महासमुन्द

दिव्यांग सेवा वास्तव में सच्ची सेवा-बीजू
02-Jan-2021 7:09 PM
दिव्यांग सेवा वास्तव में सच्ची सेवा-बीजू

हादसे में रौशनी खोने के बाद योग से लौटी, अब जीवन भर सेवा का संकल्प

रजिन्दर सिंह खनूजा

पिथौरा, 2 जनवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। नगर में एक शख्श ऐसा भी है जिसने स्वयं नेत्रहीनता में सात वर्ष बिताने के बाद अब अपना जीवन ही नेत्रहीनों के बीच काटने का संकल्प ले लिया। विगत छह वर्षों से यह सख्श अपनी छोटी कमाई से भी आधी कमाई नेत्रहीनों के कल्याण के लिए खर्च करते हंै। शेष से बमुश्किल अपने घर का गुजारा कर रहे हैं।

नगर के जगन्नाथ मंदिर के समीप निवासी बीजू पटनायक ने अब अपना पूरा जीवन नेत्रहीनों, दृष्टिबाधित बच्चों एवं दिव्यांगों के अलावा इनकी सेवा करने वालो को उत्साहित करने में बिता रहे है। कुल छह विषयों में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर चुके बीजू बताते है कि वे सन् 2003 में विकासखण्ड के ग्राम पिरदा में आयोजित जन समस्या निवारण शिविर में एक अर्जिनवीस के काम हेतु गए थे। वापसी में शाम को एक टैक्सी से लौटते हुए उनके सिर में हल्की चोट लगी थी। इस चोट के बाद उनकी नजर धीरे-धीरे कम होने लगीऔर कुछ ही दिनों में उनकी दृष्टि पूरी तरह जा चुकी थी। इसके लिए उन्होंने प्रदेश के बड़े से बड़े अस्पतालों में ऑपरेशन भी कराया परन्तु दृष्टि लौट नहीं सकी। उन्होंने लगातार सात वर्षों तक दृष्टिहीन का जीवन जीने के बाद सहज योग का रास्ता अपनाया, जिससे उनके आंखों की रोशनी धीरे-धीरे लौट आई है।

दृष्टिहीनता का जीवन जीतेजीते उन्हें इस बात का आभास हुआ कि कैसे दृष्टिहीन लोगों का जीवन कटता होगा। लिहाजा बीजू ने अपना जीवन दृष्टिहीन बच्चों को सिखाने एवं उनके उपचार की शपथ ले ली। उसके बाद उन्होंने दृष्टि सेवा सदन के नाम से अपनी इकलौते सदस्य वाली संस्था बनाई और स्कूलों सहित अन्य दृष्टिहीनों की सहायता प्रारंभ की। इसके लिए जिन बच्चों की उपचार से दृष्टि वापसी की संभावना होती है। उन्हें स्वयं के खर्च से डॉक्टरी चेकअप करवाकर शेष राशि की व्यवस्था हेतु मरीज के परिवार के किसी सदस्य का मोबाइल नंबर देकर दानदाताओं को उनकी सहायता की अपील करते हैं। लोगों का इन पर भरोसा था, लिहाजा मरीज के परिजनों के खाते में उपचार का खर्च आसानी से पहुंच जाता है।

अब दिव्यांग मित्र मंडल
बदलते समय ने अब अकेले नेत्रहीनों के लिए संघर्ष कर रहे बीजू को हेमंत खूंटे एवं डॉ. देवनारायण साहू के रूप में दो सहयोगी मिल चुके हैं। अपने सहयोगियों के साथ बीजू ने अब अपने सेवा कार्य का विस्तार कर दिव्यांग मित्र मंडल का गठन कर लिया है। अब वे नेत्रहीनों के अलावा दृष्टिबाधित एवं दिव्यांगों को आवश्यक मेडिकल सहित अन्य सहायता उपलब्ध कराते है। इसके अलावा उन्होंने अपने स्तर पर दिव्यांगों की देखरेख करने वालों को भी अपनी संस्था दिव्यांग मित्र मंडल के बेनर से सम्मानित भी करते है।

दृष्टिबाधित स्कूलों में बिताते हैं रात
बीजू बताते हैं कि वे जिले के करमापटपर दृष्टिबाधित स्कूल में सप्ताह में कम से कम एक दिन-रात बच्चों के बीच बिताते हैं। जिससे उन्हें हो रही परेशानियों के बारे उन्हें पता चले और उसका समाधान किया जा सके। इसके अलावा नेत्रदान सुरक्षा पखवाड़ा में भी स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों एवं ग्रामीणों को नेत्र सुरक्षा हेतु प्रेरित कर देखरेख के टिप्स बताते हंै। किसी स्कूल में कोई दिव्यांग या दृष्टिबाधित परेशानी में दिखने से ये संस्था स्वयं अपने खर्च से इनका पूरा उपचार करवा रही है।

मुम्बई की संस्था करती है सहयोग
बीजू पटनायक ने बताया कि दृष्टिहीन हेतु आवश्यक ब्रेनलिपि किट हेतु वे मुम्बई की एक संस्था को नाम भेजते हंै। इसके बाद उक्त संस्था के अधिकारी स्वयम ही घर पहुंचकर ब्रेनलिपि किट का वितरण करने पहुंचते हैं। बीजू ने बताया कि उन्होंने अंधत्व क्या होता है ये प्रत्यक्ष देखा है। सहज योग से उनकी आंखों की रोशनी लौटते ही वे अब अपना जीवन सेवा में समर्पित कर चुके है।उनके साथ जुड़े हेमंत खूंटे एवं डॉ देवनारायण साहू सहित नीलिमा पटनायक एवं डी साहू  के सहयोग से अब उनकी संस्था हौसले की पाठशाला के माध्यम से दुखी परेशान बच्चों एवं अभिभावकों का हौसला बढ़ाने के लिए हौसले की पाठशाला चला रहे है। प्रति सप्ताह लगने वाली इस पाठशाला के बाद प्रतिवर्ष 26 जनवरी को आयोजित शासकीय समारोह में दिव्यांगों की सेवा करने वालो का प्रमाणपत्र के साथ अर्थ सहायता कर सम्मान भी किया जाता है। बीजू सहित सभी सदस्यों का मानना है कि उक्त सेवा कार्य ने उनकी जिंदगी एवं सोच ही बदल दी है। उन्हें इस कार्य से मानसिक शांति मिलती है क्योंकि एक इंसान के लिए सबसे बड़ी सेवा यही है।
 


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