राजपथ - जनपथ
देवेन्द्र की उम्मीदवारी के मायने
राज्यसभा के लिए सरोज पांडेय की जगह भाजपा ने राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह का नाम घोषित किया, तो हर कोई चौंक गए। खुद देवेन्द्र को भी इसका अंदाजा नहीं था। वो ओडिशा में थे।
भाजपा के प्रमुख नेता तो पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह का नाम फाइनल मानकर चल रहे थे। कुछ लोगों का अंदाजा था कि लक्ष्मी वर्मा अथवा रंजना साहू में से किसी को तय किया जा सकता है। मगर देवेन्द्र के नाम के ऐलान के बाद उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें शुरू हुई।
पार्टी के अंदरखाने से यह खबर उड़ी कि देवेन्द्र उत्तरप्रदेश के पूर्व विधायक हैं। लेकिन कुछ देर बाद स्थिति साफ हुई कि देवेन्द्र प्रताप रायबरेली वाले नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही हैं। रायगढ़ राजघराने के मुखिया देवेन्द्र प्रताप सिंह संघ परिवार और अनुसूचित जनजाति मोर्चा में ही सक्रिय रहे हैं। वो लैलूंगा से टिकट चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह सुनीति राठिया को प्रत्याशी बना दिया।
वैसे देवेन्द्र प्रताप सिंह का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। उनके पिता राजा सुरेन्द्र कुमार सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं, और दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के नजदीकी माने जाते थे। देवेन्द्र की बहन उर्वशी सिंह भी कांग्रेस संगठन में कई पदों पर रही हैं। देवेन्द्र खुद कांग्रेस में थे, बाद में वो भाजपा में चले गए। वो संघ परिवार और अनुसूचित जाति मोर्चा में काम करने लगे।
बताते हैं कि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। देवेन्द्र गोंड़ आदिवासी समाज से आते हैं, और समाज के भीतर उनका काफी सम्मान है। प्रदेश में आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा गोड़ बिरादरी के हैं। पार्टी के रणनीतिकारों ने देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर गोड़ आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की है। इसका फायदा न सिर्फ रायगढ़ बल्कि कोरबा और सरगुजा लोकसभा में भी मिल सकता है।
कोरबा में पिछले लोकसभा चुनाव में पाली-तानाखार विधानसभा सीट में 60 हजार वोटों से पिछड़ गई थी, इस वजह से भाजपा प्रत्याशी चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव में गोंड़ बिरादरी पर पकड़ रखने वाली पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वोटों का प्रतिशत बढ़ा है। पाली-तानाखार सीट पर गोंगपा का कब्जा हो गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि देवेन्द्र को राज्यसभा में भेजने से गोड़ समाज के वोटों का रूख भाजपा की तरफ आ सकता है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो लोकसभा चुनाव में पता चलेगा।
न्याय यात्रा की चर्चा सदन में भी
राहुल गांधी की न्याय यात्रा के छत्तीसगढ़ पड़ाव की चर्चा विधानसभा में भी हुई। इस पर भाजपा के विधायकों ने तंज कसे तो कांग्रेस के विधायक बचाव के मुद्रा में रहे। दरअसल, सोमवार को कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे। ऐसे में भाजपा विधायकों ने कांग्रेस पर जमकर तंज कसे। विधायक अजय चंद्राकर ने कहा पूरा विपक्ष न्याय यात्रा में जुटा है। सदन की चिंता करनी छोड़ पूरी पार्टी यात्रा पर निकली है। राजेश मूणत ने कहा, पूरी पार्टी युवराज के स्वागत में लगी है। भूपेश बघेल का नाम हटाकर अपना नाम लिखने की होड़ मची है। इस पर जब अजय चंद्राकर ने कहा कि यात्रा पर भी आप स्थगन ले आइए तो कांग्रेस के सदस्य लखेश्वर बघेल ने जवाब दिया कि सदन की कार्रवाई के लिए हम मौजूद हैं।
राजिम कुंभ में रहेगी रौनक
रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से चारों शंकराचार्य दूर रहे, और कुछ विषयों को लेकर सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की आलोचना भी करते रहे। मगर राजिम कुंभ में शंकराचार्यों के शामिल होने की उम्मीद है।
बताते हैं कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलकर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया है। वे पहले भी राजिम कुंभ में शामिल होते रहे हैं। न सिर्फ शंकराचार्य बल्कि बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र शास्त्री, कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा, साध्वी रितम्भरा सहित अन्य प्रतिष्ठित अखाड़ों के प्रमुख भी रहेंगे। बृजमोहन अग्रवाल ने पिछले दिनों ने अमरकंटक जाकर वहां संतों से मुलाकात कर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने मान लिया है। कुल मिलाकर पांच साल बाद होने वाले राजिम कुंभ में इस बार रौनक ज्यादा रहेगी।
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राज्यसभा कागज तैयार
राज्य वनौषधि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन रामप्रताप सिंह को राज्यसभा में भेजे जाने का भाजपा में हल्ला है। इसकी पर्याप्त वजह भी है। रामप्रताप जशपुर इलाके के रहने वाले हैं, और सीएम विष्णुदेव साय के करीबी भी माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने पिछले दिनों राज्यसभा के नामांकन के लिए जरूरी कागजात तैयार कराए, तो पार्टी के भीतर कानाफूसी शुरू हो गई।
कुछ इसी तरह की तैयारी वर्ष 2018 में धरमलाल कौशिक ने भी कर रखी थी। उन्होंने तो अधिकृत घोषणा से पहले नामांकन फार्म मंगवा लिए थे। मीडिया में इसकी खबर लीक हो गई, और पार्टी ने आखिरी क्षणों में कौशिक की जगह सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बना दिया। रामप्रताप ने नामांकन तो नहीं खरीदे हैं, लेकिन आईटी रिटर्न आदि पेपर तैयार करने के बाद से पार्टी के भीतर राज्यसभा में जाने का हल्ला उड़ा है।
रामप्रताप सिंह की दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है कि वो संगठन महामंत्री के रूप में काफी मेहनत करते रहे हैं। रामप्रताप सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद अब तक भाजपा से पिछड़ा वर्ग से एक भी नेता राज्यसभा में नहीं गए हैं। वैसे चिंतामणि महाराज, और पिछड़ा वर्ग से महिला नेत्रियों के नाम की भी चर्चा है। चिंतामणि को तो विधानसभा चुनाव से पहले आश्वासन भी दिया जा चुका है। देखना है आगे क्या होता है।
अपनों ने ही समझाईश दी विधानसभा में
विधानसभा में कुछ नए विधायक बेहतर परफार्मेंस दिखा रहे हैं। कुछ को नियम प्रक्रिया की जानकारी कम है। ऐसे ही विपक्ष के एक विधायक अटल श्रीवास्तव को नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। अटल पर नाराजगी आसंदी ने नहीं बल्कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जताई थी।
हुआ यूं कि प्रश्नकाल में सदन की कार्रवाई चल रही थी, और इसी बीच अध्यक्षीय दीर्घा में अटल श्रीवास्तव के कोई परिचित बैठे हुए थे। अटल सदन की कार्रवाई के बीच उनके पास पहुंच गए, और उनसे बतियाने लगे। यह देखकर भूपेश बघेल गुस्से में आ गए, उन्होंने अटल पर नाराज हुए तब कहीं जाकर वो अपनी सीट पर जाकर बैठे।
दूसरी तरफ, बेलतरा के विधायक सुशांत शुक्ला पहली बार अपना नंबर आने के बाद खड़े हुए, और सवालों की बौछार लगा दी। तब स्पीकर डॉ. रमन सिंह उन्हें रोकते हुए कहा कि आप एक-एक कर तीन सवाल पूछ सकते हैं, और जरूरी होने पर मैं और भी अनुमति दूंगा। इससे परे कुछ नए विधायक रिकेश सेन, भावना वोहरा और अनुज शर्मा का परफार्मेंस भी बेहतर दिखा है।
वॉल पेंटिंग की लड़ाई
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा छत्तीसगढ़ में प्रवेश करते ही जिस तरह से विवादों में घिर गई उसने कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं दिया। रायगढ़ के रेंगालपाली सभा स्थल के आसपास की दीवारों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधायक देवेंद्र यादव के नाम पर जिंदाबाद के नारे लिखे गए थे, जिन्हें रातों-रात मिटा दिया गया और उसकी जगह विधायक उमेश पटेल के नारे लिख दिए गए। अब जब इस समय रायगढ़ से आगे खरसिया की ओर राहुल गांधी आगे बढ़े होंगे तो उन्हें दीवारों पर पोती गई कालिख जरूर नजर आई होगी। इसके लिए क्या उमेश पटेल के समर्थक जिम्मेदार हैं, यह तो उनका बयान सामने आने पर ही मालूम होगा। इधर, बीते 8 फरवरी को जब छत्तीसगढ़ में यात्रा में प्रवेश किया तो जनसभा के वीआईपी गेट से एंट्री नहीं मिलने पर पूर्व विधायक प्रकाश नायक भी नाराज होकर धरना देने लग गए थे। उम्मीद के मुताबिक इसमें भीड़ भी नहीं पहुंची। विधानसभा चुनाव में भले ही परिणाम बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन कांग्रेस के असर वाले खरसिया, लैलूंगा, धर्मजयगढ़ से भी नहीं लाई जा सकी। अब जब कोरबा, सक्ती, कटघोरा होते हुए अंबिकापुर की ओर यात्रा बढ़ रही है तब प्रदेश के नेताओं ने कल आनन-फानन में सात पूर्व विधायकों सहित 11 पदाधिकारियों को स्थानीय नेताओं की मॉनिटरिंग पर लगा दिया है। प्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव सचिन पायलट के लिए यह कोई नया अनुभव नहीं होगा। आखिर राजस्थान में भी पिछले 5 साल उनके और गहलोत के बीच इसी तरह की खींचतान मची हुई थी।
लग्जरी ट्रेन की बिरयानी
पिछले दिनों रानी कमलापति स्टेशन से जबलपुर जा रहे रेल यात्री को बुक की गई अपनी बिरयानी की थाली में मरा हुआ कॉकरोच मिला। उन्होंने अटेंडेंट से शिकायत की। कैटरिंग स्टाफ के लोग आकर माफी मांगने लगे। मगर यात्री ने इसे मामूली चूक नहीं माना और आईआरसीटीसी के सोशल मीडिया पेज पर तस्वीरों के साथ शिकायत कर दी। अब पता चला है कि आईआरसीटीसी ने सेवा देने वाले कैटरिंग कंपनी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। रेलवे बोर्ड ने भी अलग से 25 हजार रुपए ठोक दिया है। यह वाकया महंगी टिकट वाले वंदे भारत एक्सप्रेस का है। इसलिए साफ कोच, शीशे, सीट खिड़कियां देखकर यह मान लेना ठीक नहीं है कि वीआईपी ट्रेनों में सारी सुविधाएं भी फर्स्ट क्लास होगी। कम से कम खाने पीने का सामान तो एक बार जरूर चेक कर लेना चाहिए, चाहे किसी भी क्लास में सफर कर रहे हों।
घरेलू गैस की परवाह नहीं
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के समय महिलाओं से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थी। इनमें से एक महतारी वंदन योजना पर तेजी से काम हो रहा है और अब तक लाखों लोग फॉर्म भर चुके हैं। सिलसिला पूरे प्रदेश में चल रहा है। दूसरा वादा 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का था। विपक्ष की प्रतिक्रियाओं में इस दूसरी घोषणा को लेकर सरकार को कटघरे में लिया जा रहा है, लेकिन 1000 रुपए प्रतिमाह मिलने वाले लाभ ने रियायती घरेलू गैस के वादे की ओर लोगों का ध्यान ही हटा दिया है। इस वित्तीय वर्ष में इस पर अमल की गुंजाइश भी कम दिखाई दे रही है। सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि हम मोदी की गारंटी को 5 साल में पूरी करेंगे। सारी गारंटियां एक साथ पूरी हो जाने की उम्मीद करना शायद ज्यादती हो। वैसे घोषणाओं में एक यह भी था कि प्रतिवर्ष एक लाख युवाओं को नौकरी दी जाएगी। बजट में इसका भी कोई जिक्र नहीं है।
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दिल्ली से घर वापिसी
रमन सरकार के तीसरे और भूपेश सरकार के पिछले कार्यकालों में एक ऐसा दौर था कि राज्य के अफसर खासकर आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने लगे थे। कुछ को सरकार में अफसरों की कमी बताकर रोकती रहीं। फिर भी बीते वर्षों में सेंट्रल डेपुटेशन में छत्तीसगढ़ का कोटा पैक हो गया। और अब वापस हो रहे,या कराए जा रहे। क्या प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अच्छे दिन लौट रहे हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने आईएएस सोनमणि बोरा प्रतिनियुक्ति से वापसी के आदेश जारी कर दिए हैं। 1999 बैच के अफसर बोरा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर है। केंद्र से रिलीव होने के बाद नियमानुसार वें लंबी छुट्टी का लाभ लेते हैं या ज्वाइन करेंगे यह देखना होगा। इससे पहले इस माह के शुरू में केंद्र ने एसीएस स्तर की अफसर रिचा शर्मा को भी छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव कर दिया है। उन्होंने भी अभी ज्वाइन नहीं किया है। समझा जा रहा है कि दोनों ही बजट सत्र के बाद महानदी भवन में ज्वाइन करेंगे। दोनों ही अफसर कांग्रेस शासन काल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। उससे पहले बघेल सरकार बोरा को कम महत्व के विभाग का प्रभार देती रही है। और प्रतिनियुक्ति के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब राज्य में बदली परिस्थिति में बोरा को अच्छे अवसर मिलने के संकेत हैं। समझा जा रहा है कि उन्हें राजस्व विभाग में भू प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी दी जा सकती है।
उमेश पटेल का इंतजाम कमजोर ?
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ओडिशा से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंची, तो रायगढ़ जिले के रेंगालपाली में पहला पड़ाव था। मगर यात्रा का स्वागत फीका रहा। जबकि रायगढ़ इलाके में राहुल के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई गई थी, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल को जिम्मेदारी दी गई थी। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने उमेश पटेल पर जमकर नाराजगी जताई है।
बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, और उमेश पटेल ने अपना गुस्सा जिले और ब्लॉक के पदाधिकारियों पर निकाला। पहले रेंगालपाली में हजारों लोगों के जुटने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन राहुल पहुंचे, तो हजार लोग भी नहीं थे। दो दिन के ब्रेक के बाद यात्रा 11 तारीख से फिर आगे बढ़ेगी। इसमें पर्याप्त संख्या में लोग मौजूद रहे, इस दिशा में कोशिश चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
ओपी के तेवरों की चर्चा
पहली बार विधायक, और मंत्री बने अरुण साव, विजय शर्मा व वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विधानसभा में अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। साव और विजय शर्मा तो सवालों से घिरे रहे, लेकिन उन्होंने अपने जवाब से सदस्यों को निरुत्तर कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री श्यामलाल जायसवाल भी ठीक ठाक नजर आए।
दूसरी तरफ, वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने बजट भाषण में पिछली सरकार पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बजट भाषण में उनके तेवर देखकर सत्तापक्ष के सदस्य भी खामोश रह गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास को ग्रहण लग गया था। भ्रष्ट और स्वार्थपरक ताकतों ने छत्तीसगढ़ को दबोचकर रख दिया था। लेकिन लोकतंत्र की ताकत ने इन नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर दिया। कुल मिलाकर चौधरी के तेवर की खूब चर्चा रही।
हेलमेट जब आदत बन जाए
कुछ दिन पहले दुर्ग जिला प्रशासन और पुलिस ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया। अनिवार्य तो पहले से है, पर नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही थी। अब जगह-जगह चेकिंग की जा रही है, विशेषकर रायपुर हाईवे पर। नियम नहीं मानने पर जुर्माना लग रहा है। इस अभियान का असर दिखाई दे रहा है। इस चेकिंग प्वाइंट पर कार्रवाई के लिए पुलिस तैनात हैं लेकिन अधिकांश बाइक सवार हेलमेट पहने हुए मिले। जिला पुलिस का तो दावा है कि 80 प्रतिशत दोपहिया चालक अब हेलमेट पहन रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा कार्रवाई के डर से हो। जब पुलिस की अपील के बिना खुद की हिफाजत के खयाल से लोग हेलमेट को अपनी आदत बना लें, तो मुहिम सफल होगी।
डीएमएफ रकम किसने बहाई..
कोविड काल के दौरान शिक्षा विभाग में हुई बिना टेंडर खरीदी और आत्मानंद स्कूलों के उन्नयन के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च कर देने का मामला विधानसभा में उठा। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चार जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की। आशाराम नेताम जैसे कुछ विधायकों ने सवाल उठाया कि क्या डीईओ को पॉवर था कि इतनी रकम खर्च कर डालते। फिर बताया गया कि जिलों के कलेक्टर के निर्देश पर हुई। नेताम का सवाल था कि फिर कलेक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? एक मामला कांकेर जिले का था जहां समग्र शिक्षा और डीएमएफ से 5 करोड़ 36 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मंत्री ने स्पीकर के सुझाव पर अगले सत्र में श्वेत पत्र प्रस्तुत करने की बात कही है।
सारी बातें तो जांच से साफ हो जाएगी, लेकिन शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि बिना टेंडर खरीदी के अलावा जैम के जरिये की गई खरीदी में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई। जिला प्रमुख के रूप में कलेक्टर ने आदेश दिया तो स्वाभाविक रूप से उनके ऊपर कार्रवाई की मांग हो रही है, मगर खेल इससे बड़ा था। गहराई से जांच यदि हुई तो यह भी सामने आएगा कि किसी जिले में किस मंत्री का प्रभार था, उनके किस करीबी को सप्लाई का काम मिला। जानकारी के मुताबिक विभाग के मंत्री के बंगले से भी दबाव आता था। कलेक्टरों के पास फोन आते रहे, आर्डर निकलते रहे।
सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो डीएमएफ की जिला समितियों के अध्यक्ष जिलों के प्रभारी मंत्री बना दिये गए थे। तब केंद्र ने आपत्ति की। यह कहा कि इससे राशि के वितरण में राजनीति और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ जाएगी। कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाने का निर्देश आया। मगर, इसके बाद भी दुरुपयोग नहीं रुका। कांग्रेस शासनकाल के दौरान कोरबा में हुई खरीदी की पोल खुद तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने खोली थी। अब सरकार बदलने के बाद तो अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें बाहर आ रही हैं।
केलो का उद्घाटन तो हो चुका..
सरकारी रकम का लापरवाही से खर्च का मामला किसी एक सरकार के दौरान नहीं होता है। केलो परियोजना को ही लीजिए। 17 साल पुरानी इस योजना में अब तक 900 करोड़ रुपये से अधिक फूंके जा चुके हैं। सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता स्व. दिलीप सिंह जूदेव के नाम पर इसका भूमिपूजन किया गया था। खर्च होते रहे लेकिन आउटपुट खर्च के मुकाबले आज तक जीरो है। रायगढ़ की धरती से आने वाले वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसका दर्द रहा होगा, इसलिये बजट में करीब 10 साल बाद इसके लिए प्राथमिकता से राशि मंजूर की गई। बस एक जानकारी और दे दें, कि सन् 2014 में चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने योजना को पूरी बताकर डैम का उद्घाटन कर दिया था। किसी आधी-अधूरी योजना का चुनाव के पहले फीता काटना कोई नई बात नहीं है। इसलिए, पीछे न जाकर उम्मीद रखें कि इस बार यह परियोजना पूरी होगी और रायगढ़ जिले के 167 और सक्ती जिले के 8 गांवों को दशकों से लंबित सिंचाई सुविधा इसी सरकार के कार्यकाल में मिल जाएगी।
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चर्चित अफसर निशाने पर
विधानसभा के पहले बजट सत्र में दो बड़े अफसर डीजीपी अशोक जुनेजा, और हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव विधायकों के निशाने पर रहे। महादेव सट्टा ऐप पर चर्चा के दौरान पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने पुलिस अफसरों की सटोरियों से मिलीभगत का आरोप लगा दिया।
वो यहीं नहीं रूके, उन्होंने सट्टेबाजी की सीबीआई अथवा विधायकों की कमेटी से जांच पर जोर देते रहे। मूणत तो यहां तक कह गए, कि पीएचक्यू में बैठे लोग सट्टेबाजी में संलिप्त रहे हैं। ऐसे में जांच कौन करेगा? मूणत के साथ-साथ वैशाली नगर के विधायक रिकेश सेन भी काफी मुखर थे। दोनों ही विधायक आग उगल रहे थे तब अफसर दीर्घा में डीजीपी जुनेजा सिर झुकाए सब कुछ सुन रहे थे।
जुनेजा इसलिए भी निशाने पर रहे हैं कि महादेव ऐप के विज्ञापन अखबारों में छपते रहे, और तब उस समय उन्होंने महकमे को टाइट करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। और जब घर घुसकर सट्टे की रकम की वसूली के लिए मारपीट के मामले आने लगे तब कहीं जाकर पुलिस ने दिखावे की थोड़ी-बहुत कार्रवाई की। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के बीच में जुनेजा को हटाने के लिए चुनाव आयोग से गुजारिश भी की थी। मगर उनका बाल बांका नहीं हो पाया। ऐसे में उनसे नाराज चल रहे भाजपा के विधायक रह रहकर उन पर निशाना साध रहे हैं।
कुछ इसी तरह का हाल हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव का भी रहा है। श्रीनिवास राव ने तो साय सरकार के गठन से पहले हसदेव पेड़ कटाई की अनुमति दे दी थी। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरण दास महंत ने श्रीनिवास का नाम लिए बिना उन्हें कटघरे पर लिया। पहले भी राव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में रहा है लेकिन वो भी अपने अपार संपर्कों की वजह से बचते रहे हैं। अब जब सदन में दोनों अफसर निशाने पर हैं, तो सरकार क्या कुछ करती है, यह देखना है।
मुंबई का रुख रायपुर में दिखा था
मुम्बई के कांग्रेस विधायक और रायपुर लोकसभा के प्रभारी बाबा सिद्दीकी ने पार्टी छोड़ी तो कई नेताओं को आश्चर्य नहीं हुआ। सिद्दीकी मुम्बई के बड़े बिल्डर हैं, और उनके हाव-भाव कुछ ऐसे थे कि जिससे लग रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं।
सिद्दीकी एआईसीसी अधिवेशन में शामिल होने पिछले साल रायपुर आए थे और अधिवेशन खत्म होने के एक दिन पहले ही वापस मुंबई निकल गए। और जब मुंबई जाने के लिए रायपुर में फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे तब उस समय एयरपोर्ट पर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी दिल्ली जाने के लिए वीआईपी लाउंज में बैठकर फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे।
बताते हैं कि उस वक्त सिद्दीकी ने अपने कुछ परिचित भाजपा नेताओं से चर्चा कर अनुराग ठाकुर से मिलने की इच्छा जताई। ठाकुर तक यह बात पहुंची भी, लेकिन वो जल्दी में थे, इसलिए बाबा सिद्दीकी से नहीं मिल पाए। ठाकुर ने भाजपा नेताओं से कहा बताते हैं कि वो दिल्ली में मुलाकात करेंगे। अब बाबा की अनुराग से मुलाकात हुई या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन हाव भाव से अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर संकेत दे दिया था।
सरकार क्या मॉडल स्कूलों को चला ही नहीं पाती?
