राजपथ - जनपथ
वह सफर भी अनमोल था...
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक रायपुर-धमतरी नैरो गेज रेलवे मार्ग की एक अनमोल स्मृति को संजोए हुए है। कभी इस मार्ग की जीवनरेखा रही नैरो गेज ट्रेन अब इतिहास बन चुकी है। आज, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर से नवा रायपुर होते हुए अभनपुर के लिए अत्याधुनिक ट्रेन का उद्घाटन कर रहे हैं, यह दृश्य बीते दौर की याद दिलाता है।
रायपुर-धमतरी रेलवे का सफर 1900 में शुरू हुआ था और इसने क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नैरो गेज रेलवे, जिसे छोटी लाइन भी कहा जाता था, अपनी संकरी पटरियों और विशिष्ट ट्रेनों के लिए जानी जाती थी। अब यह ऐतिहासिक मार्ग स्मृतियों में सिमट रहा है, लेकिन इसकी गूंज छत्तीसगढ़ के रेल इतिहास में हमेशा बनी रहेगी।
एक समय था जब रायपुर-धमतरी नैरो गेज रेलवे क्षेत्र की परिवहन व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी थी। समय के साथ जब ब्रॉड गेज और आधुनिक रेलवे नेटवर्क का विस्तार हुआ, तो नैरो गेज ट्रेनों का संचालन धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। आज इस ऐतिहासिक रेल मार्ग का अस्तित्व भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन यह ट्रेन और इससे जुड़ी यादें उन सभी यात्रियों और रेल प्रेमियों के मन में हमेशा जीवित रहेंगी।
दरुआ लोगों की ख़ुशखबरी

एक अप्रैल आने से पहले 25 मार्च से शराब से जुड़े नए साल के बिजनेस प्लान पर चर्चाएं छिड़ जाती हैं, कि कितनी नई दुकानें खुलेंगी, कितनी बंद होंगी। कौन -कौन से नए अंग्रेजी ब्रांड मिलेंगे। कीमत कम होंगी या बढ़ेंगी। दुकान के पास चखना मिलेगा या नहीं आदि आदि। इन तमाम मामलों में छत्तीसगढ़ के पियक्कड़ों के लिए नया साल खुश किस्मत लेकर आ रहा है। अब तक की खबरों के अनुसार 67 नई दुकानें खुल रही हैं, पुरानी 647 में से एक भी बंद नहीं हो रही। 16 नए ब्रांड आ रहे । कीमत भी 20-100-300 रुपए तक कम हो रही है। चखने के नए अहाते खुल रहे हैं। किसी समय माता-बहनों के हित में राज्य में शराबबंदी की मांग हो रही थी। और अब इसे उन्हीं को फायदे का कारोबार बताने से नहीं चूक रहे।
ऐसा सरकारी लोगों का कहना है कि इससे महतारी वंदन योजना के खर्च की भरपाई हो रही है। इसलिए शराबी भी कहते है कि वे राज्य देश के विकास के अहं हिस्सेदार हैं। हमने आबकारी अफसरों से जाना तो कहा गया आबकारी राजस्व 11 हजार करोड़ का। महिला बाल विकास विभाग महतारी वंदन योजना में साल भर में खर्च 8450 करोड़ दिया है। बीते 13 महीनों में 70 लाख महिलाओं को 650 करोड़ हर माह दिए गए हैं।
और अब एक अप्रैल से वंदन पोर्टल फिर खुलने वाला है तो कुछ और हजार महिलाएं जुड़ेंगी। तो इनकम एक्सपेंडिचर बराबर हो जाएगा। सही है आंकलन- इतने बड़े खर्च की भरपाई बजट के बजाए शराबी कर रहे हैं।
नवा रायपुर पूरा आध्यात्मिक

नवा रायपुर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिशें चल रही है। यहां सेक्टर-37 में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर के संस्थान आर्ट ऑफ लिविंग को करीब 40 एकड़ जमीन आबंटित की गई है। यहां गुरुकुल, ट्रेनिंग, ध्यान आदि का केन्द्र स्थापित होगा। श्रीश्री रविशंकर ने पिछले दिनों इसका भूमिपूजन भी किया।
