चुनाव के पहली और बाद !
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, मेयर एजाज ढेबर पर हमलावर थे। बृजमोहन ने बैजनाथ पारा में अपने पर जानलेवा हमले का भी आरोप लगाया था। उन्होंने इसको लेकर ढेबर परिवार को आड़े हाथों लिया था, और समर्थकों के साथ थाने का भी घेराव किया था। मगर चुनाव निपटने के बाद छठ के मौके पर महादेव घाट के एक कार्यक्रम में दोनों ने मंच साझा किया, और एक-दूसरे से आत्मीयता से बतियाते नजर आए।
एजाज ने बैजनाथ पारा की घटना का जिक्र छेड़ दिया, और कहा बताते हैं कि भईया, आपने तो मुझे रायपुर का दाऊद बना दिया था। इस पर बृजमोहन ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरे आरोप के बाद रायपुर में तो तुम्हारा कद भूपेश बघेल से बड़ा हो गया। दोनों काफी देर मंच पर रहे, और चुनाव को लेकर भी काफी बात हुई। इस दौरान लोगों की निगाह बृजमोहन, और ढेबर पर टिकी रही।
साठ या अस्सी?
विधानसभा चुनाव में रायपुर और बिलासपुर में कम वोटिंग की खूब चर्चा हो रही है। मगर भाजपा के रणनीतिकारों का दावा है कि रायपुर दक्षिण में 80 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई है। जबकि सरकारी आंकड़ा 59.99 फीसदी है।
पार्टी के रणनीतिकारों ने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में रायपुर दक्षिण में विधानसभा में 21 हजार लोगों की मौत हुई है, लेकिन उनके नाम अभी भी मतदाता सूची में दर्ज हैं। यही नहीं, 18 हजार लोग रायपुर दक्षिण छोडक़र जा चुके हैं। 10 हजार लोग दूसरे वार्डों में चले गए हैं। जबकि मतदाता सूची में 2 लाख 61 हजार लोगों के नाम दर्ज हैं। इनमें से 1 लाख 60 हजार लोगों ने वोट डाले हैं। ऐसे में वोटिंग का आंकड़ा 80 फीसदी के आसपास बैठता है। भाजपा के रणनीतिकार सारे दस्तावेज होने की बात कह रहे हैं।
मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस ने भी आरोप लगाए हैं, और इसकी शिकायत भी की थी। जानकारों का मानना है कि जिला प्रशासन ने मतदाता सूची तैयार करने में लापरवाही बरती है। जूनियर अफसर को मतदाता सूची का काम दिया गया था। इससे मतदाता सूची तैयार करने का काम सही ढंग से नहीं हो पाया।
बताते हैं कि सुकमा, रायगढ़, और कांकेर जिले में मतदाता सूची तैयार करने से लेकर पोलिंग पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया था जिसका नतीजा भी सामने आया। धुर नक्सल प्रभावित इलाके सुकमा के कोंटा विधानसभा में पोलिंग में 7 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है। जबकि कांकेर के अंतागढ़ विधानसभा में 9 फीसदी से अधिक पोलिंग हुई है।
रायपुर में पदस्थ रहे तीन आईएएस मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव के प्रबल दावेदार
करीब तीन दशक पहले रायपुर में पदस्थ रहे अविभाज्य राज्य के तीन आईएएस अफसर, इस समय मध्य प्रदेश के नए मुख्य सचिव की दौड़ में हैं। इनमें वीरा राणा, डॉ.राजेश राजौरा और अजय तिर्की शामिल हैं। वहां के वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को डबल इंजन की सरकार होने का फायदा मिला और छह-छह माह के दो एक्सटेंशन के बाद 30 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।
अब उन्हें एक्सटेंशन मिलने की उम्मीद नहीं है। अभी आचार संहिता के चलते चुनाव आयोग की मदद से मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, बल्कि एक्सटेंशन की हैट्रिक का रिकॉर्ड भी बना सकते हैं। हालांकि शिवराज सरकार ने प्रस्ताव केंद्र को भेजा है। अनुमति न मिलने की स्थिति में सबसे प्रबल दावेदार, मप्र माशिमं अध्यक्ष आईएएस वीरा राणा को बताया जा रहा है। वीरा, राज्य गठन से पहले वर्ष 1997-98 के दौरान, सरजियस मिंज आयुक्त के साथ रायपुर संभाग उपायुक्त और उनके पति आईपीएस संजय राणा, रायपुर एसपी रह
चुके हैं।
दूसरे दावेदार डॉ.राजौरा, 1995-96 के दौरान डीआरडीओ में सीईओ रहे हैं। इसी तरह से अजय तिर्की को तो विभाजित छत्तीसगढ़ में रायपुर को राजधानी गठन का श्रेय है। वे उस वक्त रायपुर के अंतिम कलेक्टर रहे हैं। और पूर्व एसीएस एमके.राउत जो काडा (राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण) के सीईओ के साथ मिलकर, मंत्रालय, राजभवन, पीएचक्यू जैसे भवन तैयार किए थे। तिर्की इस समय केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं। और वे 41 दिन बाद रिटायर होने वाले हैं।
निभाया सबने मित्र धर्म
विधानसभा चुनाव में एक सीट की सबसे ज्यादा चर्चा थी, वह है साजा। यहां से कद्दावर मंत्री और सात बार विधायक रहे रविंद्र चौबे मैदान में थे तो भाजपा ने इनसे मुकाबला करने एक मजदूर ईश्वर साहू को उतारा था।
