संपादकीय
ऑस्ट्रेलिया ने बीते कल से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह रोक लगा दी है कि वे 16 बरस से कम उम्र के किसी बच्चे का अकाऊंट नहीं खोलेंगे। आज मौजूद अकाऊंट भी जांच-परखकर, उम्र का प्रमाणपत्र देखकर बंद करने पड़ेंगे ताकि कम उम्र के कोई बच्चे इन प्लेटफॉर्म्स पर न रहें। यह खबर तो काफी पहले से आ रही थी, लेकिन आज इस पर लिखने की एक वजह यह भी है कि इस फैसले को लागू करते हुए ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री ने बड़ी सुंदर बात कही है कि अब बच्चे अपना बचपन जी सकेंगे, दोस्तों और परिवार के साथ बातचीत में अधिक वक्त गुजार सकेंगे, और अधिक शौक पूरे कर सकेंगे। एक विकसित और आधुनिक, संपन्न और विशाल देश होने के बाद ऑस्ट्रेलिया का यह फैसला दुनिया के कुछ और जिम्मेदार देशों के सामने मिसाल बन सकता है कि वे भी अपनी किशोरावस्था वाली पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को खतरों से बचाने के लिए, और बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया ने 9 दिसंबर से यह फैसला लागू करते हुए कहा है कि अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उम्र की जांच के मामले में लापरवाही करे तो उस पर पांच करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकता है। सरकार का कहना है कि यह कदम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बचाने के लिए, और उन्हें ऑनलाईन प्रताडऩा और शोषण से सुरक्षित रखने के लिए भी किया गया है। वहां हुए एक सर्वे में यह पता लगा था कि 70 फीसदी से अधिक ऑस्ट्रेलियाई मां-बाप ऐसे रोक के पक्ष में थे। यह एक अलग बात है कि वहां के बच्चे इसका तोड़ निकालने की तरकीबें ढूंढ रहे हैं।
हम भारत में न सिर्फ बच्चों, बल्कि अधिक उम्र के लोगों का हाल भी देखते हैं कि वे सोशल मीडिया पर एक गंभीर और खतरनाक नशे के आदी हो गए दिखते हैं। विवाहेत्तर प्रेमप्रसंगों का एक बड़ा जरिया सोशल मीडिया बन गया है, और उस पर पोस्ट करने के लिए लोग बावलों की तरह रील बनाते हुए जान की बाजी भी लगा देते हैं। परिवारों के भीतर लोगों का एक-दूसरे के साथ उठना-बैठना कम हो गया है क्योंकि तकरीबन तमाम लोग अपने-अपने मोबाइल फोन या लैपटॉप पर जुटे रहते हैं। जहां नौजवान दोस्तों के झुंड दिखते हैं, तो उनमें अधिकतर लोग अपने-अपने फोन पर डूबे रहते हैं। इस नशे ने लोगों की पढऩे की आदत खत्म कर दी है, उन्हें एक-दो मिनट के बाद कोई भी चीज भारी पडऩे लगती है क्योंकि उनकी सोच का दायरा एक रील की लंबाई तक सीमित हो गया है। नतीजा यह है कि एक या दो मिनट के भीतर जो सबसे सनसनीखेज बात हो सकती है, वही लोगों को बांध पाती है, कामयाब होती है, और उससे कुछ कमाई भी हो सकती है।
कुछ और देशों का सोशल मीडिया पर रोक-टोक का तजुर्बा देखें, तो चीन में 2019 से ही सोशल मीडिया पर 18 साल से कम बच्चों के लिए समय सीमा तय है। कोई भी नाबालिग एक दिन में सिर्फ 40 मिनट ही टिक-टॉक के चीनी संस्करण, डोयिन का इस्तेमाल कर सकते हैं, और वह भी रात 10 से सुबह 6 बजे तक ब्लॉक हो जाता है। 