अंतरराष्ट्रीय
नयी दिल्ली, 5 फरवरी। पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक और 1999 के कारगिल युद्ध के सूत्रधार जनरल परवेज मुशर्रफ का जन्म अविभाजित भारत में दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में हुआ था।
उन्हें अपना जन्म प्रमाण पत्र छह दशक बाद 2005 में यहां की अपनी यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ था। गंभीर बीमारी से जूझते हुए 79 साल की उम्र में रविवार को मुशर्रफ का दुबई में निधन हो गया। वह पाकिस्तान में अपने खिलाफ आपराधिक मामलों से बचने के लिए संयुक्त अरब अमीरात में स्व-निर्वासन में रह रहे थे।
मुशर्रफ का जन्म 11 अगस्त, 1943 को हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण काफी उथल-पुथल का समय था और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने भी गति पकड़ ली थी। मुशर्रफ 1947 में भारत के विभाजन के बाद अपने परिवार के साथ नवगठित पाकिस्तान चले गए।
पुराने रिकॉर्ड के अनुसार, मुशर्रफ का जन्म यहां के एक सरकारी अस्पताल में हुआ था, जिसे अब गिरधारी लाल प्रसूति अस्पताल के रूप में जाना जाता है, जो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अंतर्गत आता है।
दिल्ली के मध्य में कमला मार्केट के पास स्थित, यह शहर के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक है और इसने पुरानी दिल्ली में रहने वाले लोगों को बड़े पैमाने पर सेवा प्रदान की है। नगर निगम के एक पूर्व अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘उनका (मुशर्रफ का) परिवार पुरानी दिल्ली में रहता था। आसपास दो अस्पताल हैं दरियागंज में विक्टोरिया जनाना अस्पताल (स्वतंत्रता के बाद नाम बदलकर कस्तूरबा अस्पताल किया गया) और गिरधारी लाल प्रसूति अस्पताल।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते थे कि उनका (मुशर्रफ) जन्म दिल्ली में हुआ था और आज खबरों से पता चला कि उनका दुबई में निधन हो गया।’’
जब मुशर्रफ ने अप्रैल 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में भारत का दौरा किया, तो भारत सरकार ने उन्हें एक विशेष उपहार उनका जन्म प्रमाण पत्र दिया था। वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त हुए पूर्व अधिकारी ने कहा कि 1940 के दशक में और 2005 में भी, जन्म और मृत्यु के रिकॉर्ड कागजात के रूप में रखे जाते थे। उन्होंने कहा, ‘‘60 से अधिक वर्षों के बाद 1940 के दशक के जन्म प्रमाण पत्र की तलाश करना आसान काम नहीं रहा होगा।’’
सत्रह अप्रैल, 2005 की एक अभिलेखीय छवि के अनुसार, मुशर्रफ ने अपनी तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान नयी दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अपना जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त किया था। मुशर्रफ 2005 की अपनी भारत यात्रा के दौरान अजमेर शरीफ भी गए थे और प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मत्था टेका। (भाषा)
क्वेटा, पांच फरवरी (भाषा) कप्तान बाबर आजम और शाहिद अफरीदी सहित शीर्ष पाकिस्तानी क्रिकेटरों को नवाब अकबर बुगती स्टेडियम से कुछ मील की दूरी पर रविवार को हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा के लिये ड्रेसिंग रूम में ले जाया गया।
ये खिलाड़ी पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) का एक प्रदर्शनी मैच खेल रहे थे जिसे इस धमाके के बाद कुछ देर के लिये रोक दिया गया। यह विस्फोट पुलिस लाइंस क्षेत्र में हुआ जिसमें पांच लोग घायल हो गये।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि बचाव कार्य पूरा हो गया है और घायलों को अस्पताल पहुंचा दिया गया।
तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने रविवार को एक बयान में इस हमले की जिम्मेदारी ली है जिसमें कहा गया कि सुरक्षा अधिकारियों को निशाना बनाया गया था।
पीएसएल की टीम क्वेटा ग्लैडिएटर्स और पेशावर जाल्मी के बीच एक प्रदर्शनी मैच पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) द्वारा आयोजित किया गया था।
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘जैसे ही धमाका हुआ, ऐहतियात के तौर पर मैच रोक दिया गया और खिलाड़ियों को कुछ देर के लिये ड्रेसिंग रूम में ले जाया गया। बाद में मैच बहाल हो गया। ’’
मैच के लिये मैदान खचाखच भरा था।
(अदिति खन्ना)
लंदन, 5 फरवरी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और उनके ब्रिटिश समकक्ष टिम बारो के बीच यहां कैबिनेट कार्यालय में हुई बैठक में शामिल होकर ‘विशेष संकेत’ दिये हैं।
दोनों देशों के एनएसए की शुक्रवार को हुई बैठक में सुनक ने रेखांकित किया कि ब्रिटेन व्यापार, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को और सशक्त करने का समर्थन करता है।
डोभाल वाशिंगटन की यात्रा के बाद ब्रिटेन के साथ वार्षिक द्विपक्षीय रणनीतिक संवाद के लिए लंदन आए हैं। उन्होंने इससे पहले अमेरिकी समकक्ष जैक सुलिवन से भी इसी तरह की वार्ता की थी।
लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग और विदेश मंत्रालय ने देर शनिवार को इस बैठक का संदर्भ देते हुए ट्वीट किया, ‘‘कैबिनेट कार्यालय में सर टिम बारो और माननीय डोभाल के बीच भारत-ब्रिटेन एनएसए संवाद में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने शामिल होकर विशेष संकेत दिये।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री के इस आश्वासन का महत्व है कि उनकी सरकार व्यापार, रक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने का पूरी तरह से समर्थन करती है। सर टिम के जल्द भारत दौरे का इंतजार कर रहे हैं।’’
भारत और ब्रिटेन के बीच यह सुरक्षा संवाद बीबीसी के विवादित वृत्तचित्र ‘‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’’ की पृष्ठभूमि में हुआ है। इस वृत्तचित्र की भारत सरकार ने निंदा करते हुए इसे पक्षपात करने वाला दुष्प्रचार करार दिया है। (भाषा)
नई दिल्ली, 5 फरवरी । शनिवार को लंदन में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और उनके ब्रितानी समकक्ष टिम बैरो के बीच हो रही मीटिंग में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी कुछ वक़्त के लिए शामिल हुए.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, ऋषि सुनक ने इस बैठक में भरोसा दिया कि उनकी सरकार रक्षा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी मज़बूत करने में पूरा सहयोग करेगी.
ब्रिटिश कैबिनेट ऑफ़िस में हुई इस मुलाक़ात के बारे में ब्रिटेन स्थित भारतीय उच्चायोग ने एक ट्वीट करके दी है.
इस ट्वीट में कहा गया, "पीएम ऋषि सुनक ने ख़ास पहल करते हुए सर टिम बैरो और मिस्टर डोभाल के बीच ब्रिटिश कैबिनेट ऑफ़िस में हो रहे एनएसए डायलॉग में कुछ वक़्त के लिए हिस्सा लिया."
"व्यापार, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने के लिए उनकी सरकार का समर्थन देने के उनके आश्वासन का हम बहुत अहम मानते हैं. हमें सर टिम की जल्द होने वाली यात्रा की प्रतीक्षा है."
ब्रिटेन की यात्रा करने के पहले अजीत डोभाल अमेरिका के दौरे पर भी गए थे. वहां उन्होंने मंगलवार को अमेरिका के एनएसए जैक सुलिवन से मुलाक़ात की थी. (bbc.com/hindi)
सऊदी, 5 फरवरी । सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने रूस पर पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों के कारण भविष्य में ऊर्जा का संकट पैदा होने की चेतावनी दी है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ ने शनिवार को राजधानी रियाद में एक सम्मेलन के दौरान ये बात कही.
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "प्रतिबंधों और निवेश की कमी के कारण एक और केवल एक चीज़ होगी कि जब सबसे अधिक ज़रूरत होगी, तब हर तरह की ऊर्जा की क़िल्लत पैदा हो जाएगी."
प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ ने यह भी बताया कि उनका देश यूक्रेन में एलपीजी भेजने की तैयारी कर रहा है. यूक्रेन में इसका मुख्य इस्तेमाल घरों को गर्म रखने में होता है.
उन्होंने तेल बाज़ार के 2022 के सबक़ का ज़िक्र करते हुए कहा कि दुनिया के अन्य देशों को 'ओपेके प्लस देशों पर भरोसा करना' होगा.
यूरोपीय संघ ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे रूस का आयात घट गया. वहीं अन्य पश्चिमी देशों ने भी रूस की आर्थिक क्षमता सीमित करने के लिए कई प्रतिबंध लगाए. (bbc.com/hindi)
कश्मीर एकता दिवस के मौक़े पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर में भारत सरकार के चुनावी क्षेत्रों की परिसीमन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए लाखों ग़ैर-कश्मीरियों को मतदाता सूची में शामिल करने का आरोप लगाया है.
कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच के संघर्ष में मारे गए लोगों की याद में पाकिस्तान द्वारा हर साल 5 फ़रवरी को मनाए जाने वाले 'कश्मीर एकता दिवस' पर ज़रदारी ने भारत की कड़ी आलोचना की है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के ट्विटर हैंडल से पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा है, "5 अगस्त, 2019 की अपनी अवैध और एकतरफ़ा कार्रवाइयों से भारत ने अवैध कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर के लोगों को दबाने का एक नए अध्याय की शुरुआत की है."
उन्होंने आरोप लगाया, "भारत की सत्तारूढ़ सरकार का उद्देश्य, चुनावी क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन करके, लाखों ग़ैर-कश्मीरियों को डोमिसाइल सर्टिफ़िकेट जारी करके और मतदाता सूची में सैकड़ों-हज़ारों ग़ैर-कश्मीरियों को जोड़कर, कश्मीरियों को उनकी ही ज़मीन पर अधिकारहीन अल्पसंख्यक में बदलना है."
उन्होंने भारतीय सेना की 'घेरेबंदी और तलाशी मुहिम' में लगातार हो रही वृद्धि का दावा करते हुए आरोप लगाया है कि इससे कश्मीर के लोग लगातार भय के माहौल में जी रहे हैं. उन्होंने राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न करने का भी आरोप लगाया है.
बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने 'भारतीय कश्मीरियों' के कथित अत्याचार पर कहा है कि पाकिस्तान इस पर चुप नहीं रह सकता.
उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर पाकिस्तान की विदेश नीति का अहम अंग बना रहेगा.
पाकिस्तानी सेना की श्रद्धांजलि
वहीं पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आईएसपीआर के महानिदेशक के ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में जम्मू और कश्मीर के कथित संघर्ष में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई है.
इस ट्वीट में लिखा गया, "पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमेटी के चेयरमैन, सेना प्रमुख और वायुसेना, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप आत्मनिर्णय के अपने अधिकारों के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले बहादुर कश्मीरियों को श्रद्धांजलि देते हैं."
इसमें कहा गया है, "कितना भी मानवाधिकार उल्लंघन और उत्पीड़न कश्मीरियों की आज़ादी की भावना को दबा नहीं सकता." (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि देश का सत्तारूढ़ गठबंधन चुनाव से डरा हुआ है और देश को तबाही की तरफ़ ले जा रहा है.
उनका कहना है कि देश के भीतर राजनीतिक स्थिरता के बिना हालात ठीक नहीं हो सकते.
उन्होंने जेल भरो आंदोलन शुरू करने की बात की और कहा कि सड़कों पर उतर कर विरोध करने से अच्छा है कि हम खु़द अपनी गिरफ़्तारी दें.
उन्होंने कहा, "मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि जेल भरो आंदोलन की शुरुआत करें. ये सड़कों पर उतरने से बेहतर है. हमें पता है कि हमारी जेल में कितनी जगह है."
इमरान ख़ान ने कहा कि नागरिकों के हक़ों की रक्षा करने में हमारी मौजूदा न्याय व्यवस्था नाकाम रही है.
