वीटर पर भी दोनों नेताओं की जंग खूब सुर्खियां बटोरती है। स्थिति यह है कि दिन की शुरूआत के साथ ही ट्वीटर वार शुरू हो जाता है। अब तो व्यक्तिगत और पारिवारिक हमले भी तेज हो गए हैं। पहले घरेलू मामलों पर सियासी लोग टीका-टिप्पणी करने से बचते थे, लेकिन लगता है कि अब यह लिहाज़ भी खत्म हो गया है। सियासत के इस नए दौर में हमला करने का कोई भी मौका मिले तो उसे लपकने की परंपरा शुरू हो गई है। कुछ लोग इस परिपाटी के पक्ष में प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत, ऑल इज फेयर इन लव एंड वॉर, का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सियासत भी युद्ध भूमि की तरह ही है, और वहां भी सब कुछ जायज है, लेकिन कुछ तो इस कहावत को यह कहकर खारिज करते हैं कि प्यार पाने के गलत तरीके को कैसे जायज ठहराया जा सकता है? क्योंकि प्यार जोर जबरदस्ती से हासिल नहीं किया जा सकता। खैर, यह चर्चा या बहस लंबी हो सकती है,लेकिन इसका सार यह निकला कि कहावत में पॉलिटिक्स को जोड़ दिया जाना चाहिए, तो यह कुछ हद तक जायज हो सकता है।
टिकट का गणित
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कई तरह के प्रस्ताव भी पारित होने की संभावना है। इन प्रस्तावों पर चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं की नजर टिकी हुई है। कहा जा रहा है कि पारित प्रस्ताव के आधार पर ही टिकट का वितरण किया जाएगा। संभावित प्रस्तावों के संबंध में अटकलबाजी भी खूब हो रही है। कहा जा रहा है कि चुनाव लडऩे के इच्छुक निगम-मंडल के पदाधिकारियों को लाल बत्ती का मोह छोडऩा पड़ेगा। इसी तरह संगठन में काबिज नेताओं को भी टिकट नहीं दी जाएगी। कहने का आशय है कि नए चेहरों तथा किसी भी पद में नहीं रहने वालों को ही टिकट मिलने की संभावना है। इन चर्चाओं से वे लोग तो खुश हैं, जो फिलहाल सत्ता-संगठन से दूर हैं, लेकिन सत्ता-संगठन की कुर्सी पर कब्जा जमाए नेता इसका तोड़ निकालने में लगे हैं।
गौमाता को गले लगाओ...
वेलेंटाइन डे को विदेशों का सांस्कृतिक प्रदूषण बताकर विरोध किया जाता है। पार्क, चौक-चौराहों में हिंदुत्ववादी संगठन प्रेमी जोड़ों पर हमला करते हैं। अपने साथ राखियां लेकर चलते हैं। एक संत इस समय मासूम बेटियों से रेप करने के आरोप में आजीवन कारावास भुगत रहे हैं जिसने वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का अभियान चलाया। कई लोगों ने यह कह दिया कि हम तो माता-पिता की रोज ही पूजा करते, चरण छूते हैं। एक यही दिन क्यों? मातृ-पितृ पूजन लगता है अब कारगर नहीं रहा। इसलिए वेलेंटाइन डे को बेअसर करने का जिम्मा केंद्रीय पशु कल्याण बोर्ड ने उठाया है। बोर्ड ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर कहा है कि इस दिन वेलेंटाइन की जगह ‘काउ हग डे’ मनाएं। बोर्ड का कहना है कि गाय हमारे लिए सांस्कृतिक आर्थिक महत्व का प्राणी है। इन्हें आज के दिन सम्मान दें। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार है। यहां बोर्ड के पत्र किसी कोने में पड़ा होगा। यहां तो गांवों में समझाना मुश्किल हो जाएगा कि काउ हग डे का मतलब गाय को गले लगाना, झप्पी देना ही होता है, कुछ और नहीं। किसान तो रोज गायों को नहलाता-धुलाता, चराता है, उसकी सेवा करता है। दूसरी तरफ यूपी में इसे जोर-शोर से मनाया जाएगा। सरकारी आदेश जारी हो चुका है। भाजपा शासित दूसरे राज्यों में भी तैयारी है।
कुछ अखबारों के मुताबिक दुग्ध पालक किसानों ने इस प्रस्ताव को नौटंकी बताया है। उनका कहना है कि कई राज्यों में लंपी वायरस का कहर टूटा। गायों की मौत से किसानों की कमर टूटी, तब बोर्ड ने किसानों की मदद नहीं की, अब ये मजाक हो रहा है। कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल, टीएमसी सांसद सांतनु सेन, सीपीआई सांसद एलामारम करीम आदि का बयान भी देखने को मिला है। उनके मुताबिक ये अडाणी, बेरोजगारी, महंगाई आदि के सवालों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए है। वैसे ध्यान भटकाना ही था तो पशु कल्याण बोर्ड की जगह किसी दूसरे विभाग को सामने लाना था, क्योंकि गाय तो गांवों में पलते हैं, शहर में तो वेलेंटाइन डे मनाने वाले ही दिखेंगे।
विधायक पत्नी का आंदोलन
इन दिनों प्रदेशभर के हजारों शिक्षक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। वादे के अनुरूप शिक्षाकर्मियों का शिक्षा विभाग में संविलियन तो कर दिया गया लेकिन वेतन विसंगति दूर नहीं हुई। वे अपनी नियुक्ति के पहले दिन से सेवा की गिनती करने की मांग कर रहे हैं। इन प्रदर्शनकारियों में बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी की पत्नी किरण शाह मंडावी भी शामिल हैं। भैरमगढ़ में वे सहायक शिक्षक हैं और वहां के स्कूल में प्रभारी प्रधान पाठक भी। पिछले 6 दिनों से धरना पंडाल पर वे भी पहुंच रही हैं। कल 11 फरवरी को राजधानी में मुख्यमंत्री निवास घेरने का कार्यक्रम है, बताया जा रहा है कि यहां भी पहुंचेंगी। सत्तारूढ़ दल से विधायक की पत्नी सरकार के खिलाफ आंदोलन पर हैं। पर अकेले कोई मांग लेकर नहीं उतरी हैं। इसीलिए विधायक भी नरम हैं। वे मानते हैं कि सरकार ने वादा किया था। पूरा करने की प्रक्रिया चल रही है। पत्नी शिक्षक हैं और उनको अधिकार है कि अपने संगठन का साथ दे।
प्यार के नाम पर ठगी न हो जाए...
पिछले 10-15 सालों से देश में वेलेंटाइन डे का क्रेज बढ़ा है। महकते ग्रीटिंग कार्ड से शुरू हुआ, फिर लोग अपने प्यार का इजहार अखबारों में इश्तेहार देकर भी करने लगे। स्मार्ट फोन और सुलभ इंटरनेट ने प्यार जताने, उपहार देने-लेने का तरीका भी बदल दिया। लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर अपने प्रियजनों को उपहार भेजते हैं। कई राज्यों में ऑफर और कूपन के नाम पर ऑनलाइन ठगी हो रही है। उनकी साइट में जाकर शॉपिंग करने पर पांच सितारा होटल में ठहराने का प्रलोभन भी दिया जा रहा है। ऐसा पिछले दो साल से हो रहा है। छत्तीसगढ़ पुलिस ने ऐसे अनजान लिंक, एप से ट्रेडिंग करने से बचने और सतर्क रहने की सलाह दी है। सही है, प्यार में धोखा खाना एक बात है, ठगी का शिकार होना दूसरी बात।
जितनी दौलत, उतनी जुबान
जिन लोगों को दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कार कंपनी, टेस्ला, के मालिक एलन मस्क के ट्विटर खरीदने पर लग रहा था कि अब वहां आजादी बढ़ जाएगी, तो आज से वह ‘आजादी’ बढ़ गई है। बीती रात ट्विटर ने यह घोषणा की कि अब भुगतान करके ट्विटर पर नीले रंग का अकाउंट पाने वाले लोगों के लिए शब्द सीमा बढ़ा दी गई है। यानी जो लोग आठ डॉलर हर महीने किस्म का भुगतान कर सकते हैं, वे लोग अब ट्विटर पर दो गुना या चौगुना अधिक लंबा लिख सकते हैं। जिस सोशल मीडिया को लोग लोकतांत्रिक मानते थे, उस पर अब मनरेगा मजदूर को एक वोट का अधिकार जारी है, और अदानी को उस पर मानो आठ वोट देने का हक मिल जाएगा। सोशल मीडिया भी पूंजीपतियों के हाथ लगकर अब अपना लोकतांत्रिक चरित्र खो रहे हैं, और वहां पर भी भुगतान करने वाला एक संपन्न तबका बन रहा है। अब पैसे वाले अपनी अधिक बात रख सकते हैं। आगे-आगे देखें, होता है क्या।
एक नाटक होने वाला है...
छत्तीसगढ़ के पहले और सबसे बड़े विश्वविद्यालय, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में नए कुलपति की नियुक्ति होनी है। यहां के लोगों ने राज्यपाल को लिखा है कि छत्तीसगढ़ के ही किसी प्राध्यापक को कुलपति बनाया जाए। राज्यपाल की ओर से ही लोगों से आवेदन बुलवाए गए हैं, और ऐसा माना जाता है कि उन्हें राज्यपाल बनाने वाली सोच के प्रति निष्ठा रखने वाले किसी व्यक्ति को ही कुलपति बनाया जाएगा। अब छत्तीसगढ़ के लोग कुछ भी सोचते रहें, बाहर से लाकर उन पर कुलपति थोपने का सिलसिला भी चल रहा है, और एक खास विचारधारा के लोगों को भी पांच बरस के लिए शैक्षणिक संस्था पर लाद दिया जा रहा है, ताकि इतने बरस वहां पर जो बाकी नियुक्तियां हों, वे भी इसी विचारधारा के मुताबिक हों। राजभवन इस काम में निष्ठा दिखाते हुए छत्तीसगढ़ के प्रति किसी लगाव का नाटक भी नहीं करता है, और स्थानीय लोगों को खुलकर खारिज किया जा रहा है। इस बार भी सुनते हैं कि परिवार ने दूसरे राज्य के किसी को छांट रखा है, और उस नाम की घोषणा तक चयन समिति की बैठक नाम का एक नाटक भी खेला जाएगा।
सडक़ की दवा दुकान
साप्ताहिक हाट-बाजारों में ये जड़ी-बूटियां तो बिकती हैं ही, इन दिनों मेलों का मौसम है, तो वहां भी ये दिखाई दे रही हैं। ये करगीरोड कोटा की तस्वीर है। अमरकंटक की तराई में बसे आदिवासी ग्रामीण जंगलों से जाते हैं और स्थानीय व्यापारियों को बेच देते हैं। कोई तय कीमत नहीं और किसी की उपयोगिता का कोई परीक्षण नहीं। अनेक की पहचान खरीदने वाले कर नहीं पाते। असली है भी या नहीं, इसका भी पता नहीं। जड़ी-बूटियों के साथ ही यह छूट है। इनमें से किस जड़ी की प्रजाति विलुप्त हो रही है, किसे सहेजने, संरक्षित करने की जरूरत है-इस पर वन विभाग का कोई काम नहीं चल रहा है। अभी तो बेलगाम दोहन हो रहा है। अचानकमार की बात करें तो यहां के अतरिया में एक औषधि प्लांटेशन है और अभयारण्य के बाहर एक दो दुकानें हैं, जहां छत्तीसगढ़ हर्बल के नाम पर दवाएं बिकती है। बाकी खुली बिक्री होती है, कोई मानक नहीं। सैलानी इसे शौकिया तौर पर खरीद लेते हैं। वैसे वनस्पति विज्ञानियों ने बताया है कि देशभर में मिलने वाली 1100 प्रकार की जड़ी-बूटियों में से 300 तो इसी जंगल में उपलब्ध हैं। पर इन्हें सहेजने, विलुप्त होने वाली जड़ी बूटियों की पहचान कर उन्हें संरक्षित करने का काम नहीं हो रहा है।
अब वो शीतलता कहां
मैनपाट में सरकारी प्रबंध से मनाए जाने वाले महोत्सव और पर्यटन के रिजार्ट बनने से पहले भी सैलानी यहां जाते रहे हैं। ठंड में यहां बर्फ की चादर दिखाई देती है पारा शून्य से नीचे चला जाता है। इस बार भी एक दो दिन के लिए ऐसी स्थिति बनी थी। मगर बीते कुछ सालों में गर्मी से राहत पाने के इस ठिकाने पर पहुंचने वालों को निराशा हो रही है। आज गुरुवार को जिस वक्त राजधानी रायपुर जैसे व्यावसायिक, औद्योगिक और भीड़-भाड़ वाले इलाके में तापमान 24 डिग्री सेल्सियस था, मैनपाट में पारा 19 डिग्री सेल्सियस था। पिछले साल अप्रैल महीने में यहां का तापमान 42 डिग्री तक गया। राहत की उम्मीद में गए लोग पसीने से तरबतर थे। दरअसल, पिछले कुछ सालों से यहां बाक्साइट उत्खनन गतिविधियों का काफी विस्तार हुआ है। केसरा में बालको का खदान बंद है जबकि छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम का एक नया खदान पथराई में शुरू हो गया है। इसके अलावा एक और खदान इस समय संचालित हैं। इन खदानो के लिए हजारों पेड़ काट दिए गए। खनिज परिवहन के लिए सडक़ें भी बनाई तो प्रकृति का नुकसान हुआ। खेती के लिए भी पेड़ काटे गए। यहां की घुनघुट्टा नदी में भी अब पानी का स्त्रोत पहले जैसा नहीं रहा। इसी से अंबिकापुर को पेयजल की सप्लाई भी होती है, जो आने वाले दिनों में नया संकट खड़ा करेगा। 60 के दशक में शरणार्थी तिब्बतियों ने इस जगह को यहां के अनुकूल पर्यावरण और तापमान को देखकर चुना था। उन्हें भी तब और अब में बड़ा फर्क महसूस होता है। लोग मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहते हैं, लेकिन आगे शायद यह पहचान बची नहीं रह जाएगी।
शंकराचार्य के बयान और बीजेपी
जैसा शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने खुद बताया है कि वे एशिया को सनातनी सभ्यता का वाहक बनाने के उद्देश्य से पिछले 17 माह से विभिन्न देशों का भ्रमण कर रहे हैं। उन्होंने कहा- भारत का क्या पूरा महाद्वीप एक दिन हिंदू राष्ट्र होगा। उन्होंने धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों पर भी सवाल दागा कि ऐसा कर रहे हैं, इतिहास उन्हें नहीं मालूम। यह भी कहा कि आदिवासी हिंदू हैं। जीवन से लेकर मृत्यु तक उनके सभी संस्कार हिंदुओं की तरह हैं। उनको आदिवासी कहे जाने को भी गलत बताया और वनवासी शब्द को सही बताया। शंकराचार्य के इन विचारों को लोगों ने पहली बार जाना ऐसी बात नहीं है। वे पहले भी कई बार इसी तरह की राय रख चुके हैं। बस बात यह है कि यह सब उन्होंने जगदलपुर में रखी गई धर्मसभा में कही। मंत्री कवासी लखमा सहित अनेक कांग्रेस नेता उनके पास पहुंचे हैं। आदिवासियों के हिंदू नहीं होने का लखमा का बयान हाल ही में आया था। सर्व आदिवासी समाज ने भी उनके इस राय का समर्थन किया था। जंगल में रहने वाले समुदाय को वनवासी कहा जाना उनका अपमान है, ऐसा भी कांग्रेस का ही मत है। शंकराचार्य के उपरोक्त सभी बयान कांग्रेस के दृष्टिकोण के विपरीत है तथा आरएसएस और भाजपा के अनुकूल। बस्तर में अपनी खोई सीटें 2023 में वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही भाजपा को शंकराचार्य के बयानों से जाने-अनजाने ताकत ही मिली है।
ठहाका मारने के मायने
झारखण्ड के राज्यपाल रमेश बैस रायपुर आए, तो पार्टी के कई नेता स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे थे। स्वागत-सत्कार के बीच बैस पार्टी नेताओं का कुशलक्षेम भी पूछ रहे थे। उन्होंने सुनील सोनी को देखते ही कहा-कैसे हो, विधायकजी...। सुनील सोनी कुछ बोलते इसके पहले ही एक पदाधिकारी ने बैसजी की गलती सुधारते हुए कहा कि विधायक नहीं, सांसद हैं। इस पर रमेश बैस ठहाका लगाते हुए आगे बढ़ गए। अब बैस की टिप्पणी, और ठहाका मारने के भावी मायने तलाशे जा रहे हैं।
शादी में इतनी भीड़ जुटी कि...