सन् 2020 में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की घोषणा तत्कालीन सरकार ने की थी। इन स्कूलों में 8वीं तक नि:शुल्क उसके बाद 12वीं तक मामूली फीस में उत्कृष्ट सुविधाओं के साथ शिक्षा देना लक्ष्य था। प्राइवेट पब्लिक स्कूलों की तरह क्लास रूम, लैब, खेल मैदान आदि का सेटअप आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता और बच्चों को आकर्षित करता है। पिछले साल बोर्ड परीक्षाओं में इसका रिजल्ट भी अच्छा रहा। पिछले साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा में 98.83 प्रतिशत नंबर लेकर टॉपर रहे राहुल यादव जशपुर की आत्मानंद स्कूल से ही थे। दसवीं-12वीं की टॉपर लिस्ट में कुल 15 छात्रों ने जगह बनाई थी।
शुरुआत में प्रत्येक जिले में कम से कम एक स्कूल खोली गई। पर इनमें प्रवेश के लिए आवेदनों की बाढ़ आ गई। जितनी सीटें थीं, उससे 8-10 गुना आवेदन आने लगे। तब फिर इनकी संख्या बढ़ती गई। चुनावी साल में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात के लिए जहां भी जा रहे थे इन स्कूलों की मांग हो रही थी। स्थिति यह थी कि एक साल के भीतर 400 से अधिक स्कूल खोलने की घोषणा हो गई। यह भी कहा गया कि प्रत्येक स्कूल को स्वामी आत्मानंद की तरह सुविधाएं देने की योजना अगली सरकार बनने के बाद लाई जाएगी।
जनप्रतिनिधियों की मांग पर एक के बाद नई स्कूलों की घोषणा, फिर हिंदी माध्यम स्कूलों का शुरू किया जाना, अंग्रेजी माध्यम कॉलेज भी खोल देना, कुछ ऐसे फैसले थे जिसके चलते इस योजना की विशिष्ट स्थिति कायम नहीं रह पाई। जिला खनिज न्यास कोष (डीएमएफ) से स्कूलों की साज-सज्जा और शिक्षकों की नियुक्ति के लिए राशि आवंटित कराई गई। यह फंड कलेक्टर के पास होता है। इन स्कूलों के संचालन के लिए उन्हीं के नियंत्रण वाली समितियां बना दी गईं। व्यावहारिक रूप से इसका काम खनिज, नगर निगम, खाद्य और शिक्षा विभाग के अधिकारी देखने लगे। फिर शुरू हुई एक के बाद एक भ्रष्टाचार की शिकायतें। स्कूलों में संविदा पर नियुक्ति में गड़बड़ी, उपकरणों की खरीदी, स्कूलों के निर्माण कार्य में गड़बड़ी सब सामने आने लगे। फर्नीचर और लैब कबाड़ हो गए। सरकार बदलने के बाद कई जिलों में इनकी जांच शुरू हो गई है। भाजपा के मुताबिक यह घोटाला 800 करोड़ रुपये का है। इधर, कई स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई। उत्कृष्ट पढ़ाई की उम्मीद में इस बार भी छात्रों का आधे से ज्यादा सत्र बिना शिक्षकों के बीत चुका है।
यह गौर करना होगा कि इसी तरह के उत्कृष्ट 72 स्कूलों का एक चेन मुख्यमंत्री आदर्श विद्यालय के रूप में डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में शुरू किया गया था। अलग से बजट का प्रावधान कर इन स्कूलों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए थे। पर शिक्षा विभाग इन स्कूलों को चला नहीं पाया। बिल्डिंग, फर्नीचर, लैब के साथ करोड़ों रुपयों का सजा-सजाया सेटअप डीएवी पब्लिक स्कूल प्रबंधन को सौंप दिया गया। जाहिर है कि कोई निजी शिक्षण संस्थान घाटे में क्यों किसी स्कूल को चलाएगा। जब तक सरकार के प्रबंधन में थी, फीस सरकारी स्कूलों की तरह थी, पर अब वहां ऐसी स्थिति नहीं है। पिछले दो तीन सत्रों का रिजल्ट देखें तो वह भी अन्य आम स्कूलों की तरह ही हैं।
इधर विधानसभा में आत्मानंद स्कूलों के संबंध में बड़ी घोषणाएं की गई हैं। अब कलेक्टरों की समितियां भंग कर दी जाएंगी और ये स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत आ जाएंगे। स्वामी आत्मानंद ज्यादातर पुराने स्थापित स्कूल भवनों में शुरू किए गए थे। इन स्कूलों को उस क्षेत्र के समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी या दानदाताओं के नाम पर रखा गया था, जो लुप्त हो गया। स्कूलों का नाम बदलने और उनके क्लास रूम पर कब्जा करने के खिलाफ जगह-जगह बच्चों ने आंदोलन भी किया था। इन्हें फिर से पुराना नाम देने की घोषणा की गई है।
अभी यह साफ होना बाकी है कि इन स्कूलों के संचालन के लिए सरकार नियमित बजट में कितनी राशि का प्रावधान करेगी? छत्तीसगढ़ सरकार का विश्व बैंक से साथ भी एक अनुबंध होना है, जिसमें पांच साल तक प्रत्येक वर्ष के लिए 400 करोड़ रुपये की व्यवस्था विशिष्ट शिक्षा के लिए देने की बात है। इधर करीब 5600 शिक्षक संविदा पर भर्ती किए गए हैं। उनका भविष्य क्या होगा? राष्ट्रीय स्तर की कई सर्वे रिपोर्ट इन वर्षों में सामने आ चुकी हैं। इनमें स्कूली शिक्षा के स्तर में छत्तीसगढ़ की स्थिति दयनीय बताई गई है। इसलिये बदलाव की बात तो ठीक है, पर इसके परिणाम बेहतर मिले वह असल चुनौती है।
राज्यसभा के लिए अमित का नाम
राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल अप्रैल माह में समाप्त हो रहा है। अगली बार भी यह सीट भाजपा के पास ही रहने वाली है। इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि पांडेय रिपीट की जाएंगी, या उनकी जगह किसी और को मौका मिलेगा। इनमें से एक चौंकाने वाला नाम भी चल रहा है, अमित जोगी का। इन चर्चाओं का सार यह है कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का विलय भाजपा में इसी महीने हो जाएगा। इसके एवज में अमित जोगी को राज्यसभा की सीट देकर सरोज पांडेय को लोकसभा में उतारा जाएगा।
छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम आने के बाद से अमित जोगी की भाजपा से करीबी लगातार बढ़ी है। उन्होंने पिछले महीने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी। हाल ही में एक अखबार में उन्होंने भाजपा की प्रशंसा में लेख भी लिखा। यह सब कई लोगों को प्रवेश करने के पहले का माहौल दिखता है। वैसे भी भाजपा नेताओं का बयान आ चुका है कि पार्टी में जो आना चाहते हैं, उनका स्वागत किया जाएगा और स्वागत का सिलसिला शुरू भी हो चुका है।
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यहां भाजपा को मात मिली..
प्रदेश के कई नगरीय निकायों में भी सरकार बदलने के साथ-साथ सत्ता परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा है। जहां ठीक-ठाक बहुमत है, वहां भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष की कुर्सी खिसक रही है। मगर इस सिलसिले को तोड़ा है गोबरा नवापारा के पार्षदों ने। यहां नगर पालिका अध्यक्ष धनराज मध्यानी के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। संभवत राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद किसी नगरीय निकाय में यह पार्टी की पहली पराजय है। अविश्वास प्रस्ताव पारित न होने के बाद भाजपा नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेसी इतने उत्साहित दिख रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव में इलाके से बढ़त मिलने का दावा करने लगे हैं।
कलेक्टर पहुंचे पैदल आते छात्रों के पास
सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय के 400 छात्र अपने टीचर की प्रताडऩा से इतने अधिक त्रस्त हो गए कि उन्होंने कलेक्टर से शिकायत करने की ठानी। मगर कलेक्टर 60 किलोमीटर दूर अंबिकापुर में बैठते हैं। छात्रों के पास कोई साधन नहीं था कि वहां तक पहुंचें। आखिर उन्होंने पूरा रास्ता पैदल नापने का फैसला किया। 400 छात्र कतारबद्ध होकर पैदल सडक़ नापते हुए अंबिकापुर की ओर बढ़ गए। बिना इस बात की परवाह किए कि मुख्यालय पहुंचने में कितना समय लगेगा और रास्ते में कौन सी कठिनाइयां आएंगी। करीब तीन-चार घंटे में उन्होंने आधे से ज्यादा रास्ता तय कर लिया। इस बीच कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन तक इस बारे में खबर पहुंच गई। अपना कार्यक्रम टाल कर वे छात्रों से खुद ही मिलने निकल पड़े। 20 किलोमीटर की दूरी पर पैदल आते छात्रों से उनकी मुलाकात हो गई। छात्रों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा और सारी समस्या बताई। छात्रों ने कहा कि उप प्राचार्य गाली गलौच और मारपीट करते हैं। विद्यालय की कुछ दूसरी समस्याएं भी थी। कलेक्टर ने जांच और कार्रवाई का भरोसा देकर छात्रों को बस से वापस भेजा।
इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी इलाकों में संचालित आवासीय विद्यालयों की बदहाली की ओर ध्यान खींचा है। यहां निरीक्षण के लिए पहुंचने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी शायद अभी तक खानापूर्ति कर रहे थे। वरना छात्रों ने 60 किलोमीटर पैदल चलने का जोखिम उठाने का फैसला नहीं लेना पड़ता। कई बार ऐसा होता है कि दूर-दूर से जिला मुख्यालय पहुंचने वालों की कलेक्टर से भेंट नहीं हो पाती और निराश लौटते हैं। कलेक्टर संवेदनशील दिखे।
कलेक्टर डॉक्टर के घर पर..
इधर कांकेर के नए कलेक्टर अभिजीत सिंह ने भी सरगुजा कलेक्टर की ही तरह कुछ अलग तेवर दिखाए। सुबह-सुबह भानु प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण करने के लिए निकल गए। अस्पताल से डॉक्टर नदारत। कलेक्टर ने डॉक्टर के घर का पता पूछा और गाड़ी उधर ही घुमा दी। उन्होंने बीएमओ अखिलेश ध्रुव के घर का दरवाजा खटखटाया। बाहर निकलने पर डॉक्टर ध्रुव सामने कलेक्टर को देखकर हड़बड़ा गए। कलेक्टर ने समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने का कारण पूछ लिया। डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में कल रात कुछ गंभीर मरीज थे, देर तक रुका था। इस बात की पुष्टि हो गई लेकिन अस्पताल के निरीक्षण के दौरान मरीज को मिलने वाली सुविधा और दवाओं को लेकर शिकायतें मिली। कलेक्टर बरसे और हिदायत देकर वापस लौटे।
इससे पता चलता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अफसर अपने चैंबर से बाहर निकलें तो व्यवस्था ठीक करने में मदद ही मिलती है।
नेता नहीं कार्यकर्ता का पद चुना...
वैसे राजनीति को जनसेवा ही कहते हैं, मगर यही आर्थिक समृद्धि का भी प्रचलित रास्ता है। यदि गुर हो तो मामूली पद पर बैठा व्यक्ति भी कमाई का अच्छा खासा रास्ता तलाश लेता है, गुर न हो या तिकड़म बिठाने की कोशिश नहीं करे, तो उसे कुछ हासिल नहीं होता। वे पद मिल जाने के बावजूद भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ होगा बतौली की कांग्रेस नेत्री सुगिया मिंज को। बतौली जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। बड़ा पद है, मगर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने पद छोडऩे का कारण मानसिक और पारिवारिक बताया। पर जैसी जानकारी सामने आई है, उनका चयन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर हो गया है। उन्होंने यह पद ज्वाइन करना अधिक बेहतर समझा। वैसे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का पद भी बहुत महत्वपूर्ण है। जनपद अध्यक्ष की कुर्सी तो पांच साल बाद चली जाएगी, सदस्य नहीं सधे तो बीच में भी हटना पड़ सकता है, लेकिन आंगनबाड़ी में बच्चों और महिलाओं की देखभाल का मौका उन्हें वर्षों तक मिलेगा।
पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 6500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये किया था। इधर जनपद अध्यक्षों को भी 10 हजार रुपये ही मानदेय मिलता है। यह भी पहले 6 हजार था, जिसे 2022-23 के बजट में बढ़ाया गया। यह रकम मध्यप्रदेश के मुकाबले आधा है। वहां 19 हजार 500 रुपये मिलते हैं। जनपद अध्यक्षों के पास हर वर्ष 5 लाख रुपये का फंड भी होता है, जिससे वे विकास कार्य करा सकते हैं। पर मानदेय और फंड तभी तक है, जब तक पद है।
यह संयोग ही है कि सुगिया मिंज को पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का समर्थक कहा जाता था। आजकल वे और उनके कथित कई करीबी जांच एजेंसियों की छापेमारी में उलझे हैं। एजेंसियों का आरोप है कि उन्होंने खूब संपत्ति बनाई। बतौली में नए जनपद अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध हो गया है। इस पद पर लीलावती पैकरा को मौका मिला है, भाजपा की हैं।
एक्शन में आईपीएस अफसर..
आईपीएस अधिकारियों के तबादले का असर दिखाई देने लगा है। प्रदेश के जिन दो बड़े आपराधिक मामलों की जांच केंद्र की एजेंसियां कर रही हैं-या करने जा रही हैं, उनमें राज्य पुलिस ने भी तेजी दिखाई है।
दुर्ग के आईजी रामगोपाल गर्ग और एसपी जितेंद्र शुक्ला ने महादेव सट्टा एप के सरगना सौरभ चंद्राकर के ठिकाने का सुराग देने पर अलग-अलग इनाम क्रमश: 25 हजार और 10 हजार रुपये की घोषणा कर दी है। महादेव एप पर जांच पड़ताल ईडी भी कर रही है, लेकिन जुआ एक्ट के तहत दुर्ग पुलिस ने भी कुछ एफआईआर दर्ज कर रखी है। एक वायरल वीडियो के आधार पर एजेंसियों ने चंद्राकर का पिछला पता ठिकाना दुबई बताया था, मगर ऐसा माना जा रहा है कि वह भारत में बैठे अपने सहयोगियों के संपर्क में है। इस समय चंद्राकर कहां है, देश में या बाहर यही पुलिस जानना चाहती है। इधर, विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान के पहले एक वीडियो जारी कर महादेव सट्टा एप का खुद को असली मालिक बताने वाले शुभम् सोनी का भी पता नहीं चला है। ईडी उसकी भी तलाश में है।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने भी कल ही सीजी पीएससी भर्ती धांधली मामले में पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, पूर्व सचिव सहित अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज कर ली। साय सरकार इस मामले की सीबीआई जांच की घोषणा कर चुकी है। अब तक यह बात सामने नहीं आई है कि सीबीआई ने जांच की हामी भरी या नहीं। मगर, एसीबी की एफआईआर से ऐसा लग रहा है कि सरकार इसकी जांच में ज्यादा देर नहीं करना चाहती। सीबीआई जब केस हाथ में लेगी तो एसीबी के जुटाए साक्ष्य उसके काम आसान कर देंगे। वैसे सीबीआई और एसीबी दोनों ही एजेंसियों की जांच की गति बहुत धीमी रहती है। यह पहले की पीएससी धांधली में भी देखा जा चुका है।
उज्ज्वल मुस्कान के पीछे का बोझ
ब्लैकबोर्ड के सामने विजयी मुद्रा में खड़ी अंबिकापुर के कार्मेल स्कूल की छठवीं की प्रतिभाशाली छात्रा अर्चिषा सिन्हा। इसने सुसाइड नोट लिखकर अपनी जान दे दी। जिस टीचर पर उसने प्रताडऩा का जिक्र किया है, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। जानकारी आई है कि टीचर ने उसके आई कार्ड जब्त कर लिए थे। इस घटना से जुड़े ढेर सारे सवाल हैं। कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि उन निजी स्कूलों को बेहतर समझा जाता है, जहां बच्चों पर अनुशासन के नाम पर ज्यादा से ज्यादा कड़ाई की जाती है। होमवर्क न होने पर सजा, जूते साफ न होने पर, अंग्रेजी नहीं बोलने पर। यहां तक की क्लास रूम में हंसी मजाक करने पर भी। यह सजा जुर्माने के रूप में भी हो सकती है, और आई कार्ड जब्त कर लेने जैसी भी। सजा मिलने पर अपराध बोध से पीडि़त बच्चे अभिभावकों के सामने खुलकर बात करने से झिझकते हैं। अर्चिषा के मामले में भी पता चला है कि उसने टीचर से हो रही तकलीफ का अपने दोस्तों से तो जिक्र किया था लेकिन माता-पिता को इस घटना के बारे में पता नहीं था।
हाल के वर्षों में बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के अवसाद पर चिंता बढ़ी है। पर अंबिकापुर की घटना से तो यह लगता है कि सुसाइड का ख्याल पनपने की उम्र घटती जा रही है। बच्चों की काउंसलिंग तो उसी दिन शुरू कर देनी चाहिए जिस दिन से वे स्कूल जाना शुरू करते हैं।
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रमन सिंह तुरंत ही रम गए
पन्द्रह साल सीएम रहने के बाद डॉ. रमन सिंह नई भूमिका में भी प्रभावी दिख रहे हैं। स्पीकर के रूप में पहली बार सदन का संचालन कर रहे रमन सिंह पहले दिन ही अपनी अलग छाप छोड़ी है। वो बेहतरीन माने जाने वाले तीन स्पीकर दिवंगत राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, प्रेमप्रकाश पांडेय, और डॉ.चरणदास महंत से कमतर नहीं दिख रहे हैं।
रमन सिंह स्पाईन से जुड़ी तकलीफों की वजह से वाकर के सहारे सदन में पहुंचते हैं। लेकिन आसंदी संभालते ही उनका अंदाज बदला नजर आया। लग नहीं रहा था कि वो किसी शारीरिक तकलीफ से गुजर रहे हैं। बतौर सीएम डॉ. रमन सिंह 15 साल तक विपक्ष के सवालों का जवाब देते रहे हैं। मगर अब दोनों के बीच संतुलन बनाकर सवालों का जवाब लेते नजर आए। कुल मिलाकर सदन के संचालन में उनका अनुभव काम आता दिख रहा है।
गज़़ब का तोहफ़ा, खुश कर गया
विधानसभा में इस बार 50 नए विधायक चुनकर आए हैं। और ये सभी लाइमलाइट में आने कुछ न कुछ नया कर रहे हैं । ऐसी ही एक विधायक ने कल किया। मैडम ने नए पुराने विधायकों को उनके नाम वाली डायरी, पेन ड्राइव और मोबाइल चार्जर, पॉवर बैंक भेंट स्वरूप दिया। मैडम का ड्राइवर, पीएसओ इन्हें एक-एक कर विधायकों को ससम्मान भेंट कर रहे थे।
इन तोहफों से भरी गाड़ी विधानसभा परिसर में चर्चा में रही। हर किसी की नजर सहसा उस पर जाती रही। वैसे विधायकों को हर वर्ष बजट पारित होने के बाद सत्रांत में सौजन्य भेंट देने की शुरूआत जोगी कार्यकाल से हुई थी । बाद के शासन काल में इसे सार्वजनिक रूप से देने की परंपरा बंद कर निवास भेजा जाने लगा। इतना ही नहीं इस गोपनीय तरीके की वजह से सौजन्य भेंट की साइज,भी बढ़ती रही। कई बारगी तो वनोपज का हैम्पर भी दिया जाने लगा। लेकिन किसी विधायक द्वारा स्वयं के व्यय पर सत्र के प्रारंभ में ही भेंट पहली बार देखने को मिला।
खानापूरी की बैठक
भारत सरकार की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष ,सचिव कल रायपुर में थे। उनका यह दौरा फाइव स्टार सुविधाओं के साथ निपट गया। यही आयोग धान- गेंहू, दलहन तिलहन गन्ने जैसे जिन्सों या एममएसपी तय करता है। कहा गया कि आयोग नई दरें तय करने से पहले कुछ राज्यों का दौरा कर किसानों और कृषि विशेषग्यों से राय मशविरा करता है। कल भी किया लेकिन बंद कमरे में कुछ बड़े किसानों, सूटबूट वाले अफसरों से बात कर इतिश्री कर ली। इनमें दो करोड़ देकर पद पर बैठे एक शिक्षा विद भी रहे। न तो ये खेतों तक गए, न किसानी के जानकार चंद्रशेखर साहू, धनेंद्र साहू और न ही कृषि मंत्री रामविचार नेताम से मिले,चर्चा की। ऐसे में समझा जा सकता है कि नई दरें उत्तर भारत की खेती किसानी और दिल्ली के मंत्री अफसरों के कहने पर ही तय कर ली जाएगी। छोटे राज्यों के किसानों की डिमांड से कोई लेना देना नहीं बस वे सप्लाई करते जाएंगे।
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आईएएस पर भारी प्रोफेसर
स्कूल शिक्षा विभाग में इन दिनों एक ही चर्चा है कि कॉलेज का एक प्रोफेसर आईएएस से बड़ा कैसे हो गया। यह प्रोफेसर डेढ़ दशक से माशिमं में पहले उप सचिव और फिर सचिव बन कर पदस्थ है । नई सरकार ने अब अध्यक्ष के साथ साथ सचिव भी आईएएस को बना दिया है। अफसर ने माशिमं जाकर अपनी ज्वाइनिंग भी दे दी है। लेकिन प्रोफेसर ने अब तक अपनी कुर्सी नहीं छोड़ी है। नए सचिव की लाचारी देखिए कि प्रोफेसर पदभार क्यों नहीं दे रहे इसका कारण उन्हीं से पूछने कह रही हैं। प्रोफेसर, नियमों के हर लिहाज से प्रतिनियुक्ति खत्म कर कॉलेज लौटने फिट हैं। लेकिन वे आईएएस पर ही भारी पड़ रहे हैं?। अब चूंकि माशिमं अध्यक्ष स्वयं आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं इसलिए वे ही कुछ कर सकते हैं।