उन्होंने कहा, सरकार लोगों को गिरफ़्तार कर रही है और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे थोपे जा रहे हैं, ये बेहतर होगा कि हम जेल भरो आंदोलन शुरू करें.
उन्होंने पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में असेंबली भंग करने पर भी बात की और कहा कि "दोनों राज्य सरकारों को भंग करने के पीछे राष्ट्रहित था. मैंने देश के संविधान को ध्यान में रखकर असंबलियां भंग की हैं."
उनके अनुसार, अभी तक इस मामले को 18 दिन हो गए हैं, दोनों राज्य के गवर्नरों ने इलेक्शन की तारीख़ नहीं दी है.
उन्होंने कहा, "90 दिन के बाद हर किसी पर आर्टिकल छह लगेगा."
इमरान ख़ान ने कहा, "जो भी यह कोशिश कर रहा है, और हमें पता है कि यह कौन कोशिश कर रहा है. ये इलेक्शन से ख़ौफ़ज़दा हैं."
इमरान ख़ान ने कहा कि पूरा देश तमाशा देख रहा है कि 90 दिन में इलेक्शन हो रहा है या नहीं. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यों में प्रभारी सरकारें न्यूट्रल नहीं हैं, बल्कि तहरीक-ए-इंसाफ़ के ख़िलाफ़ हैं. (bbc.com/hindi)
चीन के 'स्पाई बलून' को अमेरिकी F-22 फ़ाइटर जेट द्वारा दक्षिण कैरोलिना के अटलांटिक तट के पास गिराने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पायलटों को बधाई दी है.
इससे पहले F-22 लड़ाकू विमान के पायलटों ने एक AIM-9X साइडविंडर मिसाइल से इस बलून को निशाना बनाया था.
वहीं बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि इस बलून के गिराए जाने के बाद अमेरिका ने सीधे चीन से बात की है.
बलून को गिराने की यह कार्रवाई राष्ट्रपति जो बाइडन के आदेश पर की गई. बाद में एक सैन्य अधिकारी ने इस बलून को गिराने की प्रक्रिया की जानकारी पत्रकारों को दी.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि बलून के मलबे से नीचे लोगों को नुक़सान न हो, इसलिए उन्होंने इसके समुद्र के ऊपर तक पहुंचने का इंतज़ार किया.
अमेरिकी सेना अब समुद्र में फैले बलून के मलबे की तलाश कर रही है. बताया गया है कि ये मलबा समुद्र में क़रीब 11 किलोमीटर तक फैला हुआ है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका ने चीन के उस 'स्पाई बलून' को गिरा दिया है, जिसके बारे में उसका कहना है कि वह अमेरिका के प्रमुख सैनिक ठिकानों की जासूसी कर रहा था.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की है कि उसके लड़ाकू विमानों ने चीन के बलून को अमेरिका की समुद्री सीमा के ऊपर में अटलांटिक महासागर में गिरा दिया है.
शनिवार को अमेरिकी सेना की ओर से चलाए गए इस अभियान के कारण वहां के तीन हवाई अड्डों और उत्तरी और दक्षिणी कैरोलिना के तट के पास के एयरस्पेस को बंद करना पड़ा.
अमेरिका के टेलीविज़न चैनलों पर प्रसारित हो रहे फुटेज में एक छोटे विस्फोट के बाद इस बलून को समुद्र में गिरते हुए दिखाया गया है.
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि "असैन्य काम के लिए इस्तेमाल होने वाले मानवरहित बलून पर अमेरिका के ताक़त के इस्तेमाल करने का हम विरोध करते हैं."
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "चीन ने साफ़ तौर पर अमेरिका से कहा था कि वो संयम बरते और शांतिपूर्ण और प्रोफ़ेशनल तरीके से इस समस्या से निपटे. लेकिन अमेरिका ने ताक़त का इस्तेमाल किया, स्पष्ट है कि वो इस पर ज़रूरत से अधिक प्रतिक्रिया दे रहा है."
अमेरिका के एक रक्षा अधिकारी ने इस बलून को गिराने की प्रक्रिया की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि एक F-22 लड़ाकू विमान से छोड़े गए एक AIM-9X साइडविंडर मिसाइल ने इस बलून को निशाना बनाया.
भारतीय समयानुसार रात एक बजकर नौ मिनट (01:09 AM) पर इस बलून को अमेरिका के तट से क़रीब छह समुद्री मील (11 किलोमीटर) दूर निशाना बनाया गया.
अमेरिका के रक्षा अधिकारियों ने वहां की मीडिया को बताया कि दक्षिण कैरोलिना के मायर्टल बीच के पास इस बलून का मलबा गिरा. गिरने के बाद यह समुद्र में 47 फीट (14 मीटर) नीचे तक गया, जबकि अनुमान इससे भी ज़्यादा नीचे जाने का था.
अमेरिकी सेना अब 11 किलोमीटर में फैले इस मलबे को निकालने की कोशिश कर रही है. नौसेना के दो जहाज़ों को इस काम में लगाया गया है. उनमें से एक जहाज़ पर एक भारी क्रेन भी तैनात है.
बलून गिराने का था दबाव
अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने गुरुवार को जब पहली बार एलान किया कि वो इस बलून को ट्रैक कर रहे हैं, तभी से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर इसे नीचे गिराने का दबाव था.
इस बलून को नीचे गिराने के बाद बाइडन ने कहा, "उन्होंने इसे सफलतापूर्वक नीचे गिरा दिया. मैं इसे गिराने वाले अपने एविएटर्स को इसके लिए बधाई देना चाहता हूं."
एश्लिन प्रॉक्स बलून गिराए जाने की घटना की प्रत्यक्षदर्शी हैं. वो कहती हैं, "मैं ये देखने के लिए बाहर निकली कि बाहर अधिक लोग क्यों जमा हैं. तब मैंने आसमान में वो बलून देखा जिसके बारे में मीडिया में लगातार ख़बरें दिखाई जा रही थीं. जेट विमानों ने इस बलून को घेरा हुआ था और वो इसके आसपास चक्कर काट रहे थे."
????#BREAKING: Incredible HD footage of the Chinese surveillance balloon being shot down
— R A W S A L E R T S (@rawsalerts) February 4, 2023
????#MyrtleBeach l #SC
Watch incredible HD video of the moment when the Chinese surveillance balloon was shot down by a single missile from an F-22 fighter jet from Langley Air Force Base pic.twitter.com/KjwTrgcvcb
वो बताती हैं, "मैंने देखा कि एक जेट ने सीधा बलून पर निशाना लगाया. इसके कुछ देर बाद वो बलून फटने और नीचे गिरने लगा."
अमेरिका में इस हफ़्ते चीन का यह बलून मिलने के बाद एक कूटनीतिक संकट पैदा हो गया है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का मानना था कि यह बलून संवेदनशील इलाक़ों में जासूसी का काम कर रहा था.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इसे 'ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरक़त' बताते हुए चीन की अपनी प्रस्तावित यात्रा तुरंत रोक दी.
हालांकि चीन ने इसके स्पाई एयरक्राफ़्ट होने से इनकार करते हुए कहा कि यह मौसम का अनुमान लगाने वाला बलून था, जो अपना रास्ता भटक गया. (bbc.com/hindi)
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार का कहना है कि देश में शीत लहर से मरने वालों की संख्या बढ़कर 175 हो गई है.
तालिबान के रेड क्रिसेंट डिपार्टमेंट का कहना है कि ठंड ने करीब 80 हज़ार जानवरों की जान ले ली है.
अफ़ग़ान रेड क्रिसेंट चारसंबली के प्रमुख मौलवी हक खलस का कहना है कि पूरे देश में भीषण सर्दी, गैस प्रदूषण और बारिश के कारण शुक्रवार तक 175 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 30 लोग बीमार हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में एक तरफ ठंड का क़हर जारी है वहीं दूसरी तरफ़ तालिबान के महिलाओं पर प्रतिबंध के चलते उसे अंतरराष्ट्रीय मदद कम मिल रही है.
जानकारों का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में एक करोड़ लोगों को तत्काल मदद देने की ज़रूरत है. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 4 फरवरी। अमेरिकी हवाई क्षेत्र में एक बड़े गुब्बारे के पहुंचने के बाद अमेरिका और चीन के बीच वाकयुद्ध शुरू हो चुका है तथा सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है।
चीन ने कहा है कि यह दिशा भटककर अमेरिकी क्षेत्र में पहुंचा असैन्य इस्तेमाल वाला गुब्बारा है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मौसम संबंधी अनुसंधान के लिए किया जाता है। चीन ने कहा कि हवाओं के कारण यह वहां तक पहुंच गया और इसके किसी दिशा में मुड़ने की क्षमता भी सीमित है।
हालांकि, अमेरिका इसे चीन का जासूसी गुब्बारा बता रहा है। अमेरिकी हवाई क्षेत्र में चीनी गुब्बारा दिखने की खबर के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चीन की अपनी यात्रा रद्द कर दी।
अमेरिकी रक्षा विभाग ‘पेंटागन’ के अनुसार, गुब्बारे में सेंसर और निगरानी उपकरण हैं तथा इसमें दिशा बदलने की भी क्षमता है। यह मोंटाना के संवेदनशील क्षेत्रों में पहुंच गया है जहां परमाणु हथियार के भंडार हैं। इसी वजह से इसे खुफिया जानकारी एकत्र करने से रोकने के लिए सेना हरकत में आ गई।
पेंटागन के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह गुब्बारा ‘‘कुछ दिन’’ अमेरिका के ऊपर बना रह सकता है।
यह भी अनिश्चित है कि यह किधर जाएगा और क्या अमेरिका इसे सुरक्षित रूप से नीचे लाने की कोशिश करेगा।
इस गुब्बारे के बारे में अब तक ज्ञात तथ्य :
पेंटागन और अन्य अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह एक चीनी जासूसी गुब्बारा है जिसका आकार तीन स्कूल बसों के आकार के बराबर है। यह लगभग 60,000 फुट की ऊंचाई पर अमेरिका के ऊपर पूर्व की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका का कहना है कि इसका इस्तेमाल निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए किया गया, मगर अधिकारियों ने कुछ ही विवरण उपलब्ध कराया है।
पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कई अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि इस सप्ताह की शुरुआत में गुब्बारे के अलास्का में अमेरिकी हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ही जो. बाइडन प्रशासन को इसकी जानकारी मिल गई थी।
व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति जो. बाइडन को सबसे पहले मंगलवार को गुब्बारे के बारे में जानकारी दी गई। वहीं, विदेश विभाग ने कहा कि ब्लिंकन और उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन ने इस मामले के बारे में बुधवार शाम वाशिंगटन में मौजूद चीन के वरिष्ठ अधिकारी से बात की।
इस मुद्दे पर अमेरिका की तरफ से पहले सार्वजनिक बयान में पेंटागन के प्रेस सचिव ब्रिगेडियर जनरल पैट राइडर ने बृहस्पतिवार शाम कहा कि गुब्बारे से किसी तरह का खतरा नहीं है, जो एक स्वीकृति थी कि इसमें हथियार नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि ‘‘गुब्बारे का पता चलने के बाद, अमेरिका सरकार ने संवेदनशील जानकारी को बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई की।’’
बहरहाल, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के विजिटिंग फेलो सेवानिवृत्त सैन्य जनरल जॉन फेरारी का कहना है कि भले ही गुब्बारा हथियारों से लैस न हो, लेकिन यह अमेरिका के लिए जोखिम पैदा करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि चीन ने ‘‘हमें यह दिखाने के लिए गुब्बारा भेजा हो कि वे ऐसा कर सकते हैं, और हो सकता है कि अगली बार उनके पास कोई हथियार हो।’’ उन्होंने कहा कि इसलिए प्रतिरक्षा को लेकर अब ‘‘हमें इस पर पैसा और समय खर्च करना होगा।’’
प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रपति बाइडन शुरू में गुब्बारे को गिराने की कार्रवाई चाहते थे। कुछ सांसदों की भी यही राय थी। लेकिन पेंटागन के शीर्ष अधिकारियों ने जमीन पर लोगों की सुरक्षा के लिए जोखिम के कारण बाइडन को इस कदम के खिलाफ सलाह दी और राष्ट्रपति ने सहमति व्यक्त की।
यह कैसे पहुंचा
जहां तक हवा के रुख की बात है, तो चीन का यह कहना कि वैश्विक वायु धाराएं ‘वेस्टरलीज’ गुब्बारे को उसे क्षेत्र से अमेरिका के पश्चिमी हिस्से तक ले गईं। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय रसायन विज्ञान के प्रोफेसर डैन जाफ ने दो दशकों से चीनी शहरों से वायु प्रदूषण, साइबेरिया से जंगल की आग के धुएं और गोबी रेगिस्तान के रेत के तूफानों से धूल के अमेरिका तक पहुंचने जैसे विषयों का अध्ययन किया है।
जाफ ने कहा, ‘‘चीन से अमेरिका तक पहुंचने का समय लगभग एक सप्ताह होगा। यह जितना ऊंचा जाता है, उतनी ही तेजी से आगे बढ़ता है।’’
अमेरिका इस मुद्दे पर काफी हद तक चुप है, लेकिन नेता जोर देकर कह रहे हैं कि गुब्बारा गतिशील है। साथ ही उनका कहना है कि चीन ने जानबूझकर गुब्बारे को अमेरिकी हवाई क्षेत्र की ओर भेजा।
जासूसी गुब्बारों का इतिहास
जासूसी गुब्बारों का इस्तेमाल कोई नयी बात नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इस तरह के काफी गुब्बारे इस्तेमाल किए गए। प्रशासन के अधिकारियों ने शुक्रवार को कहा कि चीनी जासूसी गुब्बारों की इसी तरह की अन्य घटनाएं हुई हैं। एक अधिकारी ने कहा कि ट्रंप प्रशासन के दौरान ऐसी दो घटनाएं हुई थीं लेकिन इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जापान ने बम ले जाने वाले हजारों हाइड्रोजन गुब्बारे छोड़े, और इनमें सैकड़ों अमेरिका तथा कनाडा तक पहुंचे। अधिकतर अप्रभावी रहे, लेकिन एक घातक साबित हुआ और मई 1945 में, ओरेगॉन में जमीन पर गुब्बारे के गिरने से छह लोगों की मौत हो गई। (एपी)
डोडोमा, 4 फरवरी | तंजानिया के कोरोग्वे जिले के तांगा क्षेत्र में एक ट्रक और एक मिनी बस की आमने-सामने की टक्कर में कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई और 12 अन्य घायल हो गए। एक अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, तांगा क्षेत्रीय आयुक्त, ओमरी मुगुम्बा ने कहा कि शुक्रवार को एक मिनी बस एक शव को दफनाने के लिए 26 लोगों को डार एस सलाम से किलिमंजारो क्षेत्र में मोशी ले जा रही थी, उस समय दुर्घटना का शिकार हो गई।
मुगुम्बा ने कहा कि ट्रक मिनी बस से आमने-सामने की टक्कर हो गई क्योंकि उसका चालक सावधानी बरतने में विफल रहा क्योंकि उसने एक अन्य वाहन को ओवरटेक किया।
उन्होंने कहा कि 10 घायलों को इलाज के लिए तंगा क्षेत्रीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जबकि दो अन्य का इलाज कोरोग्वे जिला अस्पताल में चल रहा है। मृतकों की शिनाख्त की जा रही है। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 4 फरवरी पाकिस्तान ने विकिपीडिया द्वारा आपत्तिजनक या ईशनिंदा से संबंधित सामग्री को हटाने से इनकार करने के बाद वेबसाइट को ‘ब्लॉक’ कर दिया है। शनिवार को मीडिया में प्रकाशित खबर से यह जानकारी मिली है।
‘द न्यूज’ अखबार की खबर के अनुसार, विकिपीडिया को काली सूची में डालने की कार्रवाई ऐसे समय में हुई है, जब पाकिस्तान दूरसंचार प्राधिकरण (पीटीए) ने कुछ दिन पहले ही विकिपीडिया की सेवा को 48 घंटे के लिए बाधित और धीमा कर दिया था।
पीटीए ने विकिपीडिया को चेतावनी दी थी कि अगर वेबसाइट पर उपलब्ध ‘ईशनिंदा’ से संबंधित सामग्री हटाई नहीं जाती है, तो उसे ‘ब्लॉक’ कर दिया जाएगा।
खबर के मुताबिक, जब पीटीए के प्रवक्ता से शुक्रवार देर रात संपर्क किया गया और विकिपीडिया को ‘ब्लॉक’ करने के बारे में पूछा गया, तो अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए ‘‘हां’’ में जवाब दिया।
उच्च न्यायालय के निर्देश पर पीटीए ने 48 घंटों के लिए विकिपीडिया को बाधित और धीमा कर दिया था, क्योंकि उस पर ईशनिंदा सामग्री थी। विकिपीडिया एक मुफ्त ऑनलाइन विश्वकोश है, जिसे दुनियाभर के कार्यकर्ताओं द्वारा बनाया और संपादित किया गया है। इसका संचालन विकिमीडिया फाउंडेशन करता है।
पीटीए के प्रवक्ता ने कहा, “विकिपीडिया को नोटिस जारी कर उक्त सामग्री को ब्लॉक करने/हटाने का निर्देश दिया गया था। उसे पेशी का अवसर भी प्रदान किया गया। हालांकि, मंच ने न तो ईशनिंदा सामग्री हटाने के निर्देश का अनुपालन किया और न ही प्राधिकरण के सामने पेश हुआ।”
पाकिस्तान में सोशल मीडिया की बड़ी कंपनी फेसबुक और यूट्यूब को पूर्व में ईशनिंदा वाली सामग्री को लेकर ‘ब्लॉक’ किया गया था। मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में ईशनिंदा एक संवेदनशील मुद्दा है। (भाषा)
इंफाल, 4 फरवरी इंफाल में एक फैशन शो के आयोजन स्थल के पास शनिवार को शक्तिशाली धमाका हुआ। इस कार्यक्रम में रविवार को अभिनेत्री सनी लियोनी को हिस्सा लेना था।
एक अधिकारी ने बताया कि हालांकि, मणिपुर की राजधानी के हट्टा कांगजेइबंग इलाके में हुई घटना में कोई घायल नहीं हुआ। यह विस्फोट शनिवार सुबह करीब साढ़े छह बजे आयोजन स्थल से महज 100 मीटर की दूरी पर हुआ।
अधिकारी ने बताया कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि विस्फोट में आईईडी का इस्तेमाल किया गया या ग्रेनेड का। उन्होंने कहा कि फिलहाल किसी भी उग्रवादी संगठन ने इस धमाके की जिम्मेदारी नहीं ली है। (भाषा)
अमेरिकी सीमा पर 2022 में बिना वीजा के ही आने वाले भारतीयों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. सवाल यह है कि अमेरिका में उन्हें ऐसा क्या आकर्षित कर रहा है जो वहां जाने के लिए भारतीय इतना जोखिम उठाने को तैयार हैं?
डॉयचे वैले पर शबनम सुरिता की रिपोर्ट-
जनवरी में जॉर्जिया से सांसद रिच मैककॉर्मिक ने कहा था कि भारतीय अमेरिकी "अमेरिका में रह रहे सबसे अच्छे नागरिकों में से हैं." यह कहते हुए उन्होंने उन लोगों के लिए सुव्यवस्थित आव्रजन प्रक्रिया की मांग की जो अमेरिका में रहकर यहां के "कानून का पालन करें, समय पर करों का भुगतान करें और समाज में एक रचनात्मक और उत्पादक की भूमिका का निर्वाह करें."
हालांकि भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों को अक्सर ‘मॉडल' प्रवासियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर पैट्रोल डेटा के अनुसार, साल 2022 में भारतीयों की एक बड़ी संख्या ने अमेरिका में अनधिकृत तरीके से घुसने की कोशिश की. साल 2022 में, बिना दस्तावेज के अमेरिकी सीमा पर पहुंचकर शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या 63,927 थी, जो पिछले वर्ष के आंकड़े से दोगुने से भी ज्यादा है. मेक्सिको के साथ लगी अमेरिका की दक्षिणी सीमा इस तरह से आने वालों की एक चिर-परिचित जगह है.
अमेरिका में भारतीय आप्रवासन पर माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एमपीआई) 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2021 से लेकर सितंबर 2022 तक, अमेरिकी अधिकारियों ने दक्षिणी सीमा पर भारतीय प्रवासियों को 18,300 बार रोका. यह आंकड़ा पिछले साल दर्ज किए गए आंकड़े की तुलना में बहुत ज्यादा है. पिछली बार उन्हें 2600 बार रोका गया था. सैन एंटोनियो, टेक्सास में यूनिवर्सिटी ऑफ द इंकारनेट वर्ड में इतिहास और एशियाई अध्ययन की प्रोफेसर लोपिता नाथ कहती हैं कि अनधिकृत तरीके से यहां पहुंचने वाले भारतीयों की बढ़ती संख्या यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों की सकारात्मक छवि को धूमिल करने का काम कर सकती है.
अमेरिका जाने वाले भारतीय
एमपीआई की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 तक अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की संख्या 27 लाख है. अमेरिका आने वाले भारतीय आम तौर पर उच्च शिक्षित होते हैं और कई भारतीय उच्च कुशल श्रमिकों के लिए नियोक्ताओं की ओर से दिए जाने वाले अस्थाई एच-1बी वीजा के जरिए यहां आते हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे विदेशी छात्रों में भी भारतीय छात्रों की संख्या दूसरे नंबर पर है. हालांकि, अन्य देशों के लोगों की तुलना में भारतीय लोगों में अमेरिकी नागरिक बनने की प्रवृत्ति काफी कम है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "कुल मिलाकर, अन्य समूहों की तुलना में भारतीय लोगों में स्वाभाविक रूप से अमेरिकी नागरिक होने की संभावना कम थी, जो यह दर्शाता है कि अस्थायी वीजा पर आने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है.” डीडब्ल्यू से बातचीत में न्यू यॉर्क में रहने वाले इमिग्रेशन वकील रोहित बिस्वास कहते हैं कि नागरिकता पाने के कानूनी रास्ते कठिन होने के साथ ही, ज्यादा से ज्यादा भारतीय या तो अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश करते हैं या फिर वीजा कानूनों का उल्लंघन करके यहां पहुंचते हैं.
रोहित बिस्वास कहते हैं, "हमारे यहां एक ऐसा आर्थिक तंत्र है जिसके संचालन के लिए कुछ अप्रवासियों की आवश्यकता होती है लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे पास ऐसी आव्रजन प्रणाली भी है जो इसका समर्थन करती है.” दक्षिणी भारतीय शहर तिरुवनंतपुरम में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट के अध्यक्ष एस इरुदया राजन कहते हैं कि कड़े वीजा नियम और संगठित प्रवासी तस्करी नेटवर्क के कारण भी अमेरिकी सीमा पर अवैध तरीके से पहुंच रहे भारतीयों की संख्या बढ़ रही है.
मानव तस्करी का नेटवर्क
हालांकि, अवैध तरीके से प्रवासी लोगों को अमेरिका पहुंचाने वाले नेटवर्क अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर ज्यादा सक्रिय हैं लेकिन जहां तक भारतीयों का संबंध है, तो देखा गया है कि यह प्रवासियों की यह तस्करी कनाडा से लगी अमेरिकी सीमा पर ज्यादा होती है. साल 2020 में, एक भारतीय उबर ड्राइवर को अवैध रूप से सीमा पार कराकर लोगों को ले जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. बाद में जब जांच हुई तो इस एक गिरफ्तारी ने इसी तरह के 90 मामलों का पर्दाफाश किया जो अवैध तरीके से लोगों को अमेरिका में ले गए थे.
गैर-दस्तावेजी भारतीयों में से कई ऐसे भी हैं जो अपनी वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां रुके हुए हैं. अमेरिका में वीजा अवधि समाप्त होने के बावजूद रह रहे हर एक व्यक्ति की पहचान करना एक बड़ा कठिन काम है. इसके अलावा, बिना समुचित वीजा के अमेरिका में नए-नए आने वाले भारतीय अक्सर वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के समूह में मिलकर रहने लगता है जो उन्हें अपने बचाव का एक अच्छा तरीका लगता है.
