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सुप्रीम कोर्ट ने महिला आईपीएस को पति, सास-ससुर से माफ़ी मांगने क्यों कहा?
26-Jul-2025 3:32 PM
सुप्रीम कोर्ट ने महिला आईपीएस को पति, सास-ससुर से माफ़ी मांगने क्यों कहा?

-संदीप राय

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए एक महिला आईपीएस अधिकारी और उनके परिजनों को उनके पति और सास ससुर से माफ़ी मांगने का आदेश देते हुए तलाक़ की इजाज़त दे दी।

लाइव लॉ के अनुसार, सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक विवाद के दौरान पति और उनके परिजनों के ख़िलाफ़ कई सिविल और आपराधिक केस दायर किए गए थे इससे उन्हें 'शारीरिक और मानसिक प्रताडऩा' झेलनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सारे मामलों को रद्द या वापस लिए जाने का आदेश देते हुए तलाक़ की इजाज़त देने के अपने विशेषाधिकार का उल्लेख किया।

चीफ़ जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि वो संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि वैवाहिक विवाद पर विराम लगाया जा सके।

लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कहा कि पत्नी की ओर से आईपीसी के तहत 498ए, 307 और 376 की गंभीर धाराओं में केस दर्ज कराने के कारण पति को 109 दिनों तक और ससुर को 103 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। पत्नी ने अपने पति और उनके परिवार पर छह अलग अलग आपराधिक केस दर्ज कराए थे। एक एफ़आईआर में घरेलू हिंसा (498ए), हत्या की कोशिश (307), बलात्कार (376) के आरोप लगाए गए थे।

दो अन्य आपराधिक शिकायतों में क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट (406) के आरोप लगाए गए। इसके अलावा घरेलू हिंसा क़ानून के तहत तीन शिकायतें और दर्ज कराई गई थीं।

पत्नी ने फ़ेमिली कोर्ट में तलाक़ और गुजारा भत्ता का मामला भी दर्ज कराया था। पति ने भी तलाक़ का आवेदन किया था। दोनों ही प्रतिवादी एक दूसरे पर दायर किए गए मुकदमों को अपने न्यायिक क्षेत्र में ट्रांसफऱ कराने की अर्जी लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने तलाक़ का फ़ैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को माफ़ी मांगने के लिए तीन दिन का समय देते हुए माफ़ीनामे का एक मजमून भी दिया जिसमें फेरबदल न करने के निर्देश दिए। मजमून के अनुसार, पत्नी और उनके परिजन को पति और उनके परिजनों से अपने किसी भी शब्द, कृत्य या कहानी के लिए माफ़ी मांगनी होगी जिससे दूसरे पक्ष को दुख पहुंचा हो। मजमून के अनुसार, हम समझते हैं कि तमाम आरोपों और क़ानूनी लड़ाइयों ने कड़वाहट पैदा की और आप पर गहरा असर डाला है। अब जबकि क़ानूनी प्रक्रियाओं के अंत में विवाह समाप्त हो गया और दोनों पक्षों में लंबित क़ानूनी लड़ाइयां ख़त्म हो गई हैं, मुझे लगता है कि भावनात्मक ठेस को भरने में कुछ वक़्त लगेगा। मुझे विश्वास है कि यह माफ़ीनामा हम सभी के लिए कुछ शांति और सारे मामलों के अंत की ओर एक क़दम हो सकता है।।। मुझे उम्मीद है कि परिवार बिना शर्त इस माफ़ी को स्वीकार करेगा। इस मौके पर हम आभार जताना चाहते हैं कि उनके साथ अपने जीवन के अनुभवों से मैं और अधिक आध्यात्मिक व्यक्ति बन गई हूं। बौद्ध धर्म में विश्वास रखने के नाते मैं परिवार के हर सदस्य के लिए शांति, सुरक्षा और खुश़ी की कामना और प्रार्थना करती हूं।अदालत ने साथ ही महिला अधिकारी को आदेश दिया कि वो एक आईपीएस अफ़सर के रूप में या भविष्य में किसी अन्य पद पर रहते हुए, अपने पूर्व पति के ख़िलाफ़ किसी तरह की ताक़त का इस्तेमाल नहीं करेंगी और इस विवाह से पैदा हुई नाबालिग बच्ची से उन्हें मिलने की इजाज़त देंगी। इसके अलावा कोर्ट ने पत्नी को किसी भी फ़ोरम पर खुद या किसी थर्ड पार्टी की ओर से किसी भी तरह की कार्यवाही शुरू करने से भी प्रतिबंधित किया है जो पूर्व पति और उनके परिवार के लिए परेशानी का सबब बन जाए। हालांकि कोर्ट ने पूर्व पति और उनके परिवार को भी हिदायत दी कि माफ़ीनामे को वो पूर्व पत्नी के हितों के ख़िलाफ़ किसी अदालत, प्रशासनिक या नियामक या अर्द्ध न्यायिक निकाय या ट्राइब्यूनल के सामने पेश नहीं कर सकते, वरना इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। कोर्ट का यह फ़ैसला क़ानून के जानकारों के बीच चर्चा का विषय है और कुछ क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस फ़ैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। कुछ महीने पहले दिसंबर 2024 सुप्रीम कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद में कहा था कि आईपीसी की धारा 498ए (घरेलू हिंसा) का दुरुपयोग हो रहा है। हालांकि ये फ़ैसला देते हुए उस समय जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ए कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा था कि 'इसका मतलब ये नहीं है कि 498ए के तहत महिलाओं को क्रूरता के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने का जो अधिकार है, उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए या चुप रहना चाहिए। दिसंबर 2024 में ही बेंगलुरू के एक व्यक्ति अतुल सुभाष ने पत्नी पर उत्पीडऩ का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी।

 

अतुल सुभाष ने 24 पन्ने का सुसाइड नोट लिखा था और लंबा वीडियो बनाकर पत्नी की ओर से उत्पीडऩ किए जाने का आरोप लगाया था। इसके बाद ये बहस छिड़ी कि 498ए का दुरुपयोग बढ़ा है। हालांकि उस समय भी कई क़ानूनी विशेषज्ञों ने तत्काल राय बनाने को लेकर हिदायत दी थी। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वीना गौड़ा कहती हैं, दो चार मामलों में सेक्शन 498ए के कथित दुरुपयोग की जो बात कही जाती है उसका कोई आधार नहीं है। मसलन ऐसे कितने मामले अदालतों में आते हैं। और जहां तक दुरुपयोग की बात है तो क़ानून की कौन सी धारा का दुरुपयोग नहीं हो होता है, इसका मतलब ये नहीं कि उस क़ानून की प्रासंगिकता ख़त्म हो गई है? वो कहती हैं, अगर आप राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े देखें तो इस सेक्शन के दुरुपयोग की बजाय इसके प्रभावी इस्तेमाल में कमी अधिक दिखती है। नेशनल फ़ेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि बड़े पैमाने पर महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।

(आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है। अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं। आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए।) बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित (bbc.com/hindi)


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