राजपथ - जनपथ
बृजमोहन-मूणत में समझौता...
खबर है कि रायपुर नगर निगम चुनाव के चलते पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत ने हाथ मिला लिया है। भाजपा की गुटीय राजनीति में दोनों ही एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। मगर अब प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं रह गई है, तो ऐसे में दोनों ने एक-दूसरे का सहयोग करने की ठानी है। सुनते हैं कि समझौते की अहम कड़ी बृजमोहन अग्रवाल के भाई विजय अग्रवाल हैं। जिन्हें राजेश मूणत ने रायपुर पश्चिम के स्वामी आत्मानंद वार्ड से प्रत्याशी बनाने पर सहमति दे दी है।
स्वामी आत्मानंद वार्ड भाजपा का गढ़ माना जाता है और वर्तमान में यहां से त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के भतीजे सनत बैस पार्षद हैं। इस वार्ड में अग्रवाल-जैन समाज के लोग निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में भाजपा के लोग मान रहे हैं कि विजय अग्रवाल को चुनाव जीतने में दिक्कत नहीं आएगी। अब समस्या सनत बैस की है, जिनके लिए अगल-बगल का कोई वार्ड देखा जा रहा है।
सनत मेहनती है और वे सक्रिय भी रहे हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल भी हो रहा है। लेकिन विजय अग्रवाल को प्रत्याशी बनाने से मूणत समर्थकों को बड़ा फायदा नजर आ रहा है। मूणत से जुड़े लोग मानते हैं कि रायपुर पश्चिम में विधानसभा चुनाव में अग्रवाल समाज से जुड़े लोग मूणत के साथ नहीं थे। इसका चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। अब विजय रायपुर पश्चिम में सक्रिय रहेंगे, तो विधानसभा चुनाव में अग्रवाल वोटों को साधने में मदद मिलेगी। फिलहाल, चुनाव की घोषणा से पहले ही पार्टी में कई समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं।
भाजपा में उपेक्षित हैं भसीन?
वैशाली नगर के भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन काफी दुखी हैं। वजह यह है कि पार्टी में संगठन चुनाव चल रहे हैं और उन्हें कोई पूछ नहीं रहा है। सुनते हैं कि वैशाली नगर के मंडलों में राज्यसभा सदस्य सुश्री सरोज पाण्डेय के भाई राकेश पाण्डेय के समर्थक काबिज हो गए हैं। राकेश पाण्डेय खुद विधानसभा टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह विद्यारतन भसीन को प्रत्याशी बना दिया। भसीन दुर्ग जिले से भाजपा के अकेले विधायक हैं। कहा जा रहा है कि भसीन ने संगठन चुनाव से उन्हें पूरी तरह अलग-थलग करने की शिकायत प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी से की है।
मगर उसेंडी की दिक्कत यह है कि उनकी भी कोई सुन नहीं रहा है। उनके अपने कांकेर जिले में चुनाव में गड़बड़ी के विरोध में कार्यकर्ता पार्टी छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। बस्तर से लेकर सरगुजा तक संगठन चुनाव में गड़बड़ी की शिकायतें आई है, लेकिन नाराज कई बड़े नेता नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए ज्यादा कुछ नहीं कह रहे हैं। चुनाव के बाद विवाद खुलकर सामने आ सकता है। ([email protected])