कोण्डागांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव, 23 मई। कोंडागांव के बीआरसी भवन में बहुभाषा शिक्षा कार्यक्रम का दूसरा चरण शुरू हुआ।जिसमे पूरे जिले से प्रतिभागी शामिल हुए यह कार्यक्रम न सिर्फ एक शैक्षिक पहल है, बल्कि छत्तीसगढ़ की मातृभाषाओं को सम्मान देने और शिक्षा को बच्चों के दिल तक पहुँचाने का मिशन बन चुका है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद (स्ष्टश्वक्रञ्ज) के बहुभाषा शिक्षा संचालक डॉ. बी. रघु सहित परिषद के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को विशेष बना दिया।
प्रशिक्षण के पहले सत्र की शुरुआत उत्साहपूर्ण माहौल में हुई। मास्टर ट्रेनर श्रवण मानिकपुरी, पुरुषोत्तम पोयाम, बृजलाल यादव और हेमदेव सोम ने प्रशिक्षणार्थियों को बहुभाषा शिक्षा की मूल अवधारणा, इसके उद्देश्य और क्षेत्रीय भाषाओं के शैक्षणिक महत्व से अवगत कराया। इन प्रशिक्षकों ने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि किस तरह बच्चा जब अपनी मातृभाषा में पढ़ता है तो वह विषय को बेहतर तरीके से समझता है। उन्होंने यह भी बताया कि मातृभाषा को अपनाने से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और उनकी अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित होती है।
गंभीर विषयों पर सरल संवाद
प्रथम सत्र के दौरान ही राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद के वरिष्ठ सदस्य संजय गुहे, के.के. शुक्ला और ज्ञान प्रकाश तिवारी भी प्रशिक्षण स्थल पर पहुँचे। उनका आगमन प्रशिक्षण में गहराई और गंभीरता लेकर आया। के.के. शुक्ला और ज्ञान प्रकाश तिवारी ने ‘बहुभाषा क्यों आवश्यक है? ’ विषय पर विस्तृत प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि बहुभाषा शिक्षा न केवल एक नवाचार है, बल्कि एक शैक्षिक आवश्यकता है। एक ही भाषा में सीमित रहने से बच्चे का दायरा सिमट जाता है, जबकि मातृभाषा और संपर्क भाषाओं का समन्वय उसे विश्व का नागरिक बनाता है।
हल्बी गीत ने मोहा सबका मन, बस्तर की आत्मा मंच पर झलकी
इस प्रशिक्षण का सबसे खास और भावनात्मक क्षण तब आया जब बीआरसी की मेम सुश्री मालती ध्रुव ने हल्बी भाषा में एक लोकगीत प्रस्तुत किया। गीत की मधुर धुन और सजीव भावनाओं ने पूरा माहौल मंत्रमुग्ध कर दिया। यह प्रस्तुति महज़ मनोरंजन नहीं थी, बल्कि बस्तर की आत्मा का स्वरूप थी।
राज्य से आए अतिथियों ने इस गीत का भाव समझने की इच्छा जताई। इस पर मास्टर ट्रेनर श्रवण मानिकपुरी ने गीत का भावानुवाद अत्यंत सरल हिंदी में प्रस्तुत किया, जिससे न केवल गीत का अर्थ स्पष्ट हुआ, बल्कि उसके पीछे की संवेदना भी सामने आई। अतिथि यह जानकर प्रभावित हुए कि कैसे बस्तर की संस्कृति शिक्षा के साथ घुल-मिलकर नई चेतना ला सकती है।
द्वितीय पहर: शिक्षा और संवेदना का अद्वितीय संगम
दोपहर के सत्र में कार्यक्रम को एक नई दिशा मिली जब राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद के बहुभाषा शिक्षा के संचालन डॉ. बी. रघु, टिकेश्वर वर्मा और जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान प्रशिक्षण स्थल पर पहुँचे।
इस सत्र में केवल भाषाई ज्ञान ही नहीं, बल्कि संवाद की गहराई और बच्चों की समझ की दिशा पर भी बात हुई।
डॉ. रघु ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, मेरी मातृभाषा तेलुगु है, मैं छत्तीसगढ़ी समझता हूँ, लेकिन मेरी संपर्क भाषा हिंदी है। यह बात बताती है कि कोई एक भाषा सब कुछ नहीं होती, और हमें बच्चों की मातृभाषा को सीखने की पहली सीढ़ी बनाना चाहिए।
उन्होंने शिक्षा में भावपक्ष की भूमिका को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि केवल पाठ्यक्रम की समझ ही काफी नहीं, बच्चे की भावनाओं को समझना और उन्हें महत्व देना ही सच्ची शिक्षा है।
प्रश्नोत्तर सत्र: संवाद की नई ऊँचाइयाँ
सत्र के अंत में एक संवादात्मक माहौल बनाते हुए डॉ. रघु ने कहा, अगर कोई भी संशय या प्रश्न हो, तो नि:संकोच पूछें। इस पर मास्टर ट्रेनर पुरुषोत्तम पोयाम ने एक जिज्ञासु प्रश्न रखा, जिसे डॉ. रघु ने अत्यंत सरल, स्पष्ट और शालीन ढंग से समझाकर संतुष्ट किया। यह दर्शाता है कि संवाद केवल भाषण नहीं, एक दिशा है—जहाँ हर विचार को महत्व मिलता है।
शिक्षा में भावपक्ष
जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान ने ‘भावपक्ष’के महत्व को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ा। उन्होंने कहा कि आज जब मल्टीनेशनल कंपनियाँ भावनात्मक बुद्धिमत्ता को प्राथमिकता दे रही हैं, तब स्कूलों में भी संवाद कौशल और भावनात्मक जुड़ाव को महत्व देना जरूरी है।
उन्होंने कहा, जब शिक्षक हल्बी में बच्चों से बात करता है, तो वह केवल भाषा नहीं बोल रहा होता, वह बच्चे के मन से संवाद कर रहा होता है। यह बात स्पष्ट रूप से बताती है कि मातृभाषा में शिक्षा देना केवल सुविधा नहीं, एक रणनीति है—जिसका उद्देश्य है बच्चों को जड़ों से जोडऩा और शिक्षा को दिल से जोडऩा।
इस आयोजन को सुचारु रूप से संचालित करने में बहुभाषा शिक्षा कोंडागाँव जिला के नोडल श्री श्रीनिवास नायडू, बी आर सी मालती ध्रुव ,बीआरपी नरेश ठाकुर और अशोक साहू की भूमिका भी कम नहीं थी। उनका संगठन कौशल और प्रशिक्षणार्थियों के प्रति प्रतिबद्धता इस कार्यक्रम की सफलता की रीढ़ बना।
कोंडागाँव में शुरू हुये बहुभाषा शिक्षा का यह दूसरा चरण बच्चों की मातृभाषा को सम्मान देती है, शिक्षकों को संवाद के नए आयाम सिखाती है, और शिक्षा को भावनात्मक व बौद्धिक दोनों स्तरों पर समृद्ध करती है।
इस प्रशिक्षण के माध्यम से यह साफ हो गया कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी में केवल जंगल और खनिज नहीं, भाषा और संस्कृति की अमूल्य संपदा भी है—जिसे बहुभाषा शिक्षा जैसे कार्यक्रम सम्मानपूर्वक प्रस्तुत कर रहे हैं।