अमेरिका क्यों जा रहे हैं अवैध रूप से
एमपीआई के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में अमेरिका के श्रम बाजार में भारतीय प्रवासियों की भागीदारी काफी ज्यादा थी. 16 वर्ष और उससे अधिक आयु के श्रमिकों में भारतीयों की भागीदारी 72 फीसद है. यह भागीदारी विदेशी और अमेरिका में जन्मी आबादी दोनों से अधिक है. विदेशी नागरिकों की श्रम बाजार में भागीदारी 66 फीसद और अमेरिका में जन्मे लोगों की भागीदारी करीब 62 फीसद थी.
नाथ और राजन दोनों का कहना है कि भारत में हाल ही में एक नए मध्यम वर्ग का जो उदय हुआ है वो देश से बाहर जाने में आने वाले खर्च को वहन कर सकता है और इसीलिए अमेरिका जैसे देशों की ओर उसका आकर्षण बढ़ा है. पैसे और अमेरिका पहुंचने के सपने के अलावा भारतीय डायस्पोरा के भीतर पहले से मौजूद नेटवर्क और यहां पहुंचने वालों की सफलता की कहानियां भी लोगों को अमेरिका आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
लोपिता नाथ का कहना है, "जहां नेटवर्क, नौकरियां और पारिवारिक जुड़ाव की संभावना है, प्रवासी वहीं जाना पसंद करते हैं.” वो आगे कहती हैं, "दूसरी ओर, भारत की घरेलू वास्तविकता भी सामने आ गई है. हमने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बहुत सारी प्रतिक्रियाओं को देखा है, चाहे वो मुस्लिम हों, ईसाई हों या फिर महिलाएं हों.” एमपीआई की रिपोर्ट में ‘गैर-हिंदुओं के खिलाफ भारत में बढ़ते धार्मिक और राजनीतिक उत्पीड़न' के साथ-साथ ‘घरेलू स्तर पर आर्थिक अवसरों की कमी' का भी हवाला दिया गया है, जो कि अमेरिकी सीमा पर अवैध तरीके से आने वाले भारतीयों की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई दे रहा है. (dw.com)
80 साल पहले, नाजी जर्मन सैन्य टुकड़ी के सरेंडर के साथ सोवियत संघ ने स्टालिनग्राद की लड़ाई जीत ली थी. इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध का रुख पूरी तरह बदल गया. रूस ने युद्ध की सालगिरह पर यूक्रेन पर हमले को जायज ठहराया.
डॉयचे वैले पर क्रिस्टॉफ हासेलबाख की रिपोर्ट-
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नाजी जर्मन सेना वेयरमाख्त का इरादा औद्योगिक शहर स्टालिनग्राद को जीतने का था. शहर का नाम सोवियत संघ के तत्कालीन नेता जोसेफ स्टालिन के नाम पर रखा गया था. इस शहर को जीतने के बाद नाजी सेना का अगला लक्ष्य कॉकेशस तेल क्षेत्र पर कब्जा जमाना था. शहर के नाम को देखते हुए अडोल्फ हिटलर और जोसेफ स्टालिन, दोनों के लिए स्टालिनग्राद की लड़ाई प्रतीकात्मक तौर पर इतनी महत्वपूर्ण बन गई थी कि जिसने कूटनीतिक तौर पर इसका महत्व बढ़ा दिया.
हालांकि, स्टालिनग्राद पर जर्मनी की सेना के छठे कोर का हमला शुरू से ही जोखिम भरा था. वजह यह थी कि यहां पर युद्ध से जुड़े सामानों की आपूर्ति के लिए सेना को लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. नाजी जर्मनी द्वारा पहली बार सोवियत संघ पर हमला करने के लगभग एक साल बाद, जनरल फ्रेडरिक पॉलुस के नेतृत्व में वेयरमाख्त ने अगस्त 1942 के मध्य में स्टालिनग्राद पर हमला किया था. इसके बाद हिटलर ने दावा किया था, "रूसी थक चुके हैं.” हिटलर की यह सोच पूरी तरह गलत साबित हुई.
कड़े संघर्ष के बावजूद, वेयरमाख्त नवंबर 1942 के मध्य तक स्टालिनग्राद के अधिकांश इलाकों को जीतने में सफल रहा. हालांकि, इस समय तक सोवियत सेना ने जर्मन सैनिकों को घेरने के लिए दोतरफा हमला शुरू कर दिया था. नवंबर के अंत में, रेड आर्मी ने जर्मनी की छठी सेना और चौथी टैंक ब्रिगेड के करीब तीन लाख जर्मन सैनिकों को घेर लिया था. इसके बावजूद हिटलर का आदेश था कि वे अपनी जगह पर डटे रहें. इसी तरह, स्टालिन ने भी जुलाई में अपनी सेना से कहा था कि वे ‘अपनी जगह से एक इंच भी न हिलें.'
दोनों तरफ के सैनिक अपनी जगहों पर डटे रहे और जल्द ही चौतरफा घिर चुकी जर्मन सेना की स्थिति बिगड़ने लगी. कई हफ्तों तक जर्मन हवाई सेना लुफ्टवाफे ने जरूरी सामानों की आपूर्ति करने का प्रयास किया, लेकिन वह पर्याप्त नहीं था. जैसे-जैसे सोवियत संघ की रेड आर्मी आगे बढ़ती गई, जर्मन सेना तक आपूर्ति कम होने लगी. फिर सर्दी आ गई. तापमान लुढ़ककर -30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. नतीजा ये हुआ कि जर्मनी के कई सैनिक लड़ाई में नहीं, बल्कि भूख और हाइपोथर्मिया की वजह से मर गए.
जर्मन सैनिकों का आत्मसमर्पण
जर्मन सेना ने अपने सैनिकों को बचाने के लिए राहत अभियान चलाने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ. इन विकट परिस्थितियों के बावजूद, जनरल पॉलुस ने 8 जनवरी, 1943 को आत्मसमर्पण करने के सोवियत संघ के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और हिटलर के ‘डटे रहने और लड़ने' के आदेश का पालन किया. 29 जनवरी को पॉलुस ने हिटलर को संदेश भेजा, "सत्ता पर आसीन होने की 10वीं वर्षगांठ मुबारक हो. जर्मनी की छठी सेना अपने नेता (फ्यूरर) का अभिवादन करती है. स्वस्तिक झंडा अभी भी स्टालिनग्राद के ऊपर लहरा रहा है... मेरे फ्यूरर की जय हो!”
दरअसल, 30 जनवरी नाजी कैलेंडर का काफी महत्वपूर्ण दिन था. 30 जनवरी, 1933 को हिटलर सत्ता में आया था. यह दिन नाजी शासनकाल में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था. हालांकि, 31 जनवरी को रेड आर्मी ने एक डिपार्टमेंटल स्टोर के नीचे तहखाने में स्थित पॉलुस के मुख्यालय पर धावा बोलकर उसे जिंदा पकड़ लिया. उस समय पॉलुस ने अपने अधिकारियों को कैद से बचने के लिए आत्महत्या करने से मना कर दिया था, ताकि वे भी दूसरे जर्मन सैनिकों की तरह कैद में रहें.
इस दौरान, घिरे हुए जर्मन सैनिक दो टुकड़ी में बंटकर अलग-अलग शिविरों में रह रहे थे, एक उत्तरी स्टालिनग्राद में और दूसरा दक्षिण में. जनवरी के अंत तक, दक्षिणी हिस्से के सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. 2 फरवरी, 1943 तक उत्तरी हिस्से के सैनिकों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया. जब यह बात हिटलर को पता चली, तो वह आगबबूला हो गया.
लड़ाई में लाखों लोगों की मौत
स्टालिनग्राद की लड़ाई में सोवियत संघ के पांच लाख से ज्यादा लोग मारे गए. इनमें सैनिकों के साथ-साथ सामान्य नागरिक भी शामिल थे. इसकी वजह यह थी कि स्टालिन ने युद्ध क्षेत्र से आम नागरिकों को सुरक्षित जगहों पर नहीं भेजा था. लड़ाई के शुरुआती दिनों में जर्मन हवाई हमलों में 40 हजार से अधिक लोग मारे गए. जर्मनी के आत्मसमर्पण तक स्टालिनग्राद में रहने वाले करीब 75 हजार नागरिकों में कई भूख और हाइपोथर्मिया से मर गए.
वहीं, दूसरी ओर स्टालिनग्राद में 1,50,000 से लेकर 2,50,000 जर्मन मारे गए. युद्ध बंदियों के तौर पर सोवियत संघ में कैद किए गए 1,00,000 जर्मन में से महज 6,000 ही 1956 तक वापस जर्मनी लौटे. उनमें जनरल पॉलुस भी शामिल थे.
न्यूजर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय के इतिहासकार योखेन हेलबेक ने बताया कि नाजी जर्मन सेना वेयरमाख्त के लिए, स्टालिनग्राद की लड़ाई वह लड़ाई नहीं थी जिसमें सबसे ज्यादा लोग मारे गए और न ही इसका काफी ज्यादा कूटनीतिक महत्व था, लेकिन स्टालिनग्राद का मनोवैज्ञानिक प्रभाव काफी ज्यादा था. यही वजह थी कि इसने इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई. उनके अनुसार, "यह युद्ध इसलिए महत्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि दोनों पक्षों ने इसे महत्वपूर्ण घोषित किया था.”
युद्ध के बाद रूसी प्रचार
स्टालिनग्राद की लड़ाई, जिसमें सोवियत संघ की जीत हुई वह मिथक बन गई. दूसरे शब्दों में कहें, तो पौराणिक कथा बन गई. लंबे समय तक दुनिया की सबसे मजबूत सेना मानी जाने वाली नाजी जर्मनी की सेना को निर्णायक हार का सामना करना पड़ा. आज एक बार फिर रूस यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध में इस मिथक का सहारा ले रहा है. महीनों से रूस यूक्रेन के खिलाफ अपने हमले को सही ठहराते हुए कह रहा है कि यह एक बार फिर से ‘नाजियों' के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध है.
जनरल पॉलुस ने हिटलर के निर्देश के बावजूद सरेंडर कर दियाजनरल पॉलुस ने हिटलर के निर्देश के बावजूद सरेंडर कर दिया
रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह इलजाम लगा रहे हैं कि यूक्रेनी सरकार पूर्वी यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाली आबादी को खत्म करने की योजना बना रही है. हमले का आदेश देते समय पुतिन ने यह घोषणा की थी कि वह यूक्रेन को ‘नाजियों के प्रभाव से मुक्त' करेंगे. यूक्रेन के मौजूदा नेतृत्व पर ‘नाजी का लेबल' लगाना पुतिन के लिए युद्ध शुरू करने का एकमात्र बहाना माना जा सकता है.
उन्होंने आज और 80 साल पहले की स्थिति के बीच की जिस समानता की बात कही है वह ऐतिहासिक रूप से मेल नहीं खाती है. 1941 में नाजी सैनिकों ने सोवियत संघ पर हमला किया था और सोवियत ने अपनी आत्मरक्षा में वह लड़ाई लड़ी थी. जबकि 2022 की स्थिति बिल्कुल अलग है. इस बार रूस ने बिना किसी धमकी के पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला किया है.
स्टालिन का नया मूल्यांकन
वोल्गोग्राद में स्टालिनग्राद संग्रहालय भी पुतिन की कहानी में एक भूमिका निभाता है. यह रूस की सबसे लोकप्रिय पर्यटन जगहों में से एक है. फिलहाल, इस जगह पर यूक्रेन में मारे गए रूसी सैनिकों के परिवारों के लिए समारोह आयोजित किए जाते हैं. यहां रूसी रक्षा मंत्रालय की ओर से देशभक्त युवा आर्मी नामक एक समारोह का आयोजन भी किया गया जिसमें बच्चों को ‘स्टालिनग्राद के विजेताओं के वंशज' के तौर पर सराहा गया.
