संपादकीय
गुजरात के जामनगर में दिल के ऑपरेशन के एक बड़े अस्पताल में एक डॉक्टर ने बिना जरूरत मरीजों के दिल में स्टेंट लगाकर सरकारी इलाज योजनाओं से करोड़ों रूपए का घपला कर लिया। यह जामनगर का एक बड़ा नामी-गिरामी निजी अस्पताल है, और वहां पहुंचे मरीजों का ईसीजी सामान्य होने पर भी डॉक्टर ने उन्हें डराया कि स्टेंट नहीं लगेगा, तो दिल रूक जाएगा। इसके बाद फर्जी रिपोर्ट बनाकर उनकी समस्या को अधिक दिखाया है, और स्टेंट लगाकर सरकारी योजनाओं से दो-दो लाख रूपए निकाल लिए गए। इसके लिए डॉक्टर ने मरीज भेजने वाले दूसरे छोटे डॉक्टरों को 20 फीसदी कमीशन भी दिया। सरकारी अफसरों ने अभी तीन दिन पहले छापा मारा, तो उसमें 100 से ऐसे अधिक फर्जी केस निकले, और गैरजरूरी सर्जरी का रिकॉर्ड भी निकला। डॉक्टर पाश्र्व वोरा इस अस्पताल का डायरेक्टर भी था, और इन गैरजरूरी मामलों से अस्पताल में छह करोड़ रूपए से अधिक सरकारी योजनाओं से ऐंठ लिए। डॉ.वोरा ने वहां 8 सौ से अधिक हार्ट-ऑपरेशन भी किए, और इनमें से अधिकतर सरकारी योजनाओं से भुगतान वाले थे। इसके लिए अस्पताल गरीब परिवारों को निशाना बनाता था जिनके पास पीएमजेएवाई कार्ड हैं, और उन्हें फ्री चेकअप कैम्प के नाम पर बुलाकर फर्जी रिपोर्ट बनाई जाती थी, स्वस्थ मरीजों की धमनियों को भी 80 फीसदी ब्लाक बताया जाता था, और स्टेंट लगाकर सरकार से पैसे ले लिए जाते थे।
लोगों को याद होगा कि कई साल पहले छत्तीसगढ़ में भी राजधानी रायपुर के कई अस्पतालों में गांव-गांव से महिला मरीजों को लाकर उनके गर्भाशय निकालने का एक संगठित जुर्म किया था। जिनके अभी और बच्चे पैदा होने थे, जिनके बदन में कोई तकलीफ नहीं थी, उनके भी गर्भाशय इसलिए निकाल दिए गए थे कि उनके इलाज के कार्ड में रकम बाकी थी। ऐसे कई अस्पतालों की मान्यता भांडाफोड़ होने के बाद खत्म की गई थी, और कई सर्जनों का लाइसेंस भी कई महीनों के लिए निलंबित किया गया था। सरकार की योजनाएं जहां रहती हैं, वहां उनमें छेद ढूंढकर, वहां से सरकारी भुगतान निकाल लेने का काम अधिकतर विभागों में किया जाता है। हमने छत्तीसगढ़ में ही बीज निगम, हार्टिकल्चर मिशन जैसे कई सरकारी दफ्तरों में परले दर्जे का संगठित अपराध देखा है। एक पार्टी की सरकार चली जाती है, दूसरी पार्टी की सरकार आ जाती है, लेकिन इन विभागों में लुटेरे सप्लायर और ठेकेदार वही के वही कायम रह जाते हैं। वे सरकारी योजनाओं में घोटालों की संभावना इतनी अच्छी तरह देख चुके रहते हैं कि नए मंत्री, और अफसर भी उन्हीं को उन्हीं के नाम से, या कुछ अलग नाम से जारी रखने को फायदे का सौदा पाते हैं।
