जितने मुँह उतनी बातें
सीएम विष्णुदेव साय गुरुवार को राज्यपाल रमेन डेका से मिलने गए, तो फिर कैबिनेट विस्तार का हल्ला उड़ा। बाद में सरकारी प्रेस नोट में वस्तु स्थिति की जानकारी दी गई, और बताया गया कि सीएम, राज्यपाल को नए साल की बधाई देने गए थे। साय के साथ प्रमुख सचिव सुबोध सिंह भी थे।
कैबिनेट विस्तार कब होगा, यह साफ नहीं है। मगर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि अगले कुछ दिनों में नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। हल्ला है कि प्रदेश अध्यक्ष किरण देव को साय कैबिनेट में जगह मिल सकती है।
किरणदेव की जगह पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। साथ ही अमर अग्रवाल को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है। पूर्व मंत्री राजेश मूणत को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। यदि हरियाणा फार्मूला अपनाया गया, तो गजेन्द्र यादव भी मंत्री बनाए जा सकते हैं। फिलहाल तो जितने मुंह, उतनी बातें हो रही है।
विवाद ऊपर ले जाते हैं
भाजपा के अल्पसंख्यक नेता डॉ. सलीम राज ने जब से वक्फ बोर्ड चेयरमैन का दायित्व संभाला है, तब से वो मुस्लिम नेताओं के आंखों की किरकिरी बन गए हैं। भिलाई में उन्हें काले झंडे दिखाए गए, और फिर महासमुंद में तो उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुस्लिम समाज के दो गुटों में झगड़ा हो गया। इन सबके चलते डॉ. सलीम राज की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। डॉ. सलीम राज को वाय श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध कराई गई है। डॉ. राज भले ही अपने समाज के लोगों के बीच नाराजगी झेलनी पड़ रही है, लेकिन उनकी पार्टी के लोग खुश हैं। चर्चा है कि डॉ. राज को राष्ट्रीय स्तर पर कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़
सरकारी खरीदी में ईमानदारी ढूंढना ऐसा ही है जैसे आसमान में तारे गिनने की कोशिश करना। स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार के मामले में अन्य विभागों से कहीं आगे दिखाई देता है। यहां करोड़ों की मशीनें खरीदी जाती हैं, जिनकी वास्तविक कीमत पर सवाल उठाना तो दूर, उनकी गुणवत्ता पर चर्चा तक नहीं होती।
खरीदी गई मशीनें खराब होने पर मरम्मत की कोशिशें भी नहीं की जातीं। दवाओं की खरीदारी का हाल तो और भी चिंताजनक है। बिना मांग के दवाएं खरीदी जाती हैं और फिर उन्हें प्रदेश के 350 उप-स्वास्थ्य व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेज दिया जाता है। पिछले जून में महालेखाकार ने दवा खरीदी में 660 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। इनमें कई ऐसी दवाएं थीं, जिन्हें फ्रीजर में रखना आवश्यक था, लेकिन जिन स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों के लिए स्ट्रेचर तक नहीं है, वहां फ्रीजर की व्यवस्था कैसे हो सकती है?
महालेखाकार की रिपोर्ट के बाद एक हाई-लेवल बैठक हुई थी, लेकिन उसकी जांच और कार्रवाई का अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। यह भी उल्लेखनीय है कि अंबेडकर अस्पताल, रायपुर में 18 करोड़ रुपये की पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पैट सीटी) मशीन खरीदी गई थी, जो एक भी मरीज की जांच किए बिना कबाड़ बन गई।
हाल ही में एक अखबार ने खुलासा किया कि राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के लिए जो मशीन खरीदी गई, वह बाजार में काफी कम कीमत पर उपलब्ध है। इस पर स्वास्थ्य संचालक से सवाल किया गया तो उन्होंने मासूमियत से सफाई दी कि टेंडर में सिर्फ एक पार्टी ने हिस्सा लिया था, इसलिए वही कीमत स्वीकार करनी पड़ी।
प्रदेशभर में भ्रष्टाचार के ऐसे अनेक किस्से हैं। भाजपा शासनकाल में एक स्वास्थ्य मंत्री को 52 करोड़ के घपले का मामला सामने आया था। उनको तब के सीएम डॉ. रमन सिंह ने हटा दिया था। पर उन्हें हर बार टिकट दी जाती है। इस बार वे फिर हार गए थे।
एक तरफ करोड़ों की अफरा-तफरी हो रही है, दूसरी ओर मरीजों को खाट और पालकी पर मीलों लेकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है।
मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री के साथ दिक्कत यह है कि वह ऐसे सवालों से नाराज हो जाते हैं। पत्रकारों को ही धमकाते हैं। पिछले कुछ सालों में हुई दवाओं और मशीनों की खरीदी की ऑडिट कराएं तो जनता का भला होगा।
भरोसा..
कभी दोबारा बहुमत में आएं तो तुम ही फिर सीएम बनोगी। नए साल पर, शायद ऐसा ही कुछ लालू यादव, राबड़ी देवी से कह रहे हैं।