‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 31 जनवरी। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को पद से हटाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस बिभु दत्त गुरु की अदालत ने सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि सरकार के प्रसाद पर्यंत नियुक्त व्यक्तियों को किसी भी समय बिना पूर्व सूचना या कारण बताए पद से हटाया जा सकता है।
पूर्व विधायक भानु प्रताप सिंह को 16 जुलाई 2021 को छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जबकि गणेश धु्रव, अमृत टोप्पो और अर्चना पोर्ते को सदस्य बनाया गया था। नियुक्ति आदेश में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि ये नियुक्तियां राज्य सरकार के प्रसाद पर्यंत होंगी।
15 दिसंबर 2023 को छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद आदिवासी विकास विभाग ने तत्काल प्रभाव से इन नियुक्तियों को समाप्त कर दिया। इस निर्णय को याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, इसे असंवैधानिक और राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित बताया।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि पद से हटाए गए व्यक्ति संवैधानिक पदाधिकारी नहीं हैं और उन्हें कोई संवैधानिक संरक्षण प्राप्त नहीं है। सरकार को यह अधिकार है कि वह प्रसाद पर्यंत आधार पर नियुक्त किए गए व्यक्तियों को बिना किसी पूर्व सूचना के हटा सकती है।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं का चयन किसी प्रतियोगी प्रक्रिया से नहीं हुआ था, बल्कि मनोनयन के आधार पर किया गया था। ऐसे मामलों में सरकार को यह अधिकार होता है कि वह अपनी मर्जी से नियुक्ति समाप्त कर दे।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि निष्कासन आदेश कानूनी रूप से उचित और निष्पक्ष है। अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मनोनीत सदस्य किसी संवैधानिक या कानूनी अधिकार के तहत पद पर बने रहने के हकदार नहीं हैं।