बलौदा बाजार

देखरेख नहीं होने से जीर्ण-शीर्ण हालत में सिंघनगढ़ का किला
07-May-2023 10:52 PM
देखरेख नहीं होने से जीर्ण-शीर्ण हालत में सिंघनगढ़ का किला

यह ऐतिहासिक किला सिंधना धुर्वा राजा ने बनवाया था-ग्रामीण

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बलौदाबाजार, 7 मई। जिले में पुरातत्व और पर्यटन के दर्जनों स्थल उचित देखरेख और प्रशासन के द्वारा ध्यान न दिए जाने से उपेक्षित पड़े हुए हैं। जो धीरे-धीरे जीर्ण शीर्ण हो रहे हैं। जिले के एकमात्र अभ्यारण बारनयापारा जंगल के बीच स्थित प्राचीन सिंघनगढ़ का किला भी इन्हीं में  से एक है। पुरातत्व विभाग पर्यटन विभाग और शासन प्रशासन की देखरेख के अभाव में पूरी तरह से जीर्ण शीर्ण हो गए हैं। ऐतिहासिक किले के विशेष को देखकर ही किले की भव्यता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। परंतु ध्यान न दिए जाने की वजह से किला तथा इससे संबंधित इतिहास भी अब धूमिल होता जा रहा है।

कसडोल सिरपुर मार्ग पर स्थित बरबसपुर ग्राम से बरबसपुर बार नयापारा अभ्यारण जाने के मार्ग पर बारनयापारा के 11 किलोमीटर पहले मार्ग से लगभग 4 किलोमीटर अंदर जंगल की ओर सिंघनगढ़ का प्राचीन किला स्थित है। किले तक जाने का मार्ग जितना दूरभर है उतना ही खतरनाक भी है। जंगल के अंदर 4 किलोमीटर तक पहाड़ पर चढऩे के दौरान प्रत्येक पल पहाड़ से चट्टान गिरने का भय रहता है। वही लकड़बग्घे, तेंदुआ, और भालू का यह इलाका प्राकृतिक रहवास है। लिहाजा इस इलाके में किसी भी पर जंगली जानवर से सामना होना सामान्य सी बात है। मार्ग इतना उबड़ खाबड़ और चट्टानी है कि दोपहिया वाहन तो दूर इस पर पैदल चलना भी बेहद दुश्वार है 4 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद ऊपर पठारी क्षेत्र में सिंघनगढ़ प्राचीन किला स्थित है।

पौन फीट के चौकोर हिट का भी ज्ञान था

सिंघनगढ़ किले के पास कई स्थानों पर नालियों वगैरह में पत्थरों के बजाय ईटों का इस्तेमाल किया गया है। किले के कुछ ईटों को नापे जाने का लगभग पौन फीट के यह ईट पूरी तरह से पकाए गए दिखाई देते हैं। जिसके आधार पर यह बात भी प्रतीत होता है कि उस समय के लोग भी ईटों का इस्तेमाल और ईट को पकाने की पूरी जानकारी देते थे। सिंघनगढ़ के किले के अवशेषों को देखकर सहज ही अंदाजा होता है कि यह अपने समय का बेहद खूबसूरत कीले रहा होगा। किले की सबसे बड़ी विशेषता है कि किले का निर्माण अभ्यारण के ऐसे स्थान पर किया गया है जहां से पूरा अभ्यारण स्पष्ट दिखाई देता है।

दो किलोमीटर के पठारी इलाके में है किला

जिस पहाड़ के सबसे ऊपर पठारी इलाके में सिंघनगढ़ का किला है वह इलाका लगभग 2 किलोमीटर लंबा चौड़ा पठारी इलाका है। किले में पहुंचने पर ही किला का लगभग 17, 18 फीट ऊंचा प्रवेश द्वार किले की भव्यता को स्पष्ट दर्शाता है। ठोस पत्थरों को बिना किसी जोड़ाई के एक के ऊपर दूसरे को जमा कर बनाए गए प्रवेश द्वार में बारीक नक्काशी भी स्पष्ट दिखाई देती है। पठारी इलाके में किले के अवशेष बहुत जीर्ण शीर्ण हालत में हैं। परंतु किले के पास कई प्राचीन प्रतिमाएं बावड़ी कक्ष आदि से किले की भव्यता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। किले के अंदर 4 फीट लंबी चौड़ी एक पत्थर की चौकी भी थी जिस पर बेहद सुंदर बारीक नक्काशी की गई है जिससे अज्ञात चोरों द्वारा लगभग 2 वर्ष पूर्व चोरी कर लिया है।

ग्रामीण किसी सिंधना धुर्वा राजा की बात कहते हैं

सिंघनगढ़ किले के आसपास स्थित वनग्रामों के लोग किले की बात पुरखों से सुने होने की बात करते हैं और वे बताते हैं कि किला किसी सिंधना धुर्वा राजा ने बनवाया था। सिंधना धुर्वा एक गोड़ राजा था जो अपनी प्रजा के बीच बेहद लोकप्रिय था। ग्रामीण बताते हैं कि सिंधना धुर्वा बेहद अनुशासित और न्यायिक राजा था जिससे प्रजा बहुत सम्मान और प्यार देती थी। सिंधनगढ़ किले के बारे में हैरत की बात यह है कि वर्षों पूर्व के इस किले के बारे में वन विभाग द्वारा पर्यटन विभाग के भी कई कर्मचारियों को किसी प्रकार की जानकारी नहीं है। अनुसूचित जनजाति के लोग द्वारा अवसर अवसर पर वहां पहुंच कर धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं परंतु अपने आप में पर्यटन और पुरातत्व के रहस्य की कई परतों को ओढ़े सिंघनगढ़ के किले तक गिने चुने ही लोग पहुंच पाए हैं।


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