संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बोतलबंद पानी खर्चीला भी, और सेहत के लिए खतरा भी
सुनील कुमार ने लिखा है
12-Dec-2025 4:12 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बोतलबंद पानी खर्चीला भी, और सेहत के लिए खतरा भी

एक-एक करके दुनिया की बहुत सी वैज्ञानिक संस्थाओं ने यह पाया है कि प्लास्टिक की बोतलों में बंद पानी के साथ-साथ माइक्रो और नैनो प्लास्टिक के कण भी पेट में जाते हैं, और वे धीरे-धीरे बदन के हर हिस्से में पहुंचने लगते हैं, खून की नलियों में पहुंचकर वे दिल और दिमाग तक भी चले जाते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि बाजार में पानी भरी बोतलें, जो कि सिंगल यूज प्लास्टिक रहती हैं, वे इंसानी शरीर को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साईंस ऑफ टेक्नॉलॉजी के शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि ऐसी प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों से शरीर में जाने वाले दूसरे पदार्थ बदन की जैविक प्रणाली को खराब कर सकते हैं। अभी प्रकाशित एक शोध के नतीजों से पता लगा है कि वे इंसानों की आंतों, खून, और कोशिकाओं को सीधे नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे आंतों में शरीर के लिए फायदेमंद जीवाणुओं को प्रभावित कर सकते हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता, पाचन, मानसिक स्वास्थ्य, और बॉडी मेटाबोलिज्म पर बुरा असर डाल सकते हैं। इनका असर इंसानी बदन के रेड ब्लड सेल्स पर भी पड़ सकता है। शरीर में कई बैक्टीरिया फायदा पहुंचाते हैं, लेकिन ऐसे नैनो प्लास्टिक से इन बैक्टीरियाओं को भी नुकसान पहुंचता है।

हम वैज्ञानिक निष्कर्षों के अधिक खुलासे में गए बिना यह चर्चा आगे बढ़ाना चाहते हैं कि किस तरह आज बड़े अफसरों और नेताओं के घर-दफ्तर में, संपन्न कारोबारियों के यहां, और संपन्न सार्वजनिक समारोहों में दो सौ एमएल की प्लास्टिक बोतल में पानी रखना शान-शौकत और स्वागत का प्रतीक माना जाता है। मेहमानों का स्वागत बोतलबंद पानी से किया जाए, इसे आज संपन्न समाज में एक न्यूनतम सार्वजनिक शिष्टाचार मान लिया गया है। ऐसी बोतलों से हर घूंट पानी के साथ नैनो प्लास्टिक के कण बदन में जाने का खतरा रहता है। इसके साथ-साथ यह भी सोचने की जरूरत रहती है कि ऐसी हर खाली बोतल धरती की छाती पर अगले सैकड़ों-हजारों बरस के प्रदूषण का बोझ बन जाती हैं, जिसका किसी भी तरह से निपटारा नहीं हो सकता। फिर इस प्लास्टिक प्रदूषण से निकलने वाले कण मिट्टी और पानी में मिलकर आगे बढ़ते हैं, फल और सब्जियों के रास्ते, दूसरी उपज के रास्ते, और इंसान के खाने वाले दूसरे प्राणियों के माध्यम से इंसान के शरीर में पहुंच जाते हैं।

प्लास्टिक के बोतलबंद पानी को लेकर हम कई अलग-अलग हिसाब से लगातार विरोध करते आए हैं। नैनो प्लास्टिक शरीर में पहुंचने की बात तो अभी हाल के बरसों में सामने आई है, लेकिन हम तो जनता के पैसों से किए जाने वाले इस खर्च के खिलाफ आगाह करते आए हैं, और सत्ता पर काबिज बड़े लोगों से यह अपील भी करते आए हैं कि वे सरकारी या दूसरी सार्वजनिक बैठकों में अपने घर से लाई गई पानी की बोतल लेकर जाएं, ताकि आयोजकों को भी यह बात समझ में आए कि ऐसा दिखावा जरूरी नहीं है। जब किसी बैठक या कार्यक्रम में मौजूद सबसे वरिष्ठ या महत्वपूर्ण लोग अपनी बोतल लेकर चलेंगे, तो बाकी लोगों के लिए भी इस सादगी और किफायत को अपनाना एक किस्म से जरूरी हो जाएगा। भारत के एक राष्ट्रपति ने अपने नाम के साथ महामहिम लिखवाना बंद करवाया था, तो हर प्रदेश के राजभवन में बिखरे महामहिम शब्द खत्म हो गए। इसके बाद अब राजभवन शब्द को हटाकर उसे लोकभवन करने की नई शब्दावली भी आ गई।