यही नहीं, इस्कॉन को भी यहां जमीन आबंटित करने की प्रक्रिया चल रही है। कई रिटायर्ड अफसर धार्मिक, और योग संस्थान से जुड़े हुए हैं। पूर्व हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी तो ऑर्ट ऑफ लिविंग की नेशनल एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य हैं।
रिटायर्ड पीसीसीएफ जेके उपाध्याय, रेरा के चेयरमैन संजय शुक्ला, और एनआरडीए के पूर्व चेयरमैन एसएस बजाज भी आध्यात्मिक गुरु रावतपुरा महाराज की संस्थान से जुड़ गए हैं। यही नहीं, अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर कमिश्नर रहे सत्यानंद मिश्रा आध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी की संस्थान से जुड़े हुए हैं। यह संस्थान का फरीदाबाद में देश के सबसे बड़े अस्पतालों में एक का संचालन कर रही है, और सत्यानंद मिश्रा अस्पताल का प्रबंधन देख रहे हैं। पोस्ट रिटायरमेंट में इससे बेहतर काम हो ही नहीं सकता है।
क्या बिक जाएंगे शक्कर कारखाने?
छत्तीसगढ़ के बालोद और सरगुजा जिलों में स्थित सहकारी शक्कर कारखानों—दंतेश्वरी मैया और मां महामाया—के निजीकरण की चर्चा ने किसानों और कर्मचारियों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है। इन कारखानों पर न केवल हजारों परिवारों की आजीविका निर्भर है। निजीकरण का प्रस्ताव जहां सरकार के लिए आर्थिक बोझ कम करने का रास्ता हो सकता है, वहीं इसके संभावित नुकसान किसानों, कर्मचारियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकते हैं।
बालोद जिले के दंतेश्वरी मैया सहकारी शक्कर कारखाने में 500 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि 1200 गन्ना किसान, उनके परिवार और गन्ना परिवहन से जुड़े मजदूर इसकी जीवनरेखा हैं। कर्मचारी संघ ने वहां आंदोलन शुरू कर दिया है। वे कह रहे हैं कि निजीकरण से उनकी रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी। बालोद के कारखाने को एक बार पहले भी नरसिंहपुर ( मध्यप्रदेश) के एक उद्योगपति को बेचने की कोशिश हो चुकी है, तब किसानों और कर्मचारियों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया।
इधर सरगुजा के केरता में मां महामाया सहकारी शक्कर कारखाने के निजीकरण के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया है। सिंहदेव का कहना है कि पीडीएस में बांटने के लिए करोड़ों रुपये का शक्कर सरकार उठा लेती है लेकिन कारखानों को भुगतान नहीं करती, इसलिए घाटे में हैं।
बताते चलें कि महाराष्ट्र के सांगली जिले का राजारामबापू सहकारी शक्कर कारखाना है। घाटे को वजह बताते हुए इसे निजी हाथों में दे दिया गया। अब गन्ने का भुगतान समय पर नहीं हो रहा और कारखाने का संचालन पूरी तरह लाभ-केंद्रित हो गया है। उत्पादन बढ़ाने के बजाय, निजी प्रबंधन ने लागत कटौती पर ध्यान दिया, जिससे कर्मचारियों और किसानों दोनों का नुकसान हो रहा है। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा हो सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के कुछ ही समय बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भोरमदेव में पहला सहकारी शक्कर कारखाना शुरू कराया था। अभी भोरमदेव व पंडरिया के कारखानों को बेचने की बात नहीं हो रही है। यह ध्यान देने की बात है कि शक्कर कारखानों की सहकारी समितियों में उस प्रकार की राजनीति नहीं घुसी है, जितनी सहकारी बैंकों में है। यदि संचालन में कोई कमी है तो उसमें सुधार लाया जा सकता है। नियम से तो बिना शेयरधारकों की इच्छा के खिलाफ बेचना भी मुमकिन नहीं है।


