राजनांदगांव
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
राजनांदगांव, 8 अक्टूबर। घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों मेें भी सरसों की मांग में तेजी आने के कारण किसानों के बीच सरसों फसल की लोकप्रियता बढ़ रही है। जिले में 1100 से 1200 हेक्टेयर में सरसों की खेती की जाती है, परन्तु इस वर्ष यह रकबा बढऩे की उम्मीद है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस वर्ष रबी 2025-26 में प्राईस सपोर्ट स्कीम के तहत नाफेड द्वारा राज्य शासन के साथ मिलकर इस साल सरसों फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जाएगी।
भारत सरकार ने भी गतवर्ष की तुलना में सरसों फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोतरी की है। भारत में सरसों का तेल लगभग सभी घरों में खाद्य तेल के रूप में काम आता है। सरसों की खेती की खास बात यह है कि सिंचित और असिंचित, दोनों ही तरह के खेतों में की जा सकती है। सोयाबीन और पाम के बाद सरसों विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य तौर पर सरसों के तेल के साथ-साथ सरसों के पत्तों का उपयोग सब्जी बनाने में होता है और सरसों की खली भी बनती है, जो कि दुधारू पशुओं को खिलाने के काम आती है।
उप संचालक कृषि टीकम सिंह ठाकुर ने बताया कि सरसों फसल में मात्र 300 एमएम पानी में सिंचाई हो जाता है, जो ग्रीष्मकालीन धान की तुलना में पांच गुना कम है। साथ ही इसका उत्पादन लागत भी 10 हजार रूपए से 11 हजार रूपए ही है। जिसमें किसानों को बाजार मूल्य 6000 से 6200 प्राप्त होता है, जिससे किसान 22 से 23 हजार रूपए शुद्ध लाभ प्रति एकड़ कमाई कर सकते है। इस वर्ष विशेष कार्ययोजना बनाकर सरसों फसल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरसों प्रमुख तिलहन फसल में से एक है। रबी की फसल होने के कारण मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक सरसों की बुवाई कर देनी चाहिए। सरसों की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। सरसों की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज पाने के लिए समतल एवं अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।