अभी महाराष्ट्र के नागपुर की एक खबर है कि वहां सरकारी शिक्षक भर्ती की एक योजना, शालार्थ आईडी में एक बड़ा घोटाला हुआ है, और अपात्र लोगों को फर्जी तरीके से शिक्षक नियुक्त करके उनके नाम पर करीब सौ करोड़ रूपए वेतन निकाल लिया गया है। इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं, और अब साढ़े 5 सौ शिक्षकों को गिरफ्तार करने की तैयारी चल रही है जिससे खलबली मची हुई है। सरकार की कोई भी ऐसी योजना नहीं दिखती जिसमें घोटाला न होता हो। पूरी तरह से संगठित भ्रष्टाचार, पूरी तैयारी से की गई जालसाजी के कई मामले सामने आते रहते हैं। किसानों को खेती या बागवानी के उपकरण देने के नाम पर नकली उपकरण टिका दिए जाते हैं, और अफसर पैसा खा जाते हैं। जब अफसर पैसा खाते हैं, तो जाहिर है कि पैसा नेताओं तक भी पहुंचता ही होगा। देश में शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो जहां पर सरकारी कामकाज में संगठित भ्रष्टाचार न होता हो।
अब ऐसी गड़बड़ी को पकडऩे का एक रास्ता कुछ योजनाओं में एआई की मदद से निकल रहा है। एआई धान परिवहन के बिलों को देखकर यह बता सकता है कि किन नंबर की गाडिय़ों पर धान परिवहन बताया गया है, जो कि दुपहिया हैं। या सरकार ने किसी एक टैक्सी का ऐसा भुगतान किया है जिसने एक दिन में दस हजार किलोमीटर सफर कर लिया है। इंसान तो भ्रष्टाचार में शामिल रहते हैं, लेकिन जब तक एआई को ऐसे भ्रष्टाचार को जांचने में भागीदार नहीं बनाया जाएगा, तब तक एआई की पकड़ में कई और चीजें आ जाएंगी। अभी यह भी खबरें हैं कि आधार कार्ड, पैनकार्ड, मतदाता कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे बहुत से व्यक्तिगत शिनाख्त वाले दस्तावेज एक-दूसरे से जोड़े जा रहे हैं। यह भी खबर है कि जमीनों की रजिस्ट्री में आधार कार्ड अनिवार्य कर देने के बाद धोखाधड़ी कुछ कम हुई है। जब बैंक खाते, क्रेडिट और डेबिट कार्ड, यूपीआई पेमेंट के औजार सब एक-दूसरे से जोड़ दिए जाएंगे, लोगों के मोबाइल नंबर और ईमेल उससे जुड़ जाएंगे, तो कई तरह की धोखाधड़ी घटेगी। यह एक अलग बात है कि इन सबसे देश के हर नागरिक सरकार की चौबीसों घंटों की निगरानी में आ जाएंगे, और निजता खत्म ही हो जाएगी। लेकिन सरकारी योजनाओं में चल रहा भ्रष्टाचार एक-एक करके कम भी हो सकता है, अगर सरकार की सारी जानकारी के साथ एआई को जोडक़र भ्रष्टाचार पकडऩे का काम किया जाए। इसके साथ यह खतरा भी जुड़ा रहेगा कि इतनी जानकारियां अगर एक साथ रहेंगी, तो आज रात-दिन टेलीफोन पर धोखा देने वाले ठग भी उन जानकारियों का इस्तेमाल करके लोगों को अधिक हद तक धोखा दे पाएंगे।
खैर, जो भी हो, सरकारी योजनाओं में होने वाली चोरी और धोखाधड़ी को हर कीमत पर रोकना चाहिए क्योंकि यह देश की गरीब जनता के हक का पैसा है। फिर यह डॉक्टरी जैसे महान समझे जाने वाले पेशे के लिए भी शर्मिंदगी की बात है, और डॉक्टरों के संगठनों को ऐसे मामले सामने आने पर इन डॉक्टरों और ऐसे अस्पतालों की मान्यता खत्म करने के बारे में कड़े नियम बनाने चाहिए, और उन पर अमल करना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