अब राजधानी में निजात अभियान
आईएएस तबादला सूची की तरह आईपीएस अफसरों की भी एक बड़ी सूची निकली है। राजधानी में पदस्थ किए गए संतोष सिंह इस समय बिलासपुर जिले की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कुछ दिन पहले ही उन्हें वरिष्ठता श्रेणी प्रदान की गई थी और अब वे एसपी की जगह एसएसपी कहलाने लगे। जिस दिन तबादला आदेश जारी हुआ, पुलिस बिलासपुर में निजात अभियान के एक साल का जश्न मना रही थी। निजात एक ऐसा अभियान है, जिसमें न केवल नशे का अवैध कारोबार करने वालों पर कार्रवाई होती है बल्कि नशे से बाहर निकालने के लिए काउंसलिंग भी कराई जाती है। अनेक शोधों और आंकड़ों से यह स्थापित है कि हत्या, लूट, चाकूबाजी, प्रताडऩा जैसे अपराध नशे की वजह से पनपते हैं। बिलासपुर पुलिस ने पिछले फरवरी से लेकर इस जनवरी तक लगभग हर माह आंकड़े जारी करके बताया कि निजात अभियान के दौरान आपराधिक घटनाओं में किस तरह से कमी देखी गई। आम लोगों ने इस मुहिम को सराहा ।कई संस्थाएं और नागरिक खुद से इसमें जुड़े। गणतंत्र दिवस के मौके पर उसकी झांकी को पहला पुरस्कार भी मिला। कोरबा और बिलासपुर के मुकाबले रायपुर बहुत फैला हुआ क्षेत्र है। राजधानी में कानून व्यवस्था और वीआईपी मूवमेंट की अलग व्यस्तता होती है, फिर भी मुमकिन है कि अब यहां भी निजात अभियान चलाया जाए।
दिक्कत यह है कि किसी पुलिस कप्तान का तबादला हो जाने के बाद पुराने जिले में अभियान की निरंतरता नहीं रह जाती। कुछ पुलिस अफसरों ने अपने रहते जिस जिले में नशे के खिलाफ, यातायात सुधारने अथवा युवाओं के लिए कोचिंग जैसे काम किए, पर उनके जाने के बाद पदस्थ नए अधिकारी ने उसमें रूचि नहीं ली, बल्कि अपनी पसंद का कोई और कैंपेन शुरू कर दिया।
कोयले में गड़बड़ी, बहुत बड़ी
हाल ही में कोरबा से कोयला मामले में 6 की गिरफ्तारी हुई। इन दिनों कोयला से जुड़े अपराध की बात हो तो सिर्फ पिछली सरकार के दौरान हुई लेवी वसूली और उसमें फंसे अफसरों और कारोबारियों की ओर लोगों का ध्यान जाता है। मगर, लेवी वसूली तो इस उद्योग में होने वाली गड़बड़ी का एक मामूली सा ही हिस्सा है। खदानों की भारी-भरकम मशीनों से रोजाना डीजल टंकियों में पार हो जाती हैं। कोयला लोड ट्रेनों से चोरी का पूरा संगठित गिरोह है। अभी मानिकपुर इलाके से कोरबा पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया, वह मामला तो नायाब है। यहां साइडिंग के बगल में ही एक अवैध साइडिंग चल रही थी। ओवरलोड कोयला खदान से निकलता रहा और अतिरिक्त माल अवैध साइडिंग में डंप होता रहा। इस कोयले की लोडिंग अनलोडिंग करने वाली डेढ़ करोड़ की महंगी मशीन भी पुलिस ने जब्त की है। अवैध साइडिंग एसईसीएल के अफसरों और केंद्रीय सुरक्षाबलों की निगरानी के बीच चलता रहा। एसईसीएल के पास अपना एक भारी-भरकम विजिलेंस विभाग भी है। अतिरिक्त कोयले का हिसाब एसईसीएल को रखना चाहिए, पर वह तो इसे अपना कोयला मानने के लिए भी तैयार नहीं हो रहा है।
रेलवे की दरियादिली
पिछले साल की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि रेलवे में 2 लाख 50 हजार से अधिक पद खाली हैं। इनमें से 2.48 लाख पद तो ग्रुप सी के हैं, जिसमें आम तौर पर 12वीं या ग्रेजुएट पास युवाओं को मौका मिल सकता है। चर्चा यह भी चल रही थी कि इन पदों को रेलवे भरने के मूड में नहीं है। लोको पायलट कब से आवाज उठा रहे हैं कि ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है लेकिन उनके खाली होते पदों पर नई नियुक्तियां नहीं की जा रही है। ज्यादा काम लेने के विरोध में वे आंदोलन भी करते रहते हैं। अब रेल मंत्रालय ने संभवत: पहली बार ‘भर्ती कैलेंडर’ जारी किया है। इसके पहले याद नहीं पड़ता कि इस तरह का कोई कैलेंडर रेलवे ने निकाला हो। इसके मुताबिक फरवरी में सहायक लोको पायलट की, अप्रैल से जून तक तकनीशियन की, जुलाई से सितंबर के दौरान गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 4, 5, 6 तथा गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 2 और 3 जूनियर इंजीनियर तथा पैरा मेडिकल केटेगरी के पद तथा अक्टूबर से दिसंबर के दौरान लेवल एक तथा कार्यालयीन तथा अन्य वर्ग के उम्मीदवारों कि भर्ती होगी।
सवाल उठ रहा है कि एकाएक रेलवे को पूरे साल भर की जाने वाली भर्तियों की घोषणा करने की जरूरत क्यों पड़ी। इसका एक जवाब समझ में यही आ रहा है कि लोकसभा चुनाव नजदीक है। अलग-अलग वर्ग की रेलवे भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करके बैठे या कर रहे लाखों युवाओं को आश्वस्त करने के लिए ऐसा करना पड़ा। इस कैलेंडर के मुताबिक सिर्फ सहायक लोको पायलट की भर्ती प्रक्रिया चुनाव से पहले होने जा रही है। बाकी भर्तियों पर फैसला अगली सरकार लेगी। कितने पदों की भर्ती होगी, प्रक्रिया क्या होगी, आदि ब्यौरा अभी नहीं दिया गया है।
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पीएचक्यू में अब कई आईपीएस
2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तब दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर हुए थे और दो को बिना कोई जिम्मेदारी दिए पुलिस मुख्यालय में बैठा दिया गया था। इनमें एक का वनवास तो कुछ महीने का था, लेकिन दूसरे को साल भर से ज्यादा समय लगा। रविवार की देर रात आईपीएस की जो लिस्ट जारी की गई है, उसमें बड़ी संख्या में आईपीएस की जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया है। अब ये डीजीपी की जिम्मेदारी है कि वे किससे क्या काम लेंगे। यह भी हो सकता है कि कुछ अफसरों को बिना कोई जिम्मेदारी दिए खाली बैठा दिया जाए। यह तो ज्वाइन करने के कुछ दिन स्पष्ट होगा।
रजनेश सिंह का वनवास खत्म
आईपीएस रजनेश सिंह का आखिरकार वनवास खत्म हुआ। नान घोटाले में कार्रवाई की सजा उन्हें खुद पर एफआईआर और पांच साल तक वर्दी से दूर रहने के रूप में मिली थी। साय सरकार ने न सिर्फ उन्हें वापस ज्वाइन कराया है, बल्कि बिलासपुर जैसा बड़ा जिला भी दिया है। वैसे जिन्हें रजनेश की ईमानदारी पर संदेह हो तो बता दें कि राजधानी में एडिशनल एसपी रहते हुए अवैध लोहे के कारोबार पर उन्होंने कार्रवाई की थी, तब कुछ व्यापारियों ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की थी। रजनेश ने एंटी करप्शन ब्यूरो को सूचना देकर उन्हें गिरफ्तार कराया था। बाद में सजा भी हुई थी।
विफल योजनाओं का दोहराव
कई बार अफसरों को सरकार की मंशा को देखते ऐसी योजनाओं में हाथ डालना पड़ता है, जिसके बारे में उन्हें पहले से पता होता है कि यह सफल नहीं हो पाएगी। पिछली सरकार गोधन और गोबर को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाने के लिए कई योजनाएं लेकर आई। गोबर को गोबरधन कहा गया। गोबर से खाद, पेंट, खाद, दीये, गो काष्ठ आदि बनाने की योजनाएं शुरू की गईं। एक योजना गोबर से बिजली पैदा करने की भी बनाई गई। 35 लाख की लागत से नगर निगम जगदलपुर ने छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल प्राधिकरण की तकनीकी सहायता से प्रदेश के पहले संयंत्र की स्थापना ठीक एक साल पहले फरवरी माह में की थी। उद्घाटन में नगर निगम ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बुलाया था। इस संयंत्र से प्रतिदिन 10 किलोवाट बिजली पैदा करने और आसपास के 50 घरों की जरूरत पूरी करने का निर्णय लिया गया था। मगर, इसके लिए हर दिन 500 किलो गोबर की जरूरत है। मगर, वह उपलब्ध ही नहीं हो रही है। आसपास के लोगों को बिजली तो नहीं मिल रही है, संयंत्र से उठने वाली दुर्गंध से वे जरूर परेशान हैं। आप याद कर सकते हैं कि भाजपा की सरकार ने एक बार योजना बनाई थी। बड़े पैमाने पर रतनजोत की खेती को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया था। डीजल मिलेगा बाड़ी से नारा दिया गया था। वह योजना भी कारगर साबित नहीं हुई।
राहुल से कांग्रेस की उम्मीद
करीब-करीब यह तय हो गया है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी हसदेव अरण्य के कोयला खनन से प्रभावित क्षेत्र तक जाने का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया है। वे सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले से जरूर गुजर रहे हैं और रात्रि विश्राम भी तारा या आसपास कर सकते हैं। इसी दौरान वे प्रभावित आदिवासी नेताओं से मुलाकात करेंगे। पिछली बार राहुल गांधी ने मदनपुर पहुंचकर ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि हसदेव का जंगल नहीं कटने देंगे। मगर, पांच साल की कांग्रेस सरकार के बावजूद परिस्थितियां ऐसी है कि आदिवासी अपनी जमीन बचाने के लिए अब तक आंदोलन कर रहे हैं। प्रभावित आदिवासियों की मांग थी कि फर्जी ग्राम सभाओं के आधार पर दी गई मंजूरी की जांच कराई जाए तथा पेड़ों की कटाई के लिए दी गई अंतिम स्वीकृति को रद्द किया जाए। ये दोनों काम कांग्रेस की सरकार के रहते नहीं हुए। परसा ईस्ट केते बासन एक्सटेंशन के लिए पेड़ों की कटाई का पहला चरण राज्य में सरकार बदलने के कुछ दिन बाद ही पूरा हो गया था। कांग्रेस इस उम्मीद में है कि राहुल के दौरे, उनके वक्तव्य और रुख से हसदेव में खनन का मुद्दा और तूल पकड़ेगा, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिलेगा।
राज्यसभा में कौन?
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश रायपुर आए, तो देर रात सीएम, और अन्य नेताओं के साथ बैठ कर राज्यसभा चुनाव पर भी चर्चा की। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और इसके लिए 15 फरवरी से नामांकन दाखिले के प्रक्रिया शुरू हो रही है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या बल को देखते हुए यह सीट भाजपा की झोली में जाना तय है। कांग्रेस, चुनाव लड़ेगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। इससे परे भाजपा में सरोज को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजती है, तो लोकसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है। ऐसे में राज्यसभा में सरोज की जगह किसी और महिला नेत्री को भेजा जा सकता है। एक चर्चा यह है कि ओबीसी या एससी वर्ग की महिला को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जेल के मुखिया
आईपीएस संजय पिल्ले की संविदा नियुक्ति खत्म कर डीजी (जेल) के प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर संजय पिल्ले पहले डीजीपी बनने से वंचित रह गए थे। उनकी जगह एक साल जूनियर अशोक जुनेजा डीजीपी की कुर्सी पा गए। संजय पिल्ले रिटायर होने के बाद मात्र पांच महीने ही संविदा पर रहे हैं।
दरअसल, राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा रही कि प्रभावशाली कैदियों को जेल के भीतर वीआईपी सुविधाएं मिल रही हैं। इस पर सोशल मीडिया में काफी कुछ लिखा जा रहा था। चर्चा है कि संजय पिल्ले की संविदा अवधि खत्म करने के पीछे यही एक वजह है, जबकि वे पुलिस महकमे में सबसे अच्छी साख वाले माने जाते हैं। पिल्ले की जगह संविदा पर नियुक्त ओएसडी राजेश मिश्रा को डीजी (जेल) का प्रभार दिया गया है। मिश्रा जेल में क्या कुछ सुधार करते हैं यह
देखना है।
पीआरओ का रुतबा
पत्रकारिता की पढ़ाई करने वालों के लिये करियर के दो विकल्प होते हैं। पहला वह पत्रकार बन जैसे और दूसरा जनसंपर्क अधिकारी का काम करे। पत्रकारों को रूतबे वाला माना जाता है। कुछ पत्रकार ऐसा आभा मण्डल भी खींचकर रहते हैं। टीवी पर दिखने वाले पत्रकारों की टसन को पूछो ही मत।
लेकिन जो लोग जनसंपर्क अधिकारी बनते हैं, उन्होंने अत्यंत विनम्रता पूर्ण व्यवहार रखना पड़ता है। रूतबा तो होता ही नहीं, उल्टे अधिकारियों के आगे पीछे घूमते रहो, पर अधिकारी पीआरओ को तवज्जो नहीं देते। ऐसे में यह सरकारी गाड़ी अपने आप में कुछ कहती है जिसमें सरकारी नौकरी की सुरक्षा और सुविधा मिल रही है इसके साथ ही लाल रंग की पट्टी में बड़ा-बड़ा पीआरओ लिखा हुआ है, यानी रूतबा पत्रकारों जैसा। इस बच्चे को भी भ्रम हो रहा होगा कि मेरे पापा बड़े अधिक हैं।
गृह मंत्री का एकाएक सिलगेर दौरा
बस्तर में बीजापुर-सुकमा की सीमा पर नए-नए खोले गए सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला हुआ, जिसमें तीन जवान शहीद हुए और 15 घायल हो गए। नई सरकार बनने के बाद यह पहली बड़ी नक्सल वारदात थी। हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक बैठक लेकर बस्तर से नक्सलियों के सफाये के लिए 730 दिन का लक्ष्य दिया। ऑपरेशन हंटर चलाने का निर्णय लिया गया। इसी सिलसिले में सीआरपीएफ की 40 और कंपनियां यहां तैनात की जाएंगीं। इसके अलावा बीएसएफ और आईटीबीपी की बटालियन भी तैनात होंगीं। उन सभी क्षेत्रों को कव्हर किया जा रहा है, जिन्हें नक्सलियों का गढ़ समझा जाता है। सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला ऐसे वक्त में हुआ है, अब जब ऐसे अनेक नए कैंप खोलने की तैयारी हो रही है। अब जवानों को अधिक सावधान रहना तथा उनका मनोबल बढ़ाना होगा। ऐसी परिस्थिति में गृह मंत्री विजय शर्मा अचानक सिलगेर पहुंचे। उनका कार्यक्रम शायद सुरक्षा कारणों से पहले से घोषित नहीं किया गया था। फोर्स का हौसला तो उन्होंने बढ़ाया ही, बच्चों से भी बात की। ग्रामीणों के साथ मिट्टी के चबूतरे पर बैठकर स्टील के गिलास में दी गई चाय पी। यह आत्मीय तस्वीर इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पहले के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू शायद ही कभी किसी नक्सल हमले के बाद बस्तर में दिखे हों। हालांकि हमलों की भर्त्सना हर बार उन्होंने भी की है। इधर, शर्मा ने कहा है कि कैंप के जरिये बस्तर के विकास का रास्ता खुलेगा। इन कैंपों का ग्रामीण भी विरोध कर रहे हैं। कैंपों और सुरक्षा बलों के प्रति ग्रामीण जब तक भरोसा नहीं करेंगे, विकास कैसे होगा? मुमकिन है, इसका हल भी निकले।
डहरिया को हटाने की मांग
कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार रहते तक खामोश थे लेकिन अब मौका मिल रहा है उनको अपनी भड़ास निकालने का। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सिलसिले में रखी गई बैठक में कांग्रेस पदाधिकारियों ने अचानक नारा लगाना शुरू कर दिया- डहरिया हटाओ, कांग्रेस बचाओ। इस समय वहां प्रदेश कांग्रेस प्रभारी, महासचिव सचिन पायलट, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत सहित कई मौजूद थे।
डहरिया के खिलाफ नाराजगी और नारेबाजी का कारण यह बताया गया कि उन्होंने पांच साल तक नगर निगम को राशि देने में भेदभाव किया, जिससे शहर का विकास रुक गया। अंतत: इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और पराजय का सामना करना पड़ा।
सत्ता होती तो शायद पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री के खिलाफ कार्यकर्ता इस तरह विरोध नहीं कर पाते और करते भी तो उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई हो जाती। मगर, आगे राहुल की यात्रा अच्छे से निपटाना है, फिर लोकसभा चुनाव की तैयारी भी चल रही है। कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर जैसे-तैसे शांत किया गया।
गोबर खाद की पूछ ही घट गई..
समर्थन मूल्य पर सोसाइटियों में धान बेचने की मियाद आज पूरी हो रही है। किसानों को इस बार एक राहत रही। उन पर वर्मी कम्पोस्ट खरीदने का दबाव नहीं था। यह तत्कालीन कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षा योजना का उत्पाद है। गौठानों में खरीदे जाने वाले गोबर से खाद बनाया जाता था और उसे किसानों में बेचा जाता था। ज्यादातर किसानों को इसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायत रहती थी। मगर, धान बेचने और रासायनिक खाद खरीदने के दौरान उन्हें गौठानों में बना खाद थमा दिया जाता था। ऐसा करके प्रशासन कम्पोस्ट की बिक्री का आंकड़ा बढ़ा लेता था और योजना सफल दिखाई देती थी। पर सरकार बदलने के बाद यह मजबूरी नहीं रही।
शासन की ओर से अधिकारिक रूप से कोई आदेश जारी हुआ हो या नहीं, पर अधिकांश जगहों पर कम्पोस्ट खाद किसानों को जबरन थमाना बंद कर दिया गया है। पर, इस स्थिति का नुकसान भी हुआ है। ये खाद गौठानों में कार्यरत महिला स्व-सहायता समूहों ने बनाए हैं। खाद की बिक्री बंद होने के बाद उनकी आमदनी भी रुक गई है। भाजपा सरकार ने कहा कि कांग्रेस की प्रत्येक योजना बंद नहीं की जाएगी, बल्कि उसकी खामियों को दूर कर सही तरीके से लागू किया जाएगा। गौठानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात भी कही जा चुकी है। अब यह देखना है कि गोबर खाद निर्माण से जुड़ी महिला समूहों को मेहनत का भुगतान और आगे काम मिलेगा या नहीं?
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छापों के बाद
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबियों के ठिकानों पर आईटी की जांच चल रही है। जांच पड़ताल में आयकर अफसरों को कई चौकाने वाली जानकारी मिल रही है। भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग के यहां पड़ताल में कुछ नहीं मिला, लेकिन बाद में आईटी अफसरों को सूचना मिली कि जिस सरकारी मकान में वो रहते हैं, उसके ऊपर माले के फ्लैट की चाबी भी नारंग के पास है।
बताते हैं कि यह फ्लैट एक महिला पुलिसकर्मी को आवंटित है, जो कि पीएचक्यू में पोस्टेड है। इसके बाद आईटी की टीम फ्लैट का ताला खुलवा कर अंदर प्रवेश किया, तो वहां जमीन के काफी डाक्यूमेंट मिल गए। रूपेश नारंग के खिलाफ कई गंभीर शिकायतें रही हैं, लेकिन भगत के करीबी होने की वजह से उनका बाल बांका नहीं हुआ। वो अब बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले में घिरते नजर आ रहे हैं। आईटी से परे राज्य सरकार भी नारंग के खिलाफ एक्शन ले सकती है। फिलहाल आईटी की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
जमीनों का फंदा
मैनपाट के जनपद उपाध्यक्ष अटल यादव के यहां पिछले दो दिनों से आईटी की टीम जांच कर रही है। अटल भी भगत के बेहद करीबी माने जाते हैं। मैनपाट के नर्मदापुर इलाके में स्थित अटल यादव के मकान के आसपास ग्रामीणों की भीड़ देखी जा सकती है।
मैनपाट इलाके में सरकारी जमीनों के बंदरबांट बड़े पैमाने पर हुई थी। बताते हैं कि होटल-रेस्टोरेंट आदि के लिए प्रभावशाली लोगों ने सरकारी संरक्षण में अपने करीबियों के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन आबंटित करवा ली थी। बाद में इसका भंडाफोड़ होने के बाद अमरजीत भगत के करीबियों के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज हुआ था। और अब जब अटल के यहां जांच पड़ताल हो रही है, तो जमीन के मामले भी खुल रहे हैं।
निगम-मण्डल चुनाव बाद?