बोतलबंद पानी के साथ एक दिक्कत यह भी है कि बाजार में दर्जनों किस्म के ब्रांड मौजूद हैं। इनमें से कुछ भरोसेमंद हो सकते हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर फर्जी किस्म के हैं। कई बार ऐसे ब्रांड पकड़ाए हैं कि वे नल का पानी भरकर बेचते हैं। इस धंधे में मुनाफा इतना अधिक है कि एक-एक घर से ऐसे ब्रांड बनकर निकल रहे हैं। लोगों की सोच इतनी सतही और खोखली रहती है कि वह हर बोतलबंद चीज को भरोसेमंद मान लेती है। ऐसे में आज बाजार में मौजूद पानी की नब्बे फीसदी बोतलें संदिग्ध विश्वसनीयता वाली हैं, और लोग उन्हें पूरे भरोसे के साथ खाली करते रहते हैं। आज जब देश में बड़ी-बड़ी दवा कंपनियों की दवा में जहर निकल रहा है, देश के तकरीबन हर बड़े ब्रांड का शहद मिलावटी निकल रहा है, रामदेव का पतंजलि घी मिलावटी और फर्जी साबित हो रहा है, ऐसे में गली-गली में भरी जाने वाली बोतलें कितनी भरोसेमंद हो सकती हैं? जिस बाजार में दवाओं की क्वालिटी का कोई ठिकाना नहीं रह गया, जहां का बना कफ सिरप पिलाने से दुनिया के कई देशों में बच्चे मर रहे हैं, वहां रेलवे स्टेशनों पर फेंकी गई पानी की खाली बोतलों में दुबारा पानी भरकर उन्हें धड़ल्ले से बेचा जा रहा है, जिसमें गंदगी की गारंटी सरीखी रहती है। लोग अपने घरों का साफ पानी, या फिल्टर किया हुआ पानी बाजार के पानी के मुकाबले अधिक भरोसेमंद मानें, और घर से ही बोतल में पानी लेकर निकलें। आपकी अधिक संपन्नता आपको बाजार से पानी की बोतल खरीदने की ताकत तो देती है, लेकिन उसके साथ-साथ आपके बदन को नुकसान पहुंचाने की गारंटी भी मिलती है, और हो सकता है कि वह पानी आपके घर के पानी के मुकाबले कई गुना अधिक गंदा हो। बोतलबंद पानी जब गाडिय़ों पर लदकर उनके कारखाने से दुकानों तक पहुंचाया जाता है, तो कई बार वह घंटों धूप में पड़े रहता है, और उससे प्लास्टिक से कई तरह के रसायन निकलकर पानी में मिलते हैं।

आज किसी भी निजी या सार्वजनिक कार्यक्रम में अगर बोतलबंद पानी न रखा जाए, तो उसे मेहमान अपना अपमान मानने लगे हैं। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। इसके लिए सरकार और कारोबार शायद ही कुछ करें, क्योंकि इन दोनों की कई तरह की कमाई इस निहायत ही गैरजरूरी धंधे से जुड़ी हुई है। इसके लिए जनता को ही पहल करनी होगी, और अपने घर या अपने दफ्तर के साफ पानी की बोतल लेकर चलना होगा। बाजार में कई तरह की बोतलें आती हैं जो पानी को ठंडा भी रखती हैं, और बरसों तक साथ देती हैं। लोग अपनी क्षमता से, अपने पसंद की बोतल खरीदकर चलें, और जागरूकता पैदा करने का साहस अगर हो, तो जिन बैठकों में जाते हैं, जिन समारोहों में जाते हैं, वहां अपने घर के पानी का फ्लास्क भी कंधे से किसी झोले में टांगकर ले जाएं। सादगी की मिसाल पेश करते हुए शुरू में कुछ अटपटा जरूर लगता है, लेकिन आपकी आने वाली पीढिय़ां इस जागरूकता के लिए आपकी शुक्रगुजार रहेंगी।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट