अंतरराष्ट्रीय
काबुल. अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने इस देश की सूरत बदल दी है. पूरे अफगानिस्तान में लड़कियों की पढ़ाई पर पाबंदी लगी है. उन्हें बुर्के में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. वहीं इससे उलट तालिबान की हिप्पोक्रेसी भी सामने आई है. एक ओर तालिबानी राज में जहां अफगानी बहू-बेटियों पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं दी है. दूसरी ओर, तालिबानी नेता अपनी बेटियों को विदेशों में पढ़ा रहे हैं. उन्हें मेडिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दूसरे देशों में भेजा गया है. इसका कबूलनाना खुद तालिबान के मुख्य प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने किया है.
तालिबान के मुख्य प्रवक्ता सुहैल शाहीन मीडिया के सामने आकर अफगानिस्तान की महिलाओं पर लगने वाली नई नई पाबंदियों का ऐलान करते हैं. उन्होंने स्वीकार किया है कि अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध के बावजूद उनकी बेटियां स्कूल जाती हैं. उन्होंने टीवी एंकर पियर्स मॉर्गन के टॉक टीवी पर नए शो में यह खुलासा किया है.
सुहैल शाहीन के इस खुलासे के बाद तालिबान की हिप्पोक्रेसी जाहिर होती है कि एक तरह वो अफगानिस्तान की तमाम लड़कियों को इस्लामी आदेश के नाम पर मुर्ख बनाकर रखना चाहता है, लेकिन यही तालिबानी नेता अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखा रहे हैं, ताकि उनकी तरक्की हो सके.
टीवी एंकर पीयर्स मॉर्गन अनसेंसर्ड द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किए गए शो की एक क्लिप के मुताबिक, मॉर्गन ने तालिबान के प्रवक्ता से पूछा था कि क्या उनकी बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दी गई है. जिसके जवाब में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा, ‘हां बिल्कु्ल. वे हिजाब में दिख रही हैं और इसका मतलब है कि हमने अपने लोगों के लिए कड़े नियम नहीं बनाए हैं.’ टीवी शो में तनावपूर्ण बातचीत के दौरान पीयर्स मॉर्गन ने तालिबान के मुख्य प्रवक्ता और बड़े नेता सुहैल शाहीन को कहा, ‘आपकी बेटियों को शिक्षा मिलती है क्योंकि वे वही करती हैं जो आप उन्हें बताते हैं’. आपको
दोहा में पढ़ती है सुहैल शाहीन की बेटियां
बता दें, सुहैल शाहीन की दो बेटियां हैं और दोनों कतर की राजधानी दोहा में पढ़ाई करती हैं. इतना ही नहीं, जिस स्कूल में सुहैल शाहीन की बेटियां पढ़ती हैं, उसमें लड़कियां फुटबॉल तक खेलती हैं. लड़कियों को अलग अलग तरह की शिक्षा दी जाती है.
इन नेताओं की बेटियां भी विदेशों में ले रहीं तालीम
एक रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के दो दर्जन से अधिक शीर्ष नेता अपनी बेटियों को दोहा, पेशावर और कराची के स्कूलों में शिक्षा दे रहे हैं. इन नेताओं में स्वास्थ्य मंत्री कलंदर एबाद, उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई और प्रवक्ता सुहैल शाहीन शामिल हैं.
सोशल मीडिया पर तालिबान को बताया पाखंडी
सोशल मीडिया यूजर्स ने क्लिप पर प्रतिक्रिया देते हुए तालिबान को पाखंडी करार दिया है. एक ट्विटर यूजर ने कहा, ‘इस आदमी की बेटियां हिजाब पहनती हैं, और शिक्षा प्राप्त करती हैं. इस शख्स की एक बेटी कतरी फुटबॉल टीम में खेलती है और इस शख्स की एक बेटी का बॉयफ्रेंड भी है. लेकिन, अफगान लड़कियों के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य है और उनकी पढ़ाई-लिखाई बंद करवा दी गई है, और वे खेल नहीं खेल सकतीं’.
वहीं, एक और ट्विटर यूजर ने कहा, ‘तालिबान अपने बच्चों को स्कूल जाने और दूसरों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है.’ तालिबान के पिछले वादों के बावजूद अफगानिस्तान में स्कूल अभी भी लड़कियों के लिए फिर से नहीं खोले गए हैं कि वे अपनी शिक्षा फिर से शुरू कर पाएंगे. (news18.com)
लंदन। कोरोना की मार से ब्रिटेन उबर नहीं पा रहा है। लिहाजा, सरकारी खर्चों में कटौती करने के लिए ब्रिटेश सरकार करीब 91 लाख सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकालने जा रही है। इस लिहाज से ब्रिटेन में हर पांच सरकारी कर्मचारियों में से एक की नौकरी चली जाएगी।
ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने भी डेली मेल अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि हमें जीवन यापन की लागत को कम करने के लिए सरकारी खर्च को कम करना होगा।
बोरिस जॉनसन ने यह भी कहा कि कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि करीब 91 हजार सरकारी नौकरियों को खत्म करना होगा। इसका मतलब है कि ब्रिटेन में करीब 20 फीसदी सरकारी नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इससे सालाना 3.5 अरब ब्रिटिश पाउंड की बचत होगी।
ब्रिटेन सरकार के वरिष्ठ मंत्री जैकब रीस-मोग के मुताबिक यह कार्रवाई सरकारी खर्च को कम करने के मकसद से की जा रही है। जैकब रीस-मोग ने कहा- सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सरकारी नौकरियां उतनी ही पहुंच रही हैं, जितनी साल 2016 में थीं।
गौरतलब है कि ब्रिटेन सरकार कोरोना के बाद से ही अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश में लगी हुई है। सरकार का कहना है कि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है और सरकार जो भी कदम उठा रही है वह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए है। जैकब रीस-मोग ने कहा कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी लोग घर से काम कर रहे हैं।
जैकब रीस-मोग के अनुसार, हर साल 38,000 लोग सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में सही होगा कि सरकारी नौकरियों में होने वाली भर्तियों पर रोक लगा दी जाए। (cinanews.in)
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने अपना दूतावास 17 मई से कीव में फिर से खोलने का फैसला किया है. रूसी हमलों के दौरान 13 मार्च को भारत ने अपना दूतावास अस्थाई रूप से वारसा (पोलैंड) में स्थानांतरित कर दिया था. विदेश मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी कि आगामी 17 मई से भारत एक बार फिर से यूक्रेन की राजधानी कीव में अपने दूतावास का परिचालन शुरू करेगा.
कीव में दूतावास का परिचालन फिर से शुरू करने का निर्णय कई पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन की राजधानी में अपना मिशन दोबारा खोलने के फैसले के बीच आया है. यूक्रेन के खिलाफ रूस के सैन्य अभियान के बाद युद्धग्रस्त देश में तेजी से खराब होते हालात के मद्देनजर भारत ने कीव से दूतावास को पोलैंड स्थानांतरित करने का निर्णय किया था .
रूसी सैनिकों ने मारियुपोल में सबसे ज्यादा हमले किए
आपको बता दें कि राजधानी कीव के बाहरी इलाकों में रूसी सैनिक लगातार गोलाबारी कर रहे थे. उस समय उस इलाके में रूस के आक्रमण से मारियुपोल सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. 430,000 आबादी वाले शहर में लोगों का जीना मुहाल हो गया था. पूरे इलाके में रूसी सैनिकों की गोलीबारी की वजह से स्थानीय लोगों को मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम होना पड़ा था. रूसी सैनिकों के हमले में मारियुपोल में 1,500 से अधिक लोग मारे गए थे और शवों को सामूहिक कब्रों में दफनाने के प्रयास भी गोलाबारी के कारण बाधित हो रहे थे.
जेलेंस्की ने रूस पर देश को तोड़ने का आरोप लगाया था
इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने रूस पर उनके देश को तोड़ने और ‘‘आतंक के एक नए चरण’’ को शुरू करने और मारियुपोल के पश्चिम में एक शहर के महापौर को हिरासत में लेने का आरोप लगाया था. यूक्रेन के राष्ट्रपति वालोदिमीर जेलेंस्की ने जारी किया था वीडियो. इस वीडियो में संबोधन के दौरान कहा, ‘‘वे मारियुपोल पर 24 घंटे बमबारी कर रहे हैं, मिसाइलें दाग रहे हैं. यह नफरत है. वे बच्चों को मार रहे हैं.’’ (abplive.com)
संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान का निधन हो गया है. राष्ट्रपति मामलों के मंत्रालय ने शुक्रवार, 13 मई को संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक हिज हाइनेस शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान के निधन की पुष्टि की है. संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान का निधन पर दुख व्यक्त करते हुए 40 दिनों का शोक रखने की घोषणा की है. इसके अलावा सभी मंत्रालयों और प्राइवेट सेक्टर में तीन दिन तक कामकाज बंद रहेगा.
शेख खलीफा के निधन पर यूएई, अरब, इस्लामिक राष्ट्र और दुनियाभर के लोगों ने संवेदनाएं व्यक्त की है. शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान ने 4 नवंबर 2004 से संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक के रूप में काम किया.
शेख खलीफा ने अपने पिता मरहूम शेख जायद बिन सुल्तान अल नाहयान की जगह ली थी, जिन्होंने 1971 में अमीरात के अस्तित्व में आने के बाद दो नवंबर 2004 को अपने निधन तक यूएई के पहले राष्ट्रपति के रूप में सेवाएं दी थीं. 1948 में जन्मे शेख खलीफा यूएई के दूसरे राष्ट्रपति और अबू धाबी अमीरात के 16वें शासक थे. वह शेख जायद के सबसे बड़े बेटे थे.
यूएई का राष्ट्रपति बनने के बाद शेख खलीफा ने संघीय सरकार और अबू धाबी की सरकार के पुनर्गठन में बड़ी भूमिका निभाई थी. उनके शासन में यूएई ने विकास की नयी ऊंचाइयां भी छुईं. (abplive.com)
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति शेख़ खलीफ़ा बिन ज़ायेद अल नहयान का निधन हो गया है. यूएई सरकार ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है.
राष्ट्रपति शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायेद अबू धाबी के शासक थे. उनके निधन पर 40 दिनों का शोक रखा गया है.
यूएई के संविधान के मुताबिक उनके निधन के बाद उप-राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल-मख्तम कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभालेंगे. सात अमीरातों के शासक अगले 30 दिनों में मिलेंगे और नए राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे.
शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायेद 1948 में पैदा हुए थे और 2004 में सबसे अमीर अमीरात अबू धाबी में सत्ता में आए थे. वो यूएई के दूसरे राष्ट्रपति थे और अबू धाबी के 16वें शासक थे. उनके बाद उनके सौतेले भाई क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिना ज़ायेद अल-नहयान अमीरात के अगले शासक हो सकते हैं.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया, ''यूएई के राष्ट्रपति शेख खलीफ़ा बिना जायेद अल-नहयान के निधन पर गहरा दुख है. यूएई ने एक दूरदर्शक नेता और पाकिस्तान ने एक बड़ा दोस्त खो दिया है. हम सरकार और यूएई के लोगों के लिए दिल से संवेदना व्यक्त करते हैं.'' (bbc.com)
टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि ट्विटर को ख़रीदने की डील फ़िलहाल रोक दी गई है.
उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक स्टोरी को ट्वीट करते हुए लिखा, ''ट्वीटर डील अस्थायी तौर पर रुकी, स्पैम या फर्जी अकाउंट पांच प्रतिशत से कम यूजर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं इस आंकड़े को लेकर और जानकारी मिलना बाक़ी है."
रॉयटर्स की रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि ट्वीट के अनुमान के मुताबिक़ पहली तिमाही के दौरान ट्विटर पर स्पैम या फर्जी अकाउंट मोनेटाइज़ किए जा सकने वाले दैनिक सक्रिय यूजर्स के पाँच प्रतिशत से कम का प्रतिनिधित्व करते हैं. यानी पाँच प्रतिशत से कम ऐसे यूजर्स को मोनेटाइज़ किया गया है जो फ़र्जी अकाउंट हैं.
मोनेटाइज यूज़र वो होते हैं जिन्हें विज्ञापन दिया जाता है और उसके बदले उन्हें भुगतान होता है. ट्वीटर के करीब 22 करोड़ 90 लाख यूजर्स थे जिन्हें पहली तिमाही में विज्ञापन दिया गया था.
पिछले दिनों दुनिया के सबसे अमीर शख़्स एलन मस्क ने ट्विटर को 44 अरब डॉलर में खरीदने का ऑफ़र दिया है जिसे कंपनी ने स्वीकार कर लिया था. (bbc.com)
-नितिन श्रीवास्तव
श्रीलंका में हालात बेहतर होने से कहीं दूर हैं, बजाय इसके कि गुरुवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई है.
पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे अब इस्तीफ़ा दे चुके हैं. वे परिवार के साथ देश के उस पूर्वी इलाक़े में जा बैठे हैं, जहाँ वे आधिकारिक दौरे भी कम ही किया करते थे.
महिंदा के भाई गोटाबाया राजपक्षे अभी भी देश के राष्ट्रपति हैं और बढ़ते हुए विरोध के बावजूद सत्ता छोड़ने को तैयार नही हैं.
कोलंबो के एक मैजिस्ट्रेट ने महिंदा राजपक्षे के परिवार समेत 13 लोगों के ऊपर देश से बाहर न जाने का ट्रैवल बैन भी लगा दिया है.
उनके बेटे नमल राजपक्षे ट्वीट के ज़रिए कह रहे हैं, "देश में नफ़रत और हिंसा फैलाने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए और उनके ख़िलाफ़ भी जिन्होंने सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया और उनके ख़िलाफ़ भी जिन्हें बेक़ाबू भीड़ ने निशाना बनाया था."
बात है 9 मई की, जगह थी कोलंबो के सबसे महंगे गॉल स्ट्रीट इलाक़े के सबसे पॉश एड्रेस, टेम्पल ट्रीज़. महिंदा राजपक्षे का आधिकारिक निवास.
इसी के बाहर महिंदा राजपक्षे और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ महीने भर से शांतिपूर्ण विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच भिड़ंत हुई थी.
42 साल की नूरा भी पिछले कई हफ़्तों से श्रीलंका के बिगड़े हालात को लेकर सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रही हैं. उस रात को याद कर वे अब बेचैन हो उठती हैं.
वे कहती हैं, "हम लोग तो गॉल फ़ेस पर धरना स्थल पर ही बैठे थे. फ़ेसबुक पर मैसेज आने शुरू हुए कि राजपक्षे समर्थकों की बड़ी भीड़ हमारी तरफ़ बढ़ रही है. बस उनके घर के पास ही वे आकर हमें मारने-पीटने लगे. मैं अकेली महिला थी क़रीब दो दर्जन लोगों मेरे शरीर को दबाया, कपड़े खींचे और आगे बढ़ गए,"
ये बताते हुए नूरा की आँखे नम हो चुकीं थीं.
उस सदमे को भुलाने की कोशिश करते हुए नूरा फिर से गॉल फ़ेस पर प्रदर्शनकारियों के साथ बैठी हुई हैं और उनकी माँग है, "राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफ़े से कम में कोई यहां से नहीं हिलेगा."
उस रात की हिंसा के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन फिर भी लोगों को ग़ुस्सा नहीं थमा और अगले दिन यानी मंगलवार शाम तक सत्ताधारी पार्टी के लोगों के ख़िलाफ़ मुहिम जारी रही.
तब से राजधानी कोलंबो में कर्फ़्यू लगा दिया गया, जिसमें गुरुवार को सात घंटे की छूट दी गई.
श्रीलंका में गहरा चुके आर्थिक संकट से निबटने में सरकार की नाकामी के ख़िलाफ़ होने वाले प्रदर्शन फिर से तेज़ी पकड़ रहे हैं. गुरुवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ तो ली लेकिन ज़्यादातर लोग इससे बहुत सहमत नहीं दिख रहे हैं.
श्रीलंका के सबसे सफलतम क्रिकेटरों में से एक कुमार संगकारा की पत्नी येहाली भी लोगों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए पहुँची थीं.
उन्होंने कहा, "हम लोग इस देश में सिर्फ़ शांति चाहते हैं और कुछ नहीं. ये प्रदर्शनकारी बहुत प्यारे और शांतिपसंद हैं. मैं यहाँ इसलिए हूँ, क्योंकि ये हमारे देश के भविष्य हैं."
महिंदा राजपक्षे को कभी सिंहला बहुसंख्यक 'वॉर हीरो' के तौर पर देखा जाता था. उनके सिर पर देश में हिंसक 'तमिल फ़्रीडम' की मुहिम चलाने वाली एलटीटीई को जड़ से मिटाने का सेहरा भी बंधता रहा है.
लेकिन जानकारों को लगता है कि महिंदा और उनके परिवार ने देश पर जिस तरह से राज किया, वो लोगों को अखर रहा है.
कोलंबो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल इकोनोमी के प्रोफ़ेसर फ़र्नांडो के मुताबिक़, "आप क़र्ज़ लेते गए, फिर उस पैसे का क्या हुआ साफ़ तौर पर पता नहीं चला. साथ ही आपने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि आपके सरकारी ट्रेज़री में विदेशी मुद्रा ख़ाली होती चली गई. क्या कह कर अब लोगों का ग़ुस्सा ठंडा कीजिएगा?"
श्रीलंका के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि ग़ुस्सा हर तबके, हर समुदाय और हर उम्र के लोगों में दिख रहा है.
गॉल फ़ेस प्रदर्शन स्थल से थोड़ी दूर एक टेंट के भीतर कुछ ईसाई सिस्टर्स बैठीं मिली. पता चला कि वे एक महीने से यहाँ हैं और होली फ़ैमिली चर्च से जुड़ी हुई हैं.
उनमें से एक सिस्टर शिरोमी ने कहा, "हम लोगों को न कोई लाभ चाहिए, न कोई फ़ायदा. बस ये देखना असंभव होता जा रहा था कि देश गर्त में जा रहा है. 9 मई को जो हुआ वो सबसे शर्मनाक था. ग़ुस्साए हुए राजनीतिक समर्थकों ने निहत्थे लोगों को निशाना बनाया. मैंने ख़ुद देखा है कि कैसे महिलाओं के साथ बदसलूकी हुई और कैसे युवा छात्रों को घसीटा गया. वरना उनके विरोध में देशभर में ये ग़ुस्सा क्यों फैलता?".
हक़ीक़त यही है कि आज श्रीलंका में खाने-पीने के सामान, दूध, गैस, केरोसिन तेल और दवाओं जैसी ज़रूरी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. पेट्रोल पंप ख़ाली पड़े हैं, क्योंकि देश के पास बाहर से तेल आयात करने के बदले देने के लिए डॉलर नहीं हैं.
नूरा नूरा ने आख़िर में कहा, "आख़िर हमारा देश कैसे ख़राब हो गया. बिजली नहीं, पानी नहीं, पेट्रोल नहीं, खाना नहीं. हमारे बच्चों के पास पैसा नहीं. अगर अब कुछ नहीं हुआ तो हम कभी भी पहले वाला श्रीलंका नहीं हो सकेंगे." (bbc.com)
सैन फ्रांसिस्को, 13 मई । सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल ने कंपनी के दो टॉप अधिकारियों को पद से हटा दिया है और कंपनी में नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी है. ट्विटर ने गुरुवार को पुष्टि की कि दो वरिष्ठ अधिकारियों को बाहर निकालने की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है और कंपनी में अधिकांश हायरिंग को रोक दिया गया है. यह कार्रवाई तब हुई है, जब एलन मस्क इस वैश्विक मैसेजिंग प्लेटफॉर्म के नए मालिक बनने की ओर अग्रसर हैं.
ट्विटर के एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी AFP को बताया कि कंपनी में रिसर्च, डिजाइन और इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को लीड करने वाले जनरल मैनेजर कायवन बेकपोर और प्रोडक्ट हेड ब्रूस फाल्क, दोनों पद छोड़ रहे हैं.
इसबीच, पितृत्व अवकाश पर चल रहे बेकपोर ने कहा कि उन्हें सैन फ्रांसिस्को स्थित टेक कंपनी से हटा दिया गया है. उन्होंने ट्वीट किया, "सच्चाई यह है कि ट्विटर छोड़ने की कल्पना कब और कैसे हुआ, पता नहीं, लेकिन यह मेरा निर्णय नहीं है." उन्होंने आगे कहा, ट्विटर प्रमुख पराग अग्रवाल ने "मुझे यह बताने के बाद पद छोड़ने को कहा कि वह टीम को एक अलग दिशा में ले जाना चाहते हैं.
ट्विटर ने यह भी पुष्टि की है कि इस सप्ताह से प्रभावी, व्यावसायिक-महत्वपूर्ण भूमिकाओं को छोड़कर सभी तरह की नियुक्तियों को रोक रहा है.
ट्विटर को खरीदने के लिए एलन मस्क के 44 अरब डॉलर के सौदे की घोषणा पिछले महीने की गई थी, लेकिन अभी भी इसके लिए शेयरधारकों और नियामकों के समर्थन की जरूरत है. 2022 के अंत तक इस अधिग्रहण के पूरा होने की उम्मीद है.
एलन मस्क के पूर्ण स्वामित्व में ट्विटर आने से पहले ही उन्होंने ऐलान किया है कि वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर लगाए गए प्रतिबंध हटा सकते हैं. (ndtv.com)
कोलंबो, 13 मई । श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि वह अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ करीबी संबंध बनाने को लेकर आशान्वित हैं और उन्होंने देश की आर्थिक सहायता करने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया। श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
विक्रमसिंघे (73) ने देश की कर्ज से दबी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और राजनीतिक उथल-पुथल को खत्म करने के उद्देश्य से बृहस्पतिवार को श्रीलंका के 26वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली।
विक्रमसिंघे ने उनके देश की भारत द्वारा की गयी आर्थिक सहायता का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘मैं करीबी संबंध चाहता हूं और मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं।’’
उनकी यह टिप्पणियां शपथ लेने के बाद गत रात यहां आयोजित एक धार्मिक समारोह में आयी।
भारत ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक श्रीलंका को तीन अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है।
भारत ने बृहस्पतिवार को कहा था कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार गठित नयी श्रीलंका सरकार के साथ काम करने को लेकर आशान्वित है तथा द्वीप राष्ट्र के लोगों के प्रति नयी दिल्ली की प्रतिबद्धता बरकरार रहेगी।
यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। देश में सोमवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया था। महिंदा ने अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले को लेकर भड़की हिंसा के बाद इस्तीफा दिया था।
इस हमले के बाद राजपक्षे के वफादारों के खिलाफ व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई थी, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गयी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए।
विक्रमसिंघे ने कहा कि उनका ध्यान आर्थिक संकट से निपटने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस समस्या को सुलझाना चाहता हूं ताकि पेट्रोल, डीजल और बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।’’
श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘मैंने जिस काम का बीड़ा उठाया है, मैं वह करूंगा।’’
यह पूछने पर कि क्या 225 सदस्यीय संसद में उनका प्रधानमंत्री पद बरकरार रह सकता है क्योंकि उनके पास केवल एक सीट है, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘जब बहुमत साबित करने की बात आएगी तो मैं साबित करूंगा।’’
देशभर में प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सचिवालय के समीप चल रहा मुख्य प्रदर्शन जारी रहने दिया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘अगर प्रदर्शनकारी चाहेंगे तो मैं उनसे बात करूंगा।’’
यह पूछने पर कि क्या उन्हें इस्तीफा देने की मांग को लेकर प्रदर्शन की आशंका है, इस पर विक्रमसिंघे ने कहा कि वह उनका सामना करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘अगर मैं आर्थिक संकट से निपटने का जिम्मा उठा सकता हूं तो मैं इससे भी निपट सकता हूं।’’
सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समागी जन बलवेगया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों के सदस्यों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है।
हालांकि कई वर्ग नए प्रधानमंत्री के रूप में विक्रमसिंघे की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं।
जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना) और तमिल नेशनल एलायंस ने दावा किया कि उनकी नियुक्ति असंवैधानिक है।
पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी ने कहा कि उसकी केंद्रीय समिति फैसला लेने के लिए शुक्रवार सुबह बैठक करेगी।(भाषा)
यूक्रेन और रूस के बीच होते टकराव के चलते अब तक 48 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है, अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही यह आंकड़ा 70 लाख पर पहुंच जाएगा
By Lalit Maurya
युद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओयुद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओ युद्ध से पहले मध्य यूक्रेन के कीव ओब्लास्ट में एक अनाज प्रसंस्करण कारखाने के निर्माण स्थल पर काम करते श्रमिक; फोटो: जेन्या सेविलोव/ एफएओ
कहते हैं युद्ध से किसी का भला नहीं होता। ऐसा ही कुछ यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते टकराव में भी सामने आया है। कल अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 48 लाख लोगों के रोजगार छिन गए हैं। यह यूक्रेन में संघर्ष से पहले कुल रोजगार का करीब 30 फीसदी है।
इतना है नहीं यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर यह टकराव इसी तरह और अधिक बढ़ता है, तो इससे रोजगार को होने वाले नुकसान का आंकड़ा बढ़कर 70 लाख तक जा सकता है। मतलब कि इसकी वजह से करीब 43.5 फीसदी लोग बेरोजगार हो जाएंगें।
विश्लेषण में इस बात की भी सम्भावना व्यक्त की गई है कि यदि युद्ध तत्काल रोका दिया जाए तो इन परिस्थितियों से जल्द उबरा जा सकता है। यदि ऐसा हो पाता है तो अनुमान है कि इसकी मदद से 34 लाख रोजगार को फिर से बहाल किया जा सकेगा और रोजगार को होने वाली हानि को 8.9 फीसदी पर सीमित रख पाने में सफल रहेंगें।
गौरतलब है कि 24 फरवरी को शुरू हुए रूसी आक्रमण के बाद से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है। इस दौरान करीब 52 लाख से अधिक लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है, जिनमें अधिकतर महिलाएं, बच्चे और 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग हैं।
पता चला है कि कुल शरणार्थियों में लगभग 27 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र काम करने की है। अनुमान है कि इनमें से 43 फीसदी यानी करीब 12 लाख या तो पहले काम कर रहे थे या फिर उन्हें अपने रोजगार को छोड़ शरणार्थी बनने को मजबूर होना पड़ा है।
सिर्फ यूक्रेन ही नहीं अन्य देशों में भी बढ़ सकती है बेरोजगारी
संकट की इस घड़ी में यूक्रेन सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, जिससे राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को जारी रखा जा सके। इसके तहत उन लोगों को भी मदद देने की कोशिश की जा रही है जो लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
देखा जाए तो यूक्रेन में छाए इस संकट से उसके पड़ोसी देशों मुख्य रूप से हंगरी, मोल्दोवा, पोलैण्ड, रोमानिया और स्लोवाकिया में भी रोजगार पर असर पड़ा है। आईएलओ का कहना है कि यदि टकराव की स्थिति और लम्बे समय तक जारी रहती है तो उससे यूक्रेनी शरणार्थियों को लम्बे समय के लिए दूसरे देशों में शरण लेनी होगी, जिसका असर उसके पड़ोसी देशों में रोजगार और उनकी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर पड़ेगा। ऐसे में कुछ देशों में बेरोजगारी बढ़ सकती है।
युद्ध के हालात कितने बदतर हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यूक्रेन की सरकार को अपने नागरिकों से युद्ध में शामिल होने की अपील करनी पड़ी थी। विडम्बना देखिए कि यूक्रेन में जिन वैज्ञानिकों के हाथों में कभी कलम और लैब में परखनली हुआ करती थीं अब उन हाथों में घातक हथियार दिख रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ रूस के आर्थिक क्षेत्र और रोजगार में आए व्यवधान का असर मध्य एशिया के उन देशों में भी देखा जा सकता है, जिनकी अर्थव्यवस्था रूस पर निर्भर है। इसके चलते कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों पर असर पड़ रहा है। गौरतलब है कि रूस में बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए आते हैं जोकि अपनी आय का बड़ा हिस्सा अपने देशों को भेजते हैं, लेकिन इस युद्ध के चलते इसपर असर पड़ा है।
युद्ध का असर भारत में भी कृषि उत्पादों पर पड़ा है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत करीब 70 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन और 20 फीसदी रूस से आयात करता था, लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद आयात पर गंभीर असर पड़ा है।
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि टकराव जारी रहने की स्थिति और रूस द्वारा लगाई पाबन्दियों से प्रवासी श्रमिकों के रोजगार पर असर हो सकता है, जिससे मध्य एशियाई देशों को आर्थिक क्षति हो सकती है। इस युद्ध का दंश वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी झेलना पड़ रहा है, इसके चलते कोविड-19 महामारी से उबरने की डगर और कठिन हो गई है।
इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर रोजगार, आय और सामाजिक सुरक्षा पर असर पड़ने की सम्भावना है। इस युद्ध का असर दुनिया भर के कई देशों में खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ा है, जिनमें अफ्रीका भी शामिल हैं। ऐसे में हम यही आशा करते हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच चलता यह युद्ध जल्द से जल्द थम जाए, जिससे लोगों की जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट आए। (downtoearth.org.in/hindistory)
संयुक्त राष्ट्र, 13 मई । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान की महिलाओं के खिलाफ तालिबान के हालिया दमनकारी फरमान पर चर्चा करने के लिए बृहस्पतिवार को बंद कमरे में बैठक की।
इस दौरान, नॉर्वे द्वारा तैयार किए गए बयान में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियों को पलटने का आह्वान किया गया।
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सिर से लेकर पैर तक बुर्के में ढके रहने का शनिवार को आदेश दिया। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर बाहर जरूरी काम नहीं है तो महिलाओं के लिए बेहतर होगा कि वे घर में ही रहें। इसके साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तालिबान द्वारा कट्टर रुख अपनाने की आशंका को बल मिला है।
उल्लेखनीय है कि तालिबान ने वर्ष 1996-2001 के पिछले शासन काल में भी महिलाओं पर इसी तरह की सख्त पाबंदी लगाई थी।
तालिबान ने कक्षा छह के बाद लड़कियों की शिक्षा पर पहले ही रोक लगा दी है और महिलाओं को अधितकर नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा यदि महिलाओं के साथ कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं है, तो वे विमान में यात्रा नहीं कर सकतीं।
संयुक्त राष्ट्र में नॉर्वे की उप राजदूत ट्रिने हीमरबैक ने परिषद की बैठक से पहले संवाददाताओं से कहा कि तालिबान की नीतियां देश की ‘‘प्रलयकारी आर्थिक एवं मानवीय स्थिति’’ से निपटने के बजाय महिलाओं एवं लड़कियों के दमन पर केंद्रित हैं।
इस बीच, महिलाओं, शांति एवं सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अनौपचारिक विशेषज्ञ समूह के सह-अध्यक्षों आयरलैंड और मैक्सिको ने बृहस्पतिवार को परिषद के सदस्यों को पत्र लिखकर तालिबान के फैसले को भय पैदा करने वाला बताया था।
संयुक्त राष्ट्र में आयरलैंड की राजदूत गेराल्डिन बायरन नैसन ने संवाददाताओं से कहा कि महिलाएं और लड़कियां ‘‘अब कुछ सबसे कठोर प्रतिबंधों का सामना कर रही हैं,’’ और तालिबान की नीतियों की निंदा करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय एवं सुरक्षा परिषद की नैतिक जिम्मेदारी है।(भाषा)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 13 मई। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मनाने के लिए भारतीय अमेरिकियों द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापाी ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के औपचारिक उद्घाटन में 15 से अधिक प्रभावशाली सांसद शामिल हुए।
‘एशियाई विरासत माह’ के दौरान आयोजित इस कार्यक्रम में क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों के सैकड़ों भारतीय-अमेरिकियों ने शिरकत की।
इस अवसर पर सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने समुदाय के नेताओं से अपील की कि वे अमेरिकी संसद तथा अन्य निर्वाचित निकायों में और भारतीय-अमेरिकियों को चुने जाने में मदद करें।
न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और न्यू इंग्लैंड’ के ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन’ (एफआईए) द्वारा यूएस कैपिटल (अमेरिकी संसद) में आयोजित कार्यक्रम में फ्रैंक पालोने और शीला जैक्सन ली समेत 15 से अधिक प्रतिष्ठित सांसदों ने शिरकत की।
फेडरेशन के अंकुर वैद्य ने बताया कि एफआईए स्वतंत्रता दिवस के आसपास न्यूयॉर्क में एक बड़ा समारोह करने की योजना बना रहा है और इस दौरान ‘टाइम्स स्क्वॉयर’ पर झंडा भी फहराया जाएगा। (भाषा)
सैन जुआन (प्यूर्टो रिको), 13 मई। प्यूर्टो रिको के पास एक द्वीप के उत्तर में एक नौका के पलटने से 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि 31 अन्य लोगों को बचा लिया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
ऐसा संदेह है कि नौका में शरणार्थी सवार थे।
अमेरिकी तटरक्षक बल के प्रवक्ता रिकॉर्डो कॉस्ट्रोडैड ने बताया कि नौका पर सवार लोगों की सटीक संख्या का अभी पता नहीं चल पाया है। व्यापक स्तर पर बचाव कार्य अब भी जारी है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हम अधिक से अधिक लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।’’
उन्होंने बताया कि हैती के कम से कम आठ नागरिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, हालांकि नौका पर सवार सभी लोग किस देश के नागरिक थे इसकी तत्काल कोई जानकारी नहीं मिल गई है।
अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा के एक हेलीकॉप्टर ने पलट गई नौका का बृहस्पतिवार को पता लगाया था।
नौका डेसचेओ के द्वीप पर नजर आई थी। इस द्वीप पर लोग नहीं रहते हैं।
अमेरिकी तट रक्षक बल ने बताया कि बचाए गए लोगों में 20 पुरुष और 11 महिलाएं हैं।
अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा के अनुसार, अक्टूबर 2021 से मार्च तक, 571 हैती नागरिकों और डोमिनिकन गणराज्य के 252 लोगों को प्यूर्टो रिको और यूएस वर्जिन आइलैंड्स के आसपास के समुद्री क्षेत्र से हिरासत में लिया गया। वित्त वर्ष 2021 में, 310 हैती नागरिकों और 354 डोमिनिकन लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि वित्त वर्ष 2020 में 22 हैती नागरिक और 313 डोमिनिकन लोगों को पकड़ा गया था।
गौरतलब है कि हैती और डोमिनिकन गणराज्य के लोग अपने देशों में हिंसा तथा गरीबी से परेशान हैं और वहां से निकलने का लगातार प्रयास करते हैं। (भाषा)
रोम, 13 मई। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बात करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि एक समझौता होना चाहिए लेकिन शर्त के रूप में कोई ‘अल्टीमेटम’ नहीं होना चाहिए।
जेलेंस्की ने बृहस्पतिवार रात प्रसारित होने वाले एक साक्षात्कार में इतालवी आरएआई टेलीविजन से कहा कि यूक्रेन कभी भी क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं देगा, जिस पर 2014 में मॉस्को ने कब्जा कर लिया था।
प्रसारण से पहले साक्षात्कार के जारी अंशों के अनुसार, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा, "क्रीमिया की हमेशा अपनी स्वायत्तता रही है, इसकी संसद है, लेकिन यूक्रेन के भीतर।"
उन्होंने कहा कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बात करने के लिए तैयार हैं और एक समझौता होना चाहिए लेकिन शर्त के रूप में कोई ‘अल्टीमेटम’ नहीं होना चाहिए। (भाषा)
अमेरिका में एक अजीबोग़रीब घटना हुई है. वहां की मीडिया फ़्लोरिडा में फ़्लाइट के उस पैसेंजर की तलाश कर रही है जिसने पायलट के बेहोश होने के बाद विमान को सुरक्षित लैंड करा दिया.
उस अज्ञात व्यक्ति की आवाज़ फ़्लाइट रिकॉर्डिंग में सुनी गई जो ट्रैफ़िक कंट्रोल से कह रहा है कि ''उन्हें नहीं मालूम कि प्लेन को कैसे रोका जाए.''
एक एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने उस शख़्स को गाइड किया और फिर उस व्यक्ति ने पाम बीच इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंगलवार को विमान सुरक्षित उतार दिया.
एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर दरअसल नए पायलटों को ट्रेनिंग देने का काम भी करते हैं और उनका अनुभव इस बार प्लेन को सुरक्षित लैंड कराने में काम आया.
प्लेन के एयरपोर्ट पर उतरने के बाद ये दोनों लोग (ट्रैफ़िक कंट्रोलर और पैसेंजर) एयरपोर्ट पर मिले और गले भी लगाया, लेकिन एक-दूसरे को नाम नहीं बताया.
"यहां हालात बेहद गंभीर है. मेरा पायलट काम नहीं कर पा रहा. वे बेहोश हो गया है." उस शख़्स को नौ हज़ार फ़ीट की ऊंचाई से रेडियो पर ऐसा कहते सुना गया.
जब एटीएफ़ ने उनसे उनकी पोज़ीशन पूछी तो उन्होंने कहा, ''मुझे कुछ नहीं पता.'' उन्होंने कहा कि वो अपने सामने फ़्लोरिडा का तट ही देख पा रहे हैं.
उनके ऐसा कहने पर एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने उनसे कहा, ''विंग्स लेवल मेंटेन करें और तट के साथ-साथ उड़ते रहें उत्तर या दक्षिण की ओर. हम आपको लोकेट करने की कोशिश कर रहे हैं.''
एटीएफ़ के साथ बातचीत में एक जगह वो कहते हैं कि ''मुझे नेविगेशन स्क्रीन भी समझ नहीं पा रहा. इसमें कई तरह की सूचनाएं हैं. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं.''
''मुझे ये नहीं पता कि प्लेन को कैसे रोकेंगे. मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम.''
पाम बीच इंटरनेशनल एयरपोर्ट के एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर रॉबर्ट मॉर्गन उस समय ब्रेक पर थे जब एक सहकर्मी ने उन्हें इसकी जानकारी दी.
रॉबर्ट लंबे समय से फ़्लाइट इंस्ट्रक्टर रहे हैं और एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल का उन्हें 20 साल का तज़ुर्बा है. हालांकि सिंगल इंजन वाले इस सेस्ना 208 विमान को उड़ाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं रहा है. लेकिन एयरक्राफ़्ट के कॉकपिट का मैप देख कर वो विमान उड़ाने वाले को निर्देश दे सकते थे.
रॉबर्ट मॉर्गन ने एक टीवी चैनल को बताया, ''मैं जानता था कि प्लेन किसी अन्य प्लेन की तरह ही उड़ रहा है. मुझे ये भी पता था कि विमान को संचालित करने की कोशिश कर रहे व्यक्ति को शांत रखना है. उसे रनवे पर नज़र रखने के लिए कहना है और फिर ये बताना है कि कैसे पावर कम कर विमान को नीचे लाना है.''
मॉर्गन याद करते हैं,''मुझे पता चलता उससे पहले ही उन्होंने कहा कि 'मैं लैंड कर चुका हूं. विमान को बंद कैसे करूं'.''
डब्लूपीबीएफ़-टीवी के एक रिपोर्टर ने बीबीसी को बताया कि उसके बाद पैसेंजर और रॉबर्ट मॉर्गन रनवे पर मिले. उन्हें एक-दूसरे को गले लगाया और एक फ़ोटो भी लिया. लेकिन रोमांच में मॉर्गन उनका नाम भी नहीं पूछ पाए.
उस पैसेंजर का नाम रेडियो पर हुई बातचीत में भी रिकॉर्ड नहीं हुआ है.
'वो भावुक पल था'
रॉबर्ट मॉर्गन ने सीएनएन को बताया, ''उस वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं रो पड़ूंगा क्योंकि मैं बहुत ज़्यादा रोमांचित महसूस कर रहा था.''
''वो एक भावुक पल था. उन्होंने कहा कि वो बस घर जाकर अपनी प्रेग्नेंट पत्नी से मिलना चाहते हैं और ये सुनकर मुझे और भी अच्छा लगा.''
''मेरी नज़रों में वो हीरो थे. ट्रैफ़िक कंट्रोल में मैं तो बस अपना काम कर रहा था.''
विमान की लैंडिंग के बाद रिकॉर्डिंग में रॉबर्ट मॉर्गन को पायलटों से पैसेंजर के हैरतअंगेज़ कारनामे की तारीफ़ करते सुना जा सकता है.
अमेरिका के फ़ेडरल एविएशन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि प्लेन निजी तौर कनेक्टिकट में रजिस्टर्ड था.
फ़्लाइट ट्रैकर फ़्लाइटअवेयर के मुताबिक़, विमान ने एक घंटा पहले बहामा के मार्श आइलैंड से उड़ान भरी थी.
उड़ान के दौरान बीमार हुए पायलट को पाम बीच के अस्पताल में ले जाया गया है.
फ़ेडरल एविएशन ऐडमिनिस्ट्रेशन ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है. (bbc.com)
-सरोज सिंह
भारत और श्रीलंका के बीच यूं तो तुलना नहीं की जा सकती. अर्थव्यवस्था के लिहाज से श्रीलंका बहुत ही छोटा मुल्क है और आबादी भी भारत की तुलना में बहुत कम है.
बावजूद इसके सोशल मीडिया पर इन दिनों कई ऐसे पोस्ट देखे जा सकते हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि कुछ दिन पहले श्रीलंका में वही कुछ हो रहा था जो भारत में इन दिनों हो रहा है. तो क्या भारत भी श्रीलंका की राह पर है?
इस सवाल के जवाब में कई स्क्रीनशॉट शेयर किए जा रहे हैं जिसमें श्रीलंका की डेटलाइन से ख़बरें छपी है जिसमें हलाल बहिष्कार, मुसलमानों की दुकानों और मस्ज़िदों पर हमले और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा की खबरें हैं.
हालांकि इन सब ख़बरों का श्रीलंका संकट में कितना हाथ है, इसके बारे में जानकारों की राय अलग-अलग है, लेकिन एक बात जिसपर जानकारों में आम राय है वो है इस संकट से लेने वाला सबक.
श्रीलंका में आज जो कुछ हो रहा है वो कहानी आर्थिक संकट के रूप में शुरू हुई थी. लेकिन इस आर्थिक संकट का असर राजनीतिक संकट के रूप में अब दुनिया के सामने है.
श्रीलंका - भारत
पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार
इस लिहाज़ से श्रीलंका से भारत क्या सीख सकता है, उसे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है - आर्थिक सबक और राजनीतिक सबक.
सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर पूलाप्री बालकृष्ण कहते हैं दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाएं वैसे तो अलग होती हैं, लेकिन कुछ फॉर्मूले ऐसे होते हैं जो सभी पर लागू होते हैं.
उदाहरण के लिए अगर खाने का ज़रूरी सामान किसी देश में पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है, तो उस देश को बाहर से वो सामान आयात करना पड़ता है, जिसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार की ज़रूरत होती है. विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए उस देश को कुछ निर्यात करने की ज़रूरत पड़ती है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
प्रोफ़ेसर पूलाप्री बालकृष्ण कहते हैं, "आर्थिक मोर्चे पर जो सबसे पहला सबक भारत को श्रीलंका संकट से लेने की ज़रूरत है वो है विदेशी मुद्रा भंडार पर नज़र रखने की. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुछ महीनों में गिरा ज़रूर है, लेकिन फिलहाल वो साल भर के आयात बिल के भुगतान करने के लिए काफ़ी है. इस लिहाज से भारत के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.
लेकिन लंबे अंतराल में केंद्र सरकार को इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत सरकार अपने आयात बिल को कैसे कम कर सके."
पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
आयात बिल घटाने की ओर क़दम
भारत के लिए ज़रूरी है कि आने वाले दिनों में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत, कोयला के लिए विदेशी निर्भरता को कम करें साथ ही साथ खाने के तेल का उत्पादन किस तरह से देश में ही बढ़ाया जाए इस तरफ़ ध्यान देने की ज़रूरत है. इससे आयात बिल को कम करने और आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी.
आँकड़ों के मुताबिक़ भारत अपनी ज़रूरत का कुल 80-85 फ़ीसदी तेल बाहर के मुल्कों से आयात करता है. पिछले कुछ दिनों से रूस-यूक्रेन संकट के बीच तेल के दामों में उछाल देखा गया. अगर भारत इसी तरह से तेल के लिए दुनिया के मुल्कों पर निर्भर रहा और तेल के दाम बढ़ते ही रहे, तो विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने में वक़्त नहीं लगेगा. इस वजह से भारत को तेजी से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर निर्भरता बढ़ानी होगी. ये रातों रात नहीं हो सकता, इसके लिए लंबी प्लानिंग की ज़रूरत होगी.
यही हाल कोयले के क्षेत्र में भी है. बिजली के लिए भारत आयात किए गए कोयले पर निर्भर है. हाल के दिनों में कुछ राज्यों ने बिजली संकट का भी सामना किया.
खाने के तेल और सोना - इन दोनों की भी कहानी कोयला और पेट्रोल-डीजल से अलग नहीं है. भारत के आयात बिल का बड़ा हिस्सा इन पर भी ख़र्च होता है.
इस निर्भरता को कम करने के लिए सरकार के साथ साथ जनता को भी पहल करने की ज़रूरत है.
श्रीलंका संकट का दूसरा पहलू राजनीतिक भी है. उस लिहाज से भी कई ऐसी चीज़ें हैं जो भारत सीख सकता है.
सत्ता का केंद्रीकरण
प्रोफ़ेसर पूलाप्री कहते हैं सत्ता का केंद्रीकरण कुछ लोगों के हाथों में सालों तक होना भी किसी देश के हित में नहीं है.
श्रीलंका के बारे में वो कहते हैं कि जिस तरह से वहां सत्ता राजपक्षे परिवार का सालों से दबदबा रहा है, वैसे ही हालात कुछ कुछ भारत में भी है. यहाँ भी आर्थिक और राजनीतिक फैसले लेने का अधिकार सरकार के कुछ चुनिंदा सलाहकारों के हाथ में है. वैसे भारत में सभी सरकारें (चाहे केरल की राज्य सरकार हो या केंद्र की मोदी सरकार) पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ ही काम कर रही है.
उनके मुताबिक़ श्रीलंका संकट से सबक लेते हुए भारत सरकार को इस रणनीति में बदलाव लाने की ज़रूरत है.
बहुसंख्यकवाद की राजनीति
श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी सिंहला है और तमिल अल्पसंख्यक. वहाँ की सरकार पर अक्सर बहुसंख्यकों की राजनीति करने का आरोप लगते रहे हैं.
ऐसा ही आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट भी किया है.
उन्होंने लिखा, "लंबे समय तक श्रीलंका का छात्र रहने के कारण मैं कह सकता हूं कि इस सुंदर देश के संकट की जड़े छोटे समय से मौजूद आर्थिक वजहों से ज़्यादा बीते एक दशक से मौजूद भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक बहुसंख्यवाद से जुड़ी हैं. इसमें भारत के लिए भी सबक हैं."
आज भारत में भी सभी राज्यों पर हिंदी भाषा थोपे जाने का आरोप कई ग़ैर बीजेपी शासित राज्य लगा रहे है. हिजाब, लाउडस्पीकर, मंदिर-मस्जिद विवाद, मीट पर विवाद की ख़बरें इन दिनों देश के अलग अलग राज्यों में आए दिन आ रही हैं.
प्रोफ़ेसर पूलाप्री कहते हैं, "बहुसंख्यकवाद की राजनीति को मैं सांस्कृतिक एजेंडे से जोड़ कर देखता हूं. इस तरह की राजनीति की वजह से देश के एक तबक ख़ुद को अलग-थलग महसूस करने लगती है. इसका परिणाम ये होता है कि सरकार का असल मुद्दों से ध्यान भटक जाता है."
जब किसी देश में ऐसा हो रहा हो, तो उसमें एक बड़ी भूमिका सिविल सोसाइटी और संवैधानिक संस्थाओं की भी होती है.
इस तरफ़ इशारा करते हुए कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने ट्वीट किया, "रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और ये मुश्किल ही होता जा रहा है. देशों की असल परीक्षा अब है. न्यायपालिका, पुलिस, सरकार, संसद जैसी संस्थाओं की ताक़त मायने रखेगी. वो करना जो सही है, लोकलुभावन नहीं, महत्वपूर्ण है. एक 'जलता लंका' हम सबको बताता है कि क्या नहीं करना चाहिए."
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) में श्रीलंका मामलों पर नज़र रखने वालीं एसोसिएट फ़ेलो डॉक्टर गुलबीन सुल्ताना भी उदय कोटक की बात से सहमत नज़र आती है.
श्रीलंका की आज के हालात के लिए वो कई वजहों को ज़िम्मेदार मानती है. उनके मुताबिक़ कर्ज़ का बोझ, सरकार चलाने का तरीका, उनकी नीतियां सब कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार हैं. इस वजह से वो कहती हैं कि भारत सरकार इतना सबक तो ले सकती है कि गवर्नेंस को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए और केवल वोट की राजनीति के लिए फैसले नहीं लेने चाहिए जैसा श्रीलंका सरकार ने किया.
उदाहरण देते हुए वो कहती हैं, 2019 में राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र गोटाबाया राजपक्षे जनता को टैक्स में छूट देने का वादा किया था. जब वो सत्ता में आए तो उन्होंने इसे लागू भी कर दिया. उस टैक्स में छूट की वजह से सरकार की कमाई पर बहुत असर पड़ा.
साफ़ था, वादा करते समय केवल चुनावी फ़ायदा देखा गया, जानकारों की राय या अर्थव्यवस्था पर असर को नज़रअंदाज़ किया गया. ऐसे में ज़रूरत थी कि संसद और न्यायपालिका या सिविल सोसाइटी की आवाज़ मुखर होती.
भारत में भी ऐसे चुनावी वादे खूब किए जाते हैं. कभी मामला कोर्ट में पहुँचता है, कभी सिविल सोसाइटी इस पर शोर मचाती है तो कभी देश की संसद में हंगामा होता है.
त्वरित फायदे के लिए लंबा नुक़सान
डॉक्टर सुल्ताना श्रीलंका सरकार के एक और अहम फैसले की तरफ़ ध्यान देने की बात करती हैं.
श्रीलंका के आर्थिक संकट के बीच सरकार को ऐसा लगा कि यदि खाद का आयात रोक दिया जाए तो विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है. और अप्रैल 2021 में गोटाबाया राजपक्षे ने खेती में इस्तेमाल होने वाले सभी रसायनों के आयात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी.
मगर सरकार इस फैसले के दूरगामी परिणाम के बारे में नहीं सोच पाई. नतीजा ये हुआ कि पैदावार पर असर पड़ा. बिना खाद के कृषि उत्पादन बहुत कम हुआ. नवंबर आते आते सरकार को फैसला बदलना पड़ा.
इस वजह से डॉक्टर सुल्ताना कहतीं है, "सरकार द्वारा लिए गए फ़ैसलों में अलग-अलग एक्सपर्ट की राय लेना ज़रूरी है. भारत सरकार को भी ये समझने की ज़रूरत है.
त्वरित फायदे के लिए लिए गए फैसले लंबे समय में नुक़सानदायक हो सकते हैं." (bbc.com)
कोलंबो: श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे 45 साल से संसद में हैं. वकील से नेता बने विक्रमसिंघे ने अगस्त 2020 में हुए आम चुनाव में अपनी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के हारने और एक भी सीट न जीत पाने के लगभग दो साल बाद उल्लेखनीय रूप से वापसी की है.
भारत के करीबी माने जाने वाले 73 वर्षीय नेता को देश में सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. उन्हें राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है जो दूरदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है.
सोमवार से देश में कोई सरकार नहीं थी
उनकी नियुक्ति ने नेतृत्व के शून्य को भरा है क्योंकि श्रीलंका में सोमवार से तब से सरकार नहीं थी जब गोटबाया के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने समर्थकों द्वारा सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किए जाने से भड़की हिंसा के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था.
विक्रमसिंघे को श्रीलंका में ऐसा नेता माना जाता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमान संभाल सकते हैं. उन्होंने अपने साढ़े चार दशक के राजनीतिक करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.
उन्होंने श्रीलंका के निकट पड़ोसी भारत के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए और प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान चार अवसरों – अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में देश का दौरा किया.
पीएम मोदी ने की थी दो बार यात्राएं
इसी अवधि के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका की दो यात्राएं कीं और उन्होंने विक्रमसिंघे के एक व्यक्तिगत अनुरोध का भी जवाब दिया जो द्वीपीय राष्ट्र में 1990 एम्बुलेंस प्रणाली स्थापित करने में मदद करने के लिए था. यह मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल सेवा कोविड-19 के दौरान श्रीलंका में बेहद मददगार साबित हुई.
तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के विरोध के बावजूद विक्रमसिंघे ने कोलंबो बंदरगाह के पूर्वी टर्मिनल पर भारत के साथ समझौते का समर्थन किया था जिसे राजपक्षे ने 2020 में खारिज कर दिया था.
देश की सबसे पुरानी पार्टी है यूएनपी
उनकी पार्टी यूएनपी देश की सबसे पुरानी पार्टी है जो 2020 के संसदीय चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रही थी. 1977 के बाद यह पहली बार हुआ जब उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे खुद भी हार गए थे. बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके थे.
श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति जूनियस जयवर्धने के भतीजे विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास की हत्या के बाद पहली बार 1993-1994 तक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था.
वह 2001-2004 तक भी तब प्रधानमंत्री रहे जब 2001 में संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा ने आम चुनाव जीता था. लेकिन चंद्रिका कुमारतुंगा द्वारा जल्द चुनाव कराए जाने के बाद, 2004 में उन्होंने सत्ता खो दी.
पीएम ने पहले लिट्टे से शांती वार्ता शुरू की थी
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लिट्टे के साथ शांति वार्ता शुरू की, यहाँ तक कि सत्ता-साझाकरण सौदे की पेशकश भी की. कुमारतुंगा और महिंदा राजपक्षे ने उन पर लिट्टे के साथ बहुत नरमी बरतने और उसे बहुत अधिक रियायतें देने का आरोप लगाया था.
वर्ष 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति सिरिसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया. सिरिसेना के इस कदम से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया. हालांकि, उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने राष्ट्रपति सिरिसेना को विक्रमसिंघे को बहाल करने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे राजपक्षे का संक्षिप्त शासन समाप्त हो गया.
श्रीलंका को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद 1949 में जन्मे विक्रमसिंघे 1977 में 28 साल की उम्र में संसद के लिए चुने गए थे. वह विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की यूथ लीग में शामिल हो गए थे. उस समय श्रीलंका में सबसे कम उम्र के मंत्री के रूप में, उन्होंने राष्ट्रपति जयवर्धने के अधीन उप विदेश मंत्री का पद संभाला था.(news18.com)
पाकिस्तान में लाहौर की एक अदालत ने आदेश दिया है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ समेत सभी अभियुक्तों को 14 मई को अदालत में हाज़िर होना होगा. उसी दिन उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की जाएगी.
बीबीसी उर्दू के संवाददाता शहबाज़ मलिक की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले लाहौर की विशेष अदालत ने प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की अपील पर उन्हें ख़ुद हाज़िर होने से छूट दे दी थी और उन्हें अंतरिम ज़मानत भी दे दी थी.
लेकिन अब अदालत ने कहा है कि सभी अभियुक्तों को 14 मई को अदालत में हाज़िर होना होगा और अब इस मामले में आगे कोई तारीख़ नहीं दी जाएगी.
