राजपथ - जनपथ
न मिलें ऐसी तस्वीरें देखने को
यह तस्वीर ट्विटर पर एक यूजर ने शेयर की है। यह कहते हुए कि सबसे ऊंची प्रतिमा बन गई, सबसे बड़ा स्टेडियम बन गया। इनका हम क्या करें। जब अस्पतालों में ही जगह न हो, इलाज न मिले। एक अन्य ने लिखा है मंदिर वहीं बन रहा है। अस्तालों में बेड मांगकर शर्मिंदा न करें।
फोन नंबर किसी काम के नहीं
कोरोना आपदा के चलते डॉक्टरों पर काम का जो बोझ आया है शायद वे ही इसे महसूस कर सकते हैं। कई घटनायें सामने आ रही हैं, जिनमें साथ पढ़े लिखे दोस्तों का भी फोन वे नहीं उठा रहे हैं। फोन उठ रहा भी है तो उनके स्टाफ की आवाज आ रही है।
प्रशासन ने सारे कोविड अस्पतालों के डॉक्टर्स के फोन नंबर जारी किये हैं। पर ज्यादातर डॉक्टरों ने अपना निजी फोन नंबर दिया ही नहीं है। उनके नंबर दिये गये हैं जो ओपीडी की सूची बनाते हैं। वे आपकी डॉक्टर से बात भी नहीं करायेंगे। कहा जायेगा, वे बहुत व्यस्त हैं। चाहे आप अपनी रिश्तेदारी का भी हवाला क्यों न दें।
इसके अलावा डिप्टी क्लेक्टर्स के नंबर भी प्रशासन ने जारी किये हैं। पर इन अधिकारियों के हाथ में भी ज्यादा कुछ नहीं है। फोन लगाने पर वे सिर्फ सलाह दे रहे हैं कि इस अस्पताल में तो जगह नहीं है, उस अस्पताल में पता कर लीजिये। आप कोई मदद करिये न सर? वे कह रहे हैं बिस्तर ही नहीं तो मैं क्या कर सकता हूं।
एक सुझाव यह भी आया है कि जब प्रदेश में अस्पतालों की संख्या 700 से ज्यादा है तो कोविड के लिये गिने-चुने अस्पताल ही क्यों तय किये गये? बाकी अस्पतालों में भी इलाज की सुविधा शुरू कर देनी चाहिये।
योग की तरफ बढ़ता रुझान
कोरोना के दूसरे स्ट्रेन में ज्यादातर मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ रही है। हर दूसरी मौत ऑक्सीजन लेवल कम हो जाने के चलते हो रही है। डॉक्टर्स बता रहे हैं कि यदि ऑक्सीजन लेवल 90 से कम है तो वह आपके लिये खतरे की घंटी है। ऑक्सीजन का स्तर ठीक रखने के लिये ऐलोपैथी में सिलेंडर लगाना ही उपाय है। पर अस्पतालों में बिस्तरों के लिये हो रही मारा-मारी के बीच इस सुझाव पर लोग अमल कर रहे हैं कि अनुलोम-विलोम और प्राणायाम करें। बहुत से लोगों से हो रही चर्चा में यह बात सामने आ रही है कि कोरोना के खतरे को महसूस करते हुए उन्होंने योगासन के उन अभ्यासों को अपनाना शुरू कर दिया है जो उनके ऑक्सीजन के स्तर को नियंत्रित कर रहा है।