सारंगढ़-बिलाईगढ़

जनसुनवाई या जन-मनवानी, एसडीएम के रवैये से मचा बवाल
10-Nov-2025 4:21 PM
जनसुनवाई या जन-मनवानी, एसडीएम के रवैये से मचा बवाल

ग्रामीण बोले—जब सब पहले ही तय है तो सुनवाई की नौटंकी क्यों?

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

सारंगढ़-बिलाईगढ़, 10 नवंबर। 17 नवंबर को मेसर्स ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग प्रा. लि. की प्रस्तावित जनसुनवाई से पहले ही विवाद खड़ा हो गया है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि एसडीएम वर्षा बंसल खुद प्रभावित गांवों के लोगों को बुलाकर समझाने और मनाने का काम कर रही हैं। इस कदम ने प्रशासनिक पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।

मेसर्स ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग प्रा. लि. कंपनी की जनसुनवाई 17 नवंबर को आयोजित की जानी है, जिसमें धौराभांठा,लालापुर,जोंगिपाली, कपिसदा (ब) और सरसरा के ग्रामीणों को बुलाया गया है। लेकिन जनसुनवाई से पहले ही कई ग्रामीणों को एसडीएम कार्यालय में बुलाकर समझाइश दी गई कि परियोजना विकास के लिए है, ज्यादा विरोध न करें। इससे ग्रामीणों में नाराजगी फैल गई।

ग्रामीणों की नाराजगी

ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि उन्हें बुलाकर कहा जा रहा है कि ज्यादा विरोध मत करो, सब विकास के लिए है। अगर सब पहले से तय है तो जनसुनवाई का नाटक क्यों किया जा रहा है? यह सुनवाई नहीं, प्रशासनिक मनवानी है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं हुई, तो वे बड़े स्तर पर विरोध करेंगे।

एसडीएम की चुप्पी पर उठे सवाल

जब मीडिया ने एसडीएम वर्षा बंसल से पूछा कि आप जनसुनवाई से पहले ग्रामीणों को क्यों समझा रही हैं? तो उन्होंने इस पर कुछ भी नहीं कहना कहकर अपने चेम्बर से उठकर चली गई। उनका यह जवाब अब चर्चा का विषय बन गया है। कई लोगों का कहना है कि यह चुप्पी पारदर्शिता नहीं, बल्कि जवाबदेही से बचने की कोशिश है।

मामले के तूल पकडऩे के बाद प्रशासनिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है। सूत्रों के अनुसार, कंपनी के दस्तावेज़ पहले ही एसडीएम कार्यालय में जमा किए जा चुके हैं और तैयारी पूरी हो चुकी है। हालांकि अभी तक जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

ग्रामीण प्रतिनिधियों की मांग

जनसुनवाई जनता की राय का मंच है, न कि मनवाने का माध्यम। अगर पहले से राय तय कर ली गई, तो लोकतंत्र की आत्मा पर आघात होगा। जनसुनवाई से पहले समझाने की कार्रवाई ने पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा दिया है। अब सबकी निगाहें 17 नवंबर पर टिकी हैं कि क्या उस दिन सचमुच जनता की आवाज़ गूंजेगी, या फिर प्रशासनिक जन-मनवानी का ही प्रदर्शन होगा?


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