संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पूरी दुनिया के आसमान पर चमकते हिन्दुस्तानी सितारे...
सुनील कुमार ने लिखा है
04-Oct-2025 6:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : पूरी दुनिया के आसमान पर चमकते हिन्दुस्तानी सितारे...

राहुल गांधी विदेश गए हुए हैं, और वहां उन्होंने भारत की कुछ मोटरसाइकिलों के साथ अपनी एक फोटो पोस्ट की है, और लिखा है कि भारत के बहुत से ब्रांड देश के भीतर किसी सरकारी मेहरबानी के बिना भी दुनिया भर में कामयाब हैं। उन्होंने कुछ और राजनीतिक बातें कही होंगी, लेकिन हम उनके बयान से परे इस मुद्दे पर आना चाहते हैं कि भारत के कौन से ब्रांड दुनिया के दर्जनों देशों में अपनी मजबूत जगह बना चुके हैं, और देश के भीतर उन पर किसी सरकारी मेहरबानी की कोई तोहमत भी आज तक नहीं लगी है। टाटा के अलग-अलग बहुत से सामान, और उसकी सेवाएं दुनिया के हर उपमहाद्वीप में पहुंची हुई हैं, और इसे एक बड़ी साख वाला ब्रांड माना जाता है। इसके कारोबार पर कभी किसी पार्टी की सरकार की खास रियायत नहीं रही। दूसरी तरफ सरकारी जमीन, खदान, नदी का पानी, या जंगल पाए बिना भी जो कंपनियां दुनिया भर में पहुंची हुई हैं, उनमें कम्प्यूटर सेवा देने वाली इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां हैं जो कि टाटा के साथ-साथ ही देश में सबसे अधिक सामाजिक सरोकार निभाने वाली भी हैं। सहकारिता की देश की सबसे बड़ी ईकाई, अमूल के मिल्क प्रोडक्ट दुनिया के दर्जनों देशों में कामयाब हैं, और वे बड़ी-बड़ी स्विस कंपनियों को टक्कर देते हैं। गुजरात में 1946 में आनंद जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रोत्साहन से कारोबारियों और ठेकेदारों के शोषण के खिलाफ यह सहकारी समिति शुरू हुई। और फिर आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) को डॉ.वर्गीज कुरियन ने आगे बढ़ाया। उन्होंने ही देश में श्वेत क्रांति लाई, और अमूल को एक ग्लोबल ब्रांड बनाया। आज भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाने में केरल के वर्गीज कुरियन का ऐतिहासिक और असाधारण योगदान था। वे केरल में पैदा हुए थे, मद्रास और अमरीका में पढ़े थे, और उन्होंने अमूल को गोबर से लेकर आसमान के सितारे तक पहुंचा दिया था। यह पूरी तरह से बिना किसी सरकारी रहमो-करम के बढ़ा हुआ सहकारी आंदोलन था, जो कि सरकार के परोक्ष नियंत्रण में रहने के बावजूद जिंदा रहने दिया गया, और नेहरू के वक्त से जो खुला हाथ डॉ.कुरियन को मिला, उससे उन्होंने देश के इस सबसे बड़े और सबसे कामयाब सहकारी आंदोलन को खड़ा किया। यह इस बात की मिसाल रहा कि कई सरकारें आई-गईं, आज भी अमूल देश का सबसे कामयाब मॉडल बना हुआ है।

लेकिन हम बिना सरकारी मदद वाली और दूसरी कंपनियों, या उनके ब्रांड को देखें, जो कि दुनिया भर में अपने दम पर कामयाब हैं, तो हल्दीराम के मीठे-नमकीन, रॉयल इनफील्ड की बुलेट मोटरसाइकिलें, महेन्द्रा एंड महेन्द्रा की हर तरह की गाडिय़ां, फैब इंडिया के कपड़े, पारले के बिस्किट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। इस देश में बिस्किट खाने वाले लोगों को शायद यह पता नहीं होगा कि पारले-जी दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाला बिस्किट ब्रांड है, और इसे किसी देश-प्रदेश की सरकार की मेहरबानी नहीं लगी। ब्रांड की यह लिस्ट बहुत लंबी है, और कई ब्रांड तकनीकी सामानों के हैं, जिनसे कि आम लोग बहुत परिचित नहीं होंगे। लेकिन हम जो बात कहना चाहते हैं, वह यही है कि सफल कारोबारी जब कोई बहुत अच्छा सामान बनाते हैं, तो उसके लिए उन्हें सरकार की मेहरबानी नहीं लगती, सरकारी रियायतें नहीं लगतीं। यह संपादकीय लिखने वाले संपादक ने कम से कम एक दर्जन देशों में पारले-जी बिस्किट खरीदकर खाया है।

