बस्तर

जगदलपुर, 31 मार्च। बस्तर अधिकार मुक्तिमोर्चा के मुख्य संयोजक नवनीत चाँद ने बयान जारी कर कहा कि बस्तर जिले में कोरोना संक्रमण फैलाव को देख राज्य सरकार की अनुशंसा पर जिला प्रशासन द्वारा 144 धारा प्रभावशील किया गया है। जिसके चलते किसी भी सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया गया है। वहीं आगामी 12 अप्रैल को बस्तर ब्लाक के चपका ग्राम पंचायत में गोपाल मेसर्स प्रायवेट लिमिटेड कंपनी के स्पंज आयरन प्लांट स्थापना हेतु, 5वीं अनुसूची के संवैधानिक प्रावधानों के तहत सर्वोच्च सभा ग्राम सभा का आयोजन कर प्लांट स्थापना हेतु आनपत्ति लेने के बजाए, पर्यावरण विभाग द्वारा सीधे जनसुनवाई की अधिसूचना जारी कर दी गई है। जिसकी तारीख 12 अप्रैल सुनिश्चित की गई है। जिसके पालन हेतु बस्तर प्रशासन द्वारा इस जनसुनवाई की तैयारी हेतु आदेश भी संबंधित प्रभावित ग्राम पंचयात को जारी किया जाना सरकार की तानाशाही रवैये को दर्शाता है।
आगे कहा कि बस्तर में हमेशा उद्योग स्थापना में नियमों व उनके परिपालन के दबावपूण तरीकों का समस्त बस्तरवासियों द्वारा लगातार आपत्ति दर्ज कराया गया है। वर्तमान में सभी प्रभावित ग्राम पंचायतों के लोगों व जिले वासियों को सम्पूर्ण प्रोजेक्ट की जानकारी देने व विरोध में बैठे ग्राम निवाशियो से सरकार द्वारा संवाद स्थापना के बजाय सीधे 5वीं अनुसूची के प्रवधानों दरकिनार कर पर्यावरण विभाग की तरफ से जनसुनवाई रखना सरकारी जल्दबाजी को दर्शाता है। नगरनार स्टील प्लांट की स्थापना व वर्तमान में उत्पन्न परिस्थितियां इस बात का सबूत है, जो बस्तरवासियों को उद्योगों के स्थापना हेतु जल्दबाजी में कोई भी कदम लेने से रोक रहे हंै।
उन्होंने कहा कि बस्तर में अन्य स्पंज आयरन प्लांट लगे व उनकी दूर दशा व उनका बस्तर के विकास व रोजगार के प्रति योगदान पर उदासीनता इस बात का परिचायक है कि बस्तर में प्लांट संचालन को लेकर कम्पनी बेहद गंभीर नहीं है। विडम्बना यह है कि वर्ष 1992 में सरकार द्वारा बस्तर जिले में उद्योगों की स्थापना हेतु हजारों एकड़ जमीन आबंटित की गई, पर विभागीय व प्रशासनिक उदासीनता व लापरवाही के चलते अवैध कब्जाधारियों के भेंट चढ़ गई है। वर्तमान में पूरे बस्तर में कुल आबंटित जमीनों का 10 फीसदी जमीन ही कब्जा मुक्त है। पर अधिक टुकड़ों में बंटे होने व उद्योगों की परिस्थितियों के हिसाब नहीं होने के कारण अब तक दर्जनों उद्योगपतियों द्वारा जमीन के अवलोकन के बाद भी उद्योग विभाग को आबंटित जमीन पर उद्योग स्थापना हेतु प्रस्ताव की दिलचस्पी नहीं दिखाई है व सरकार व प्रशासन द्वारा बस्तर में उद्योग स्थापना हेतु बार-बार निजी व वन भूमि का अधिग्रहण करने की कोशिश की जाती है, जो सरकार की नाकामी को दर्शाता है। निजी जमीन का विरोध करने वाले बस्तरवासियों को उद्योग विरोधी कह कर प्रचारित किया जाता है, जो पूरी तरह गलत है।
मुक्तिमोर्चा राज्य सरकार की कमजोर उद्योग नीतियों का विरोध करती है व अपील करती है। बस्तर में उद्योग को बढ़ावा मिले पर उद्योग विभाग की जमीनों पर स्थापना कर, न कि बस्तर वासियों की निजी जमीनों को बिना उनको विश्वास में लिए अधिग्रहण कर के। वर्तमान में चपका में पर्यावरण जनसुनवाई में कोविड व धारा 144 की परिस्थितियों को ध्यान में रख तत्काल रोक लगाई जाए। बस्तर वासियों को विश्वास में लेकर ही सरकार बस्तर में उद्योग स्थापना की पहल करें।