सरकार के निगम-मंडलों में नियुक्ति फिलहाल टाल दी गई है। ये नियुक्तियां अब लोकसभा चुनाव के बाद होंगी। बताते हैं कि आरएसएस, और भाजपा संगठन ने करीब 1 दर्जन निगम-मंडलों के लिए नाम तय कर लिए थे। सूची पार्टी हाईकमान को भेजी गई। हाईकमान ने नियुक्तियां आम चुनाव के बाद करने के लिए कह दिया है।
निगम-मंडल में पदाधिकारियों के साथ-साथ दर्जनभर संसदीय सचिव नियुक्त करने का भी फैसला लिया गया था। चूंकि कई मंत्री नए हैं, और सदन में सहयोग के लिए सीनियर विधायकों को संसदीय सचिव बनाने पर सहमत बन गई थी। मगर यह भी अब रोक दिया गया है। चुनाव के बाद ही अब सारी नियुक्तियां होंगी।
राजीव के नाम की योजना बंद
कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई राजीव युवा मितान क्लब योजना बंद कर दी गई है। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 18 सितंबर 2021 को इस योजना को शुरू किया था। युवा शक्ति को संगठित करने और उनको रचनात्मक कार्यों से जोडऩे का उद्देश्य इसका बताया गया था। प्रदेश के 13 हजार 269 ग्राम पंचायत और नगरीय निकायों में से अधिकांश में इसका गठन हुआ। प्रत्येक क्लब को तीन माह में 25-25 हजार रुपए यानी साल में एक लाख रुपए आवंटित किए जा रहे थे। इसके लिए करीब 133 करोड़ रुपए का बजट भी तय किया गया था। राजस्थान की भजन लाल शर्मा सरकार ने भी बीते जनवरी माह से राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप योजना बंद कर दी है। यह योजना छत्तीसगढ़ से कुछ अलग थी। इसमें युवाओं को 2 साल तक रोजगार प्रशिक्षण और 10 हजार रुपए मदद दी जाती थी।
दोनों ही राज्यों में भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए आरोप लगाया था कि यह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
दोनों योजनाओं में समानता यह थी कि इन्हें स्वर्गीय राजीव गांधी के नाम पर शुरू किया गया था।
डेटिंग, रिलेशनशिप पर पढ़ाई
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की किताब का एक पन्ना वायरल हुआ है जिसमें अध्याय है- डेटिंग और रिलेशनशिप। लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में इसकी सराहना की और इसे बोर्ड का प्रगतिशील दृष्टिकोण बताया। कुछ लोगों ने स्माइली के साथ टिप्पणी की कि, अगला अध्याय होगा- ब्रेकअप से कैसे निपटें।
इन दिनों सीबीएसई पाठ्यक्रम में कई बदलाव हुए हैं। इसलिए लोगों को लगा होगा कि यह भी एक क्रांतिकारी बदलाव है। आखिर बहुत दिनों से इस पर बहस हो ही रही है कि किशोर उम्र के छात्र-छात्राओं को इस संवेदनशील विषय पर कुछ पढ़ाया जाए या नहीं।
मगर सीबीएसई ने साफ किया है कि यह फेक पोस्ट है। बोर्ड ने अपने पाठ्यक्रम में ऐसा कोई अध्याय शामिल नहीं किया है। किसी दूसरी किताब से काट छांट कर कॉपी पेस्ट किया गया है।
बहरहाल सीबीएसई की सफाई से कुछ लोगों ने राहत महसूस की है तो कुछ लोग मायूस भी हो गए हैं। दोनों तरह के लोग सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
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गारंटी का पिटारा कब खुलेगा?
किसानों को धान का 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने के फैसले के बाद अब महतारी वंदन योजना भी लागू करने का केबिनेट ने निर्णय ले लिया है। ये दोनों मोदी की गारंटी वाले बड़े चुनावी वादे थे। पर, अभी तक इसका जमीन पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। एकमुश्त भुगतान के पात्र किसानों की सूची तो वैसे भी धान की बिक्री के आधार पर निकाली जा सकती है लेकिन महतारी वंदन योजना में काफी बातें स्पष्ट होना बाकी है। हाल के दिनों में देखा गया कि इस असमंजस की स्थिति का फायदा उठाने के लिए कुछ लोगों ने रुपये ऐंठने का काम भी शुरू कर दिया। चुनाव अभियान के दौरान तो कांग्रेस ने शिकायत की थी कि महतारी वंदन योजना के फॉर्म भराकर लोगों को बरगलाया गया। पहली किश्त भी महिलाओं को दे दी गई, जिसकी चुनाव आयोग से शिकायत हुई। पर अब वह फॉर्म किसी काम का नहीं है। अब तक सरकार की ओर से कोई एजेंसी या विभाग तय नहीं किया गया है जो महतारी वंदन योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया और पात्रता के मापदंड की अधिकारिक जानकारी दे। मोटे तौर पर यह जानकारी जरूर आई है कि 21 वर्ष से अधिक उम्र की विवाहित, विधवा, परित्यक्ता, तलाकशुदा महिलाओं को इसका लाभ मिलेगा। इस दायरे में लेने में पात्र हितग्राहियों की संख्या 20-25 लाख या उससे भी अधिक हो सकती है। सही लोगों की सूची बनाना एक बड़ा अभियान होगा। दूसरी तरफ मार्च महीने के पहले सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना है। मंत्रिपरिषद् में निर्णय ले लिये जाने के बावजूद यह अनिश्चितता बनी हुई है कि लोकसभा चुनाव के पहले महिलाओं के खाते में राशि का पहुंचना शुरू हो पाएगा भी या नहीं।
असली ही नहीं नकली नोट भी...
नवंबर 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था तो इसके कई फायदों में एक नकली नोटों पर लगाम लगने की बात भी थी। पर नकली का कारोबार बंद नहीं हुआ। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 के बीच पांच सालों में हर साल औसत 39 करोड़ रुपये के नकली नोट बरामद हुए। बरामद नकली नोट के मुकाबले कई गुना अधिक नोट बाजार में चलन में होंगे। छत्तीसगढ़ में छोटे पैमाने पर नकली नोट छापकर खपाने के मामले बहुत आते हैं। पर सरायपाली में जिस तरह 3 करोड़ 80 लाख रुपये के नकली नोट पिकअप वैन से जब्त किया गया है, उससे साफ हो गया है कि इसके पीछे बड़े अंतर्राष्ट्रीय-राज्यीय गिरोह संगठित रूप से काम कर रहे हैं। इन दिनों ईडी-आईटी की छापेमारी में जिस पैमाने पर असली नोटों का पता चल रहा है, जांच एजेंसियां नकली नोटों के बारे में भूल ही गई थी। अच्छा हुआ कि एक बड़ा मामला पुलिस के हाथ लगा।
जंगल का राजकुमार
शिकार करने में शेरों के मुकाबले कमतर नहीं होने के बावजूद तेंदुए को जंगल के राजा का दर्जा नहीं मिला है। पर इन्हें कम से कम जंगल का राजकुमार तो कहा जाना चाहिए। गरियाबंद जिले के बार नवापारा अभयारण्य की बात करें, तो यहां शेर नहीं पाये जाते। तेंदुए जरूर हैं। शेर के नहीं होने के कारण इस जंगल में उसी का राज चलता है। बार नवापारा घूमने जा रहे सैनालियों को इन दिनों ये तेंदुए अक्सर दिख रहे हैं। यह एक भारी-भरकम चट्टान पर बैठे ऐसे ही तेंदुए की पोज के साथ खिंचाई गई एक फोटो है।
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छापों के इर्द-गिर्द
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके करीबियों के यहां आयकर छापे के बाद कई किस्से छनकर बाहर निकल रहे हैं। इनमें से हरपाल उर्फ राजू अरोरा, और एसआई रूपेश नारंग की खूब चर्चा हो रही है।
आईटी की टीम ने बुधवार को राजू अरोरा के रायपुर के लॉ-विस्टा कॉलोनी स्थित घर पर दबिश दी, तो वह अंबिकापुर में था। अंबिकापुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता के बेटे की सगाई समारोह में शामिल होने गया था। राजू को आईटी की टीम तडक़े होटल से साथ लेकर रायपुर आई, और यहां फिर लंबी पूछताछ हुई।
अमरजीत भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग भी अंबिकापुर में अपने सरकारी निवास पर नहीं था। आईटी की टीम घर पहुंची, तो पत्नी ने जांच का विरोध किया, और फिर आईटी अफसरों ने रूपेश से पत्नी की बात कराई। इसके बाद जांच पड़ताल शुरू हुई।
रूपेश नारंग, पूर्व मंत्री का काफी करीबी माना जाता है। वो एसआई होने के बाद भी अंबिकापुर कोतवाली का दो साल तक प्रभारी टीआई बने रहा। और जब टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम बने, तो उन्होंने गंभीर शिकायत के बाद रूपेश को हटवाया। इसके बाद अमरजीत भगत उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर ले गए, लेकिन वहां भी उनका काफी विरोध हुआ। फिर अमरजीत ने उन्हें दरिमा थाने का प्रभारी बनवा दिया।
सरकार बदली, तो सीतापुर के नए विधायक रामकुमार टोप्पो की शिकायत पर उन्हें हटाकर पुलिस लाइन में अटैच किया गया। नारंग की प्रापर्टी की जांच-पड़ताल चल रही है।
बड़े-बड़े सौदों वाले लोग
अमरजीत भगत के करीबी हरपाल उर्फ राजू अरोरा जमीन के कारोबार से जुड़ा रहा है। राजू अरोरा, उस वक्त चर्चा में आया जब रायपुर के धरमपुरा स्थित सहारा सिटी की करीब 2 सौ एकड़ जमीन नीलामी में खरीदी थी। इस जमीन पर कई बड़े बिल्डर और नामी गिरामी हस्तियों की नजर थी।
रायपुर में एक के बाद एक बड़े सौदे में राजू अरोरा का नाम चर्चा में रहा है। आयकर टीम को जमीन से जुड़े कई बड़े सौदों के कागजात मिले हैं। एक होटल भी राजू अरोरा ने कुछ समय पहले खरीदे थे। इसके अलावा रायपुर में साथियों के साथ कुछ बड़े निवेश किए हैं। चर्चा है कि आयकर के साथ-साथ ईडी भी इन सौदों की पड़ताल कर रही है। देखना है आगे जांच में क्या कुछ निकलता है।
रेलवे की मेहरबानी के पीछे
रायपुर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को छोडऩे के लिए पहुंचने वाले परिजनों को एक बड़ी राहत मिल गई है। अब कार के सात मिनट और बाइक के पांच मिनट तक रुकने पर कोई पार्किंग शुल्क नहीं लगेगा। एयरपोर्ट में ऐसी व्यवस्था पहले से है। दूसरी और रेलवे ने सबसे व्यस्त गेट के सामने प्रीमियम पार्किंग शुरू कर दी। यात्री को छोडऩे के लिए कोई गाड़ी खड़ी हुई नहीं कि उसे पार्किंग की पर्ची थमा दी जाती थी। इसके कारण गाडियां गेट से दूर कहीं पर भी खड़ी कर दी जाती थी। इससे जाम लग जाता था। बिलासपुर और रायपुर बड़े स्टेशन हैं, जहां ऐसी व्यवस्था लागू कर लोगों को ज्यादा परेशान किया जा रहा था। इस बात की ओर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ध्यान गया। रेलवे के अफसरों की पेशी हुई। उनको जवाब देते नहीं बना। पहले बिलासपुर में, फिर अब रायपुर में गेट पर से ठेकेदार का कब्जा हटा दिया गया है। दरअसल रेलवे बोर्ड ने अपनी कई चि_ियों में जोन और मंडल के अधिकारियों को लिखा कि वे टिकटों के अलावा भी आमदनी बढ़ाने का स्रोत ढूंढें। उनमें से ही यह ज्यादति से भरा एक अव्यावहारिक प्रयोग था।
छापेमारी की टाइमिंग
पिछले साल मार्च महीने में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत राशन दुकानदारों को आवंटित हितग्राहियों को वितरित नहीं करने का मामला विधानसभा में भाजपा ने जोर-शोर से उठाया था। डॉ रमन सिंह, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा ने तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत पर कई सवाल दागे थे। जवाब में भगत ने स्वीकार किया कि दुकानों को आवंटित राशन का मिलान नहीं हो पाया है। अतिरिक्त आवंटित चावल का हिसाब लगाकर वसूली की जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरोप के मुताबिक यह करीब 600 करोड़ रुपए की अफरा-तफरी है।
आवंटित और वितरित राशन का विवरण एक सेंट्रलाइज्ड सर्वर में भी दर्ज किया जाना था। मगर यह भी नहीं हुआ। चुनावी साल में दिए गए अतिरिक्त चावल में से कुछ मात्रा की वसूली ही हो पाई थी कि चुनाव आचार संहिता लग गई और अब प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है।
पूर्व खाद्य मंत्री भगत ने इनकम टैक्स की छापामारी को राहुल गांधी की न्याय यात्रा को विफल करने का षड्यंत्र बताया है। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का कहना है कि यह कार्रवाई गरीबों के राशन को हड़पने की आह है। किसकी बात ठीक लग रही है आपको?
राम नाम का भंडारा
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने यूपी की नोएडा 16 के मेट्रो स्टेशन के बाहर स्थित एक होटल के मलिक को इस कदर अभिभूत किया है कि उसने राम, लक्ष्मण और सीता नाम वालों को फ्री खाना खिलाने की घोषणा कर दी है। और यह कोई एक बार नहीं बल्कि जब आएंगे तब फ्री मिलेगा, हमेशा। लोक नाहक ही कहते हैं कि नाम में क्या रखा है।
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छापे वाली कालोनियाँ
रायपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित स्वर्णभूमि और लॉ-विस्टा, धनाढ्यों की कॉलोनी है। ईडी हो या फिर आईटी, यहां लगातार दबिश दे रही है। पिछले 3-4 वर्षों में यहां ईडी-आईटी अफसरों का आना-जाना लगा रहा है। अब तक दोनों कॉलोनियों में करीब 50 से अधिक कारोबारियों-उद्योगपतियों के यहां जांच-पड़ताल हो चुकी है।
दोनों कॉलोनियों को मध्य भारत की बेहतरीन कॉलोनियों में गिना जाता है। यही वजह है कि कई प्रभावशाली नेता, अफसर, उद्योगपति, और कारोबारी यहां निवास करते हैं। हाल यह है कि जिनके यहां छापे डलते हैं, तो वो स्वाभाविक तौर पर परेशान होते हैं, लेकिन उनके अड़ोस-पड़ोस के लोग भी सशंकित रहते हैं।
भगत पर छापा
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के यहां आईटी की रेड से हडक़ंप मचा हुआ है। भगत काफी पहले से जांच एजेंसियों के निशाने पर थे। अब उनका कहना है कि वे विधानसभा चुनाव हारने के बाद वो सरगुजा सीट से लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे।
दो दिन पहले ही हमारे अख़बार में कस्टम मिलिंग घोटाले पर रिपोर्ट छपी थी, भगत उस दौर में भूपेश सरकार के खाद्य मंत्री थे। उस वक़्त के भ्रष्टाचार का लोकसभा चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन राजनीति में आड़ लेना तो आम बात है।
दिलचस्प बात यह है कि पार्टी के प्रमुख नेता लोकसभा चुनाव लडऩे के अनिच्छुक हैं। सिर्फ अमरजीत भगत, और डॉ. शिवकुमार डहरिया ही ऐसे हैं, जो कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा टिकट के लिए प्रयासरत हैं। अब अमरजीत के यहां तो आईटी ने दबिश दे दी है, और चर्चा है कि आने वाले दिनों में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है। ऐसे में उनकी टिकट का क्या होगा, यह देखना है।
विधायकों के खिलाफ मोर्चा
राजनांदगांव की खुज्जी सीट से कांग्रेस विधायक भोलाराम साहू के खिलाफ पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है, और अब जिले की एक और कांग्रेस विधायक डोंगरगढ़ की हर्षिता स्वामी बघेल के खिलाफ भी पार्टी के पदाधिकारी लामबंद हो गए हैं।
चर्चा है कि हर्षिता के व्यवहार को लेकर डोंगरगढ़ के कुछ पदाधिकारियों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से शिकायत की है। भोलाराम साहू के खिलाफ भी शिकायत को लेकर पदाधिकारी, दीपक बैज से मिले थे। अब लोकसभा चुनाव निकट हैं। ऐसे में पार्टी नेताओं की आपसी खटपट से चुनाव में नुकसान होने का अंदेशा जताया जा रहा है।
नक्सलियों का गुप्त ठिकाना...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी महीने छत्तीसगढ़ में नक्सल के खात्मे के उपायों पर बैठक ली। केंद्र के बाद राज्य में भी भाजपा की सरकार बन जाने के बाद बस्तर में हिंसा खत्म करने के लिए प्रयासों में कुछ तेजी दिखने के आसार थे। इसी बीच प्रभावित क्षेत्रों में तीन और बटालियन तैनात करने का फैसला लिया गया। मगर, बीजापुर में सर्चिंग पर निकले जवानों पर नक्सलियों ने फिर हमला कर यह बताने की कोशिश की है कि उन्हें खदेडऩा आसान नहीं है। इधर एक तस्वीर अबूझमाड़ से आई है। यहां एक बड़ी सुरंग सुरक्षा बल के जवानों ने खोज निकाली है। ऐसी सुरंगें और भी हो सकती हैं। नक्सली इनका इस्तेमाल छिपने के लिए करते हैं। कई हिस्सों में बंटी सुरंग जिस तरह से व्यवस्थित है, उससे लगता है कि इसके निर्माण में किसी विशेषज्ञ की मदद जरूर ली गई होगी। गृह मंत्रालय की कई रिपोर्ट्स हैं जिनमें बताया गया है कि नेपाल, बांग्लादेश और कुछ दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से नक्सलियों को हथियार, गोला बारूद और उपकरण मिलते हैं, और प्रशिक्षण भी। क्या इसका आइडिया भी उन्हें बाहर से मिला ? अब तक मैदान व जंगलों के बीच नक्सलियों की तलाश करने वाले सुरक्षा बलों को अब ऐसे बंकरों को भी ढूंढना होगा।
कांग्रेस में कितने नए चेहरे होंगे ?
विधानसभा के अनपेक्षित चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व प्रयास में था कि कुछ बड़े चेहरे मैदान में उतार दें, ताकि पार्टी की रीति नीतियों के अलावा उनके कद के चलते भी वोट मिले। जो लोग मंत्री रह चुके हैं, उनसे ये उम्मीद अधिक रखी जा रही है। लगता होगा कि उनके पास संसाधनों की कमी नहीं होगी। पर जैसी खबर आ रही है, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ज्यादातर नेताओं ने लोकसभा लडऩे के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई है। हाल ही में पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने यह जरूर कहा है कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी देगी, निभाएंगे। इसमें लोकसभा प्रत्याशी बनाया जाना भी शामिल है। वे दुर्ग से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह से डॉ. शिव डहरिया अपनी पत्नी को जांजगीर-चांपा से उतारने के लिए खुद से ही प्रयास कर रहे हैं। कांकेर से मोहन मरकाम को भी सहमत बताया जा रहा है। दो सीटों बस्तर और कोरबा में कांग्रेस के मौजूदा सांसदों की टिकट बदले जाने की संभावना कम ही है। इसके बावजूद आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिनमें उपयुक्त प्रत्याशी को लेकर मंथन किया जाना है। बताया जा रहा है कि जो 160 आवेदन अब तक कांग्रेस को मिले हैं, उनमें पूर्व मंत्री या वरिष्ठ विधायक, पूर्व विधायकों के नाम नहीं है। आशय यही है कि वे चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं है। यह अलग बात है कि हाईकमान से निर्देश मिलने पर उन्हें अनिच्छा के बाद भी लडऩा पड़ेगा। पर इससे हटकर सोचा जाए तो, एक मौका कांग्रेस के पास है कि वह चूके हुए पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों को आगे कर दे। भाजपा ने यह जोखिम पिछले लोकसभा चुनाव में ही नहीं, बीते विधानसभा चुनाव में और मंत्रिमंडल के गठन में भी उठाया है।
हेलमेट सिर्फ एक हाईवे पर जरूरी
इस बार सडक़ सुरक्षा सप्ताह नहीं, सडक़ सुरक्षा माह मनाया जा रहा है। यानि सडक़ों पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ज्यादा गंभीरता से काम होना है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे ट्रैफिक नियमों का पालन करें। इनमें एक बड़ा जरूरी नियम है कि दोपहिया चालक हेलमेट पहनकर चलें। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और उसके पहले भाजपा की सरकार रहते हुए कई बार हेलमेट की अनिवार्यता के लिए अभियान चलाए गए लेकिन कुछ हफ्तों, महीनों के बाद कार्रवाई हर बार ढीली पड़ गई। इस बार यातायात सुरक्षा माह का उद्घाटन करते हुए बीते 14 जनवरी को जशपुर के बगीचा से एक जागरूकता रथ को खुद मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दिखाई थी। इसे अब 15 दिन हो चुके लेकिन सडक़ों पर नजर दौड़ाएं तो ज्यादातर बाइक सवार बिना हेलमेट ही नजर आ रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस की चालान का खौफ तो है ही नहीं, अपनी जान की फिक्र भी नहीं। मुख्यमंत्री से रथ रवाना कराने के बाद अफसर भूल गए। ऐसे में कल दुर्ग में कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के बीच हुई बैठक में तय किया गया है कि हेलमेट को लेकर एक फरवरी से अभियान तेज किया जाएगा। खासकर रायपुर दुर्ग नेशनल हाईवे पर चेकिंग लगातार की जाएगी, कार्रवाई की जाएगी। मगर, यह पहल सिर्फ दुर्ग से क्यों हुई है? बाकी जिलों में सडक़ सुरक्षा के नाम पर गोष्ठियां, वाद-विवाद, पेंटिंग आदि की स्पर्धाएं ही हो रही हैं।
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गृहमंत्री का अनंत प्रेम
राज्य सेवा के पुलिस अफसर एएसपी अनंत साहू की हालिया हुई एक सिंगल आर्डर की पोस्टिंग पुलिस महकमें में सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल अनंत को गृहमंत्री विजय शर्मा के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी के तौर पर सरकार ने जिम्मेदारी दी है। बताते है कि एएसपी और गृहमंत्री के बीच दोस्ती है। रायपुर में कालेज की पढ़ाई के दौरान विजय शर्मा और अनंत साहू की आपस में दोस्ती हुई। एएसपी तब से लगातार गृहमंत्री के साथ मित्रता को लेकर बेहद गंभीर रहे। पुलिस सेवा में आने के बाद अनंत, शर्मा के गृहजिले में बतौर एएसपी भी रहे। चर्चा है कि दुर्ग ग्रामीण एएसपी रहते हुए अनंत की एक सीनियर अफसर से पटरी नहीं बैठ रही थी। भाजपा सरकार में दोस्त को गृहमंत्री का ओहदा मिलते ही अनंत ने ओएसडी बनने के लिए जोर लगाया, लेकिन पीएचक्यू ने तकनीकी पेंच डालकर उन्हें सुरक्षा अधिकारी का जिम्मा थमा दिया।
प्राचीन मूर्ति पर किसका हक?