वोल्गोग्राद के प्रसिद्ध युद्ध स्मारक भी ऐसे लोकप्रिय स्थान बन गए हैं जहां रूसी सैनिक यूक्रेन जाते समय इकट्ठा होते हैं. रूस और यूक्रेन का अतीत कितना अलग दिखता है, यह जोसेफ स्टालिन के व्यक्तित्व के मूल्यांकन से भी स्पष्ट होता है. स्टालिनग्राद की लड़ाई की 80वीं वर्षगांठ पर वोल्गोग्राद में सोवियत संघ के पूर्व तानाशाह की एक नई प्रतिमा का अनावरण किया गया है. जबकि 1960 में स्टालिन की मृत्यु के बाद शहर का नाम बदलकर उन लाखों लोगों के सम्मान में वोल्गोग्राद रखा गया था, जिन्होंने स्टालिन के क्रूर शासन के दौरान अपनी जान गंवाई थी.
यूक्रेन में स्टालिन को ‘होलोडोमोर (भूख से मारना)' के लिए याद किया जाता है. 1932 और 1933 में सिर्फ यूक्रेन में 40 लाख लोग अकाल का शिकार हुए थे. इतिहासकारों का दावा है कि यूक्रेन के किसानों की एकता को तोड़ने के लिए यह अकाल जान-बूझकर पैदा किया गया था.
जर्मन और रूसी सैनिकों का कब्रिस्तान
वर्ष 2022 में जर्मन बुंडेस्टाग और यूरोपीय संसद दोनों ने होलोडोमोर को नरसंहार के तौर पर मान्यता दी. इस पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा था, "बुंडेस्टाग के सदस्यों ने उस राजनीतिक और वैचारिक मिथक का समर्थन करने का फैसला किया जिसे यूक्रेनी अधिकारियों ने अति-राष्ट्रवादी, नाजी और रूस के खिलाफ काम करने वाली ताकतों की शह पर गढ़ा है.”
आज भी वोल्गोग्राद और उसके आसपास के इलाकों में निर्माण कार्यों के दौरान लाशों के अवशेष और सामूहिक कब्रिस्तान मिलते हैं. जर्मन वॉर ग्रेव्स कमीशन और रूसी अधिकारियों के सहयोग से अवशेषों को वोल्गोग्राद के बाहर रोसोस्का जैसे आधिकारिक सैन्य कब्रगाहों में दफन कर दिया जाता है.
यहां नाजी जर्मन सेना वेयरमाख्त के सैनिकों और रेड आर्मी के सैनिकों को एक ही कब्रिस्तान में दफनाया गया है. हालांकि, दोनों के बीच लकीर के तौर पर एक सड़क बना दी गई है, ताकि यह फर्क किया जा सके कि कहां पर किसे दफनाया गया है. (dw.com)
ममी बनाने के लिए शव पर लेप चढ़ाया जाता था, लेकिन लेप में किन पदार्थों का मिश्रण होता था और किस तरीके से उनका इस्तेमाल होता था, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. अब कुछ ऐसी जानकारियां मिली हैं जो हैरान कर सकती हैं.
वैज्ञानिकों ने मिस्र में ममी बनाने की एक प्राचीन जगह का पता लगाया है. यह एक अभूतपूर्व खोज है. इससे ममी बनाने की जटिल प्रक्रिया के बारे में काफी ज्यादा जानकारी मिली है. साथ ही, प्राचीन मिस्र में प्रचलित चित्रलिपि के बारे में भी जानकारी मिली. मिस्र की राजधानी काहिरा से लगभग 30 किलोमीटर दूर सक्कारा में स्थित यह जगह लगभग 664-525 ईसा पूर्व की है. यहां जमीन के नीचे 30 मीटर तक एक भूमिगत संरचना और कई भूमिगत कमरे मिले हैं.
इस जगह का पता 2016 में चला था. तब से शोधकर्ता लगातार इस पर शोध कर रहे थे. यहां कई बीकर और कटोरे मिले. इन बर्तनों की जांच से पता चला है कि ममी बनाने में जो सामग्री इस्तेमाल होती थी वह दक्षिण पूर्व एशिया तक से लाई जाती थी. इसका मतलब है कि इसके लिए एक बड़ा व्यापार नेटवर्क भी था.
छिपी हुई विधि
अब तक वैज्ञानिकों को ममी बनाने की प्रक्रिया के बारे में जो भी जानकारी हासिल हुई है वह अधिकांश पेपाइरस पर लिखी किताबों, यूनानी इतिहासकारों और मिस्र में मिली ममियों से प्राप्त हुई है. इन स्रोतों से पता चलता है कि ममी बनाना एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विशेष तेलों, रेजिन और टार के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, वैज्ञानिक पूरी तरह से यह पता नहीं लगा पा रहे थे कि ममी बनाने के लिए इन पदार्थों का क्यों और किस तरह से इस्तेमाल किया जाता था. वे सभी पदार्थों की जानकारी हासिल नहीं कर सके थे.
पुरानी किताबों में कई पदार्थों के नाम दिए गए हैं, लेकिन उनका अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण है. इसलिए, अभी भी इस बात पर बहस चल रही है कि किस पदार्थ का नाम क्या है. शोधकर्ता प्राचीन ममियों में पाए जाने वाले पदार्थों का विश्लेषण कर पाते थे, लेकिन अक्सर यह नहीं बता पाते थे कि उनका इस्तेमाल क्यों, कैसे या शव के किस हिस्से पर किया जाता था.
लेबल वाले कंटेनर मिले
नेचर जर्नल में बुधवार को प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक, लेखकों ने पाया कि शोधकर्ताओं को ज्यादा जानकारी पाने के लिए किस चीज की जरूरत थी. शोधकर्ताओं को 600 ईसा पूर्व के ममी बनाने की जगह से लेबल वाले 31 सेरामिक कंटेनर मिले, जिनमें अभी भी कुछ पदार्थ भरे हुए थे. कुछ कंटेनर पर इस बात की भी जानकारी दी हुई थी कि कुछ खास पदार्थों का इस्तेमाल कैसे और कहां करना है.
उदाहरण के लिए, एक कंटेनर पर यह लिखा था कि इस पदार्थ का इस्तेमाल सिर पर लेप लगाने के लिए किया जाना चाहिए. वहीं, एक अन्य पर लिखा था कि इसका इस्तेमाल सुगंध के लिए किया जाना चाहिए.
काहिरा स्थित अमेरिकी विश्वविद्यालय में इजिप्टोलॉजी की प्रोफेसर सलीमा इकराम ने डॉयचे वेले को बताया, "इससे पहले हुए अध्ययन में हमें कई पदार्थों के नाम की जानकारी हासिल हुई थी, लेकिन हमें यह नहीं पता था कि उनका इस्तेमाल किस तरह किया जाना चाहिए. हमने बस यह मान लिया था कि वे किसी न किसी काम में इस्तेमाल किए जाते थे.” इकराम उस अध्ययन में शामिल नहीं हैं जो नेचर जर्नल में प्रकाशित की गई है.
मिस्र की भाषा के बारे में जानकारी
सक्कारा के एक बड़े प्राचीन कब्रिस्तान में पुरातत्वविदों, प्राचीन भाषा के विशेषज्ञों और रसायन विशेषज्ञों ने एक साथ मिलकर अध्ययन किया. जर्मनी के म्यूनिख स्थित लुडविग मैक्सिमिलियान विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक फिलिप स्टोकहामर ने प्रेस वार्ता में कहा, "हमने बर्तन के अंदर मौजूद रासायनिक पदार्थों की पहचान की और कंटेनर पर लगे लेबल से पता लगाया कि उनका इस्तेमाल किस काम के लिए किया जाता था.”
ऐसा करके शोधकर्ताओं को पता चला कि पहले वे जिन शब्दों का जो मतलब समझ रहे थे वह गलत था. जैसे, प्राचीन मिस्र के शब्द ‘एंटीयू', जो पारंपरिक तौर पर लोहबान से जुड़ा हुआ है. इसी तरह ‘सेफेट', जिसे पारंपरिक रूप से अज्ञात तेल बताया जाता रहा है. इस बार के शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि ‘एंटीयू' का मतलब लोहबान नहीं, बल्कि जानवरों की चर्बी और देवदार के तेल का मिश्रण है. वहीं, ‘सेफेट' भी एक सुगंधित लेप है, जो साइप्रस या एलेमी पौधे के तेल का मिश्रण है.
वैज्ञानिकों को एलेमी जैसे उष्णकटिबंधीय रेजिन भी मिले, जो शायद दक्षिण-पूर्व एशिया या अफ्रीकी वर्षा वनों से लाए गए हों. दोनों अपनी सुगंध, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुणों के लिए जाने जाते हैं. स्टोकहामर ने कहा, "इससे हमें पता चलता है कि ममी बनाने के कारोबार से वैश्वीकरण की शुरुआत हो चुकी थी, क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशिया से रेजिन लाने के लिए परिवहन के साधनों की जरूरत होती होगी.”
मिस्र और यूरोप की सहभागिता
खोज स्थल से मिले सेरामिक कंटेनरों का विश्लेषण करने की जरूरत थी, लेकिन मिस्र का कानून शोधकर्ताओं को देश से प्राचीन नमूनों को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं देता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने नमूनों का विश्लेषण करने के लिए काहिरा स्थित राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र में शोध किया. अध्ययन की सह-लेखिका सुजाने बेक ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आपसी सहयोग की कमी की वजह से ही अब तक इस तरह के शोध नहीं हो पाए थे.
नमूनों का विश्लेषण करने के लिए शोधकर्ताओं ने सेरामिक कंटेनरों का पाउडर बनाया और सॉल्वैंट के साथ मिलाकर लेपन की सामग्री को अलग किया. इसके बाद, उन्होंने गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक एक प्रक्रिया की मदद से उनका विश्लेषण किया. कनाडा स्थित यॉर्क विश्वविद्यालय और टुइबिंगेन स्थित एबरहार्ड कार्ल्स विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर व अध्ययन के सह-लेखक स्टीफन बकले ने कहा, "इस प्रक्रिया में लेप बनाने की विधि में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रत्येक पदार्थों का रासायनिक विश्लेषण किया गया.”
बकले ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत, पदार्थों को अलग-अलग किया जाता है. इसके बाद, हर पदार्थ में शामिल तत्वों की खोज की जाती है. इससे शोधकर्ताओं को पता चलता है कि किन मूल तत्वों का इस्तेमाल ममी बनाने की प्रक्रिया के दौरान किया गया.
पैट्रियॉट मिसाइलें हों या टैंक, यूक्रेन में इन सबको भेजने के सवाल पर पश्चिमी देश बहुत दुविधा में थे और ना से हां तक पहुंचने का सफर बड़ा मुश्किल भरा रहा है. लेकिन इस बहस ने अमेरिकी जर्मन संबंधों में नया मोड़ ला दिया है.
डॉयचे वैले पर विलियम नोआ ग्लूक्रॉफ्ट की रिपोर्ट-
अगर यह ग्राउंडहॉग डे जैसा लगता है, तो यह सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि इस हफ्ते अमेरिका में छुट्टी का दिन है. इसी समय पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को अपने मुख्य युद्धक टैंक भेजने का कठिन निर्णय लिया है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के एक साल बाद समर्थन के एक विशेष पैटर्न का यह सबसे हालिया उदाहरण है जो करीब एक साल पहले यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ शुरू हुआ था.
चाहे भारी हथियार हों, उन्नत वायु रक्षा या उच्च स्तरीय बख्तरबंद गाड़ियां हों, इन्हें यूक्रेन को भेजने की शुरुआत पहले ना-नुकुर से होती है और फिर हां तक पहुंच जाती है. लेकिन उससे पहले हफ्तों की बातचीत, तकनीकी बहाने और सहयोगी दलों के बीच एकता दिखाने के प्रयासों के बीच इस मामले में अनिच्छा दिखा रहे देशों पर तेज फैसला लेने के समर्थकों की अधिक दबाव बनाने की कोशिश भी होती है.