शहबाज़ शरीफ़ और उनके बेटों हमज़ा और सुलैमान शरीफ़ पर पाकिस्तान की जाँच एजेंसी एफ़आईए ने नवंबर 2020 में भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुक़दमा दर्ज किया था. बाद में 14 और लोगों के नाम को एफ़आईआर में जोड़ा गया था. (bbc.com)
(के. जे. एम. वर्मा)
बीजिंग, 12 मई। चीन के दक्षिण-पश्चिम चोंगकिंग शहर में बृहस्पतिवार को ‘तिब्बत एयरलाइन्स’ के एक विमान में रनवे से उतर जाने के कारण आग लग गई, जिससे 40 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
‘तिब्बत एयरलाइन्स’ ने बताया कि चोंगकिंग से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के न्यिंगची शहर जा रहे विमान में 113 यात्री और चालक दल के नौ सदस्य सवार थे। विमान से सभी लोगों को निकाल लिया गया है।
सरकारी ‘चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क’ (सीजीटीएन) की खबर के अनुसार, हादसे में 40 से अधिक लोगों को मामूली चोटें आई हैं।
हांगकांग के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ की खबर के अनुसार, ‘चाइना सेंट्रल टेलीविजन’ (सीसीटीवी) द्वारा जारी किए गए वीडियो में चोंगकिंग जियांगबेई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तिब्बत एयरलाइन्स के विमान के आगे के हिस्से से आग की लपटें और काला धुआं निकलता दिखाई दे रहा है। लोग अफरा-तफरी में पिछले दरवाजे से विमान से बाहर निकलते नजर आ रहे हैं।
सीसीटीवी ने कहा कि आग पर काबू पा लिया गया है और रनवे फिलहाल बंद है। विमान तिब्बत के न्यिंगची के लिए रवाना होने वाला था और तभी उसमें आग लग गई।
घटना की जांच की जा रही है।
चीन में हालिया हफ्तों में दुर्घटनाग्रस्त हुआ यह दूसरा विमान है। बोइंग 737 विमान 12 मार्च को दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सवार सभी 132 लोग मारे गए थे। (भाषा)
ये साल 2020 के अक्टूबर का महीना था. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ़ तीन हफ़्ते बाक़ी थे. मुक़ाबला डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन के बीच था.
तभी अमेरिका के मशहूर टेबलॉयड 'द न्यूयॉर्क पोस्ट' ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छापी. ये यूक्रेन की एनर्जी कंपनी बुरिस्मा से जुड़ी थी. जो बाइडन के बेटे हंटर कभी इसके निदेशक थे.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ एक रिपेयर शॉप में आए एक लैपटॉप से कुछ ईमेल मिले. जिनसे जानकारी हुई कि जो बाइडन जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे, तब हंटर ने इस फ़र्म के एक आला अधिकारी के सामने कारोबारी रिश्तों के लिए अपने सरनेम यानी पिता के प्रभाव का इस्तेमाल किया.
रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि जो बाइडन ने बुरिस्मा के संस्थापक की जांच कर रहे यूक्रेन के एक अभियोजक को बर्खास्त कराने के लिए दबाव भी बनाया.
डोनाल्ड ट्रंप और उनके सहयोगियों के मुताबिक़ लीक हुई सामग्री से साफ़ था कि जो बाइडन 'भले ही इनकार करें लेकिन वो अपने बेटे के कारोबार से वाकिफ़ थे.'
इस लैपटॉप से कई और कहानियां और निजी तस्वीरें भी सामने आईं. लेकिन दूसरे मीडिया संस्थानों ने इस स्टोरी को ज़्यादा अहमियत नहीं दी.
न्यूयॉर्क पोस्ट के आलेख के पीछे कहीं 'विदेशी दुष्प्रचार' न हो, इस आशंका में सोशल मीडिया ने भी इस पर रोक लगा दी. उस स्टोरी को 'ब्रेक हुए' दो साल से ज़्यादा वक़्त हो चुका है. लेकिन उस पर अब तक बहस जारी है.
हंटर बाइडन के लैपटॉप में छुपे राज़ और उनके सच तक पहुँचने के पहले समझते हैं कि आख़िर वो हमेशा चर्चा में क्यों बने रहते हैं?
पॉलिटिको मैग़ज़ीन के पत्रकार बेन श्रेकिंजर कहते हैं, "हंटर बाइडन एक ऐसे व्यक्ति हैं, मानो पूरी ज़िंदगी किसी शैतान का साया उनका पीछा करता रहा है."
बेन ने एक किताब भी लिखी है, "द बाइडन्स: इनसाइड द फर्स्ट फैमिलीज़ 50 ईयर्स राइज़ टू पॉवर"
बेन याद दिलाते हैं कि हंटर के पिता जो बाइडन साल 1972 में अमेरिकी राज्य डेलावेयर से सीनेटर चुने गए. तब जो बाइडन की उम्र सिर्फ़ 29 साल थी. एक ही महीने के अंदर एक बड़े हादसे ने उन्हें हिला दिया.
जो बाइडन की पत्नी और तीन बच्चे क्रिसमस ट्री लेने जा रहे थे.
बेन बताते हैं, "हंटर बाइडन, उनके भाई बो बाइडन, छोटी बहन और मां नीलिया कार में थे. इस कार को एक ट्रक ने टक्कर मार दी. उस हादसे में उनकी मां और बहन की मौत हो गई. हंटर और उनके भाई को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा."
बेन बताते हैं कि जो बाइडन ने अस्पताल से ही सीनेटर के रूप में शपथ ली. तब हंटर सिर्फ़ दो साल के थे और वो तभी से लोगों की नज़रों में आ गए.
बेन कहते हैं कि हंटर पढ़ाई में अच्छे थे. लेकिन मां की मौत का सदमा उन्हें परेशान करता रहा. उन्हें पहले शराब और फिर ड्रग्स की लत लग गई.
उनके भाई बो पहले सेना में थे और बाद में पिता के नक्शे क़दम पर चलते हुए राजनीति में आए. वो डेलावेयर के अटॉर्नी जनरल बने.
साल 2015 में बो की ब्रेन कैंसर की वजह से मौत हो गई. हंटर को इसका भी गहरा सदमा लगा.
बेन बताते हैं, "इसी बीच हंटर की अपनी पहली पत्नी से शादी टूट गई और बो की विधवा हैली के साथ उनका अफेयर सामने आया. इसे लेकर अख़बारों में ख़बरें छपीं. उनके पिता ने इस रिश्ते को अपना आशीर्वाद दिया. लेकिन ये रिश्ता भी टूट गया. उन्हें अपने बच्चे का पिता बताते हुए एक महिला ने अरकांसस में उन पर केस भी किया. इसके बाद उन्होंने मेलिसा कोइन से दूसरी शादी की. नशे की लत से बाहर आने के लिए वो उन्हें ही श्रेय देते हैं. दोनों का एक बच्चा भी है."
हंटर बाइडन सिर्फ़ अपने निजी जीवन की उथल पुथल के लिए ही चर्चा में नहीं रहते. उनके कारोबारी रिश्ते भी लोगों का ध्यान खींचते हैं.
येल लॉ स्कूल से स्नातक करने के बाद उन्होंने एमबीएनए के लिए काम किया. ये उस वक़्त डेलावेयर का सबसे बड़ा बैंक था और इसे लेकर भी वो और जो बाइडन विवादों में घिरे.
बेन बताते हैं, "देश के अख़बारों ने ध्यान दिलाया कि जो बाइडन इस बैंक के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं. ये बैंक हंटर बाइडन को पहले एक कर्मचारी और बाद में सलाहकार के तौर पर पेमेंट कर रहा था. जो बाइडन ने कहा कि हंटर ने कभी सीधे तौर पर लॉबिंग नहीं की. लेकिन जब कभी एक सीनेटर के बेटे लॉबिस्ट के तौर पर काम करते हैं तो सवाल उठते ही हैं."
बिल क्लिंटन जब राष्ट्रपति थे तब हंटर ने अमेरिका के वाणिज्य विभाग के लिए भी काम किया. राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें सरकारी रेल ऑपरेटर एमट्रैक के बोर्ड में नामित किया. वो एक लॉबिंग फर्म के सहसंस्थापक भी रहे. यूक्रेन और चीन में भी कारोबार किया.
साल 2019 में भी वो नशे की लत से जूझ रहे थे. ये दौर ही हमें न्यूयॉर्क पोस्ट की कहानी के स्रोत तक ले जाता है. जिस वक़्त डेलावेयर की दुकान में लैपटॉप रिपेयर करने के लिए दिया गया, उस वक़्त हंटर क्या कर रहे थे?
बेन के मुताबिक़ हंटर कहते हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ याद नहीं है. बेन कहते हैं कि जब हंटर नशे की लत में थे तब ये इकलौता लैपटॉप नहीं रहा होगा. इसके बारे में वो भूल गए हों.
डेलावेयर की रिपेयर शॉप और लैपटॉप
लॉस एंजलिस टाइम्स की व्हाइट हाउस संवाददाता कोर्टनी सुब्रमण्यम बताती हैं, "डेलावेयर में कंप्यूटर रिपेयर की उस दुकान के मालिक हैं, जॉन पॉल मैक आइज़ैक. वो दावा करते हैं कि अप्रैल 2019 में किसी ने उन्हें तीन लैपटॉप रिपेयर के लिए दिए थे."
उनके मुताबिक़ दुकान के मालिक ने बताया कि पानी गिरने से ख़राब हुए दो कंप्यूटर ठीक नहीं हो पाए. दुकान मालिक देख नहीं पाते हैं और वो पक्के तौर पर ये नहीं बता सकते थे कि लैपटॉप लेकर कौन आया था लेकिन जो व्यक्ति आया था, उसने कहा कि वो हंटर बाइडन हैं.
हालांकि हंटर कहते हैं कि उन्हें याद नहीं कि उन्होंने वो लैपटॉप उस दुकान पर दिया था. कई महीने बाद भी जब कोई लैपटॉप लेने नहीं आया तो जॉन ने उसका डेटा परखा.
कोर्टनी कहती हैं, "दुकान मालिक ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब उन्हें जानकारी हुई कि कंप्यूटर में क्या है और ये किसका है, तब उन्होंने एफ़बीआई से संपर्क करने का फ़ैसला किया. लैपटॉप से जो कुछ सामग्री मिली उन्होंने उसकी एक कॉपी भी तैयार की. जॉन के मुताबिक़ डर ये था कि लैपटॉप की सामग्री की जानकारी कर लेने के बाद उन्हें ख़तरा हो सकता है."
हफ़्तों बाद एफ़बीआई ने लैपटॉप सील कर दिया. ये साल 2019 के दिसंबर का महीना था और तब एक बड़ी राजनीतिक ख़बर पक रही थी.
कोर्टनी बताती हैं, "डोनाल्ड ट्रंप पहले महाभियोग का सामना कर रहे थे. ट्रंप पर आरोप था कि उन्होंने यूक्रेन के अधिकारियों पर दबाव बनाया कि सैन्य मदद के बदले वो जो बाइडन की जांच करें. साल 2015 में बाइडन उपराष्ट्रपति थे और तब वो यूक्रेन के एक भ्रष्ट अभियोजक को हटाए जाने के प्रयासों का हिस्सा थे. ये अमेरिका की आधिकारिक नीति के तहत हुआ. लेकिन ट्रंप का दावा था कि इसका मक़सद बाइडन के बेटे को फ़ायदा पहुँचाना था. अभियोजक गैस और तेल की उस कंपनी की जांच कर रहे थे, जिससे हंटर बाइडन जुड़े हुए थे."
कंप्यूटर दुकान के मालिक जॉन ख़ुद को ट्रंप का समर्थक बताते हैं. वो भी महाभियोग की कार्यवाही देख रहे थे. जॉन के मुताबिक़ उन्हें डर था कि एफ़बीआई एजेंट सूचनाएं छुपा सकते हैं और उन्होंने हार्ड ड्राइव की एक कॉपी रूडी जूलियानी के वकील को दी.
रूडी तब ट्रंप के लिए काम कर रहे थे. सब जानते थे कि वो यूक्रेन में बाइडन से जुड़ी सामग्री की तलाश में जुटे थे. ऐसे में मीडिया संस्थानों ने एक अंधे व्यक्ति और लैपटॉप की अजीबोग़रीब कहानी पर संदेह ज़ाहिर किया.