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की बेटी की शादी के जलसे में इतनी भीड़ जुटी कि कई लोग अपने परिवार के सदस्यों से बिछड़ गए थे। उनके लिए बकायदा माइक से अनाउंसमेंट भी हो रहा था। इन्हीं में पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहिले भी थे। मोहिले अपने दो गनमैन के साथ वीआईपी पंडाल में एक-दो लोगों से चर्चा कर रहे थे। मौका पाकर दोनों गनमैन खाने में व्यस्त हो गए। और जब खाना खत्म करके आए तो पुन्नूलाल वहां नहीं थे।
करीब 80 बरस के पुन्नूलाल की नजर अब थोड़ी कमजोर हो चली है, और ठंड की वजह से कनटोप पहन लिया था जिसके कारण वो पहचान नहीं आ रहे थे। इसके बाद हड़बड़ाए दोनों गनमैन लोगों से मोहिले को ढूंढने के लिए भागदौड़ करते रहे। इधर, मोहिले भी भटककर पंडाल से हटकर दूसरी जगह पहुंच गए, जहां खाना बन रहा था। वहां काफी देर अफरा-तफरी का माहौल रहा। मोहिले के गनमैन के साथ-साथ अन्य लोग भी ढूंढने निकले, और करीब 15 मिनट बाद मोहिले को ढूंढने में सफल रहे। तब कहीं जाकर सुरक्षाकर्मियों ने राहत की सांस ली।
नजरों के घेरे में
वैसे तो पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ विशेषकर ट्विटर पर काफी मुखर रहते हैं। लेकिन बृजमोहन की बेटी की शादी में भूपेश पहुंचे, तो अजय ललककर उनके पास पहुंचे, और काफी आत्मीयता से मिले। अजय खुद उन्हें लेकर दुल्हा-दुल्हन से मिलाने पहुंचे। उस समय बृजमोहन नहीं थे। इसके बाद भूपेश जब तक वहां रहे, अजय उनके कानों में फुसफुसाते नजर आए। शिवरतन शर्मा, और अन्य नेताओं की नजर पूरे समय अजय पर लगी रही।
शंकराचार्य के स्वागत में लखमा
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जगदलपुर प्रवास पर हैं। लाल बाग मैदान में उन्होंने धर्मसभा को संबोधित भी किया। प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी अन्य नेताओं के साथ उनका स्वागत किया। राजनीति की जरूरत है कि नेता सभी धर्माचार्यों, गुरुओं से मिलते रहे और पूजा स्थलों में भी जाएं । फिर शंकराचार्य तो लखमा के अपने कार्यक्षेत्र बस्तर में ही आए हुए हैं। यह जरूर हो रहा है कि बहुत से इस तस्वीर को लेकर टिप्पणी कर रहे हैं कि हाल में लखमा ने आदिवासियों को हिंदुओं से अलग बताया था। े
रेलवे पायलटों को पुरस्कार!
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने ट्रेनों को समयबद्ध तरीके से चलाने वाले पायलट और स्टाफ को हर सप्ताह पुरस्कृत करने का फैसला लिया है। हाल में इसका सिलसिला शुरू हो चुका है। इसके बावजूद ट्रेनों की लेटलतीफी ने यात्रियों को हलकान करके रखा है। जोन से गुजरने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों की बात छोड़ भी दें यहां तो 300-400 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली पैसेंजर और मेमू ट्रेनों की भी समयबद्धता दिखाई नहीं दे रही है। जब रेलवे से इस बारे में जानकारी जुटाई गई तो समझाया गया कि टाइम टेबल केवल यात्री ट्रेनों का नहीं, मालगाडिय़ों का भी होता है।रेलवे हर महीने लदान का कीर्तिमान रच रही है। ऐसे में समझ सकते हैं पुरस्कार यात्री ट्रेन के चालकों को मिलेगा या मालगाडिय़ों के। ट्रेनों में कितनी कष्टदायक यात्रा हो रही है इसका नमूना देखा जा सकता है। यह विशाखापट्टनम से रायपुर आने वाली इस ट्रेन 08528 है। महासमुंद से शाम को 4:30 बजे छूटी और इसने 3 घंटे 15 मिनट में 56 किलोमीटर की दूरी तय की। कोई तेज धावक होता तो वह ट्रेन से पहले पहुंच सकता था। रेलवे यदि पुरस्कार देने के साथ-साथ ट्रेन देर करने वालों को दंड देने का प्रावधान कर भी कर दे, बात शायद तब बनेगी।
सरकार के खिलाफ धरने पर विधायक पत्नी
बीच में जो मैडम बैठी हैं वह बीजापुर विधायक विक्रम शाह मंडावी की पत्नी किरण शाह मंडावी है। पूरी तरह से कांग्रेस के प्रति समर्पित है। लेकिन जब बात अपने हक, अधिकारी की है तो संगठन सर्वोपरि। किरण प्रधान पाठक के पद पर ब्लाक भैरमगढ़ में पदस्थ है। प्रदेश के शिक्षक इन दिनों पदोन्नति, वेतन भत्तों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। सो अपने पति की पार्टी की सरकार के खिलाफ ही अपनी मांगे बुलंद कर रही है।
विवाह समारोह यादगार
प्रदेश भाजपा के बड़े नेता बृजमोहन अग्रवाल की पुत्री के विवाह समारोह में सोमवार को साधु-संतों से लेकर मंत्री-विधायक, और अफसरों का जमावड़ा रहा। इस समारोह में हजारों लोग शामिल हुए।
कुछ दिन पहले ही पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के पुत्र के विवाह निपटा था। कौशिक एक हफ्ते दिल्ली में रहकर तमाम बड़े नेताओं को न्यौता दिया था। बिलासपुर में हुई कौशिक के बेटे की शादी में यद्यपि राष्ट्रीय नेता नहीं आ पाए थे, लेकिन प्रदेश भाजपा के तमाम बड़े नेता और सरकार के कुछ मंत्री मौजूद थे।
बिलासपुर से सटा कौशिक का विधानसभा क्षेत्र बिल्हा भी है। लिहाजा, वहां से अच्छे-खासे लोग विवाह में शामिल होने पहुंचे थे। चुनावी साल में अच्छी भीड़ से गदगद कौशिक के एक करीबी पदाधिकारी ने पार्टी के एक सीनियर विधायक से कह गए कि विवाह समारोह का माहौल किसी मेला-मड़ई से कम नहीं है। तब विधायक ने बृजमोहन के यहां की शादी का जिक्र किए बिना हंसी मजाक में कहा था कि कुंभ जैसा माहौल देखना है, तो आप 6 तारीख को रायपुर आइएगा। विधायक का दावा सही निकला।
बृजमोहन अपार संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। यहां विवाह समारोह में शामिल होने दिल्ली-भोपाल के 50 से अधिक पत्रकार भी पहुंचे थे। जम्मू कश्मीर और झारखंड के राज्यपाल के अलावा मध्य प्रदेश के सीएम व वहां के मंत्रियों समेत पार्टी के कई राष्ट्रीय नेता भी शामिल हुए। छत्तीसगढ़ के तकरीबन सभी विधायक, सीएम भूपेश बघेल, अपने पूरे कैबिनेट के साथ समारोह में थे।
विवाह समारोह स्थल में पांच गेट बनाए गए थे। और सभी जगहों पर आम से लेकर वीआईपी लोगों के लिए एक ही तरह के खाने-पीने का इंतजाम किया गया था। बृजमोहन लोगों से मिलते रहे, और खाकर जाने का ही आग्रह करते रहे। इस व्यवस्था में न सिर्फ वो बल्कि उनका पूरा स्टाफ लगा रहा। कुल मिलाकर विवाह समारोह एक तरह से यादगार रहा।
2023 में महूरत नहीं
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सबसे चर्चित और सबसे बड़े ढांचे, स्काई वॉक की जांच अभी कुछ दिन पहले ही शासन ने एसीबी-ईओडब्ल्यू को दी है जिसने प्रारंभिक जांच शुरू की है। यह पूरा मामला टेंडर की औपचारिकताओं का बताया जा रहा है, और कांगे्रस सरकार आने के चार बरस बाद यह जांच शुरू हो रही है। यह एक अलग बात है कि स्काई वॉक के खिलाफ कांगे्रस पार्टी चुनाव के पहले से बोलती आई है, और ऐसा लग रहा था कि कांगे्रस सरकार बनने पर इसे तोडक़र हटा दिया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना पहला साल पूरा होने पर संपादकों के साथ चाय-पार्टी में एक सवाल के जवाब में यह कहा भी था कि स्काई वॉक न रहने पर जीई रोड़ के ऊपर शहर के आरपार एक मिनी मैट्रो चलाई जा सकती है, और एक कंपनी ने इसमें दिलचस्पी भी दिखाई है। उस वक्त उन्होंने यह साफ किया था कि स्काई वॉक रहते हुए मिनी मैट्रो की योजना नहीं बन सकती। उन्होंने यह भी कहा था कि महापौर एजाज ढेबर ऐसी किसी कंपनी को लेकर आए थे जो मिनी मैट्रो अपने खर्च से बनाकर चलाने का प्रस्ताव लाई थी। मुख्यमंत्री ने उस समय यह भी कहा था कि महापौर ऐसी कंपनी को लेकर आए, इसलिए उनके परिवार पर इनकमटैक्स का छापा मारा गया।
अब एसीबी-ईओडब्ल्यू के मौजूदा मुखिया डीएम अवस्थी का कार्यकाल बस कुछ महीने ही बचा है। ऐसे में उनके रहते यह जांच पूरी होने की उम्मीद कम ही है। और हो सकता है कि कुछ महीने बाद के विधानसभा चुनाव तक भी यह जांच किसी किनारे न पहुंच सके, और अगर पूरी हो भी जाए तो वह चुनावी मुद्दे की तरह देखी जाएगी। कुल मिलाकर मतलब यह है कि स्काई वॉक पूरे पांच बरस इसी तरह खड़े रहा, न पूरा हुआ, न हटा। अब इसका कोई भी भविष्य 2024 में ही अगली सरकार के हाथों तय होना दिखता है।
गरीबी भुखमरी के साथ मजाक
इस समय शादियों का सीजन चल रहा है। कई लोग रिसेप्शन में ज्यादा से ज्यादा व्यंजन सजाकर अपना रुतबा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश करते हैं। अनेक लोग ऐसे भी होते हैं जो हैसियत से ज्यादा दिखावा शादियों में करते हैं, जिसका एक बड़ा हिस्सा स्वरूचि भोज में निकल जाता है।
ऑक्सफैम की सन् 2021 की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में हर मिनट 11 लोगों की भूख से मौत हो जाती है। अक्टूबर 2022 में आई ग्लोबल हंगर रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 121 देशों में 107 पर रखी गई थी। केंद्र सरकार ने हालांकि इसका तत्काल इसका प्रतिवाद किया और इसे जमीनी सच्चाई से अलग बताया। पर यह सच तो सबके सामने है कि देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है।
इधर दिखावे का चलन ना केवल खुशी की दावतों में बल्कि मृत्यु-भोज मैं भी दिखाई देने लगा है। पंगत बिठाकर खिलाने की परंपरा बंद कर तरह-तरह के व्यंजनों से सजे बफेट के स्टॉल शादी समारोह जैसे दिखाई देते हैं। कुछ जातियों और सामाजिक संगठनों ने विवाह और मृत्यु संस्कार के भोज में पाबंदियां हाल के वर्षों में लगाई हैं, पर बहुत कम इसका असर हुआ है। ऊपर की तस्वीर आईएएस अवनीश शरण ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर शेयर की है। उन्होंने सुझाव दिया है कि ऐसे लोगों को पार्टियों में घुसने पर बैन लगा देना चाहिए।
सही नीयत से डाली गलत पोस्ट
हाथियों का झुंड खरसिया से होते हुए जांजगीर-चांपा जिले के जंगलों से गुजरा और फिर वह अब बिलासपुर वन मंडल में नीलागर नदी के किनारे सीपत इलाके में डेरा डालकर रखा है। बिलासपुर से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है। हाथियों का इन इलाकों में पहली बार विचरण हो रहा है, इसलिए कुछ गांवों में भारी दहशत है। इस बीच युवा और बच्चे शरारत करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। जांजगीर के पास जंगल में सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे ऐसे ही एक युवक को एक हाथी ने अपने पैरों से रौंदा है। गंभीर हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसी बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें हाथियों का दल सडक़ पार कर रहा है और दोनों तरफ युवाओं और बच्चों का हुजूम उन्हें उकसा रहा है। उनके शोरगुल और छेड़छाड़ से परेशान होकर कतार में सबसे पीछे चल रहा हाथी भडक़ जाता है। भीड़ की तरफ वह घूम जाता है और एक युवक को पटक देता है। इसे जांजगीर का वीडियो बनाकर पोस्ट किया गया है। इसे सैकड़ों लाइक्स भी मिल चुके हैं। पड़ताल करने से मालूम होता है कि यह वीडियो यहां का है ही नहीं। वीडियो असम की है और घटना दिसंबर 2021 की। सोशल मीडिया में वीडियो के बारे में जगह की जानकारी गलत जरूर दी जा रही है, पर चाहें तो अपने आसपास की घटना समझ लें। सेल्फी लेने और नजदीक से देखने की चक्कर में अब तक छत्तीसगढ़ में भी कई लोग हताहत हो चुके हैं।
चैट और यूपीएससी
छत्तीसगढ़ में चल रही ईडी की जांच ने हर किसी को यह बहुत बड़ा सबक दे दिया है कि जुर्म के कामों की कोई बात वॉट्सऐप पर भी नहीं करनी चाहिए जिसे कि आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। लोगों को गलतफहमी यह है कि वॉट्सऐप पर लिखी बातों तक कोई नहीं पहुंच सकते। यह बात इसी हद तक ठीक है कि आमतौर पर देश की कोई सरकार लोगों के वॉट्सऐप संदेशों को भेद नहीं सकती, लेकिन जब लोगों के मोबाइल फोन ही सरकारी एजेंसियों के हाथ लग जाते हैं, तो फिर उसी फोन से वॉट्सऐप चैट को डाऊनलोड कर लेना किसी मोबाइल शॉप के छोटे से कर्मचारी के लिए भी बाएं हाथ का खेल है।
एक आईपीएस अफसर की मोबाइल चैट उसके जुर्म का बहुत बड़ा सुबूत होकर ईडी के हाथ लगी है, यह एक अलग बात है कि उस जुर्म में ईडी की कोई दिलचस्पी नहीं है, और न ही वह उसके अधिकार क्षेत्र की जांच है। लेकिन जो पुख्ता खबरें इस चैट को लेकर आई हैं, वे एक आईपीएस की नौकरी खाने के लिए बहुत हैं, राज्य न सही केंद्र सरकार भी ऐसे जुर्म पर अपने अफसर को बर्खास्त कर सकती है, और यह सुबूत तो इस आईपीएस की चैट से ही जांच एजेंसी के हाथ लगा है। अब गले-गले तक काम में डूबी हुई ईडी यह मामला केंद्र सरकार तक बढ़ाती है, या उसे छोड़ देती है, यह अभी साफ नहीं है, और वक्त ही इसे बताएगा। फिलहाल इस चैट को जानने वाले लोगों का कहना है कि यूपीएससी पर लानत है।
भत्ते से कितनी राहत मिलेगी बेरोजगारों को?
