महासमुन्द

लोहरिन डोंगरी जंगल में मंदिर-सामुदायिक भवन के लिए जेसीबी चलने लगी
02-Dec-2024 8:58 PM
 लोहरिन डोंगरी जंगल में मंदिर-सामुदायिक भवन के लिए जेसीबी चलने लगी

जंगल काटने की अनुमति से पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ताओं में आक्रोश

‘छत्तीसगढ़’संवाददाता

पिथौरा, 2 दिसंबर। समीप के लोहरिन डोंगरी जंगल में मंदिर एवं सामुदायिक भवन निर्माण के लिए वन मण्डलाधिकारी द्वारा करीब  ढाई एकड़ हरे भरे पेड़ों से युक्त वन भूमि पर कब्जा कर निर्माण हेतु ग्रामीणों को अधिकार पत्र प्रदान कर दिया गया। जिला स्तर के अधिकारी द्वारा जंगल काटने की अनुमति देने से पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर आक्रोश व्यक्त किया है।

ज्ञात हो कि डीएफओ महासमुन्द द्वारा अनुमति देते ही जंगल सफाई के लिए जेसीबी चलने लगी है। सोशल मीडिया व्हाट्सएप्प पर डीएफओ के उक्त आदेश को निंदनीय बताते हुए उच्च अधिकारियों से जंगल मे अवैध कब्जा हेतु अधिकार पत्र रद्द कर वहां कटे जंगल के स्थान पर पुन: वृक्षारोपण करने की मांग की है। इन्होंने लिखा है कि वन विभाग का यह निंदनीय कृत्य की वे जंगल की जमीन का अतिक्रमण करवा रहे हंै।

यूजर ताराचंद पटेल एवं ललित मुखर्जी ने सवाल उठाते हुए कहा कि जंगलों की जमीन का उपयोग मंदिर निर्माण और सामुदायिक भवनों के लिए करना उचित है? वन विभाग की यह कार्रवाई न केवल गलत है, बल्कि भविष्य के लिए बेहद खतरनाक भी है। जंगल हमारी पृथ्वी के फेफड़े हैं, जो न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं बल्कि वन्यजीवों का घर भी हैं।अगर इस तरह से जंगलों की जमीन का अतिक्रमण होता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब जंगल खत्म हो जाएंगे, और हमारे पर्यावरण पर इसका भयावह असर पड़ेगा।

क्या हो सकते हैं इसके नतीजे?

वन्यजीवों का विनाश- वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नष्ट करना उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। पर्यावरणीय असंतुलन- जंगल कटने से तापमान में वृद्धि, बाढ़ और सूखा जैसी आपदाएं बढ़ेंगी। भविष्य की पीढिय़ों के साथ अन्याय- क्या हम अपनी आने वाली पीढिय़ों को एक प्रदूषित और बंजर धरती देना चाहते हैं?

समाज को चाहिए जागरूकता

ऐसे मुद्दों पर समाज को जागरूक होना होगा। जंगलों की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। मंदिर और सामुदायिक भवनों के लिए वैकल्पिक जगहों का उपयोग किया जाना चाहिए, न कि पर्यावरण का विनाश किया जाए। उन्होंने आम लोगों से अपील की है कि आइए, मिलकर जंगल बचाएं, जीवन बचाएं।

एक अन्य यूजर एवं पर्यावरण प्रेमी लोचन चौहान लिखते हंै कि वन विभाग के कुछ अफसर भ्रष्ट (करप्ट) है। महासमुन्द जिले में जिस  तरह जंगल कट रहे हंै। उससे वह दिन दूर नहीं, ज़ब जिलेवासी शुद्ध हवा एवं पानी के लिए तरस जाएंगे।

जिले के अफसर को कम से कम पर्यावरण के बिगड़ते हालात को देख कर निर्णय लेना चाहिए। अभी कोई ढाई एकड़ जमीन पर मंदिर एवं भवन की अनुमति दी गयी है, परन्तु यहां इसका क्षेत्रफल कई गुना अधिक होगा जो कि पर्यावरण के लिये घातक सिद्ध हो सकता है।

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