संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकारी किफायत की सलाह गर पीएमओ ने दी है, तो बचत मुमकिन
सुनील कुमार ने लिखा है
11-Oct-2025 5:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सरकारी किफायत की सलाह गर पीएमओ ने दी है, तो बचत मुमकिन

नवंबर का महीना छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी गहमागहमी का रहेगा, पहला हफ्ता राज्य के स्थापना के जलसे का रहता है, और इस बार रजत जयंती वर्ष होने से उत्साह कुछ अधिक रहेगा। इसमें प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के आने की खबर है, और नवंबर के आखिरी हफ्ते में ही छत्तीसगढ़ में देश के सभी पुलिस महानिदेशकों की एक कांफ्रेंस होना तय है, उसमें फिर प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृहमंत्री जैसे देश के कुछ सबसे बड़े लोग पहुंचेंगे। सरकार में इस बात को लेकर कुछ खलबली है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से यह खबर भेजी गई है कि किफायत बरतने के लिए आने वाले सभी लोगों के ठहरने का इंतजाम सरकारी भवनों में ही किया जाए, और कार्यक्रम का आयोजन भी सरकारी भवनों में हो। डीजी कांफ्रेंस तो राज्य में पहली बार हो रही है, लेकिन वह हर बरस किसी न किसी राज्य में होती ही है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इतने बड़े सरकारी आयोजन में किफायत बरतने के लिए सिर्फ सरकारी इंतजाम इस्तेमाल करने को कहा गया है।

हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम राज्य बनने के बाद से लगातार यह बात उठाते चले आ रहे हैं कि सरकारी आयोजनों को महंगे होटलों में नहीं करना चाहिए, और न ही महंगे होटलों को खाने-पीने का काम देना चाहिए। यह सब कुछ उसी गरीब जनता की जेब से जाता है जो कि केन्द्र सरकार से हर महीने पांच किलो अनाज पाती है, और जिसे एक रूपए किलो चावल देकर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह चाऊंर वाले बाबा बन गए थे। हम उस समय से ही यह लिखते आ रहे थे कि प्रदेश में जो बहुत से फिजूल के महज नाम के लिए बनाए गए निगम-मंडल हैं, जिन्हें किसी नेता की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए, उसे सहूलियत देने के लिए बनाया जाता है। ऐसे में इस राज्य को एक अतिथि सत्कार मंडल की जरूरत है जो कि हर किस्म के सरकारी आयोजनों के लिए एक स्थाई सम्मेलन स्थल विकसित करे, और सस्ते सरकारी इंतजाम में जनता के पैसों के सारे ही बड़े आयोजन हो सकें। आज दर्जनों बड़ी-बड़ी होटलों का कारोबार सरकार पर टिका रहता है, और बड़े से बड़े सरकारी आयोजन में होटल मालिक इस अंदाज में घूमते हैं कि मानो वे ही मेजबान हैं।

अगर प्रधानमंत्री की तरफ से सचमुच यह पहल की गई है, तो यह एक बहुत अच्छी बात है, और सरकारों को किफायत के बारे में सोचना चाहिए। छत्तीसगढ़ को राज्य बने 25 बरस हो गए हैं, लेकिन आज तक यहां सरकार के पास राष्ट्रीय स्तर का एक सम्मेलन स्थल भी नहीं है। हर बरस दर्जनों ऐसे सरकारी और राजनीतिक आयोजन होते हैं जिनमें एक-एक करोड़ रूपए तो शामियानों पर ही खर्च हो जाते हैं। आज छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शहर के बीच दर्जनों एकड़ जमीन सरकारी कॉलोनियां तोडक़र खाली हुई है, और सरकार अगर चाहे तो यहां पर भी एक सम्मेलन स्थल बन सकता है, और नया रायपुर नाम की राजधानी तो आज खाली ही पड़ी हुई है, वहां एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन स्थल बन सकता है। सरकार के पास जमीन अपनी है, और उसे अपना ढांचा तैयार करके कारोबारियों पर पैसा बर्बाद करना बंद भी करना चाहिए। आज बिखरे हुए होटलों के बीच किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के लायक कोई इंतजाम यहां नहीं हैं। नया रायपुर अपने आपमें हजारों लोगों के किसी सम्मेलन की मेजबानी करने जितनी जगह वाला देश का एक शानदार नियोजित बना हुआ शहर है। उससे लगा हुआ ही एयरपोर्ट है, और यहां आसानी से एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन स्थल कामयाब किया जा सकता है।

फिर हमारा यह भी मानना है कि सरकारी खर्च पर जो नेता या अफसर, या किसी और तरह के मेहमान आकर रूकते हैं, उन्हें महंगे होटलों की सहूलियत देना कहीं भी जरूरी नहीं है। उन्हें आरामदेह इंतजाम सरकारी भवनों में आसानी से मिल सकता है। राज्य सरकार को इसे एक चुनौती की तरह लेना चाहिए कि कुछ हजार लोगों के ठहरने का इंतजाम नया रायपुर में कैसे हो सकता है, और यह जरूरी इसलिए भी है कि सफेद हाथी की तरह बना हुआ अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक क्रिकेट स्टेडियम भी नया रायपुर में है, और साल में शायद एक-दो मैच ही वहां होते हैं। लेकिन अब नया रायपुर में कई तरह के उद्योगों की शुरूआत सरकार करने जा रही है, जिसमें आवाजाही वाले सैकड़ों लोगों को उसी शहर में रहने की जरूरत पड़ेगी। इसलिए हजारों लोगों के लिए अलग-अलग कई स्तरों की सहूलियत वाले रहने-खाने के इंतजाम के बारे में सरकार को योजना बनानी चाहिए। अभी होने जा रही डीजी कांफ्रेंस में ढाई-तीन सौ बड़े अफसर और मंत्री इकट्ठे हो सकते हैं, और यह मौका सरकार के पास अपने बिखरे हुए अलग-अलग मौजूदा इंतजाम को तौलने का भी है।

किसी राज्य के अस्तित्व में 25 बरस विकास के लिए पर्याप्त होते हैं, और अब किसी सरकार के पास राज्य के नए होने, और अविभाजित मध्यप्रदेश से हिस्सा ठीक से न मिलने जैसे कोई तर्क भी नहीं बचते। सरकार को शहर के भीतर और नया रायपुर में अलग-अलग किस्म के आयोजनों के लिए सम्मेलन स्थल बनाना चाहिए, वरना हर बरस सैकड़ों करोड़ रूपए होटलों पर जाते रहेंगे। यह बात ठीक है कि सरकार को कारोबार नहीं करना चाहिए, लेकिन अपनी खुद की जरूरत को खुद पूरा करने के लिए अगर वह बैठक, सम्मेलन, सभा, और रहने का इंतजाम विकसित करती है, तो उसे वह जनता को भी कारोबारियों से कम किराए पर दे सकती है, जिससे जनता का भी भला होगा, और जनता का पैसा तो सरकारी आयोजनों पर बचेगा ही।

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