पिछले साल दिसंबर में 46 हजार 616 पदों के लिए प्रदेश भर में मेगा रोजगार मेले आयोजित किए गए थे। आश्चर्यजनक ढंग से इसमें आवेदन करने वालों की संख्या केवल 8000 थी। यानी पद के मुकाबले 20 फ़ीसदी भी नहीं। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी दर होने के सुनहरे आंकड़ों के बीच चुनावी साल में बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा के बाद हर एक जिले के रोजगार पंजीयन कार्यालयों में युवाओं की कतार लगी हुई है। दरअसल रोजगार मेलों में पीजी, एमबीए, इंजीनियरिंग पास युवाओं को जो नौकरियां निजी कंपनियां दे रही हैं, उनमें वेतन 8 हजार से शुरू होकर बमुश्किल 15 से 16 हजार तक ही जाता है। कारपेंटर, प्लंबर, ड्राइवर जैसे आठवीं पास हुनरमंद भी इतना कमा लेते हैं और अपनी शर्तों पर काम के घंटे तय करते हैं। निजी कंपनियां 10-12 घंटे काम लेती हैं। कोई अतिरिक्त लाभ नहीं, सेवा स्थायी भी नहीं। दूसरी तरफ कलेक्टर दर पर काम करने वाले दैनिक वेतन भोगियों की भी मासिक तनख्वाह इससे अधिक है। सरकारी दफ्तरों का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी 30 हजार के आसपास वेतन उठाता है।
साल 2022 में रोजगार मेलों के माध्यम से 50,000 का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन सिर्फ 10,000 ने निजी कंपनियों की नौकरी ली।
सन् 2014 के चुनाव में दिया गया दो करोड़ युवाओं को हर साल नौकरी या रोजगार का आश्वासन केंद्र सरकार पूरा नहीं कर पाई। एक सपना युवाओं के सामने रखकर 12 हजार करोड़ रुपए का कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया गया। सन् 2016 से 2020 तक इसमें एक करोड़ प्रशिक्षित युवाओं को प्लेसमेंट देने का लक्ष्य था। मार्च 2022 में अपनी एक रिपोर्ट में मनी कंट्रोल डॉट कॉम ने बताया कि सिर्फ 20.5त्न प्रशिक्षित युवा रोजगार अथवा निजी संस्थानों में नौकरी पा सके।
केंद्रीय बजट 2023-24 में इसी विफल योजना के 4.0 चरण की घोषणा की गई है। चुनावी साल है लिहाजा 47 लाख युवाओं को स्टाइपेंड देने की बात भी की गई है। इसे अमृत काल की सात बड़ी परियोजनाओं में से एक कहा गया है।
1 अक्टूबर 2022 की सीएमआईई की रिपोर्ट, जिसके मापदंड को कई विशेषज्ञ नकारते हैं, प्रदेश सरकार के लिए अपनी पीठ थपथपाने का कारण हो सकता है। इसमें राज्य की बेरोजगारी दर 0.1त्न बताई गई है। दूसरी ओर उसके एक महीने पहले सामने की खबर है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने 8वीं पास के लिए चपरासी भर्ती के 91 पद निकाले। इसके लिए पीजी, इंजीनियरिंग, एमबीए पास युवाओं सहित सवा दो लाख बेरोजगारों ने आवेदन किया। पीएससी की तर्ज पर कठिन परीक्षा के दौर से उन्हें चयन के लिए पहली बार गुजरना पड़ा। सरकारी न सही, कोई सम्मानजनक निजी संस्थानों की नौकरी या रोजगार युवाओं को देने में केंद्र और राज्य दोनों के पास ठोस कार्यक्रम नहीं हैं।
दांव-पेंच के 20 दिन
छत्तीसगढ़ में कांगे्रस का राष्ट्रीय अधिवेशन पार्टी के पिछले पांच बरस का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें दस हजार लोग प्रदेश के बाहर से आ सकते हैं, जाहिर है कि इतना बड़ा इंतजाम मुख्यमंत्री ही करवा सकते हैं। यह मौका सत्तारूढ़ पार्टी के अलग-अलग गुटों के लिए भी एक बड़ा मौका बनकर आया है कि आपस के हिसाब चुकता कर लिए जाएं। दिल्ली से आए हुए पार्टी के बड़े नेताओं के सामने छत्तीसगढ़ के नेता तरह-तरह के दांव चल रहे थे, और उसका कोई असर हो रहा था या नहीं, यह तो पता नहीं। फिलहाल अगले 20 दिन यह दांव-पेंच चलते रहेंगे, और कांग्रेसियों का असली रंग भी दिखता रहेगा। इस कार्यक्रम का कामयाबी से हो जाना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम रहेगा, और इसलिए भी मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी सरकार भी इंतजाम में जुट गई है।
केसीआर और अमित की मुलाकात
जनवरी 2022 में तेलंगाना में केसीआर के नेतृत्व में विपक्षी एकता का शक्ति प्रदर्शन किया गया था जिसमें अरविंद केजरीवाल, पी विजयन और अखिलेश यादव जैसे नेता शामिल हुए। इस सवाल के बीच कि यह गठबंधन क्या भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी ने हैदराबाद में केसीआर से मुलाकात की है। छत्तीसगढ़ में पारंपरिक मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की संभावना के बावजूद नतीजों पर तीसरे दलों की मौजूदगी हार-जीत पर असर डालती है। हाल ही में अमित जोगी ने राहुल गांधी भारत छोड़ो यात्रा के समापन में नहीं पहुंच पाने पर खेद जताया था और इस यात्रा की प्रशंसा की थी। तब यह चर्चा जोर पकडऩे लगी थी कि उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो सकता है। पर केसीआर से मुलाकात उल्टी दिशा का कदम है। आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति को भारत जोड़ो यात्रा में आमंत्रित नहीं किया गया था। कांग्रेस ने इन दोनों से दूरी यह समझकर बना रखी है कि ये भाजपा विरोधी मतों का विभाजन करना चाहते हैं। बस्तर से सटे कुछ इलाकों में केसीआर कुछ संभावनाएं तलाश जरूर सकते हैं लेकिन शेष छत्तीसगढ़ में शुरुआत शून्य से उसे करनी होगी। किसी तीसरे दल की मदद से ऐसा वे कर सकते हैं। सन 2018 के विधानसभा चुनाव में स्वर्गीय अजीत जोगी की उपस्थिति के बीच 5 सीटें छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के पास थी, लेकिन अब 2 रह गई है। विकल्प बनने की कोशिश में छजक? ने उस वक्त बहुजन समाज पार्टी से तालमेल किया था, जो कुछ समय बाद हुए लोकसभा चुनाव में टूट गया। इधर आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ की सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे का ऐलान कर ही दिया है। यानि वह किसी तीसरे दल के साथ मिलकर मैदान में नहीं उतरने वाली। ऐसी परिस्थिति में केसीआर और अमित जोगी दोनों को एक दूसरे की जरूरत हैं।
रहिमन निज मन की व्यथा...
बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव की प्रतिक्रिया के बाद उनके पति अमिताव घोष रुके नहीं बल्कि फेसबुक पर उन्होंने कई आरोप और लगा दिए हैं, जो पहले से ज्यादा गंभीर हैं। उन्होंने इस बात को 100 फीसदी गलत बता दिया कि विधायक पत्नी के विरुद्ध कहे गए कथित अपशब्दों की वजह से उन्होंने उनको राजनीति छोडऩे की सलाह दी है। उन्होंने न केवल विधायक पर बल्कि उनके निजी सहायकों पर अपने को अपमानित करने का आरोप लगाया है। तीन बार अपने पीटे जाने का जिक्र किया है। स्व. रामचंद्र सिंहदेव के फैसले पर भी सवाल किया है कि ऐसी कौन सी विवशता थी कि वे अपने जीवन के अंतिम दो साल में अंबिका सिंहदेव को अपना उत्तराधिकारी बनाकर चले गए। बैंकुंठपुर के मतदाताओं और विधायक के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में पति की नई प्रतिक्रिया पर क्या असर होगा, यह सवाल तो बाद का है, अनेक लोगों ने यह कहा है कि उन्हें पति-पत्नी के बीच की असहमति या विवाद को इस तरह सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुद को सही साबित करने में सब कुछ बिखर जाएगा। कुछ ने कहा है कि जब आप उनके राजनीति में आने पर सहमत नहीं थे तो उनके चुनाव प्रचार में क्यों पहुंचे थे। ज्यादातर लोगों ने कामना की है कि शांत मन से विचार विमर्श करें और परिवार एकजुटता और मधुरता से रहे। कुछ ने इसी विषय पर अलग से पोस्ट डाली हैं- स्त्री कभी हारती नहीं, उसे समाज क्या कहेगा, कहकर डराया जाता है। एक ने लिखा- मेरी व्यथा सुनकर शायद आपकी आंखों में आंसू आ जाए, पर पारिवारिक विषय मेरा अपना है, दुनिया का नहीं। फेसबुक पर कहने का उद्देश्य सहानुभूति अर्जित करना हो सकता है, उद्देश्य संबंधों को बचाए रखने का कतई नहीं। संभव है आर्थिक अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रही हों, या पत्नी के प्रति हीन भावना घर कर रही हो...।
जब सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल ही दी गई और मंच सबके लिए खुला हो तो ऐसी प्रतिक्रियाओं का आना स्वाभाविक है। रहीम कह गए हैं- रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखी गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बांटि न लैहैं कोय। यानि, आपकी व्यथा मन में रखें लोग सुनकर हंसी उड़ाएंगे। दुख कोई बांटेगा नहीं।
कांग्रेस को अपने गोल में घेरती भाजपा
धर्मांतरण, धार्मिक पहचान, आदिवासी बनाम वनवासी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा वर्षों से राजनीति करती आई है। आरक्षण पर भी उसका नजरिया आरएसएस से मिलता-जुलता है जो इसकी समीक्षा करने की मांग उठाता है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के दूसरे भागों में भी पिछले 9-10 साल से भाजपा का इन पर प्रयोग लोकसभा चुनावों में सफल हो रहा है, जबकि विधानसभा चुनावों में कारगर नहीं रहा। सन् 2018 के चुनाव में किसानों की नाराजगी, भ्रष्टाचार, आउटसोर्सिंग, बी टीम जैसे मुद्दों के अलावा एंटी इंकमबेसी के चलते बीजेपी की जबरदस्त हार हुई। 68 सीटों के साथ कांग्रेस के वोट शेयर में 2013 के मुकाबले सीधे 10 फीसदी की एकमुश्त वृद्धि हुई थी। उस वक्त भाजपा ने अब की बार 65 पार का नारा दिया था।
बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे के जोर पकडऩा भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। बागेश्वर धाम बाबा के रायपुर प्रवास पर कांग्रेस ने उनके विवादित बयानों पर अधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। अब इस समय तुलसीदास कृत रामचरित मानस चर्चा में है। कुछ दोहों को संशोधित करने की मांग यूपी के पिछड़े वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने उठाई, बाद में बिहार से तेजस्वी यादव ने। देशभर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस पर लगातार बहस चला रखी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी पूछे गए सवाल का जवाब दिया और विनोबा भावे का जिक्र करते हुए मीडिया से कहा कि ग्रंथों में जो ग्रहण करने योग्य है उसे मानें, सब जस का तस मानना जरूरी नहीं है। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने कहा कि सीएम बताएं कि चौपाई का कौन सा हिस्सा हटाना चाहिए? आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, उन्हें आदिवासी कहा जाए या वनवासी- इस पर भी कांग्रेस भाजपा का अलग-अलग नजरिया है। सीएम ने दो दिन पहले कहा कि आदिवासी जंगलों के मालिक हैं, उन्हें वनवासी कहना उनका अपमान है। इधर आबकारी मंत्री कवासी लखमा पहले ही कहते आए हैं आदिवासी जंगल के भगवान हैं, वनवासी नहीं। उनका कांकेर और रायपुर से बयान आया है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं। हिंदू अलग तरह से पूजा करते हैं, हम अलग।
इन सब मुद्दों पर बहस का होना असल मुद्दों से मतदाताओं को भटकाने का अच्छा तरीका है। किसी राजनीतिक दल की सफलता इसमें निहित है कि वे चुनाव में अपनी पसंद पर विपक्ष को उलझा दे। भाजपा अगले विधानसभा चुनाव के लिए इस दिशा में तेजी से बढ़ते दिखाई दे रही है।
छत्तीसगढ़ से संयुक्त राष्ट्र तक
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पुराने वक्त से प्रचलित मोटा अनाज कही जाने वाली कोदो-कुटकी सरीखे कई किस्म की फसलों को बढ़ावा देने में लगे हैं, और अभी-अभी प्रधानमंत्री से भी इन फसलों, मिलेट के लिए वाहवाही पा चुके हैं। अब संयुक्त राष्ट्र संघ में काम करने वाले छत्तीसगढ़ से गए आनंद पांडेय ने आज वहां का एक पोस्टर भेजा है कि किस तरह वहां 14 से 17 फरवरी तक भारत सरकार की तरफ से एक मिलेट प्रदर्शनी लग रही है जिसके लिए दुनिया भर के लोगों को वहां आकर सुपर फूड, सुपर ग्रेंस, और वंडर ग्रेंस कहे जाने वाले मिलेट्स के व्यंजन चखने का न्यौता दिया गया है। अब छत्तीसगढ़ से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक मिलेट का बोलबाला इसलिए भी है कि 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष बनाया गया है। शहरी जिंदगी में उटपटांग खा-खाकर जो लोग मोटे हो गए हैं, उन्हें भी अपना वजन और शुगर लेवल कम करने के लिए मिलेट सुझाया जाता रहा है, और अब जाकर वह सरकारी बढ़ावा देख रहा है। भूपेश बघेल के भेजे मिलेट-तोहफे के जवाब में अमिताभ बच्चन ने भी शुभकामनाएं भेजी हैं, और इससे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों के असंगठित किसानों की कमाई का एक नया जरिया भी शुरू हो सकता है।
रफ्तार गाड़ी, और फाईल की!
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की गाड़ी का कल एक्सीडेंट हुआ, और वह एक बहुत बड़ा जानलेवा एक्सीडेंट हो सकता था, उससे वे बच गए। मंत्रियों के काफिले बड़ी तेज रफ्तार से चलते हैं, और किसी हादसे की नौबत आने पर उन पर छाया खतरा बड़ा रहता है। ऐसे में सरकारें ताकतवर ओहदों पर बैठे हुए लोगों की गाडिय़ां समय रहते बदल देना बेहतर समझती हैं। कल के हादसे की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि सिंहदेव की गाड़ी डेढ़ लाख किलोमीटर चल चुकी थी, और उसे बदलने के लिए सरकार को लिखा जा चुका था। गाड़ी बदलने पर कोई फैसला हो पाता, इसके पहले यह हादसा हो गया, जिसमें गनीमत यही है कि उन्हें नुकसान नहीं हुआ। अब पता लगा है कि इसके बाद नई गाड़ी की यह फाईल वीआईपी काफिले की रफ्तार से आगे बढ़ाई गई है।
नायक और खलनायक
आज अडानी का हाल देखकर बड़े-बूढ़े लोगों की यह बात सही साबित हो रही है कि बद अच्छा, बदनाम बुरा। यानी जो लोग सच में खराब रहते हैं, उन्हें तो लोग एक सीमा तक ही बुरा समझते हैं, लेकिन जो लोग अधिक बदनाम हो जाते हैं, उन्हें अधिक बुरा समझते हैं। अडानी अपनी राजनीतिक पहुंच की चर्चा से खासे बदनाम चल रहे थे, छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों के दुश्मन के रूप में अडानी एक खलनायक की तरह चले आ रहे थे, और उनकी कंपनी के अफसरों के लिए मीडिया में जाकर सफाई देना धीरे-धीरे नामुमकिन हो गया था। सत्ता की मेहरबानी अगर किसी कारोबार पर है, तो उससे उसका फायदा भी होता है, और उसका नुकसान भी। देश-प्रदेश में बाकी कारोबारियों को भी इससे सबक लेना चाहिए कि राजनीति से न दोस्ती भली, न दुश्मनी। आज हिन्दुस्तान में टाटा जैसी कंपनी है जिसकी साख बाकी उद्योगों से बहुत बेहतर है, और जिसने अपने आपको किसी राजनीति की मेहरबानी से दूर भी रखा है। नतीजा यह है कि इसी टाटा से भारत सरकार ने जो एयरलाईंस छीनी थी, आज वह घूम-फिरकर उसी के पास वापिस गई है, और लोग इसके बेहतर होने की उम्मीद लगा रहे हैं। कारोबारियों में हर कोई खलनायक नहीं होते हैं, विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी की तरह के देश के सबसे बड़े दानदाता बनकर नायक भी होते हैं। अब इस बात को कई लोग अलग-अलग प्रदेशों पर भी लागू करके देख रहे हैं।
सरकार और जमीनों का बाजार
नया रायपुर और रायपुर के बीच के इलाकों में भूउपयोग के सरकारी नियमों में कुछ रहस्यमय और बड़े फेरबदल की चर्चा है, और इससे जमीन कारोबारियों का बहुत बड़ा नफा-नुकसान हो सकता है। देखें कि यह चर्चा कितनी सही निकलती है। वैसे कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को भी गिना रहे हैं कि सरकार ने नया रायपुर बसाने के लिए लोगों की जमीनें जबर्दस्ती ले ली थीं, और आने वाले बहुत समय तक उनके इस्तेमाल का कोई आसार नहीं है, इसलिए भूस्वामी उन जमीनों को वापिस पाने का हक रखते हैं। अब पता नहीं सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला नया रायपुर के ऐसे बहुत बड़े हिस्से पर लागू होता है या नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसी संभावनाओं को टटोल जरूर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ, तो भी रायपुर के जमीनों का बाजार एकदम बदल जाएगा।
रसीला स्ट्रॉबेरी अब जशपुर से
अनुकूल मौसम और भौगोलिक स्थिति का लाभ लेते हुए जशपुर में अलग-अलग तरह की फसलों को लेने का प्रयोग चल रहा है। इस बार किसानों ने स्ट्रॉबेरी पर हाथ आजमाया है। छत्तीसगढ़ में स्ट्रॉबेरी हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र से आता है। यह काफी महंगे भी बिकते हैं। छत्तीसगढ़ के बाजारों में अब बलरामपुर, अंबिकापुर और जशपुर जिले के किसानों की स्ट्रॉबेरी भी दिखेगी।
फिर कौन देखेगा धरना-प्रदर्शन
अक्टूबर 2017 में एनजीटी के आदेश के पालन में दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी थी। ट्रैफिक जाम होने के कारण होने वाले प्रदूषण को इसका आधार बनाया गया था। आदेश के बाद वन रैंक वन पेंशन स्कीम के लिए आंदोलन कर रहे पूर्व सैनिकों सहित मजदूर किसान और कर्मचारियों के अनेक संगठनों के तंबू वहां से उखाड़ दिए गए। इस आदेश को मजदूर किसान शक्ति संगठन इंडियन एक्स सर्विसमैन यूनियन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसमें सेंट्रल दिल्ली में पूरे साल भर धारा 144 लगाकर रखने के आदेश को भी असंवैधानिक कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में फैसला दिया और एनजीटी के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही बोट क्लब पर भी लगाई गई रोक हटा दी।
राजधानी रायपुर में इस समय बूढ़ापारा के पास साल भर चलने वाले आंदोलन के खिलाफ आंदोलन हो रहा है। राजधानी होने के कारण प्रदेश के सारे संगठन यहां इक_े होते हैं और ट्रैफिक संभालने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी होती है। लोगों को विशेषकर स्कूली बसों को गुजरने में बाधा हो रही है। इनडोर स्टेडियम का भी ठीक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। अब बूढ़ापारा में धरना प्रदर्शन पर रोक लगाई जा रही है और नया रायपुर, माना जैसे विकल्पों पर विचार हो रहा है।
इधर, सरकार प्रदर्शन करने वालों से वार्ता करके कोई हल भी नहीं निकालती। और यदि मांगे नाजायज है, तो सख्ती भी नहीं करती। नतीजतन कई आंदोलन तो साल भर से ज्यादा समय से चल रहे हैं। ऐसी कई मांगें हैं जिसे पूरा करने का 2018 के चुनाव में आश्वासन था।
दरअसल, प्रदेश की वास्तविक राजधानी तो नया रायपुर है, पर आज बीस साल बाद भी अफसर, नेता रायपुर में ही शिफ्ट हैं। प्राय: सभी कर्मचारी संगठन नई जगह को लेकर विरोध में हैं। उनका यह कहना जायज है कि रायपुर में तो कोई सुन नहीं रहा, नया रायपुर में कौन सुनेगा? यहां रोजाना कम से कम हजारों पब्लिक हमें देख तो रही है।
इंदिरा जी की योजना का हश्र
बस्तर में बीते एक दशक के भीतर बड़े किसानों की संख्या 35 हजार से बढक़र एक लाख पहुंच गई है। इनके पास 48 फीसदी खेती की जमीन है। लघु किसानों के पास 34 और सीमांत किसानों के पास 18 फीसदी भूमि रह गई है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 20 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया गया था। इस दौरान एक अच्छी भावना से भूमिहीन आदिवासियों को बस्तर में 2-2 एकड़ खेती की जमीन बांटी गई थी। पर अब ये छोटे किसान अपनी जमीन आर्थिक तंगी के चलते बेचने लगे हैं और फिर से भूमिहीन हो रहे हैं। उनकी भूमि खरीदने वालों में आदिवासी किसान, व्यवसायी, अधिकारी ही नहीं बल्कि सामान्य वर्ग के लोग भी शामिल हैं। बीजेपी ने इसे लेकर कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है, पर यह सिलसिला अभी का नहीं है। पिछले 10-12 साल से यह हो रहा है।
बस्तर संभाग के कमिश्नर श्याम धावड़े इस मुद्दे पर कलेक्टरों की बैठक लेने वाले हैं। अगर कानूनी तरीके से किसी ने जमीन बेची है तो उसे कैसे वापस लाया जा सकेगा? बड़े किसानों को खेती के लिए पूंजी की व्यवस्था करने में दिक्कत नहीं होती है। मशीन और तकनीक का इस्तेमाल कर वे मुनाफे की फसल भी ले लेते हैं। जबकि छोटे किसानों के लिए बीज, खाद, पानी सबकी व्यवस्था करना एक बड़ा संकट है। इस चक्कर में वे कर्ज लेते हैं जिसे नहीं चुका पाए तो उन्हें अपनी जमीन बेचने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आता। कहा जाता है कि इस सरकार में किसान सबसे ज्यादा खुश हैं लेकिन बस्तर से आ रही खबर निराशाजनक है।
उदय किरण को भेजने का मतलब?