इन दिनों आरंग में मिली एक दुर्लभ प्रतिमा का संरक्षण कौन करे, इस पर विवाद खड़ा हो गया है। सितंबर 2021 में एक तालाब की खुदाई के दौरान जैन तीर्थंकर की प्राचीन मूर्ति मिली। इसे रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे ने डोंगरगढ़ के जैन समाज की मांग पर उन्हें सौंपने का आदेश दे दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी इसे मंजूरी दे दी। नए कलेक्टर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं। कलेक्टर ने यह फैसला निखत निधि अधिनियम 1878 के प्रावधान का हवाला देते हुए दिया। आरंग में इसका विरोध होने लगा है। ग्रामीण और कुछ संगठन सामने आए हैं। उनका कहना है कि अधिनियम में सिर्फ पूजा पाठ की अनुमति देने का प्रावधान है, किसी व्यक्ति या संस्था को सौंपने का नहीं। इसका संरक्षण केंद्र और राज्य सरकार का काम है।
छत्तीसगढ़ पुरातात्विक वैभव से भरा-पूरा राज्य है। तालाब, कुओं और घरों की खुदाई के दौरान ऐसी कई मूर्तियां मिलीं हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव रहा है।
कहीं-कहीं इनका रखरखाव ठीक है पर ज्यादातर जगहों पर प्राचीन मूर्तियां असुरक्षित पड़ी हैं। अधिकांश पुरातत्व संग्रहालयों में मूर्तियों को सहेजने के लिए जगह और बजट दोनों की कमी है। ऐतिहासिक मंदिरों और इमारतों का भी संरक्षण नहीं हो पा रहा है। खुदाई के नए प्रोजेक्ट नहीं लिए जा रहे हैं। कई जिलों में तो संग्रहालय्यों की भी स्थापना नहीं हो पाई है। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने खुद ही मूर्तियों के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी उठा रखी है।
आरंग के मामले में समाधान क्या निकलेगा, यह आगे पता चलेगा। पर, राज्य के पुरातत्व धरोहरों की देखभाल हमेशा एक उपेक्षित विषय रहा है। आरंग में तो दो-दो संस्थाएं एक मूर्ति की दावेदार हैं लेकिन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में ऐसी सैकड़ों बेशकीमती प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे धूल खाती पड़ी हैं।
आकार लेने लगे भाजपा के मुद्दे
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव घर-घर पहुंचने के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए एक अच्छी बढ़त हासिल कर ली है, मगर इसका यह मतलब नहीं है कि वह हाथ पर हाथ धर कर बैठे। यह उसका मिजाज ही नहीं है। वह 180 डिग्री घेराबंदी करती है। उसने विधानसभा में एक हारी हुई लग रही बाजी को जीतकर इसे साबित भी कर दिया । लोकसभा चुनाव के पहले जिन चुनावी वादों को जमीन पर उतारते हुए भाजपा दिखाई दे रही है, उनमें से आवास योजना पर फैसला लिया जा चुका है। महतारी वंदन योजना बहुत जल्दी लागू होने की खबर है।
बिहार में जिस तरह से जनता दल यूनाइटेड को फिर से साथ ले लिया गया है, उसका भी एक संदेश यह है कि केवल राम मंदिर निर्माण का मुद्दा तीसरी बार की सरकार लिए काफी नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में हाशिए पर रहने वाले राजनीतिक दलों के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा चुका है। आने वाले दिनों में कई और नाम चौंका सकते हैं। विधानसभा चुनाव की तरह धर्मांतरण को मुद्दे लोकसभा चुनाव में भी उठाए जाने की संभावना दिख रही है। घर वापसी का एक बड़ा आयोजन राजधानी में हो ही चुका। पहले केवल ईडी साथ थी, अब राज्य में ईओडब्ल्यू और एसीबी उसके नियंत्रण में है। सौ से अधिक अफसर, कारोबारी और नेताओं के खिलाफ हाल में दर्ज एफआईआर भी प्रतिद्वंदी कांग्रेस को घेरने के काम आएगी।
सोशल मीडिया पर नीतीश
मिस्टर क्लीन, सुशासन बाबू कहे जाते हैं नीतीश कुमार। नीतीश ने पहले भाजपा, फिर राजद, फिर भाजपा के पत्ते फेंटे तो समाज के हर वर्ग ने अपने-अपने तरीके की टिप्पणियों से सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म को भर दिया है। इनमें से कुछ इंटरेस्टिंग साझा कर रहे—
राजभवन का स्टाफ
कल शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार जी अपना मफलर राजभवन में भूल गये। आधे रास्ते से वापिस लौटकर लेने आए तो राज्यपाल जी चौंक गए कि इस बार तो 15 मिनट भी नहीं हुए ।
कॉरपोरेट
कॉरपोरेट में नौकरी करने वालों के लिए नीतीश कुमार बहुत बड़ा सबक है...
1. जब तक दूसरा ऑफर लेटर हाथ में न हो, पहली कंपनी से रिजाइन मत करो। 2. एक बार दूसरा ऑफर स्वीकार कर लो तो पहली कंपनी कितना भी इन्क्रीमेंट, प्रमोशन का लालच दे, रुको मत। और आप रुक गए तो, कंपनी आपका रिप्लेसमेंट ढूँढने लगती है। 3. अगर आप में स्किल्स है और आप कंपनी के लिए असेट हो तो पहली कंपनी के दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे। इसलिए अपने स्किल्स को तराशते रहिए, मार्केट में डिमांड बनी रहेगी! 4. कंपनी लॉयल्टी, एथिक्स, वर्क कल्चर वगैरह सब हवाई बात है। बस शिकार पर नजर रखिये और जब मौका मिले अपना हिस्सा लेकर अगले मिशन पर चल निकले। 5. नेटवर्किंग हमेशा सॉलिड बनाकर रखिये। किससे कब फिर से पाला पड़ जाए भरोसा नहीं!
शिक्षक
बिहार डिक्शनरी वाक्य
उसने मुझे धोखा दिया।
अनुवाद - ॥द्ग हृद्बह्लद्बह्यद्धद्गस्र द्वद्ग:
क्रिकेट
आईसीसी के नए कानून में...अब टॉस में गड़बड़ी रोकने के लिए आईसीसी ने फैसला किया है कि अब सिक्के की जगह नीतीश कुमार को उछाला जाएगा..क्योंकि सिक्का पलटने में काफी टाइम लेता है..!
ऐसे ही कार्यकर्ता जीतेंगे
रविवार को प्रदेश चुनाव समिति कांग्रेस लोकसभा की रणनीति को आकार देने में बैठी थी। और यह चर्चा चल रही थी कि सभी लोकसभा से बड़े नेताओं को चुनाव में उतारा जाए लेकिन बड़े नेता खर्च को लेकर एक के बाद एक ठिठक रहे थे। अंदर चर्चा चल ही रही थी कि अचानक शंकर मेहतर लाल साहू पहुंचे। असल में साहू उत्सुकतावश बैठक का दरवाजा खोल के झांक रहे थे तभी अंदर बैठे वरिष्ठ कांग्रेस नेता सतनाम शर्मा की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने शंकर मेहतर लाल साहू को अंदर खींचकर पूरी कमेटी के सामने प्रस्तुत किया। और कहा कि ऐसे लोगों को टिकट देने से जीत तय है। उनके बताने का मकसद यह था कि अनिच्छुक बड़े नेताओं को मान मनौव्वल कर जबरदस्ती चुनाव में लडऩे के बजाय यह चुनाव प्रथम श्रेणी के ऐसे कार्यकर्ताओं को आगे करने का है। ऐसे कार्यकर्ताओं के साथ पूरा कांग्रेस जोश खरोश से लोकसभा चुनाव में जुट जाएगी ।
बैठक में चुनाव समिति के सभी सदस्य सचिन पायलट, रजनी पाटिल मौजूद थी। बड़े नेताओं को सामने देख शंकर मेहतर लाल साहू ने सभी का अभिवादन किया।और उसके बाद से शंकर मेहतर लाल साहू हर नेता को अपना बायोडाटा दे रहे हैं। शंकर मेहतर लाल साहू बलौदा बाजार से आते हैं और मेहतर लाल साहू के पुत्र हैं जो स्व. विद्याचरण शुक्ल और कई प्रमुख नेताओं के खास सिपाही के रूप में पूरे कांग्रेस में विख्यात रहे । लोकसभा चुनाव की परिस्थितियों में ऐसे कर्मठ कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग अब जोर पकडऩे लगी है।
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शबरी नाम पर मत जाइए...
अयोध्या से लौटकर आए एक तीर्थ यात्री को शिकायत है कि रामलला का मंदिर उद्घाटित होने के बाद वहां टैक्सी, लॉज, दुकान-बाजार हर तरफ कॉरपोरेट हावी हो गया है। आम पर्यटकों के लिए यहां का घूमना फिरना पहले जैसे बजट में मुमकिन नहीं रह गया। चाय पानी का बिल भी आपको हैरान कर सकता है। भले ही रेस्तरां का नाम उसने शबरी पर क्यों ना रख लिया हो।
उम्मीदवारों पर चर्चा
भाजपा में लोकसभा प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, लेकिन सभी संसदीय क्षेत्रों में चुनाव कार्यालय खोलने के लिए कह दिया गया है। रायपुर संसदीय क्षेत्र में तो मुख्य चुनाव कार्यालय के लिए जगह भी पसंद कर ली गई है। सिविल लाइन स्थित डागा बिल्डिंग को चुनाव कार्यालय के लिए किराए पर लिया गया है।
चुनाव कार्यालय तो खोल दिए गए हैं, लेकिन टिकट को लेकर कई मौजूदा सांसद निश्चित नहीं हो पा रहे हैं। वजह यह है कि पिछले चुनाव में सभी सांसदों की टिकट काट दी गई थी। कम से कम पांच सीटों पर तो प्रत्याशी बदले ही जाएंगे। बस्तर, और कोरबा में तो पार्टी के सांसद नहीं है। ऐसे में यहां नया चेहरा आना ही है।
सरगुजा, बिलासपुर, और रायगढ़ के सांसद इस्तीफा देकर विधायक बन चुके हैं, लेकिन कुछ संसदीय क्षेत्र जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। वहां के सांसद की टिकट खतरे में पड़ सकती है। पार्टी इसको लेकर सर्वे करा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सबसे ज्यादा दागी
छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब किसी विभाग से इतनी संख्या में अधिकारियों पर एक साथ एफआईआर दर्ज हुआ हो। वह भी पूर्व सीएम से जुड़े विभाग में। अब आबकारी विभाग में अजीब संकट की स्थिति है। नई सरकार भी असमंजस में है। जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है, उन्हें यदि हटा दें तो आधे से ज्यादा जिलों में अफसर नहीं मिलेंगे। कुछ को हटाकर दागियों को जिलों में रखा जाएगा तो नैतिक दबाव की स्थिति रहेगी कि जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया, उन्हीं से काम ले रहे।
और चिंगारी भडक़ गई तो?
देश के कई हिस्सों में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। लोग तरह-तरह का जतन करके इसका मुकाबला कर रहे हैं लेकिन कुछ तरीके बेहद खतरनाक हैं। अक्सर ठंड के दिनों में खबर आती है कि ठंड से बचने के लिए चूल्हे के नजदीक, या फिर चारपाई के पास आग जलाकर सोने से लोग झुलस जाते हैं, जान भी चली जाती है।
हाल ही में मेरठ से प्रयागराज जा रही संगम एक्सप्रेस में सफर कर रहे किसान यूनियन के कुछ नेताओं ने ठंड भगाने का बेहद खतरनाक उपाय निकाला। एसी कोच में वे अंगीठी जलाकर हाथ तापने लगे। पर जब कोच में धुआं फैलने लगा तो लोग घबरा गए। आरपीएफ ने पहुंचकर अंगीठी बुझाई। एक बड़ा हादसा टल गया।
प्रयागराज से ही एक वीडियो इंस्टाग्राम पर वायरल हुआ है जिसमें दिख रहा है कि एक स्कूटी पर पीछे बैठी महिला जलती हुई अंगीठी पकड़ कर चल रही है। यही नहीं उसके साथ में एक बच्चा भी सवार है। वह न सिर्फ अपने परिवार को बल्कि सडक़ पर चल रहे दूसरे राहगीरों को भी खतरे में डाल रही है। एक यूजर में कमेंट किया है-आज पकड़ेगी तो सारी ठंड दूर हो जाएगी। ठंड भडक़ गई तो संभाल लेंगे, चिंगारी भडक़ गई तो बहुत महंगा पड़ेगा, आंटी जी।
रिश्ते तबाह कर रही शराब...
सरगुजा के लखनपुर इलाके में छेरछेरा लोक पर्व के दिन एक महिला ने अपने आठ माह के दुधमुंहे बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी। अपने आदतन शराबी पति को उसने आगाह किया था यदि आज वह शराब पीकर घर आएगा, तो वह बच्चे को मार डालेगी और खुद भी जान दे देगी। मगर पति फिर शराब पीकर लौटा। बच्चे की हत्या के बाद मां फरार हो गई। शराब की वजह से अपने ही रिश्तों का कत्ल करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। इसी महीने रायपुर के इंद्रप्रस्थ कॉलोनी में एक युवक ने अपनी टीचर मां को मार डाला क्योंकि उसने बेटे को शराब के लिए पैसे नहीं दिए। इसके कुछ दिन बाद बालोद से खबर आई कि एक शराबी ने अपनी मां और बेटे की हत्या कर दी, पत्नी भी हमले में घायल है। पिछले साल तो एक घटना में त्रस्त मां-बाप और भाई ने मिलकर एक शराबी युवक की हत्या कर दी थी। अभी पिछले सप्ताह बिलासपुर में एक शराबी ने पत्नी से ताने सुनकर खुदकुशी कर ली। उसने चावल को बेचकर शराब पी ली थी। चावल उसकी गरीबी देखकर ससुर ने भेजा था।
कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब ऐसे अपराधों की खबर अखबारों में न हो। नेशनल हेल्थ सर्वे 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक आबादी के अनुपात में शराब पीने वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर है। यहां 35.6 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। 34.7 प्रतिशत के साथ त्रिपुरा दूसरे और 34.5 प्रतिशत के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर है।
विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने पूरे 5 साल शराबबंदी का वादा निभाने के लिए कांग्रेस की सरकार को घेरा था। पर उसने आबकारी नीति में कोई बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया है। वैसे यह नीति पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की ही है। सिर्फ इतना किया गया है कि नई दुकान नहीं खोली जाएगी। मगर शराब सरकार के लिए अनिवार्य बनी हुई है। कितना इसका उदाहरण दिया एमसीबी जिले के कलेक्टर ने। उन्होंने बीते दिनों हाईकोर्ट में हलफनामा दिया कि शराब दुकान को नहीं हटा सकते। यदि नजदीक के शेल्टर में रहने वालों को तकलीफ है, तो उसी को किसी दूसरी जगह पर शिफ्ट कर देंगे।
प्रदेश के कुछ पुलिस अधिकारी अपने स्तर पर नशे के खिलाफ अभियान चला रहे हैं लेकिन वैध तरीके से हो रही बिक्री और खपत पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। (rajpathjanpath@gmail.com)
सिर्फ अवार्ड से बात नहीं बन रही
छत्तीसगढ़ के चार बच्चों मास्टर अर्णव सिंह, ओम उपाध्याय, प्रेमचंद साहू और लोकेश कुमार साहू को गणतंत्र दिवस पर उनकी अदम्य वीरता के लिए सम्मानित किया गया। इनमें कृपाल नगर, भिलाई के 16 वर्षीय ओम भी शामिल है, जिन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को खौफनाक कुत्तों के हमले से बचाया था। खास बात यह है कि ओम विशेष श्रेणी का किशोर हैं। बचपन से ही वह बोल-सुन नहीं पाता। ओम को सन् 2011 में राज्य सरकार की बाल श्रवण योजना से एक को-क्लियर इंप्लांट किया गया था, जिससे उसकी श्रवण क्षमता काफी हद तक लौट आई थी। मगर बीते चार सालों से यह मशीन खराब हो गई है। ओम खूब पढऩा चाहता है। वह बड़ा होकर सेना में भर्ती होना और देश की सेवा करना चाहता है। मगर, गरीबी रेखा के नीचे आने वाले उसके पिता सुधीर के पास नई मशीन खरीदने के पैसे नहीं है। नई मशीन इंप्लांट करने का खर्च करीब 6 लाख रुपए है। सुधीर सीएम हाउस में बीते 5 सालों के भीतर कई बार आवेदन लगा चुके हैं। उसे एक बार और मदद की जरूरत है ताकि इस वीर ओम का हौसला ना टूटे।
सिंहदेव के लिए मौका
लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के दौरान प्रस्ताव रखा गया कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव से चुनाव लड़ाया जाए। मगर उन्होंने इससे मना कर दिया और कहा कि वे प्रदेश भर में घूम-घूम कर कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करना चाहते हैं। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव में अनुभवी और कद्दावर नेताओं को उतारने से जीत की संभावना बढ़ जाती है। विधानसभा चुनाव में सांसदों को उतार कर भाजपा ने ऐसा सफल प्रयोग किया। इसी को ध्यान में रखते हुए संभवत: मोहम्मद अकबर ने बघेल का नाम सामने किया। विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले राम मय माहौल भाजपा के पक्ष में है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस से चुनाव लडऩा भी एक बड़ी चुनौती को स्वीकार करना होगा।
राज्य की कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरा होते ही पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने आपको प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना शुरू कर दिया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि बघेल की तरह उनका भी कद बड़ा है और वे भी प्रदेश की किसी भी सीट पर चुनाव लडऩे की काबिलियत रखते हैं। मौजूदा हालत में कांग्रेस से जो भी प्रदेश स्तरीय नेता लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर लेगा, उसकी प्रदेश और केंद्रीय राजनीति में कद अपने आप बड़ा हो जाएगा। बघेल के बाद सिंहदेव ही ऐसे नेता हैं, जिनके लोकसभा लडऩे का फैसला प्रदेश के कांग्रेसियों का उत्साह बढ़ा सकता है। मगर अब तक उनका नाम किसी ने सुझाया नहीं है। देखना होगा कि क्या खुद सिंहदेव ऐसी किसी लड़ाई के लिए खुद को तैयार करेंगे?
इलेक्ट्रिक गाडिय़ों में सुरक्षा
इस समय इलेक्ट्रिक बाइक और कारों का क्रेज बढ़ रहा है। इसके बावजूद कि इसकी कीमत पेट्रोल गाडिय़ों से काफी अधिक है। इस समय दुपहिया वाहनों की इतने अधिक ब्रांड बाजार में उतर चुके हैं कि ग्राहक तय नहीं कर पाते कि किसे ले। कोई बाइक सुरक्षा के मापदंडों पर वह खरा है भी या नहीं, इसका भी पता नहीं चलता।
मगर, यह एक वोल्वो कार है जिसकी कीमत 60 लाख रुपए से अधिक है। महासमुंद जिले के बसना थाना क्षेत्र के जगदीशपुर ओवर ब्रिज के पास अचानक इसमें से धुआं उठने लगा और कुछ ही देर में पूरी की पूरी लपटों से घिरकर खाक हो गई। वजह क्या रही होगी? गाड़ी मालिक का कहना है कि वोल्वो जैसी विश्वसनीय कंपनी और उसकी इतनी महंगी गाड़ी का भी भरोसा नहीं। यह तो शुक्र है कि कार में सवार सभी लोग सुरक्षित हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
जहां श्री होगा वहां लाभ रहेगा
भाजपा की राजनीति में कई तरह के उलटफेर होते रहे हैं । कभी कोई नेता किसी के साथ तो कोई किसी के साथ । आज कल पहली बार के दो पूर्व विधायक एक साथ नजर आ रहे हैं। एक बेमेतरा जिले के एक राजधानी के । इन्हें साथ देखते ही नेता कह उठते हैं कि जहां श्री होता है वहां लाभ रहता ही है। अब दोनों की जोड़ी ऐसे ही नहीं बनी। दोनों टिकट से वंचित किए गए । तो दिल तो मिलना ही था। और जोड़ी बन गई। अब देखना है कि यह जोड़ी क्या गुल खिलाती है ।
एफआईआर और हाई-टी
चुनाव के नतीजों ने राजभवन के स्वागत समारोह ( हाई-टी) का दृश्य ही बदल दिया। अब तक दरबार हाल में होनेवाला यह समारोह इस बार लॉन में हुआ । 15 अगस्त को जहां राजभवन कांग्रेस के नेताओं से भरा हुआ था। पांच माह 11 दिन बाद 26 जनवरी को भाजपा और संघ के नेता जय श्रीराम से अभिवादन करते नजर आए। गणमान्यों की मौजूदगी में कांग्रेस का एक नेता या पदाधिकारी को लोग तलाशते रहे। राजभवन के प्रोटोकॉल विभाग ने कांग्रेस के भी सभी प्रमुखों को आमंत्रण भेजा था। लेकिन कोई भी नामचीन नहीं आया । यह बायकाट नहीं था बल्कि इसके पीछे एसीबी में दो हुई एफआईआर को कारण माना जा रहा था । यहां तक की शहर के प्रथम नागरिक कहलाने वाले महापौर भी गैरहाजिर रहे। उनको आमंत्रण यानी शहरवासियों को आमंत्रण और महापौर का रहना व्यक्तिगत नहीं होता बल्कि शहरवासियों का प्रतिनिधित्व माना जाता है ।
जितना कमाया नहीं उतना...
