राजपथ - जनपथ
शुभ-अशुभ का चक्कर
खरमास शुरू हो गया, लेकिन निगम-मंडल के पदाधिकारियों की लिस्ट जारी नहीं हुई। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक खरमास में शुभ कार्य वर्जित है। ऐसे में दावेदारों को भरोसा था कि मंगलवार को खरमास शुरू होने से पहले सूची जारी की जाएगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। दुर्ग जिले के एक साहित्यकार ने तो राजभाषा आयोग में अध्यक्ष के कमरे की साज-सज्जा के लिए कह दिया था। साहित्यकार ने संस्कृति विभाग के लोगों को निर्देश दिए थे कि वे ही आयोग का अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। ऐसे में सारी तैयारियां पहले से करके रखें। सूची जारी होते ही पदभार ग्रहण करेंगे। अब कमरा तो तैयार हो गया है, लेकिन अध्यक्ष का ही अता-पता नहीं है। चर्चा यह भी है कि शुभ मुहूर्त में मकर संक्रांति के बाद ही सूची जारी हो सकती है। कुल मिलाकर शुभ-अशुभ के चक्कर में सूची अटकने का अंदेशा जताया जा रहा है।
थाना टूटा, विवाद बरकरार
ब्रिटिश कालीन कोतवाली थाने को तोडक़र नया रूप दिया गया है। निगम के इस फैसले की आलोचना भी हुई। वजह यह है कि कोतवाली थाने से आजादी की लड़ाई की यादें जुड़ी हुई थीं। मगर तमाम आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया। थाना तोडऩे से यातायात की समस्या हल नहीं हुई है, और वहां अब भी जाम लगा रहता है।
एक जनप्रतिनिधि ने पिछले दिनों निगम के एक अफसर को बुलाकर डपटा, और कहा कि आप लोगों के बिना सोचे विचारे थाना तोडऩे से समस्याएं पैदा हो गई हैं। अफसर ने धीरे से कहा कि थाना तोडक़र नया रूप देने का प्लान बड़े साब का था। साब ने ही ड्राइंग डिजाईन तैयार किया था, और साब ही ठेकेदार थे। ऐसे में हमारी सलाह का कोई औचित्य नहीं था।
इसीलिए खफा हैं युद्धवीर...
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र युद्धवीर सिंह खफा हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि भाजपा व्यापारियों की पार्टी बनकर रह गई है। युद्धवीर काफी समय से नाराज चल रहे हैं, उनके पार्टी छोडक़र कांग्रेस में जाने की अटकलें भी हैं। हालांकि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और संघ से जुड़ाव को देखकर लगता नहीं है कि वे भाजपा छोड़ देंगे।
युद्धवीर चंद्रपुर से दो बार विधायक रहे हैं। उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला, और जशपुर जिले की तीनों सीट जिताने में उनकी अहम भूमिका रही है। युद्धवीर को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री पद दिया जाएगा। मगर सिर्फ संसदीय सचिव का दायित्व सौंपा गया। जबकि रमन सरकार में कई पहली बार के विधायक मंत्री बने थे। दूसरी बार जीतकर आए, तो फिर उन्हें मंत्री बनाने के लिए लाबिंग हुई, लेकिन ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई। तीसरी बार वे खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरे, और अपनी पत्नी को टिकट देने की सिफारिश की। युद्धवीर की पत्नी संयोगिता चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन वे हार गईं।
युद्धवीर, रमन सिंह और सौदान सिंह से काफी खफा हैं। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि युद्धवीर के जनाधार को हमेशा कम कर आंका गया। लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि जनाधार ही होता तो उनकी पत्नी चुनाव क्यों हारती? उनकी नाराजगी तब और जाहिर हो गई, जब जांजगीर-चांपा जिलाध्यक्ष पद पर केके चंद्रा की नियुक्ति की गई। चंद्रा, युद्धवीर के प्रबल विरोधी माने जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि पहली बार जब युद्धवीर चंद्रपुर से चुनाव मैदान में थे, तो चंद्रा की वजह से उन्हें पार्टी में अंतर विरोध का सामना करना पड़ा था। और अब जब उन्हें ही जिले की कमान सौंपी गई, तो युद्धवीर सहन नहीं कर पा रहे हैं।
राम के नाम पर उठा विवाद
कथाओं में जिसे राम वनगमन मार्ग माना गया है छत्तीसगढ़ सरकार ने उनको पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए संवारने का निर्णय लिया है। इसकी शुरूआत चंद्रखुरी से होगी जिसे राम की मां कौशिल्या की जन्मस्थली माना जाता है। इसके लिये सुकमा और कोरिया से रथ यात्रा कल शुरू हुई। सुकमा में आदिवासी समाज के एक वर्ग ने इसका विरोध किया। दूसरी खबर जशपुर जिले के दुलदुला ब्लॉक से आई जहां रामकथा के नाम पर दो पक्षों के बीच मारपीट हो गई। दोनों घटनायें छुटपुट हैं और बातें सुलझ भी गईं, पर इस बहाने कांग्रेस भाजपा के बीच राम पर किसका दावा पुख्ता है इस पर बहस शुरू हो सकती है। लोकसभा चुनाव की बात अलग है पर प्रदेश की राजनीति के केन्द्र में अब तक राम तो रहे नहीं। क्या भविष्य में यही स्थिति बनी रहेगी?