कोरबा जिले में उदय किरण के एसपी बनकर पहुंचने के बाद एक बड़ा संघर्ष शुरू होने का खतरा दिख रहा है। वे इसी जिले में अभी कुछ समय पहले एडिशनल एसपी थे। और अपने आक्रामक मिजाज के साथ उन्होंने जिले के ताकतवर मंत्री जयसिंह अग्रवाल के कई पसंदीदा, करीबी, और विवादास्पद लोगों पर हाथ डाला था। अब वे जिले के पुलिस कप्तान होकर वहां पहुंचे हैं, और जयसिंह के साथ उनके सांप-नेवले जैसे मधुर संबंध जगजाहिर हैं। चुनाव के कुछ महीने पहले इस जिले में उदय किरण को भेजना सरकार का एक रूख भी बताता है क्योंकि एक के बाद दूसरे कलेक्टर को सार्वजनिक रूप से भ्रष्ट करार देकर जयसिंह सीधे मुख्यमंत्री पर हमला बोलते आए हैं। जयसिंह की कोरबा के हर, और हर किस्म के कारोबार में दखल रहती है। उनके लोग भी हर तरह के हैं, और उनमें से बहुतों के खिलाफ बहुत किस्म के आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। इसलिए उनकी पसंद को दबोचने में अधिक मेहनत भी नहीं लगने वाली है, बस एसपी को राजधानी से हरी झंडी मिलने की जरूरत है। उदय किरण की कोरबा में पोस्टिंग अपने आपमें यह हरी झंडी मानी जा रही है, और इसके बाद देखना होगा कि मुख्यमंत्री को चुनौती वाले तेवर दिखाने वाले जयसिंह अब क्या करते हैं। कोरबा अफसरों और नेताओं के लिए सैकड़ों करोड़ सालाना कमाई की जगह है, और इसमें हिस्से-बांटे का संघर्ष भी चलते ही रहता है। राज्य का सबसे बड़ा कोयला-उगाही कारोबार भी इसी कोरबा में केन्द्रित था जो कि अब अदालत में उजागर हो रहा है। ऐसी जगह पर उदय किरण जैसे तेवर वाले अफसर के आने से राजनीतिक समीकरण भी करवट बदलेंगे, और लोगों की कमाई भी तिजौरियां बदलेगी।
बड़ा वकील क्यों नहीं?
कानून के अच्छे-खासे जानकार, राज्य के एक सबसे बड़े अफसर ने अभी इस बात पर हैरानी जाहिर की कि इतनी बड़ी कमाई के बाद भी लोग जेल पहुंचने के बाद भी अपने लिए किसी बड़े वकील का इंतजाम क्यों नहीं कर रहे हैं? दूसरे कई तरह के मामलों में फंसे हुए इस राज्य के लोग सुप्रीम कोर्ट के नामी-गिरामी वकीलों को लेकर आते रहे हैं, लेकिन अभी माहौल कुछ ठंडा दिखाई पड़ रहा है। पता नहीं अभी शांत बैठने की यह रणनीति किसी बहुत बड़े वकील की मोटी फीस लेकर सुझाई गई रणनीति तो नहीं है?
शिक्षक की कुर्सी किराए पर
स्कूूल शिक्षा विभाग की प्रशंसा के रोज नए मामले सामने आ रहे हैं। पर ये जरा हटकर है। कसडोल विकासखंड के देवरूम की प्राथमिक पाठशाला में बच्चों को जो शिक्षिका पढ़ाने आती थी, उसे दरअसल शिक्षक समीर मिश्रा ने नौकरी पर रखा था। शाला के खुद गायब रहता था, शिक्षिका को पढ़ाने के एवज में 4000 रुपए महीने का भुगतान करता था। हालांकि महिला का कहना था काम पर रखते समय उसे 6000 देने की बात की गई थी, पर मजबूरी में चार हजार मिलने से ही संतुष्ट होना पड़ा। शिकायत सही पाए जाने पर कलेक्टर रजत बंसल ने उसे निलंबित कर दिया। पर महिला शिक्षक फिर से बेरोजगार हो गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने तय किया है कि अब कम वेतन पाने वाले शिक्षा कर्मियों की भर्ती नहीं की जाएगी। इसकी जगह नियमित नियुक्ति की जाएगी। बचे शिक्षा कर्मियों को बारी आने पर नियमित भी किया जा रहा है। पर यह घटना दर्शाती है कि कम वेतन पर भी काम करने वालों की कतार लगी हुई है। ज्यादा पाने वाले कई लोग यहां-वहां लुढक़े हुए मिल रहे हैं।
भविष्य की फसल लेकिन..
पहली बार सुनने पर आश्चर्य हो सकता है कि कोई चावल काले रंग का भी हो सकता है। ब्लैक राइस नाम में, रंग में, पकाने में, सब में काला है। यह नई पीढ़ी की फसल है, जिसकी खेती छत्तीसगढ़ में भी होने लगी है। पहले सिर्फ मणिपुर और असम में होती थी। कोरबा और जीपीएम जिले में कुछ किसानों ने इसे प्रायोगिक तौर पर उगाना शुरू किया है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट कॉफी से भी अधिक है, कैंसर रोधी गुण भी पाए गए हैं। क्वालिटी के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह 200 से लेकर 1000 रुपए किलो तक बिक रहा है। वैसे भी भारत चावल निर्यातक देश है, ब्लैक राइस की भी विदेशों में बड़ी मांग है।
यह तो इस काले उत्पाद का उजला पक्ष है, पर सावधानी रखी गई तो बरबादी भी है। यूपी के चंदौली जिले में कलेक्टर ने अति उत्साह दिखाया। वहां 500 हेक्टेयर में किसानों को यह फसल लेने के लिए प्रेरित किया गया। चर्चा इतनी हुई कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी 20 मार्च 2022 के मन की बात में किसानों और कलेक्टर को सराहा। पर फसल आई तो क्वालिटी खराब निकली। विदेशी क्या देश के व्यापारियों ने भी लेने से मना कर दिया। चंदौली के किसान करीब दो करोड़ रुपए के कर्ज में डूब गए। बहुत सा कर्ज साहूकारों से लिया गया था। दरअसल इसके बीज काफी महंगे हैं, पानी और ऑर्गेनिक खाद पर भी अधिक खर्च होता है। फसल दूसरे धान से आधी मिलती है, मौसम का एक झटके में असर होता है। बहुत से किसान अपने प्रदेश में हैं, जो नए प्रयोग करते रहते हैं। सरकार भी इनको प्रोत्साहित करती है। काले चावल का आकर्षण भी नया है, पर लागत, उत्पादन, क्वालिटी और बाजार की स्थिति क्या है, इसका अध्ययन किए बिना इसकी खेती में उतरना जोखिम भरा हो सकता है। वैसे कृषि वैज्ञानिक काले धन की संकर किस्में और हाइब्रिड बीज पर शोध कर रहे हैं, जिससे मजबूत फसल की भविष्य में संभावना बनी हुई है।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
छत्तीसगढ़ में भाजपा की चुप्पी रहस्यमय है। राज्य में इतना कुछ हो रहा है, लेकिन भाजपा के बड़े-बड़े नेता मुंह में दही जमाए बैठे हैं। ऐसा लगता है कि हर कुछ हफ्तों में जब पार्टी के नेताओं पर ऊपर से कोई दबाव पड़ता है, तो उनके मुंह से बचते-कतराते कोई बयान निकल जाता है, बाकी वे अपनी हिफाजत की फिक्र करते बैठे रहते हैं।
भाजपा के नौजवान नेता ने अपनी पार्टी के बड़े नेताओं का हाल बताया कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के कुछ मामलों के खिलाफ हाईकोर्ट में पिटीशन लगाने की सलाह उन्होंने दी तो बड़े-बड़े नेताओं को मानो सांप सूंघ गया। उनमें से कोई खुद तो तैयार हुए ही नहीं, किसी के मुंह से यह भी नहीं निकला कि चलो तुम ही पिटीशन लगा दो। कांग्रेस सरकार के लिए यह बड़ी सहूलियत की नौबत है कि विपक्ष मानो कोमा में पड़ा है। छत्तीसगढ़ का अगला विधानसभा चुनाव शायद मोदी-शाह के भरोसे लड़ा जाएगा, और उसी उम्मीद में राज्य के भाजपाई शांत बैठे हैं।
जुए के पैसे से मेला
छत्तीसगढ़ में फसल आने के बाद जगह-जगह मेले मड़ई का आयोजन होता है। मनोरंजन, खरीदारी और मेल मिलाप का यह एक अच्छा अवसर होता है। पहले यह आयोजन 2-4 गांवों के लोग आपस में सामूहिक चंदा करके करते थे। बाद में जब पंचायतों के पास फंड आने लगे तो वहां से भी अनुदान मिलने लगा। पर, इन दिनों एक नया तरीका इजाद कर लिया गया है। अब मेले में फड़ बांटे जाते हैं। यानी जुआ खेलने के लिए जगह दी जाती है। एक फड़ की बोली एक लाख रुपए या उससे अधिक हो सकती है। युवा और बुजुर्ग मेले में सरेआम होने वाली इस जुआ खोरी में शामिल तो होते ही हैं, बच्चे भी सीखने लग जाते हैं। महासमुंद, धमतरी, सरसीवा, मगरलोड, अर्जुनी आदि थाना क्षेत्रों से हाल ही में फड़ लगाने वाले कई लोगों की गिरफ्तारी भी पुलिस ने की है। पर ज्यादातर मामलों में इसे नजरअंदाज ही किया जाता है। जुआ खेलने वालों का कहना है कि सबसे पहले तो हम थाने में ही सेटिंग करते हैं। कई बार दिखावे के लिए पुलिस को कार्रवाई जरूर करनी पड़ती है लेकिन उनकी सहायता से ही यह संभव हो पाता है।
बच्चों का निवाला
छत्तीसगढ़ में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई किस तरह लड़ी जा रही है, उसका एक उदाहरण है यह। बस्तर ब्लॉक में एक जगह विश्रामपुरी है, जहां प्राथमिक शाला की बच्चियों के लिए आश्रम बनाया गया है। कल शाम को कुछ लोग यहां से गुजरे तो बच्चों की थाली पर उनकी नजर गई। खाने में थोड़ा चावल और पतली दाल के अलावा कुछ नहीं था। सब्जी भी गायब। बच्चों बताया कि रोज ही ऐसा खाना मिलता है। यह बच्चे उम्र में छोटे प्राथमिक शाला में पढऩे वाले हैं और प्राय: गरीब आदिवासी परिवारों से हैं। शासन की ओर से तो इन्हें अच्छा खाना देने के लिए पूरा फंड मिलता होगा, लेकिन सरकारी कर्मचारी इन बच्चियों का निवाला छीन रहे हैं। उन्हें लगता होगा जिंदा रखने के लिए इनको इतना ही देना काफी है। शासन का निर्देश है कि अधीक्षिका को 24 घंटे हॉस्टल में ही रहना है। पर यहां उनकी सुरक्षा से जुड़ा सवाल भी है। वह 3 दिन से हॉस्टल से गायब हैं।
ध्वनि प्रदूषण कम करने की पहल
राजधानी रायपुर में एक बार फिर कानफोड़ू डीजे बंद कराने की मांग लेकर आए सामाजिक संगठनों को कलेक्टर एसपी ने आश्वस्त किया है। इसे लेकर पहले भी गाइडलाइन जारी कर थानेदारों को निर्देश दिया गया था। कुछ कार्रवाई भी हुई। 29 जनवरी को ही राखी, नवागांव मे एक साउंड सिस्टम जब्त कर कोलाहल अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कड़े निर्देश जारी किए हैं, सीधे कलेक्टर को जिम्मेदार बताया गया है, पर अधिकतर मामलों में पुलिस तब कार्रवाई करती है जब नागरिक इसकी शिकायत करते हैं। कई बार नियम तोडऩे वाले लोग इतने रसूखदार होते हैं कि पुलिस हाथ डालने से बचती है। बीते साल नवंबर में वेलकम फेस्टिवल के नाम पर एम्स परिसर में ही तीन दिन तक डीजे बजता रहा। इसकी शिकायत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से भी की गई थी। कल सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अफसरों से बातचीत के दौरान इस बात पर भी नाराजगी जताई कि थाने से शिकायत करने वालों का नाम उजागर कर दिया जाता है। शहर में जिस तरह से चाकूबाजी की घटनाएं हो रही हैं, उन्हें हमले का खतरा महसूस होता है। चिंतित, जागरूक नागरिकों के साथ बैठक कर उन्हें आश्वस्त करना तो ठीक है, पर प्रशासन को उन धार्मिक संगठनों और विभिन्न समुदायों के प्रमुखों को भी हिदायत देनी चाहिए जो शोभायात्रा, रैली या बरात बिना डीजे नहीं निकालते। इस बीच एक अच्छी खबर रायपुर के जैन समाज की ओर से आई। समाज ने तय किया है कि शादियों पर अब डीजे बजेगा, शादियां भी दिन में ही होगी। पहले यह रायपुर में लागू किया जाएगा, फिर प्रदेश के दूसरे शहरों में भी।
डीएफओ ऑफिस का सूचना पटल
कोंडागांव के ये डीएफओ आगाह कर रहे हैं, अपनी लाचारी बता रहे हैं या खुद के ईमानदार होने की डुगडुगी बजा रहे हैं, यह पता नहीं चल रहा है। यह पर्चा किसके लिए चिपकाया गया है यह भी साफ नहीं है। ठेकेदारों, सप्लायरों के लिए तो हो नहीं सकता। यदि यह पत्रकारों के लिए है तो उनकी ओर से भी इसका जवाब आना चाहिए।
सरगुजा, सिंहदेव और कांग्रेस
बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव के पति अमिताओ घोष की फेसबुक पोस्ट के पीछे की भावना यह हो सकती है कि वे परिवार और बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पर इस बात को क्या सार्वजनिक रूप से उजागर करना जरूरी था? क्या दोनों के बीच आपस में इस विषय पर कोई बातचीत नहीं हुई और हुई तो सहमति नहीं बनी? राजनीति है ही उठापटक का फील्ड। फिर कोरिया में कांग्रेस की राजनीति में तो भारी उथल-पुथल है ही। जिले के विभाजन को लेकर सिंहदेव की असहमति थी। हाल में पूर्व मंत्री भैयालाल राजवाड़े के बयान से भी अप्रिय स्थिति पैदा हो गई थी। वे संसदीय सचिव जरूर हैं, पर अकेले नहीं, दूसरे विधायकों को भी अपना कद बढ़ाने के मौके मिले हुए हैं। स्व. रामचंद्र सिंहदेव की विरासत को संभालने के मकसद से उन्होंने जरूर चुनाव की राजनीति में उतरना ठीक समझा हो पर मौजूदा परिस्थिति तब की तरह नहीं हैं। पारिवारिक कारणों के अलावा शायद उनके जीवनसाथी ने इस विषय पर भी गौर किया हो।
यह संयोग ही है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अगला चुनाव लडऩे को लेकर अपनी अनिच्छा जताई है। इधर बैकुंठपुर में भी आसार दिखाई दे रहा है कि सिंहदेव परिवार चुनाव मैदान से बाहर हो जाएगा। यदि सिंहदेव बिरादरी के ये दोनों सदस्य 2023 के विधानसभा चुनाव में सक्रिय नहीं रहे तो इसका कोरिया, सरगुजा में काफी असर दिखाई देगा। ([email protected])
मामला कहां तक पहुंचेगा
छत्तीसगढ़ के कोयला-उगाही कारोबार में ईडी ने जो ताजा चार्जशीट अदालत में पेश की है, उससे सनसनी का एक नया दौर शुरू हुआ है। कई हजार पन्नों वाली इस चार्जशीट के पहले 178 पेज पर जांच एजेंसी ने पूरी कहानी लिखी है, और यह तस्वीर पूरी करने के लिए बहुत से बयान भी इस्तेमाल किए हैं। महीनों से चले आ रहे इस मामले में यह पहला मौका है कि कुछ आईपीएस अफसरों के बयान भी इसमें लगाए गए हैं। कल रात देर तक प्रदेश के कई आला अफसर अपने लैपटॉप और टैबलेट लेकर बैठे थे, और इस मामले की कानूनी संभावनाओं पर आपस में चर्चा भी कर रहे थे। लोगों की चर्चा में अब तक ईडी में छत्तीसगढ़ के 6 या 7 आईपीएस अफसरों के बयान लेने का जिक्र है, जिनमें से 3 के नाम इस चार्जशीट में हैं। अब बाकी के 3 या 4 अफसर कौन हैं, यह अटकल भी राज्य में चल रही है। जिन नामों का भी लोगों को अंदाज है, उनसे पूछने पर हर कोई मना कर दे रहे हैं कि उनसे पूछताछ नहीं हुई है, लेकिन जानकार लोग जानते हैं कि अब तक किन लोगों के बयान हो चुके हैं। एक दिलचस्प बात इस चार्जशीट में यह है कि एजेंसी ने अदालत से यह कहा है कि 8 प्रमुख लोगों के खिलाफ उसकी जांच पूरी हो चुकी है। कानून के जानकार लोगों के लिए भी यह एक बहुत बड़ी चुनौती है कि यह मामला कहां तक पहुंचेगा, इसकी अटकल लगाएं।
सैलून में ज्ञानवर्धन
तमिलनाडु के तुतिकोडी को मोतियों के शहर के रूप में जाना जाता है। मगर यहां एक हेयर कटिंग सैलून चलाने वाले पोन मरियप्पन की चर्चा भी सोशल मीडिया पर होती रहती है। मरियप्पन अपने सैलून में स्टाइलिश बालों वाली ग्लैमरस तस्वीरें सजाकर नहीं रखते, जो आमतौर पर ऐसी जगहों पर दिखती हैं। सैलून के एक हिस्से में उन्होंने एक लाइब्रेरी बना रखी है, जिनमें करीब 1000 किताबें हैं। अपनी बारी का इंतजार करते हुए ग्राहक किताबें पढ़ते हैं। खुद केवल आठवीं पास मरियप्पन चाहते हैं खाली समय में लोग किताबों से जुड़े रहें। जो ग्राहक किताबें पढक़र उसके बारे में कुछ बताता, लिखता है उसे मरियप्पन 30 फीसदी डिस्काउंट देते हैं। सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा जरूर अभी हो रही है पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 25 अक्टूबर 2020 को मन की बात कार्यक्रम में इनकी तारीफ कर चुके हैं। ([email protected])
तब से प्री-वेडिंग-शूट तक
आज संपन्न तबकों में शादियों के पहले प्री-वेडिंग-शूट का चलन खूब बढ़ गया है। महंगे फोटोग्राफर तरह-तरह की महंगी पोशाकों में, कई किस्म की महंगी लोकेशन पर होने वाले दूल्हा-दुल्हन के कई किस्म के फोटो खींचते हैं, और वीडियो बनाते हैं। फिर इन्हें शादी के कार्ड की तरह या सोशल मीडिया पर हफ्तों पोस्ट किया जाता है। शादी के पहले से हनीमून जैसा नजारा परिवार को भी देखने मिलता है, और सोशल मीडिया पर जुड़े हुए तमाम लोगों को भी।
अब ऐसे माहौल में इस अखबार के संपादक सुनील कुमार को अपने माता-पिता की शादी का एक ऐसा पर्चा मिला है जो कि सडक़ किनारे बंटने वाले गुलाबी कागज के पम्पलेट सरीखा छपा हुआ है। 28 जनवरी 1947 की शादी का यह पर्चा दूल्हे के परिवार के दर्जन भर लोगों का नाम बताता है, दूल्हे का नाम बताता है, शादी की तारीख, जगह बताता है। चलते-चलते आखिरी में वह दुल्हन के परिवार के बुजुर्गों के नाम भी बताता है, लेकिन इतने बड़े पर्चे में दुल्हन के नाम की कोई जगह नहीं है, कहीं उसका कोई जिक्र नहीं है, बस यही लिखा हुआ है कि फलां परिवार में बारात जाएगी। यह आजादी के कुछ महीने पहले का, पौन सदी पहले का कार्ड है जिसमें लडक़ी के किसी जिक्र की भी जरूरत नहीं थी। और आज प्री-वेडिंग-शूट तक समाज बड़ा लंबा सफर तय कर चुका है।
जब तक जेब पर लात नहीं
रेलवे स्टेशनों पर, और कई प्रदेशों के पुलिस के सोशल मीडिया पोस्ट में हिन्दी फिल्मों के मशहूर डायलॉग, और किरदारों का तरह-तरह से इस्तेमाल देखने मिलता है। लेकिन हिन्दुस्तान है कि यहां लोगों को सिखाई गई सफाई रास नहीं आती है। रविशंकर विश्वविद्यालय के बहुत साफ-सुथरे और हरे-भरे परिसर में दर्जनों सफाईकर्मी महिलाएं एक सरीखी लाल साडिय़ों में लगातार सफाई करते दिखती हैं, और सडक़ किनारे की जंगली घास और झाडिय़ों के बीच से भी गुटखे-तम्बाकू के एक-एक खाली पाउच बीनते हुए उनकी कमर दोहरी होती चलती है। लेकिन लोग हैं कि इस कैम्पस में गाड़ी रोककर दारू पीते रहते हैं, और खाने-पीने के खाली पैकेट के साथ-साथ प्लास्टिक की खाली गिलासें भी फेंक जाते हैं। हर रात यह होता है, और हर सुबह सफाई कर्मचारी महिलाएं यह गंदगी साफ करती हैं। आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी रूप से बहुत ही कमीना है, और वह हर सार्वजनिक जगह को बर्बाद करने को अपना हक मानता है। ऐसे लोगों को जुर्माना और सजा सुनाने के बजाय सरकारी खर्च से बड़े पैमाने पर ऐसी बारीक सफाई करवाना बहुत समझदारी की बात नहीं है। गंदगी फैलाने वाले लोगों पर जुर्माना सख्ती से लगाना चाहिए, क्योंकि जब तक जेब पर लात नहीं पड़ेगी, हिन्दुस्तानियों को सफाई और जिम्मेदारी नहीं सूझेगी।
आरक्षण पर अपने-अपने दांव
उत्तरप्रदेश में सक्रिय भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की छत्तीसगढ़ में मौजूदगी दो फरवरी को दिखेगी। उनका आरक्षण के मुद्दे पर सीएम हाउस घेराव का कार्यक्रम है। आजाद इसमें खुद शामिल होने वाले हैं। वे एससी आरक्षण पर सरकार के रुख से नाराज हैं। इधर आरक्षण पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का रुख भी सामने आ चुका है। एससी, एसटी के अलावा सामान्य वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर देने की उनकी मांग है। आम आदमी पार्टी ने बस्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि वे कांग्रेस, बीजेपी दोनों के रुख से संतुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस की ओर से विधानसभा में पारित विधेयक को राजभवन में रोका जाना बीजेपी का पैंतरा बताया जा रहा है। बीजेपी की रणनीति आरक्षण पर सेफ गेम खेलकर धर्मांतरण के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने का है। लंबित विधेयक में ओबीसी के प्रस्तावित 27 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस की किलेबंदी है। कुछ एससी और एसटी संगठन विधेयक के प्रावधानों से संतुष्ट नहीं हैं। इन संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। 32त्न आरक्षण की मांग लेकर सर्व आदिवासी समाज ने राजधानी तक 380 किलोमीटर की पदयात्रा कल से शुरू कर दी है। अभी विधानसभा चुनाव की घोषणा में करीब 8-9 महीने बचे हैं। भले ही मुकाबला पारंपरिक होना तय हो पर, कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में और कई और राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की दंगल में वोटों का बंटवारा करने उतरेंगे। सभी का मकसद आरक्षण के मुद्दे पर मतदाताओं का ध्यान खींचने का दिखाई दे रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अचानक छत्तीसगढ़ में यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। वरना रद्द की गई व्यवस्था सन् 2012 से लागू थी। उसके बाद सन् 2013 और 2018 में 2 विधानसभा चुनाव हो चुके। इनमें यह मुद्दा पीछे था। अभी बड़ा सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में आरक्षण की स्थिति शून्य बनी हुई है। भले ही इस डेडलॉक को बेरोजगार युवा इसे तत्काल समाप्त करना जरूरी मान रहे हों, पर कोई भी दल किसी एक वैध व्यवस्था को अस्थायी तौर पर भी लागू करने की आवाज नहीं उठा रहा है।
यह चर्चा कैसे निकल पड़ी?
लोकसभा का बजट सत्र आज 31 जनवरी से शुरू हो गया है। पहला चरण 13 फरवरी तक चलेगा, दूसरा 13 मार्च से 6 अप्रैल तक। प्रदेश के लगभग सभी सांसद सत्र में भाग लेने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। मगर कल से चर्चा सिर्फ दुर्ग के सांसद विजय बघेल के रवाना होने की है। यह कहा गया कि वे बिलासपुर में पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के घर आयोजित विवाह समारोह में भाग लेने के लिए पहुंचे थे और अचानक उन्हें दिल्ली से बुलावा आ गया। उनको कार्यक्रम छोडक़र दिल्ली रवाना होना पड़ा क्योंकि मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है। यह सही है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा हो रही है और कई पद रिक्त भी है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व बढ़ाने की पर्याप्त संभावना भी दिखाई दे रही है। पर क्या यह विस्तार बजट सत्र चलने के दौरान किया जाएगा? नहीं के बराबर इसकी गुंजाइश है। यह जरूर हो सकता है कि 13 फरवरी को जब सत्र का पहला चरण समाप्त हो और मंत्रिमंडल का विस्तार हो। हमारी जानकारी के मुताबिक स्वयं सांसद के खेमे से ही उनके दिल्ली प्रवास को मंत्रिमंडल से जोडऩे की चर्चा निकाली गई जबकि अभी इस बारे में तत्काल कोई निर्णय नहीं हो रहा है कि उन्हें अचानक दिल्ली जाना पड़े।
तश्तरी पर पेश जुर्म का सुबूत
ईडी ने अभी छत्तीसगढ़ सरकार के जिन दो खनिज अफसरों को गिरफ्तार किया है, उनकी बददिमागी और बड़बोलेपन से भी उनकी हरकतें उजागर हुईं, और ईडी जैसी जांच एजेंसी इन छोटे अफसरों के बड़े कारनामों तक पहुंचीं। लोगों को याद होगा कि कई हफ्ते पहले इन दोनों पर ईडी के छापे भी पड़े थे। उस वक्त बताया जाता है कि इनमें से कम से कम एक के पास से कई मोबाइल फोन मिले थे, जिनमें कई कॉल रिकॉर्ड थीं। एक वक्त कोरबा में कोयले के कारोबार में हाथ काले किए हुए खनिज अफसर की तैनाती अभी जगदलपुर में है। नाग नाम का यह अफसर बात-बात में लोगों से बातचीत को फोन पर रिकॉर्ड करते रहता था, और लोगों को धमकाता भी रहता था। अब जांच एजेंसी के लिए इससे अधिक सहूलियत की और क्या बात हो सकती है कि एक बड़े जुर्म में शामिल अफसर दूसरे लोगों के साथ अपनी बातचीत रिकॉर्ड भी करता चले, और जुर्म का सुबूत मानो तश्तरी पर मखमल के कपड़े पर रखकर जांच एजेंसी को पेश कर दे! अब ऐसे मोबाइल फोन पर मिली रिकॉर्डिंग के आधार पर दूसरे कई अफसरों की बारी आने जा रही है। दूसरे अफसर अपनी बारी का इंतजार धडक़ते मन के साथ कर सकते हैं।
अडानी पर भरोसा करें...
अमेरिकी इन्वेस्टमेंट रिसर्च और एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर में बीते बुधवार से शुक्रवार के बीच 20 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। रिपोर्ट कहती है कि अडानी ग्रुप वर्षों से शेयरों की हेराफेरी और अकाउंट्स में फ्रॉड कर रहा है। जवाब में अडानी की लीगल टीम ने कहा है कि रिपोर्ट शरारत और दुर्भावनापूर्ण है। इसे ग्रुप की कंपनियों के शेयर प्राइस पर निगेटिव असर डालने के लिए उजागर किया गया है। हिंडनबर्ग जो खुद अडानी के शेयरों का शॉर्ट सेलर है, इस मौके का फायदा उठाना चाहता है।
छत्तीसगढ़ में इस रिपोर्ट की चर्चा अडानी के यहां फैले कोयला, सीमेंट और सडक़ के कारोबार के कारण हो रही है। इस चर्चा में देश के दूसरे हिस्से के मीडियाकर्मी और एक्टिविस्ट भी शामिल हैं। दर्जनों ट्विटर हैंडल्स पर कहा जा रहा है कि अभी तो अकाउंट्स में गड़बड़ी की बात सामने आई है। सरकारी दफ्तरों में जमा दस्तावेजों की जांच भी होनी चाहिए। हिंडनबर्ग से पहले ही अडानी ग्रुप का फर्जीवाड़ा हसदेव के आदिवासी सामने ला चुके हैं। जो खदानें एमडीओ के तहत अडानी को दी गई उसे ग्रामसभा ने स्वीकृति दी ही नहीं थीं। कंपनी ने स्वीकृति के फर्जी कागज बनाए। कई मृत लोगों के इनमें हस्ताक्षर हैं। कहीं कोई जांच नहीं हुई। दूसरी ओर अडानी ग्रुप के व्यापारिक व्यवहार को साफ-सुथरा बताने के लिए सोशल मीडिया पर उसी तरह से उनके समर्थन में अभियान चल निकला है, जैसा हसदेव अरण्य के खदानों के पक्ष में चलाया गया था। आल्ट न्यूज के पत्रकार मो. जुबैर ने ट्विटर पर दावा किया है कि अनेक फेक अकाउंट हैं जिनमें अडानी के समर्थन में पोस्ट किए जा रहे हैं। सब में सामग्री एक जैसी है, जिनमें लिखा है- अडानी पर भरोसा करें।
ठगों से सरकार की कमाई!