कोल लेवी वसूली, मनी लांड्रिंग और शराब घोटाले में फंसे लोगों की मुश्किल बढऩे वाली है। इन लोगों ने जिनके लिए काम किया उन्होंने हाथ उठा दिया है । गिरफ्तारी के बाद सीखचों के पीछे रहना होगा या फिर बाहर रहने के लिए घर का पैसा लगाना होगा। यानी अब महाधिवक्ता कोष से मदद नहीं मिलने वाली। जब सरकार रहती है तो एजी के जरिए देश के नामचीन वकील बुला लिए जाते हैं । उनकी सारी फीस विधि विभाग के बजट से दे दी जाती है। इस फंड से पुराने बंदियों को भी बीते एक महीने से मदद नहीं मिल पा रही है। पिछली सरकार ने चुनाव से पहले ही हाथ उठा दिया था। यानी अब जितना कमाया नहीं उतना गँवाना होगा, क्योंकि दोनों ही घोटालों में कई तो पैसे के कूरियर रहे हैं। और अब सब फंस गए हैं। ऐसे में यह खतरा बढ़ गया है कि ये लोग कहीं और लोगों का नाम न ले लें। इससे बचने लोग इनसे मॉल-भाव न कर लें। आने वाले दिनों जब एसीबी कार्रवाई करेगी तो ऐसे ही कई खुलासे होंगे।
फिर चुनाव फिर धान का मुद्दा..
छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का लक्ष्य 130 लाख मीट्रिक टन रखा गया था, जो अंतिम तिथि 31 जनवरी के पहले ही पूरा हो गया है। इसके बावजूद खरीदी केंद्रों में धान बेचने और टोकन लेने के लिए कतार लगी हुई है। इनमें वे किसान भी हैं, जो पहले सिर्फ 15 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान बेच पाए थे। अंतिम तिथि यदि बढ़ती है तो धान खरीदी का आंकड़ा और बहुत आगे बढ़ सकता है। मगर अब सिर्फ तीन दिन बाकी है। (छुट्टी के दिन खरीदी बंद रहती है।) कांग्रेस ने धान खरीदी एक मार्च तक बढ़ाने की मांग की है। उसने यह भी आरोप लगाया है कि घोषणा के अनुसार 3100 रुपए की दर से भुगतान शुरू नहीं किया गया है। अनुपूरक बजट में इसका प्रावधान भी नहीं किया गया है। पिछली सरकारों ने धान खरीदी की आखिरी तारीख बढ़ाई थी। बीते विधानसभा चुनाव में धान एक बड़ा मुद्दा रहा। अब फिर प्रदेश लोकसभा चुनाव के मोड में है। सरकार को अभी यह सोचना है कि धान की खरीदी की समय सीमा और बढ़ी हुई कीमत पर भुगतान को कांग्रेस लोकसभा चुनाव की वोटिंग से पहले बड़ा मुद्दा न बना ले।
दो बड़े नाम छूट गए
राष्ट्रीय पर्व, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर जिलों के मुख्य समारोहों में ध्वजारोहण के लिए मुख्य अतिथि बनाया जाना बड़े सम्मान की बात होती है। किसे कितना महत्वपूर्ण जिला दिया गया है, इसकी भी चर्चा होती है।
पहले जब जिले कम थे और मंत्रियों की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं था, प्रत्येक जिले में कैबिनेट या राज्य मंत्री ही मुख्य अतिथि होते थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद लगातार जिले बढ़े, तब संसदीय सचिवों को भी मौका मिलने लगा। इस बार सरकार ने एक नया प्रयोग किया है कि भाजपा सांसदों को भी ध्वजारोहण कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनाया गया। मंत्रियों के लिए जिले तय होने के बाद अनेक विधायकों को भी मौका दिया गया। मंत्रिमंडल में जगह पाने से जो वरिष्ठ विधायक चूक गए उनका खास ख्याल रखा गया। धरमलाल कौशिक, रेणुका सिंह, भैया लाल राजवाड़े, गोमती साय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, लता उसेंडी आदि विभिन्न जिलों में मुख्य अतिथि थे। पर इस सूची में सातवीं बार विधायक चुने गए, मंत्री रहे और चार बार सांसद रह चुके पुन्नूलाल मोहले का नाम शामिल नहीं थे। इसके अलावा पांचवीं बार के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर को भी मौका नहीं मिला। जब परंपरा से हटकर सांसदों को मौका दिया गया, नए-नए विधायक भी झंडा फहराने जा रहे हैं तब इन वरिष्ठ विधायकों का नाम किसी जिले के लिए क्यों नहीं रखा गया, इस पर तरह-तरह की बात हो रही है।
न्यूज़ वैल्यू वाले बाबा
बाबा बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री का एक बार फिर दिव्य दरबार रायपुर में लग गया है। आते ही उन्होंने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण रोकने की बात की है। हिंदू राष्ट्र की पैरवी तो वे पहले से ही करते आ रहे हैं। पिछले साल भी उनका भव्य समारोह हुआ था। इस बार भी हजारों लोग पहुंच रहे हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, उड़ीसा, यूपी, बिहार के अनुयायी भी हैं। समाचार चैनलों ने पहले बाबा के लिए भीड़ बढ़ा दी, फिर रिपोर्टर उनके पीछे भागते दिखाई दे रहे हैं। लोग उनके चरणों पर दिखाई देते हैं...। सोशल मीडिया पर वायरल यह एक तस्वीर है। (rajpathjanpath@gmail.com)
भूपेश की इस सीट पर चर्चा
हल्ला है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल राजनांदगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। भूपेश के करीबी गिरीश देवांगन ने राजनांदगांव की सभी सीटों के विधानसभा चुनाव के आंकड़े लिए हैं। इसके बाद से स्थानीय कांग्रेस नेता, भूपेश के लोकसभा चुनाव लडऩे की अटकलें लगा रहे हैं।
देवांगन राजनांदगांव विधानसभा सीट से बुरी हार के बाद भी संपर्क में हैं, और कुछ कार्यक्रमों में गए हैं। इसके बाद से भूपेश के चुनाव लडऩे को लेकर चर्चा शुरू हुई। गौर करने लायक बात यह है कि कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव हार चुके मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने पर सहमति दे दी है। भूपेश, और अन्य प्रमुख नेताओं के चुनाव मैदान में उतरेंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
हटा अंगद का पाँव
माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव डॉ. वीके गोयल को हटा दिया है। उनके पास ओपन स्कूल का भी प्रभार था। अभी सिर्फ माध्यमिक शिक्षा मंडल के दायित्व से मुक्त किया गया है, जो कि वो पिछले 7 साल से संभाल रहे थे।
माध्यमिक शिक्षा मंडल सचिव के पद पर आईएएस पुष्पा साहू की पदस्थापना की गई है। डॉ. गोयल प्रोफेसर के पद पर रहे हैं, और प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद भी पद पर बने हुए थे। चर्चा है कि डॉ. गोयल के खिलाफ शिक्षक संघ ने शिकायत भी की थी, और उन्हें वापस उच्च शिक्षा विभाग में भेजने के लिए सरकार से आग्रह किया था।
शिक्षकों की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि सरकार बदलते ही डॉ. गोयल ने मंडल परिसर से संघ के दफ्तर को हटाने के लिए नोटिस जारी कर दिया था। इस बात को लेकर शिक्षकों में काफी नाराजगी थी।
अमित कुमार का तजुर्बा
आईपीएस के 98 बैच के अफसर अमित कुमार को सरकार ने एडीजी (इंटेलिजेंस) की जिम्मेदारी दी है। अमित की साख, और अनुभव को देखते हुए महत्वपूर्ण दायित्व मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी।
अमित प्रदेश के अकेले अफसर हैं, जिन्होंने सीबीआई जैसी संस्था में 12 साल गुजारे हैं। वहां भी उन्होंने बेहतर कार्यशैली का परिचय दिया था। वो चर्चित कोल घोटाले की जांच से भी जुड़े थे। अमित सीबीआई के 6 डायरेक्टरों के साथ काम कर चुके हैं। सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर रहते पॉलिसी जैसा अहम काम देख चुके हैं, वो सीधे सीबीआई डायरेक्टर को रिपोर्ट करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में काम करते हुए रायपुर, दुर्ग समेत 4 जिलों के एसपी रह चुके हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
वे दिन हवा हुए...
लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए कांग्रेस ने ‘वार रूम’ का गठन तो कर लिया है, लेकिन इसके चेयरमैन शैलेष नितिन त्रिवेदी को राजीव भवन में ‘वार रूम’ के लिए अब तक जगह नहीं मिल पाई है। बताते हैं कि शैलेश ने पहले संचार विभाग के फ्लोर में ही ‘वार रूम’ तैयार करने के लिए जगह पसंद किया था, लेकिन संचार विभाग के मुखिया सुशील आनंद शुक्ला सहमत नहीं हुए। अब जाकर राजीव भवन में कहीं उपयुक्त जगह की तलाश की जा रही है ताकि काम शुरू हो पाए।
गौर करने लायक बात यह है कि विधानसभा चुनाव में तो ‘वार रूम’ के लिए शंकर नगर में एक आलीशान फ्लैट किराए पर लिया गया था। भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा की निगरानी में ‘वार रूम’ संचालित हो रहा था। पूरा ‘वार रूम’ हाईटेक था। इस पर भारी भरकम खर्च किए गए थे। ‘वार रूम’में किस तरह की गतिविधियां चल रही थी यह तो साफ नहीं है, लेकिन चुनाव नतीजे अब तक के सबसे खराब रहे हैं।
हाल यह रहा कि चुनाव नतीजे आते-आते तक ‘वार रूम’ में ताला लग गया, और वहां कार्यरत कर्मचारी हिसाब किताब कर निकल गए। विनोद वर्मा भी चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। अब जब लोकसभा चुनाव के लिए ‘वार रूम’ तैयार करने की बारी आई, तो एक कमरे के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
जेसीसी-बीजेपी में सियासी कशमकश
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा के लोकसभा चुनाव के लिए नियुक्त क्लस्टर प्रभारियों के साथ दिल्ली में हुई बैठक के 5 दिन के भीतर ही भाजपा ने आम आदमी पार्टी में सेंध लगा दी। इसके अलावा हजार पांच सौ वोटों की पहचान रखने वाली छोटी-छोटी पार्टियों के अनेक पदाधिकारी भाजपा में ले लिए गए हैं। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने इस्तीफा दिया था तब उनके ही भाजपा में जाने की चर्चा ज्यादा थी लेकिन शायद अभी शर्तें तय नहीं हो पाई हैं। या फिर उन्होंने अभी मन ही नहीं बनाया होगा। शाह की बैठक से लौटकर एक क्लस्टर प्रभारी अमर अग्रवाल ने बताया था कि उनको निर्देश मिला है कि जो लोग पार्टी में आना चाहते हैं, उनका स्वागत करें। यहां उनके निर्देश का पालन होने लगा है।
इस तोडफ़ोड़ के बाद एक बार फिर यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या अमित जोगी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो जाएंगे? जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद से ही पुत्र अमित जोगी ने पार्टी को फिर से खड़ा करने की बड़ी कोशिश की लेकिन विधानसभा चुनाव में आए नतीजे से यह साफ हो गया कि उसका भविष्य कैसा होगा। डॉ. रेणु जोगी पहले यह बता चुकी हैं कि कांग्रेस में पार्टी के विलय की चर्चा चली थी। बात इसलिए अटक गई क्योंकि बाकी सब के लिए सहमति तो थी लेकिन अमित को शामिल करने को लेकर कांग्रेस में एक राय नहीं थी। जेसीसी को खड़ा करने वाले ज्यादातर नेता अब पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। स्व. जोगी के जाने के बाद उनके बेहद करीबी धर्मजीत सिंह अब भाजपा विधायक हैं।
मरवाही उपचुनाव में लडऩे का मौका नहीं मिलने पर जेसीसी ने भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर सिंह को समर्थन दे दिया था। बीते विधानसभा चुनाव में भी जेसीसी का भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का मकसद पूरा हुआ। मगर उसे खुद नोटा जितने वोट भी नहीं मिल पाए। सूत्र बता रहे हैं कि इस नतीजे से पार्टी में बेचैनी महसूस की जा रही है और भाजपा में विलय की मांग हो रही है। अमित कह चुके हैं कि क्या करना है यह वक्त आने पर तय करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिलकर वे उनको जीत की बधाई दे चुके हैं, पर बीते 8 जनवरी को शाह से उनकी मुलाकात के बाद चर्चा और तेज हुई है। लोग मान रहे हैं कि इन भेंट मुलाकातों का कोई न कोई मुकाम होगा।
मगर फैसला आसान नहीं है। पार्टी में जो लोग भी आज रह गए हैं उनमें से ज्यादातर कार्यकर्ता ऐसे हैं जो स्वर्गीय अजीत जोगी को जननायक और मसीहा मानते रहे और अमित जोगी से उनकी विरासत आगे बढ़ाने की उम्मीद करते हैं। जो लोग आज साथ हैं वे सब के सब भाजपा में जाना पसंद करें या जरूरी नहीं।
दूसरा पहलू बीजेपी का है। पार्टी के रणनीतिकारों को यह तय करना है कि जोगी की पार्टी का विलय ठीक रहेगा या उसका अलग अस्तित्व बनाए रखने में नफा होगा।
काम पर लग गए बुलडोजर
छत्तीसगढ़ भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान कई ऐसे वायदे किए जिसने रोमांच, बदन और जेहन में सुरसुरी, सनसनी पैदा की। इन्हीं में से एक वादा था आपराधिक तत्वों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई। बीते 2 दिसंबर को चुनाव परिणाम के बाद जीत के जश्न में बुलडोजर को भी शामिल किया गया था। राजधानी के जोश में भरे कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को भी इसमें चढ़ाया था। बिलासपुर में भी जीत का जुलूस बुलडोजर के साथ निकाला गया था।
भाजपा सरकार अपने इस वादे पर खरा उतर रही है। जीत के 2 दिन बाद ही रायपुर में अवैध चौपाटी पर बुलडोजर की एंट्री हुई थी। अब पखांजूर में भाजपा नेता असीम राय की हत्या के मुख्य आरोपी विकास पॉल का होटल भी ढहा दिया गया है। पुलिस जांच में यह बात सामने आई थी कि इसी होटल को बचाने के लिए असीम राय की हत्या की गई थी, ताकि नगर पंचायत में भाजपा का कब्जा ना हो सके। मगर अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ, भाजपा आ गई। आरोपी जेल में है और उसका होटल भी टूट गया।
कांग्रेस नेताओं की समाजसेवा
जन सेवा के लिए पद की कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती। और न ही प्रतिफल की चाह। इसी ध्येय के साथ कई बड़े बड़े समाजसेवी इतिहास में हुए हैं और उनके ही कारण समाजवाद का जन्म हुआ। कालांतर में इस समाज सेवा ने सरकारी पदों का रूप ले लिया। पांच वर्ष के एक निश्चित समयावधि के लिए हरेक को मौका मिलता रहा। लेकिन हाल के वर्षों में समय पूर्णता के बाद भी पद पर बने रहकर समाज सेवा की ललक के आगे आधुनिक समाजसेवी नेता जुटे रहते हैं। कारण प्रतिफल स्वरूप मोटा वेतन, सरकारी सुविधाएं और बेहिसाब बजट।
मानना पड़ेगा कांग्रेस के नेता लोगों को जनता के लिए काम करने की ललक है सरकार के जाने के बाद भी इतनी निष्ठा जनता के सेवा करने की। इसी समाज सेवा के लिए राज्य के तीन आयोग के अध्यक्ष, सदस्य और उनके पदाधिकारियों के साथ 40 लोग स्टे लेकर समाजसेवा कर रहे हैं । एक नेताजी ने भी स्टे लिया था, लेकिन रिकवरी के भय से अगले ही दिन इस्तीफा भेज कर अदभुत नैतिकता का परिचय दिया।
गोबर खरीदी पर सरकार का रुख
कांग्रेस सरकार ने जब गोबर खरीदी योजना शुरू की तो इसका मजाक उड़ाया गया था लेकिन बाद में भाजपा शासित राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में इससे मिलती-जुलती योजना बनाई गई। बाद में गौठान समितियां और कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, जिनके जरिये यह खरीदी हो रही थी गड़बड़ी करने लगे। विधानसभा में अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, सौरभ सिंह आदि ने इस मामले को कई बार उठाया। गोबर खरीदी और उसके एवज में किए गए भुगतान में भारी फर्क था। अब भाजपा सरकार ने तय किया है कि गोबर के एवज में किए गए 287 करोड़ रुपये भुगतान की जांच कराई जाएगी। भाजपा सरकार ने इस योजना को जारी रखने और भ्रष्टाचार के सुराखों को बंद करने का भी ऐलान किया है। तब गोबर खरीदी का भुगतान सरकार की दूसरी योजनाओं की राशि से किया गया था। नई सरकार ने मंशा जताई है कि वह अपने पैसे से गोबर नहीं खरीदेगी, बल्कि इसके प्रोडक्ट बेचकर समितियों को मुनाफे में लाया जाएगा। पिछली सरकार ने भी ऐसी कोशिश की थी। उसके कई बाई प्रोडक्ट बनाए गए लेकिन बाजार टिके नहीं। गोबर खाद को जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के नाम पर तैयार किया गया लेकिन उसे सोसाइटियों में पोटाश, यूरिया खरीदी के दौरान किसानों को जबरन थमाया गया। किसान इस जबरदस्ती से नाराज भी थे। वे इसका इस्तेमाल नहीं करते थे। खाद की जगह मिट्टी बेच दी जाती थी। गो काष्ठ और गोबर पेंट को भी उम्मीद के अनुरूप मार्केट नहीं मिला। सरकार को लग रहा होगा कि गरीबी खरीदी गांवों के बिल्कुल निचले तबके तक फायदा पहुंचाती है, इसलिये इसे बंद करना ठीक नहीं होगा, पर इसे मुनाफे कैसे चलाएगी, अभी साफ नहीं है।
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गर्भगृह जाने वाले यहां से अकेले
अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में छत्तीसगढ़ से 140 विशिष्ट लोगों को आमंत्रित किया गया था। मगर शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल अकेले ऐसे थे जिन्हें देशभर के चुनिंदा 5 सौ विशिष्ट जनों के साथ मंदिर के गर्भगृह में जाकर दर्शन का सौभाग्य मिला।
शदाणी दरबार के प्रमुख ने योग गुरु रामदेव, और फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन सहित अन्य हस्तियों से मुलाकात भी की। वैसे तो बड़ी संख्या में यहां से लोग अयोध्या जाकर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होना चाहते थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से बाहर से लोगों को आने की अनुमति नहीं थी। केवल वो ही जा सकते थे, जिन्हें निमंत्रण पत्र भेजा गया था।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब प्रदेश के लोगों को रामलला दर्शन के लिए ले जाने की योजना तैयार की है। हर साल 20 हजार लोगों को मुफ्त में दर्शन कराने के लिए यात्रा पर ले जाया जाएगा। कैबिनेट योजना को मंजूरी दे चुकी है, और 7 फरवरी को दुर्ग से पहली ट्रेन अयोध्या के लिए चलेगी।
राम लला के नाम पर ठगी
किसी दुकान की शटर हमेशा खुली रखनी हो तो हमेशा अपडेट रहना चाहिए। पूरे देश में ऑनलाइन ठगी के रोजाना हजारों मामले हो रहे हैं और लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये लुट रहे हैं। ठगबाज हर समय शोध करते हैं कि कौन सा मार्केट गरम है। उन्होंने ताजा -ताजा ट्रैक श्रीराम के नाम पर पकड़ा है। अमेजॉन और कुछ दूसरे वेबसाइट पर पिछले एक पखवाड़े से संदेश आ रहे हैं कि अयोध्या में श्रीराम को भोग लगाए गए प्रसाद की होम डिलीवरी की जाएगी। मंदिर प्रबंधन की ओर से बताया जा चुका है कि अभी तो राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा ही नहीं हुई है, उनको भोग लगाने का काम तो बाद में शुरू होगा। इसके अलावा किसी को ऑनलाइन डिलीवरी के लिए अधिकृत किया भी नहीं गया है।
अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद फिर प्रसाद डिलीवरी के लिंक मोबाइल फोन पर आ रहे हैं। दर्शन के लिए वीवीआईपी पास दिलाने, शुभ अवसर होने की खुशी में मोबाइल पर फ्री रिचार्ज अमाउंट डालने का झांसा दिया जा रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी यह ठगी जोरों पर हो रही है। विभिन्न जिलों की पुलिस लोगों को सतर्क कर रही है कि ऐसे मेसैजेस से सतर्क रहें, किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, डाउनलोड नहीं करें। आप भी सतर्क रहें।
सफाई और हो जाए
रामलला की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को सचमुच ही दीवाली की तरह मनाया गया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तो आधी रात तक फटाके दीवाली की तरह ही फूटते रहे, और जगह-जगह सडक़ किनारे आयोजन चलते रहे, लोगों ने खूब दीये जलाए, और चारों तरफ ढोल-नगाड़े भी बजते रहे। कुल मिलाकर यह कि पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की दखल से जो रोक लाउडस्पीकरों पर चल रही थी, वह पूरी तरह बेअसर हो गई, और साउंड सर्विस वालों को भी फटाके वालों, और दीये बनाने वाले कुम्हारों के साथ काम मिल गया। अब चारों तरफ फटाकों और भंडारों की वजह से जो गंदगी फैली है, उसे भी साफ करने का आव्हान, मंदिरों को साफ करने की तरह दिया जाना चाहिए, क्योंकि कण-कण में भगवान माने जाते हैं, और धरती का कोई भी कण इस हिसाब से गंदा नहीं छोडऩा चाहिए।
सभी 11 का लक्ष्य
विधानसभा का बजट सत्र निपटने के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव का बिगुल बज सकता है। इसके लिए चुनाव आचार संहिता मार्च के पहले पखवाड़े में लग सकती है। भाजपा संगठन के नेताओं ने इस सिलसिले में मंत्रियों को हिदायत दे रखी है। रामलला के माहौल के बीच में पार्टी ने सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर खुद कमजोर माने जाने वाली सीटों पर ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं, और वो प्रमुख नेताओं से लगातार बैठक कर रहे हैं। तीन क्लस्टर प्रभारियों अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल व राजेश मूणत के हिस्से काफी कुछ जिम्मेदारी है। संकेत साफ है कि सत्र के बीच में प्रचार तेज किया जाएगा।
तेरहवीं के बाद ?
विधानसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेस में निराशा है। कांग्रेस के नेता अब तक इससे उबर नहीं पाए हैं। लोकसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में प्रमुख नेताओं के सक्रिय नहीं होने से माहौल नहीं बन पा रहा है। विधानसभा चुनाव में बुरी हार झेल चुके एक नेता ने तो हास परिहास के बीच अपने कुछ लोगों से कह दिया कि वो तेरहवीं के बाद ही सक्रिय होंगे। नेताजी के परिवार में किसी का निधन तो हुआ नहीं है। ऐसे में तेरहवीं का आशय लोकसभा चुनाव के संभावित नतीजों से लगा रहे हैं।
पुलिस को वीकली ऑफ कैसे?
डिप्टी सीएम ने बैठक में बोल दिया कि पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ दिया जाए। अब अफसर परेशान हैं कि वीकली ऑफ कैसे शुरू करें। देने की स्थिति रहती तो पिछली सरकार में ही दे देते। तब कांग्रेस की सरकार की प्राथमिकता में वीकली ऑफ देना भी था। कांग्रेस सरकार का फोकस भी ऐसी कोशिशों में था जिसमें पैसे खर्च न हों। पर जब थानों के स्टाफ को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी देने की बात आई, तब यह संभव नहीं हुआ, क्योंकि इतने स्टाफ ही नहीं हैं कि वीकली ऑफ दिया जा सके। अब नए सिरे से मंथन शुरू हो चुका है कि किस तरह इसे पूरा किया जा सके।
दलबदल महा अभियान
लोकसभा चुनावों से पहले फिर से दलबदल महाअभियान शुरू हो रहा है। इस बार तो उस पार्टी के नेता पाला बदल रहे हैं, जो भाजपा का विरोध करके ही बनी और दो राज्यों में सरकार चला रही है। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समेत छह प्रमुख शीर्ष पदाधिकारी आज दोपहर मफलर छोड़ भगवा दुपट्टा पहनने जा रहे। जाने से पहले उन्होंने इस्तीफा दिया और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भला बुरा कहा। प्रदेश अध्यक्ष की राष्ट्रीय कोर कमेटी में भी रहे हैं।
बस्तर के आंदोलनों पर नीति क्या?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में बैठक के दौरान छत्तीसगढ़ खासकर बस्तर की माओवादी हिंसा में कमी आने को लेकर सशस्त्र बलों की सराहना की। दावा किया गया कि हिंसक घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी आई है, और उग्रवादियों का भौगोलिक क्षेत्र भी सिमट गया है। नक्सलियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलाने और उनकी फंडिग का रास्ता पहचान कर उसे बंद करने का निर्देश भी दिया है।
नक्सल हिंसा में बीते पांच साल के दौरान कमी देखी गई है। सुरक्षा बल ऐसे अनेक स्थानों पर भी कैंप बनाने में सफल रहे जो कभी पूरी तरह नक्सलियों के नियंत्रण में होते थे। विधानसभा चुनाव के पहले गृह मंत्री ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे में कई बार कहा कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले नक्सलियों को छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेकेंगे। इस बार की बैठक में उन्होंने तीन साल का लक्ष्य दिया है।
शाह की बैठक की जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक उन्होंने फोर्स की भूमिका पर चर्चा को केंद्रित रखा है। इससे जुड़े कई दूसरे पहलुओं पर बैठक में कोई बात हुई हो तो वह बाहर नहीं आई है। जैसे जेलों में बिना मुकदमों के वर्षों से आदिसायियों का बंद रहना। कांग्रेस सरकार के समय इसकी थोड़ी कोशिश हुई थी। बाद में आंकड़े आए तो पता चला कि जुआ, शराब, मारपीट के मामलों में ही बंद लोगों को रिहा किया गया। जिन पर माओवादी गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप है, उनके मुकदमों की सुनवाई और रिहाई में कोई तेजी नहीं आई। दंतेवाड़ा जिला जेल अब भी प्रदेश के सर्वाधिक ओवरक्राउडेड जेलों में से एक बना हुआ है। दूसरी तरफ बस्तर में अनेक ऐसे मुठभेड़ हुए हैं, जिनको लेकर ग्रामीणों का आरोप है कि निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी। ताजा उदाहरण 6 माह की बच्ची की फायरिंग में हुई मौत है। ऐसी घटनाओं पर कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुए आंदोलन अभी तक खत्म नहीं हुए हैं।
नक्सल समस्या के जानकार लोगों का कहना है कि यदि यह संघर्ष माओवादियों के बहकावे में आकर भी किये जा रहे हों, जैसा सरकारें और पुलिस दावा करती है- तब भी बस्तर में शांति कायम करने के लिए उनको भरोसे में लेना जरूरी है। भाजपा सरकार बनने के बाद केंद्रीय व राज्य के गृह मंत्री दोनों ने ही नक्सलियों से वार्ता की इच्छा दिखाई थी, लेकिन इन मुद्दों पर उनका क्या रुख है, बाहर निकलकर नहीं आया।
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संभावित तो प्रभारी बना दिए गए
दो दिन पहले भाजपा ने प्रदेश के सभी लोकसभा सीटों के लिए प्रभारी, सह प्रभारी, और संयोजकों की नियुक्ति की। इन नियुक्तियों की पार्टी के अंदर खाने में खूब चर्चा हो रही है। वजह यह है कि नवनियुक्त पदाधिकारी लोकसभा टिकट के मजबूत दावेदार समझे जा रहे थे, लेकिन कहा जा रहा है कि प्रभारी अथवा संयोजक बनने से टिकट की दावेदारी कमजोर हो गई है।
पूर्व सांसद कमलभान सिंह को सरगुजा लोकसभा सीट का संयोजक बनाया गया है। कमलभान खुद टिकट के दावेदार हैं। चर्चा है कि कमलभान को नई जिम्मेदारी मिलने से दावेदारी कमजोर हो गई है। इसी तरह बिलासपुर के पूर्व सांसद लखनलाल साहू को भी सरगुजा का प्रभारी बनाया गया है। लखनलाल बिलासपुर सीट से टिकट के दावेदार हैं। ऐसे में चर्चा है कि पार्टी बिलासपुर सीट से नया चेहरा आगे ला सकती है। इसी तरह सीनियर विधायक धरमलाल कौशिक को कोरबा का प्रभारी बनाया गया। जबकि उनका नाम बिलासपुर सीट से चर्चा में है।
राजनांदगांव सीट से टिकट के दावेदार नेता पूर्व सांसद अभिषेक सिंह, और डॉ. सियाराम साहू को अलग-अलग सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। यही नहीं, पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के विधानसभा चुनाव हारने के बाद कोरबा सीट से चुनाव लडऩे के इच्छुक बताए जाते हैं। मगर उन्हें राजनांदगांव लोकसभा का जिम्मा दे दिया गया है। कुल मिलाकर इन दिग्गजों को चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी दी गई है।
विज की नक्सल बुक
डीजी के पद से रिटायर हुए आईपीएस आरके विज इन दिनों प्रदेश की नक्सल समस्या पर आधारित एक बुक लिख रहे है। इसके लिए विज मौजूदा नक्सल परिस्थितियों को समझने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर दौरा कर रहे है। 1988 बैच के आईपीएस विज साल 2021 मेंं लंबी सेवा के बाद पुलिस महकमे से रिटायर हुए थे। सर्विस में रहते हुए विज कई अखबारों के लिए आर्टिकल लिखते थे। बताते हैं कि वह रिटायर होने के बाद नक्सल समस्या के खात्मे के लिए सरकारी एजेंसियों को सुझाव भी देते रहते है। पिछले दिनों विज ने कवर्धा जिलें की नक्सली गतिविधियों को जानने के लिए दो दिन का दौरा किया। वैसे विज ने नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की कवायद अपने सेवाकाल में भी किया। बस्तर जैसे घोर नक्सल रेंज का भी उन्होंने मोर्चा सम्हाला। बतौर दुर्ग आईजी के विज ने एक नामी नक्सली को हथियार समेत राजनांदगांव-गढ़चिरौली के जंगल से मुख्यधारा में लाया था। साकेत नामक एक खूंखार नक्सली ने इंसास रायफल के साथ समर्पण किया था। यह पहला मौका था, जब किसी नक्सली ने घातक हथियार के साथ मुख्यधारा में वापसी की थी। अब वह रिटायर होकर नक्सल समस्या पर एक पुस्तक लिख रहे है। आईपीएस बिरादरी में उनकी पुस्तकक को लेकर कई तरह की चर्चाए भी है। सुनते हैं कि विज की लिखी किताब का पुलिस अधिकारियों को इंतजार है।
हसदेव पर नक्सली आह्वान
छिटपुट घटनाओं को छोडक़र बीते एक दशक से सरगुजा संभाग में कोई नक्सली वारदात नहीं हुई है। कोरिया और बलरामपुर जिले के कुछ हिस्सों में इनकी आमद रफ्त कभी कभी सुनाई देती रही है। वह भी अब कई महीनों से नहीं सुनी गई। ऐसे में नक्सलियों ने 23 जनवरी को सरगुजा संभाग बंद का आह्वान किया है। हसदेव अरण्य में कोयला खदान और जंगल कटाई के विरोध में उनका बयान पहले आ चुका है। बस्तर में ऐसा वे करते भी हैं। पर इस बार उन्होंने सरगुजा में बंद का आह्वान किया है। हसदेव के बहाने से क्या नक्सली यहां अपनी खोई हुई जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश में हैं? सरगुजा बंद के आह्वान से पडऩे वाले असर को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकेगा।
खेती अलग हटकर
यह किसी पूर्वोत्तर या दक्षिण के किसी राज्य की तस्वीर नहीं है, जहां बड़े स्तर पर चाय की खेती होती है। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की है। पर्वतों, जंगलों के बीच जशपुर जिले के कई गांवों में खेती के नए नए प्रयोग हो रहे हैं। जिले के मनोरा और बगीचा ब्लॉक में करीब 95 एकड़ पर चाय का बागान इसी कड़ी में विकसित करने का काम जारी है।
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व्यस्त कर दिया
छत्तीसगढ़ सरकार में एक मंत्री पद खाली है। मुख्यमंत्री के अलावा जितने मंत्री रह सकते हैं, उस अधिकतम सीमा से अभी एक मंत्री कम है, और ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव तक पार्टी के विधायकों का योगदान देखकर पार्टी इस एक पद को भरेगी। इस बीच लोकसभा चुनाव की तैयारी में तीन वरिष्ठ विधायकों, जो कि भूतपूर्व मंत्री भी हैं, उन्हें भाजपा ने संसदीय क्लस्टर प्रभारी बनाया है, वे तीन-चार सीटों का काम देखेंगे, और ऐसा लगता है कि पार्टी ने इनमें से किसी एक को मंत्री बनाने के लिए उनके बीच यह मुकाबला छेड़ दिया है कि वे पार्टी की शानदार जीत तय करें, तो पार्टी उनका शानदार भविष्य तय करेगी। राजेश मूणत, अजय चंद्राकर, और अमर अग्रवाल, इन तीनों अनुभवी मंत्रियों को अभी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हो सकता है कि इनमें से किसी की बारी आ जाए। फिलहाल तो पार्टी ने इन्हें व्यस्त कर दिया है।
अफसरों की नई रफ्तार!
बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए अफसर अब तक असमंजस में हैं कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इन ओहदों पर नए लोगों को बिठाने का फैसला लेंगे, तो कब लेंगे? ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री न तो किसी हड़बड़ी में है, और न ही पिछली सरकार में बड़े ओहदों पर रहे लोगों से हिसाब चुकता करने के अंदाज में कोई काम कर रहे, इसलिए बहुत सी कुर्सियों पर लोग अभी जारी हैं। लेकिन जब कुर्सी पर बने रहने की गारंटी नहीं रह गई है, और सिर पर हटने की तलवार टंगी है, तो ऐसे बड़े-बड़े अफसर अपने मातहतों को साथ लेकर ऐसी-ऐसी कमेटियों की बैठक करने में लग गए हैं जिनकी बरसों से किसी ने याद भी नहीं की थी। सरकार में कई कमेटियां उपेक्षित पड़ी रह जाती हैं, लेकिन अब सभी अफसर बेहतर काम करके दिखाने की एक दौड़ में लगे हैं, पता नहीं यह रफ्तार कब तक कायम रहेगी। फिलहाल अफसरों के बीच इस बात को लेकर राहत है कि विष्णु देव साय की सरकार बदले की भावना से कोई काम करते नहीं दिख रही है, बल्कि बहुत सी कुर्सियों पर मौजूदा अफसरों में से सबसे काबिल को मौका दिया गया है।
फिर खुलने लगे जुए-शराब के अड्डे
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद पुलिसकर्मियों ने तत्काल प्रभाव से जुए-सट्टे और कबाड़ के ठीयों को बंद करवा दिया था, ताकि किसी भाजपाई के शिकायत पर हिट विकेट न होना पड़े। उस समय यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि आईजी-एसपी बदले जाएंगे तो नया सेटअप बैठेगा। एडिशनल एसपी, डीएसपी, और टीआई लेवल पर भी बड़े पैमाने पर बदलाव होंगे। इसके विपरीत सरकार अभी तक आईपीएस के तबादले नहीं कर सकी। धीरे-धीरे सारे थानेदार भी रिलैक्स हो गए हैं। वे अब जुए-सट्टे और कबाड़ के धंधे से जुड़े लोगों को फ्री हैंड देते जा रहे हैं।
पुलिस-प्रशासन की मुश्किल
प्रदेश में प्रशासन और पुलिस के अफसरों का काम तो नहीं पर तनाव बढ़ गया है। तनाव बढऩे की वजह है हाई कोर्ट की नजर। पिछले कुछ समय से जनहित से जुड़े मुद्दों पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जिस तरह से गंभीरता दिखाई है, तब से पुलिस और प्रशासन क्या स्वास्थ्य, खनिज, समाज कल्याण सभी में सक्रियता आ गई है। काम भले पूरा न हो लेकिन सक्रियता दिखाई जा रही है, क्योंकि जनहित की खबरों पर हाई कोर्ट के संज्ञान लेने पर कोर्ट में खिंचाई होगी। वैसे, बिलासपुर के लोग हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के काफी आभारी हैं। सिम्स की रंगत बदल रही है। अवैध अहाते बंद हो गए हैं। डीजे का शोर कम हो गया है। रेलवे में पार्किंग ठेकेदारों की मनमानी बंद हुई है। अब कोर्ट ने सडक़ों को लेकर मुख्य सचिव को तलब किया है, यानी अब सडक़ें भी चिकनी हो जाएंगी। स्पष्ट है जब प्रशासन काम न करे तो जनहित याचिका लगाए और कोर्ट के जरिए पूरा कराए।
स्वागत में बाधक सडक़...
स्वागत, अभिनंदन के तौर तरीकों पर अगले कुछ दिनों तक कोई रोक-टोक नहीं। चाहें तो सडक़ खोदकर बांस डाल सकते हैं, द्वार बना सकते हैं। वैसे तो यह प्रदेश की राजधानी की एक तस्वीर है, पर यहां जगह-जगह, और दूसरे शहरों में भी ऐसा दिखाई दे रहा है। नाहक बीच में यातायात सुरक्षा सप्ताह आ गया। उसे आगे खिसका दिया जाना चाहिए।
तैयारी के साथ मंच पर भेजें...
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान भाजपा सांसद धर्मेंद्र कश्यप ने पीएम आवास के एक लाभार्थी को चाबी देते हुए पूछ लिया कि किसी ने पैसे तो नहीं लिए? सांसद ने ध्यान नहीं रखा कि इस तरह के सवाल तभी किया जाना चाहिए जब जवाब पहले से रटा दिया गया हो। महिला लाभार्थी ने मासूमियत से कह दिया कि हां, 30 हजार रुपये दिए हैं। भरी सभा में सुशासन की पोल खुल गई।
सच्चाई यह है कि यह योजना सरपंचों और ग्राम सचिवों के लिए अवैध वसूली का बहुत बड़ा जरिया है। यह न केवल यूपी में हो रहा है ना अभी शुरू हुआ है। इंदिरा आवास के जमाने से चला आ रहा है। छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने पीएम आवास के लिए अंशदान जारी नहीं किए पर इस बीच भी ठगी और वसूली चलती रही। पिछले साल मार्च महीने में दुर्ग जिले में एक गिरोह काम कर रहा था। प्रधानमंत्री आवास दिलाने के नाम पर उसने स्टांप पेपर पर इकरारनामा करके लाखों रूपए की वसूली की। दो साल पहले रायपुर के तेलीबांधा इलाके में भी इसी तरह की ठगी की गई थी।
भाजपा ने पीएम आवास को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। सरकार बनते ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी पहली कलेक्टर कांफ्रेंस में निर्देश दिया कि इस योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। पात्र हितग्राहियों के एक वर्ग के लिए 25 हजार रुपये की पहली जारी भी कर दी गई है। पर इसमें भी वसूली शुरू हो गई है। शिकायतों के मुताबिक जांजगीर-चांपा जिले में जनपद पंचायत के दलाल हितग्राहियों से घूम-घूमकर मिठाई के नाम पर पैसे मांग रहे हैं। बलौदाबाजार के सकरी गांव से भी यही शिकायत आई है। दर्जनों शिकायतें तब भी थीं, जब आवास आवंटन नहीं हो रहे थे। अब जब आवास घोषित हो गए हैं, वसूली फिर हो रही है।
हाल ही में बसना जनपद पंचायत के एक पंचायत सचिव को वहां के सीईओ ने ऐसी ही शिकायतों पर निलंबित भी किया है। इस योजना में 1.30 लाख रुपये मिलते हैं। यह गरीबों के लिए बड़ी रकम है। खुद का आवास हो जाना उनके लिए बहुत बड़े सपने का पूरा होना है। ऐसे में पात्र लोगों की सूची में नाम डालने और राशि मिलने के बाद उपयोगिता का प्रमाण पत्र देने के नाम पर दबावपूर्वक राशि ली जाती है, वरना उन्हें आवास अधूरा रह जाने की चेतावनी दी जाती है।
टिकट की उम्मीद रखें या नहीं?
धरमलाल कौशिक, अभिषेक सिंह, लखन लाल साहू, कमलभान सिंह, डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी और उनके जैसे कई भाजपा नेताओं के बारे में चर्चा चली हुई है कि वे लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक है। पर इन्हें प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी और संयोजकों की सूची में शामिल कर लिया है। इनमें से किसी को भी उन जिलों में तैनात नहीं किया गया है जहां से वे लडऩे की इच्छा रखते हैं। पूर्व में क्लस्टर प्रभारियों की घोषणा हुई थी। उसमें भी कम से कम दो नाम तो ऐसे हैं, जो लोकसभा जाना चाहते हैं। पर दूसरे जिलों, संभागों में व्यस्त कर देने से उनके समर्थकों में चिंता पैदा हो गई है कि क्या उनके नाम पर विचार नहीं होगा? फिर वे यह सोचकर संतोष कर लेते हैं कि भाजपा में कुछ भी हो सकता है, जिनको टिकट मिलने की उम्मीद है, वे देखते रह जाएंगे। जिसने सोचा भी नहीं होगा, उसे मिल जाएगी।
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फिर राशन कार्ड की लाइन
एक बार फिर राशन कार्ड बदले जा रहे हैं। अभियान 25 जनवरी से शुरू हो रहा है, जो फरवरी अंत तक चलेगा। प्रदेश में 74 लाख 95 हजार राशन कार्ड धारक हैं, इनमें से अत्यंत गरीब की सूची में शामिल 67 लाख 92 हजार राशन कार्ड धारकों को फ्री में राशन मिलना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच साल के लिए की गई यह घोषणा पूरे देश में लागू हो रही है।
सन् 2018 में भी कांग्रेस की सरकार आते ही राशन कार्ड बदल दिए गए थे। तब उनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की तस्वीर हटाकर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर लगाई गई। अब फिर भाजपा सरकार लौट गई है। अब नये कार्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की तस्वीर दिख सकती है।
राशन कार्ड की छपाई ठीक-ठाक और टिकाऊ कागज में होती है। उसे पांच साल में सरकार की तरह बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। पर जब सरकार बदलें तो उन्हें यह भी मानकर चलना चाहिए कि राशन कार्ड भी बदलेगा। पुराने कार्ड बेकार हो जाएंगे, और मतदाताओं को एक बार फिर लाइन पर खड़ा होना पड़ेगा। इस बात पर विचार मत करें कि इससे हमारे-आपके टैक्स के कितनी रकम बर्बाद हो जाती है।
लुप्त हो रही मछली की तलाश...