अमेरिका और जर्मनी आर्थिक ताकत, औद्योगिक क्षमता और क्रय शक्ति के मामले में गठबंधन के सबसे बड़े सदस्य हैं, और यूक्रेन को मदद के सवाल ने उनके द्विपक्षीय संबंधों को भी नए तरीकों से रंग दिया है. और यह संबंध भी एक अत्यंत जटिल वैश्विक तस्वीर का सिर्फ एक हिस्सा है.
दबाव से धैर्य तक
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के धमकाने वाले वर्षों के बाद, उनके उत्तराधिकारी जो बाइडेन ने यूरोपीय सहयोगियों के साथ विनम्रता की नीति अपनाई है. ‘आरोप की रणनीति' की बजाय उन्होंने और उनके प्रशासन ने धैर्य से काम लिया है और जर्मनी के योगदान के लिए अक्सर उसकी प्रशंसा की है. डीडब्ल्यू से बातचीत में जर्मन मार्शल फंड के बर्लिन दफ्तर के वरिष्ठ विशेषज्ञ थॉमस क्लाइने-ब्रॉकहोफ कहते हैं कि यह जर्मनी को कूटनीतिक ‘कवर' देने का भी एक प्रयास है क्योंकि उसे असहज नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है.
हाल ही में, जो बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से चांसलर ओलाफ शॉल्त्स को यूक्रेन के प्रति उनकी ‘दृढ़ प्रतिबद्धता' के लिए बधाई दी और ‘आगे बढ़ने' के लिए जर्मनी को श्रेय दिया. हालांकि, क्लाइने ब्रॉकहोफ ये भी कहते हैं कि युद्धक टैंक डिलीवरी के हालिया मुद्दे पर बहस ने बंद दरवाजों के पीछे एक अलग ही रास्ता अपनाया है.
ब्रॉकहोफ कहते हैं, "जर्मन चांसलर ने अमेरिका पर टैंकों की डिलीवरी के मामले में दबाव डाला और कहा कि मैं तभी करूंगा जब पहले आप करेंगे. इससे अमरीकी पक्ष में कुछ हलचल हुई, खासकर इसलिए क्योंकि अमेरिका ने जर्मनी पर दबाव डालने से परहेज किया था.” हालांकि बाइडेन ने इस बात से इनकार किया है कि शॉल्त्स के दबाव ने उन्हें अमेरिकी एब्रेम्स टैंक भेजने पर अपना विचार बदलने के लिए मजबूर किया. क्लाइने ब्रॉकहोफ कहते हैं कि अमेरिका में नीति निर्माताओं को अब एहसास हुआ है कि "जर्मन वास्तव में अनुसरण करना चाहते हैं, नेतृत्व करना नहीं चाहते हैं."
पुराने तनाव कम होते ही नए तनाव
शॉल्त्स के आलोचकों के लिए, यह जर्मन संसद बुंडेस्टाग में उनके उस धमाकेदार संबोधन का खंडन करता प्रतीत होता है जो उन्होंने पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कुछ ही दिनों बाद किया था. इस संबोधन में उन्होंने ‘साइटेनवेन्डे' यानी एक ऐतिहासिक मोड़ की घोषणा की जिसका मतलब था सैन्य खर्च में भारी वृद्धि और एक अधिक मजबूत सुरक्षा नीति तय करना. ब्रॉकहोफ कहते हैं, "अमेरिकी-जर्मन संबंधों में लंबे समय से चल रहे चिड़चिड़ेपन पर रास्ता बदलने के लिए जर्मनों को युद्ध का सहारा लेना पड़ा.”
अमेरिकी अधिकारियों के दृष्टिकोण में यह उच्च सैन्य खर्च की मांग पर जर्मनी का प्रतिरोध था, जो सकल घरेलू उत्पाद के 2 फीसद के नाटो के पैसले से कम हो रहा था और रूस के साथ इसकी नॉर्ड स्ट्रीम गैस परियोजनाएं भी अमेरिका को खटकती थीं. वहीं जर्मनी इस विचार से चिढ़ गया था कि एक सहयोगी उसे ऊर्जा सौदे को रोकने के लिए प्रतिबंधों की धमकी देगा. ये मुद्दे तब से रास्ते से हट गए जब से नाटो के ‘परमाणु साझाकरण' कार्यक्रम में जर्मनी की भागीदारी को लेकर वहां बहस चल रही है. यह एक ऐसी नीति है जो अमेरिकी परमाणु हथियारों को जर्मनी की धरती पर रखने की अनुमति देती है और उन्हें ले जाने के लिए जर्मन विमानों की जरूरत होती है.
अपने-अपने हित
अमेरिकी हितों को पहले रखने के लिए बाइडेन की तेजी, मसलन, सब्सिडी-बहुल मुद्रास्फीति में कमी संबंधी अधिनियम और निरंकुश शासकों के खिलाफ खड़े लोकतंत्रों के गठबंधन की उनकी दृष्टि, वह जटिल लेकिन संतुलित कार्यशैली है जो अमेरिका-जर्मनी संबंधों को तय कर रही है. जहां जर्मनी यूक्रेन को क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले के रूप में देखता है, वहीं अमेरिका के लिए यह युद्ध भू-राजनीतिक शतरंज के जटिल खेल का एक हिस्सा है. अमेरिका के लिए एक कमजोर रूस उसके अपने हितों के लिए वरदान हो सकता है. यह अमेरिका का ऐसा दृष्टिकोण है जिसका समर्थन जर्मनी आसानी से नहीं कर सकता.
यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट गालेन में इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिटिकल साइंस के डायरेक्टर जेम्स डेविस कहते हैं, "कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो जर्मनी के पास उस तरह से सोचने की मानसिक या बौद्धिक क्षमता भी नहीं है. वहां ऐसा करने के लिए कोई भी प्रशिक्षित नहीं है.” अमेरिका को यूरोप की रक्षा के भार को साझा करने के लिए जर्मनी की आवश्यकता है ताकि वह प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए अधिक संसाधन जुटा सके. इस बीच, जर्मनी को यह समझने की जरूरत है कि वह यूरोप में अमेरिकी समर्थन पर भरोसा कर सकता है.
डेविस कहते हैं, "क्या आप इस वक्त अपना दांव अमेरिका के साथ लगाएंगे? यह एक उचित सवाल है.” ट्रंप के शासनकाल के दौरान हुए नुकसान से बाहर आकर, जर्मनी जैसे अमेरिकी सहयोगियों को प्रशांत क्षेत्र में विरोधी हितों का सामना करना पड़ता है और उम्मीद है कि उन्हें चीन पर साथ आना होगा. इस समय एक अप्रत्याशित रिपब्लिकन पार्टी के हाथ में कांग्रेस का नियंत्रण है, जो अमेरिका में एक विनाशकारी ऋण चूक की धमकी दे रही है और इस बात की याद दिलाती है कि बाइडेन के नेतृत्व में व्हाइट हाउस का संचालन बेहतर है.
नए निवेश, समान उपलब्धि
डेविस कहते हैं कि यह हैरान करने वाली बात है कि 9/11 के बाद से अमेरिका-जर्मन संबंधों में बड़े बदलावों के बावजूद, विदेश नीति के मुद्दों पर नेतृत्व करने के लिए जर्मनी की अनिच्छा वैसी ही बनी हुई है. जर्मन सरकारें इराक में अमेरिकी सैनिकों को भेजने, पकड़े गए लड़ाकों को यातना और दुर्व्यवहार और एक बड़े पैमाने पर जासूसी अभियानों की बहुत आलोचक थीं. जासूसी अभियानों में जर्मनी भी अमेरिका के लक्ष्य पर था. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका जर्मनी को अपने से दूर रखना चाहता था और वैश्विक मंच पर उसकी मौजूदगी को सीमित रखना चाहता था.
दोनों के बीच संबंध अब बहुत सामान्य हैं लेकिन यह हिचकिचाहट अभी भी बनी हुई है. डेविस कहते हैं, "ट्रांस-अटलांटिक संबंधों में अभी भी यह हताशा है, इस तरह का तनाव है, लेकिन इस बार ऐसा इसलिए है क्योंकि जर्मन कहते हैं, ‘केवल आपके साथ'.” जर्मनी में सत्तारूढ़ त्रिपक्षीय गठबंधन का नेतृत्व करने वाले सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स ने अक्सर रूस के साथ एक सहकारी दृष्टिकोण की वकालत की है जो कि यूरोप का सबसे बड़ा देश है और आक्रमण से पहले तक उनका एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहा है.
रूसी हमले के बाद एसपीडी के कई सांसदों ने अपना रुख बदल लिया है, लेकिन पार्टी के आलोचक अभी भी संशय में हैं. यह राजनीतिक संशय पूर्वी जर्मनी यानी जीडीआर के मतदाताओं से कुछ समर्थन हासिल होने की वजह से भी है. पूर्व साम्यवादी जीडीआर, सोवियत संघ का सहयोगी था जो जर्मनी के पश्चिमी हिस्सों की तुलना में सांस्कृतिक रूप से रूस के करीब महसूस करते हैं और रूस के साथ टकराव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं रहते.
पूर्ववर्ती पश्चिम जर्मनी अधिक अमेरिकी समर्थक हो सकता है, लेकिन यह भावना शीत युद्ध-युग की इस उम्मीद के साथ आती है कि अमेरिका अगुआ है. नाजी अतीत और उसके बाद सैन्य शक्ति से दूरी की जर्मनी की नीति को खारिज करते हुए डेविस कहते हैं, "नई भूमिका में विकसित होने के लिए आपके पास काफी लंबा समय था. यह मुझे 30 साल के उन लोगों की याद दिलाता है जो अपने माता-पिता के घर से बाहर नहीं जाना चाहते हैं.” (dw.com)
करीब 4,000 साल पहले, नवपाषाण काल के कलाकारों ने उस युग के लड़ाकों, युद्ध और दफनाने की रस्म को एक चट्टान पर उकेर कर उन्हें अमर बना दिया. दक्षिण-पूर्वी फ्रांस में पिछले दिनों ऐसी 120 रॉक पेंटिंग्स का पता चला है.
डॉयचे वैले पर फिलिप येडिके की रिपोर्ट-
बुधवार को फ्रांस के क्षेत्रीय अखबार ला प्रोवांन्स ने खबर दी कि फ्रांसीसी मैरीटाइम आल्प्स के मैरकानटुर नेशनल पार्क में एक चट्टान पर बने इन चित्रों का पता चला. ये चट्टान "वैली ऑफ वंडर्स" कही जाने वाली घाटी से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है. हैरतों से भरी ये घाटी अपने करीब 40,000 पाषाणकालीन शैल चित्रों के लिए मशहूर है.
अनुमान है कि हाल में खोजी गई पेंटिंग्स 4000 साल पुरानी होंगी. जिनमें योद्धाओं, लड़ाई के अभियानों और दफनाने की रस्मों को दिखाया गया है. प्रागैतिहास और पुरातात्विक प्रागैतिहास के मेडिटरेनियन आल्प्स इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष क्लोद सेलिसिस, नयी खोज को लेकर खासे उत्साहित हैं.
पिता-पुत्र की जोड़ी को मिले शैल चित्र
उन्होंने नीस-माटिन अखबार को बताया कि इस खोज से पहले, समूचे जिले में सिर्फ दो शैल चित्रों की शिनाख्त हो पाई थी. उन्होंने कहा, "यहां हमें एक साथ 120 रॉक पेंटिग्स मिली है. इसका मतलब ये ठिकाना पूरे सूबे में सबसे अहम ठिकानों में से एक है." सेलिसिस के मुताबिक, पत्थर युग के चित्रकारों ने स्थानीय तलछटी चट्टानों पर बारीकी से नक्काशी की, उनमें रंग भरे और अंगुलियों से अपने नमूने पत्थर पर छाप दिए.
पिता पुत्र की जोड़ी, मार्सेल और लुई पीत्री को चट्टान की चढ़ाई के दौरान इन चित्रों का पता चला. ला रोश गांव के ऊपर स्थित ये चट्टान, कई साल से हाइकिंग और चढ़ाई के लिए इस्तेमाल की जाती है. लेकिन पहली बार ये चित्र नजर में आ पाए. दोनों हाइकर और अन्वेषक अपने इलाके से गहरे जुड़े हैं और इतालवी सीमा के पास वाल्देब्लोर इलाके का चप्पा चप्पा जानते हैं.