2021 से चीन ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों के गेमिंग पर भी एक घंटे की समय सीमा लगाई हुई है। इससे बच्चों में इंटरनेट की लत कम हुई है, और पढ़ाई का समय बढ़ा है। फ्रांस ने 2023 से यह कानून बना दिया कि 15 साल से कम उम्र के बच्चे अपने पालकों की अनुमति से ही सोशल मीडिया खाते खोल सकते हैं। अमरीका के अलग-अलग राज्य स्वायत्तता रखते हैं, और कुछ राज्यों में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया अकाऊंट पर रोक है। इससे बड़े 14-15 साल वाले बच्चे भी माता-पिता की सहमति से ही यह खोल सकते हैं। योरप के नार्वे में अभी यह उम्र सीमा 13 साल है, लेकिन वहां के 70 फीसदी नागरिक इसे बढ़ाकर 15 साल करना चाहते हैं। ब्राजील में मां-बाप की इजाजत से 13 साल के बाद बच्चे अकाऊंट खोल सकते हैं। अलग-अलग देशों में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और उनके मानसिक स्वास्थ्य में ऐसी रोक-टोक से फायदा देखने मिला है।
पिछली एक ही पीढ़ी से सोशल मीडिया चलन में आया है, और उसने नौजवान पीढ़ी की पूरी सोच को पटरी से उतार दिया है। वे अब किसी भी गंभीर बात में उलझना नहीं चाहते क्योंकि वह अधिक सनसनीखेज, मजेदार, और दिलचस्प नहीं रहती। यह नौबत दुनिया को एक ऐसी पीढ़ी दे रही है जो कि जिंदगी की हकीकत से नावाकिफ है, अपनी ही आत्ममुग्धता में डूबी हुई है, और अधिक से अधिक लोकप्रिय मनोरंजन या उत्तेजना ही जिसके लिए सब कुछ रह गई है। भारत में आज किसी भी उम्र के बच्चे बिना किसी जांच-पड़ताल के अपने सोशल मीडिया खाते खोल रहे हैं, और अपने नाचने-गाने से लेकर दूसरे कई किस्म के वीडियो-फोटो पोस्ट कर रहे हैं। कुछ बच्चे तो पांच-सात बरस के ऐसे भी हैं जिनके लिए उनके मां-बाप ने ही खाते खोल दिए हैं, और ये बच्चे खुद उसका पासवर्ड रखते हैं, इंस्टाग्राम पर अपने वीडियो डालते हैं। यह सिलसिला सरकार के स्तर पर एक गंभीरता के बिना बदलने वाला नहीं है। और जैसे-जैसे नौजवान पीढ़ी को सोशल मीडिया की लत लगती जाएगी, उससे सोशल मीडिया को छीनने से नेपाल सरीखी बगावत, या क्रांति भी हो सकती है। इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल लत या नशे की हद तक बढऩे नहीं देना चाहिए। आज भारत में अधिकतर किशोर-किशोरियों, और नौजवानों का हाल यह है कि अगर वे हर कुछ मिनट में अपने फोन चेक नहीं करते हैं, तो उनकी बेचैनी बढऩे लगती है, उन्हें अपना व्यक्तित्व अधूरा लगने लगता है, और वे हाल के बरसों में सामने आए एक नए शब्द, फोमो (फीयर ऑफ मिसिंग आऊट) के शिकार होने लगते हैं।
इसके पहले कि भारत के नौजवान पीढ़ी का व्यक्तित्व इस नशे में पूरी तरह डूब जाए, उसे इससे बचाने की जरूरत है। हमें उन देशों के प्रतिबंध बेहतर लगते हैं जो कि सोशल मीडिया अकाऊंट पर एक दिन में इस्तेमाल की समय सीमा तय करते हैं। हर दिन ऐसे हर प्लेटफॉर्म पर आधे-एक घंटे से अधिक का वक्त लोगों को नशे में डुबाकर रख देगा, और उसका कोई उत्पादक उपयोग नहीं रहेगा। भारत में समाज के बीच भी इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए, और जनता को अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी चाहिए कि वे अपने सांसद-विधायकों के सामने अपनी राय रखें, और सोशल मीडिया पर भी इस बारे में बोलें या लिखें, ताकि सरकार पर एक दबाव पड़ सके। ऐसा अगर नहीं किया जाएगा, तो हम एक बहुत ही तंगनजरिए वाली, गैरजिम्मेदार, और बीमार नौजवान पीढ़ी बनाने की तरफ तो बढ़ ही रहे हैं।