देश के भीतर कौन से कारोबारी सबसे अधिक सफल हैं, कोई एक हुरुन लिस्ट है जिसमें दुनिया के सबसे रईस लोगों का नाम है, और इसमें हिन्दुस्तान के लोगों का भी जिक्र है। हो सकता है कि सरकारी मेहरबानियों वाले लोग ऐसी लिस्टों में बहुत ऊपर हों, और ऐसी लिस्ट से बहुत नीचे के लोग दुनिया में अपने दम पर सबसे कामयाब ब्रांड बनाकर उसे चला रहे हों। अभी हमने जितने भी ब्रांड यहां गिनाए हैं, उनमें से किसी पर किसी भी पार्टी की सरकार की अलग से किसी मेहरबानी का कोई जिक्र नहीं होता। इसलिए कारोबार को भी सरकार की रियायत के बिना, मेहरबानी के बिना चलाया जा सकता है, अगर उस कारोबार का प्रोडक्ट बहुत अच्छा हो। यह एक अलग बात है कि प्रोडक्ट अच्छा न होने पर भी कंपनी बहुत अधिक मुनाफे में रह सकती है, अगर उसे सरकार की तरफ से टैक्स की, आयात-निर्यात नीति की, लाइसेंस या जमीन की, खदान और पानी की खास मदद मिलती हो। ऐसी कंपनियां कमाई बहुत अधिक कर सकती हैं, और हुरुन लिस्ट में वे छत पर बैठ सकती हैं, लेकिन असली कामयाबी तो अपने दम पर दुनिया के बाजारों में राज करने की है।

दिलचस्प बात यह है कि जिस अमरीका को दुनिया का सबसे मुक्त बाजार कहा जाता है, वहां सरकारी मदद का हाल यह है कि अभी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प, और उनके एक भूतपूर्व लंगोटिया एलन मस्क के बीच जब रायता फैला, तो ट्रम्प ने धमकाया कि मस्क को बैटरी कारों के लिए कितनी सरकारी रियायत मिल रही है, और अंतरिक्ष योजनाओं के कितने सरकारी ठेके मस्क की कंपनी को मिले हुए हैं। ट्रम्प ने खुलकर कैमरों के सामने कहा कि मस्क के ये सब ठेके खत्म करने का समय आ गया है। लेकिन अभी जब एक चीनी कंपनी के अमरीका के सबसे लोकप्रिय प्रोडक्ट, टिक-टॉक को चीनी नियंत्रण से बाहर लाकर किसी अमरीकी कंपनी को उसका मुख्य भागीदार बनाने की बात आई, तो ट्रम्प ने यह साफ कर दिया कि अमरीकी कंपनी को वे ही छांटेंगे, और वही हुआ भी है। उन्होंने एक कंपनी को छांटा है जिसे टिक-टॉक को अपने शेयर बेचने होंगे। तो सबसे मुक्त बाजार वाले देश में भी सरकारी मेहरबानियां इस अश्लील और हिंसक तरीके से चल रही हैं।

भारत में इंदिरा गांधी के समय से यह चर्चा रहती थी कि रिलायंस कंपनी के धीरूभाई अंबानी को सरकारी नीतियों में आयात-निर्यात की शर्तों की ऐसी मेहरबानियां मिलती थीं कि वे जमीन से आसमान पर पहुंचे। बाद में अटल सरकार में भाजपा के एक सबसे ताकतवर नेता प्रमोद महाजन अंबानी और दूसरे कारोबारियों से अपने बहुत करीबी रिश्तों को लेकर जाने जाते थे, और 2002 में संचार मंत्री रहते हुए जब प्रमोद महाजन ने धीरूभाई पर टिकट जारी की थी, तो मंच पर उनका अंबानी के पोस्टर को सिर पर उठाया हुआ फोटो भी सबको याद है। ऐसा माना जाता था कि प्रमोद महाजन भाजपा के देश के एक सबसे बड़े फंड रेजर थे। ऐसा ही एक वक्त प्रणब मुखर्जी के बारे में इंदिरा और राजीव सरकार के समय माना जाता था। और भी सरकारों के अपने-अपने एजेंट, दलाल, फंड रेजर या कोषाध्यक्ष रहते आए हैं। मनमोहन सरकार के दस बरस में यह माना जाता था कि अहमद पटेल बड़े फंड का काम देखते थे, और कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा चिल्हर काम के लिए थे। अटल सरकार के वक्त उनके दत्तक-दामाद रंजन भट्टाचार्य का नाम आता था जो कि प्रधानमंत्री निवास से ही कारोबारी सौदों का काम करते थे। अब मोदी सरकार के समय संगठन की चर्चा इस बारे में नहीं होती, लेकिन अडानी और अंबानी पर खास मेहरबानियों की चर्चा जरूर होती है। देश में पिछले कई दशकों में क्रोनी कैपिटलिज्म की बात होती है, यानी पसंदीदा कारोबारी।

हम यहां किसी को ईमानदारी और बेईमानी का सर्टिफिकेट देने के लिए यह चर्चा नहीं कर रहे, लेकिन यह जरूर गिनाना चाहते हैं कि बिना सरकारी कृपा और वरदहस्त के किस तरह बहुत सी कंपनियां लंबे समय से कामयाबी के आसमान पर हैं, धरती के हर हिस्से पर हैं, और लगातार अपने ब्रांड की साख को निभा भी रही हैं, अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मुकाबले में टिके रहने के साथ-साथ। यह बस एक नजर में भारत के दो तरह के कारोबारियों को एक साथ देखने की कोशिश है। हमने जितने ब्रांड यहां पर गिनाए हैं कि जो दुनिया में सबसे अधिक कामयाब हैं, क्या उनमें से कोई भी ब्रांड आपको अडानी-अंबानी का दिख रहा है? दिखे तो बताइएगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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