लिगुरियाई योद्धाओं का पवित्र स्थल
चट्टान की सतह से अतीत में कई बार चूना हटाया गया था. निश्चित रूप से कुछ प्रागैतिहासिक संरचनाएं नष्ट भी हो गई थी. सेलिसिस का अंदाजा है कि ये चट्टान, नवपाषाण काल में सेल्टो-लिगुरियन योद्धाओं का पवित्र स्थल रहा होगा.
नोविले-एक्वीतेन इलाके में लासो के गुफा चित्रों से उलट, हाल में मिले शैल चित्र हजारों साल से हवा और मौसम की मार झेलते आए हैं. इसके बावजूद चट्टान पर उभारे गए दृश्य पहचाने जा सकते हैं. फ्रांस के भूमध्यसागरीय क्षेत्र में इंसानी वजूद के निशान, और जैसा कि उन्हें कहा जाता है, "प्राचीन मानव नस्ल" के निशान लाखों साल पहले के हैं. (dw.com)
फिलाडेल्फिया (अमेरिका), 4 फरवरी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने डेमोक्रेटिक पार्टी की एक बैठक में शुक्रवार रात राष्ट्रपति के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए उम्मीदवारी पेश करने का संकेत दिया।
बैठक में डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों ने ‘‘चार और साल’’ के नारे लगाए। बहरहाल, अभी इस संबंध में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी है।
बाइडन ने ‘डेमोक्रेटिक नेशनल कमिटी’ से दावा किया कि उनके प्रशासन ने एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने में मदद की है। उन्होंने कहा कि उनके प्रशासन ने जन कार्यों, स्वास्थ्य देखभाल तथा हरित प्रौद्योगिकी में देश के प्रमुख संघीय निवेश किए।
उन्होंने रिपब्लिकन चरमपंथ की आलोचना की।
उन्होंने पार्टी के सैकड़ों नेताओं के ‘चार और साल’ के नारों के बीच पूछा, ‘‘मैं एक सीधा-सादा सवाल पूछता हूं। क्या आप मेरे साथ हैं?’’
बाद में राष्ट्रपति ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा, ‘‘अमेरिका अपने रंग में लौट आया है और हम एक बार फिर दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं।’’
बाइडन का फिर से चुनाव लड़ने का संकेत देना खासतौर से ऐसे वक्त में महत्वपूर्ण है जब गोपनीय दस्तावेजों से जुड़ी जांच को लेकर उन पर दबाव बढ़ रहा है।
इससे पहले, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने गर्भपात अधिकारों के मुद्दे पर रिपब्लिकन पार्टी के कड़े विरोध समेत विभिन्न मामलों को लेकर उस पर निशाना साधा।
बाइडन और हैरिस ने शुक्रवार को फिलाडेल्फिया में एक जल शोधन संयंत्र का भी दौरा किया।
अगले सप्ताह होने वाले ‘स्टेट ऑफ यूनियन’ भाषण से पहले बाइडन ने राजनीतिक एकता का आह्वान किया।
एपी गोला सिम्मी सिम्मी 0402 1036 फिलाडेल्फिया (एपी)
सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका), 4 फरवरी। अमेरिका की एक जूरी ने अपने फैसले में कहा है कि एलन मस्क ने 2018 में इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला के बारे में एक प्रस्तावित समझौते को लेकर ट्वीट कर निवेशकों को गुमराह नहीं किया था।
यह मामला मस्क के सात अगस्त 2018 को किए गए दो ट्वीट से संबंधित है। मस्क ने दोनों ट्वीट में कहा था कि उन्होंने टेस्ला को खरीदने के लिए पर्याप्त वित्त का इंतजाम कर लिया है। हालांकि, इस सौदे को कभी अमल में नहीं लाया जा सका। इसके बाद, टेस्ला के शेयर धारकों ने मस्क पर यह कहते हुए मुकदमा कर दिया था कि उनके ट्वीट से उन्हें भारी नुकसान पहुंचा है।
तीन सप्ताह की सुनवाई के अंत में करीब दो घंटे तक विचार-विमर्श करने के बाद नौ सदस्यीय जूरी ने अपना फैसला सुनाया। मस्क के लिए यह एक बड़ी जीत की तरह है, जो अदालती कार्यवाही के दौरान करीब आठ घंटे मौजूद रहे और अगस्त 2018 के अपने ट्वीट को लेकर बचाव में दलीलें दीं।
हालांकि, मस्क (51) फैसला सुनाए जाने के वक्त मौजूद नहीं थे, लेकिन वह शुक्रवार को दलीलें खत्म किए जाने के दौरान अचानक पहुंच गए थे, जो उनकी एक अलग ही छवि पेश करता है।
फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद मस्क ने ट्वीट कर अपनी खुशी का इजहार किया। उन्होंने लिखा, “भगवान का शुक्र है। आखिरकार न्याय की जीत हुई।”
मस्क के वकील एलेक्स स्पीरो ने न्यायाधीश मंडल से कहा, ‘‘2018 का ट्वीट ‘‘तकनीकी रूप से गलत’’ था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इससे किसी के साथ धोखा हुआ है।’’
मस्क ने ट्वीट किया था कि उन्होंने टेस्ला की खरीद के लिए 72 अरब डॉलर ‘‘धन जुटा लिया’’ है। उस समय टेस्ला उत्पादन संबंधी समस्याओं से जूझ रही थी। इसके बाद, उन्होंने एक अन्य ट्वीट किया था कि इस संबंध में सौदा जल्द ही होने वाला है, जबकि ऐसा कोई सौदा नहीं हुआ।
एपी सुरभि पारुल पारुल 0402 0910 सैनफ्रांसिस्को(एपी)
अमेरिका के बाद अब लैटिन अमेरिका में भी चीन का कथित संदिग्ध जासूसी ग़ुब्बारा पाया गया है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी और एसोसिएटेड प्रेस ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल पैट राइडर के हवाले से यह जानकारी दी है.
राइडर ने बताया कि चीन के दूसरे जासूसी गुब्बारे को लैटिन अमेरिका में देखा गया है. हालांकि उन्होंने गुब्बारे की सटीक लोकेशन नहीं बताई.
वहीं पहले अमेरिका में पाए गए जासूसी ग़ुब्बारे पर चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स की प्रतिक्रिया आई है.
चीन ने क्या कहा?
अमेरिका के ताज़ा दावों के बाद अब इस मामले में फिर से चीन का जवाब आया है. चीन के सरकारी मीडिया संस्थान ग्लोबल टाइम्स ने इस बारे में कुछ ट्वीट किए हैं.
एक ट्वीट में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "एक अप्रत्याशित घटना के कारण अमेरिका के हवाई क्षेत्र में चीन का एक मानवरहित एयरशिप प्रवेश कर गया था. चीन ने घटना की पुष्टि की है और इस पर अमेरिका को जवाब दिया है."
इसके अनुसार, "चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शनिवार को जारी एक बयान में बताया कि अप्रत्याशित हालात के कारण यह घटना घटी."
एक अन्य ट्वीट में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "चीन हमेशा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और दूसरे देशों की संप्रभुता और अखंडता का सख़्ती से सम्मान करता है. किसी संप्रभु देश के इलाक़े या एयरस्पेस का उल्लंघन करने का कोई इरादा नहीं रहा है. हम कुछ अमेरिकी नेताओं और मीडिया के इस घटना के सहारे चीन को बदनाम करने का विरोध करते हैं."
अमेरिका में दिखा था कथित जासूसी ग़ुब्बारा
इससे पहले अमेरिका के पश्चिमी राज्य मोंटाना में बुधवार को ऐसा ही एक गुब्बारा पाया गया था.
उसके बाद अमेरिका ने चीन पर संवेनशील जगहों की जासूसी करने का आरोप लगाया. अधिकारियों का कहना है कि यह ग़ुब्बारा हाल के दिनों में संवेदनशील जगहों पर उड़ रहा था और यह एक जासूसी उपकरण है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इन घटनाक्रम के बीच चीन का दौरा रद्द कर दिया है.
हालांकि चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के आरोपों को नकारते हुए कहा था कि यह 'सिविलियन एयरशिप' है, जो अपने रास्ते से भटक गया था.
चीन ने अमेरिकी आसमान में इस तरह ग़ुब्बारा आने पर खेद जताया था. उसने बताया कि इस ग़ुब्बारे का मकसद मौसम संबंधी जानकारियां जुटाना था. (bbc.com/hindi)
-अतहुल्पा अमेरिसे
डेढ़ साल पहले तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हथियाई थी, तब से लेकर मानवाधिकार हनन के मामले लगातार बढ़े हैं. ख़ासतौर पर महिलाओं से जुड़े मामले. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में चिंता की बात सिर्फ यही नहीं है.
अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत और भी चिंताजनक है. ये देश दो दशक तक अमेरिकी सैनिकों की देख रेख में चला. इसके बाद जब अमेरिकी सैनिकों ने लौटना शुरू किया, तब जुलाई 2021 में तालिबान ने यहां की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया.
तभी से अफ़ग़ानिस्तान की पहले से डांवाडोल अर्थव्यवस्था और भी खस्ताहाल होने लगी.
विश्व बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक 368 डॉलर प्रति व्यक्ति की सालाना आय के साथ अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है.
अफ़ग़ानिस्तान की कुल चार करोड़ 20 लाख आबादी में से आधे से ज्यादा लोगों को ठीक से पोषण नहीं मिल पा रहा है. इनमें से 86 फीसदी लोग भूखे हैं. ये तादाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य कार्यक्रम के सूचकांक में अफ़ग़ानिस्तान पिछले साल के मुकाबले 11 पायदान नीचे खिसका है.
अफ़ग़ानिस्तान में ये संकट बढ़ने के पीछे कई वजहे हैं. मसलन बाहरी मदद में कमी, भूकंप से लेकर बाढ़ और भंयकर ठंड जैसी प्राकृतिक आपदाएं और पूरी दुनिया में बढ़ती महंगाई का असर.
लेकिन इन सबसे बड़ी वजह है - अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध.
इसकी वजह से विदेशों में अफ़ग़ानिस्तान के सेंट्रल बैंक की 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि को फ्रीज की जा चुकी है.
इन हालात में देश की वित्तीय व्यवस्था सुचारु बनाए रखने के लिए तालिबान सरकार राजस्व के नए और पुराने स्रोतों का सहारा ले रही है.
कर वसूली हफ़्ता
अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हथियाने के बाद से ही तालिबान ने कर वसूली बढ़ा दी है.
कनाडाई रिसर्चर ग्रेमी स्मिथ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि, 'कर वसूली में इजाफे की वजह है पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का सैन्य नियंत्रण. ऐसा नियंत्रण बीते दशकों में किसी भी ग्रुप का नहीं रहा.
वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 से अक्टूबर 2022 तक तालिबान सरकार ने 1.5 बिलियन डॉलर की कर वसूली की थी. ये राशि इसी अवधि में पिछले 2 बरसों के मुकाबले ज़्यादा थी.
इस वसूली में बड़ा योगदान है सरहद पर पूरे नियंत्रण का. 2022 में सरहद से आने-जाने और आयात-निर्यात के बदले वसूले जाने वाले कर की हिस्सेदारी पूरे टैक्स कलेक्शन में 59 फीसदी थी. इसके पहले के बरसों में ये वसूली इसकी आधी भी नहीं थी.
स्मिथ बताते हैं, "सीमा शुल्क तालिबान सरकार की आय का बड़ा जरिया बन चुका है."
बीबीसी के लिए काम करने वाले अफ़ग़ानी पत्रकार अली होसैनी भी कहते हैं, "तालिबान ने जिस तरह पूरे सरहदी आवागमन और सरकारी दफ्तरों पर नियंत्रण स्थापित किया है, इसकी वजह से कई तरह के कर, खासतौर पर आयात कर वसूलने में ज्यादा आसानी हुई है."