क्या लोगों के साथ की जा रही किसी जालसाजी से सरकार का कोई फायदा हो सकता है? इन दिनों लोगों के पास बिजली बिल पटाने या रात साढ़े नौ बजे कनेक्शन कट जाने की चेतावनी वाले संदेश पहुंच रहे हैं। ऐसे संदेशों में एक फोन नंबर भी दिया रहता है, जिस पर फोन करने से कहा जाता है कि मोबाइल फोन पर एनीडेस्क जैसा स्क्रीन-शेयरिंग एप्लीकेशन डाउनलोड करें, और उसके बाद उसमें जानकारियां भरें। ऐसा करने पर संदेश भेजने वाले ठग और जालसाज लोगों के फोन पर काबिज हो जाते हैं, और उससे अगर बैंक खाते जुड़े हैं, तो उसे खाली भी कर सकते हैं। लोगों के पास लगातार ऐसे संदेश बढ़ते जा रहे हैं, और लोग रात में बिजली कट जाने की आशंका से एक ऐसी दहशत में आ जाते हैं कि वे यह भी नहीं सोचते कि बिजली वाले रात में बिजली काटने नहीं आते।
लेकिन इस चक्कर में कई लोग जिनके बिजली बिल बकाया है, वे हड़बड़ी में तुरंत ऑनलाईन पूरा भुगतान कर देते हैं, और बिजली विभाग की वसूली हो जाती है।
सरकार को लोगों को ऐसी जालसाजी-धोखाधड़ी के खिलाफ अधिक सावधान भी करना चाहिए, और जब ऐसे नंबरों से रात-दिन धोखाधड़ी हो रही है, तो इसके पीछे के लोगों को तेजी से पकडऩा भी चाहिए। छत्तीसगढ़ में भी लोगों के पास ऐसे अनगिनत संदेश आ रहे हैं।
यह मिसाल दूसरी जगह भारी पड़ेगी
राष्ट्रपति भवन में मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान रखने की सोच को वे जानकार लोग धिक्कार रहे हैं जो जानते हैं कि यह गार्डन मुगलों ने नहीं बनाया था, अंग्रेजों ने बनाया था। और राष्ट्रपति भवन डिजाइन करने वाले आर्किटेक्ट ने इस गार्डन को मुगल गार्डनशैली में बनाया था। अब किसी शैली से भी इतनी नफरत करना कि उसे उखाडक़र फेंक देना, और एक हिन्दू नाम वहां जड़ देना लोगों को हैरान कर रहा है। नाम की तख्ती बदल दिए जाने के बाद भी उस उद्यान की शैली तो मुगल ही है, अब पूरे उद्यान को ही उखाडक़र फेंका जाए, तभी उसकी मुगल शैली हटाई जा सकेगी।
अब मानो इसी तंग सोच के जवाब में पाकिस्तान से कुछ गुजराती लोगों ने लाहौर का एक वीडियो पोस्ट किया है जो कि उस शहर के मशहूर लक्ष्मी चौक का है। इस चौक के मेट्रो स्टेशन का नाम भी लक्ष्मी मेट्रो स्टेशन है। अब इस्लामी आतंकियों से लहूलुहान पाकिस्तान में भी हिन्दू देवी के नाम पर चौराहा भी है, और मेट्रो भी है। लेकिन इस देश में किसी दूसरे धर्म को नीचा दिखाने के लिए जो-जो किया जाता है, उसके दाम दूसरे देशों में बसे हुए हिन्दुस्तानियों को चुकाने होते हैं।
बेरोजगारों को राहत मिलेगी?
सन् 2018 के संकल्प पत्र में की गई घोषणा पर अमल करते हुए अब चुनावी वर्ष में छत्तीसगढ़ सरकार ने बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया है। पहले की सरकारों ने बेरोजगारी भत्ता का वायदा निभाने के लिए इतनी जटिल प्रक्रिया अपनाई थी कि युवाओं की संख्या तो लाखों में थी, पर फायदा कुछ को ही मिल पाया। बाद में इसे बंद भी कर दिया गया। इस बार एक सहूलियत यह है कि आवेदन ऑनलाइन किया जाना है, पर इसका मतलब यह नहीं कि भत्ता इसी आवेदन के जरिये मिलना शुरू हो जाएगा। प्रक्रिया का सबसे अहम् हिस्सा है, बेरोजगारों से साक्षात्कार लेने का नियम। पिछली सरकारों ने जब आवेदन मंगाए थे तो इसी चरण में बेरोजगार भत्ते से वंचित हो गए थे। इसे नए वित्तीय वर्ष से शुरू करने की घोषणा की गई है। इसका स्वरूप कैसा होगा, इसे समझने के लिए कांग्रेस शासित राजस्थान का उदाहरण सामने है। वहां इस समय 1.6 लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है। एक लाभार्थी को दो साल के लिए भत्ता देने का प्रावधान है। यदि किसी के पास कोई पेशेवर डिग्री या डिप्लोमा नहीं है तो उसे कौशल प्रशिक्षण का इंटर्नशिप करना अनिवार्य होगा। इंटर्नशिप बीच में छोड़ देने पर भत्ता मिलना बंद हो जाएगा। छत्तीसगढ़ में विभिन्न सर्वेक्षणों में बेरोजगारी की दर 0.1 है। इस बीच कुछ सरकारी भर्तियों में आवेदनों की बाढ़ भी देखने को मिली। मिलने वाले आवेदनों से अंदाजा लग पाएगा कि बेरोजगारी की सही तस्वीर क्या है।
संतोषी माता की चेतावनी
कल एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने हिन्दुस्तान के सबसे बड़े कारोबारी अडानी के साम्राज्य की जांच-पड़ताल करके जो रिपोर्ट दी है, वह दिल दहलाने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक यह साम्राज्य रेत के टीलों पर खड़ी बहुमंजिली इमारत जितना ही मजबूत है, और यह इमारत अगर गिरी, तो हिन्दुस्तानी बैंक, एलआईसी, सब डूब जाएंगे। इस संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बहुत लंबा-चौड़ा विश्लेषण किया है, और आखिर में अपने निष्कर्षों पर अडानी से 88 सवाल पूछे हैं। इस कंपनी ने इनमें से जवाब तो किसी सवाल का नहीं दिया, बस इसे दुर्भावना से तैयार की गई आधारहीन रिपोर्ट करार दिया है, और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। यह संस्था कानूनी कार्रवाई का इंतजार कर रही है क्योंकि यह अमरीका में बसी हुई है, और किसी भी कानूनी कार्रवाई की नौबत आने पर वह अडानी की कंपनियों से हजारों नाजुक कागजात मांगने की हालत में रहेगी।
फिलहाल देश की बैंकों की अनगिनत रकम पाए हुए अडानी के बारे में आई हुई इस रिपोर्ट को आगे बढ़ाते हुए कुछ लोगों ने यह लिखा कि इसे कम से कम 21 वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट करें तो संतोषी माता प्रसन्न होकर देश को लूट से छुटकारा दिलाएंगी। और जो लोग इसे पाकर भी इसे आगे नहीं बढ़ाएंगे, वे लोकतंत्र को डूब जाने देने के पाप के भागीदार होंगे। अब संतोषी मां का नाम बीच में आने से इस चेतावनी के साथ-साथ यह रिपोर्ट तेजी से आगे बढ़ रही है, और सुना है कि उसी रफ्तार से शेयर मार्केट में अडानी की कंपनियों का दाम गिरते जा रहा है। एक खरी रिपोर्ट एक इतने बड़े साम्राज्य की बुनियाद को हिलाकर रख सकती है।
गया तो पतलून पहनकर था...
एक बाबा के कार्यक्रम में पहुंचे हुए लोगों के साथ जो हादसा हुआ उसे देखकर एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा- फलां आदमी बाबा के कार्यक्रम में गया तो पतलून पहनकर था, लेकिन बाबा ने उसका तौलिया उतारकर धर दिया।
अमृत सम्राट से गला तर कर
राष्ट्रपति भवन के विश्व प्रसिद्ध गार्डन का नाम मुगल गार्डन की जगह अमृत उद्यान हो गया है। इसके साथ ही देशभर के भाजपा नेता चाहते हैं कि कर्तव्य पथ (राजपथ), मुगल गार्डन की तरह हर वो स्मारकों वस्तुओं का नाम बदल दिया जाए जो अंग्रेजों मुगलों, मुस्लिम शासकों की गुलामी की याद दिलाते है। इसके बाद तो वाट्सएप ग्रुप में नाम परिवर्तन की होड़ सी लग गई है। इनमें से अदभुत उदाहरण ऐसे हैं जिन्हें देख पढक़र हंसी ही छूट जाए। बेइंतहा मोहब्बत की कहानी वाली फिल्म मुगले आजम अब शुद्ध हिन्दुस्तानी मनोरंजन के साथ अमृत-ए-आजम नाम से पर्दे पर आ रही है। तो इस मोहब्बत को तहेदिल से महसूस करने के लिए मुगल मोनार्क के बजाए अमृत सम्राट बेहतर विकल्प देगा।
अमृत सम्राट से गला तर कर
राष्ट्रपति भवन के विश्व प्रसिद्ध गार्डन का नाम मुगल गार्डन की जगह अमृत उद्यान हो गया है। इसके साथ ही देशभर के भाजपा नेता चाहते हैं कि कर्तव्य पथ (राजपथ), मुगल गार्डन की तरह हर वो स्मारकों वस्तुओं का नाम बदल दिया जाए जो अंग्रेजों मुगलों, मुस्लिम शासकों की गुलामी की याद दिलाते है। इसके बाद तो वाट्सएप ग्रुप में नाम परिवर्तन की होड़ सी लग गई है। इनमें से अदभुत उदाहरण ऐसे हैं जिन्हें देख पढक़र हंसी ही छूट जाए। बेइंतहा मोहब्बत की कहानी वाली फिल्म मुगले आजम अब शुद्ध हिन्दुस्तानी मनोरंजन के साथ अमृत-ए-आजम नाम से पर्दे पर आ रही है। तो इस मोहब्बत को तहेदिल से महसूस करने के लिए मुगल मोनार्क के बजाए अमृत सम्राट बेहतर विकल्प देगा।
हटाने की वजह
रानू साहू को हटाने की एक और वजह सामने आई है। बताते हैं कि गणतंत्र दिवस के झंडा वंदन कार्यक्रम के बाद भाजपा के कुछ लोगों ने राज्यपाल से शिकायत की, कि रायगढ़ कलेक्टर गणतंत्र दिवस परेड कार्यक्रम में गैरहाजिर थीं। रानू साहू के खिलाफ अक्सर दफ्तर न आने, और इससे लोगों को हो रही परेशानियों से भी राज्यपाल को अवगत कराया गया। इसके बाद शाम में राजभवन में स्वागत समारोह में सीएम भूपेश बघेल शामिल हुए। राज्यपाल की सीएम से अलग से चर्चा भी हुई थी। उन्होंने सीएम से रानू के विषय पर बात की या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन अगले दिन उन्हें हटा दिया गया।
दावा अब रमन का
रमन सरकार के आखिरी बजट सत्र में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने आधी रात को सदन में अपने भाषण में पटल ठोककर कहा था कि वो कांग्रेस का बहुमत लाकर दिखाएंगे। उनकी बात सही साबित हुई, और कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में तीन चौथाई से अधिक सीटें मिली।
कुछ इसी अंदाज में पूर्व सीएम रमन सिंह ने आज दावा किया कि प्रदेश में सौ फीसदी भाजपा की सरकार बनेगी। जनता का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। हालांकि यह बात उन्होंने सदन में न कहकर मीडिया प्लेटफार्म में दिन के उजाले में कही है। रमन सिंह का दावा दिवास्वप्न तो नहीं बनकर रह जाएगा, यह तो दिसम्बर में आम चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
ट्रैफिक रूल हमारी जेब में
दुर्ग-भिलाई में ट्रैफिक के उसूलों का पालन करने के लिए पुलिस क्या-क्या जतन नहीं कर रही है। चेकिंग के दौरान नियमों के उल्लंघन पर सडक़ों में साफ-सफाई कराई जा रही है। पुलिस जवान यमराज की वेशभूषा में उतर कर बता रहे हैं कि अपनी जान जोखिम में न डालें। इसका असर कई लोगों पर हो रहा है और नहीं भी। वैसे दूसरे शहर भी अछूते नहीं हैं। बिलासपुर में लगातार सडक़ और चौराहों को देर कर तेज आवाज में साउंड सिस्टम के साथ बर्थडे मनाने और हथियार इस दौरान लहराने की घटनाएं सामने आ रही हैं।
इस तस्वीर में लडक़े-लड़कियां कार की छत खोलकर तेज आवाज में गाने बजाते हुए स्पीड के साथ पुलिस को चुनौती देते हुए कंट्रोल रूम के सामने से गुजरते दिखाई दे रहे हैं। कुछ दिन पहले ही यहां पर एक आपस में लिपटे हुए प्रेमी जोड़ों की बाइक सवारी लोगों ने देखी थी। लोग मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि हमारा रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई बेल्ट मिलाकर एक महानगर बन रहा है।
संदेशे आते हैं..
शिक्षकों का शराब पीकर स्कूल पहुंचना तब कोई चौंकाने वाली घटना नहीं रह गई है। राष्ट्रीय त्योहार के मौके पर भी ऐसा हो रहा है। मस्तूरी इलाके के एक गांव में गणतंत्र दिवस पर शिक्षक शराब पीकर स्कूल पहुंचा। ग्रामसभा लेकर उसकी निंदा की गई। ग्रामीणों ने जिला शिक्षा अधिकारी और कलेक्टर से इसकी शिकायत की। पर यह घटना कुछ ज्यादा ट्विस्ट पैदा करती है। बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर विकासखंड के ओरंगा का शिक्षक अजय साहू 26 जनवरी को न केवल शराब पीकर स्कूल पहुंचा बल्कि उसने अपनी हुनर भी दिखाई। देश भक्ति गीत- संदेशे आते हैं.., पर उसने अपनी नृत्य कला प्रदर्शित की। स्कूल परिसर पर मंडरा रहे एक कुत्ते को भी उसने अपने साथ डांस कराया। बच्चे तालियां पीटते रहे। भावी पीढ़ी के लिए शिक्षक क्या संदेश दे रहे हैं?
