क्रांति कुमार को 1934 में अंग्रेजों ने गणेश उत्सव में बिना अनुमति रामायण पाठ करने पर किया था गिरफ्तार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 14 अगस्त। जिले के 42 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम सूची में दर्ज है, जिन्होंने अंग्रेजों की सत्ता को देश से उखाड़ फेंकने में अपना अहम योगदान दिया। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से निकले सपूतों ने स्वाधीनता केा लेकर चरणबद्ध तरीके से अंग्रेजों का विरोध किया। अंचल में अंग्रेजों द्वारा किए गए आर्थिक व राजनीतिक शोषण के खिलाफ विद्रोह का स्वर अंचल के आदिवासी जमींदार से प्रारंभ हुआ था।
दाढ़ी के सावंत भारती व नवागढ़ के महारसिया दोनों ही जमींदार परिवार से थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर स्वतंत्रता का बिगुल फूंक दिया था। 1857 की क्रांति भी जिले में दिखाई दी थी। तब सावंत भारती व महारसिया के विरोध के बिगुल को सोनाखान के जमींदार रामराय बिंझवार ने संभाला था और कालांतर में उनके ही सुपुत्र नारायण सिंह बिंझवार ने 1857 की क्रांति में अपने बलिदान से सिंचित किया था। उनके द्वारा किए गए शोध में ये बातें सामने आईं कि मौखिक तौर पर नवागढ़, मारो, बेमेतरा, अंधियारखोर व दाढ़ी में भी बड़ी संख्या में लोग स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे पर उनके नाम रिकॉर्ड से गायब हैं।
इतिहासकार डॉ. बसुबंधु दीवान बताते हैं कि अंचल के लोगों ने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया था और स्वदेशी अपनाना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जनसभा व रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन बेमेतरा में किया गया था। 1920-21 के असहयोग आंदोलन में अंधियारखोर के पं.भगवती प्रसाद मिश्र, वाईवी तामस्कर, मुंजन सोनी, माधवराव सप्रे, लक्ष्मण प्रसाद, अवध राम, मुकुट राय गांधी के आह्वान पर आंदोलन में शामिल हुए।
नौकरी छोड़ कर आंदोलनों में लिया हिस्सा
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे सेनानी नौकरी छोडक़र सामने आए। भारत छोड़ो आंदोलन को प्रदेश के युवा नेतृत्व ने संभाला था, जिसमें क्षेत्र से कई युवा एवं सेनानी रायपुर व दुर्ग की जनसभाओं में समिलित हुए थे, जिसमें प्रमुख रुप से भागवत उपाध्याय, लक्ष्मण प्रसाद वैद्य, दयाशंकर तिवारी व गंगाधर तामस्कर शामिल थे। दाढ़ी से ही लक्ष्मण प्रसाद दुबे व दयाशंकर तिवारी भी इन दिनों खूब सक्रिय रहे, जिनका नाम शिलालेख में दर्ज है।
अंग्रेजों की रोक के बाद हुआ था 1934 का प्रसिद्ध गणेश उत्सव
14 सितंबर 1934 को बेमेतरा में एक वृहद गणेश उत्सव मनाया गया, जिसमें प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी उपस्थित थे। यह गणेश उत्सव बालक स्कूल बेमेतरा एवं माधव राव सप्रे के निवास में प्रतिमा रखकर प्रारंभ किया गया, जहां पर बिलासपुर के क्रांति कुमार भारतीय को विशेष रूप से रामायण पाठ के लिए बुलाया गया था। 17 सितंबर 1934 को सप्रे के निवास पर क्रांति कुमार भारतीय ने भरत मिलाप प्रसंग को बहुत ही सुरय तरीके से प्रस्तुत किया और साम्राज्यवाद के विरुद्ध ऐतिहासिक भाषण दिया।
इस घटना ने तात्कालिक प्रशासन की नींद हराम कर दी थी। इस गणेश उत्सव में प्रमुखतया माधव राव सप्रे, क्रांति कुमार भारतीय, विश्वनाथ तामस्कर समेत अंचल के सभी सेनानी एवं जनमानस उपस्थित थे, जिनकी संख्या लगभग 500 थी। ब्रिटिश शासन ने क्रांति कुमार भारतीय को रामायण पाठ नहीं करने का आदेश दिया था। इसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें सुनने दूर-दूर से लोग आए हुए थे। उन लोगों की भी पुलिस तफ्तीश की गई थी। यह बेमेतरा के लिए एक बड़ी घटना थी। छत्तीसगढ़ के इतिहास में आज भी बेमेतरा के गणेश उत्सव की घटना को याद किया जाता है।
इतिहासकार के अनुसार पं. सुंदरलाल शर्मा रायपुर जेल में बंद रहते हुए भी बड़ी सूझबूझ से हस्तलिखित समाचार पत्र का लेखन करते थे, जिसे श्रीकृष्ण जन्मस्थान पुस्तिका का नाम दिया गया था। इस समाचार पत्र को चोरी छुपे राष्ट्रवादियों तक पहुंचाया जाता था। इसी समाचार पत्र के पांचवें अंक के प्रथम पृष्ठ पर अंधियारखोर के मालगुजार पं. भगवती प्रसाद मिश्र को गिरफ्तार कर जेल में डालते हुए पं. सुंदरलाल शर्मा ने चित्रित किया था, जो बेमेतरा की तात्कालिक राजनीतिक जागृति व आंदोलनों की भव्यता को प्रमाणित करता है। यह एक अभूतपूर्व कदम था, जो नौजवानों की प्रेरणा की वजह बना।
बेमेतरा में भी वानर सेना का गठन
तब बेमेतरा तहसील में एक स्थान से दूसरे स्थान से पत्र को लाने ले जाने के लिए छुपे तौर पर बेमेतरा में भी वानर सेना का गठन किया गया था। ये सैनिक क्रांतिकारियों व सेनानियों के गोपनीय पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया करते थे। यह काम बहुत ही गोपनीय तरीके से किया जाता था। पत्रवाहक पैदल ही आनाजाना करते थे। वानर सेना रायपुर एवं बिलासपुर के बाद बेमेतरा में ही गठित किया गया था। कई छात्र इससे जुड़े थे।