अली होसैनी के मुताबिक कर वसूली के मामले में तालिबान दूसरी सरकारों के मुकाबले ज़्यादा सख़्त हैं. वो बताते हैं "पहले यही रकम अफ़सरों, कर्मचारियों की जेबों में जाती थी. लेकिन सख़्ती की वजह से भ्रष्टाचार काफी कम हुआ है. इसलिए टैक्स की रकम सरकार के हाथों में ज्यादा आ रही है."
कर वसूली को बढ़ावा देने के लिए तालिबान सरकार राष्ट्रीय स्तर पर 'टैक्स कलेक्शन वीक' आयोजित कराने का ऐलान कर चुकी है.
अशर और ज़कात
पारंपरिक करों के साथ तालिबान सरकार धार्मिक कर भी वसूलती है. इसे वो अशर और ज़कात कहते हैं.
ये दोनों धार्मिक कर पिछले साल सत्ता में आने से पहले भी तालिबान अपने कब्ज़े वाले इलाकों में वसूलते रहे हैं.
तालिबान की धार्मिक कर व्यवस्था को विस्तार से बताते हुए पत्रकार अली होसैनी कहते हैं, 'इसमें हर आदमी को हर साल अपनी पूरी जायदाद का लेखा जोखा तैयार करना होता है, जिसमें से पांचवा हिस्सा सरकार को देना जरूरी है.'
होसैनी कहते हैं "धार्मिक करों के मद में कितनी रकम वसूली जाती है, इसकी गणना या अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि अफ़गानिस्तान की 99 फीसदी आबादी मुस्लिम है. इसलिए इस्लामिक कानूनों के तहत दिए गए आदेश का पालन सबको करना पड़ता है."
कनाडाई रिसर्चर स्मिथ भी मानते हैं कि धार्मिक करों की उगाही से सरकार के कोष में जमा होने वाली रकम के बारे में अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है. वो कहते हैं 'तालिबान वित्तीय लेन-देन के मामले में कभी पारदर्शी नहीं रहा, इसलिए हम कुछ नहीं बता सकते.'
प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अफ़ग़ानिस्तान एक संपन्न देश है. यहां कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा और कीमती पत्थर जैसे खनिज भरपूर हैं.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों और कुछ भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के खनिज भंडार की कीमत एक ट्रिलियन डॉलर (एक लाख करोड़ डॉलर) के क़रीब है.
इनके व्यापक खनन के लिए मशीनरी, ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स में बड़े निवेश की ज़रूरत है. लेकिन देश में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से ये अब तक नहीं हो पाया है.
स्मिथ कहते हैं 'यहां की ज़्यादातर खनिज संपदा निकट भविष्य में भी ज़मीन के नीचे ही रह जाएगी.'
स्मिथ बताते हैं, "अगर आप अफ़ग़ानिस्तान से सोने या तांबे के खनिज निकालना चाहते हैं, तो आपको रेलवे ट्रैक बनाने पड़ेंगे. और ये काफी बड़ा निवेश होगा. लेकिन यहां की मौजूदा हालत देखते हुए निवेशक काफी सतर्क दिखते हैं. "
आज की तारीख़ में एक कोयला ही है, जो सबसे ज्यादा निर्यात करता है अफ़ग़ानिस्तान. वो भी मुख्य तौर पर पाकिस्तान को.
तालिबान के सत्ता में आने के पहले साल में पाकिस्तान को कोयले के निर्यात में 20 फीसदी का इजाफ़ा हुआ. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक हर रोज 10 हज़ार टन कोयले का निर्यात अभी किया जाता है.
वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के कुल 1.7 बिलियन डॉलर के निर्यात में कोयले के हिस्सेदारी 2022 में 90 फीसदी रही.
यहां के खनिज, टेक्सटाइल्स और कृषि उत्पादों का 65 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान को जाता है. जबकि 20 फीसदी हिस्सा भारत को निर्यात होता है.
2021 के पहले के दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में 126 छोटे खदान शुरू किए गए थे. तालिबान के तेल और खनिज मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल ही 60 और खदान खोले गए. इसके अलावा कुछ और कॉन्ट्रैक्ट साइन किए जाने वाले हैं.
पत्रकार अली होसैनी बताते हैं खदानों, खासतौर पर तांबे के खनन के कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए कई चीनी कंपनियां तालिबान सरकार से बातचीत कर रही हैं.
इसके अलावा तालिबान सरकार ने हाल ही में कच्चे तेल के खनन में भी चीन के साथ एक बड़े करार का ऐलान किया है. सरकार ने कहा कि वो चीन की कंपनी सीएपीईआईसी के साथ कच्चे तेल के खनन के लिए अब तक का सबसे बड़ा कॉन्ट्रैक्ट साइन करने वाली है.
ड्रग्स की तस्करी
सत्ता में आने से पहले तालिबान की आय का मुख्य जरिया अपहरण और जबरन वसूली जैसे आपराधिक गतिविधियों के साथ अफ़ीम की खेती भी था.
संयुक्त राष्ट्र संघ के एक आंकड़े के मुताबिक पूरी दुनिया अफ़ीम की अवैध खेती का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान में होता है.
पिछले साल अप्रैल में तालिबान ने अफ़ीम पोस्ता (ओपियम पॉपी) की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था.
अफ़ीम पोस्ता का इस्तेमाल हीरोइन और दूसरे नशीले पदार्थों के उत्पादन में किया जाता है. अफ़ग़ानिस्तान में ये दशकों से भ्रष्ट शासकों, अधिकारियों, जंगी कबीलों, स्थानीय आकाओं और आम किसानों की भी आय का बड़ा जरिया रहा है.
खुद तालिबान भी सत्ता में आने से पहले अपनी आय बढ़ाने के लिए अफ़ीम की बिक्री का सहारा लेता था. सवाल ये है, कि क्या उन्होंने ये सब वाकई बंद कर दिया है?
इसे लेकर अमेरिकी सरकार ने पिछले साल जुलाई में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक़ 'अफ़ीम किसानों और इसकी तस्करी से जुड़े दूसरे लोगों का समर्थन खोने के जोखिम के बावजूद तालिबान सरकार ड्रग्स पर पाबंदी के अपने फैसले को लेकर प्रतिबद्ध दिख रही है.'
पत्रकार होसैनी मानते है कि तालिबान नेतृत्व भले ही छोटे पैमाने पर क्यों न हो, लेकिन ड्रग तस्करों से पैसे वसूलता है.
वो कहते हैं, "इसकी एक वजह ये है कि तालिबान सरकार ने भले ही अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती और ड्रग्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन अभी इसकी खेती यहां होती है और ड्रग्स भी बिकते हैं."
दरअसल नशीले पदार्थों की खेती पर पाबंदी के ऐलान 8 महीने बाद ही अफ़ग़ानिस्तान में 23,33,000 हेक्टेयर में अफ़ीम की खेती का पता चला. इस आंकड़े का जिक्र संयुक्त राष्ट्र संघ की ड्रग्स और अपराध शाखा की एक रिपोर्ट में है.
हुसैनी के मुताबिक इससे जो रकम मिलती है, वो सीधे तालिबान सरकार के खजाने में जाती है. पहले की सरकारों में ये पूरी रकम भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों की जेब में जाती थी.
इस वित्त वर्ष में भारत भी अफ़ग़ानिस्तान को 200 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देगा. बुधवार को पेश किए गए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने विदेश मंत्रालय को 18 हज़ार करोड़ रु. आवंटित किए हैं. इसमें से 200 करोड़ रुपये अफ़ग़ानिस्तान को अनुदान और कर्ज के रूप में दिए जाएंगे. (bbc.com/hindi)
रूस के साथ हो रही जंग में सैन्य मदद के तौर पर अमेरिका, यूक्रेन को 2.2 अरब डॉलर का अतिरक्त पैकेज देने जा रहा है. इसके तहत अमेरिका उसे लंबी दूरी के गाइडेड रॉकेट देने जा रहा है.
ज़मीन से छोड़े जाने वाला यह रॉकेट, कम व्यास वाले बम के रूप में जाना जाता है. अमेरिका इस पैकेज में इस रॉकेट के अलावा एयर डिफेंस सिस्टम, एंटी-टैंक मिसाइल और बख़्तरबंद गाड़ियां भी यूक्रेन को देगा.
हालांकि पेंटागन के प्रवक्ता जनरल पैट्रिक राइडर ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह बताने से इनकार कर दिया है कि क्या यूक्रेन क्राइमिया में रूस के ख़िलाफ़ लंबी दूरी के इस रॉकेट का इस्तेमाल करेगा. उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा, यह यूक्रेन को तय करना है.
उन्होंने कहा, "यूक्रेन सुरक्षा सहायता पैकेज के तहत हम यूक्रेन को ज़मीन से छोड़े जाने वाले छोटे-व्यास के बम उपलब्ध कराएंगे."
राइडर ने कहा, "यह उन्हें लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता देगा, जो उन्हें देश की रक्षा करने और रूसी कब्ज़े वाले अपने इलाक़ों को फिर से हासिल करने में मदद करेगा. जहां तक इसके इस्तेमाल की बात है तो स्पष्ट रूप से यह उनका निर्णय होगा."
उन्होंने कहा कि यूक्रेन की एयर डिफेंस क्षमताओं को बेहतर बनाना अमेरिकी मदद का मुख्य फोकस है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि इन हथियारों से यूक्रेन की सेना की मौजूदा मारक क्षमता दोगुनी हो जाएगी.
ट्रांस-अटलांटिक थिंक टैंक 'ग्लोबसेक' के कीएव कार्यालय की डायरेक्टर लूलिया ओस्मोलोव्स्का के अनुसार, यूक्रेन ने साफ कर दिया है कि वो रूस पर हमला नहीं करेगा, लेकिन क्राइमिया सहित यूक्रेन के क्षेत्रों की रक्षा करेगा. (bbc.com/hindi)
सैंटियागो (चिली), 4 फरवरी। चिली में जंगल में लगी आग में शुक्रवार रात तक कम से कम 13 लोगों की मौत होने की सूचना है। समूचे चिली में जंगल में 150 से अधिक स्थानों पर आग लगने की घटना हुई है।
इस घटना में कई मकान जलकर खाक हो गए हैं, जबकि हजारों एकड़ में फैले वनों को नुकसान पहुंचा है। ऐसा लग रहा है कि दक्षिण अमेरिकी देश मानो आग की लपटों में घिरा है।
अधिकारियों ने बताया कि जंगल में लगी आग से बायोबो क्षेत्र से गुजर रहे चार लोगों की मौत हो गई, जो दो अलग-अलग वाहनों में सवार थे। बायोबो राजधानी सैंटियागो से करीब 560 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है।
चिली की गृह मंत्री कैरोलिना टोह ने कहा, ‘‘एक मामले में लोग इसलिए मारे गए, क्योंकि वे आग की चपेट में आ गए थे। अन्य मामलों में पीड़ित सड़क दुर्घटना का शिकार होने के कारण मारे गए। संभवत: वे आग से बचने की कोशिश कर रहे थे।’’
पांचवां पीड़ित एक दमकल कर्मी था, जो आग से बचाव कार्य के दौरान दमकल वाहन की चपेट में आ गया था।
वहीं, दोपहर बाद आग से बचाव के कार्य में जुटा एक हेलीकॉप्टर अरॉकाना क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे विमान के पायलट, बोलिविया के एक नागरिक और एक मैकेनिक की मौत हो गई, जो चिली का नागरिक था।
आपात कार्य करने वाली राष्ट्रीय एजेंसी ने कहा है कि मरने वालों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है। हालांकि, एजेंसी ने ताजा मौतों की जानकारी साझा नहीं की है।
शुक्रवार दोपहर तक समूचे चिली में जंगल में 151 जगहों पर आग की लपटें उठ रही थीं, जिनमें से 65 स्थानों पर हालात नियंत्रण में हैं। आग 14,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र में फैल चुकी है।
एपी सुरभि पारुल पारुल 0402 0834 सैंटियागो (एपी)