राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कोरोना का चक्कर...
28-Mar-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कोरोना का चक्कर...

कोरोना का चक्कर...
कोरोना प्रकोप के चलते राजधानी रायपुर की कई कॉलोनियों में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया है। रईसों की कॉलोनी स्वर्णभूमि में कुछ अलग तरह की व्यवस्था है। यहां के सभी लोगों की गाडिय़ों में सेंसर लगा हुआ है और जैसे ही गाड़ी कॉलोनी के गेट पर पहुंचती है, गेट ऑटोमेटिक खुल जाता है। बाहर से आई दूसरी गाडिय़ां बिना इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकती हैं। कॉलोनीवासियों ने एक राय होकर अपने घरेलू नौकरों और काम वाली बाईयों को भी आने से मना कर दिया है। 

ऐसे में घरेलू कामकाज की आदी न होने के कारण महिलाओं को दिक्कत होना स्वाभाविक है। ऐसे में कुछ लोगों ने इसका तोड़ भी निकाल लिया। वे अपनी गाडिय़ों को लेकर बाहर जाते थे, और कामवाली बाईयों को अपने घर ले आते थे। कामकाज निपटने के बाद उसी तरह छोड़ आते थे। महिलाओं के बीच यह बात छिपती तो है नहीं, वहां किसी ने कामवाली बाईयों को घर ले जाते कैमरे से फोटो निकालकर कॉलोनी के रहवासियों के वॉट्सएप ग्रुप में किसी ने डाल दिया। फिर क्या था बवाल मच गया। इसके बाद कॉलोनी के पदाधिकारियों ने ऐसा करने वालों को चेतावनी देते हुए बाहरी व्यक्तियों के आने पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सख्त पहरा बिठा दिया। अब पार्टियों की शौकीन यहां की महिलाओं को मन मारकर चूल्हा-चौकी करना पड़ रहा है। कोरोना के चक्कर में सारी रईसी जाती रही।

 अफसर भी बुरे फंसे

 समाज में सरकारी अधिकारियों की धर्मपत्नी का बड़ा क्रेज है क्योंकि इसमें खूब ठाठ बाट जो हैं । सरकारी नौकर-चाकर, ड्राइवर, खानसामा सभी मेमसाहब के आगे पीछे रहते हैं। ये समझिए कि कार का दरवाजा खोलने से लेकर तमाम कामकाज के लिए लोग हुक्म के इंतजार में रहते हैं, लेकिन कोरोना ने सब ठाठ बाट छीन लिया। अब तो जान बचाने के लिए हर काम खुद करना पड़ रहा है। ऐसे में मेमसाहिबाओं की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर, ये स्थिति लंबी खींच गई तो पता नहीं उनका क्या होगा, लेकिन इसके दो फायदे तो साफ नजर आ रहे हैं। पहला यह कि मेमसाहिबाओं को जिम और हेल्थ सेंटर्स में पसीना नहीं बहाना पड़ेगा और इससे उनके पैसों की भी बचत होगी। दूसरा बड़ा फायदा यह दिख रहा है कि सरकार चाहे तो अफसरों के खर्चों में कटौती कर सकती है, क्योंकि मेमसाहिबाओं को अपना काम खुद करने की आदत पड़ जाएगी। ऐसे में उन्हें काम करने वालों की जरुरत कम ही पड़ेगी। जिससे बंगलों में काम करने वाले सरकारी कर्मियों का दूसरा उपयोग किया जा सकता है। खैर, ये तो बाद की बात है, फिलहाल संकट की घड़ी में कई अफसर पत्नियों के कामकाज में हाथ बंटा रहे हैं। अगर, ये पीरियड लंबा खिंचा तो भी, और सरकार ने कर्मियों को हटा लिया तो भी अफसरों की हालत पतली होने वाली है।

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