तबादलों की सनसनी
बीती आधी रात छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से अधिक आईपीएस और दर्जन भर से अधिक आईएएस के तबादलों ने सरकार को जानने वाले लोगों को कई तरह की अटकलें लगाने का मौका दिया है। लोग यह सोचने में भी लगे हैं कि किसी को कलेक्टर क्यों बनाया गया है, किसी को ज्यादा बड़ा जिला क्यों दिया गया है, और किसी को जिले से हटाया क्यों गया है। ऐसे फेरबदल के पीछे कुछ लोग स्थानीय वजहें होने की बात करते हैं, कुछ लोग राजधानी में सरकार के ताकतवर लोगों की पसंद और नापसंद की बात करते हैं, और कुछ लोग अफसरों की काबिलीयत की वजह से भी उनकी अधिक महत्वपूर्ण तैनाती की चर्चा करते हैं। अफसोस की बात यही है कि काबिलीयत के पैमाने की चर्चा सबसे आखिर में होती है, सबसे कम होती है। फिलहाल आईएएस तबादला लिस्ट में यह देखना दिलचस्प है कि आधे नाम महिला अफसरों के हैं, फिर चाहे वे कम महत्वपूर्ण जगहों पर गई हों, या अधिक महत्वपूर्ण जगहों पर गई हों।
लेकिन अफसरशाही के जानकार लोगों का मानना है कि यह चुनाव के पहले का आखिरी फेरबदल नहीं है, और इसके बाद और भी तबादले हो सकते हैं।
गिट्टी-रेती के मायने
सामान्य जानकारी के अनुसार गिट्टी-रेती का उपयोग मकान या निर्माण कार्य में होता है और घर बनाने वाले गिट्टी-रेती का हिसाब जरूर रखते हैं, लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के अधिकारी छत्तीसगढ़ में गिट्टी-रेती का हिसाब रख रहे हैं। अब आपको दुविधा हो सकती है कि कही ईडी यहां घर तो नहीं बनवा रहे हैं ? तो हम आपकी ये दुविधा भी दूर कर देते हैं कि वे ऐसे कुछ नहीं कर रहे हैं। तब यह सवाल उठता है कि ईडी के अधिकारी ऐसा कौन सा काम कर रहे हैं, जिसके कारण उन्हें गिट्टी-रेती का हिसाब रखना पड़ रहा है, क्योंकि ईडी तो यहां भ्रष्टाचार की जांच कर रही है। जी हां, ईडी भ्रष्टाचार के सिलसिले में ही गिट्टी-रेती का बही खाता रखी हुई है। पूरा मामला दरअसल यह है कि ईडी को कुछ डायरियां और वाट्सएप चैट मिले हैं, जिसमें लगातार गिट्टी और रेती के डिलीवरी की जानकारी शेयर की गई है। ईडी ने जब इस बारे में तहकीकात और पूछताछ की, तो पता चला कि पैसों के लेन-देन का कोड वर्ड है। कोड-वर्ड को डिकोड किया गया तो असली मतलब पता चला कि गिट्टी का मतलब करोड़ और रेत का लाख है।
ईडी के रोचक किस्से
छत्तीसगढ़ में ईडी की जांच की खूब चर्चा होती है। इन चर्चाओं में कई रोचक किस्से भी सुनने को मिलते हैं। ऐसे ही एक रोचक किस्से की खूब चर्चा है। जिसमें एक आईएएस की सासू मां का कथित बयान सुर्खियों में है। इस अधिकारी का ससुराल बिकानेर, राजस्थान में है। अधिकारी की सासू मां अपनी बेटी यानी अधिकारी की पत्नी को कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक मदद करती थी। वो कभी 50 हजार या एक लाख रुपए तक उपहार स्वरूप बेटी को देती थी। प्राय: हर मां अपनी बेटी को अपनी आर्थिक क्षमता के मुताबिक गिफ्ट देती हैं। लेकिन यहां बड़ी रकम का लेन-देन हो रहा था, क्योंकि ईडी के अधिकारी ने जब अफसर के पास से जब्त रकम का ब्यौरा पूछा तो पता चला कि एकमुश्त 19 लाख रुपए सासू मां ने दिए हैं। लिहाजा, ईडी ने इसकी तस्दीक के लिए सासू मां से पूछताछ की तो दिलचस्पी स्टोरी सामने आई। चर्चा है कि सासू मां बीकानेर से 19 लाख रुपए नकद लेकर ट्रेन से रायपुर आई थी, वो भी बिना रिर्जेवेशन के सामान्य बोगी में। उन्होंने यह भी बताया कि एक कपड़े के झोले में इतनी बड़ी रकम लेकर आई थीं। बीकानेर से रायपुर आने में 24-25 घंटे का समय लगता है। ट्रेन में सफर के दौरान उन्हें बाथरूम भी जाना पड़ा था, तो वो कपड़े के बैग को, जिसमें 19 लाख रुपए रखे थे, उसे सीट के नीचे रखकर जाती थीं। इतना ही नहीं, सफर के दौरान उन्होंने कोई मोबाइल फोन भी नहीं रखा था और बीकानेर से ट्रेन छूटने के नियत समय से 5-6 घंटे पहले स्टेशन पहुंच गई थीं। चर्चा करने वालों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि कैसे एक बुजुर्ग महिला आधी रात इतनी बड़ी रकम लेकर अकेले निकल सकती है। कहानी के अनुसार सासू मां अपने साथ ना केवल रुपयों से भरा थैला बल्कि 10 किलो घी और कपड़े लेकर रायपुर तक पहुंची थी।
जंगल में जड़ी-बूटी-का बाजार
असाधारण काम करने वाले साधारण लोगों को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाए तो अनायास ही ध्यान खिंच जाता है। इनमें से एक पड़ोसी राज्य उड़ीसा के नांदोल, कालाहांडी के पतायत साहू भी है। इन्होंने अपने घर के पीछे डेढ़ एकड़ जमीन पर 3000 से ज्यादा औषधीय पौधे उगाए हैं। यह सिलसिला 40 वर्षों से चल रहा है। प्लांट में कभी भी वे केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते। दिन में खेती करते हैं और शाम को जरूरतमंदों को मुफ्त इन्हीं पौधों से बनी दवाएं बांटते हैं।
इस पुरस्कार के मिलने से बस्तर के कोंडागांव की तरफ ध्यान जाता है। यहां एक एथिनो-मेडिको पार्क तैयार किया गया है, जिसमें न केवल छत्तीसगढ़ से तलाश किए गए सैकड़ों बल्कि देश के विभिन्न क्लाइमेट जोन से लाए गए हजारों औषधीय पौधे उगाए गए हैं। सैकड़ों आदिवासी इससे जुड़े हैं। इसका बाजार केवल दूसरे राज्यों में नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। छत्तीसगढ़ में समय-समय पर पौधरोपण के कार्यक्रमों में औषधीय पौधे लगाए गए हैं।
हाल के दिनों में छत्तीसग्रह सरकार का बनाया जा रहा कृष्ण-कुंज चर्चा में आया था। रविवि, बस्तर यूनिवर्सिटी और केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर के छात्रों में समय-समय पर अपने शोध से बताया है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में सैकड़ों दुर्लभ औषधीय प्रजाति के पौधे प्राकृतिक रूप से ही मिल जाते हैं, जो संजीवनी बूटी की तरह हैं। छत्तीसगढ़ हर्बल के नाम से ऐसे अनेक उत्पादों को बाजारों में उतारा भी गया है। पर व्यवसाय और लाभान्वित किसानों का दायरा बहुत सीमित है। खेती के पैटर्न में बदलाव के लिए इसे व्यापक पैमाने पर अपनाने के बारे में अभी छत्तीसगढ़ में नहीं सोचा जा रहा है।
इनको भी मिला देते मोदी से
बालोद जिले के भैंसबोड़ हाई स्कूल में छात्राओं के अचानक बेहोश हो जाने के बाद इसे भूत प्रेत और टोने-टोटके की घटना समझी गई। हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ हुआ, धूपबत्ती जलाई गई और देवी-देवताओं की पूजा की गई। पूजा-पाठ अपनी जगह तो ठीक है लेकिन स्कूल में भूत प्रेत और जादू टोना को इस तरह से मान्यता दे देना अजीब है। छत्तीसगढ़ के कई स्कूलों में इस तरह की घटनाएं हो चुकी है और देश के अलग-अलग भागों से भी ऐसी खबरें आती रही है। जादू-टोना, अंधविश्वास और टोने-टोटके के खिलाफ लडऩे वाले लोग तथा मनोवैज्ञानिक ऐसे मामलों पर शोध करते आए हैं। पाया गया है कि प्राय: सभी घटनाएं ग्रामीण अंचलों में होती हैं। पीडि़त बच्चियां गरीब किसान, खेतिहर परिवार से आती हैं। स्कूल जाने के पहले और लौटने के बाद घर और खेत के काम में हाथ भी बंटाते हैं। इनकी पढ़ाई का स्तर औसत या उससे नीचे होता है। माता-पिता कम शिक्षित या फिर अशिक्षित है, जो बच्चियों को पढऩे के लिए मार्गदर्शन देने में असमर्थ है। मनोवैज्ञानिक इसे स्ट्रेट एंक्ज़ाइटी डिसऑर्डर बीमारी मानते हैं, जो भूख, कुपोषण और पढ़ाई को लेकर अरुचि या भय की वजह से पैदा होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल लाखों बच्चों से तनाव मुक्त पढ़ाई और परीक्षा को लेकर संवाद किया। अच्छा होता अगर 2-4 ऐसे बच्चे प्रधानमंत्री से बात कराने के लिए हमारे अफसर चुन लेते।
अबूझमाड़ में ही संभव
दुनिया भले ही फैशन के नए आयामों को गढ़ रही हो लेकिन अबूझमाड़ की बात निराली है। बालों में सबसे ऊपर जो पंख जैसा दिखाई दे रहा है, वह दरअसल मछली की पूंछ है। पूंछ को सुखाया जाता है, फिर यह सिंगार के लिए तैयार हो जाता है।
न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं ?
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के राष्ट्र के नाम संदेश को अगले दिन हिन्दी के अखबारों में जगह नहीं मिली, तो विशेषकर प्रदेश के पूर्व नौकरशाह हैरान रह गए। ज्यादातर पूर्व नौकरशाहों का वीआईपी रोड स्थित मौलश्री विहार में रहवास है। ये सब गणतंत्र दिवस के मौके पर झंडा वंदन के लिए कॉलोनी के गार्डन में ही एकत्र हुए थे।
झंडा वंदन के बाद दो पूर्व सीएस और अन्य रिटायर्ड अफसर, यह जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर सर्वाधिक प्रसारित हिन्दी अखबारों ने राष्ट्रपति के नाम संदेश को क्यों नहीं लिया? उन्होंने अपने परिचित अखबार के जिम्मेदार लोगों से जानने की कोशिश भी की। उन्हें सीधा-सपाट जवाब मिला कि राष्ट्र के नाम संदेश में न्यूज वैल्यू का कुछ नहीं था। इस पर पूर्व अफसरों ने आपत्ति जताई, और उन्हें बताया कि राष्ट्रपति का संदेश कैबिनेट से अप्रूव होता है। इसमें गणतंत्र की भावनाएं छिपी होती है, और इसकी ताकत है कि कमजोर आदिवासी समाज की महिला देश के शीर्ष पद पर काबिज हुई हैं।
एक-दो अखबार के प्रमुखों ने चूक भी मानी, और यह कहा कि विज्ञापन, और अन्य वजहों से खबर मिस हो गई। इसके बाद गणतंत्र दिवस पर पूर्व नौकरशाह पत्रकारिता में आ रही गिरावट पर आपस में चर्चा करते रहे, और चिंतित भी दिखे।
तनातनी के बीच मुलाकात
आरक्षण विवाद का साया गणतंत्र दिवस की शाम राज्यपाल के स्वागत समारोह में भी देखने को मिला। समारोह में शामिल होने के लिए विशेषकर नेताओं में होड़ मची रहती है। एक दिन पहले तक आमंत्रण पत्र हासिल करने के लिए कोशिश होते रहती थी, लेकिन इस बार के स्वागत समारोह का नजारा एकदम बदला सा था। सरकार के मंत्री, मेयर, कांग्रेस विधायक, और प्रमुख पदाधिकारी समारोह से दूर रहे। अलबत्ता, सांसद सुनील सोनी, बृजमोहन अग्रवाल सहित भाजपा के कई प्रमुख नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
सीएम भूपेश बघेल ने समारोह खत्म होने से कुछ देर पहले ही राजभवन पहुंचे, और राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके से उनकी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में अच्छी चर्चा भी हुई। इससे पहले यह खबर उड़ी थी कि आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं होने के कारण सीएम, राजभवन नहीं जाएंगे, लेकिन जगदलपुर से लौटने के बाद वो राजभवन ही गए। सीएम विधेयक को मंजूरी नहीं मिलने से खफा हैं, और रह रहकर राज्यपाल पर निशाना साध रहे हैं। राज्यपाल भी प्रतिक्रिया दे रही हैं। ऐसे तनातनी के बीच दोनों के बीच मेल मुलाकात के बाद विधेयक को मंजूरी मिलने की अटकलें भी लगाई जा रही हंै। देखना है आगे क्या होता है।
श्रम मेव जयते
जरूरी नहीं कि परेड या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना काम-धंधा छोडक़र भाग लेने पर ही आपकी देश के प्रति लगन दिखाई दे। अपनी रोज की जिम्मेदारी निभाते हुए, काम करते हुए भी भावनाओं को किया जा सकता है।
अश्लील वीडियो में गिरफ्तारियां
बच्चों से संबंधित अश्लील वीडियो अपलोड और शेयर करने के आरोप में राजधानी रायपुर की पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया है। दूसरे जिलों में भी लगातार इस तरह की कार्रवाई चल रही है। सितंबर में इंटरपोल से मिली सूचना के बाद देश के 21 राज्यों में 59 ठिकानों पर छापेमारी कर एक ही दिन में 50 गिरफ्तारियां सीबीआई ने की थी। उनमें से कई अपने राज्य से थे। जांजगीर-चांपा जिले में सितंबर और अक्टूबर महीने में 21 लोग पकड़े गए। पिछले साल एनसीआरबी ने बच्चों के 80 अश्लील वीडियो छत्तीसगढ़ से अपलोड होने की खबर राज्य की पुलिस को दी थी। इन्हें भी बहुत सी गिरफ्तारियां हुईं।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी की समस्या अंतरराष्ट्रीय है। बालकों की सुरक्षा, उनकी गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए यूनेस्को के संकल्प के मुताबिक ऐसे अपराधों को रोकने के लिए देशों में साझेदारी है। भारत में ऐसे मामलों में आईटी एक्ट 67 बी के तहत कार्रवाई की जाती है, जिसमें 5 साल तक की सजा है। कई मामलों में पॉक्सो एक्ट भी जोड़ दिया जाता है, तब सजा और बड़ी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में जो मामले पकड़े जा रहे हैं उनमें बहुत से केस नाबालिगों के हैं या 18-20 साल के बच्चों के। इस बारे में किए गए अध्ययन से मालूम होता है कि कोविड-19 के समय इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन हाथ में आने पर ऐसे अपराध बढ़े हैं। आसानी से उपलब्ध पोर्न सामग्री के प्रसार से होने वाले खतरों से इसे इस्तेमाल करने वाले किशोर-नवयुवक और मजदूर प्राय: अनभिज्ञ होते हैं। पर किसी को इस बात पर रियायत नहीं दी जा सकती कि उसे कानून की जानकारी नहीं थी। इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में अपने ही जान पहचान के लोगों की आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो अपलोड करने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ब्लैकमलिंग और ठगी करने का भी यह जरिया बना हुआ है। शिकार लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे कब जाल में फंस गए। नई शिक्षा नीति में पुरानी की तरह यौन विषयों को छूने से परहेज किया गया है, जबकि इससे संबंधित अपराध नए नए स्वरूप में सामने आ रहे हैं। पुलिस को भी बिना किसी झिझक के साइबर ठगी की तरह पोर्न संबंधी बढ़ते अपराधों पर समाज, खासकर किशोरों व नवयुवकों को जागरूक करने के लिए आगे आना चाहिए जिसकी कमी साफ दिखाई देती है।
सन् 2023 में तीसरा दल कौन?