इंग्लैंड के डॉ. मार्क एवेरार्ड का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे एक वैज्ञानिक, लेखक, पर्यावरण प्रेमी और संगीतकार हैं। दुनियाभर में लुप्तप्राय हो रही मछलियों की तलाश और उनके संरक्षण की कोशिश भी उनका एक अहम मिशन है। इन दिनों वे कोरबा जिले के प्रवास पर हैं। हसदेव बांध के डुबान क्षेत्र में मछुआरों से बात कर वे दुर्लभ महाशीर मछली की खोज कर रहे हैं। यह मछली विलुप्त होने के कगार पर हैं। उन्हें मालूम हुआ कि बांगो बांध के डुबान क्षेत्र में यह पाई जा रही है तो यहां पहुंच गए। इस मछली का वजन 50 किलो तक होता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर ने इसे हाल ही में मछली की लुप्तप्राय प्रजाति का दर्जा दिया है। इसकी सात उप-प्रजातियां भी हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड में भी मिलती हैं। छत्तीसगढ़ में सिर्फ हसदेव के डुबान वाले क्षेत्र में इसके होने का पता चला है। इसका अर्थ यह है कि हसदेव अरण्य में दुर्लभ पेड़ पौधे, पक्षी, वन्य प्राणी, जड़ी बूटी तो हैं ही, यहां के विशाल बांध में अनेक दुर्लभ जीव-जंतु भी पाये जाते हैं। जिस हसदेव के लुप्त हो जाने की आशंका में लोग डूबे हैं, उसमें एक विलुप्त प्रजाति के मछली की तलाश हो रही है।
लोकसभा चुनाव में तीसरे दल...
इस्तीफा देने के बाद आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी किस दल में शामिल होंगे, यह अभी साफ नहीं है लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में इसके निकट भविष्य में विस्तार की संभावना क्षीण है। छत्तीसगढ़ में इस विधानसभा चुनाव में 0.93 प्रतिशत वोट ही उसे मिल पाए जबकि उसने 57 उम्मीदवार खड़े किए थे। हुपेंडी बाहर आ गए लेकिन पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं में बेचैनी होगी, क्योंकि उन्होंने करीब दो साल पहले तैयारी शुरू कर दी थी। आप को राजस्थान और मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ से भी कम, 0.38 और 0.54 प्रतिशत वोट मिले। राजस्थान में उसने 88 और मध्यप्रदेश में 70 उम्मीदवार खड़े किए थे। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास आई लेकिन बहुजन समाज पार्टी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जैसे दलों के लिए भी नतीजे निराशाजनक ही रहे। यदि इनमें कोई भी दल बेहतर प्रदर्शन कर पाता तो उसकी लोकसभा चुनाव में मौजूदगी दिखाई देती। आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी उतरें तो वे त्रिकोणीय स्थिति पैदा नहीं कर पाएंगे। विधानसभा चुनाव से यह स्पष्ट हो गया है कि लोकसभा 2024 की सभी 11 सीटों पर मुकाबला केवल कांग्रेस और भाजपा के बीच होना है।
वनवासी राम
छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल है। पिछली सरकार ने इस बात को खूब प्रचारित किया था और माता कौशल्या के मंदिर से लेकर राम वन गमन परिपथ को संवारने का काम किया हालांकि इसका वैसा राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाया जैसी उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई और बीजेपी की वापसी हो गई। अब जब अयोध्या में राम लला विराजने जा रहे हैं। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में भी उत्सव का माहौल है लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार राम के मुद्दे को लेकर काफी सावधान है क्योंकि राज्य में राम को लेकर ज्यादातर काम कांग्रेस के कार्यकाल में हुए हैं, ऐसे में बीजेपी की छोटी सी चूक से लोकसभा चुनाव में क्रेडिट कांग्रेस को मिल सकता है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी कोर हिंदुत्व और राम के मुद्दे पर भी खुलकर नहीं खेल पा रही है। बीजेपी के रणनीतिकार अब राम को वनवासी राम के रुप में प्रचारित करने की कोशिश में हैं ताकि इससे हिंदुओ और आदिवासी दोनों को साधा जा सके।
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जेल का सुखद संयोग
छत्तीसगढ़ में साल 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जेल जाना पड़ा था। इसी तरह साल 2023 के विधानसभा चुनाव के चंद महीने पहले बीजेपी के महामंत्री और मौजूदा उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा भी जेल गए थे। विजय शर्मा के पास गृह और जेल मंत्रालय भी है ऐसे में जब उन्होंने मंत्री के रूप में जेल का दौरा किया तो उनकी दोनों तस्वीर खूब वायरल हो रही हैं। कहा जा रहा है कि समय का चक्र बदलता है। उनको जेल दाखिल करने वाले अधिकारी अब उनकी खातिरदारी कर रहे हैं। दोनों नेताओं के लिए यह किसी सुखद संयोग से कम नहीं है कि जेल जाने के बाद उन्हें इतना बड़ा ओहदा मिला वरना जेल जाना तो बदनामी का ही कारण बनता है।
दांतो तले उंगली दबा नहीं काट रहे हैं लोग
बीते दो दिन में हुई अफसरों के पोस्टिंग की लॉबी में काफी चर्चा है। पढ़ाई लिखाई और खेती किसानी वाले विभागों में हाल में हुई नियुक्तियां देख सुन लोग दांतों तले उंगली दबा नहीं काट रहे हैं। पहले बात अध्यापन वाले विभाग की करें। दो अधिकारियों की ऐसी पोस्टिंग हुई कि वे डीईओ भी होंगे और मंत्रालय में भी काम देखेंगे। जिले का काम करना होगा तो राजनांदगांव, धमतरी जाएंगे नहीं तो मंत्रालय में। या फिर जिले से फाइलें राजधानी मंगवा लेंगे। ऐसा नहीं कि ये पोस्टिंग को किसी सजा के तहत नहीं,बल्कि इनकी मांग या इच्छा पर ही हुई ।
अब बात करें किसानों से जुड़े बोर्ड में हुई एमडी नियुक्ति की । भाजपा महामंत्री के भाई को, आईएएस कैडर के पोस्ट पर नियुक्त किया। ये नए साहब पूर्व में काफी विवादों में भी रहे हैं। कुछ जांच का भी सामना कर चुके हैं। एक के बाद छह प्रमोशन लेकर आखिर आईएएस के समकक्ष पद पर बैठने में सफल रहे। अब देखना है कि सरकार विधानसभा में क्या सफाई देती है। वैसे राजनीति में कहा जाता है कि सरकार के चेहरे बदलते हैं, कामकाज का तरीका वही रहता है। अफसरों की नियुक्ति को लेकर पिछली सरकार को कोसने वाले अब उन्हीं पद चिन्हों पर चल पड़े हैं।
अब तबादले रूकवाने शहर बंद नहीं
चार दशक पहले रायगढ़ शहर जिला पूरा बंद रखा गया था। किसी वारदात के विरोध में नहीं। बल्कि तत्समय के कलेक्टर श्री हर्षवर्धन का तबादला रद्द करवाने को लेकर जनता ने अपनी ताकत दिखाई थी। उसके बाद से तो ऐसी घटनाएं न हुई, न सुनी। अब तो तबादलों पर दफ्तर में मिठाई बांटी जाती हैं और आतिशबाजी होती है । पिछले दिनों बीजापुर के कलेक्टर राजेश कटारा के तबादले पर जमकर आतिशबाजी हुई। कल कवर्धा में सीएमएचओ सुजॉय मुखर्जी को भी बम, पटाखों के साथ विदाई दी गई । इंडियन मिलिट्री मेडिकल कोर के पूर्व अधिकारी रहे डॉ मुखर्जी के फ़ौजी अनुशासन से परेशान मातहत अपने पुराने मनमानी के ढर्रे पर चलना चाहते थे। सो डॉ. साहब नहीं होने दे रहे थे । इलाके के नेताओं को भी नहीं भा रहे थे। सो हो गया तबादला और आतिशबाजी भी हुई ।
फिर बाहर आया महतारी वंदन फॉर्म
सरगुजा संभागीय मुख्यालय के नजदीक दरिमा स्थित एक च्वाइस सेंटर में राजस्व अधिकारियों ने छापा मारकर महतारी वंदन योजना के दर्जनों फर्जी फॉर्म जब्त किये। वहां रोज महिलाओं की लाइन लग रही थी जो इस योजना से साल में 12 हजार रुपये का लाभ लेना चाहती हैं। च्वाइस सेंटर को सील कर दिया गया और सेंटर के संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है। इस योजना का फॉर्म चुनाव के दौरान भी भरवाया गया था। जगह-जगह भाजपा कार्यकर्ताओं ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था, प्रशासन ने कई विधानसभा क्षेत्र से सैकड़ों फार्म जब्त किए गए थे। चुनाव आयोग ने नोटिस जारी की, कुछ गिरफ्तारियां भी कर ली गई थी, जिसके चलते भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किया था। सरगुजा में ही लुंड्रा के भाजपा प्रत्याशी प्रबोध मिंज और उनकी पार्टी दो तीन नेताओं के खिलाफ भी चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज किया था। उन्हें दी गई नोटिस चेतावनी भरी थी, जिसमें कहा गया था कि जवाब संतोषजनक नहीं मिला तो उनके खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम ही नहीं आईपीसी के तहत भी कार्रवाई की जाएगी। अब मिंज विधायक बन चुके हैं, प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बन चुकी है। निर्वाचन विभाग की अधिकांश ऐसी नोटिस पर क्या कार्रवाई होती है, कभी पता नहीं चलता। इसमें भी क्या हुआ किसी को पता नहीं। पर यह दिलचस्प है कि भाजपा कार्यकर्ता जो फॉर्म चुनाव के समय महिलाओं से भरवा रहे थे, हू-ब-हू वैसा ही फॉर्म अभी च्वाइस सेंटर से जब्त किए गए हैं। अब ये पता नहीं कि ये फर्जी फॉर्म चुनाव के समय भरवाने से बच गए थे, या च्वाइस सेंटर संचालक ने नए छपवाये।
हसदेव क्षेत्र के धान खरीदी केंद्र
कोरबा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर हाथियों ने धान संग्रहण केंद्र में धावा बोला। वे वहां रखे करीब 25 बोरी धान हजम कर गए और सैकड़ों बोरियों का धान बिखरा कर लौटे। हाथी प्रभावित इलाकों में जो धान खरीदी केंद्र बनाए गए हैं, उनकी फेंसिंग की गई है लेकिन हाथी इन्हें तोडक़र भीतर घुस रहे हैं। कटघोरा व कोरबा वन मंडल में इन दिनों हाथियों का झुंड मंडरा रहा है और लगातार बस्तियों में पहुंच रहा है। पहले के वर्षों में भी भीतर के गांवों के धान खरीदी केंद्रों में हाथी आते रहे हैं, पर पिछले दो साल से आमद बढ़ गई है। इस सीजन में दूसरी बार हाथी पहुंचे हैं। यह वही इलाका है जहां लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट को आकार लेना है। इसी के कुछ आगे बढऩे पर वह क्षेत्र आ जाएगा, जहां हाल ही में नई कोयला खदानों के लिए पेड़ों की कटाई की गई है।
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हसरतों से बनी खबरें
छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के दौरान हुए कोयला घोटाले में कुछ आईएएस और डिप्टी कलेक्टर सहित कई खनिज अफसर भी जेल में पड़े हुए हैं, और कांग्रेस पार्टी के सूर्यकांत तिवारी सरीखे रंगदार भी सैकड़ों करोड़ की रंगदारी वसूलने के हिसाब-किताब सहित पकड़ाए हुए हैं। केन्द्र सरकार की जांच एजेंसी ईडी से मीडिया का वास्ता वन-वे ट्रैफिक रहता है, और जब ईडी को कुछ कहना रहता है तो वह अपने वकील या प्रेसनोट के मार्फत जानकारी देती है, लेकिन खुद होकर उससे कुछ निकालना मुमकिन नहीं होता। ऐसी नौबत में ही बड़े-बड़े अखबारों में ईडी से जुड़ी पूरी तरह से गलत खबरें भी छप जाती हैं।
अब ऐसे में जब जेल में बंद चर्चित और बड़े अफसरों के बीच मारपीट की खबर किसी एक जगह से शुरू हो, तो वेबसाइटों के गलाकाट मुकाबले के इस दौर में किसी को खबर की सच्चाई परखने की फुर्सत नहीं रहती, और चारों तरफ यह मजेदार, चटपटी, और सनसनीखेज खबर छप रही है कि महिला जेल में आईएएस रानू साहू, और डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया के बीच मारपीट हुई है। जिन पत्रकारों या वेबसाइटों को जिस नजरिए से इस बात को देखना हो, उस नजरिए से खबर बन जा रही है, और चारों तरफ फैल भी जा रही है। ऐसी कोई घटना हुई है या नहीं, यह बताने के लिए न तो जेल के लोग मुंह खोल रहे, और न ही ईडी के अफसर। यह बात किसी नीयत से खबर फैलाने वालों के लिए बिल्कुल सही रहती है, और बिना किसी खंडन के लोग अपनी हसरत को खबर बताकर फैला सकते हैं। लेकिन इस सबके बीच लोगों के लिए यह सबक भी निकल रहा है कि एक वक्त जिनकी पेशाब से चिराग जला करता था, आज उनकी जिंदगी ऐसी अंधेरी हो गई है कि दूर-दूर तक कोई चिराग नजर नहीं आ रहा। यह देखकर हर किसी को अपने दिमाग काबू में रखने चाहिए।
दिल्ली में अटकी डीजी की फाइल
सुनते हैं कि छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी के नियुक्ति की फाइल दिल्ली में अटक गई है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सहमति के बाद ही इस पर मुहर लग पाएगी। बताया जा रहा है कि फिलहाल केन्द्र सरकार का फोकस केवल राम मंदिर है, लिहाजा दूसरे कामकाज पेंडिंग में है। संभावना जताई जा रही है कि 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही राज्य के नए डीजीपी के बारे में फैसला हो पाएगा। आईपीएस की एक लॉबी नियुक्ति में देरी से राहत महसूस कर रही है, डीजीपी पद के एक प्रमुख दावेदार इस महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं। देरी से उनकी दावेदारी स्वत:: खत्म हो जाएगी। हालांकि डीजीपी के लिए दिल्ली की खूब दौड़ लगाई गई है। कोशिश है कि इस महीने तक नियुक्ति पर मुहर लग जाए। अब देखना यह है कि किसकी किस्मत चमकती है।
लाल बत्ती के दावेदार सक्रिय
लालबत्ती पाने की कतार में खड़े बीजेपी के नेता भी खूब सक्रियता दिखा रहे हैं। नेताओं-मंत्रियों के चौखट देर रात तक गुलजार हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडलों में नियुक्ति की जाएगी। दावेदारों का कहना है कि संगठन के प्रमुख नेताओं ने कुर्सी बांटने की कवायद शुरू कर दी है। लिस्ट करीब-करीब बन गई है। इसकी सच्चाई के बारे में तो नहीं पता, लेकिन लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए भाई साहब के पास भी भीड़ जुट रही है। दावेदारों को लगता है कि भले लिस्ट लोकसभा के बाद आए, लेकिन नाम तो जुड़ जाना चाहिए।
इनसे उम्मीद थी चुनाव जिताने की...
स्थानीय निकायों और जनपद पंचायतों में कांग्रेस की सरकार एक के बाद एक ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर रही है। आरंग जनपद पंचायत में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र देखें तो यहां के 25 सदस्यों में से 24 ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाले। अर्थात जनपद अध्यक्ष को किसी ने वोट नहीं दिया, उनको सिर्फ अपना वोट मिला। यहां कांग्रेस के 21 सदस्य हैं। किसी ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष का बचाव नहीं किया। यह मानना मुश्किल है कि केवल भाजपा की तिकड़म से हुआ होगा। शायद तमाम सदस्य अपने अध्यक्ष से भारी असंतुष्ट और उनको खिसकाने के लिए मौके की तलाश में थे। कसमसाहट के बावजूद अनुशासन के चलते जब तक अपनी सरकार रही बर्दाश्त किया और सरकार बदलते ही मोर्चा खोल दिया। अभी तक जिन नगर पंचायत और जनपदों से कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष हटाए गए हैं उनमें से अनेक इलाके कांग्रेस के कद्दावर मंत्री या विधायक रहे लोगों के हैं। यह डॉ शिव डहरिया का क्षेत्र है। आरंग के अध्यक्ष तो युवक कांग्रेस के महासचिव भी हैं।
यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निकायों और जनपदों में कांग्रेस के जनप्रतिनिधि किस तरह काम कर रहे थे और उनकी लोकप्रियता का क्या हाल था। जिन स्थानों में कांग्रेस की सत्ता ढह रही है, वहां से पार्टी के खिलाफ वोट देने वाले सदस्यों, पार्षदों का बयान आ रहा है कि हमने सरकार के रहते इनकी शिकायत की थी लेकिन सुनी नहीं गई, उल्टे उनके ही हाथ में विधानसभा चुनाव में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पार्टी के नेता अब उनकी कुर्सी बचाने के सवाल पर असहाय दिख रहे हैं।
सरकार में ताकत का बंटवारा
छत्तीसगढ़ में पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने का निर्णय कांग्रेस की पिछली सरकार ने लिया था। यह उसके चुनाव घोषणा पत्र में शामिल भी था। तब कई जिलों में आदेश का पालन हुआ, फिर बाद में स्थगित कर दिया गया। वीआईपी ड्यूटी व क्राइम कंट्रोल के लिए बल की कमी का कारण बताया गया। अब उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा के ध्यान में यह बात लाई गई और उन्होंने कहा कि एक दिन तो घर परिवार के लिए समय देने का हक पुलिस जवानों का भी बनता है। उन्होंने रोस्टर के अनुसार इसे लागू करने का निर्देश दे दिया। निर्देश के बाद डीजीपी अशोक जुनेजा ने इस आशय का पत्र जारी कर दिया। इधर कल जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने ऐसे किसी आदेश की जानकारी नहीं होने की बात कही। यानि डिप्टी सीएम ने कोई आदेश दिया और वह मुख्यमंत्री को मालूम नहीं है। इसी तरह करीब 10 दिन पहले उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने मुंगेली के एक कार्यक्रम में घोषणा की, कि राजीव गांधी न्याय योजना की चौथी किस्त का भुगतान किसानों को किया जाएगा, इस राशि पर उनका अधिकार है। साव की घोषणा पर कोई सरकारी आदेश, निर्देश, पत्र आदि जारी नहीं हुए हैं।
इन दोनों मामलों से यह तो समझ में आता है कि पिछली सरकारों की तरह अब यह जरूरी नहीं है कि छोटा-बड़ा हर फैसला मुख्यमंत्री से पूछकर लिया जाए। उप-मुख्यमंत्रियों को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं।
क्लास रूम में अमर...
भाजपा में जब किसी को अनायास टिकट मिल जाए या उसे मंत्री बना दिया जाए तो प्रतिक्रिया होती है कि वे साधारण से कार्यकर्ता हैं। पार्टी जो जिम्मेदारी देती वहन करते हैं। ठीक ऐसी ही प्रतिक्रिया तब भी होती है, जब टिकट न मिले या मंत्री नहीं बनाया जाए। यह भाजपा में ही मुमकिन है कि पांच बार के विधायक और 15 साल के मंत्री रहे अमर अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेता किसी क्लास जैसे कक्ष में कॉपी कलम लेकर बैठें। उन्हे दो अन्य विधायकों राजेश मूणत और अजय चंद्राकर के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए क्लस्टर प्रभारी बनाया गया है। उनकी क्लास दिल्ली में ली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संगठन से बीएल संतोष ने।
कांग्रेस में एक बार कोई विधायक बन गया तो जिंदगी भर उससे दरी नहीं बिछवाया जा सकता, पर भाजपा ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ है।
जेल में वीआईपी
जेल का मतलब हिन्दी में सुधारगृह बताया जाता है। सुधारगृह उनके लिए जो कोई अपराध किये हों। लोकतंत्र में कानून जिन्हें सजा देता है, उन्हें सुधारगृह भेजा जाता है। लेकिन जेलों में ऐसे आरोपी भी रहते हैं, जिन पर आरोप साबित नहीं हुआ रहता। खासकर राजनीतिक आरोप ऐसे भी आरोप होते हैं जो शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़े होते हैं। उपमुख्यमंत्री ने जेल का निरीक्षण किया और वहां भी गए, जहां उन्हें आरोपी बनाकर रखा गया था। तब यहां कांग्रेस की सरकार थी, लिहाजा उन्हें कोई वीआईपी सुविधा नहीं मिली होगी। पिछली सरकार में कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें ईडी ने गिरफ्तार किया है और वे अभी रिमांड पर चल रहे हैं। उन्हें जेल में विशेष बैरक में रखा गया है।
आम लोगों ने ऐसी अनेक चर्चा चलती है कि फलां अधिकारी बहुत कद्दावर है, उसे सारी वीआईपी सुविधाएं जेल में मिल रही हैं। पूरा कामकाज जेल से ही चल रहा है। ऐसी बातें अक्सर सुनने में आती हैं। बीते दिनों केंद्रीय जेल में बंद दो वीआईपी अफसरों के बीच विवाद की भी चर्चा है। अब उपमुख्यमंत्री ने निरीक्षण कर साफ कह दिया है कि किसी को वीआईपी सुविधा नहीं दी जाए और सामान्य क़ैदियों के भोजन का स्तर सुधारा जाए। जेल में बंद अफसर अब अपने कर्मों को कोस रहे होंगे, कि कहां फंस गए। कब निकलेंगे बाहर। (rajpathjanpath@gmail.com)