संपादकीय
गुजरात के जूनागढ़ जिले में गिरनार पहाड़ी पर गोरखनाथ मंदिर में तोडफ़ोड़ की खबर 5 अक्टूबर को आई। मंदिर की प्रतिमा को तोडक़र पहाड़ी से फेंक दिया गया था, और भक्तजनों में भारी नाराजगी फैली थी। पुलिस की पहली खबर में अज्ञात लोगों द्वारा की गई तोडफ़ोड़ बताया गया था। अब 14 तारीख को पुलिस ने इस मामले का खुलासा किया, और बताया कि यह तोडफ़ोड़ करने वाले कोई बाहरी लोग नहीं थे, बल्कि मंदिर के ही एक कर्मचारी, और एक स्थानीय फोटोग्राफर ने यह काम किया था, दोनों गिरफ्तार हो गए हैं, और उन्हें अपना जुर्म कुबूल कर लिया है। इस भांडाफोड़ के पहले तक लोग बहुत विचलित थे कि एक हिन्दू मंदिर में ऐसी तोडफ़ोड़ की गई है, और पुलिस ने डेढ़ सौ से अधिक जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग की जांच की, मंदिर के आसपास के इलाकों में धर्मशालाओं को भी जांचा, आने-जाने वाले पांच सौ भक्तों की आवाजाही परखी, और दो सौ लोगों से बयान लिए। इतनी मेहनत के बाद जो दो लोग पकड़ाए, वे 42 बरस का किशोर कुकरेजा, और 50 बरस का रमेश भट्ट, ये दो लोग थे। इनमें कुकरेजा मंदिर का ही कर्मचारी था जो कि चाहता था कि मंदिर में भीड़ बढ़े, दान अधिक आए, उसकी शोहरत अधिक हो, इसलिए उसने यह साजिश की कि मंदिर खबरों में आ जाए। उसने मंदिर आने-जाने वाले स्थानीय फोटोग्राफर रमेश भट्ट के साथ मिलकर एक रात पुजारी का कमरा बाहर से बंद किया, और प्रतिमा को तोडक़र पहाड़ से नीचे फेंक दिया। और पुलिस में रिपोर्ट लिखाई की चार अज्ञात लोगों ने मंदिर में आकर सब तोड़ दिया।
अब देखा जाए कि मंदिर की इस तोडफ़ोड़ से अगर तनाव खड़ा हुआ रहता, तो वह कहीं तक भी जा सकता था। रिकॉर्डिंग में कोई ऐसी चीज सामने आ जाती जिससे किसी दूसरे धर्म के लोगों की उसी वक्त के आसपास मंदिर तक की आवाजाही दिखती, तो गुजरात तो वैसे भी लंबे समय से साम्प्रदायिक तनाव से गुजरा हुआ प्रदेश है। दूसरी तरफ देश में जगह-जगह, कई जगह धार्मिक तनाव खड़ा करने के लिए इस तरह की साजिश की गई है। यूपी में तो देश के सबसे प्रखर हिन्दुत्ववादी, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, और उनकी पुलिस के एक हिन्दू आईजी ने एक साम्प्रदायिक साजिश का भांडाफोड़ किया था। उन्होंने अपने इलाके की एक घटना बताई थी कि एक जगह गाय को काटकर फेंक दिया गया था, और उसके पास एक मुस्लिम नौजवान का आधार कार्ड पड़ा मिला था। बाद में हिन्दू एसपी, हिन्दू थानेदार, और बाकी तमाम हिन्दू पुलिस कर्मचारियों की जांच में पता लगा था कि उस इलाके के एक हिन्दू संगठन का मुखिया इस साजिश के पीछे था। उसने दो-तीन दूसरे हिन्दुओं को पैसा देकर गाय कटवाकर फिंकवा दी थी ताकि उस इलाके में साम्प्रदायिक तनाव फैले, और वहां के थानेदार का तबादला हो जाए जो कि इस हिन्दू नेता को मनमाने जुर्म नहीं करने दे रहा था। सारे सुबूतों के आधार पर, गाय काटने वाले लोगों के बयानों के आधार पर यूपी पुलिस ने इस हिन्दू नेता को गिरफ्तार किया, और इलाके में साम्प्रदायिक दंगा होने का खतरा खत्म हुआ।
अभी कल ही मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट ने एक ओबीसी नौजवान को ब्राम्हण नौजवान के पैर धोकर पानी पीने के लिए मजबूर करने पर एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के तहत भी जुर्म करने का हुक्म दिया है। देश में यह एक सबसे संगीन जुर्म है, और हाईकोर्ट ने जातीय नफरत के आधार पर ऊंची कही जाने वाली जाति की भीड़ की इस हिंसा पर इसे लगवाकर ठीक काम किया है। हमारा यह मानना है कि देश में जब किसी धर्म या जाति के लोग कोई जुर्म करके उसे साजिश के तहत किसी दूसरे धर्म या जाति के लोगों पर थोपते हैं, तो फिर उनके खिलाफ एनएसए के तहत जुर्म दर्ज होना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऐसी हरकतें खतरा तो रहती ही हैं। जब देश में धर्म या जाति को लेकर एक सामुदायिक तनाव खड़ा किया जाए, तो वह कितना भी आगे बढ़ सकता है। भारत जैसे देश में बड़ी धार्मिक विविधता है, और सामाजिक ताना-बाना कई धर्मों के लोगों से मिलकर बना है। फिर कुछ धर्मों के लिए कुछ जानवर बहुत पवित्र हैं, और कुछ के लिए बहुत ही अपवित्र हैं। फिर यह भी है कि अधिकतर धर्मस्थल सडक़ किनारे खुले में है, जिनकी पर्याप्त हिफाजत का इंतजाम नहीं है, और कोई भी व्यक्ति आते-जाते नशे या होश में उन्हें नुकसान पहुंचाकर किसी और पर तोहमत थोप सकते हैं। इस देश में धर्म का महत्व कर्म के मुकाबले बहुत ऊपर है, और लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती है। हम अभी देश में साजिश के तहत किए गए ऐसे हमलों की लिस्ट गिनाना नहीं चाहते, लेकिन इसकी एक लंबी लिस्ट अभी चैटजीपीटी ने निकालकर दी है। लोगों को यही समझने की जरूरत है कि जो सतह पर तैरता दिखता है, वह हमेशा ही सच नहीं होता। सतह का जरा सा कुरेदा जाए, तो नीचे से आने वाला सच सतह का ठीक उल्टा भी हो सकता है।
हमारा ख्याल है कि जाति और धर्म के आधार पर बेचैनी और हिंसा फैलाने की तमाम कोशिशों पर एनएसए जैसे गंभीर कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि इन कोशिशों से जो तनाव खड़ा हो सकता है, उसमें कई बेकसूर लोगों की जिंदगियां जा सकती हैं, समुदायों का एक-दूसरे पर भरोसा खत्म हो सकता है, और एक स्थाई नफरत फैल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने हेट-स्पीच को लेकर जो कड़े आदेश दिए हैं, वे भी ऐसे मामलों पर इसलिए लागू होते हैं कि गुमनाम, बेनाम लोगों पर ऐसी तोहमत डालकर लोग एक नफरत फैलाने का काम करते हैं, और उस पर उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए।