कुछ राज्य हैं, जहां दो दलों के बीच ही मुकाबला होता आया है। यह जरूर है कि तीसरे दल की मौजूदगी ने सत्ता एक के हाथ आते-आते दूसरे की झोली में डाल दी। पर सत्ता में भागीदारी का इनाम नहीं मिला। छत्तीसगढ़ में हुए सन् 2003 के चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जीती हुई सीट केवल एक थी, लेकिन भाजपा सरकार बन गई। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस मतदाताओं के मन में यह बिठाने में सफल रही कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ भाजपा की बी टीम है। नतीजे में स्व. अजीत जोगी के प्रभाव की वजह से 5 सीटों पर तो छजकां को जीत मिली, पर वह सरकार में हिस्सेदार नहीं बन सकी। हाल में हुए तीन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की भूमिका चर्चा में रही। पंजाब में बारी-बारी सरकार बना रही थी अकाली दल और कांग्रेस। अकाली दल का गठबंधन भाजपा से टूट चुका था, कांग्रेस में बार-बार हुए नेतृत्व परिवर्तन के कारण बिखराव था। आम आदमी पार्टी को अनुकूल मैदान मिल गया। इधर, गुजरात में भाजपा को रिकॉर्ड जीत मिली, जहां आम आदमी पार्टी सरकार बनाने का दावा करके उतरी थी। विश्लेषण यह रहा है कि भाजपा के असंतुष्ट वोट कांग्रेस और आप दोनों में बंट गए। आप पार्टी पंजाब से लगे हिमाचल प्रदेश में भी सरकार बनाने के इरादे से उतरी थी। उसने 68 में से 67 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। किसी भी सीट पर जमानत नहीं बची। यह वही स्थिति है जो सन् 2018 में आप की छत्तीसगढ़ में थी। भाजपा विरोधी वोटों का विभाजन गुजरात में हुआ, पर हिमाचल में नहीं। अब छत्तीसगढ़ में सन् 2023 का चुनाव है। बहुजन समाज पार्टी अपने जांजगीर-सारंगढ़ क्षेत्र की चुनिंदा सीटों पर पहले की तरह लड़ेगी। वह त्रिकोणीय मुकाबले का दावा करने की स्थिति में नहीं है। पार्टी के टूटने और स्व. अजीत जोगी की अनुपस्थिति के चलते छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस सन् 2018 जैसा प्रदर्शन शायद ही कर पाए। तब, आदिवासी सीटों में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली। इनमें छजकां का प्रभाव न के बराबर था। बस्तर की 12 में से 11 और सरगुजा के सभी 14 सीटों पर कांग्रेस आई। इन परिस्थितियों में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आम आदमी पार्टी ने मैदानी इलाकों के बजाय आदिवासी बाहुल्य सीटों पर, विशेषकर बस्तर में अपने-आपको फोकस करना शुरू किया है। आप के राष्ट्रीय नेता बार-बार बस्तर का दौरा कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक बड़ी रैली निकाली और कार्यकर्ताओं से संवाद का कार्यक्रम रखा जिसमें संजीव झा पहुंचे। नगरनार स्टील प्लांट, धर्मांतरण, नक्सल समस्या, पानी-बिजली, सडक़ की समस्याओं के लिए वह लगातार कांग्रेस-भाजपा दोनों पर हमलावर है। सर्व आदिवासी समाज, भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में मिले वोटों के बाद प्रदेशभर के आदिवासी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रहा है। आने वाले दिनों में साफ होगा कि इन सबकी सक्रियता का परिणाम गुजरात जैसा होगा या हिमाचल प्रदेश जैसा।
शादियों से ही आए सुधार
छत्तीसगढ़ में लाउडस्पीकरों के खिलाफ इस अखबार के संपादक सहित दर्जनों लोग आए दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, और पुलिस को याद दिलाते हैं कि इस प्रदेश में एक हाईकोर्ट अभी भी बाकी है जिसके जजों ने बार-बार पुलिस और प्रशासन को शोरगुल काबू करने की चेतावनी दी है। उस पर कुछ नहीं होता क्योंकि मुख्यमंत्री और राजभवन ने मंत्रियों के बंगलों के आसपास भी कलेक्टर का हुक्म निकलवाकर और पुलिस भिजवाकर सारे लाउडस्पीकर बंद करवा रखे हैं, और प्रदेश में सिर्फ इन्हीं कुछ दर्जन लोगों को चैन से सोने की जरूरत रहती है, और वह इंतजाम हो जाता है। बाकी जनता में बूढ़े-बच्चे, छात्र-परीक्षार्थी, बीमार और मेहनतकश लोग किसी को भी न तो चैन से नींद की जरूरत रहती, न उनको जिंदा रहने का कोई हक है। जिस बिलासपुर में हाईकोर्ट के जज बसते हैं, उनके बंगलों के आसपास भी लाउडस्पीकरों का शोरगुल नहीं होता होगा, और वे ऐसे कृत्रिम शांत टापू पर जीते हैं, और प्रदेश की करोड़ों जनता के चैन की बर्बादी से अनछुए रहते हैं।
ऐसे में समाज सुधार से भी शोरगुल घट सकता है, और मुस्लिम समाज के एक संगठन ने बिरादरी की मीटिंग करके यह तय किया है कि मुस्लिम शादियों में बजने वाले ढोल-बाजे, डीजे, पटाखे, नाच-गाने का काम जिस शादी में होगा, तो समाज के इमाम और उलमा वहां निकाह नहीं पढ़ाएंगे, और न ही बाहर के किसी उलमा को वहां आकर निकाह पढ़ाने की इजाजत होगी। यह कोरबा से लेकर रायपुर तक तय किया गया, और प्रेस कांफ्रेंस लेकर इसकी मुनादी की गई। आज इस प्रदेश में शादियां पूरी तरह से अराजक रहती हैं, सडक़ों पर बाकी लोगों का आना-जाना बंद हो जाता है, और लाउडस्पीकरों की वजह से आसपास के लोगों का जीना हराम होता है। अधिक से अधिक धर्म और जाति के लोगों को इस तरह का सुधार करना चाहिए, ताकि उनके समाज के गरीब लोगों पर देखादेखी ऐसा करने की मजबूरी न रहे, और आसपास के लोगों की आह न लगे, उनके दिल से गंदी गालियां न निकलें।
सरकारी अमला और जनता
किसी सरकार की नीयत अगर सचमुच अपने काम में सुधार करने की है, और जनता की जिंदगी आसान बनाने की है, तो उसका एक बड़ा आसान तरीका है। हर सरकारी फाईल किस अफसर या बाबू तक किस तारीख को पहुंची, और किस तारीख को आगे बढ़ी, इसकी जानकारी उस विभाग की वेबसाइट पर डाल दी जाए। उसके बाद दिन, हफ्ते, या महीने उंगलियों पर गिने जा सकेंगे कि किस कुंभकर्ण ने कितने हफ्तों की नींद उस फाईल पर पूरी की है। फिलहाल जनता के पैसों से तनख्वाह पाने वाला सरकारी अमला पूरे वक्त जनता की जिंदगी हराम करने में लगे रहता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने जब सरकारी अमले के लिए शनिवार की छुट्टियां बढ़ाईं, तो सरकार को लग रहा था कि इससे सरकारी अमला खुश होगा, लेकिन कुछ लाख के सरकारी अमले को दिए गए तोहफे से प्रदेश के वे करोड़ों लोग खफा हुए थे जिनकी जिंदगी सरकारी दफ्तरों ने तबाह कर रखी है। सरकारी अमले को मिली किसी भी सहूलियत को आम जनता की वाहवाही नहीं मिल सकती, क्योंकि वह खुद जब सरकारी दफ्तर जाती है, तकलीफ पाकर आती है।
कंगना की वापिसी
हिन्दू हृदय साम्राज्ञी कंगना रनौत की ट्विटर पर वापिसी हो गई है। ट्विटर के नए मालिक ने दुनिया के अधिकतर नफरतजीवी लोगों पर लगाई गई रोक को खत्म करना शुरू किया है, और कंगना ने कल शाम यह घोषणा की है कि वे ट्विटर पर लौट आई हैं, और उन्हें बड़ा अच्छा लग रहा है। ट्विटर की नई पॉलिसी के चलते अब अच्छे लोगों को अच्छा लगने का दौर खत्म हो गया है, और नफरतजीवी लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं।
जो संविधान को नहीं मानते
देश सहित छत्तीसगढ़ में जगह-जगह 26 जनवरी को हर साल की तरह गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। 15 अगस्त पर भी ऐसा ही हर्ष और उल्लास होता है। पर शायद पूरे देश में छत्तीसगढ़ का बस्तर ही एक हिस्सा है जहां अनेक गांवों में सन्नाटा पसर जाता है। नक्सली संविधान को नहीं मानते और बंद का ऐलान कर इन दोनों राष्ट्रीय पर्वों को काला दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि कुछ वर्षों से सुरक्षा बल और ग्रामीणों के प्रतिरोध के बाद काला झंडा फहराने का क्षेत्र सिसटता जा रहा है। उन कई स्कूलों और पंचायतों में सुरक्षा बलों की मौजूदगी में तिरंगा फहराया जा रहा है जहां पहले नक्सली खौफ के कारण ऐसा नहीं हो पाता था। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर बस्तर पुलिस ने ऐसे 6 गावों के नाम बताए थे। दूसरी तरफ, हर साल की तरह इस साल भी रेलवे का अलर्ट जारी हो गया है। विशाखापट्टनम और जगदलपुर से चलने वाली दोनों यात्री गाडिय़ों का परिचालन दंतेवाड़ा से बैलाडीला के बीच नहीं करने का निर्णय आज से लागू हो गया। मालगाडिय़ों को भी रोक दिया जाएगा। वैसे भी माओवादियों के लिए रेलवे सबसे आसान टारगेट होता है क्योंकि रेलवे ट्रैक घने जंगलों के बीच है। एक छोटी सी वारदात से भी रेलवे को करोड़ों का नुकसान हो जाता है। अगले साल तक केंद्र ने नक्सल समस्या का पूरी तरह सफाया करने का लक्ष्य रखा है, पर दिखाई देता है कि अभी इसमें और वक्त लगेगा।
मुख्यधारा में लौटने की जुगत
सरकार से अच्छे संबंध का फायदा उठाकर एक अफसर ने रिटायरमेंट लेकर 5 वर्ष के लिए पुनर्वास हासिल कर लिया है। लेकिन वे अपने वर्तमान पद से संतुष्ट नहीं है। उन्हें लगता है कि इस पद पर रहकर पूरा समय दफ्तर आना-जाना कर बोर हो जाएंगे। दफ्तर भी तभी जाना होगा जब चेयरमैन आएंगे। ऐसे में सामाजिक संपर्क से दूर हो जाएंगे। ऐसा न हो समय से पहले बुढ़ापा महसूस होने लगे। सो, साहब मुख्यधारा में लौटने की जुगत में जुट गए हैं। उन्होंने प्राधिकरण के सदस्य पद के लिए भी बायोडाटा जमा किया है। नियुक्ति हो गई तो भाईचारा भी बनाए रखा जा सकेगा और सामाजिक संपर्क भी बना रहेगा। आखिर रियल एस्टेट डेवलपर ही तो मकानों के साथ समाज गढ़ते हैं।
मालवाहक बाइक
पूरी दुनिया में पेट्रोल डीजल का दाम भारी पड़े तो चालान की क्या, जान की परवाह भी नहीं होती। एक किसी देश में एक मिनीडोर लायक़ सामान बाइक पर ले जा रहे ये बाइक सवार शायद यही कहना चाह रहे हैं। [email protected]
शैलजा की क्या बात हुई?
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा अपने पुराने संसदीय मित्र, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत से मिलने उनके घर पहुंचीं, तो राज्य के कांग्रेसी सत्कार-शिष्टाचार के मुताबिक उनके साथ नगरीय निकाय मंत्री शिव कुमार डहरिया भी गए। बाद में जब डहरिया से कुछ लोगों ने यह समझने की कोशिश की कि महंत, और उनकी पत्नी, सांसद ज्योत्सना महंत की शैलजा से क्या बात हुई, तो डहरिया ने मासूमियत से जवाब दिया कि उन तीनों की बातचीत अलग हुई, और वे तो दूसरे कमरे में बैठे हुए थे।
प्रदेश कांग्रेस में और राज्य सरकार में सबसे ऊपर के लोग अब बात-बात पर पिछले संगठन प्रभारी पी.एल. पुनिया और शैलजा की तुलना करने लगते हैं, कुछ लोग खुश होते हैं, कुछ लोगों में फिक्र होने लगती है।
कमल और झाड़ू का रिश्ता
कई प्रदेशों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी ताकत के साथ-साथ कुछ दूसरे लोगों पर भी निर्भर करती है। जहां पर मुस्लिम पर्याप्त संख्या में हैं, वहां पर भाजपा का प्रचार शुरू होने के पहले ही ओवैसी शामियाना लग जाता है, और वह मुस्लिमों का इतना ध्रुवीकरण कर देता है कि उसके जवाब में हिन्दू ध्रुवीकरण होना तय रहता है, और उससे भाजपा का काम आसान हो जाता है। कुछ ऐसा ही हाल के बरसों में कुछ जगहों पर आम आदमी पार्टी कर रही है, और वह भी भाजपा के लिए ओवैसी किराया भंडार के शामियाने में केजरीवाल साऊंड सर्विस का माइक लगाकर कमल की आमसभा सफल बनाने में लग जाती है। पंजाब एक अलग मामला रहा जिसमें अकालियों से टूट हो जाने के बाद भाजपा किसी भी और मदद से सरकार नहीं बना सकती थी, इसलिए वहां पर आम आदमी पार्टी सत्ता पर आ गई। लेकिन हिमाचल, और गुजरात में आप ने कांग्रेस के वोट काटे, और भाजपा की परोक्ष मदद की।
छत्तीसगढ़ में मुस्लिम वोट इतने नहीं हैं कि यहां ओवैसी किराया भंडार का कारोबार चल सके। ऐसे में अपनी ताकत से परे भाजपा की उम्मीदें सिर्फ केजरीवाल की पार्टी से है। छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी जितने वोट काटेगी, उनमें से अधिकतर कांग्रेस पार्टी के रहेंगे, ऐसी उम्मीद के साथ भाजपा अगले चुनाव में उतरने वाली है। अब अभी तक अगर इस राज्य में आप का अभियान शुरू नहीं हुआ है, उसके प्रदेश चुनाव संचालक यहां आकर बैठे नहीं हैं, तो यह मानकर चलना चाहिए कि यह भाजपा की किसी रणनीति के अनुकूल फैसला हो सकता है। गुजरात में आदिवासी इलाकों में उस आम आदमी पार्टी को अच्छा समर्थन मिला जो कि दिल्ली जैसे शहरी इलाके की पार्टी है। क्या छत्तीसगढ़ में भी झाड़ू आदिवासी इलाकों में भी चलेगा?
आरक्षण पर मार्च तक इंतजार क्यों?
छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण पर प्रस्तावित विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन, पूरे मंत्रिमंडल की उनसे मुलाकात के बावजूद अब तक नहीं हो पाया। प्रदेश सरकार ने लगातार दबाव बनाकर रखा है पर राज्यपाल ने अब स्पष्ट कर दिया कि वे मार्च से पहले इस पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी। यह बात उन्होंने रायपुर में एक कॉलेज के कार्यक्रम के बाद मीडिया के पूछे गए सवाल के जवाब में कही। राज्यपाल चूंकि एक पंक्ति में जवाब देकर आगे बढ़ गई थीं, इसलिए मार्च तक इंतजार क्यों किया जाए, यह पूछा जाना रह गया। पर, इसकी एक वजह दिखाई देती है। वह है, सुप्रीम कोर्ट का हाल का रुख। हाईकोर्ट ने सन् 2012 के 58 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया था, जिस पर स्थगन की मांग पर याचिकाएं दायर की गई थीं। पिछले सप्ताह सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने स्थगन देने से इंकार कर दिया। अब इस पर अगली सुनवाई 22-23 मार्च को रखी गई है। कहा जा रहा है कि यह अंतिम सुनवाई भी होगी। इसमें या तो हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा या 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को सही ठहराया जाएगा। हस्ताक्षर न करने के पीछे राजनीतिक कारण और भी हो सकते हैं, पर जिस तरह राज्यपाल इस विधेयक की वैधानिकता पर सवाल उठा चुकी हैं, यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उन्हें इंतजार हो।
ट्रिक और चमत्कार के बीच अंतर
राजस्थान की युवा मैजिशियन सुहानी शाह सन् 2016 और उसके बाद कई बार बिलासपुर आईं। कोई अजीबोगरीब पहनावा नहीं, जींस, शर्ट पहनने और फर्राटे से अंग्रेजी बोल सकने वाली सुहानी यहां पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के भी अनेक कार्यक्रम कर चुकी हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों में भी उनको बुलाया जाता रहा। लोगों के मन की बात जानने में भी सुहानी को महारत हासिल है। वह खुद को जादू-टोना जानने वाली नहीं कहती, बल्कि अपने कारनामों को कला और साइंटिफिक ट्रिक बताती हैं। अपने प्रदर्शन में किसी चमत्कार या किसी अलौकिक शक्ति की कृपा का दावा नहीं करती बल्कि इन प्रक्रियाओं को माइंड रीडिंग मेथड कहती हैं। बिलासपुर में उन्होंने अपने शो के दौरान लोगों को हैरान कर दिया, जब बता दिया कि दर्शक ने बंद लिफाफे या पर्चे में क्या लिख रखा है। लोगों के मोबाइल फोन नंबर भी उसने बता दिए। इधर, इस समय बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री सुर्खियों में हैं। उनके रायपुर के कार्यक्रम की देशभर में चर्चा हो रही है। ताजा विवादों को लेकर सुहानी शाह ने कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू दिया और कहा है कि किसी के मन की बात जानना कोई चमत्कार या जादू नहीं, बल्कि माइंड रीडिंग की वैज्ञानिक पद्धति है। टीवी पर उन्होंने लाइव टेस्ट भी दिखाए। ‘आज तक’ की एंकर को उसकी बहुत पुरानी सहेली का नाम बता दिया। एंकर ने जो नाम लिया, सुहानी ने पहले से ही स्लेट पर लिख रखा था। संयोग से, सुहानी शाह पहली बार तत्कालीन मंत्री और भाजपा नेता अमर अग्रवाल के बुलावे पर आई थीं। उन्हें सुहानी ने बता दिया कि बंद लिफाफे में वे क्या लिखकर लाए हैं। युवा मतदाताओं को रिझाने के लिए अमर ने व्यक्तित्व विकास और कैरियर डेवलपमेंट के लिए कई कार्यक्रम कराए, जिनमें चेतन भगत, बोमन ईरानी जैसे चर्चित लोग आए। इनमें से एक सुहानी शाह भी थीं। पर आज स्थिति यह है कि सुहानी ने जो टीवी पर बोला, छत्तीसगढ़ आकर बोल दे तो लोग उसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। 6 साल पहले जिसे उसने छत्तीसगढ़ आकर साइंस बताया था, वही बात आज चमत्कार है। हम आगे बढ़ रहे हैं, या पीछे धकेले जा रहे हैं?
मार कहीं से पड़े, पीठ पब्लिक की
दो दिन पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने दिल्ली में हुई नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात पर गहरी चिंता जाहिर की, कि देश पर इस समय 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। आजादी से लेकर सन् 2014 तक कांग्रेस की सरकार रहते तक कर्ज 50? लाख करोड़ तक पहुंच पाया था। पर आज आठ साल में ही प्रत्येक देशवासी पर एक लाख 9 हजार रुपए का औसत ऋ ण चढ़ गया है।
इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा कह रही है किसने 15 साल के शासनकाल में 40-42 हजार करोड़ रुपए के कर्ज लिए और छत्तीसगढ़ सरकार ने ? अपने 4 साल के ही कार्यकाल में 55 हजार करोड़ रुपए उठा लिए। यानी छत्तीसगढ़ जनता पर तकरीबन 1 लाख करोड़ का कर्ज तक चढ़ चुका है। छत्तीसगढ़ की आबादी करीब 3 करोड़ है। इस हिसाब से एक व्यक्ति के ऊपर 33 हजार रुपया का कर्ज और बढ़ जाता है।
केंद्र की वर्तमान सरकार ने कर्ज 150 प्रतिशत ले लिया छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब 110 प्रतिशत। दोनों ही सरकारें, एक दूसरे के विरोधी। पर, अपने तर्क से इसे जायज ठहराती हैं। हमें कराहने की जगह चिंता करनी चाहिए कि कर्ज नहीं लेने से देश-प्रदेश का विकास रुक जाएगा, कल्याणकारी योजनाएं नहीं चल पाएगी, किसान-मजदूरों, गरीबों को राहत नहीं मिल पाएगी।