संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बिहार में एनडीए की जीत के आंकड़े जोड़-घटाने से नहीं, पहाड़े से गिन सकते हैं!
सुनील कुमार ने लिखा है
14-Nov-2025 5:01 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बिहार में एनडीए की जीत के आंकड़े जोड़-घटाने से नहीं, पहाड़े से गिन सकते हैं!

बिहार चुनाव के नतीजे आते जा रहे हैं, लेकिन किसी को इन नतीजों को देखने की जरूरत अब रह नहीं गई है। भाजपा-जेडीयू गठबंधन वहां जरूरत से खासी अधिक सीटों पर लीड लेकर एक किस्म से सरकार बना चुका है, और आरजेडी-कांग्रेस वहां गठबंधन औंधेमुंह जमीन पर पड़ा हुआ है। इस पल, दोपहर एक बजे के आंकड़े बता रहे हैं कि एनडीए पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 72 सीटें अधिक पाते दिख रहा है, और वह 197 सीटों पर आगे है। तकरीबन इतनी ही सीटें, 70 सीटें खोकर महागठबंधन 40 सीटों पर सिमटते दिख रहा है। कुछ घंटों में आंकड़ों में कुछ फेरबदल हो सकता है, लेकिन इन दोनों गठबंधनों का यह अनुपात बदलने का अब कोई आसार नहीं है। एनडीए को महागठबंधन से करीब 5 गुना अधिक सीटें मिलना, यह उन राजनीतिक विश्लेषकों, और मीडिया का मुखौटा लगाकर काम करने वाले भाड़े के भोंपुओं के मुंह पर एक तमाचा है। धर्मेंद्र की मौत की झूठी खबर जितना पड़ा तमाचा थी, उससे अधिक बड़ा तमाचा बिहार के नतीजे उन चेहरों पर हैं। किसी भी एक्जिट पोल ने ऐसे नतीजों की भविष्यवाणी नहीं की थी जो इस पल आते दिख रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार के चुनाव प्रचार में चुनाव आयोग के खिलाफ जो हल्ला बोला था, उससे अधिक ऊंची आवाज का कोई चुनाव प्रचार वहां हो नहीं सकता था, दूसरी तरफ एनडीए ने वहां महिलाओं को सीधे आर्थिक राहत देने का जो काम किया था, उसकी कोई काट राहुल-तेजस्वी के प्रचार में आखिरी तक आ नहीं पाई। चुनाव आयोग के खिलाफ राहुल का अभियान सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर वहां जितने किस्म की सुनवाई करवा सकता था, उसने करवा दी थी। इससे अधिक कुछ इन लोगों के हाथ में था नहीं। दूसरी तरफ नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार की एनडीए सरकार वहां इतने लंबे समय से काम कर रही है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ, या उनके इस मौजूदा गठबंधन, एनडीए के खिलाफ जितने तरह का जनअसंतोष हो सकता था, वह जनसमर्थन में बदला हुआ दिख रहा है। नीतीश कुमार अभी तक 9 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं, जो कि देश में एक रिकॉर्ड है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के पद पर वे 20 बरस से ज्यादा काम कर चुके हैं, जो सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड तो नहीं है, लेकिन यह कार्यकाल अगर वे पूरा कर पाते हैं, तो वे सिक्किम के चामलिंग का 24 साल 7 महीने का रिकॉर्ड तोड़ देंगे। फिलहाल उन्हीं के मुख्यमंत्री बनने का आसार है, जबकि भाजपा की सीटें उनसे अधिक हैं। भाजपा के सारे दिग्गज नेता बार-बार यह कह चुके हैं कि गठबंधन के मुख्यमंत्री नीतीश ही रहेंगे। आंकड़ों को अगर देखें तो भाजपा अपनी पिछले संख्या से 16 सीटें अधिक पाकर अभी 90 पर आती दिख रही है, और जेडीयू अपनी पिछली सीटों से 38 सीटें अधिक पाकर 81 पर आगे है।

ये आंकड़े बिल्कुल ही असाधारण हैं, और बिहार में एनडीए के किसी भी संभावित विकल्प की संभावना को मटियामेट करते हैं। सबसे ऐतिहासिक कांग्रेस की दुर्गति है, जो कि 19 सीटों से गिरकर चार सीटों पर आती दिख रही है। यूपीए के बाद बिहार, देश के दो सबसे बड़े राज्यों में कांग्रेस पूरी तरह हाशिए पर चली गई है, और इतनी बड़ी-बड़ी विधानसभाओं में वह आधा दर्जन तक भी नहीं पहुंच रही। अभी बिहार का रूख जारी रहता है, तो यूपी बिहार मिलाकर कांग्रेस जरूर आधा दर्जन हो जाएगी। कांग्रेस के साथ लालू-पार्टी, आरजेडी की भी दुर्गति हो गई है, और वह 46 सीटें खोकर कुल 29 पर आ टिकी है। इससे देश में भाजपा विरोधी गठबंधन के इन दो सबसे पुराने, सबसे बड़े, और सबसे महत्वपूर्ण भागीदारों के भविष्य पर भी एक बड़ा सवालिया निशान लगता है।

आज चुनाव आयोग के भेदभाव, या किसी साजिश करने की तोहमतों का कोई मौका नहीं है। जनता की अदालत से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक, सभी जगह ये तोहमतें अब खारिज हैं। कोई दर्जन-दो दर्जन सीटों का फासला रहता, तो भी कोई संदेह हो सकता था। यह लिखते-लिखते ही पिछले दस-बारह मिनट में लीड के आंकड़े महागठबंधन की 39 सीटों के मुकाबले एनडीए के 198 सीटों पर पहुंच गए हैं, पांच गुना से अधिक का फासला। चुनावी नतीजों में सीटों का फासला जोड़-घटाने का तो रहते आया है, लेकिन पहाड़े से ही गिनने लायक फासला कम ही देखने मिलता है, जो कि आज बिहार में देखने मिल रहा है। लगातार एक ही चेहरा, और वह चेहरा अधिकतर वक्त एक ही गठबंधन के साथ, फिर भी किसी तरह की तथाकथित एंटीइनकमबेंसी नहीं, यह बड़ी असाधारण बात है।

हम तैरते हुए आंकड़ों के इस पल पर बहुत बारीक विश्लेषण जानबूझकर नहीं कर रहे हैं, क्योंकि अधिक जानकार लोग जल्द ही उस पर आएंगे। लेकिन देश में यह चर्चा चल रही थी कि मोदी सरकार की मजबूती और भविष्य पर बिहार के नतीजों का साया पड़ सकता है, वैसी आशंकाएं, या कि हसरतें अब बोगस साबित हो चुकी हैं। यह पल एनडीए के लिए, बड़े जश्न का है, और बिहार के बाहर तो सिर्फ भाजपा के ही जश्न का सामान है। जीत का यह सेहरा बिहार में नीतीश और भाजपा दोनों सिर है, और बिहार के बाहर मोदी और शाह के सिर पर। बाकी देश की राजनीति में इससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ रहा, लेकिन इससे राष्ट्रीय राजनीति में मोदी-शाह कल तक के मुकाबले भी बड़े अधिक कामयाब स्थापित हो रहे हैं, और राहुल गांधी के लिए यह आत्मविश्लेषण और आत्ममंथन का मौका है।

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