‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 1 मई। बलौदाबाजार औद्योगिक जिला है इस जिले में कई सीमेंट फैक्ट्रियां हैं, जिसका असर भूजल स्तर पर भी पड़ा है। गर्मी की शुरुआत में ही जिले के कई हिस्सों में भीषण जल संकट देखने को मिल रहा है। नगर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। प्रशासन नगरों में पानी की व्यवस्था टैंकरों से करवा रहा है, लेकिन गांवों में स्थिति और भी खराब है। यहां एक बाल्टी पानी के लिए महिला,बच्चे और जवान संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच एक गांव ऐसा भी है जहां ये तस्वीरें पिछले 80 साल से किसी ने नहीं देखी, क्योंकि इस गांव में कभी जलसंकट नहीं आया। आईए जानते हैं आखिर इस गांव में ऐसा क्या है कि कभी यहां जल संकट नहीं हुआ।
तेज धूप, सूख चुके हैंडपंप, दम तोड़ते तालाब और सिर पर मटके लिए मीलों चलती महिलाएं ये दृश्य बलौदाबाजार जिले के कई गांवों में पानी के ना होने की हकीकत बयां कर रहे हैं। जिले में चारों ओर पानी के लिए हाहाकार मचा है। कई गांवों में बोरिंग और हैंडपंप सूख चुके हैं, तो कहीं तपती धूप में बच्चे समेत परिवार लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रहा है। लेकिन इसी जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां कभी जल संकट नहीं हुआ। इस गांव का नाम है लटुवा। छत्तीसगढ़ संवाददाता ने इस गांव का जायजा लिया और जाना कि आखिर क्यों इस गांव में जलसंकट नहीं हुआ।
बलौदाबाजार जिले के दर्जनों गांवों में हैंडपंप सूख चुके हैं, वहीं दूसरी ओर लटुवा गांव पर जलसंकट का कोई असर नहीं हुआ। आज भी इस गांव के लोग अस्सी साल पुराने जलस्त्रोतों से ठंडा पानी निकाल रहे हैं। गांव में 100 से अधिक कुएं और 20 से ज्यादा तालाब हैं। हैरानी की बात ये है कि 10-12 फीट गहरे कुएं भी कभी नहीं सूखते। गांव के बुजुर्ग नरेंद्र कुमार सेन बताते हैं कि वर्षों पहले उनके पिता ने उनके घर पर कुआं खुदवाया था। जिसका इस्तेमाल आज भी हो रहा है। जब आसपास के गांवों में पानी की दिक्कत शुरू हुई थी, तब लटुवा पंचायत ने जल प्रबंधन पर विशेष जोर दिया, जिसका नतीजा ये है कि आज भी इस गांव में पानी की कोई कमी नहीं हुई।
इसी गांव के निवासी रोशन कन्नौजे कहते हैं कि बारिश के दिनों में उनका कुआं पूरी तरह से पानी से लबालब भर जाता है। 80 साल से अधिक पुराना कुआं हो चुका है। आज भी कुआं का ठंडा पानी प्यास बुझाने के साथ ही बाड़ी सींचने के काम में आता है। वहीं डॉ. गजेन्द्र नायक के मुताबिक गांव में पहले से ही सौ से अधिक कुएं हैं, साथ ही बड़े-बड़े तालाब हैं. जिसके कारण जल स्त्रोत भीषण गर्मी में भी भरे हुए हैं। जिला प्रशासन अब दूसरे गांवों को लटुवा पंचायत की जल संरक्षण के तरीकों को बताकर जागरुक करने की बात कह रहा है।
नहीं सूखते जलस्त्रोत?
लटुवा पंचायत में बसे अधिकांश परिवारों के घर में खुद का कुआं है. चौंकाने वाली बात ये है कि यहां 10-12 फिट गहरे कुएं भी कभी नहीं सूखते। गर्मी चाहे जितनी भी पड़ जाए, 7 फिट नीचे से ही पानी मिल जाता है। गांव के बुजुर्ग और नौजवान इस बात का गर्व से जिक्र करते हैं, क्योंकि यह चमत्कार नहीं, बल्कि वर्षों की जागरूकता और जल संरक्षण की मेहनत का फल है।
सौ से ज्यादा कुएं, बीस से ज्यादा तालाब
लटुवा पंचायत में 100 से अधिक कुएं और 20 से भी ज्यादा तालाब हैं। ये सिर्फ गिनती भर नहीं हैं, बल्कि गांव की आत्मा हैं। इन जल स्रोतों को पाटने की गलती यहां कभी नहीं की गई। उल्टा, समय-समय पर इनकी सफाई, गहरीकरण, और संरक्षण को प्राथमिकता दी गई। यही वजह है कि आज जब दूसरे गांव एक बाल्टी पानी के लिए जूझ रहे हैं, लटुवा के बच्चे तालाब में छलांग लगाकर गर्मी मिटा रहे हैं।
वाटर मैनेजमेंट की तारीफ
लटुवा गांव के वाटर मैनेजमेंट को लेकर विशेषज्ञों ने भी इसकी तारीफ की है। चीफ साइंटिस्ट लैंड वाटर मैनेजमेंट गीत शर्मा के मुताबिक लटुवा जैसे गांव भीषण जल संकट को रोक सकते हैं। गांव इस बात का प्रमाण हैं कि सामूहिक सोच और परंपरागत जल संरक्षण तकनीकों से भी जल संकट को रोका जा सकता है। 10-12 फीट के कुएं का भीषण गर्मी में ना सूखना बताता है कि गांव ने अपने जल पुनर्भरण प्रणाली यानी वाटर रिचार्ज सिस्टम को जीवित रखा है।
लटुवा बना पूरे जिले
के लिए प्रेरणा
लटुवा गांव ने सिखाया है कि जब धरती का पेट भरा रहेगा, तभी गांव का पेट भरेगा। जब जिले के कई गांव एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब लटुवा के कुएं ठंडे मीठे पानी से भरे हैं। यह गांव साबित करता है कि यदि समय रहते जल स्रोतों का संरक्षण किया जाए, तो भीषण संकट भी टिक नहीं सकते। लटुवा की कहानी अब सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे बलौदाबाजार जिले के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी है।
छत्तीसगढ़ में पिछले साल वर्षा सामान्य से भी कम हुई है। आखिरी बार व्यापक बारिश अक्टूबर महीने में दर्ज की गई थी, और उसके बाद पिछले 7 महीनों से राज्य के अधिकांश हिस्सों में बारिश नहीं हुई है। जल स्तर में गिरावट का एक बड़ा कारण है। हम मानते हैं कि जल संरक्षण का सबसे प्रभावशाली माध्यम परंपरागत जल स्रोत जैसे तालाब, डेम और कुएं हैं। लटुवा गांव का उदाहरण बताता है कि यदि कुंओं को संरक्षित किया जाए और जल को रोकने की प्राकृतिक व्यवस्था बनाई जाए, तो भीषण गर्मी में भी जल संकट से बचा जा सकता है।