कोर्टनी के मुताबिक़ फॉक्स न्यूज़ को ट्रंप के साथ जोड़कर देखा जाता है लेकिन उन्होंने भी कहानी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. आखिर में रूपर्ट मर्डोक के संस्थान 'न्यूयॉर्क पोस्ट' ने इसे छापा. लेकिन दूसरे पत्रकार अब भी मूल स्रोत की मांग कर रहे थे.
तब ट्रंप के सहयोगी आरोप लगाने लगे कि मीडिया ये कहानी दबाने और जो बाइडन को बचाने के षडयंत्र में शामिल है.
मीडिया की सतर्कता की वजह भी थी. साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उनमें से ज़्यादातर ने लीक मेल से जुड़ी कई कहानियां चलाई थीं जो चुनाव प्रभावित करने के रूसी अभियान का हिस्सा साबित हुईं, जिन्होंने हिलेरी क्लिंटन और डेमोक्रेट्स की छवि ख़राब की.
इस बार सोशल मीडिया ने भी पोस्ट की ख़बर को आगे नहीं जाने दिया.
कोर्टनी कहती हैं, "हमने देखा कि फ़ेसबुक और ट्विटर ने कुछ वक़्त के लिए स्टोरी से जुड़े लिंक को ब्लॉक कर दिया. इसके बाद और नाराज़गी देखी गई. ये कहा गया कि इस कहानी को दबाया जा रहा है."
ट्विटर के सह संस्थापक जैक डोर्सी ने बाद में कहा कि न्यूयॉर्क पोस्ट की स्टोरी को ब्लॉक करना एक ग़लती थी. वो लैपटॉप अब भी एफ़बीआई के पास है. लेकिन तब से अब तक कई लोग ये देख चुके हैं कि उस हार्ड ड्राइव में क्या है
लैपटॉप का डेटा
वॉशिंगटन पोस्ट के व्हाइट हाउस रिपोर्टर मैट वाइज़र बताते हैं, "इस लैपटॉप में 217 गीगाबाइट सामग्री है. इसमें 10 साल के दौरान के क़रीब 129 हज़ार ईमेल हैं. 36 हज़ार तस्वीरें हैं. पाँच हज़ार टेक्स्ट मैसेज की फाइल हैं. 13 सौ वीडियो फ़ाइल हैं."
मैट वाइज़र के पास भी उस लैपटॉप के हार्ड ड्राइव की एक कॉपी है. वो बताते हैं कि ट्रंप के सहयोगी रहे स्टीव बैनन के साथ काम कर चुके जैक मैक्सी ने उन्हें ये हार्ड ड्राइव दी. लेकिन इसमें कई दिक्क़तें नज़र आईं.
मैट वाइज़र बताते हैं, "ये कई लोगों के हाथ से गुज़रा था. हमें ड्राइव पर उनकी उंगलियों के निशान दिखाई दे रहे थे. उन्होंने फोल्डर बनाए थे, जिससे लैपटॉप की सामग्री को सिलसिलेवार तरीक़े से रखा जा सके. ये प्रामाणिक है या नहीं ये पता लगाने के लिए हमें जिस डेटा की ज़रूरत थी, उसकी जगह नया डेटा आ चुका था."
मैट के मुताबिक़ इस ड्राइव में ईमेल के अलावा भी बहुत कुछ था. इसमें हंटर बाइडन की एक महिला के साथ तस्वीरें थीं. दूसरी कई तस्वीरें भी थीं. इनमें से कुछ को अख़बारों ने छापा. ये अटकलें भी लगाई गईं इस ड्राइव में और भी ख़राब किस्म की सामग्री हो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ कभी सामने नहीं आया.
वॉशिंगटन पोस्ट ने इस डेटा में सांठगांठ के साफ़ सबूत तलाशने की कोशिश की.
मैट वाइज़र बताते हैं, "हम ऐसी कारोबारी गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे थे, जहाँ हंटर बाइडन ने अपने पिता के नाम पर कारोबार किया हो. ऐसी बात जो ये रोशनी डाल सके कि हितों का टकराव है और वो अपने बेटे के जरिए इसमें शामिल थे."
मैट बताते हैं कि इस डेटा से हंटर और उनकी कारोबारी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती हैं लेकिन ऐसा कुछ सामने नहीं आया जिससे ये संकेत मिलते कि जो बाइडन ख़ुद हंटर की कारोबारी गतिविधियों में शामिल रहे हों.
हंटर के एक व्यापारिक साझेदार ने एक और मैसेज के सही होने की पुष्टि की. इसमें चीन के व्यापारिक उपक्रम के बारे में योजना थी. ये मई 2017 में भेजा गया था.
उस वक़्त डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे और जो बाइडन व्हाइट हाउस से बाहर थे. वो किताबों की डील और भाषण देकर लाखों डॉलर कमा रहे थे. तो क्या ये ईमेल ये साबित करता है कि जो बाइडन इसमें शामिल थे?
मैट वाइज़र कहते हैं, "आरोप ये था कि हंटर जो डील करते उसका 10 प्रतिशत जो बाइडन को मिलता. राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान जिस एक ईमेल पर खासा ध्यान गया, उसे लेकर माना गया कि जो बाइडन चीन की एनर्जी कंपनी के साथ कारोबारी रिश्ते से होने वाले मुनाफे में अपने बेटे के साथ जुड़े हैं. लेकिन ऐसे कारोबारी रिश्ते कभी बने ही नहीं. और जो बाइडन को कभी 10 फ़ीसदी रकम मिलने के संकेत भी नहीं मिले."
फिर जो बाइडन ने भी इस बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया.
पारिवारिक रिश्तों की कड़ी
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल में गर्वनमेंट प्रोक्योरमेंट लॉ स्टडीज़ की असिस्टेंट डीन जेसिका टिलिपमैन कहती हैं, "मुझे लगता है कि एक कदम पीछे हटें और फिर इस मामले के बारे में सोचें. हम किस बारे में बात कर रहे हैं? यही ना कि कोई व्यक्ति अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार के संपर्कों का इस्तेमाल कर रहा है."
वो कहती हैं कि लैपटॉप से मिले ईमेल संकेत देते हैं कि हंटर बाइडन ने जो ट्रेडिंग की वो साफ सुथरी भले ही ना हो लेकिन अवैध नहीं है.
जेसिका कहती हैं, "इंसान जब से नौकरी कर रहे हैं तब से ही ऐसा हो रहा है. चाहे अमेरिका के राष्ट्रपति हों या किसी छोटे शहर के मेयर, चाहे हम इसे मंजूर करें या फिर इसे अनैतिक मानें और नापसंद करें, ये एक अलग-अलग बात हो सकती है. अगर ऐसे सवाल राष्ट्रपति के बारे में हो तो मान लीजिए उन पर फैसला वोटर ही करते हैं."
हंटर बाइडन पहले शख्स नहीं हैं जिनका राष्ट्रपति से रिश्ता हो और उन्होंने हाईप्रोफ़ाइल काम हासिल किया हो.
जेसिका कहती हैं, " जहां तक मुझे याद है कैनेडी के भाई अटॉर्नी जनरल थे. लोग अलग तरह की बातों की भी आलोचना करते हैं. जेना बुश नेशनल टीवी पर दिखीं तो लोगों ने उनकी भी आलोचना की. मेरी राय में वो शानदार थीं. चाहे फिर चेलसी क्लिंटन को मिले मौके की बात करें हमारे समाज में ऐसे जोखिम तो मौजूद हैं ही. "
डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे तब भी पारिवारिक रिश्तों से फ़ायदा लेने की चर्चा होती रही.
जेसिका कहती हैं कि उस वक़्त अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपनी बेटी और दामाद को व्हाइट हाउस में नौकरी दी. उनके दामाद जेराड कुशनर हैं. हाल में जानकारी सामने आई है कि पद छोड़ने के बाद उनकी इन्वेस्टमेंट फर्म को सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस की अगुवाई वाले फंड से दो अरब डॉलर की रकम मिली.
वहीं, हंटर बाइडन ने माना है कि यूक्रेन की एनर्जी कंपनी बुरिस्मा ने उन्हें उनके सरनेम की वजह से साथ जोड़ा. उनके मुताबिक सरनेम सौभाग्य है तो बोझ भी है.
जेसिका कहती हैं, "आप जो बात कर रहे हैं वो ये है कि क्या इसमें किसी तरह के नैतिक मानदंड का उल्लंघन हुआ है, निश्चित ही ऐसे तथ्य हो सकते हैं जो इस फिक्र को ठीक ठहराएं . हम एक राष्ट्रपति के वयस्क बेटे के बारे में बात कर रहे हैं. साथ ही हम ये बात कर रहे हैं कि क्या ये क़ानून के ख़िलाफ़ है. "
अब वापस उसी सवाल पर लौटते हैं. हंटर बाइडन के लैपटॉप का सच क्या है? इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि मूल हार्ड ड्राइव की कॉपी में तमाम गड़बड़ी आ गई हैं.
हम जानते हैं कि हंटर बाइडन ने अपना करियर बेहतर बनाने के लिए परिवार के नाम का सहारा लिया और मीडिया के लिए ये एक बड़ी ख़बर हो सकती है.
