राजनांदगांव

वार्ड 17 के उपचुनाव में भाजपा बिखरी रही
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 25 दिसंबर। राजनांदगांव नगर निगम के वार्ड नं. 17 के उपचुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस से मिली शिकस्त से भाजपा की जमीनी राजनीति में पकड़ को कमजोर कर दिया है। कांग्रेस से हार का सामना करने के बाद से सियासी हल्के में परिणाम को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गढ़ में दो साल बाद प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिहाज से अशुभ माना जा रहा है।
उपचुनाव में भाजपा की तुलना में कांग्रेस ने जोर लगाकर प्रचार करने के साथ वोटरों को साधने के लिए सटीक रणनीति बनाई। कांग्रेस से मुकाबले में भाजपा पूरे प्रचार के दौरान बिखरी हालत में रही। चुनावी परिणाम से पूर्व भाजपा ने वार्ड को अभेद्य गढ़ मानकर कांग्रेस के मंसूबो को धराशायी करने का दावा किया था। कांग्रेस के पक्ष में परिणाम सुनकर भाजपा नेता अब हार की वजहें बताकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे है।
वार्ड उपचुनाव होने का हवाला देकर भाजपा नेता परिणाम से पार्टी की सेहत पर खास असर नहीं पडऩे की बात कहकर अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रहे है। भाजपा में अंदरूनी स्तर पर पार्टी को प्रत्याशी सरिता सिन्हा को चुनावी रण पर अकेले छोडऩे की भूल पर भी अब एक गुट तंज कस रहा है। चुनावी रणनीति में तकनीकी खामियों ने पार्टी को हार के रास्ते में ढक़ेल दिया। मसलन बैठको में ही पार्टी नेताओं ने अब वक्त ज्यादा गंवाया। वार्ड का प्रभार संभालने वाले नेताओं ने व्यक्तिगत संपर्को को ज्यादा मायने नही दिया।
चुनाव के आखिरी दौर में प्रमुख नेताओं ने अपने मोबाईल भी बंद रखे। उपचुनाव में शुरूआत से ही भाजपा साधन और संसाधन का दुखड़ा रोते नजर आए दिग्गज नेताओं के ढ़ीले रूख के कारण कार्यकर्ताओं ने भी प्रचार से खुद को दूर कर लिया। शहर के दिग्गज नेताओं ने एक बार भी वार्ड का रूख नही किया। नेताओं के इस रवैय्ये के कारण सियासी संदेश में यह स्पष्ट होता गया कि कांग्रेस से मुकाबला करने का मजबूत इरादा सिर्फ चुनावी जुमला बन गया।
वार्ड नं. 17 के उपचुनाव में पार्टी को स्व. शोभा सोनी के असामायिक निधन पर सहानुभूति वोट नही मिलना भी भाजपा के राजनीतिक समीकरण को ध्वस्त कर दिया। राजनीतिक रूप से वार्ड में मिली पराजय भाजपा के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए मायूसी साबित हुई है। कार्यकर्ताओं के जोश को आला नेताओं ने ही अपनी खराब नीति से जीत के इरादे को चकनाचूर कर दिया।
उपचुनाव में भाजपा की सांगठनिक खामियों में यह भी सामने आया कि अंदरूनी कलह से आला नेताओं ने अघोषित रूप से किनारा कर लिया था। भाजपा में कई ऐसे कद्धावर नेता है जिन्होनेंं सिर्फ प्रचार के लिए पूछपरख नही होने के कारण वार्ड की ओर झांकना जरूरी नही समझा। बहरहाल उपचुनाव के परिणाम से भाजपा बिखराव में रहने के कारण कांग्रेस का मुकाबला करने में नाकाम रही। नतीजतन 40 साल भाजपा का गढ़ रहा यह वार्ड अब कांग्रेस खाते में चला गया।