राजपथ - जनपथ
अब तक चीन से बचे पोला के बैल
कुछ देसी त्यौहार अभी तक चीन की पहुंच से बाहर हैं। जैसे बैलों की पूजा का पोला, अब तक हिन्दुस्तान के गांव-गांव में बच्चे इस दिन मिट्टी के बने हुए बैल मिट्टी के ही चक्कों पर रस्सी बांध खींचते हुए चलते हैं। कुछ लोगों के घरों में पीढिय़ों से लकड़ी के ऐसे बैल चले आ रहे हैं जिन्हें पहले चमकीले कागज चिपकाकर सजाया जाता था, और अगले बरस फिर नए कागज लगाए जाते थे।
पिछले कुछ महीने हिन्दुस्तान में सभी मजदूरों और कारीगरों के लिए तकलीफ के रहे, जिनमें कुम्हार भी शामिल थे। कारोबार, दफ्तर, सरकार सभी कुछ बंद रहे, तो पूरी गर्मी बिना घड़ों के निकल गई। सिर्फ घर के लिए लोगों ने घड़े लिए, लेकिन न प्याऊ खुले, और न ही दुकानों के बाहर घड़े रखे गए। छोटे-छोटे चाय ठेले भी जो घड़े रखते थे, उसकी भी संभावना पूरी गर्मी में खत्म हो गई। ऐसे में पोला के मौके पर मिट्टी के कुछ बैल बिके, और काम थोड़ा सा चला। जहां हिन्दुस्तानी त्यौहारों के अधिकतर सामान, और तो और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी चीन से बनकर आने लगी हैं, वहां पोला अब तक चीन से बचा हुआ है।
डरे-सहमे लोगों के लिए फोन
वैसे तो गोपनीय बातचीत की जरूरत वाले लोग मोबाइल फोन के सिम के बजाय वॉट्सऐप या दूसरे मैसेंजरों पर बात करने लगे हैं, लेकिन जिन्हें और ऊंचे दर्जे की बात करनी रहती है वे महंगे आईफोन पर ही उपलब्ध फेसटाईम पर ही बात करते हैं। प्रदेश में एक-दो कारोबार ऐसे हो गए हैं जिनमें दूसरे किसी फोन पर कोई बात ही नहीं होती। शायद बात करने वाले खुद भी इस पर रिकॉर्ड नहीं कर पाते, और सुना है कि खुफिया एजेंसियां भी आईफोन के इस एप्लीकेशन में घुसपैठ नहीं कर पा रही हैं।
लेकिन लोगों को यह याद रखना चाहिए कि इसी छत्तीसगढ़ में ऐसे स्टिंग ऑपरेशन होते आए हैं जिनमें लोगों ने वॉट्सऐप पर बात करते हुए उसकी स्क्रीन की रिकॉर्डिंग दूसरे फोन से की थी। ऐसा सुबूत अदालत में काम आए न आए, निजी और राजनीतिक जिंदगी में तो उसे हथियार बनाया ही जा सकता है। इसलिए सुरक्षित कुछ भी नहीं है, बुरी बातें अपने मन के भीतर-भीतर मार डालें, उसी में हिफाजत है।