ये भी सच है कि लैपटॉप को लेकर राजनीति भी जल्दी ख़त्म होने वाली नहीं है. अगर अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिलता है तो संभव है कि वो इसकी जांच भी शुरू करा सकते हैं. (bbc.com)
कोलंबो, 12 मई। संकट में घिरे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पद छोड़ने से बुधवार को इनकार कर दिया लेकिन कहा कि वह इसी हफ्ते नये प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल की नियुक्ति करेंगे जो संवैधानिक सुधार पेश करेगा। देश में गंभीर आर्थिक संकट के चलते सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं।
संकट के बीच प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले महिंदा राजपक्षे अपने करीबियों पर हमले के मद्देनजर एक नौसेना अड्डे पर सुरक्षा घेरे में हैं।
राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में गोटबाया (72) ने यह भी कहा कि नये प्रधानमंत्री एवं सरकार को नियुक्त करने के बाद संविधान में 19वें संशोधन की सामग्री तैयार करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पेश किया जाएगा जो संसद को और शक्तियां प्रदान करेगा।
गोटबाया ने कहा, ‘‘मैं युवा मंत्रिमंडल नियुक्त करूंगा जिसमें राजपक्षे परिवार का कोई सदस्य नहीं होगा।’’ उन्होंने देश को अराजक स्थिति में पहुंचने से रोकने के लिए राजनीतिक दलों के साथ चर्चा शुरू कर दी है। अपने संबोधन से कुछ मिनट पहले गोटबाया ने पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ बातचीत की।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘नयी सरकार के प्रधानमंत्री को नया कार्यक्रम पेश करने एवं देश को आगे ले जाने का मौका दिया जाएगा।’’
राष्ट्रपति के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद पिछले दो दिनों से देश में कोई सरकार नहीं है। उनके इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति बिना मंत्रिमंडल के ही देश को चलाने के लिए अधिकार प्राप्त हैं। इस सप्ताह के प्रारंभ में हुई हिंसा का जिक्र करते हुए गोटबाया ने कहा कि नौ मई को जो कुछ हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने कहा, ‘‘हत्याओं, हमले, धौंसपट्टी, संपत्ति को नष्ट करना और उसके बाद के जघन्य कृत्यों को बिल्कुल ही सही नहीं ठहराया जा सकता। ’’
उन्होंने कहा कि पुलिस महानिरीक्षक को जांच करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका पुलिस एवं सैन्यबल को हिंसा फैलाने वालों के विरूद्ध कड़ाई से कानून लागू करने का आदेश दिया गया है।
रक्षा मंत्रालय के सचिव कमल गुणरत्ने ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को त्रिंकोमाली स्थित नौसेना अड्डे पर ले जाया गया है जहां वह सुरक्षा घेरे में हैं।
राजधानी में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैनिकों और सैन्य वाहनों को सड़कों पर तैनात कर दिया गया। कोलंबो और उपनगरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सेना के विशेष बलों को भी तैनात किया गया है।
श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इससे निपटने में सरकार की विफलता को लेकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बीच महिंदा को सुरक्षा मुहैया करायी गई है। विपक्षी दल भी उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।
श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) नेता महिंदा 2005 से 2015 तक देश के राष्ट्रपति थे और उस दौरान उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के खिलाफ क्रूर सैन्य अभियान चलाया था। (भाषा)
(एम जुल्करनैन)
लाहौर, 12 मई। पाकिस्तान की एक आतंकवाद रोधी अदालत ने पिछले साल पंजाब प्रांत में एक हिंदू मंदिर पर हमला करने के मामले में बुधवार को 22 व्यक्तियों को पांच-पांच साल जेल की सजा सुनाई।
लाहौर से करीब 590 किलोमीटर दूर रहीम यार खान जिले के भोंग शहर स्थित गणेश मंदिर पर जुलाई 2021 में सैकड़ों लोगों ने हमला कर दिया था। आठ वर्षीय एक हिंदू लड़के द्वारा कथित रूप से एक मदरसे को अपवित्र करने की प्रतिक्रिया में मंदिर पर हमला किया गया था।
इस मामले में गिरफ्तार 84 संदिग्धों के खिलाफ सुनवाई पिछले साल सितंबर में शुरू हुई थी और यह सुनवायी पिछले हफ्ते पूरी हुई थी।
अदालत के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, “आतंकवाद रोधी अदालत (बहावलपुर) के न्यायाधीश नासीर हुसैन ने फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने 22 संदिग्धों को पांच-पांच वर्ष जेल की सज़ा सुनाई और 62 अन्य व्यक्तियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।” (भाषा)
कराची (पाकिस्तान), 12 मई। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष आसिफ जरदारी ने स्पष्ट किया है कि चुनावी प्रक्रिया में सुधार और राष्ट्रीय जवाबदेही कानूनों में संशोधन के बाद ही देश में चुनाव कराए जाएंगे।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ पिछले महीने विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता जरदारी ने कहा कि मौजूदा गठबंधन सरकार द्वारा इन दोनों कार्यों को पूरा करते ही चुनाव कराए जाएंगे।
जरदारी ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘मैंने इस बारे में (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) के संस्थापक) नवाज शरीफ से भी बात की है और हम इस बात पर सहमत हुए कि सुधार होते ही और लक्ष्य हासिल करते ही चुनाव कराए जा सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हमें कानूनों में बदलाव तथा सुधार करना होगा और इसके बाद चुनाव कराने होंगे। भले ही इसमें तीन से चार महीने का समय ही क्यों न लग जाए, हमें नीतियों के क्रियान्वयन और चुनावी प्रक्रिया में सुधार पर काम करना होगा।’’
जरदारी ने कहा कि नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को विदेशी पाकिस्तानियों के मतदान के अधिकार और चुनाव में प्रतिनिधित्व से कोई समस्या नहीं है।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने बुधवार को कहा था कि नवंबर से पहले चुनाव होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बारे में पूछे जाने पर जरदारी ने कहा कि यह पीएमएल-एन नेता की निजी राय है और वह अपनी पार्टी के निर्देशों को सुनने के लिए बाध्य हैं।
उन्होंने कहा कि पीपीपी और पीएमएल-एन ने फैसला किया है कि जब तक चुनाव प्रक्रिया में सुधार नहीं किए जाते, तब तक नए सेना प्रमुख की नियुक्ति के बारे में भी कोई बात नहीं होगी। (भाषा)
जंगल में रहना आसान होता है न उसकी सुरक्षा का जिम्मा संभालने वालों का जीवन. एक बार जानवर किसी मुसीबत में फंसे तो समझो खुद की भी जांन आफत में हो जाती है. कई बार सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम भी ऐसी समस्या खड़ी कर देते हैं जिससे निपटने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने के बाद भी समाधान मुश्किल से ही निकलता है.
सुरक्षा घेरा कैसे शामत बन गया ये देखने को मिला एक जंगल की वीडियो में जहां 2 हिरण आपस में इस कदर फंस गए कि उन्हें छुड़ाने में बचावकर्मी खुद भी बाल-बाल ही बचे. जंगल में 2 हिरण अपने-अपने सींग के साथ लोहे की उन तारों में उलझ गए. जिसे सुरक्षा के नज़रिए से जंगल के किनारे-किनारे लगाया था. हिरणों के रेस्क्यू का बहादुरी वाला वीडियो The Dodo के ट्विटर पेज़ पर शेयर किए जाने के बाद ऐसा वायरल हुआ कि करीब 8 लाख बार इसे देखा गया.
सुरक्षा बेड़े में ही फंस गई दो हिरणों की जान
दोनों हिरणों की सींगे जंगल के लोहे की बाड़ में ज़बरदस्त तरीके के फंसी थी जिसे कड़ी मशक्कत के बाद 2 रेस्क्यूअर्स ने अलग किया. जो दो बचावकर्मी हिरणों को fence से अलग करने में लगे थे उनकी मशक्कत देखकर कोई भी उनकी बहादुरी को सलाम कर लेगा. पहले तो मुश्किल में फंसे दोनों हिरण खुद इतने पैनिक में थे कि उन्हें ये समझना मुश्किल था कि कौन उनकी मदद करने आया है औऱ कौन उनकी समस्या बढ़ाने आया था. सींग में फंसे तार को काटने के लिए ज़रूरी था उनका काबू में आना जो मुश्किल था. काफी देर की रस्साकशी के बाद एक तार काटने में कामयाबी मिली जिसके बाद एक हिरण तो बिजली की रफ्तार से जंगल की ओर भाग गया. अब बारी थी दूसरे हिरण की जो अकेला होकर और बेचैन होने लगा था. इधर-उधर भागने की कोशिश करने के बाद भी आखिरकार वो पकड़ में आया और कुछ सेकेंड के लिए स्थिर हुआ तब जाकर उसकी सींग में फंसे लोहे के तार को काटने में दोनों बचावकर्मी सफल हुए.
This is so brave ???????????? pic.twitter.com/1iZjE9Towm
— The Dodo (@dodo) May 10, 2022
खुद की परवाह किए बिना बचाव में जुटे रहे दो कर्मचारी
वीडियो देखके के बाद हर कोई दोनों रेस्क्यूअर्स का कायल हो गया. उनकी हिम्म्त और धीरज के दाद देनी पड़ेगी. दो बड़े और बेचैन हिरणों पर काबू पाना आसान नहीं था. जब भी उन्हें पकड़ने की कोशिश होती वो उसे अपने लिए खतरा समझने लगते. फिर ऐसे प्रतिक्रिया करते जैसे वो दोनों उसे बचाने नहीं बल्कि नुकसान पहुंचाने आए हों. ऐसे में दोनों बचावकर्मियों ने अपना आपा खोए बिना खुद को न सिर्फ स्थिर रखा बल्कि उन जानवरों को सुरक्षित कर वापस जंगल में जाने दिया जिनके सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनपर है. (news18.com)
आपदा पड़ने पर इंसान कभी भी कुछ भी कर जाता है. भगवान का नाम लेकर लोग ऐसी ज़िम्मेदारी संभालने निकल पड़ते हैं जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. कोई अनुभव नहीं होता. फिर भी सब कुछ संभल जाता है. ऐसा ही कारनामा कर दिखाया एक ऐसे शख्स ने जिसने ज़ीरो अनुभव के साथ फ्लाइट उड़ाकर सबको दंग कर दिया.
ज़ीरो एक्सपीरियंस के साथ एक यात्री ने फ्लाइट उड़ा कर सबको हैरान कर दिया. जिस वक्त जान सांसत में पड़ी उस वक्त यात्रियों के पास भगवान को याद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. प्लेन में बैठे लोगों की सांसे थम सी गई. तभी एक ऐसे यात्री ने प्लेन का बागडोर संभाली जो इस पीरे काम से अनजान था. घटना पाम बीच अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की है. जहां पायलट के अचानक बीमार पड़ने से एक यात्री को प्लेन उड़ाने की कमान संभालनी ही पड़ी. कंट्रोल बोर्ड को पता तब चला जब पायलट से संपर्क की कोशिश की गई और वो नहीं मिला.
बिना अनुभव और ट्रेनिंग के यात्री ने उड़ाई फ्लाइट
हवाई यातायात नियंत्रण ने पायलट से संपर्क करने की कोशिश की तो ऐसी चौंकाने वाली सूचना मिली जिसके बाद उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. जिस प्लेन से संपर्क की कोशिश की जा रही थी उसकी कमान किसी पायलट नहीं बल्कि एक सामान्य नागरिक के हाथ में थी. कॉकपिट से एक ऐसी आवाज़ ने रिप्लाई किया जिसे फ्लाइट में यात्रा करने के अलावा उससे जुड़ी न कोई जानकारी थी न कोई अनुभव. ऐसे में कंट्रोल रूम में बैठे लोगों के होश उड़ गए. बता दें कि किसी फ्लाइट को उड़ाने के लिए करीब 60 घंटे की ट्रेनिंग का अनुभव और अकेले कम से कम 10 घंटे के सुपरविज़न में फ्लाइंग की ज़रूरत होती है. मगर यहां एख ऐसे शख्स ने फ्लाइट उड़ाई जिसकी ट्रेनिंग और अनुभव ज़ीरो था. फिर भी सफल और शांत तरीके से लैंडिंग करा ले गया.
संयम और शांति से मिली लैंडिंग में सफलता
14 सीटर Cessna Caravan plane से सवार यात्री की आवाज़ आई. लैंडिग से 70 मील की दूरी से रेडियो पर बोल रहा था ‘यहां एक गंभीर स्थिति हो गई है, हमारा पायलट बीमार हो गया है. मुझे हवाईजहाज उड़ाने नहीं आता.’ फिर तो सुनने वालों की सांस अटक गई. अब कोई दूसरा विकल्प नहीं था लिहाज़ा दोनों ने एक-दूसरे से शांति और संयम के साथ बात शुरु की. उसके बाद कंट्रोल रूम ने पंखों का स्तर बनाए रखने और तट को फॉलो करने की कोशिश के निर्देश मिलने शुरु हुए, कहा गया कि उत्तर या दक्षिण की ओर स्थिति को बनाए रखें. तब तक फ्लाइट की स्थिति पता लगाने की कोशिश जारी रही. पाम बीच, बोका रैटन के उत्तर में लगभग 25 मील की दूरी पर फ्लेन को नीचे उतारने का निर्देश दिया गया. फिर इस बात की ट्रेनिंग दी गई कि असल में अब फ्लाइट को नीचे कैसे उतारना है. विमानन विशेषज्ञ जॉन नैंस ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बताया कि “ये पहली बार है जब मैंने किसी विमान को ऐसे व्यक्ति द्वारा उतारते देखा है जिसे कोई वैमानिकी अनुभव नहीं है.’ (news18.com)