बिरनपुर में सांप्रदायिक तनाव में ईश्वर साहू के बेटे की मौत हुई थी, सो भाजपा ने इसे मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर ताकत झोंकी थी तो कांग्रेस प्रत्याशी अपने दम पर लड़ रहे थे। यहां कांग्रेस से कोई खास स्टार प्रचारक नहीं था, जबकि भाजपा के अमित शाह से लेकर हेमंत बिस्वा सरमा सहित कई नेता आए। जितने सक्रिय राष्ट्रीय स्तर के नेता थे, उतने ही सक्रिय कार्यकर्ता भी थे, लेकिन भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता सुस्त दिखे।
पूर्व विधायक से लेकर जिन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा गया, वे भी मित्र धर्म निभाने लगे। पूर्व विधायक पर तो यहां तक आरोप लग रहा है कि वे कांग्रेस प्रत्याशी को रोज ब्रिफ्रिंग करते थे। समाज के वोटरों को साधने भाजपा ने खैरागढ़ के एक नेता को साजा प्रचार की जिम्मेदारी देकर भेजा, लेकिन वे खुद अपनी टिकट नहीं मिलने से नाराज थे। वे प्रचार में कहीं दिखे भी नहीं। उन्होंने भी अपना मित्र धर्म निभाया।
सरकारों का हाथ, भ्रष्टाचार के साथ
सरकारी अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच करने वाली एजेंसी एंटी करप्शन ब्यूरो को छत्तीसगढ़ सरकार ने सूचना का अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया है। दरअसल इस संबंध में मूल आदेश भाजपा के शासनकाल में 1 अगस्त 2013 को जारी किया गया था। छत्तीसगढ़ के एक आरटीआई कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका का आधार 16 दिसंबर 2015 को तत्कालीन विधायक देवजी भाई पटेल के सवाल पर विधानसभा में पेश किया गया जवाब था। इसमें बताया गया था कि 17 नवंबर 2015 तक 45 अधिकारियों के खिलाफ शिकायत लंबित है। इनमें ज्यादातर आईएएस अफसर हैं। आरटीआई कार्यकर्ता ने जब सामान्य प्रशासन विभाग से इन अफसरों के खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी तो उन्हें यह कहते हुए मना किया गया कि एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच आरटीआई के दायरे से बाहर है। इस संबंध में 1 अगस्त 2013 के आदेश का हवाला दिया गया। आरटीआई कार्यकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि भ्रष्टाचार की शिकायतों के संबंध में जानकारी देने से मना किया जाना सूचना के अधिकार अधिनियम की भावनाओं से मेल नहीं खाता। शासन की ओर से सुनवाई के दौरान जवाब आया था कि इन 45 अफसरों के खिलाफ कुल 73 शिकायत मिली थीं, जिनमें से 62 का निराकरण किया जा चुका है। हाई कोर्ट 11 प्रकरणों की जांच जल्दी कार्यालय को प्रतिवेदन सौंपने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने 1 अगस्त 2013 के आदेश की भी समीक्षा की, जिसे लेकर आरटीआई कार्यकर्ता ने याचिका लगाई थी। कोर्ट ने पाया कि कतिपय परिस्थितियों में सूचना देने से मना करने का अधिकार राज्य को है पर इस आदेश में खामियां हैं। ऐसी स्थिति में सरकार के पास विकल्प था कि वह 2013 के आदेश को वापस ले लेती जो भाजपा के कार्यकाल में निकाला गया था। आरटीआई कानून केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धियों में से एक है। पर राज्य की कांग्रेस सरकार ने को कमजोर करने वाले आदेश का समर्थन किया और संशोधित आदेश निकाल दिया। अक्टूबर में हाई कोर्ट ने सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया था। इसलिए यह आदेश 10 नवंबर को निकल चुका था, लेकिन अब बाहर आया है। भ्रष्ट अफसरों की जांच से संबंधित जानकारी ना तो आप भाजपा के शासन में हासिल कर सकते थे और न ही अब कर सकते हैं।
भाजपा को पता है, सिंहदेव जीतेंगे?
मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी नहीं तो कभी नहीं वाले, टी एस सिंहदेव के बयान पर कांग्रेस के दूसरे नेताओं के बयान तो आ ही रहे हैं मगर भाजपा नेताओं का बयान भी कम दिलचस्प नहीं है। भाजपा के प्रवक्ता ने इसकी प्रतिक्रिया में कहा है कि बाबा मुख्यमंत्री तो बनेंगे नहीं। हम चाहेंगे कि भाजपा की सरकार में भी नेता प्रतिपक्ष बनाकर हमारे साथ रहें। इसी सवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कहा कि उनकी गलत समय पर इच्छा जागृत हुई है। उन्हें विपक्ष में रहना होगा।
ऐसा लगता है कि भाजपा अंबिकापुर की सीट नहीं निकालने वाली है। यह उनके बड़े नेताओं को पता है तभी तो अपनी सरकार में वे सिंहदेव को कोई विपक्ष के नेता के रूप में देखने की इच्छा होने की बात कह रहे हैं। इसके बावजूद कि अंबिकापुर में भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। यदि उन्होंने राजधानी में बैठे बड़े नेताओं के बयान को गंभीरता से लिया तो मायूस हो सकते हैं।